हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 262 ⇒ मान न मान… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मान न मान…।)

?अभी अभी # 262 ⇒ मान न मान… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अतिथि को हम मेहमान भी कहते हैं। जो बिना किसी तिथि के अनायास आ धमके, तो प्रकट रूप से भले भी वह आपके लिए देवता हो, लेकिन क्या वह, मान न मान, मैं तेरा मेहमान नहीं हुआ। मजबूरी में ही सही, अगर आपने उसे अपना मेहमान मान लिया, तो क्या आप उसके मेजबान यानी होस्ट (host) नहीं हुए। मैं तेरा होस्ट, तू मेरा गेस्ट।

यही होस्ट कभी कभी होस्टाइल हो उठता है, जब मेहमान guest नहीं ghost निकल जाता है। अतिथि वह भला, जिसके जाने की तिथि पहले से ही मुकर्रर हो। इस स्थिति में अतिथि तुम कब जाओगे, जैसी परिस्थिति कभी निर्मित ही नहीं होती। जो आप पर इतना मेहरबान हो कि अपने आने की, कहां ठहरने की, और वापसी की भी पुख्ता, समय और तारीख से आपको अवगत कराए, वह इस कलयुग में किसी भगवान से कम नहीं।।

लेकिन आतिथ्य कला में आजकल मनुष्य बहुत एडवांस हो चला है। यह कुछ हमारे सनातन धर्म का प्रभाव भी है और कुछ संचित पुण्य के संस्कार भी कि वह खुशी खुशी किसी भी संत, महात्मा, अथवा कथा, कीर्तन, सत्संग और पाठ का यजमान बनने में अपने आपको धन्य मानता है।

आप अपने घर में जब भी कथा, कीर्तन, जगराता अथवा भजन संध्या का आयोजन करते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से ही उस पुनीत कार्य के यजमान बन जाते हैं। घरों में जब भी किसी मंगल कार्य हेतु यज्ञ अथवा हवन होता है, तो घर का प्रमुख सदस्य ही तो जोड़े सहित यजमान का आसन ग्रहण करता है। एक यजमान कितने क्विंटल पुण्य अर्जित करता है, यह उसके द्वारा तन, मन और धन से संपन्न हुए कार्य पर निर्भर करता है। किसी व्रत का उद्यापन भी इसी श्रेणी में शामिल होता है। सुहागन जोड़े को आदर सत्कारपूर्वक भोजन करवाना भी यजमान के संचित पुण्य में अतिशय वृद्धि करता है।।

कलयुग नाम अधारा! नारद भक्ति सूत्र के अनुसार भी श्रवण, कीर्तन और नाम स्मरण ही आज के युग में मुक्ति के साधन हैं। राम नाम की लूट का तो हम हाल ही में प्रत्यक्ष अनुभव कर चुके हैं। लेकिन किसी पहुंचे हुए संत द्वारा राम कथा अथवा भागवत कथा का आयोजन इतना आसान भी नहीं। मेहनत पसीने से अर्जित धन और संचित पुण्य ही किसी विरले, अति भाग्यशाली व्यक्ति को यह स्वर्णिम अवसर प्राप्त होता है, जब वह इस आयोजन का साक्षी भाव से यजमानत्व का भार ग्रहण करे। जन्मों जन्मों के संचित संस्कारों के पुण्य फल के पश्चात् ही किसी यजमान के जीवन में यह घटना घटित होती है।

आपने कभी सुना है, मान न मान मैं तेरा यजमान। जी हां, जिनका राजयोग प्रबल होता है, वे तो केवल अपने पुरुषार्थ एवं जन जन के आग्रह और अनुनय के फलस्वरूप ही यह दुर्लभ दायित्व हंसते हंसते स्वीकार कर लेते हैं लेकिन शेष सात्विक, संस्कारी धनाढ्य धर्मावलंबियों को ऐसे भव्य और दिव्य आयोजनों में यजमान बनने हेतु जमीन आसमान एक करना पड़ता है, बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।।

लेकिन ईश कृपा और संचित धन के अलावा संचित पुण्य के आधार पर ही बिल्ली के भाग से छींका टूटता है और धर्म के ऐसे कल्याणकारी आयोजन में कोई विरला ही यजमान के इस दायित्व को ग्रहण कर पाता है।

बिना मेहमान के एक बार आपका जीवन सुखी हो सकता है, लेकिन बिना यजमान के कोई यज्ञ नहीं हो सकता, कोई कथा भागवत, कीर्तन सत्संग नहीं हो सकता। मनुष्य के जीवन की सुख शांति का आधार ही धार्मिक कृत्य और अनुष्ठान है। सभी सिद्ध पुरुष, प्रकांड कर्मकांडी पंडित और रामकथा और भावगत कथा के आचार्य सुन लें,

मान न मान, मैं तेरा यजमान। आशीर्वाद तो बनता है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 261 ⇒ गम्मत… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गम्मत।)

?अभी अभी # 261 ⇒ गम्मत… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ज्यादा दिमाग पर जोर मत डालिए, यह शब्द हिंदी और उर्दू का नहीं, मराठी भाषा का है। आम तौर पर हमारी बोलचाल की भाषा में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, गुजराती और संस्कृत शब्दों का समावेश हो ही जाता है। मौसम की तरह ही हमारा मूड अच्छा और बुरा होता रहता है। ढाई आखर का अगर प्रेम होता है, तो हुस्न और इश्क भी होता है। सुबह सुबह ठंडे पानी से स्नान करते ही, मुंह से अनायास ही ॐ नमः शिवाय निकलने लगता है।

हमें पता ही नहीं चलता बाजार, अफसर और जंगल किस भाषा के शब्द हैं।

वैसे तो मुख्य रूप से हमारे देश की आधिकारिक भाषाएं तो केवल २२ ही हैं, लेकिन १३० करोड़ लोगों की जनसंख्या में कम से कम १२१ भाषाएं बोली जाती हैं। यहां तो हर एक सौ किलोमीटर में भाषा बदलती रहती है।

केम छे कब शेम छे हो जाता है, पता ही नहीं चलता।।

आप अगर हरियाणा के हैं तो आपकी हरियाणवी भाषा अलवर तक आते आते राजस्थानी हो जाती है, और मथुरा में प्रवेश करते ही आप बृजवासी हो जाते हो। पंजाब का भांगड़ा गुजरात में डांडिया हो जाता है तो घरों में सुबह इडली डोसा और शाम को छोले भटूरे बनने लग जाते हैं। बस तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की दाल इतनी आसानी से नहीं गल पाती। प्रेम करूं छूं और आमी तोमाके भालोमाशी तो हमें फिल्मी गाने ही सिखला देते हैं।

