श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष)

☆  तन्मय साहित्य  #177 ☆

☆ तन्मय के दोहे – खाली मन का कोष… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बुद्धि विलास बहुत हुआ,  तजें कागजी ज्ञान।

कुछ पल साधे मौन को, हो यथार्थ पर ध्यान।।

खुद ही खुद को छल रहे, बन कर के अनजान।

भटक रहे  हैं  भूल कर,  खुद की  ही  पहचान।।

अहंकार मीठा जहर, नई-नई नित खोज।

व्यर्थ लादते गर्व को, अपने सिर पर रोज।।

                      

अनुत्तरित हम ही रहे, जब भी किया सवाल।

हमें  मिली  अवमानना,  उनको  रंग  गुलाल।।

चमकदार    संवेदना,    बदल    गया   प्रारब्ध।

अधुनातन गायन रुदन, नव तकनिक उपलब्ध।।

हुआ अजीरण  बुद्धि का,  बढ़े घमंडी बोल।

आना है फिर शून्य पर, यह दुनिया है गोल।।

तृष्णाओं के जाल में, उलझे हैं दिन-रैन।

सुख पाने की चाह में,  और-और बेचैन।।

जीवन  से  गायब  हुआ,  शब्द  एक  संतोष।

यश,पद,धन के लोभ में, खाली मन का कोष।।

दर्पण में दिखने लगे, भीतर के अभिलेख।

शांतचित्त एकाग्र हो,  पढकर उनको देख।।

नव-संस्कृति के दौर में, शिष्टाचार उदास।

रंग- ढंग बदले सभी, बदले सभी लिबास।।

व्यर्थ प्रदर्शन चल रहे, भीड़ भरे बाजार।

बदन उघाड़े विचरते, अधुनातन परिवार।।

है प्रवेश बाजार का, घर में अब  निर्बाध।

विज्ञापन भ्रम जाल में, बढ़े ठगी-अपराध।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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