हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #177 – तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष)

☆  तन्मय साहित्य  #177 ☆

☆ तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बुद्धि विलास बहुत हुआ,  तजें कागजी ज्ञान।

कुछ पल साधे मौन को, हो यथार्थ पर ध्यान।।

खुद ही खुद को छल रहे, बन कर के अनजान।

भटक रहे  हैं  भूल कर,  खुद की  ही  पहचान।।

अहंकार मीठा जहर, नई-नई नित खोज।

व्यर्थ लादते गर्व को, अपने सिर पर रोज।।

                      

अनुत्तरित हम ही रहे, जब भी किया सवाल।

हमें  मिली  अवमानना,  उनको  रंग  गुलाल।।

चमकदार    संवेदना,    बदल    गया   प्रारब्ध।

अधुनातन गायन रुदन, नव तकनिक उपलब्ध।।

हुआ अजीरण  बुद्धि का,  बढ़े घमंडी बोल।

आना है फिर शून्य पर, यह दुनिया है गोल।।

तृष्णाओं के जाल में, उलझे हैं दिन-रैन।

सुख पाने की चाह में,  और-और बेचैन।।

जीवन  से  गायब  हुआ,  शब्द  एक  संतोष।

यश,पद,धन के लोभ में, खाली मन का कोष।।

दर्पण में दिखने लगे, भीतर के अभिलेख।

शांतचित्त एकाग्र हो,  पढकर उनको देख।।

नव-संस्कृति के दौर में, शिष्टाचार उदास।

रंग- ढंग बदले सभी, बदले सभी लिबास।।

व्यर्थ प्रदर्शन चल रहे, भीड़ भरे बाजार।

बदन उघाड़े विचरते, अधुनातन परिवार।।

है प्रवेश बाजार का, घर में अब  निर्बाध।

विज्ञापन भ्रम जाल में, बढ़े ठगी-अपराध।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 63 ☆ बुन्देली गीत – प्यारी माई… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक बुंदेली गीत  – “प्यारी माई”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 63 ✒️

?  बुन्देली गीत – प्यारी माई… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

मोरी माई , प्यारी माई ,

कित्ती करौं बढ़ाई ।

हरई जनम रऔं तोरो लरका,

और तैं मोरी माई ।।

 

भोर भए बा चकिया पीसत ,

कुआं से पानी भरवै ,

ढोरन कों चारा डारत है ,

बऊ की सेवा करवै ,

बब्बा ने गईंयां दोह लईं ,

और माई कलेवा लाई ।

मोरी माई ——————- ।।

 

तुरंतईं से बा टिफन लगावै ,

मोय साला भिजवावे ,

मोरी सबरी कई बा मानत ,

टूसन भी पढ़वाबे ,

ऊसें बड़ों ना कोऊ जग में,

जा सबने समझाई ।

मोरी माई ——————–।।

 

रात बियारी हमें करावै ,

रोटी चुपर खवाबै ,

देह स्वस्थ जा रखबी कैंसें,

दूध लाभ समझावे ,

किस्सा  आल्हा उदल बारी ,

” सलमा ” हमें सुनाई ।

मोरी माई ——————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “चलना है बाकी।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कहाँ तय हुआ

फ़ासला दुख भरा

अभी कंटकों में चलना है बाकी।

 

वही रोज़ की

चिकचिकों से घिरा

दिन उजाले को ले

सूर्य द्वारे खड़ा

शाम अख़बार सी

एक बासी ख़बर

तम से हर रात

दीपक अकेला लड़ा

 

कहाँ क्या हुआ

रोती अब भी धरा

अभी पीर का तो गलना है बाकी।

 

नियम कायदे

जैसे मजबूरियाँ

घुल रही ख़ून में

एक ज़िंदा हवस

ओढ़कर बेबसी

पाँव यायावरी

लौट आये वहीं

जिस जगह थे तमस

 

लादकर बेड़ियाँ

श्रम हुआ अधमरा

अभी मंज़िलों पर पहुँचना है बाकी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ इसका मतलब ये तो नही… ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? कविता  ?