बचपन मराठी भाषी मोहल्ले में गुजरने के कारण कुछ पुरानी यादें समय समय पर उभर आती हैं। हम मोहल्ले के बच्चों में गम्मत शब्द बहुत अधिक प्रचलित था। पंजाबी के गल की ही तरह मराठी में एक शब्द है गोष्ट ! मैं तुम्हें एक मज़ेदार बात बताता हूं। मी तुम्हाला एक चांगळी गोष्ट सांगते। यहां यह सांग अंग्रेजी वाला सॉन्ग नहीं है। हां यह गोष्ट जरूर कुछ कुछ हमारी गोष्ठी से मिलता जुलता है, लेकिन केवल शाब्दिक रूप से, लेकिन अर्थ थोड़ा अलग है। बस यही तो गम्मत है।

यानी कोई भी मजेदार बात गम्मत कहला सकती है।।

मुंबई और पुणे में वैसे कई ऐसे मराठी शब्द प्रचलित हैं, जिन्हें हम बोलचाल में भी अक्सर प्रयोग करते रहते हैं। हमारा संदेश, उनके लिए अगर निरोप है तो हमारा पाहुना उनका भी पाहुणा ही है।

मराठी की टीवी न्यूज़ बातम्या कहलाती है।

हमारा मानस, गुजराती का मानुस और मराठी का माणुस आसानी से बन जाता है। हमारा द्वार मराठी का दार हो जाता है। गुजराती में गांडा छे, बेवकूफ और नासमझ माणस को कहते हैं। एक भाषा के शब्द को दूसरी भाषा में बड़ा संभलकर प्रयोग में लाना पड़ता है।

एक पुराना टेलीग्राम का किस्सा, आज भी इसका एक जीता जागता उदाहरण है ;

तब टेलीग्राम में हिंदी का प्रयोग नहीं होता था। दादा आज मर गए, जब तार बनकर उस ओर सुदूर गांव पहुंचा तब तक तो DADA AAJ MER GAYE हो गया था। पढ़ने वाला अंग्रेजी का काला अक्षर था। उसने किसी तरह पढ़ ही लिया, दादा आज मेर गए, यानी मर गए। गम का फसाना बन गया अच्छा। काय गम्मत झाली।।

मराठी की बोलचाल में आज भी यह शब्द प्रयोग में लाया ही जाता होगा।

अफसोस, ऐसे शब्द हिंदी जैसी समृद्ध भाषा के आज तक अंग नहीं बन सके। विद्वतजन आगे आएं, ऐसे मजेदार शब्दों को हमारी बोलचाल की भाषा का हिस्सा बनाएं।

हिंदी में इसका दिलचस्प तरीके से वाक्य में प्रयोग कैसे हो सकता है, शांतता, चिंतन चालू आहे। आप मराठी नहीं जानते, फिर भी प्रत्युत्तर में इतना तो कह ही सकते हैं, खरी गोष्ट।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 91 – देशभक्ति और राष्ट्रहित… ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  देशभक्ति और राष्ट्रहित

☆ आलेख # 91 –  देशभक्ति और राष्ट्रहित…🇮🇳☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

एक देशभक्ति वो होती है जिसके जज्बे में खुद की परवाह न कर जवान देश के लिये रणभूमि में शहीद होते हैं.

एक देशभक्ति वह भी होती है जंहा आप अपने परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य और अपने कलेजे का टुकड़ा देश को समर्पित करते हैं और जिसके शहीद होने पर असीमित दुख और तकलीफों के बावजूद हमेशा गर्वित ही होते हैं, कभी पछतावा नहीं होता.

एक देशभक्ति वह भी है जंहा आपको लगता है कि ईमानदारी और समर्पण की भावना से जहां हैं जैसे हैं, अगर देश के लिये कुछ कर सकें तो ये खुद का सौभाग्य ही है.

पर देशभक्ति वो तो नहीं है और हो भी नहीं सकती जहां ये खुद को लगने लगे कि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति या किसी दल का समर्थन कर आप खुद को देशभक्त समझने लगें और बाकी अन्य विचार रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगें, लांछन लगाने लगें.

कम से कम अभी तक ऐसा नहीं हुआ है कि देश के सर्वोच्च और अतिमहत्वपूर्ण व जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनयिकों की निष्ठा पर सवाल खड़े किये गये हों. देश की नीतियों में जरूर समयानुसार परिवर्तन हुये हैं पर राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण सदा अखंड ही रहा है. नेतृत्व की क्षमता विभिन्न मापदंडों पर अलग अलग हो सकती है पर हर नेतृत्व, राष्ट्रहित और राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर खरा उतरा है.

इसलिये मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से टारगेटेड दुष्प्रचार कुल मिलाकर ओछेपन और असुरक्षा की भावना ही दर्शाता है. मात्र चुनाव के नाम पर अगर राजनीति का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो आम नागरिक की बात तो छोड़ दीजिये, सीमा पर युद्ध के लिये प्राणोत्सर्ग तक करने को तैयार सैनिक इनसे क्या प्रेरणा पायेगा. बेहतर यही है कि राजनैतिक शुचिता इतनी तो रहे कि लोग राजनेताओं से कुछ तो प्रेरणा पा सकें, उन की निष्पक्ष प्रशंसा कर सकें.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 255 ☆ आलेख – अयोध्या का राम मन्दिर : निर्माण की तकनीकी विशेषतायें ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख – अयोध्या का राम मन्दिर : निर्माण की तकनीकी विशेषतायें)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 255 ☆

? आलेख – अयोध्या का राम मन्दिर : निर्माण की तकनीकी विशेषतायें ?

