हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #202 ☆ ख़ामोशी एवं आबरू ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख ख़ामोशी एवं आबरू। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 202 ☆

☆ ख़ामोशी एवं आबरू 

‘शब्द और सोच दूरियां बढ़ा देते हैं, क्योंकि कभी हम समझ नहीं पाते, कभी समझा नहीं पाते।’ शब्द ब्रह्म है, सर्वव्यापक है, सृष्टि का मूलाधार व नियंता है और समस्त संसार का दारोमदार उस पर है। सृष्टि में ओंम् शब्द सर्वव्यापक है, जो अजर, अमर व अविनाशी है। इसलिए दु:ख, कष्ट व पीड़ा में व्यक्ति के मुख से ‘ओंम्, मैं तथा मां ‘ शब्द ही नि:सृत होते हैं। परमात्मा ने शिशु की उत्पत्ति व संरक्षण का दायित्व मां को सौंपा है। वह नौ माह तक भ्रूण रूप में गर्भ में पल रहे शिशु का, अपने लहू से सिंचन व भरण-पोषण करती है, जो किसी करिश्मे से कम नहीं है। जन्म के पश्चात् शिशु के मुख से पहला शब्द ओंम, मैं व मां ही प्रस्फुटित होता है। मां के संरक्षण में वह पलता-बढ़ता है और युवा होने पर वह उसके लिए पुत्रवधु ले आती है, ताकि वह भी सृष्टि-संवर्द्धन में योगदान देकर अपने दायित्व का वहन कर सके।

घर में गूंजती बच्चों की किलकारियां सुनने को आतुर मां… अपने आत्मज के बच्चों को देख पुनः उस अलौकिक सुख को पाना चाहती है और यह बलवती लालसा उसे हर हाल अपने आत्मजों के परिवार के साथ रहने को विवश करती है। वहां रहते हुए वह ख़ामोश रहकर हर आपदा सहन करती रहती है, ताकि हृदय में खटास उत्पन्न न हो और कटुता के कारण दिलों में दूरियां न बढ़ जाएं। वह परिवार रूपी माला के सभी मनकों को स्नेह रूपी डोरी में पिरोकर रखना चाहती है, ताकि घर में सामंजस्य व सौहार्द बना रहे। परंतु कई बार यह ख़ामोशी उसके अंतर्मन को सालने लगती है। वैसे ख़ामोशी की सार्थकता, सामर्थ्य व प्रभाव- क्षमता से सब परिचित हैं। ख़ामोशी सबकी प्रिय है और वह आबरू को ढक लेती है, जो समय की ज़बरदस्त मांग है। ‘रिश्ते ख़ामोशी का आभूषण धारण कर न केवल जीवित रहते हैं, बल्कि पनपते भी हैं। वे केवल उसकी शोभा ही नहीं बढ़ाते…उसके जीवनाधार हैं।’ लड़की जन्मोपरांत पिता व भाई के सुरक्षा-दायरे में, विवाह के पश्चात् पति के घर की चारदीवारी में और उसके देहांत के बाद पुत्र के आशियां में सुरक्षित समझी जाती है। परंतु आजकल ज़माने की हवा बदल गई है और वह कहीं भी सुरक्षित नहीं है। सो! समय की नज़ाकत को देखते हुए बचपन से ही उसे मौन रहने का पाठ पढ़ाया जाता है; असंख्य आदेश-उपदेश दिए जाते हैं; प्रतिबंध लगाए जाते हैं और हिदायतें भी दी जाती हैं। अक्सर भाई के साथ प्रिय व असामान्य व्यवहार देख उसका हृदय क्रंदन कर उठता है और उसके समानाधिकारों की मांग करने पर, उसे यह कहकर चुप करा दिया जाता है कि ‘वह कुल-दीपक है, जो उन्हें मोक्ष के द्वार तक ले जाएगा।’ परंंतु तुम्हें तो यह घर छोड़ कर जाना है… सलीके से मर्यादा में रहना सीखो। ख़ामोशी तुम्हारा श्रृंगार है और तुम्हें ससुराल में जाकर सबकी आशाओं पर खरा उतरने के लिए ख़ामोश रहना है… नज़रें झुका कर हर हुक्म बजा लाना है तथा उनके आदेशों को वेद-वाक्य समझ हर आदेश की अनुपालना करनी है।

इतनी हिदायतों के बोझ तले दबी वह नवयौवना, पति के घर की चौखट लांघ उस घर को अपना घर समझ सजाने-संवारने में लग जाती है और सबकी खुशियों के लिए अपने अरमानों का गला घोंट, अपने मन को मार, ख्वाहिशों को दफ़न कर पल-पल जीती, पल-पल मरती है; कभी उफ़् नहीं करती है। परंतु जब परिवारजनों की नज़रें सी•सी•टी•वी• कैमरों की भांति उसकी पल-पल की गतिविधियों को कैद करती हैं और उसे प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर देती हैं, तो उसका हृदय चीत्कार कर उठता है। परंतु फिर भी वह ख़ामोश अर्थात् मौन रहती है; प्रतिकार अथवा विरोध नहीं दर्ज कराती तथा प्रत्येक उचित-अनुचित व्यवहार, अवमानना व प्रताड़ना को सहन करती है। परंतु एक दिन उसके धैर्य का बांध टूट जाता है और उसका मन विद्रोह कर उठता है। उस स्थिति में उसे अपने अस्तित्व का भान होता है। वह अपने अधिकारों की मांग करती है, परंतु कहां मिलते हैं उसे समानाधिकार …और वह असहाय दशा में तिलमिला कर रह जाती है। वह स्वयं को चक्रव्यूह में फंसा हुआ पाती है, क्योंकि जिस घर को वह अपना समझती रही, वह उसका कभी था ही नहीं। उसे तो किसी भी पल उस घर को त्यागने का फरमॉन सुनाया जा सकता है। अक्सर महिलाएं परिवार की आबरू बचाने के लिए ख़ामोशी का बुर्क़ा अर्थात् आवरण ओढ़े घुटती रहती हैं;  मुखौटा धारण कर खुश रहने का स्वांग रचती हैं। विवाहोपरांत माता-पिता के घर के द्वार उनके लिए बंद हो जाते हैं और पति के घर में वे सदा परायी अथवा अजनबी समझी जाती हैं…अपने अस्तित्व को तलाशती, हृदय पर पत्थर रख अमानवीय व्यवहार सहन करती, कभी प्रतिरोध नहीं करती। अन्तत: इस संसार को अलविदा कह रुख़्सत हो जाती हैं।

परंतु इक्कीसवीं सदी में महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं। बचपन से लड़कों की तरह मौज-मस्ती करना, वैसी वेशभूषा धारण कर क्लबों व पार्टियों से देर रात घर लौटना व अपने हर शौक़ को पूरा करना… उनके जीवन का मक़सद बन जाता है और वे अपने ढंग से अपनी ज़िंदगी जीने लगती हैं। सो! प्रतिबंधों व सीमाओं में जीना उन्हें स्वीकार नहीं, क्योंकि वे पुरुष की भांति हर क्षेत्र में दखलांदाज़ी कर सफलता प्रात कर रही हैं। अब वे सीता की भांति पति की अनुगामिनी बनकर जीना नहीं चाहतीं और न ही अग्नि-परीक्षा देना उन्हें मंज़ूर है। वे पति की जीवन-संगिनी बनने की हामी भरती हैं, क्योंकि कठपुतली की भांति नाचना उन्हें अभीष्ठ नहीं। वे स्वतंत्रता-पूर्वक अपने ढंग से जीना चाहती हैं। मर्यादा की सीमाओं व दायरे में बंध कर जीवन जीना उन्हें स्वीकार नहीं, जिसके भयावह परिणाम हमारे समक्ष हैं। वे रिश्तों की अहमियत नहीं स्वीकारतीं; न ही घर-परिवार के क़ायदे-कानून उनके पांवों में बेड़ियां डाल कर रख सकते हैं। वे तो सभी बंधनों को तोड़ स्वतंत्रता-पूर्वक जीना चाहती हैं। सो! बात-बात पर पति व परिवारजनों से व्यर्थ में उलझना, उन्हें भला-बुरा कहना, प्रताड़ित व तिरस्कृत करना… उनके स्वभाव में शामिल हो जाता है, जिसके भीषण परिणाम तलाक़ के रूप में हमारे समक्ष हैं।

