हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आशा ? ?

फुटपाथ पर डेरा लगाए

वह बुज़ुर्ग भिखारी,

अनामिका में पहनी

भाग्य पलटाने की

उस चमकती

नकली अँगूठी को

रात के इस प्रहर में भी

हसरत से निहारता है,

ये मरी आशा

आदमी को

किन-किन

हालातों में

ज़िंदा बनाये रखती है!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 168 – गीत –क्यों कर पालिश करती हो ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – क्यों कर पालिश करती हो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 168 – गीत – क्यों कर पालिश करती हो…  ✍

सुन्दर सुन्दर नाखूनों पर

क्यों कर पालिश करती हो।

रूपभार से झुकी देह पर

भार भला क्यों धरती हो।

 

साज बाज की उसे जरूरत

जिसके पास कमी होती

वो क्यों पत्थर करे इकट्ठे

जिसके पास रखा मोती

अनबींधे मोती सा यौवन, पास रखे क्यों डरती हो

 

साधारण शृंगार तुम्हारा

सच, विशेष सा लगता है।

चन्द्रानन को देख देखकर

मन में ज्वार उमगता है.

औ हँसे चंदनिया, कैसे धीरज धरती हो

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 167 – “अपने में हो मस्त गा रहा…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  अपने में हो मस्त गा रहा...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 167 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “अपने में हो मस्त गा रहा...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

नीचे को, छज्जे से कोई

झाँका करता है ।

मेरे प्रतिमानों को अक्सर

आँका करता है ॥

 

उधर जहाँ पत्तों के

मनहर झूमर हैं लटके ।

जिनसे छनकर धूप

चकत्ते दिखते हैं हटके ।

 

उन्हें धरा के आँचल पर

चुपचाप हवाओं से ।

लहरा कर दिन के गौरव

में टाँका करता है ।

 

मधुछन्दा दोपहर दिखा

कर  बुन्दे कानों के

काजल लगी आँख में

भरकर, बिम्ब मकानों के

 

ज्योंकि बजाज बैठ गद्दी पर

दिन भर की विक्री

का आदर करता ,जैसे वह

माँ का करता  है

 

साथ खडा है पेड़ मगन

जैसे कि चरवाहा

अपने में हो मस्त गा रहा

मीठा मनचाहा

 

और पोटली में लाये

उस चना चबैने को

पूरा तन्मय होकर के

ज्यों फाँका करता है

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूची ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सूची ? ?

तय थे कुछ नाम

जो मेरी अर्थी को

कंधा देते,

कुछ मेरे समकालीन

कुछ अग्रज भी हैं

इस सूची में

बशर्ते

वे मुझसे पहले न जाएँ,

पर मित्र!

आज मैंने

वंचित

या यूँ समझो

मुक्त कर दिया तुम्हें

उस अधिकार से;

इसलिए नहीं कि

मैं तुम्हारे बाद भी रहूँ,

इसलिए कि तुमने

हड़बड़ी कर दी

और

जीते-जी

मेरे या शायद हमारे

विश्वास को

अर्थी पर लिटाने का

प्रयास कर,

छोटी सूची

और छोटी कर दी!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 9:11 बजे, दि 21 जनवरी 2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 217 ☆ कविता – “वोट के खातिर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक मनोरंजक लघुकथा – “वोट के खातिर)

☆ कविता – “वोट के खातिर☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

‘अलाव’ के सामने 

जाति और धर्म पर 

खूब बहस चल रही है।

 

कुत्ता सुन रहा है 

और रो भी रहा है

आग धुआं फेक रही है।

 

जो फूंक मारकर

आग को हवा दे रहे हैं

उनके मन में काई जमी है।

 

जो बैठे हैं राख पर

घर-बार फूंक कर

उनको चिंता ही नहीं है।

 

सूखे पत्तों की तरह 

क्यों बिखर गए हम

वोट लेने की उनको पड़ी है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – अटल जन्म दिवस विशेष – अटल बिहारी जी के दोहे – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – अटल बिहारी जी के दोहे  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

अटल दिव्यता के धनी, किया दिलों पर राज।

सदियों तक होगा हमें, महारत्न पर नाज।।

विनय भाव गहना रहा, प्रतिभा का संसार।

भारत मां के आंगना, फैलाया उजियार।।

राजनीति के दिव्यजन, देशभक्ति-आयाम।

दमका लेकर दिव्यता, अटल बिहारी नाम।।

कवि बनकर साहित्य की, रक्खी हरदम लाज।

कविता के सुर-ताल थे, वाणी के अधिराज।।

संसद के बेटे खरे, गरिमा के उत्कर्ष।

युग को वे देते रहे, अंतिम क्षण तक हर्ष।।

संघर्षी जीवन रहा, थे गुदड़ी के लाल।

अटल बिहारी सूर्य-से, काटा तम का जाल।।

महा राष्ट्रनायक बने, शासन के सिरमौर।

राष्ट्र-प्रगति के केंद्र बन, दिया शांति को ठौर।।

अटल बिहारी के लिए, है सबको सम्मान।

उनके तो गुण गा रहा, देखो सकल जहान।।

हिंदी के सम्मान का, नारा किया बुलंद।

राष्ट्र संघ तक थी पहुंच, हुए पड़ोसी मंद।।

जन्मदिन पर है नमन, बोलें सब जयकार।

अटल नाम नित ही अटल, जो मां का श्रंगार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 159 ☆ # झुर्रियां # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# झुर्रियां#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 159 ☆