करोड़ों हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक अयोध्या के राम जन्म भूमि मन्दिर के लिये सदियों के संघर्ष के बाद अंततोगत्वा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से परिसर का आधिपत्य हिन्दुओ को मिला। स्वाभाविक रूप से मंदिर निर्माण के लिये अपार धन संग्रह सहज ही हो गया। अब एक ऐसे मंदिर का निर्माण होना था जो युगों युगों तक जन जन के लिये भावनात्मक ऊर्जा का केंद्र बना रहे। विशिष्ट हो और समय के अनुरूप वैश्विक स्तर का हो। मुख्य वास्तुविद चंद्रकांत बी. सोमपुरा ने न्यूनतम समय में श्रेष्ठ डिजाइन तैयार की। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर के निर्माण में रुचि ले रहे थे। मोदी जी की एक विशेषता स्वीकार करने योग्य है कि वे शिलान्यास ही नही करते न्यूनतम तय समय में उस योजना का उद्घाटन भी करते हैं। अर्थात प्राण पन से योजना को पूरा करने में वांछित कार्यवाही समय से करते रहते हैं। मंदिर निर्माण के लिये सुप्रसिद्ध कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को कार्य सौंपा गया। राष्ट्रीयता से ओत प्रोत प्रतिष्ठित कंपनी टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड को परियोजना प्रबंधन का काम दिया गया। राम मंदिर निर्माण का कार्य रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के द्वारा करवाया जा रहा है। आई आई टी चेन्नई, आई आई टी बॉम्बे, आई आई टी गुवाहाटी, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की, एन आई टी सूरत, एन जी आर आई हैदराबाद जैसे संस्थान परियोजना के डिजाईन सलाहकार हैं। इन सबको समवेत स्वरूप में जोड़कर न्यूनतम समय में निर्माण कार्य पुरा करना बड़ी चुनौती थी। दिन रात आस्था और विश्वास के साथ समर्पित भाव से जुटे रहने का ही परिणाम है कि तय समय में मंदिर मूर्त रूप ले सका है। यह सिविल इंजीियरिंग का करिश्मा है , क्योंकि पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिये सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है , बल्कि लाक एड की आधार पर ग्रूव कटिंग से पत्थरों को जोड़ा गया है। कुल 70 एकड़ क्षेत्रफल की जमीन ट्रस्ट के पास है। मंदिर का क्षेत्रफल 2.77 एकड़ है। भारतीय नागर शैली में निर्माण हो रहे इस मंदिर की लंबाई 380 फीट , चौड़ाई 250 फीट तथा ऊँचाई 161 फीट है। मंदिर में स्थापित की जा रही राम लला की नई मूर्ति मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है। मंदिर में नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप इस तरह कुल 5 मंडप हैं। मंदिर की परिधि (परिकोटा) के चारों कोनों पर सूर्यदेव, माँ भगवती, भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण किया जाएगा। उत्तरी दिशा में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर होगा और दक्षिणी दिशा में भगवान हनुमान का मंदिर होगा। मंदिर परिसर के भीतर, अन्य मंदिर महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, राजा निशाद, माता शबरी और देवी अहिल्या के होंगे। मंदिर परिसर में सीता कुंड नामक एक पवित्र कुंड भी होगा। परियोजना के अंतर्गत दक्षिण-पश्चिम दिशा में नवरत्न कुबेर पहाड़ी पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा और जटायु की एक प्रतिमा स्थापित की जाएगी। धार्मिक आस्था का प्रतीक होने के साथ-साथ, श्री राम मंदिर एक अद्भुत वास्तुशिल्प कृति है। भारत की आध्यात्मिक विरासत और भगवान राम की अमर प्रसिद्धि के जीवित प्रमाण के रूप में, यह मंदिर अयोध्या को भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनाने में अहम भूमिका निभाएगा।

राम मंदिर की नींव के डिजाइन में 14 मीटर मोटे रोल्ड कॉम्पैक्ट कंक्रीट को परतदार बनाकर कृत्रिम पत्थर का आकार दिया गया है। फ्लाई ऐश और रसायनों से बने कॉम्पैक्ट कंक्रीट की 56 परतों का उपयोग किया गया है।

नमी से बचाव के लिए राम मंदिर के आधार पर 21 फुट मोटा ग्रेनाइट का चबूतरा प्लिंथ) बनाया गया है। मंदिर की नींव के डिजाइन में कर्नाटक और तेलंगाना के ग्रेनाइट पत्थर और बांस पहाड़पुर (भरतपुर, राजस्थान) के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। मंदिर परियोजना में दो सीवेज शोधन संयंत्र, एक जल शोधन संयंत्र , विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था , की गई है। यह तीन मंजिला मंदिर भूकंपरोधी है। इसमें 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। दरवाजे सागौन की लकड़ी से बने हैं और उन पर सोने की परत चढ़ायी गई है। मंदिर संरचना की अनुमानित आयु 2500 वर्ष आकलित की गई है। मूर्तियाँ 6 करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाओं से बनी हैं, जो गंडकी नदी , नेपाल से लाई गई हैं। मंदिर में लगाया गया घंटा अष्टधातु सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, टिन, लोहा और पारे से बनाया गया है। घंटे का वजन 2100 किलोग्राम है। घंटी की आवाज 15 किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकेगी ऐसा अनुमान है। इस मंदिर में बहुत कुछ विशिष्ट और विश्व में प्रथम तथा रिकार्ड है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 260 ⇒ प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा…।)

?अभी अभी # 260 ⇒ प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आओ सखी,

हे री सखी, मंगल गाओ रे ..

इंतजार अब नहीं, इंतजार अब और नहीं, आखिर वो शुभ घड़ी आ ही गई, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के इतिहास में हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने जा रही है। जन्म जन्म के वे प्यासे भक्त जो त्रेता युग में अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक नहीं देख पाए, आज वे उसी अयोध्या में अपने आराध्य रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने जा रहे हैं।

अंबानी, अडानी, टाटा, सिंघानिया, कंगना, हेमा, जया, मोदी, योगी, बिग भी, सूची बहुत लंबी है, जिनमें मैं जाहिर रूप से शामिल नहीं हूं, लेकिन मेरे जैसे करोड़ों ऐसे भक्त हैं, जो अपने घर आंगन, दफ्तर और दुकान में समर्पित भाव से टीवी के माध्यम से ही इस ऐतिहासिक क्षण के भागी बन गए हैं। यह प्रतिष्ठा का नहीं, प्राण प्रतिष्ठा का अवसर है।।

बड़े भाग, मानुस तन पायो, कितना सार्थक सिद्ध हुआ है आज यह कथन। इतने भाग्यशाली तो तुलसीदास जी भी नहीं होंगे। लेकिन उनकी स्थिति हमने कई गुना ऊंची और अच्छी थी, क्योंकि केसरीनंदन हनुमान की तरह ही प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण उनके हृदय में हर पल विराजमान थे।

उनका कवि हृदय कितना विशाल होगा, जो जन जन को रामचरितमानस जैसा अद्भुत ग्रंथ समर्पित कर गया। यह होती है एक भक्त की अपने आराध्य की हृदय में प्राण प्रतिष्ठा, जो जब मथुरा और वृन्दावन जाते हैं तो यह प्रण लेकर जाते हैं, कि अगर सांवरा कृष्ण कन्हैया मुझे दरस देना चाहता है, तो उसे मेरे आराध्य के समान धनुष धारण करना पड़ेगा। और भगत के वश में भगवान को उसकी हर मांग पूरी करनी ही पड़ती है। भक्त तुलसीदास की भेद बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। राम, कृष्ण में कोई अंतर नहीं, कोई भेद नहीं।

मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दीखे सूरत तेरी, यह केवल वही नरसिंह भगत कह सकता है, जिसके प्राण में अपने इष्ट घनश्याम प्रतिष्ठित हो गए हैं, विराजमान हो गए हैं। इसीलिए भक्त उसे घट घट वासी मानता है। वह दयानिधान, कृपासिंधु, सबका पालनहार आपको खेत में, खलिहान में और हर मजदूर किसान की झोपड़ी में मिलेगा।।

मुझे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम को अपने प्राणों में प्रतिष्ठित करना है, मेरा रामलला और कृष्ण कन्हैया एक ही है। बस मुझे उनकी लीलाओं में अपने आपको डुबोए रखना है।

बहुत आसान है कहना,

तेरा नाम तेरे मन में है,

मेरा नाम मेरे मन में है।

कलयुग नाम अधारा तो है ही, राममय होने का अवसर है, मत चूके चौहान ;

मेरे प्रभु तू आ जा

मन में मेरे समा जा।

मैं ढूंढता तुझे हूं

आ जा, तू अब तो आ जा।।

राम, राम, राम,

सीता राम राम राम

जय श्रीराम ..