संयुक्त परिवारों का प्रचलन तो गुज़रे ज़माने की बात हो गया है। एकल परिवार व्यवस्था के चलते पति-पत्नी एक छत के नीचे अजनबी-सम रहते हैं, एक-दूसरे के सुख-दु:ख व संबंध- सरोकारों से बेखबर… अपने-अपने द्वीप में कैद। वैसे हम दो, हमारे हम दो का प्रचलन ‘हमारा एक’ तक आकर सिमट गया। परंतु अब तो संतान को जन्म देकर युवा-पीढ़ी अपने दायित्वों का निर्वहन करना ही नहीं चाहती, क्योंकि आजकल वे सब ‘तू नहीं और सही’ में विश्वास करने लगे हैं और ‘लिव-इन’ व ‘मी-टू’ ने तो संस्कृति व संस्कारों की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। इसलिए हर तीसरे घर की लड़की तलाक़शुदा दिखाई पड़ती है। लड़के भी अब इसी सोच में आस्था व विश्वास रखने लगे हैं और वे भी यही चाहते हैं। परंतु उन्हें न चाहते हुए भी घर में सुख-शांति व संतुलन बनाए रखने के लिए उसी ढर्रे पर चलना पड़ता है। अक्सर अंत में वे उसी कग़ार पर आकर खड़े हो जाते हैं, जिसका हर रास्ता अंधी गली में जाकर खुलता है अर्थात् विनाश की ओर जाता है। सो! वे भी ऐसी आधुनिक जीवन-संगिनी से निज़ात पाना बेहतर समझते हैं। अक्सर लड़के तो आजकल विवाह करना ही नहीं चाहते, क्योंकि वे अपने माता-पिता को सीखचों के पीछे देखने की भयावह कल्पना-मात्र से कांप उठते हैं। शायद! यह विद्रोह व प्रतिक्रिया है– उन ज़ुल्मों के विरुद्ध, जो महिलाएं वर्षों से सहन करती आ रही हैं।

‘शब्द व सोच दूरियां बढ़ा देते हैं। कई बार दूसरा व्यक्ति उसके मन के भावों को समझना ही नहीं चाहता और कई बार वह उसे समझाने में स्वयं को असमर्थ पाता है…दोनों स्थितियां भयावह व गंभीर हैं।’ इसलिए वह अपनी सोच, अपेक्षा व भावों को उजागर भी नहीं कर पाता। इन असामान्य परिस्थितियों में मन की दरारें इस क़दर बढ़ती चली जाती हैं, जो खाई के रूप में मानव के समक्ष आन खड़ी होती हैं, जिन्हें पाटना असंभव हो जाता है। शायद! इसीलिए कहा गया है कि ‘ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा’ अर्थात् अजनबी बनकर जीने से बेहतर है– संबंध-विच्छेद कर स्वतंत्रता व सुक़ून से अपनी ज़़िंदगी जीना। जब ख़ामोशियां डसने लगें और हर पल प्रहार करने लगे, तो अवसाद की स्थिति में जीने से बेहतर है… उनसे मुक्ति पा लेना। जीवन में केवल समस्याएं नहीं हैं, धैर्यपूर्वक सोचिए और संभावनाओं को तलाशने का प्रयास कीजिए। हर समस्या का समाधान उपलब्ध होता है और उसके केवल दो विकल्प ही नहीं होते। आवश्यकता है, शांत मन से उसे खोजने की,

अपनाने की और विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने की। इसलिए ‘व्यक्ति जितना डरेगा, लोग उसे उतना डरायेंगे’…सो! हिम्मत करो, सब सिर झुकायेंगे। ‘लोग क्या कहेंगे’ इस धारणा-भावना को हृदय से निकाल बाहर फेंक दें, क्योंकि आपाधापी भरे युग में किसी के पास किसी के लिए समय है ही कहां… सब अपने- अपने द्वीप में कैद हैं। सो! व्यर्थ की बातों में मत उलझिए, क्योंकि दु:ख में व्यक्ति अकेला होता है और सुख में तो सब साथ खड़े दिखाई देते हैं।

इसलिए दु:ख आपका सच्चा मित्र है, सदा साथ रहता है… सबक़ सिखाता है और जब छोड़कर जाता है, तो सुख देकर जाता है। वास्तव में दोनों का एक स्थान पर इकट्ठे रहना संभव नहीं है। इसलिए संसार में रहते हुए स्वयं को आत्म- सीमित अर्थात् आत्मकेंद्रित मत कीजिए, क्योंकि यहां अनंत संभावनाएं उपलब्ध हैं। इसलिए यह मत सोचिए कि ‘मैं नहीं कर सकता। पूर्ण प्रयास कीजिए और सभी विकल्प आज़माइए। परंतु यदि फिर भी सफलता न प्राप्त हो, तो उस विषम व असामान्य परिस्थिति में अपना रास्ता बदल लेना श्रयेस्कर है, ताकि आबरू सुरक्षित रह सके।

ख़ामोशी मौन का दूसरा रूप है। मौन रहने व तुरंत प्रतिक्रिया न देने से समस्याएं, बाधाओं के रूप में आपका रास्ता नहीं रोक सकतीं…स्वत: समाधान निकल आता है। इसलिए समस्या के उपस्थित होने पर क्रोधित होकर त्वरित निर्णय मत लीजिए… चिंतन-मनन कीजिए…सभी पहलुओं पर सोच-विचार कीजिए; समाधान आपके सम्मुख होगा। यही है…जीने की सर्वश्रेष्ठ कला। परिवार, दोस्त व रिश्ते अनमोल होते हैं। उनके न रहने पर ही मानव को उनकी कीमत समझ आती है और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए ख़ामोशी के आवरण की दरक़ार है, क्योंकि वे प्रेम व त्याग की बलि चाहते हैं। ख़ामोशी अथवा मौन रहना उर्वरक है, जो परिवार में प्रेम व रिश्तों को गहनता प्रदान करता है। दोनों स्थितियों में प्रतिदान का भाव नहीं आना चाहिए, क्योंकि वह हमें स्वार्थी बनाता है। सो! किसी से आशा व अपेक्षा मत रखिए, क्योंकि अपेक्षा ही दु:खों का कारण है और मांगना तो मरने के समान है, परंतु देने में सुख व संतोष का भाव निहित है। इसलिए सहनशक्ति बढ़ाएं। यह सर्वश्रेष्ठ दवा है और ख़ामोशी की पक्षधर है, जिसके संरक्षण में संबंध फलते-फूलते व पूर्ण रूप से विकसित होते हैं।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 53 – देश-परदेश – बची हुई दवाएं ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 53 ☆ देश-परदेश – बची हुई दवाएं ☆ श्री राकेश कुमार ☆

हम सब अपने आप को स्वास्थ्य रखने के लिए नाना प्रकार की दवाओं का सेवन करते हैं। समय समय पर अस्वस्थ होने पर अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग अब दैनिक जीवन का एक भाग हो चुका है। अनेक बार डॉक्टर बदलने या दवा को बदल देने से बहुत सारी दवाइयां शेष रह जाती हैं। प्रायः सभी के घर में बची हुई या शेष रह गई दवाइयों का स्टॉक पड़ा रह जाता है। कुछ समय के अंतराल पर वो निश्चित समयपार हो जाने के कारण अनुपयोगी हो जाती हैं।

इस प्रकार की दवाइयां निज़ी धन की हानि करती है, साथ ही साथ इसको राष्टीय क्षति भी कहा जा सकता है।