☆ # झुर्रियां #

वक्त की रफ्तार को रोककर

अनुत्तरित प्रश्नों को झोंक कर

उम्र का एहसास दिलाती है

झुर्रियां

आंखों के आसपास

हाथों पर साथ-साथ

सुराहीदार गर्दन पर

उभर आती है

झुर्रियां

जीने के ढंग का

तजुर्बे के रंग का

उम्र भर के जंग का

आभास दिलाती है

झुर्रियां

चेहरे की चमक के

नयनों की दमक के

काया की गमक के

कई अनकहे राज़

छुपाती है

झुर्रियां

माथे की लकीर का

कहने को अधीर का

दिखने को फ़कीर का

गूढ़ रहस्य

कह जाती है

झुर्रियां

बागों में तरुणाई

लेती मादक अंगड़ाई

बहती मदमस्त पुरवाई

देखकर

अपने बीते दिनों को याद कर

मुस्कुराती है

झुर्रियां

जीवन एक खेला है

सांसों का मेला है

यादों का रेला है

हौले हौले समझातीं है

झुर्रियां

अपनी सल्तनत है

अपनी अमानत है

अपनी विरासत है

ज़माने से जातें जातें

यह सिद्ध कर जाती है

झुर्रियां   /

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 168 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 168 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 168) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 168 ?

☆☆☆☆☆

 ☆ Intriguing Messiah…

कैसे हमदर्द हो भला तुम,

किस तरह के मसीहा हो तुम…

दिलपे नश्तर भी लगते हो

तो मरहम के सुकून की तरह…!

 ☆  ☆

What type of solacer are you,

What kind of messiah are you…!

You pierce a lancet in the heart,

but like a soothing balm only…!!

 ☆  ☆  ☆  ☆  ☆

 ☆ False Pride… ☆

झूठी शान के परिंदे ही

ज्यादा फड़फड़ाते हैं,

बाज की उड़ान में कभी

आवाज़ नहीं होती है…!

 ☆  ☆

Only  the  birds  of  false

pride  flutter  more,

There’s never any sound

in  the  eagle’s  flight…

 ☆  ☆  ☆  ☆  ☆

 ☆ Spiritual Relationship… 

कुछ रिश्ते, तमाम रिश्तों से हसीं हुआ करते हैं

पर  उनके  नाम  नहीं  हुआ  करते…

वो  हर  रिश्तों  से  ज्यादा  खूबसूरत  होते  हैं

मगर सिर्फ रूह से ही महसूस किए जाते हैं…

 ☆  ☆

Some relations are better than any relations

But they may not  have any names…

They are more beautiful than any relations

But can only be felt through the soul..!

 ☆  ☆  ☆  ☆  ☆

Explosive Silence 

अगर लफ्जों में छुपा होता

है बेहिसाब असर…

तो  खामोशी में छुपा होता

है बेंतहा कहर…!

 ☆  ☆

If there is incalculable impact

hidden in th words…

Then the silence encompasses

an unparalleled devastation…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 167 ☆ सॉनेट – अनुशासन ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – सॉनेट – अनुशासन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 167 ☆

☆ सॉनेट – अनुशासन ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

बैर न ठानो अनुशासन से,

भीड़ समस्या पैदा करती,

नहीं नियम सिर-माथे धरती,

जो जी चाहे करती मन से।

माने नियम हमेशा सेना,

अनुशासित रह जीते हर रण,

नियम न तोड़े कर हितकर प्रण,

रहे उच्च सिर ऊँचा सीना।

वृत्ति सुशीला नियम न तोड़े,

जोश होश में रखे संतुलन,

जोशीलापन वहीं उचित है।

कठिन गणित विद्यार्थी छोड़े,

जो न करे हल अपना नियमन,

मिला वही उत्तीर्ण मुदित है।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२३.१२.२०२३

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #217 – 104 – “वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे …” ।)

? ग़ज़ल # 104 – “वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चाय पीने को  कलारी में  बुलाते हैं,

ये क्यों मेरी  जप्त को आजमाते हैं।

वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे मुझे,

राफ़्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं।

उनकी  कोशिश यह रही हमेशा ही,

वो खुदा के नाम पर झगड़ा कराते हैं।

बैर ज़िंदा रखते हैं नाम पर मज़हब के,

फ़ेसबुक पर दुश्मनी का मंत्र बताते हैं।

आतिश सभालो भभकती हो शमा जब भी,

आग भड़का  वो तुम्हारा   घर जलाते हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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