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 67 – देश-परदेश – पालतू पालक ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – पालतू पालक” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 67 ☆ देश-परदेश – पालतू पालक ☆ श्री राकेश कुमार ☆

उपरोक्त फोटो घर के निकट की एक दुकान का है। दुकानदार से बातचीत हुई की आपने पालतू और बच्चों से संबंधित दोनों के लिए कैसे जुगल बंदी कर दी। उसने बताया कि जिन परिवारों में बच्चे नहीं है, वे श्वान या बिल्ली पाल लेते हैं। पालतू पालक और बच्चे वाले दोनों ही हमारे ग्राहक हैं। पूर्व में सिर्फ श्वान का चलन था, लेकिन उसका क्रय मूल्य अधिक होने से बिल्ली पालन के चलन में तेज़ी आ गई हैं।

कुछ दशक पूर्व तक बिल्लियां दीवार फांद कर लोगों के घर में रखे हुए दूध में मुंह मार लिया करती थी। जब से ये फ्रिज चल पड़े है,  उनको पेट भरना कठिन हो गया और था। इसलिए बिल्लियां कम हो गई हैं। अब कुछ वर्षों से इनको पालतू बना कर घर में पाला जाता हैं। श्वान तो सदियों से स्वामी भक्त के टाइटल से भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

जोधपुर शहर में कल ही दो बच्चों का ट्रेन के नीचे आ जाने  से दुखद निधन हो गया,  क्योंकि चार पालतू जर्मन शेफर्ड नामक प्रजाति के श्वान बच्चों को काटने लगे तो बच्चे रेल लाइन की तरफ बच कर भाग गए जिससे ये दुर्घटना हो गई। श्वान मालिक का कहना है,  इसमें श्वानो की कोई गलती नहीं हैं। बच्चों को रेल पटरी पार करते समय ट्रेन को देखना चाहिए था। दिल्ली शहर में भी खूंखार प्रजाति पिट बुल के श्वान ने एक बुजर्ग से उसके छोटे से पोते को छीन कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया है।

ऐसा व्यवहार श्वान क्यों कर रहे है, कुछ विशेषज्ञों का मत है, उनकी मूलभूत सुविधाओं जैसे की बिजली के खंभों में कमी होना भी हो सकता है। आजकल बिजली की लाइन भूमिगत हो रही हैं।

कुछ पालक अपने पालतू के लालन पालन और तीमारदारी के लिए तन मन और धन से लग जाते हैं। प्राणी सेवा एक अच्छा कार्य हैं। परंतु कभी-कभी तो ये पालक अपने परिजनों का उतना ख्याल नहीं रखते हैं, जितना वे अपने पालतू का रखते हैं। ये भी हो सकता है, वे  पालतू के पूर्व जन्म के कर्म होंगे, जिनकी वजह से पालतू योनि में जन्म लेकर भी इतनी सुख सुविधा प्राप्त हुई।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – धीर समीरे सरयू तीरे ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ धीर समीरे सरयू तीरे ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

राम राम पाठकगण!

२०२२ के राम नवमी के शुभ दिन पर ठाणे के ‘राम गणेश गडकरी सभागार’ में ‘गीत रामायण’ का आवर्तन जारी था। ‘आधुनिक वाल्मिकी’ के नाम से नवाजे जाने वाले ग. दि. माडगूळकर अर्थात ग दि मा के कालजयी शब्द, स्वरतीर्थ सुधीर फडके अर्थात बाबूजी का स्वर्गीय संगीत और उनकी गीत-संगीत की सुरीली विरासत को आगे बढ़ाने वाले उनके सुपुत्र श्रीधर फडके के स्वर! हम सभी के कंठ और हृदय में समाहित यहीं गीत था, ‘सरयू तीरावरी अयोध्या, मनूनिर्मित नगरी’! अर्थात ‘सरयू तट पर बसी अयोध्या, मनु निर्मित नगरी” (प्रिय पाठकों, मराठी के प्रसिद्ध गीतकाव्य गीत रामायण के समस्त ५६ गीतों का शब्द-अर्थ और भाव समेत सुन्दर अनुवाद किया है गीत रामायण के हिंदी संस्करण में श्री दत्तप्रसाद द जोग ने! इस हिंदी संस्करण की मैं जितनी भी तारीफ करूँ कम है क्योंकि, सारे गीतों के बोल ऐसे रचे गए हैं कि, बाबूजी द्वारा संगीतबद्ध किये हुए मराठी गानों की तरह ये हिंदी गीत भी वैसे ही हूबहू गाये जा सकते हैं! कवी जोगजी के इस महनीय कार्य को मेरा विनम्र अभिवादन) मित्रों, यह पहली बार नहीं था कि, मैंने इस गीत को तन्मयता से सुनकर मैंने अपने हृदय में समाहित कर लिया!

‘सामवेदसे बाळ बोलती,

सर्गामागुन सर्ग चालती

सचीव, मुनिजन, स्त्रिया डोलती,

आंसवे गाली ओघळती’

कुश लव रामायण गाती’

(‘साम-वेद-से बोले बालक, सर्ग-सर्ग से कहें कथानक सचीव, मुनिजन, श्रोता भावुक, समूचे बिसरे हैं भवभान कुश लव रामायण गीत-गान)

हर बार दर्शकों की जैसे यह अवस्था होती है, वैसे ही उस दिन भी थी| लेकिन तभी (जब ऐसा लग रहा था कि, यह ना हो) मध्यांतर हो गया| इसी अंतराल में श्रीधरजी के भावुक शब्द अचानक किसी ‘दिव्य वाणी’ की तरह कानों में गूंजने लगे, “मैं जुलाई २०२२ में अयोध्या में गीत रामायण प्रस्तुत करूंगा! सरयू तट पर आप लोग आइये और मेरा साथ दीजिये कोरस में!” यह सुनकर मैं तो अंतर्बाह्य रोमांचित हो उठी| स्वप्न में, गीतों में और पुस्तकों में मैंने कल्पना की हुई अयोध्या, जिसका कण-कण राम के वास्तव्य से पुनीत हुआ है, सरयू नामक सरिता के तट पर मनु (प्रथम मानव) द्वारा बनाई गई वह भव्य दिव्य नगरी अयोध्या, जहां राम का आदर्श ‘रामराज्य’ वास्तव में साकार हुआ था! तन मन और ह्रदय में यह छबि संजोकर रखने का अनोखा अवसर मिलेगा, आंखों में सम्पूर्ण प्राणज्योति को प्रज्वलित कर इस नगरी का दर्शन करुँगी और श्रीधरजी के मुख से कानों में अमृत रस घोलने वाला ‘गीत रामायण’ सुनूंगी। इसे तो मणि कंचन योग ही कहना चाहिए! लेकिन मित्रों, इस अमृतमय संयोग में और भी मिठास घुलने वाली थी। इसी अवधि के दौरान, वरिष्ठ गायक और कीर्तनकार श्री चारुदत्त आफळे अपने रामकीर्तन से अयोध्या के अवकाश को भक्तिमय करने वाले थे। अब और क्या चाहिए था! जब सब कुछ मन माफिक चल रहा था, तब अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई, मेरा कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया! अब तो मेरे होश उड़ गए| लेकिन डॉक्टर से सलाह लेने के बाद मुझे एहसास हुआ कि, ट्रेन छूटने के एक दिन पहले ही मेरा कोरोना का ‘एकान्तवास’ ख़त्म होने वाला था| मन ही मन में मैं रामनाम का जाप कर रही थी| कोरोना ने भेंट की हुई कमजोरी के लिए यहीं एक ‘रामबाण’ औषधि थी।