एक तरफ आर्थिक रूप से कमज़ोर लोग दवा को खरीदने में असमर्थ होते हुए ना सिर्फ शारीरिक कष्ट उठाते है, वरना अनेक बार जीवन से भी मुक्त हो जाते हैं।

ये कैसी विडंबना है, एक तरफ दवा बेकार हो रही है, दूसरी तरफ बिना दवा की जिंदगी खोई जा रही है। कुछ शहरों में इन बची हुई दवाओं को जरूरतमंद लोगों के उपयोग की व्यवस्था होती हैं, परंतु जानकारी के अभाव में बहुत सारी दवाइयां अनुपयोगी हो जाती हैं। यदि आपके पास किसी भी संस्था के बारे में पुख्ता जानकारी हो तो समूह में सांझा कर देवें, ताकि उसका सदुपयोग हो सकें।

जब परिवार के किसी सदस्य की बीमारी से मृत्यु हो जाती है, उस समय तो बची हुई बहुत सारी दवाएं अनुपयोगी हो जाती हैं।

हम में से अधिकांश साथी सेवानिवृत हैं, कुछ समय इस प्रकार की गतिविधियों को देकर, समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्तियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए  कर सकते हैं।

आप सभी से आग्रह है, की इस बाबत अपने विचार और सुझाव सांझा करें ताकि उनका प्रभावी उपयोग हो सकें।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 165 ⇒ कार निषेध दिवस… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कार निषेध दिवस”।)

?अभी अभी # 165 ⇒ कार निषेध दिवस? श्री प्रदीप शर्मा  ?

NO CAR DAY •

आज हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हम एक दिन बिना प्यार के तो रह सकते हैं, लेकिन बिना कार के नहीं रह सकते। एक समय था जब पैसा या प्यार जैसी फिल्में बनती थी, आज अगर कार और प्यार में से किसी एक को चुनना पड़े, तो इंसान को दस बार सोचना पड़ेगा। हमने तो आजकल, दे दे प्यार दे की तर्ज पर, लोगों को आपस में, दे दे कार दे, कार दे, कार दे, कार दे कहते हुए, कार मांगते भी देखा है।

ट्रैफिक जाम और प्रदूषण का हाल ये देखा कि, एक दिन के लिए कार छोड़ दी मैने। एक समय था, जब हर तरफ आदमी ही आदमी नजर आता था, और आज यह नौबत आ गई कि हर तरफ कार ही कार। हर चौराहे पर बत्तियां बदलती रहती हैं और ट्रैफिक केंचुए की तरह रेंगता रहता हैं। चारों ओर से हॉर्न की कर्कश आवाज यही दर्शाती है कि हमने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है।।

अंततोगत्वा, ये तो होना ही था ! नो व्हीकल जोन की तरह आप इसे नो व्हीकल डे भी कह सकते हैं। लेकिन वाहन बिन सब सून ! बड़ी ज्यादती हो जाती है। वाहन में तो दो पहिया, तीन पहिया, सिटी बस, स्कूल बस, सभी आते हैं। चलिए, इसे कार तक ही सीमित करते हैं। एक दिन बिना कार का। अब आपको, नो कार डे, से ही समझौता करना पड़ेगा। इसके हिंदी में अनुवाद के चक्कर में मत पड़िए, इंडिया भारत हो गया, यही क्या कम है।

आज की स्थिति में आखिर कार क्यूं, जैसा प्रश्न पूछना ही बेमानी है। जो अपने परिवार से करे प्यार, वो कार से कैसे करे इंकार। जब हम दो थे, तो आराम से, आसानी से वेस्पा, लैंब्रेटा, राजदूत और हीरो होंडा मोटर साइकिल से काम चला लेते थे। हमने भी देखे हैं, चल मेरी लूना के दिन।।

फिर हम दो से, हमारे दो हुए। पहिए भी दो से चार हुए। बाल बच्चों वाला घर, कार का क्या, बेचारी घर के बाहर ही सो जाती है रात को। ठंड, गर्मी, बरसात, कोई शिकायत नहीं, बस सुबह कपड़ा मार दो, चमक जाती है। इंसान होती तो चाय पानी करवा देते, पर उसकी खुराक तो डीजल पेट्रोल है। सबको पेट काट काटकर पालना पड़ता है।

क्या जिनके पास कार नहीं, उनका परिवार नहीं, या वे बेकार हैं। अपनी अपनी हैसियत है, जरूरत है, मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं, हर महीने कार की किश्त चुकाते हैं, तब कार का शौक पालते हैं।

अपना अपना नसीब है। आप क्यों हमसे जलते हैं।।

नो कार डे को आप बेकार डे नहीं कह सकते। हफ्ते पंद्रह दिन में, कुछ लोग उपवास रखते हैं, अन्न की जगह कुछ और खा लेते हैं। एक पंथ दो काज ! थोड़ा धरम करम, थोड़ा व्रत उपवास, पिज़्ज़ा बर्गर पास्ता की छुट्टी। क्या कहते हैं उसे, संयम। कुछ लोगों से तो कंट्रोल ही नहीं होता।

महीने पंद्रह दिन में अगर कार से भी परहेज किया जाए तो कोई बुरा नहीं।

अन्य साधन उपलब्ध तो हैं ही। बस अगर सामूहिक इच्छा शक्ति हो, तो हमारी बहुत ही समस्याओं का निदान तो हम ही कर लें।

जिस तरह बूंद बूंद से घड़ा भरता है, आपके एक दिन कार नहीं चलाने से भी बहुत फर्क पड़ सकता है।

बिना कार कहें, बहिष्कार कहें, आप चाहें तो इसे नो कार डे भी कहें, सब चलता है।।

बढ़ती कारों की संख्या आप रोक नहीं सकते। नए वाहनों के क्रय पर भी आप बंदिश भी नहीं लगा सकते। गैरेज का पता नहीं, कार सड़कों पर रखी जा रही हैं। कार पार्किंग की समस्या भी आज की सबसे बड़ी समस्या है।

जहां सामान खरीदना है, वहीं कार खड़ी कर दी। दो कदम पैदल चल नहीं सकते। पूरी सड़कें गलत पार्किंग से भरी रहती हैं, ट्रैफिक तो बाधित होता ही है। प्रशासन चालान काट काट कर हार गया। भगवान भरोसे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था है। फिर भी हम खुश हैं, क्योंकि हमारे पास तो कोई कार ही नहीं है।

एवरी डे इज अ, नो कार डे।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (25 सितंबर से 1 अक्टूबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (25 सितंबर से 1 अक्टूबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप सभी को अनंत चतुर्दशी एवं डोल ग्यारस की बधाई। 30 सितंबर से पितृपक्ष भी प्रारंभ हो रहा है। आइये हम अपने पितरों के साथ-साथ भारत मां के शहीदों का भी स्मरण करें। इस सप्ताह भगत सिंह जयंती भी है। अमर शहीद भगत सिंह उन लोगों में से एक हैं जिन्होने हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते अपने जीवन का बलिदान किया। कई क्रांतिकारीयों ने बताया है कि उनको यह शक्ति उनके पारिवारिक वातावरण और उनके इष्ट देव की प्रार्थना से मिली है। आईये हम सभी कलयुग के जीवंत देवता हनुमान जी की प्रार्थना करते हैं।

आज की हनुमान चालीसा की चौपाई है :-

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। 

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

भावार्थ:- तुलसीदास जी भगवान शिव को साक्षी बनाकर कह रहे हैं कि जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसको निश्चित रूप से सिद्धियां प्राप्त होगी। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना भगवान शिव की प्रेरणा से की है। अतः वे उन्ही को साक्षी बता रहे हैं।

इस चौपाई को बार-बार पढ़ने से होने वाला लाभ:- हनुमान चालीसा की इस चौपाई से शिव पार्वती की कृपा होती है।