☆ इसका मतलब ये तो नही… ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

(मराठी भावानुवाद ⇒ अस होत नसतं ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆)

रास्ता बंद हो गया

इसका मतलब ये तो नही

              ….कि रास्ता खत्म हो गया

 

दिये का तेल खत्म हुआ

इसका मतलब ये तो नही

              ….कि प्रकाश खत्म हो गया

 

पतझड हो गयी

इसका मतलब ये तो नही

              …. कि पेड़ मर चुका

 

हाँ, यह सच है

क्षणिक अंधेरा उद्ध्वस्त करता है मन

किन्तु,

वही क्षण दिखाता है आनेवाली किरण

 

मन का क्या भरोसा

खेलेगा वो हर पल नया खेल

बद्ध करो उसे बुद्धि की शृंखला से

 

आखिर जिंदगी क्या है ?

 

उठो, लड़ो उम्मीद से

और उड जाओ फिर एक बार

              ….फिनिक्स की तरह !

© सुहास रघुनाथ पंडित 

संपादक ई-अभिव्यक्ति (मराठी)  

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें…

(सजल – मात्रा – 28, सामंत – ईत, पदांत – दिखता है, मात्रा भार – 28)

 मौसम में चल रहा छल कपट, न नवनीत दिखता है।

चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।

 

नेह का पैमाना बदला कुछ, अब इस जमाने में,

जहाँ निज स्वार्थ की आशा, वही मनमीत दिखता  है ।

 

सद्भावना का अंत है, तलवारें हैं खिचीं-खिचीं ,

साहसी मानव भी अब तो, कुछ भयभीत दिखता है।

 

दिलों की गहराईयों में,अब कौन झाँकता भला ,

बेसुरे वाद्य यंत्रों में, मधुर संगीत दिखता है ।

 

दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,

जलाओ प्रेम का दीपक, सुखद नवगीत दिखता है ।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ??

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 20 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं  टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे। 

हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)   

☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 20 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

अर्थ :– किसी और देवता की पूजा न करते हुए भी सिर्फ हनुमान जी की कृपा से ही सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है उसके सब प्रकार के संकट और पीड़ा मिट जाते हैं।

भावार्थ :- उपरोक्त दोनों चौपाइयों में एक ही बात कही गई है। आप को एकाग्र होकर के हनुमान जी को अपने चित्त में धारण करना है। आप अगर ऐसा कर लेते हैं तो कोई भी व्यक्ति, विपत्ति, संकट पीड़ा, व्याधि आदि आपको सता नहीं सकता है। हम सभी श्री हनुमान जी से अष्ट सिद्धि और नव निधि के अलावा मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। श्री हनुमान जी की सेवा करके हम सभी प्रकार के सुख अर्थात आंतरिक और बाएं दोनों प्रकार के सुख प्राप्त कर सकते हैं।

आपको चाहिए कि आप अपने आपको मनसा वाचा कर्मणा हनुमान जी के हवाले कर दें। जिससे आप जन्मों के बंधन से मुक्त हो सकें।

संदेश :- अपने स्वभाव को श्री हनुमान जी की भांति नरम रखें और दयावान बनें।

इन चौपाईयों के बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-

1-और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

2-संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जब भी आप कभी किसी संकट में पड़े इन दोनों चौपाइयों का 11 माला प्रीतिदिन का पाठ करें।साथ ही संकट को दूर करने का स्वयं भी प्रयास करें। हनुमान जी की कृपा से आपका संकट दूर हो जायेगा।

विवेचना :- उपरोक्त दोनों चौपाइयों में मुख्य रूप से एक ही बात कही गई है अगर आपको सभी संकटों से सभी व्याधियों से सभी बीमारियों से सभी खतरों से बचना है तो आप को हनुमान जी को समझना होगा। पहली पंक्ति में कहा गया है :-

“और देवता चित्त न धरई | हनुमत सेइ सर्व सुख करई || “

इस चौपाई को सुनने से ऐसा प्रतीत होता है की कवि तुलसीदास जी कह रहे हैं कि आपको और किसी देवता को अपने चित्त में धारण करने की आवश्यकता नहीं है। आपको केवल हनुमान जी की वंदना करनी है। जबकि तुलसीदास जी ने ही रामचरितमानस में भगवान शिवजी, भगवान ब्रह्मा जी, भगवान विष्णुजी, भगवान श्री रामचंद्र जी और हनुमान जी सब के गुण गाए हैं। फिर उन्होंने हनुमान चालीसा में केवल हनुमान जी की वंदना के लिए क्यों कहा है। आइए इसको समझने का प्रयास करते हैं।