पाठकों, यात्रा के निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नैमिषारण्य, प्रयागराज और काशी की हमारी यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई, रात करीबन १२ बजे हमने अयोध्या में कदम रखा। तीर्थ स्थल के अनुरूप एक काफी बडी संरचना ‘जानकी महल’ में हमें हमारे आरक्षित कमरों में प्रवेश दिया गया| सुबह-सुबह वहाँ की  भित्तिचित्रों पर चित्रित राम के जीवन के विभिन्न दृश्यों तथा राम सीता, लक्ष्मण और हनुमान के नयनाभिराम मंदिरों को देखकर रात की थकान कहीं दूर भाग गई। धीरे-धीरे यात्रा का टाइम टेबल समझ में आने लगा । सुबह सात्विक अल्पाहार, उसके तुरन्त बाद, चारुदत्तजी द्वारा कीर्तन और संध्या समय को श्रीधरजी द्वारा गीत रामायण जैसे बहुआयामी रामसंकीर्तन, भजन, नाम स्मरण और गायन ऐसा कसा हुआ भव्य सत्संग कार्यक्रम था।

जय रघुनंदन जय सियाराम, हे दुखभंजन तुम्हें प्रणाम ||

भ्रात भ्रात को हे परमेश्वर, स्नेह तुन्ही सिखलाते |

नर नारी के प्रेम की ज्योति, जग मे तुम्ही जलाते |

ओ नैया के खेवन हारे, जपूं मै तुम्हरो नाम |१ |

मोहम्मद रफ़ी एवं आशा भोसले के भक्तिरस में डूबे हुए ये शब्द मन में गुंजायमान हो रहे थे! राम नाम संकीर्तन के सुबह और शाम के घंटों को छोड़कर, मैंने और मेरी सहेली ने जितना संभव हो, उतना अयोध्या दर्शन का लाभ उठाने का फैसला किया। इधर जानकी महल के प्रवेश द्वार पर तैनात सुरक्षा गार्ड प्रभु की तरह मददगार सिद्ध हुआ  उसके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मंदिरों और सरयू की यात्रा का दौर प्रारम्भ हुआ। आयोजकों ने कुछ स्थानों के निःशुल्क दर्शन भी करवाए। पाठकों, लगभग छह दिनों तक वहाँ रहकर कुछ देखा और कुछ रह गया (मुख्यतः नंदीग्राम)। लेकिन संतुष्टि इस बात की थी कि, हम अयोध्या में थे ! सर्वप्रथम तो श्रीराम जन्मभूमि देखने का आकर्षण बना हुआ था, लेकिन जब मैं वहाँ पर गई तो, भक्तों के लिए एक अस्थायी छोटा राम मंदिर देखने को मिला। उसी मंदिर के सकल भक्तिभाव से दर्शन करते समय मुझे राम जन्मभूमि का विस्तीर्ण क्षेत्र दिखाई दिया। लोहे की मजबूत जालियों के पीछे से तेज गति से चलता हुआ मंदिर का निर्माण कार्य देखा जा सकता था। उसके निकट ही एक फैक्ट्री में हो रहे निर्माण कार्य को देखने की अनुमति दी गई थी| सैकड़ों कारीगर अनवरत हस्तशिल्प बनाने में लगे थे| दोस्तों, आज के सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में, अयोध्या में क्या चीजें कहां से आईं, राम की मूर्ति किसने बनाई और तत्सम सभी चीजें हमारे लिए बड़े और छोटे पर्दे पर उपलब्ध होतीं रहीं हैं। परन्तु अगर हम ‘स्थानमहात्म्य’ पर विचार करें, तो जिन भूमिकणों को राम के चरणों ने छुआ है, वहीं धूलिकण हमारे लिए श्रद्धासुमन हैं!

हमें हनुमानगढ़ी, दशरथ महल, कौशल्या महल आदि मंदिरों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ‘हनुमान गढ़ी’ नामक पहाड़ी पर १० वीं शताब्दी में बना हुआ एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। सुघड रूप से निर्मित सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरान्त, हनुमान मंदिर दिखाई देता है।

जानकी महल, अर्थात हमारा आवास सरयू नदी से लगभग 3 किमी दूर था। हममें से कई यात्री रोज बड़े सवेरे पैदल जाकर सरयू नदी में स्नान करने जाते थे| वहाँ ‘राम की पौडी’ नामक घाट है| पुरुषों और महिलाओं के लिए कपडे बदलने की (अलग-अलग) सुविधा उपलब्ध है। इन घाटों पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं की सदैव भीड़ लगी रहती है। जब हम जुलाई २०२२ के पहले सप्ताह में गए, तब भी गर्मी का मौसम जारी था। शायद ही कभी कभार दो बार बारिश हुई हो| ऐसे तपिश भरे वातावरण में भोर के समय सरयू के तट पर चलते हुए, हलके से स्पर्श करने वाली प्रसन्न वायु की लहरें बहुत सुखद एवं शीतल प्रतीत हो रही थीं। सरयू तट का संपूर्ण क्षेत्र श्री रामचन्द्र के निवास से पुण्यशील होने के कारण भक्तिमय हो उठा था| सरयू  के तट पर लक्ष्मण मंदिर (लक्ष्मण घाट यहीं स्थित है,राम के द्वारा त्यागे जाने पर दुःख के सागर में डूबे लक्ष्मण ने अपना नश्वर शरीर यहीं सरयू नदी में प्रवाहित किया था) तथा वहाँ से निकट ही रामचन्द्र घाट है। यहां राम ने अपने शरीर को सरयू के जल में विसर्जित किया था । उनके बाद उनके बंधु-बांधव और प्रजाजनों ने भी जल समाधि ले ली| मित्रों, शरयू नदी में नौकायन (बोटिंग) की सुविधा उपलब्ध है, इस दौरान ही हमने ये दो घाट देखे!