अब मैं आप सभी को 25 सितंबर से 1 अक्टूबर 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तक के सप्ताह की साप्ताहिक राशिफल के बारे में राशिवार बताऊंगा।

 इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मकर राशि का रहेगा। 26 सितंबर को 6:29 शाम से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा। 28 सितंबर को 8:40 रात से मीन राशि में गोचर करता हुआ 30 सितंबर को 11:41 रात से मेष राशि में भ्रमण करेगा।

 इस पूरे सप्ताह सूर्य और मंगल कन्या राशि में बुद्ध सिंह राशि में और शुक्र कर्क राशि में रहेंगे। गुरु मेष राशि में बक्री रहेगा। इसी प्रकार शनि कुंभ राशि में बक्री रहेगा। राहु मेष राशि में हमेशा की तरह वक्री रहेगा।  आईये अब मैं आपको प्रत्येक राशि का राशिफल बताता हूं।

मेष राशि

इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो आपके सभी दुश्मन हार मान लेंगें। कचहरी के कार्यों में भी सफलता मिल सकती है। भाग्य आपका साथ देगा। आपके स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। अगर आप विद्यार्थी हैं तो आपकी शिक्षा अति उत्तम चलेगी। व्यापार में वृद्धि होगी। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। धन की कमी महसूस होगी। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 सितंबर तथा 1 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 29 और 30 सितंबर को आपको कोई भी कार्य प्रारंभ करने के पहले पूरी योजना बनाना चाहिए एवं कार्य को पूरी सावधानी के साथ करना चाहिए। अन्यथा आपको असफलता प्राप्त हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने माता जी के हाथों शुक्रवार के दिन गरीबों के बीच में चावल का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। व्यापार ठीक चलेगा। भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। कार्यालय में आपको परेशानियां हो सकती हैं। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। आपके एक संतान को कष्ट हो सकता है परंतु दूसरे संतान की उन्नति भी हो सकती है। छात्रों की पढ़ाई सामान्य चलेगी। छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 सितंबर लाभदायक हैं। 1 अक्टूबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

आपका स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। धन आने में बाधा है। भाग्य कुछ कम साथ देगा। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जनता में आपकी प्रसिद्ध बढ़ेगी। भाइयों बहनों के साथ अच्छे संबंध रह सकते हैं। एक भाई के साथ संबंध में सुधार होगा। संतान से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होगा। छात्रों की पढ़ाई सामान्य चलेगी। कार्यालय में आपके सहयोग प्राप्त होगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 सितंबर फलदायक हैं। 25 और 26 सितंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम सात बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। भाई बहनों के साथ संबंध में थोड़ी बाधा आ सकती है। धन आने का उत्तम योग है कचहरी के कार्यों में सफलता मिलना कठिन है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। माता का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 तारीख अच्छे हैं। 27 और 28 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। 1 अक्टूबर भी आपके लिए फलदायक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। व्यापार में लाभ होगा। व्यापार तेजी के साथ आगे बढ़ेगा परंतु इसके लिए आपको प्रयास करना होगा। व्यापार के लिए आप द्वारा किए गए प्रयासों में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य से कोई ज्यादा उम्मीद ना करें। कचहरी के कामों में कोई रिस्क ना ले। धन आने का योग है। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। संतान का आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके पेट में कुछ पीड़ा हो सकती है। आपके संतान को थोड़ा कष्ट भी हो सकता है। आपके लिए 27 और 28 सितंबर उत्तम है। 27 और 28 सितंबर को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आप सफल होंगे। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सचेत रहने की आवश्यकता है। कोई भी काम पूरी सावधानी के साथ करें। आपको चाहिए कि आप गुरुवार का व्रत करें और विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में भी आपको सफलता प्राप्त हो सकती है। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। आपका आत्मविश्वास अत्यंत बढ़ा हुआ रहेगा। परंतु आपको लोगों से व्यर्थ का वाद विवाद नहीं करना चाहिए। आपके अंदर क्रोध की मात्रा थोड़ी बढ़ जाएगी। आपके शत्रु आपको लगातार कष्ट पहुंचाने का प्रयास करेंगे। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। आपके सुख में वृद्धि होगी। माता-पिता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। खर्चे थोड़े से बढ़ेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 सितंबर कार्यों को करने के लिए लाभदायक है। 27, 28 सितंबर और 1 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य पूरी सावधानी के साथ करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

तुला राशि की जातकों के लिए इस सप्ताह धन कमाने का अच्छा समय है। व्यापार में वृद्धि होगी। खर्चे में कमी होगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आपके शत्रु समाप्त भी हो सकते हैं। आपके जीवनसाथी को इस सप्ताह कष्ट हो सकता है। उनको ब्लड प्रेशर हो सकता है। डायबिटीज में वृद्धि हो सकती है या कोई चोट लगने से खून भी निकल सकता है। भाइयों और बहनों के साथ आपका संबंध बेहतर होगा। आपको इस सप्ताह अपने संतान से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। कार्यालय में आपकी स्थिति कमजोर होगी। इस सप्ताह आपके लिए 25 और 26 सितंबर तथा 1 अक्टूबर उत्तम है। 29 और 30 सितंबर को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का अभिषेक करें तथा ओम नमः शिवाय के एक माला प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग है। आपकी संतान की प्रगति हो सकती है। आपको संतान का सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी। परंतु यह सब कुछ आपको अपने प्रयत्नों से मिलेगा। भाग्य का इसमें कोई विशेष योगदान नहीं रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके खर्चे में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 सितंबर उत्तम है। लाभदायक है। 1 अक्टूबर को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन रुद्राष्टक का तीन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में अच्छी प्रगति प्राप्त होगी। आपका एक अधिकारी आपसे नाराज रहेगा। भाग्य आपकी भरपूर मदद करेगा। व्यापार में उन्नति होगी। स्त्री जातकों को पीड़ा हो सकती है। आपकी संतान को कष्ट हो सकता है। अगर आप छात्र हैं तो आपकी पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। जनता के बीच में आपकी अच्छी छवि बनेगी। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध में कड़वाहट आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 सितंबर फलदायक हैं। सप्ताह के बाकी के दिन ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने संतान की उन्नति हेतु काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

यह सप्ताह आपके स्वास्थ्य के लिए उत्तम रहेगा। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट होगी। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। धन आने के मार्ग में कई बाधाएं आयेंगी। खर्चा कम होगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। आपको अपने संतान से सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 25, 26 सितंबर और 1 अक्टूबर फलदायक एवं लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें और गुरुवार का व्रत करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके जीवन साथी के लिए अत्यंत उत्तम है। आपके व्यापार में उन्नति होगी। जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आप व्यापार की नई योजनाएं बना सकते हैं। आपको खून संबंधी कोई रोग जैसे की ब्लड प्रेशर डायबिटीज या किसी कारणवश खून का निकलना आदि हो सकता है। भाग्य आपका सामान्य है। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव आएगा। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी। महिलाओं से सावधान रहें। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 सितंबर फलदायक और अच्छे हैं। 25 और 26 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। कोई भी कार्य बगैर योजना बनाये नहीं करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव के पंचाक्षर स्त्रोत का कम से कम तीन बार प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह आपके और आपके जीवनसाथी के लिए स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उत्तम है। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत हो सकती है। कचहरी के कार्यों में बाधा है। आपकी संतान के लिए यह सप्ताह कम ठीक है। आपके शत्रु शांत रह सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 सितंबर शुभ फलदायक है। 27 और 28 सितंबर को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। अगर आप सचेत नहीं रहेंगे तो आपको नुकसान हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ त्या दोघी… – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर ☆

श्री प्रदीप केळुस्कर

?जीवनरंग ?

