आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला – अक्षर आराधना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 170 ☆

☆ दोहा सलिला – अक्षर आराधना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सूर्य रश्मि लोरी सुना, कहे जगो हे राम!

राजकुमार उठो करो, धन्य धरा भू धाम।।

कोहरा घूँघट ओट से, कर चितवन का वार।

रश्मि निमंत्रण दे करो, सबसे सब दिन प्यार।।

वाक् ब्रह्म है नाद हरि, ताल- थाप शिव जान।

स्वर सरगम शारद-रमा, उमा तान मतिमान।।

योग प्रयोग करें सतत, मिट जाए हर रोग।

हों वियोग अति भोग से, संयम सदा सुयोग।।

मिला मुकद्दर मुफ्त में, मान महज मेहमान।

अवसर-कशिश की कशिश, घरवाली वत जान।।

श्याम पूर्ण हो शुभ्र से, शुभ्र श्याम से पूर्ण।

शुभ न अशुभ बिन शुभ रहे, अशुभ बिना शुभ चूर्ण।।

कर अक्षर आराधना, होगा नहीं अभाव।

भाव शब्द में रस भरे, सब से कर निभाव।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२.५.२०२२ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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