हनुमान चालीसा के पहले और दूसरे दोहे की विवेचना लिखते समय मैंने हनुमान चालीसा लिखते समय तुलसीदास जी की उम्र का पता लगाने का प्रयास किया है। अंत में हमारे द्वारा यह नतीजा निकाला गया की हनुमान चालीसा लिखते समय गोस्वामी तुलसीदास जी 10 से 15 वर्ष के रहे होंगे। गांव में कई प्रकार के देवता होते हैं। मेरे अपने गांव में हमारे ग्राम देवता बेउर बाबा और सती माई हैं। हमारी कुलदेवी बाराही जी हैं। ग्राम में जहां सब बच्चे खेलते थे वहां पर एक छोटा सा मंदिर है जिसमें हनुमान जी की प्रतिमा और शिवलिंग विराजमान है। दुष्ट शक्तियों से रक्षा के लिए गांव की एक कोने में काली माई हैं। अब इन सभी मंदिरों में कोई व्यक्ति प्रतिदिन नहीं जा सकता है। क्योंकि सभी मंदिरों में प्रतिदिन जाने में काफी समय लगेगा। होता यह है विशेष अवसरों पर छोड़कर हर व्यक्ति अपना एक आराध्य ढूढ़ लेता है। कोई व्यक्ति बेउर बाबा के मंदिर पर प्रतिदिन जाता है। कुछ परिवार के लोग काली माई के मंदिर पर प्रतिदिन जाते हैं। और कुछ लोग गांव के बीच में बने हुए भगवान शिव और हनुमान जी के मंदिर में प्रतिदिन जाते हैं। आइए यह भी देखें कि इस का चुनाव किस तरह से होता है। मैं जब छोटा था तो मैं प्रतिदिन अपने बाबू जी के साथ गंगा स्नान को जाता था। बाबूजी गंगा स्नान कर लौटते समय अपने लोटे में गंगा जल भर लेते थे। रास्ते में बेउर बाबा का मंदिर पडता था। वहां पर रुक कर के हम थोड़ा सा जल बेउर बाबा और सती माई पर चाढ़ाते थे। हमारे घर के पास में शिव जी और हनुमान जी का मंदिर था। ध्यान रखें शिव लिंग और हनुमान जी की प्रतिमा दोनों एक साथ एक ही कमरे में थी। यहां पर हम लोग शिवलिंग के ऊपर गंगाजल डालकर शिवजी का अभिषेक करते थे और हनुमान जी के पैर छूते थे। इसके बाद घर आ जाते थे। काली जी के मंदिर में हम किसी विशेष दिन ही जाते थे। काली जी का मंदिर जिनके घर के पास था वह लोग प्रतिदिन काली जी के मंदिर जाते थे। इस प्रकार हर व्यक्ति ने अपना अपना देवी या देवता चुन लिया था। देवी और देवता चुनने में घर के नजदीक होना ही एकमात्र मापदंड था। किसी के दिमाग में यह नहीं था कि फला देवता बड़े हैं या फला देवता छोटे हैं। परंतु फिर भी ज्यादातर बच्चों के आराध्य हनुमान जी हुआ करते थे। मैं अब जब इसके बारे में सोचता हूं तो मुझे ऐसा समझ में आता है इसमें बहुत बड़ा रोल जन स्रुतियों का और हनुमान चालीसा का है। बच्चों के बीच में एक विचार काफी तेजी से फैला था कि जब भी रात में बड़े बाग में जाना हो तो हनुमान चालीसा का जाप करना चाहिए। अगर हनुमान चालीसा याद नहीं है तो हनुमान जी हनुमान जी कहते हुए जाना चाहिए। बड़े बाग में रात में जाने की आवश्यकता के कारण हम सभी बच्चों को हनुमान चालीसा कंठस्थ हो गई थी। बचपन में हनुमान जी से लगी लौ आज भी ज्यों की त्यों विद्यमान है।

तुलसीदास जी ने भी हनुमान चालीसा अपने बाल्यकाल में लिखी है। उनको भी रात्रि में छत पर जाना पड़ता था। हम बालकों की तरह से वह भी रात में छत पर जाने से डरते थे। इसलिए उन्होंने भी हनुमान जी का सहारा लिया।

मूल बात यह है कि आपको एक ऊर्जा स्रोत का सहारा लेना चाहिए। ऊर्जा स्रोत के अलावा इधर-उधर देखना आपके चित्त को भ्रमित करेगा। इसीलिए तुलसीदास जी ने लिखा कि हमें केवल हनुमान जी को ही अपने चित्त में धारण करना है।और अगर हनुमान जी की सेवा करेंगे तो हमें सभी प्रकार के सुख में प्राप्त होंगे।