☆ त्या दोघी… – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर

जीवांरंग

         त्या दोघी… भाग २  लेखक – प्रदिप केळूसकर  –

( मागील भागात आपण पाहिले – – ‘‘पण मी कोल्हापूरातली नाही ना? मी मुंबईतल्या अभय कानविंदेंची मुलगी आहे. माझा बाबा बघा कसा फॉरवर्ड विचाराचा आहे. नाहीतर तुम्ही ….’’ असं म्हणून तेजश्रीने फोन ठेवला. सुलभाने तेजश्रीला पुन्हा फोन लावायचा प्रयत्न केला पण तिने फोन उचललाच नाही. आता इथून पुढे )

आज काही काम नव्हतं म्हणून सुलभा घरातच थांबली. तिने चादरी, बेडशीटस् धुवायला काढल्या. दहा वाजायला आले. दारावरची बेल वाजली म्हणून दार उघडलं तर बाहेर स्मिता.

‘‘अगं स्मितू ! फोन न करता आलीस ? नशिब मी आज घरी होते. ये आत.’’

‘‘होय  फोन करायचं पण विसरले. हल्ली विसरायला होतं गं. वय झालं का आपलं?’’

‘अगं वय कसलं, अजून पन्नाशी नाही आली.’’

‘‘मग अस का होत? काल भाजी घ्यायला विसरले, अभयचे कपडे इस्त्रीला द्यायचे विसरले. त्यावरुन सकाळी सकाळी अभय चिडला. घरची कामे जमत नसतील तर नोकरी सोड म्हणाला.’

‘‘आणि काय करु म्हणाव? टाळ घेऊन भजन करावं का ? स्मितू तू फार साधी मुलगी गं. त्याचा फायदा घेतो हा अभय आणि त्याचे पाहून तेजू. जगात एवढं साध राहून चालत नाही बाई. माती मऊ दिसली की जो तो खणू पाहतो. आता तुझा अभय . नोकरी सोडून दे म्हणाला, आपण नोकरी आधीच सोडली. मग घर खर्च कसा करणार ? मोठा सावकार लागून गेला तो. बेफिकीर माणूस. स्मितू तुला वाईट वाटेल म्हणून जास्त बोलत नाही, नाहीतर….’’

‘‘बोलून काही उपयोग आहे का सुलु? ’’

‘‘आज बँकेत नाही गेलीस’ ?’’

माझं कशात लक्ष लागत नाही गं…तेजूशी बोललीस काय ?’’

‘‘बोलले बाई, ती मला काय सरळ उत्तर देते? त्याच्याशी रिलेशन मध्ये राहणार म्हणे. मग वाटलं तर लग्न करीन म्हणते. मी तुमच्यासारखी मुळमुळीत नाही म्हणाली. अभय कानविंदेसारख्या स्मार्ट बापाची मुलगी आहे म्हणे.’

हे असं रिलेशन वगैरे आपण याचा विचार तरी केलेला का गं सुलु ?’’

‘‘आपण जुन्या संस्कारातल्या मुली गं…. आपले नवरे राम आणि आम्ही सिता. पण आपणच सितेची भूमिका निभावतो म्हणून अभय सारख्यांच फावतं.

‘जाऊ दे सुलु ! मला कंटाळा आला आहे तोच तोच विषय बोलून. मी आज मुद्दाम आले होते. माझ्या इन्शुरन्स पॉलिसीज किती रकमेच्या आहेत ते पहायला.

आज काय अचानक ? तरी पण तू म्हणते आहेस तर पाहू. सुलभाने कॉम्प्युटर उघडला आणि स्मिताच्या सर्व पॉलिसीज, हप्ते चेक केले.

‘‘एकंदर एक कोटी पंचेचाळीस लाखाच्या पॉलिसीज आहेत ग स्मितू.’’

‘‘आणि नॉमिनीज वगैरे, केवायसी ?’’

‘‘नॉमिनीज बहुतेक अभय कानविंदे, काहीवर तेजश्री कानविंदे. केवायसी अपटूडेट केलेल्या आहेत.’’

‘आणि मॅच्युअल फंड?’ 

‘‘तीन फंड हाऊस मध्ये तुझी एसआयपी सुरु आहे. त्याची आजची किंमत अंदाजे सोळा लाख आहे.’’

‘आणि शेअर्स ?’

‘‘तुझ्या शेअर्सची आजची किंमत सहा लाख पन्नास हजार आहे. पण हे सर्व आजच का पाहते आहेस तू स्मितू ?’’

‘‘तसं नाही गं. नवरा म्हणतो ना नोकरी सोड म्हणून समजा नोकरी सोडली तर किती रक्कम मिळेल याचा अंदाज घेत होते.’’

पण तुझ्या या इन्शुरन्स पॉलिसीज चालू आहेत बरं का ? एवढ्यात त्याचे पैसे मिळणार नाहीत किंवा एकदम कमी मिळतील. हा तुझ्या पश्चात वारसांना आत्तासुधा मिळतील.’’

‘‘झालं तुझे इन्शुरन्स फंड वगैरे? किती दिवसात तुझ्या केसांना तेल घातलं नाही. सुलभाने स्मिताला पुढे बसवलं आणि ती तिच्या केसांना मालीश करु लागली.’’

‘‘सुलू केव्हा केव्हा मला वाटतं आपण लग्न केलेल्या मुली फक्त आपला नवरा, मुलं यांचीच काळजी घेतो. पण आपली माहेरची माणसं आई, बाबा, भाऊ, वहिनी, भाचरं यांचा पण विचार करायला हवां. आपली आई नऊ महिने पोटात वाढविते. आई-बाबा किती प्रेमाने संगोपन करतात. भाऊ प्रेम देतो, संरक्षण देतो, पण आपण जेव्हा अर्थार्जन करतो तेव्हा आपला संसार पाहतो. माहेरच्या मंडळींना गरज असेल तर आपण त्यांना मदत करायला नको ?’

‘‘करायला हवीच बाई ! तू आता ही नोकरी करतेस, तू पण तुझ्या भावाचा श्यामूचा काहीतरी विचार कर. ’’

तेल घालून केस विंचरल्यावर सुलभाने गरम पाणी काढले आणि स्मिताला आंघोळ करायला सांगितली. आंघोळ झाल्यावर दोघी जेवायला बसल्या. सुलभाने तिच्याशी कोल्हापूरातील मैत्रिणींच्या आठवणी जागवल्या. दामले सरांची नक्कल केली. पाटील बाईंचे विनोद सांगितले. स्मिता पण हसली. दोघींनीही झटपट ओटा, भांडी आवरली आणि बेडरुममध्ये आल्या. सुलभा म्हणाली, स्मितू थोडी झोप आता. पूर्वी कोल्हापूरात असताना मी तुला थोपटायचे ना ? तशी आज थोपटते आणि सुलभा हळू आवाजात गाणं म्हणू लागली आणि स्मिताला झोप लागली. सुलभा पण झोपली. तासा दिडतासाने स्मिताला जाग आली.

‘‘सुले किती दिवसात अशी गाढ झोपले नव्हते गं !’’

‘‘मी थोपटलं ना स्मितू राणीला म्हणून गाढ झोप बरं का ’’

‘‘होय बाई सुले, तू म्हणजे माझी आईच आहेस. चल निघते आता.’’

‘‘जा ग सावकाशीनं दुपारची वालाची उसळ आहे ती देऊ का डब्यातून ?’’

‘‘दे, तेजुला फार आवडते वालाची उसळ.’’ सुलभा स्वयंपाक घरात डबा भरायला गेली तो पर्यंत स्मिताने फोनवर कुणाचे फोन, मेसेज आलेत का हे पाहू लागली. फोनवरचे मेसेज वाचता वाचता एकदम रडू लागली.

‘‘काय हे ? आता काय करायचं मी ?’’

सुलभा बाहेर आली तर स्मिता रडते आहे.

‘‘अग काय झालं?’’

‘‘वाच हा तेजूचा मेसेज’’ स्मिताने रडत रडत मोबाईल सुलभाला दाखवला. सुलभाने मेसेज वाचला, तेजश्रीने लिहिलं होतं –

‘‘मी आज रात्री घरी येत नाही, जहाँगिर बरोबर बाहेर जात आहे. ’’

‘‘आता काय करायचं गं सुले? हे आपले संस्कार का ? मला नाही सहन होत आता.’’

