हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 173 – गीत – हे राम…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम वंदना – हे राम।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 173 – गीत  –  हे राम…  ✍

 राम राम  जय जय राम

राम राम  जय सीता राम

दशरथ नंदन

दनुज निकंदन

टेर लगाते चातक वंशी

लेकर तेरा नाम

हे राम । हे राम हे राम।

*

पंकज लोचन

हे दुख मोचन

रोम रोम में रचा हुआ है

एक तुम्हारा नाम।

हे राम । हे राम हे राम।

*

हे रघुनंदन

अलख निरंजन

तुम ही हो सुखधाम

हे राम हे राम

जय राम जय राम।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 171 – “सुरमई तम का कलश छलका है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  सुरमई तम का कलश छलका है...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 171 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सुरमई तम का कलश छलका है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

बैठी है झोंपड़ी में

फूस की ।

मूरत कोई जैसे

आबनूस की ।।

 

लगती है शहद में

नहाई सी ।

होंठों पर ठहरी

शहनाई सी ।

 

बेशक़ मीठी-मीठी

दिखती है ।

गोली जैसे लेमन-

चूस की ।।

 

सुरमई तम का कलश छलका है।

कुहरीला-रंग तनिक

हलका है ।

 

ब्याकुल ठिठुरती

अमावस को

रात विकट जैसे

हो पूस की ।।

 

काँपी पत्तों की

वंदनवारें ।

टिटहरियाँ मंत्रों

को उच्चारें ।

 

घोंसला बया का

था लटक रहा ।

फीकी कर रंगत

फानूस की।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-19-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ? ?

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का आप,

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन,

कविता से मिलन,

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

© संजय भारद्वाज 

(संध्या 7:15 बजे, दि. 30.5.2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(श्री राम लला की अयोध्या मे प्राण प्रतिष्ठा २२ जनवरी २०२४ पर)

सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं

उन्हें सब लोग प्यारे हैं ,अयोध्या गये बुलाये हैं।

उन्हें है चाह ममता ,न्याय, मन की समझदारी से

उन्हें सब लोग अपने है नहीं कोई पराये हैं।।

*

उन्हें कर्ततव्य अपना धर्म से भी अधिक प्यारा है

सदाचारी, निरभिमानी सदा उनका दुलारा है।

उन्हें भाता, जो जीता जिन्दगी, ईमानदारी से –

उन्हें श्री राम का मिलता सदा पावन सहारा है।

*

अलौकिक शक्ति हैं श्री राम  जो रिश्ता निभाते हैं

जहां दिखती जरूरत वहां पै काम आते हैं ।

सदा म‌र्यादाए रखते वे, जगत उनका पुजारी है-

इसी से राम राजा विश्व पुरुषोत्तम कहाते हैं।

*

भजो श्री राम, जय श्री राम, जय जय श्री राम जगत के राम जय श्री राम जय जय श्री राम

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #197 ☆ आ गए आ गए आज मेरे प्रभु… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रस्तुत है आ गए आ गए आज मेरे प्रभु…आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 198 ☆

☆ आ गए आ गए आज मेरे प्रभु… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

(22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर)

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

ए भक्तों जरा काम इतना करो

ए भक्तों जरा काम इतना करो

प्रभु राम की तुम आज पूजा करो

प्रभु राम की तुम आज पूजा करो

एक मंदिर बना ढल गया शाम -ए-गम

एक मंदिर बना ढल गया शाम -ए-गम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

देख नजारा बहुत लोग हैरान है

देख नजारा बहुत लोग हैरान है

सदियों से जिनमें बसी जान है

सदियों से जिनमें बसी जान है

ऐसे मौके जमाने में मिलते हैं कम

ऐसे मौके जमाने में मिलते हैं कम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

सदियों की तड़फ को करार आ गया

सदियों की तड़फ को करार आ गया

उनके दर्शन हुए,हमको प्यार आ गया

उनके दर्शन हुए,हमको प्यार आ गया

याद करता रहा,मैं उन्हे हर-कदम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

संतोष याद करता रहा हर कदम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “अवध में राम आए हैं…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ “अवध में राम आए हैं…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

मच रही धूम अभिनंदन की

कलियुग में राम आए हैं।

झूम रही धरा अयोध्या की

त्रेता युग राम आए हैं।

*

संग खुशियां समुंदर सी

शांति की लहरें लाए हैं

जन्मभूमि को गुलशन सी

राम महकाने आए हैं

भाग्य चमकाने आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

सनातन धर्म की आस्था

जग में जगाने आए हैं

हिंदुत्व और एकता का ये

दीप जलाने आए हैं

ये रौशन करने आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

कलियुग में राम आए हैं

*

यज्ञ, तप, जप, साधना कर

मानव धर्म साथ लाए हैं

अंधेरों का वक्ष चीर कर

ये सूरज साथ लाए हैं

अवध में राम आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

कलियुग के हनुमानों ने आज

ताकत दुनिया को दिखाई है

खत्म किया राम का बनवास

अवध में राम अगुवाई है

अब गूंज उठी शहनाई है

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

संत, महंत, बालक,नर नारी

मन है सबके खिले हुए

आर्यवर्त के मन आंगन में

रामराज्य हैं उदित हुए

खुशियों से मन मुदित हुए

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

भंवर में अटकी थी नैया

तारने राम आए हैं

बजाओ शंख मृदंग डमरू

विष्णु अवतार आए हैं

अवध में राम लला आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆ # ठंड और कोहरा # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ठंड और कोहरा #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆

☆ # ठंड और कोहरा #

यह घना कोहरा

हर तरफ छा गया है

सर्दियों का मौसम

आ गया है

गरम कपड़ों में

झिलमिलाते हैं लोग

सब को यह मौसम

भा गया है

 

महिलाएं डिजाइनदार

स्वेटर बुन रही हैं  

रंग बिरंगी, लेटेस्ट क्राफ्ट

चुन रही हैं

मन ही मन

उन्माद में डूबीं हुई

पति को रिझाने के

सपने बुन रही हैं

 

गार्डन में सुबह सुबह की

सैर में

कंपकंपाती ठंड से

बचने के फेर में

लुभावने रंगीन

स्वेटर, कोट, शाल, टोप

फिरते हैं  

थोड़ी थोड़ी देर मैं

 

ठंड और कोहरे का

सर्वत्र कहर है

बर्फीली हवाओं से

शीत लहर है

अलाव ताप रहे

सुबह से शाम तक

क्या गांव, क्या कस्बा

क्या शहर है ?

 

जीवन के बिसात पर भी

छाया कोहरा है

हर शख्स शतरंज का

एक मोहरा है

गरम शालों में

मुंह छुपाए हुए

कई शातिर हैं

जिनका चरित्र

दोहरा है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 172 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 172 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 172) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 172 ?

☆☆☆☆☆

Mystical Time… ☆

वक्त का क्या भरोसा, आज तुम्हारा     

तो  कल  हमारा  होगा…

ये  वक्त  है जनाब,  क्या  पता 

कि  कब  बदल  जाएगा…!

☆☆

Who could unravel the time, today it’s

yours but tomorrow it may be mine…

Time is too elusive Sire, who can ever

predict when will it change…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Visual Scripting… ☆ 

आँखों से भी लिखी जाती हैं

तमाम दिल की दास्तानें,

हर कहानी को कलम की

जरूरत नहीं हुआ करती…!

☆☆

Many a story of the heart are

scripted through the eyes only

Not that every single folklore

necessarily needs a pen…!

☆☆☆☆☆

☆ Life Story… ☆ 

है उतना ही खूबसूरत मेरी कहानी

में तेरा यूं आना, फिर चले जाना…

जैसा ज़िंदगी के खूबसूरत लम्हों

को अपने ही अंदाज़ से गंवाना…!

☆☆

Your coming into my life-story and

then leaving, was as dazzling as

losing the ravishing moments of

life in a truly awe-inspiring way..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 170 ☆ दोहा सलिला – अक्षर आराधना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला – अक्षर आराधना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 170 ☆

☆ दोहा सलिला – अक्षर आराधना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सूर्य रश्मि लोरी सुना, कहे जगो हे राम!

राजकुमार उठो करो, धन्य धरा भू धाम।।

कोहरा घूँघट ओट से, कर चितवन का वार।

रश्मि निमंत्रण दे करो, सबसे सब दिन प्यार।।

वाक् ब्रह्म है नाद हरि, ताल- थाप शिव जान।

स्वर सरगम शारद-रमा, उमा तान मतिमान।।

योग प्रयोग करें सतत, मिट जाए हर रोग।

हों वियोग अति भोग से, संयम सदा सुयोग।।

मिला मुकद्दर मुफ्त में, मान महज मेहमान।

अवसर-कशिश की कशिश, घरवाली वत जान।।

श्याम पूर्ण हो शुभ्र से, शुभ्र श्याम से पूर्ण।

शुभ न अशुभ बिन शुभ रहे, अशुभ बिना शुभ चूर्ण।।

कर अक्षर आराधना, होगा नहीं अभाव।

भाव शब्द में रस भरे, सब से कर निभाव।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२.५.२०२२ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मन ? ?

सार्वकालिक चर्चा है

प्रकृति की

सनातन गूढ़ता,

अध्यात्म दिखाता है

कण-कण में छिपा गूढ़,

विज्ञान दर्शाता है

सजीवों की संरचना में

अंतर्निहित दुरूहता,

दर्शन और मनोविज्ञान

गूढ़ता की सरलता और

क्लिष्टता के बीच

शोधन और

संशोधन में विचरते हैं,

ये सब

पढ़ते-सुनते-गुनते

मन जाने कहाँ-कहाँ

चक्कर लगा आया,

अपवादस्वरूप ही

देह के साथ रहा,

बाकी विदेह-सा

ब्रह्मांडका भ्रमण कर आया,

एक निष्कर्ष मेरा भी है-

कस्तूरी मृग-सा रूढ़ है,

बाहर क्या देखें

मन सबसे गूढ़ है!

© संजय भारद्वाज 

(अपराह्न 4:34 बजे, दीपावली, 11.11. 2015 )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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