सरयू नदी के पवित्र जल में नौकायन करते समय किनारे के मंदिर अत्यंत रमणीय लगते हैं। नौका में बैठने के बाद ‘धीर समीरे सरयू तीरे’ का अनुभव अमृतसम था। मन श्री राम प्रभु के चिंतन में लीन था| उस तरंगिणी की हर लहर मानों राम नाम की धुन के साथ नौका से टकरा रही थी। उस प्रभात बेला में सुबह सरयू के पवित्र स्पर्श से धन्य हो गई। प्रिय पाठकों, नदी के तट पर हूबहू नासिक के काळाराम मंदिर की तरह राम, सीता और रामबंधुओं का, एक अखंड काली शिला में निर्मित एक बहुत सुंदर बारीकी से तराशा हुआ काळाराम मंदिर देखने को मिला! वहाँ नासिक से आकर यहाँ सरयू के किनारे (श्रीरामप्रभु द्वारा स्वप्न में दिए गए आदेश के अनुसार) यहाँ राम मंदिर का निर्माण करने वाले मराठी पुजारियों के वंशज, दीवारों पर मराठी भाषा में लिखी जानकारी, आदि देखकर मेरा मन गर्व से अभिभूत हो उठा।   

इन प्राचीन मंदिरों के जमघट में बिलकुल अलग प्रकार का एक मंदिर बहुत ही भाया| यह अयोध्या में निर्मित आकर्षक वाल्मिकी मंदिर है, जिसे मन की गहराई में मैंने बड़ी ही सावधानी से  समाहित कर रखा है| यहां न केवल आद्य कवि वाल्मिकी और उनके शिष्य कुश लव की सुंदर, मनमोहक शुभ्र धवल मूर्तियाँ हैं, बल्कि विशाल मंदिर की सफेद संगमरमर की दीवारों पर उकेरी गई सकल वाल्मिकी रामायण और उस उस वर्णित प्रसंग के अनुरूप भित्तिचित्रों का मनमोहक शिल्प कौशल देखते ही बनता है|  मित्रों, यह मंदिर देखकर अति प्रसन्नता का अनुभव हुआ| अयोध्या में गुरु-शिष्यों का यह अलौकिक स्मारक भव्य और अविस्मरणीय है, भले ही यह प्राचीन मंदिर न हो! मंदिर परिसर में देखने लायक अन्य छोटे मंदिर भी हैं। 

और कितने ही मंदिर और अयोध्या के परम पवित्र तीर्थ स्थल की कितनी यादें सँजोकर रखूं! सप्तपुरी में एक पुरी, अयोध्या में बिताए वे मंत्रमुग्ध करने वाले दिन! उनके एक एक क्षण ने जीवन को समृद्ध किया। वहाँ के ऑटो चलाने वाले मुझे बहुत निराले और भले लगे| चाहे यात्री कोई भी हो और वह कहीं भी जा रहा हो, एकाध अपवाद को छोड़कर, उनका शुल्क मात्र प्रति व्यक्ति १० रुपये बताया जाता| उसमें अधिकतम इजाफा होता तो बस १५ रुपये तक! 

जानकी महल परिसर में स्थित शामियाने में राम संकीर्तन का आयोजन किया गया था। सुबह चारुदत्त आफळेजी के कीर्तन में रामकथा की मुख्य कथा सुनकर और उनके मुख से भक्ति गीत और अभंगों का श्रवण कर असीम आनंद का अनुभव हुआ। शास्त्रीय संगीत से सजे सँवरे उनके स्वरों में वे गीत किसी उत्कृष्ट संगीत महोत्सव में उपस्थित रहने की अनुभूति देते थे| कीर्तन में भक्तिरस के साथ ही हास्यरंग का अद्भुत मिलाप करते हुए चारुदत्तजी ने अपने कीर्तन में अनेक सुंदर कथाएँ साझा कीं और उनका गहन अर्थ भी समझाया। साथ ही उपस्थित संपूर्ण भक्त मंडली द्वारा भक्ति भाव से गाए गए ‘नादातुनि या नाद निर्मितो, श्रीराम जय राम जय जय राम’ इस मधुरतम राम संकीर्तन और ताल मृदुंग के साथ गाए जाने वाली सामूहिक आरती भक्ति की पराकाष्ठा का अहसास देती थीं।

संध्या की बेला में श्रीधरजी का गीत रामायण प्रस्तुत होता था! कुछ दिन श्रीधरजी ने रामचन्द्र के भक्ति गीत भी प्रस्तुत किये। साथ ही अपनी संगीत यात्रा के कुछ दिलचस्प किस्से भी साझा किए। अयोध्या के सुरम्य परिवेश में, अयोध्या का चित्रवत वर्णन करने वाला गीत ‘सरयू तीरावरी अयोध्या’ (‘सरयू तट पर बसी अयोध्या),और राम जन्म का अमर  गीत ‘राम जन्मला ग सखी’ (ठाठ देख सखी राम जन्म का) को सुनकर मेरी यात्रा अक्षरशः सम्पूर्ण रूप से सफल हो गई| (आयोजकों ने रचनात्मक अनूठेपन का दर्शन करते हुए इस गीत के साथ प्रशिक्षित कथक नर्तकों द्वारा एक उपयुक्त नृत्य भी प्रस्तुत किया।) श्रीधरजी के साथ कोरस में गाने से तन मन में एक अलग ही ऊर्जा प्रविष्ट हो जाती थी| मन को लुभाने वाली सबसे सुंदर बात थी, दोनों का सुरीला सामंजस्य, जिससे हम भक्तगण रामकथा के कीर्तनरंग और गीतरंग दोनों का पूर्ण आनंद ले सके। कुल मिलाकर इस कार्यक्रम में मुझे जो अनुभूति हुई वह दुर्लभ ही थी। उसके लिए आफळे गुरुजी और श्रीधरजी को सादर प्रणाम और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद! इस उत्कृष्ट स्वर-तीर्थ-यात्रा के आयोजक, नैमिषारण्य के कालीपीठ के संस्थापक एवं कालीपीठाधीश गोपालजी शास्त्री को मेरा व्यक्तिगत धन्यवाद देती हूँ एवं उनका अभिनंदन करती हूँ! दुर्भाग्यवश कार्यक्रम के दौरान उनकी माताजी का निधन हो गया। परन्तु मातृत्व पीड़ा को स्वयं तक सीमित रख गोपालजी ने इस भव्य कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

हे रघुकुलभूषण श्रीराघवेन्द्र! इन शब्दांकुरों के अंत में, अब आपकी प्रार्थना करनी रह गई है! हे कृपासिंधु रामप्रभु, मैं एक बार फिर अयोध्या में आपकी सेवा में शामिल होना चाहती हूँ| सम्पूर्ण रूप से तैयार राम मंदिर और वहाँ प्रस्थापित आपकी सांवली सलोनी मूर्ति को नजर में समा लेना चाहती हूँ! संपूर्ण मंदिर को क्रमशः आंखों की ज्योति में और हृदय के गर्भगृह में उतारना है। तब तक तुलसीदासजी के अमृत से भी मधुर भक्तिमय शब्दों का बारम्बार स्मरण करती हूँ| 

“श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।“

अयोध्यापति श्री राम के चरणों के दर्शन की अदम्य इच्छा समेत यह शब्दकुसुमांजलि उन्हींके चरणकमलों पर अर्पण करती हूँ|  जय श्रीराम!