‘‘आता काय करणार बाई, मनाची तयारी करायला हवी. काळच तसा आलाय.’

सिनेमातल्या आणि मालिकेतल्या नट्या काय काय करतात ते या मुली पाहतात. ते आदर्श त्यांचे. तू शांत हो पाहू.’

कितीतरी वेळ स्मिता रडत राहिली आणि सुलभा तिला थोपटत राहिली. संध्याकाळ होत आली तशी स्मिता उठली, तिनं तोंड धुतलं आणि ‘‘येते गं सुले’’ असं म्हणत तिने पायात चप्पल घातले.’’ सांभाळून गं स्मिते, मी येऊ का घरापर्यंत?’’

‘‘नको बाई, किती दिवस माझ्यासाठी रडणार तू. शेवटी मलाच तोंड द्यायला हवे. येते. अस म्हणत स्मिता बाहेर पडली . सुलभा गॅलरीत उभी राहिली. लांब पर्यंत चालणारी स्मिता तिला दिसत राहिली. मग हळू हळू गर्दीत गडप झाली.

विषण्ण मनाने सुलभा घरात आली. तिचे मन काळजीने आणि दुखःने भरुन गेले होते. तिला स्मितूची काळजी वाटत होती. आपल्या एकुलत्या एक मुलीने आपल्या पेक्षा दहा वर्षांनी मोठ्या पुरुषाबरोबर रात्रौ बाहेर जाणे आणि तसा मेसेज आईला करणे ह किती दुखःचे आणि त्रासाचे. सुलभाच्या मनात आलं. काळ किती बदललाय कोल्हापूरला असताना आम्ही वर्गातल्या मुली, शेजारच्या मुलांबरोबर बोलायचोसुद्धा नाही. आता गळ्यात गळे घालून सगळीकडे मुल-मुली फिरतात. काळ बदललाय.

तिने कन्येला विनयाला फोन केला. तिला आत्ता स्मितू मावशी येऊन गेल्याचे सांगितले. हॉलमध्ये येऊन तिने टिव्ही लावला आणि कार्यक्रम पाहत राहीली. टिव्ही पाहता पाहता तिचे डोळे मिटू लागले. हॉलमध्ये कोचवर कधी ती झोपली हे तिलाच कळले नाही. दरवाजाच्या बेल वाजत राहिली त्याने तिला जाग आली. तिने घड्यात पाहिले साडेसात वाजत होते. यावेळेस कोण आले ? असे पुटपुटत तिने टिव्ही बंद केला आणि दरवाजा उघडला. बाहेर राजन होता.

‘‘अरे, आज एवढ्या लवकर ? मेनन सध्या तुमच्यावर खूष दिसतो.’’ ती हसत हसत म्हणाली.     ‘‘नाही, नाही मी मुद्दाम आलो. स्मिताचा अ‍ॅक्सिडेंट झालाय गोरेगांवला, एसव्ही रोडवर. ’’

‘‘काय !’’ सुलभा किंचाळली.

‘‘आत्ता ती पाच वाजता येथून घरी गेली.’’

‘‘इथे आली होती काय ? तिच्या भावाचा कोल्हापूरहून मला फोन आला. रस्ता क्रास करताना, म्हणजे हिचीच चूक सिग्नल नसताना ही क्रॉस करत होती म्हणे, टॅक्सीने उडवले’’

‘‘पण आता कसं आहे ?’’ सुलभा किंचाळत बोलली.

राजन चाचरत चाचरत तिची नजर चुकवत म्हणाला,

‘‘श्यामू म्हणाला बरं आहे म्हणून, पण डोक्याला मार लागलाय. अ‍ॅडमिट केलंय, आपण निघायला हवं.’’ सुलभा रडायलाच लागली. राजनने तिचा ड्रेस आणून दिला.

‘‘चल चल घाल हा ड्रेस, मी उबर मागवतो.’’

सुलभाने रडत रडत ड्रेस बदलला आणि खाली उभ्या असलेल्या उबर मध्ये दोघे बसले. संध्याकाळच्या सुमारास मुंबईतील रस्त्यावर गर्दी त्यामुळे उबर हळूहळू चालत होती. शेवटी रात्रौ नऊ वाजण्याच्या सुमारास उबर भगवती हॉस्पिटलमध्ये पोहोचली. नेहमीप्रमाणे हॉस्पिटलमध्ये गर्दी. राजनने सुलभाच्या हाताला धरुन तिला अ‍ॅक्सिडेंट विभागाकडे नेले. राजन व सुलभा आत जाताच त्याठिकाणी आधीपासून आलेली स्मिताची बँकेतील मंडळी तसेच बिल्डींगमधील मंडळी पुढे आली. स्मिताची बँकेतील जवळची मैत्रिण कल्पना रडत रडत पुढे आली. सुलभाच्या गळ्यात पडून – ‘‘गेली ग स्मिता आपली !’’ म्हणून आक्रोश करु लागली. तिच्या सोबतीच्या अनेक स्त्रियांनी पण हुंदके देत रडायला सुरुवात केली. राजनला स्मिताच्या निधनाची कल्पना होतीच तरी तो भांबावून गेला. आता स्मिताला कसे सांभाळावे याचा तो विचार करत होता पण सुलभा शांत होती. कदाचित ती बधीर झाली असावी. हा आक्रोश तिच्या मेंदूपर्यंत पोहोचत नव्हता. कुणीतरी स्मिताचा मृतदेह बाजूच्या पोलीसांच्या खोलीत असल्याचे राजनला सांगितले. राजन सुलभाच्या हाताला धरून त्या खोलीत गेला. संपूर्ण झाकलेला तो देह आणि बाजूला बसलेले अभय, तेजश्रीला पाहून सुलभा ‘‘स्मिते’’ म्हणून जोरात किंचाळली आणि बेशुध्द झाली.

क्रमश: – २

© श्री प्रदीप केळुसकर

मोबा. ९४२२३८१२९९ / ९३०७५२११५२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #208 – 94 – “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…”)

? ग़ज़ल # 94 – “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,

हमने कहा जनाब इंसानी क़ुदरत होती है।

आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,

हसीन अन्दाज़ उनकी ज़रूरत होती है।

राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,

बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है। 

जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,

अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।

मुहब्बतज़दा दिलों में झाँकता है ‘आतिश’

आशिक़ी फ़रमाना सबकी क़ुदरत होती है।

दिलों में मुहब्बत का खेल शुरू होता है,

ज़हन में ग़ुलाम परस्त हसरत होती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 163 ⇒ दम मारो दम… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दम मारो दम”।)

?अभी अभी # 163 ⇒ दम मारो दम? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सन् १९७१ में सदाबहार अभिनेता देवानंद ने एक फिल्म बनाई थी, हरे रामा हरे कृष्णा, जो युवा पीढ़ी में व्याप्त नशे की बुरी लत पर आधारित थी। पश्चिम के अंधानुकरण को लेकर उधर भारत कुमार मनोज कुमार भी उपकार फिल्म की सफलता के बाद पूरब और पश्चिम जैसी देशभक्ति से युक्त फिल्म लेकर पहले ही बाजार में उतर चुके थे।

धर्म तो अपने आप में नशा है ही, लेकिन जब धर्म और नशा दोनों साथ साथ हों, तो यह गजब की कॉकटेल साबित होती है। अपनी खोई हुई बहन को ढूंढते ढूंढते नायक देवानंद काठमांडू पहुंच जाता है, जहां एक हिप्पियों के झुंड में उसे अपनी बहन, नशे की हालत में, दम मारो दम, गाती हुई मिल जाती है। कितना लोकप्रिय गीत था यह उषा उथप और आशा भोंसले की आवाज में ;

दम मारो दम

मिट जाए गम।

बोलो सुबहो शाम

हरे कृष्ण हरे राम।।

तब हमारे भी वे कॉलेज के ही दिन थे। सिगरेट, शराब, तो खैर आम थी, लेकिन गांजा, चरस, एलएसडी और मेंड्रेक्स की आदत भी युवा पीढ़ी में लग चुकी थी। उधर आचार्य रजनीश भगवान बनकर युवा पीढ़ी को पुणे में बैठकर समाधि लगवा रहे थे और इधर हमारे हीरो देवानंद अपनी फिल्म के माध्यम से युवा पीढ़ी से अपील कर रहे थे ;

देखो दीवानों, तुम ये काम ना करो

राम का नाम बदनाम ना करो।

आज अगर देवानंद होते तो राम भक्त उनसे जरूर पूछते, भैया, क्या राम का नाम भी कभी बदनाम हुआ है। क्या आपने सुना नहीं ;

सबसे निराली महिमा है भाई,

दो अक्षर के नाम की,

जय बोलो सियावर राम की। जय श्रीराम !