महिम्न स्तोत्र में पुष्पदंत कवि कहते हैं-

‘‘रुचीनां वैचित्‍​र्याऋजु कुटिल नानापथजुषां’’

लोगों के रुचि-वैचित्‍​र्य के कारण ही वे भिन्न-भिन्न देवताओंका पूजन करते हैं। लोगों की प्रकृति में अंतर होने के कारण उनकी ईश-कल्पना में भी अन्तर रहेगा ही। इसलिए किस आकार में, किस स्वरुपमें ईश्वरका पूजन करना चाहिए इस सम्बन्ध में शास्त्रकारोंने कोई आग्रह नहीं रखा। दो भिन्न-भिन्न देवताओं के मानने वालों के बीच में अज्ञान के कारण झगडा होता है। इस झगडे को मिटाने के लिए भगवान कहते हैं कि-

यो यो यां यां तनु भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति।

तस्य तस्याचलां श्रद्धा तामेव विद्धाम्यहम्।।

सतया श्रद्धय युक्तस्तस्याराधनमीहते।

लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हितान्।।

‘‘जो व्यक्ति जिस देव का भक्त होकर श्रद्धा से उसका पूजन करने की इच्छा करता है उस व्यक्ति की उस देव के प्रति श्रद्धा को मैं दृढ करता हूँ’’ ‘‘श्रद्धा दृढ होने पर वह व्यक्ति उस देव का पूजन करता है और मेरे द्वारा निर्धारित उस व्यक्ति की वांछित कामनाएँ उसे प्राप्त होती है।’’ इस दृष्टि से देखने पर मूर्ति को परम्परा का समर्थन प्राप्त है ऐसी हमारे आराध्य देव की मूर्ति में ही चित्त सरलता से एकार्ग हो सकता है।

तुलसीदास जी इसके पहले लिख चुके हैं की मन क्रम वचन से एकाग्र होकर के हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए। अब अगर हनुमान जी की हम ध्यान लगाते हैं तो सबसे पहले हमें हनुमान जी के हाथ में गदा दिखती है। जिससे वे शत्रुओं का संहार करते हैं। उसके बाद उनका वज्र समान मुख मंडल दिखता है। फिर उनका मजबूत शरीर और उनका आभामंडल दिखाई पड़ता है।

हम सभी जानते हैं कि उपासना में अनन्यता की आवश्यकता है। इस चौपाई द्वारा तुलसीदास जी शास्त्रीय मूर्तिपूजा का महत्व समझाते हैं। मूर्ति पूजा भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा मानव सभ्यता को दी गई एक बहुत बड़ी भेंट है। मूर्ति पूजा के कारण हम आसानी से अपने इष्ट का ध्यान लगा सकते हैं। मूर्तिपूजा एक पूर्ण शास्त्र है। मानव अपने विकाराें को परख ले, उन्हे क्रमश: कम करे, शुद्ध करें, उदात्त करें और अन्त में विचार और विकार रहित स्थिति में आ जाए जिसके लिए मूर्ति पूजा अत्यंत आवश्यक है। मूर्ति पूजा मनुष्य को शुन्य से अनंत की ओर ले जाती है। मूर्ति पूजा की शक्ति अद्भुत है। यह मानव को अनंत से मिलाने का रास्ता बनाती है।

पूजा कर्मकांड नहीं है वरन कर्मकांड पूजा में व्यक्ति को व्यस्त करने का एक तरीका है। सर्व व्यापी परमात्मा को एक मूर्ति में बांध देना कहां तक उचित है। मूर्ति पूजा के विरोधी अक्सर यह बात कहते हैं। परंतु यह भी सत्य है चित्त को एकाग्र करने के लिए मूर्ति पूजा अत्यंत आवश्यक है।

जीवन में मन काफी महत्वपुर्ण है। मन है तो सुनना है, मन है तो बोलना है, मन है तो सब कुछ है। मन को शांत करने पर ही नींद आती है। इसलिए जीवन की प्रत्येक क्रिया में मन आवश्यक है। भोगार्थ भी मन है और मुक्ति के लिए भी मन है। मन ही मूर्ति का आकार लेता है तब उसे ही एकाग्रता कहते हैं। ऐसी एकाग्रता अधिक समय तक टिकनी चाहिए।

इस प्रकार मन को यदि भगवान जैसा बनाना हो तो भगवान का ध्यान करना जरुरी है। भगवान ने मूर्तिपूजा का महत्व (सगुण साकार भक्ति का महत्व ) गीता के बारहवे अध्याय में बहुत ही अच्छी तरह समझाया है।