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 259 ⇒ || तिजारत || ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| तिजारत ||।)

?अभी अभी # 259 || तिजारत || ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कल रेडियो पर एक गीत सुना, बस इतना ही याद रहा, मोहब्बत अब तिजारत बन गई है, तिजारत अब मोहब्बत बन गई है। हिंदी तो खैर हमारी ठीकठाक है, लेकिन उर्दू और इंग्लिश में हमारा हाथ बहुत तंग है। एक भारतीय होकर हम ग्रीक और लेटिन की बात क्यूं करें, लेकिन उर्दू और इंग्लिश हमारे लिए तमिळ और मळयालम से कम भी नहीं। जिसमें उर्दू तो बिल्कुल काला अक्षर भैंस बराबर है। आखिर मातृभाषा, mother tongue और मादरे जुबां में अंतर तो होता ही है। यह अलग बात है कि हमारी मातृ और इनकी मदर एक ही है।

कई ऐसे उर्दू शब्द हैं, जिनका हम अर्थ नहीं जानते। तिजारत भी उनमें से ही एक है। हमें पहले लगा, इबादत को ही तिजारत कहते होंगे, लेकिन हम गलत निकले। इनकी तिजारत तो हमारा व्यापार, व्यवसाय निकली। यानी राजनीति और धर्म की तरह आजकल मोहब्बत भी व्यवसाय हो चली है।।

लेकिन मन ही मन हम खुश भी हुए। आखिर क्या अंतर है, मोहब्बत, इबादत, राजनीति और धर्म में ! सभी तो प्रेम के सौदे हैं।

आपने सुना नहीं ;

ये तो प्रेम की बात है उधो

बंदगी तेरे बस की नहीं है।

यहां सर दे के होते हैं सौदे

आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।।

और उधर हमारे दिलीप साहब, जिंदाबाद जिंदाबाद, ऐ मोहब्बत जिन्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। और गीता में हमारे श्रीकृष्ण कह रहे हैं, सभी धर्मों को त्याग, अर्जुन, मेरी शरण में आ।

उधर मोहब्बत तिजारत की बात हो रही है, और इधर विविध भारती पर भजन चल रहा है ;

राम नाम अति मीठा है

कोई गा के देख ले।

आ जाते हैं राम,

बुला के देख ले।।

आजकल मार्केटिंग का जमाना है। बिना प्रचार के तो कछुआ छाप अगरबत्ती भी नहीं बिकती। यह भी सच है कि हर सौदा सच्चा नहीं होता लेकिन हमें भी ललिता जी की तरह सर्फ वाली समझदारी से ही काम लेना चाहिए।।

प्रचार प्रसार के सच से हम मुंह नहीं मोड़ सकते। यह सच है कि मोहब्बत की तरह अब इबादत भी तिजारत हो गई है। सोचिए, अगर आज इतना सोशल मीडिया, डिजिटल नेटवर्क, संचार के अत्याधुनिक साधन नहीं होते, तो क्या रामकाज इतना आसान होता।

आज घर बैठे हम नेटवर्क के जरिए अयोध्या पहुंच रहे हैं, यह सब भी रामजी की ही कृपा है। आज हमारे रामदूतों का नेटवर्क भी इस रामकाज में पीछे नहीं। जब घर घर पीले चावल पहुंच चुके हैं, तो हर घर और मंदिर में दीप भी प्रज्वलित किए जाएंगे। राम आएंगे, आएंगे, आएंगे।।

ना तिजारत बुरी, ना मोहब्बत बुरी। जब सियासत और इबादत एक हो जाती है, तब ही रामराज्य की स्थापना होती है। कामकाज और रामराज जब साथ साथ चलते हैं, तब ही धर्म की स्थापना होती है, और ग्लोबल नेटवर्क के जरिए, रोम रोम में रामलला विराजमान होते हैं।

जोत से जोत जलाना ही तिजारत है, इबादत है, अपने इष्ट प्रभु राम के प्रति सच्चा प्रेम और समर्पण है। रामजी की निकली सवारी,

राम जी की लीला है न्यारी।

राम लक्ष्मण जानकी,

जय बोलो हनुमान की।

जय श्री राम।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 224 – राम, राम-सा..! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 224 राम, राम-सा..! ?

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,

सहस्त्रनामतत्तुल्यं राम नाम वरानने।

राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, लोकहितकारी हैं। राम एकमेवाद्वितीय हैं। राम राम-सा ही हैं, अन्य कोई उपमा उन्हें परिभाषित नहीं कर सकती।

विशेष बात यह कि अनन्य होकर भी राम सहज हैं, अतुल्य होकर भी राम सरल हैं, अद्वितीय होकर भी राम हरेक को उपलब्ध हैं। डाकू रत्नाकर ने मरा-मरा जपना शुरू किया और राम-राम तक आ पहुँचा। व्यक्ति जब सत्य भाव और करुण स्वर से मरा-मरा जपने लगे तो उसके भीतर करुणासागर राम आलोकित होने लगते हैं।

राम का शाब्दिक अर्थ  हृदय में रमण करने वाला है। रत्नाकर का अपने हृदय के राम से साक्षात्कार हुआ और जगत के पटल पर महर्षि वाल्मीकि का अवतरण हुआ। राम का विस्तार शब्दातीत है। यह विस्तार लोक के कण-कण तक पहुँचता है और राम अलौकिक हो उठते हैं। कहा गया है, ‘रमते कणे कणे, इति राम:’.. जो कण-कण में रमता है, वह राम है।

राम ने मनुष्य की देह धारण की। मनुष्य जीवन के सारे किंतु, परंतु, यद्यपि, तथापि, अरे, पर,  अथवा उन पर भी लागू थे।  फिर भी वे परम पुरुष सिद्ध हुए।

वस्तुतः इस सिद्ध यात्रा को समझने के लिए उस सर्वसमावेशकता को समझना होगा जो राम के व्यक्तित्व में थी। राम अपने पिता के जेष्ठ पुत्र थे।सिंहासन के लिए अपने भाइयों और पिता की हत्या की घटनाओं से संसार का इतिहास रक्तरंजित है। इस इतिहास में राम ऐसे अमृतपुत्र के रूप में उभरते हैं जो पिता द्वारा दिए वचन का पालन करने के लिए राज्याभिषेक से ठीक पहले राजपाट छोड़कर चौदह वर्ष के लिए वनवास स्वीकार कर लेता है। यह अनन्य है, अतुल्य है, यही राम हैं।

भाई के रूप में भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के लिए राघव अद्वितीय सिद्ध हुए। उनके भ्रातृप्रेम का अनूठा प्रसंग हनुमन्नाष्टक में वर्णित है। मेघनाद की शक्ति से मूर्च्छित हुए लक्ष्मण की चेतना लौटने पर हनुमान जी ने पूछा, ‘हे  लक्ष्मण, शक्ति के प्रहार से बहुत वेदना हुई होगी..!’  लक्ष्मण बोले, “नहीं महावीर,  मुझे तो केवल घाव हुआ,  वेदना तो भाई राम को हुई होगी..!’