लेकिन फिल्म, फिल्म होती है, और दर्शक दर्शक ! यहां क्या कब बिक जाए, और कब किसका दीवाला निकल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। आज इन फिल्मों को बने आधी सदी गुजर गई, धर्म कितना फल फूल गया, हर तरफ आज राम का ही नाम है, अयोध्या में भी भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य चल ही रहा है, लेकिन क्या वाकई आज हमारा नशा हिरन हो गया है।

और भी नशे हैं गालिब, शराब के अलावा !

राम नाम और देशभक्ति का नशा तो कतई बुरा नहीं, लेकिन बाकी नशों की फेहरिस्त भी कम नहीं।

सरकार नशाबंदी कर सकती है, नशामुक्ति केंद्र स्थापित कर सकती है, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान और मद्यपान प्रतिबंधित तो है ही। लेकिन शासकीय शराब की दुकानें तो अलग ही कहानी कहती नजर आती है। ऐसे में जन जागरण भी क्या कर लेगा।।

आज देश में इतनी समस्याएं हैं, इतनी चुनौतियां हैं, इस बीच यह नशे की समस्या इतनी बड़ी भी नहीं कि इसके लिए कोई आंदोलन खड़ा कर दिया जाए, खासकर उस परिस्थिति में जहां सबसे बड़ा नशा, सियासत का नशा ही सबसे बड़ी समस्या हो।

समस्या, समस्या होती है, और उसका हल, समय और परिस्थिति के अनुसार ही संभव होता है। आज सियासत का नशा देवासुर संग्राम का रूप ले चुका है, जो लोकतंत्र के लिए बहुत घातक है। नशे में चूर इस संग्राम में दुर्भाग्य से, हम आप भी शामिल हैं।।

नशे के बारे में जितना अच्छा नशे में बोला जाता है, उतना होश में नहीं। याद कीजिए १९६४ की फिल्म लीडर का यह यादगार गीत;

मुझे दुनिया वालों

शराबी ना समझो

मैं पीता नहीं हूं

पिलाई गई है।

नशे में हूं लेकिन

मुझे ये खबर है

कि इस जिंदगी में

सभी पी रहे हैं।।

आप पीयें ना पीयें

बोलें सुबहो शाम

हरे कृष्ण हरे राम ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य #191 ☆ आली गौराई माहेरी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 189 – विजय साहित्य ?

☆ आली गौराई माहेरी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

आली गौराई माहेरी

सोनियाच्या पावलाने

तिला पाहून पळाले

दुःख मागल्या दाराने. . . . !

 

परंपरा पुजणारा

सण गोराईचा मोठा

तिची लागता चाहूल

नाही आनंदाला तोटा. . . !

 

ज्येष्ठा कनिष्ठा बहिणी

आदिशक्ती, आदिमाया

मन जाहले अंगण

त्यात सौभाग्याची छाया . . . . !

 

जाई, जुई, मोगर्‍याचा

तिच्या मखरात साज

फराळाच्या पदार्थाने

केली दिवाळी मी आज .. . !

 

खीर,पुरी, कानवले

पंच पक्वान्नाचा थाट

यश, किर्ती, समाधान

बघतात तिची वाट.. . !

 

तिचे सासर सौख्याचे

आणि माहेर मायेचे

अनुराधा, ज्येष्ठा, मूळ

चार दिन नक्षत्रांचे. .. !

 

फुला फळांची आरास

सजविले सालंकृत . आ

अंतराने अंतराला

जणू केले आलंकृत

अशी गौराई साजणी

जणू लक्ष्मीचे रूप

तिचे गुण वर्णिताना

व्हावा अक्षरांचा धूप .. . !

 

देव गणराया सवे

राही माहेरी गौराई

देई दान सौभाग्याचे

तिची लाभू दे पुण्याई. . . . !

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ बाज… ☆ सुश्री स्वप्ना मुळे (मायी) ☆

सुश्री स्वप्ना मुळे (मायी)

? जीवनरंग ?

☆ बाज… ☆ सुश्री स्वप्ना मुळे (मायी)

“अरे,सायकलवर कशी जमेल ही बाज न्यायला..? तुला लोडिंग रिक्षा करून न्यावी लागेल. माझ्या ओळखीचा आहे एकजण, विचारतो त्याला..” एवढं बोलत समोरच्या माणसाने फोन लावला आणि श्यामने खिशातले पैसे काढून मोजायला सुरुवात केली. कळकट, गुंडाळलेल्या दहाच्या, पन्नासच्या नोटा.. फार नसतील पण रिक्षा ठरली तर पुरतील का? ह्या विचारात त्याने पटापट सरळ करून त्या एकात एक घातल्या आणि परत खिशात ठेवल्या. मनात हिशोबाचे खेळ सुरूच होते. ह्यांना आपण महिनाभर बाज मागणार, त्याचेच पैसे किती घेतील माहीत नाही. त्यात ती नेण्याची गाडी नाहीच परवडणार…

… समोरचा माणूस फोनवर बोलून श्यामकडे आला आणि म्हणाला, ” गाडीवाला पाचशे रुपये म्हणतोय.. बघा जमतंय का? “

श्यामने कपाळावर आलेला घाम पुसला.. ” नको, राहू द्या. मी बघतो कशी न्यायची ते ” म्हणत आपल्या सायकलला न्याहाळले… तिच्यावर हात फिरवला आणि तिच्याजवळ वाकून म्हणाला, ” तुला मदत करावीच लागेल गं…” 

शेजारच्या किराणा दुकानातून त्याने सुतळी विकत घेतली आणि बाज उचलली. त्याक्षणी जाणवलं, बाज जड होती, त्यामुळे पण तिला घरी नेण्याचा प्रश्न उभा राहणार होताच.. हे अगदी आपल्या घरापासून  दूर असलेलं घर. पण इतर ठिकाणी बाज खूप महाग, आपल्याला परवडणार नाही अशीच…. आणि बायकोची तर मागणी होती, ” लेकीला बाळांतपणाला बाज आणा.. माझ्या बाळांतपणाला मी सहन केलं… खाली पोतड्यावर झोपले. पण कोवळ्या अंगात सर्दी अशी भिनली की आयुष्यभर दुखणे सहन करून जगणं सुरू आहे. आता माझ्या लेकीचे नातवंडाचे हाल नको..”  तिच्या ह्या वाक्यावर त्याक्षणी आपल्याला आठवलं… आयुष्यात कुठलेही अट्टहास नव्हते हिचे.. कोवळ्या वयात हिने आपला संसार सुरू केला.. पण गरोदरपणातही ओठ घट्ट मिटून सगळं काही सोसलं ते आयुष्यभर. पण आता नातवंड आणि लेक, तिला त्यांच्याबाबतीत हेळसांड नकोय …. स्वतः घरचं सगळं करून चार घरचे भांडे घासते.. थोडं थोडं तूप, बदाम, मनुके, सगळं लाडूचं सामान.. घरातला कोपरा स्वच्छ करून ठेवलाय बाळंतिणीची बाज टाकायला…

स्वतःच आयुष्य कसंही गेलं तरी येणाऱ्या जीवासाठी तिची ही तगमग खरंच आपल्यालाही सकारात्मक करून गेली.. आपणही मग चार खेपा धान्याच्या गोण्या दुकानातून गिऱ्हाईकाच्या घरी नेहमीपेक्षा जास्त केल्या…. त्यादिवशी ह्या कोपऱ्यातल्या घरात पोते टाकले आणि निघताना त्या माहेरवाशीण लेकीची तगमग बघितली.. तिच्या घरातले सगळे नेमके शेजाऱ्याच्या लग्नाला गेले होते आणि घरातला नोकर माणूस तिच्या आक्रोशाने गडबडला, आपल्याला म्हणाला.. ” कसंही कर आणि रिक्षापर्यंत हिला नेऊ लाग..”