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।

श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मता:।।

(गीता 12-2)

जो मुझमें मन लगाकर और सदा समान चित्तवाले रहकर परम श्रद्धा से मेरी उपासना करता है, वह मेरी दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ योगी है।

मन को एकाग्र करना कितना कठिन है यह बात गीता में अर्जुन ने भगवान श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय के 34 में श्लोक में कही है।

चंचल हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम््।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।

(गीता 6-34)

अर्थ:-हे कृष्ण! मन बलवान, चंचल, बलपुर्वक खींचनेवाला और आसानी से वंश में नहीं हो सकता। इसलिए मन को नियंत्रण में रखना वायु को रोकने के बराबर है।’’

अर्जुन के इस प्रश्न का जवाब देते हुए भगवान कहते हैं।

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृहते।।

(गीता 6-33)

हे महाबाहु अर्जून! सचमुच मन चंचल है एव निग्रह करने में कठीन है। फिर भी सतत अभ्यास एवं वैराग्य से हे कुन्तीपुत्र! उसे वश में किया जा सकता है।

मन को एकाग्र करने के अभ्यास योग में पाँच बातें अपेक्षित है- 1) आदरबुद्धि 2) दृढता 3) सातत्य 4) एकाकीभाव और 5) आशारहितता

इस प्रकार मेरे विचार से स्पष्ट हो गया की गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह कहना चाहा है कि आप हनुमान जी या कोई भी ऊर्जा पुंज को अपने दिल में धारण करें और वही ऊर्जा पुंज (हनुमान जी) आपको सभी कुछ प्रदान करेंगे। आपको इधर उधर नहीं भागना चाहिए।

आपके ऊपर अगर कोई संकट आएगा विपत्ति आएगी व्याधि आएगी तो सब कुछ हनुमानजी मिटा कर समाप्त कर देंगे। बस आपको हनुमान जी की एकाग्र भक्ति करनी है। जय श्री राम। जय हनुमान। 

चित्र साभार – www.bhaktiphotos.com

© ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– दरपन दरपन रूप तुम्हारा…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा…  ✍

दरपन दरपन रूप तुम्हारा

मुखड़ा देखूँ किस दरपन में

एक बूँद धरती पर आई

दो दिन करने पहुनाई

कटा एक दिन शूलवनों में

और एक दिन अमराई

होंठ आचमन कैसे करलें

टँकी बदरिया नीलगगन में।

 

सागर से गागर शरमाई

माँग रहा है भरपाई

जीवन था रामायन लेकिन

बँची न बाँचे चौपाई।

राम रूप में रत्ना ही तो

बैठी थी तुलसी के मन मे।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 133 – “कितनी कठिन तपस्या…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  कितनी कठिन तपस्या)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 133 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ कितनी कठिन तपस्या… ☆

जब चाची उस आरक्षक

को गाली दे  हारी

तभी बीच में बोल पड़ी

थी उस की महतारी

 

मेरा बेटा भृष्ट नहीं है

सभी जानते हैं

सत्य भाषियो की श्रेणी

का उसे मानते हैं

 

कठिनाई से भरी हुई

सेवा घंटो घंटो

करता आया बिना थके

जो ना थी लाचारी

 

ब्रत, त्योहार, दिवाली, होली

ना जाना कब  से

खडा बिताता रात और दिन

बरदी कसे कसे

 

कभी बहू के मुख पर

छाया इंतजार देखा

दोनों आंखों में रहती

पति की मूरत प्यारी

 

कितनी कठिन तपस्या,

तुम इसको गाली दे लो

लेकिन इस के समर्पणों

भावों से मत खेलो

 

भले राज्य के आरक्षक

की सेवा के ढंग से

लोग न हों खुश पर

इन की सेवा है सरकारी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – जिजीविषा ??

संकट, कठिनाई,

अनिष्ट, पीड़ादायी,

आपदा, अवसाद,

विपदा, विषाद,

अरिष्ट, यातना,

पीड़ा, यंत्रणा,

टूटन, संताप,

घुटन, प्रलाप,

इन सबमें सामान्य क्या है?

क्या है जो हरेक में समाता है,

उत्कंठा ने प्रश्न किया..,

मुझे इन सबमें चुनौती

और जूझकर परास्त

करने का अवसर दिखता है,

जिजीविषा ने उत्तर दिया..!

© संजय भारद्वाज 

दोपहर 3: 24 बजे, 9 मार्च 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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