यह वह समय था जब समाज में बहु पत्नी का चलन था। विशेषकर राज परिवारों में तो राजाओं की अनेक पत्नियाँ होना सामान्य बात थी। ऐसे समय में अवध का राजकुमार, भावी सम्राट ‘एक पत्नी’ व्रत का आजीवन पालन करे, यह विलक्ष्ण है।

शूर्पनखा का प्रकरण हो या पार्वती जी द्वारा सीता मैया का वेश धारण कर उनकी परीक्षा लेने का प्रसंग, श्रीराम की महनीय शुद्धता 24 टंच सोने से भी आगे रही। सीता जी के रूप में पार्वती जी को देखते ही श्रीराम ने हाथ जोड़े और पूछा, “माता आप अकेली वन में विचरण क्यों कर रही हैं और भोलेनाथ कहाँ हैं? “

इसी तरह हनुमान जी के साथ स्वामी भाव न रखते हुए भ्रातृ भाव रखना, राम के चरित्र को उत्तुंग करता है- ‘तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।’

समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना राम के व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है। उनकी सेना में वानर, रीछ, सभी सम्मिलित हैं। गिद्धराज जटायु हों, वनवासी माता शबरी हों, नाविक केवट हो, निषादराज गुह अथवा अपने शरीर से रेत झाड़कर सेतु बनाने में सहायता करनेवाली गिलहरी,  सबको सम्यक दृष्टि से देखने वाला यह रामत्व केवल राम के पास ही हो सकता था। संदेश स्पष्ट है, जो तुम्हारे भीतर बसता है, वही सामने वाले के भीतर भी रमता है।…रमते कणे कणे…!  कण कण में राम को राम ने देखा, राम ने जिया।

भारत के अनेक प्रदेशों में अभिवादन के लिए ‘राम-राम’ कहा जाता है। राजस्थान में  ‘राम राम-सा’ का प्रयोग होता है। लोक के इस संबोधन में एक संदेश छिपा है। राम-सा केवल राम ही हो सकते हैं। सात्विकता से सुवासित जब कोई  ऐसा सर्वगुणसम्पन्न हो कि उसकी तुलना किसी से न की जा सके, अपने जैसा एकमेव आप हो तो राम से श्रीराम होने की यात्रा पूरी हो जाती है। यही राम नाम का महत्व है, राम नाम की गाथा है और रामनाम का अविराम भी है।

राम राम रघुनंदन राम राम,

राम-राम भरताग्रज राम राम।

राम-राम रणकर्कश राम राम,

राम राम शरणम् भव राम राम।।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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आलेख
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 258 ⇒ मेरी झोपड़ी के भाग… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मेरी झोपड़ी के भाग।)

?अभी अभी # 258 ⇒ मेरी झोपड़ी के भाग… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज सभी ओर केवल एक ही स्वर गूंज रहा है, राम आएंगे, राम आएंगे, राम आएंगे, मेरी झोपड़ी के भाग खुल जाएंगे। यह एक भक्त का भाव है, अनन्य भक्ति की पराकाष्ठा है।

अनन्य भक्ति उसे कहते हैं, जहां कोई दूसरा बीच में होता ही नहीं, भक्त और भगवान एक हो जाते हैं।

शाब्दिक रूप से झोपड़ी एक गरीब की होती है और महल एक राजा अथवा किसी अमीर रईस का। जब कभी हममें भी यह अनन्य भाव जाग उठता है तो हम भी अपने आलीशान बंगले को कुटिया कह उठते हैं।।

हमने तो ऐसी आलीशान कोठी भी देखी है, जिसका नाम संतोष कुटी है। पहले संत कुटिया में रहते थे, आजकल कॉटेज का जमाना है। असली भक्त भी वही, जिसे अपना विशाल भवन भी गरीबखाना ही लगे।

हमारे इष्ट मर्यादा पुरुषोत्तम अगर अयोध्या के राम हैं, तो केवट, निषाद, वानर और शबरी के लिए वे एक वनवासी राम हैं, राम, लखन, और सीता का अगर वनवास नहीं होता, तो ना तो रावण का वध होता और ना ही भक्त यह कह पाते ;

राम, लछमन, जानकी

जय बोलो हनुमान की।

राम की अनन्य भक्ति के केवल दो ही प्रतीक हैं, जो हर भक्त के लिए आदर्श हैं। एक शबरी और दूसरे रामभक्त हनुमान। अपने इष्ट की प्राप्ति एक जन्म में नहीं होती। अपने आराध्य के दर्शन के लिए शबरी ने कितने जन्मों तक इंतजार किया होगा। पत्थर की अहिल्या में प्रभु श्रीराम के केवल पाद स्पर्श से ही प्राणों का संचार हो गया।।

भक्ति का पहला सोपान है, भक्त की अस्मिता और अहंकार का नष्ट होना।

लेकिन यह भी केवल प्रभु कृपा से ही संभव है। राम क्या इतने पक्षपाती हैं कि वे केवल शबरी की झोपड़ी में ही आएंगे और मेरे दो बेडरूम किचन के फ्लैट में नहीं आएंगे। प्रभु तो प्रेम के भूखे हैं और शायद इसीलिए शबरी के जूठे बेर में उन्हें वही रस आता है जो द्वापर के श्रीकृष्ण को विदुर के साग में आया होगा।

यह एक भक्त का अनन्य भाव ही है कि वह अपनी भौतिक उपलब्धियों को तुच्छ मानकर अपने विशाल निवास को एक झोपड़ी के रूप में ही प्रस्तुत करता है। वह यह भी जानता है एक भक्त सुदामा जब अपनी कुटिया से एक मुट्ठी चावल लेकर अपने अनन्य मित्र द्वारकाधीश श्रीकृष्ण से मिलने जाता है, तो केवल एक मुट्ठी चावल से उसके भाग जाग जाते हैं।।

वह तो घट घट व्यापक अंतर्यामी निर्गुण और निराकार होते हुए भी एक भक्त की भावना के अनुरूप सगुण साकार हो उठता है ;

जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ;

अगर आपकी भावना प्रबल है तो आप जैसे भी हैं, जहां भी हैं, झोपड़ी, कुटिया, कॉटेज, सरकारी क्वार्टर, बंगला अथवा केवल चित्त शुद्ध, तो अयोध्या के राम, आएंगे, आएंगे, जरूर आएंगे।

काश हमारा भाव भी राम भक्त हनुमान समान ही होता जहां ;

मेरे मन में राम

मेरे तन में राम

मेरे रोम रोम में राम हैं।

जय श्री राम

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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