सगळे पोते काढलेल्या हातगाडीवर ती बिचारी कशीबशी बसली.. दाराशी कार उभी असून तिच्यावर ही वेळ आली.. कोपऱ्यावर मिळालेली रिक्षा आणि मग सगळी धावपळ.. त्यादिवशीची कमाई तिच्या चहापाण्यात गेली होती.. पण आपल्या लेकीसारखीच होती ती.. त्यांनतर आलेले तिचे घरचे लोक.. आपले आभार मानत होते.. त्यांनी आपल्याला दिलेलं बक्षीस आपण नाकारलं होतं.. तेव्हा तो माणूस म्हणाला होता.. ” काही मदत लागली तर नक्की सांग., आम्ही कायम तुझ्या ऋणात राहू,..”

आज ह्या घटनेला सहा महिने झाले. म्हणजे त्यांच्या घरात जी बाई बाळंत झाली ती आता त्या बाजेवर झोपत नसेल.. बघू तर विचारून… म्हणून आपण शब्द टाकला….  ” तुमच्या ताईची बाळंतिणीची बाज मिळल का..? नाही, फक्त एखादा महिना.. लेक बाळांतपणाला आली आहे माझी..? “

आपलं बोलणं ऐकून खुर्चीत बसलेल्या आजी म्हणाल्या होत्या, ” बाज अगदी जन्मापासून आपल्याशी जोडलेली असते.. खरंतर बाज हा शब्द माणसाच्या बाण्याशी निगडित आहे.. ‘ काय बाज आहे त्यांचा ‘ असं आपण म्हणतो.. पण तुम्ही ओळख नसताना, परिस्थिती नसताना.. हिम्मत दाखवून आमच्या नातीसाठी जे केलं.. तो माणुसकीचा बाज आज क्वचितच सगळ्यांमध्ये दिसतो.. तुमच्यासारख्या माणसाला ही बाज देण्यात आनंदच आहे.. आणि हो, बाज आणण्याची गडबड नको.. ठेवा आठवण म्हणून, माणुसकीची बाज अशीच ठेवा. त्यावर सुखाची झोप नक्की घ्या..”

आजीचं वाक्य मनाला भिडलं आपल्या.. आपली आई नेहमी म्हणायची, ” माणुसकीची बाज विणत राहा.. वेळेकाळेला एकमेकांना मदत करून ही बाज विणली की ह्या बाजेवर येणारी झोप आनंदाचीच…”

मनात आलेल्या ह्या विचारांनी आणि लेकीसाठी मिळालेल्या बाजेने त्यालाच खूप आनंद झाला. फक्त हिला नेणं मात्र सर्कस आहे. पण जमवावं तर लागेल, म्हणत तिला सायकलला घट्ट बांधून तो निघाला होता…  आवश्यक त्या परिस्थितीत आपल्या प्रामाणिकपणामुळे मिळालेलं ते बक्षीस घेऊन जातांना त्याला दिसत होती त्याची पोटुशी लेक आणि हसरी बायको … त्या बाजेवर समाधानाचं आयुष्य विणणारी…

© सुश्री स्वप्ना मुळे (मायी)

मो +91 93252 63233

औरंगाबाद

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ गौरीमाय… ☆ सुश्री नीता कुलकर्णी ☆

सुश्री नीता कुलकर्णी

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☆ गौरीमाय… ☆ सुश्री नीता कुलकर्णी

“ अगं आई तू…..”

“ लेकरा माझ्या आगमनाची तयारी सुरू केलीस म्हणून आधीच तुला भेटायला आले ..मी येणार म्हणून  तुला काय करू काय नाही असं होतं… त्याचं मला समाधान वाटतं… पण खूप काम करून दमून नको जाऊस.. सण साजरा करताना त्यातला आनंद घ्यायला शिक.

आता लेकी बाळी नोकरी करणाऱ्या दिवसभर काम करणाऱ्या असतात. त्याच घराची खरी लक्ष्मी आहेत हे विसरू नकोस… त्या आनंदात असतील तर घर सुखात असतं…

उगीच स्वतःचा मोठेपणा दाखवायला जाऊ नकोस. हे केलंच पाहिजे ते केलंच पाहिजे असं म्हणत बसू नकोस. त्यांनी काही बदल सुचवला तर बदल कर .. आणि बदल करताना मनात भीती नको ग  ठेवूस… माझ्यावर प्रेम करतेस ना मग मला भ्यायचं कशाला   ……आपल्या घराण्यात अशीच परंपरा आहे ….हे पालुपद  तर अजिबात लावू नकोस….पूर्वी एकत्र कुटुंब पद्धती होती. घरात खाणारी माणसं होती.  आता तसे नाहीये हे लक्षात घे.

माझ्यासाठी हे करतेस ना…. मनातल एक  खरं सांगू …

… मला हे काही नको असतं ग…

आल्या दिवशी तू केलेल्या भाजी भाकरीवर मी तृप्त असते…

घरोघरी जाऊन तुम्ही सर्वजण सुखात आहात… हे मला बघायचं असतं…. तुमच्याशी  बोलायचं असतं..

मायेनी प्रेमानी त्या ओढीनी मी येते ग….घडीभर माझ्याजवळ नुसती बसत जा …मला बरं वाटेल बघ..

डेकोरेशनच्या गडबडीत पहिला दिवस जातो.  दुसऱ्या दिवशी जेवणाची गडबड..

हो आणि अजून एक सांगायचे आहे … करायलाच हव्यात म्हणून भाज्या कोशिंबिरी भजी वडे सगळं करतेस..  संपत नाही ग सगळं… मग राहिलेल्या अन्नाचं काय करतेस ते आठव बरं….

हे योग्य आहे का ?

शेतकरी बिचारा राब राब राबतो त्या अन्नाचा आदर कर… आणि संपेल इतकंच कर..

चार पदार्थ कमी केले म्हणून बाळा मी तुझ्यावर रागवेन का ग कधी ….

मला ओळखतेस ना तू …मग आता शहाणी हो …

खेड्यात  काहीजण राहिलेलं अन्न गाईला घालतात … पण गायी त्या  शिळ्या अन्नाला तोंड लावत नाहीत…

फार नासाडी होते ग अन्नाची …बघवत नाही म्हणून आधीच तुला समजावून सांगायला आले आहे

सणाची मजा घे…

हसत आनंदात सण साजरा कर…

यावेळेस फार छान साडी  घेतली आहेस  माझ्यासाठी…  आवडली बरं का…

आणि सुनबाईनी घेतलेलं नव्या पद्धतीचं गळ्यातलं झकासच…

.. ..  आता सजून घ्यायला आणि तुम्हा सगळ्यांना भेटायला येते की….

आणि हे बघ आईच ऐकायचं…. आईचा लेकीला सांगायचा हक्कच असतो ना… म्हणून बाळा प्रेमानी सांगतीये ……  तशी तू समजूतदार शहाणी आहेसच

…  आता भेटू आपण  लवकरच …

© सुश्री नीता कुलकर्णी

मो 9763631255

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