डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ धीर समीरे सरयू तीरे ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

राम राम पाठकगण!

२०२२ के राम नवमी के शुभ दिन पर ठाणे के ‘राम गणेश गडकरी सभागार’ में ‘गीत रामायण’ का आवर्तन जारी था। ‘आधुनिक वाल्मिकी’ के नाम से नवाजे जाने वाले ग. दि. माडगूळकर अर्थात ग दि मा के कालजयी शब्द, स्वरतीर्थ सुधीर फडके अर्थात बाबूजी का स्वर्गीय संगीत और उनकी गीत-संगीत की सुरीली विरासत को आगे बढ़ाने वाले उनके सुपुत्र श्रीधर फडके के स्वर! हम सभी के कंठ और हृदय में समाहित यहीं गीत था, ‘सरयू तीरावरी अयोध्या, मनूनिर्मित नगरी’! अर्थात ‘सरयू तट पर बसी अयोध्या, मनु निर्मित नगरी” (प्रिय पाठकों, मराठी के प्रसिद्ध गीतकाव्य गीत रामायण के समस्त ५६ गीतों का शब्द-अर्थ और भाव समेत सुन्दर अनुवाद किया है गीत रामायण के हिंदी संस्करण में श्री दत्तप्रसाद द जोग ने! इस हिंदी संस्करण की मैं जितनी भी तारीफ करूँ कम है क्योंकि, सारे गीतों के बोल ऐसे रचे गए हैं कि, बाबूजी द्वारा संगीतबद्ध किये हुए मराठी गानों की तरह ये हिंदी गीत भी वैसे ही हूबहू गाये जा सकते हैं! कवी जोगजी के इस महनीय कार्य को मेरा विनम्र अभिवादन) मित्रों, यह पहली बार नहीं था कि, मैंने इस गीत को तन्मयता से सुनकर मैंने अपने हृदय में समाहित कर लिया!

‘सामवेदसे बाळ बोलती,

सर्गामागुन सर्ग चालती

सचीव, मुनिजन, स्त्रिया डोलती,

आंसवे गाली ओघळती’

कुश लव रामायण गाती’

(‘साम-वेद-से बोले बालक, सर्ग-सर्ग से कहें कथानक सचीव, मुनिजन, श्रोता भावुक, समूचे बिसरे हैं भवभान कुश लव रामायण गीत-गान)

हर बार दर्शकों की जैसे यह अवस्था होती है, वैसे ही उस दिन भी थी| लेकिन तभी (जब ऐसा लग रहा था कि, यह ना हो) मध्यांतर हो गया| इसी अंतराल में श्रीधरजी के भावुक शब्द अचानक किसी ‘दिव्य वाणी’ की तरह कानों में गूंजने लगे, “मैं जुलाई २०२२ में अयोध्या में गीत रामायण प्रस्तुत करूंगा! सरयू तट पर आप लोग आइये और मेरा साथ दीजिये कोरस में!” यह सुनकर मैं तो अंतर्बाह्य रोमांचित हो उठी| स्वप्न में, गीतों में और पुस्तकों में मैंने कल्पना की हुई अयोध्या, जिसका कण-कण राम के वास्तव्य से पुनीत हुआ है, सरयू नामक सरिता के तट पर मनु (प्रथम मानव) द्वारा बनाई गई वह भव्य दिव्य नगरी अयोध्या, जहां राम का आदर्श ‘रामराज्य’ वास्तव में साकार हुआ था! तन मन और ह्रदय में यह छबि संजोकर रखने का अनोखा अवसर मिलेगा, आंखों में सम्पूर्ण प्राणज्योति को प्रज्वलित कर इस नगरी का दर्शन करुँगी और श्रीधरजी के मुख से कानों में अमृत रस घोलने वाला ‘गीत रामायण’ सुनूंगी। इसे तो मणि कंचन योग ही कहना चाहिए! लेकिन मित्रों, इस अमृतमय संयोग में और भी मिठास घुलने वाली थी। इसी अवधि के दौरान, वरिष्ठ गायक और कीर्तनकार श्री चारुदत्त आफळे अपने रामकीर्तन से अयोध्या के अवकाश को भक्तिमय करने वाले थे। अब और क्या चाहिए था! जब सब कुछ मन माफिक चल रहा था, तब अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई, मेरा कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया! अब तो मेरे होश उड़ गए| लेकिन डॉक्टर से सलाह लेने के बाद मुझे एहसास हुआ कि, ट्रेन छूटने के एक दिन पहले ही मेरा कोरोना का ‘एकान्तवास’ ख़त्म होने वाला था| मन ही मन में मैं रामनाम का जाप कर रही थी| कोरोना ने भेंट की हुई कमजोरी के लिए यहीं एक ‘रामबाण’ औषधि थी।

पाठकों, यात्रा के निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नैमिषारण्य, प्रयागराज और काशी की हमारी यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई, रात करीबन १२ बजे हमने अयोध्या में कदम रखा। तीर्थ स्थल के अनुरूप एक काफी बडी संरचना ‘जानकी महल’ में हमें हमारे आरक्षित कमरों में प्रवेश दिया गया| सुबह-सुबह वहाँ की  भित्तिचित्रों पर चित्रित राम के जीवन के विभिन्न दृश्यों तथा राम सीता, लक्ष्मण और हनुमान के नयनाभिराम मंदिरों को देखकर रात की थकान कहीं दूर भाग गई। धीरे-धीरे यात्रा का टाइम टेबल समझ में आने लगा । सुबह सात्विक अल्पाहार, उसके तुरन्त बाद, चारुदत्तजी द्वारा कीर्तन और संध्या समय को श्रीधरजी द्वारा गीत रामायण जैसे बहुआयामी रामसंकीर्तन, भजन, नाम स्मरण और गायन ऐसा कसा हुआ भव्य सत्संग कार्यक्रम था।

जय रघुनंदन जय सियाराम, हे दुखभंजन तुम्हें प्रणाम ||

भ्रात भ्रात को हे परमेश्वर, स्नेह तुन्ही सिखलाते |

नर नारी के प्रेम की ज्योति, जग मे तुम्ही जलाते |

ओ नैया के खेवन हारे, जपूं मै तुम्हरो नाम |१ |

मोहम्मद रफ़ी एवं आशा भोसले के भक्तिरस में डूबे हुए ये शब्द मन में गुंजायमान हो रहे थे! राम नाम संकीर्तन के सुबह और शाम के घंटों को छोड़कर, मैंने और मेरी सहेली ने जितना संभव हो, उतना अयोध्या दर्शन का लाभ उठाने का फैसला किया। इधर जानकी महल के प्रवेश द्वार पर तैनात सुरक्षा गार्ड प्रभु की तरह मददगार सिद्ध हुआ  उसके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मंदिरों और सरयू की यात्रा का दौर प्रारम्भ हुआ। आयोजकों ने कुछ स्थानों के निःशुल्क दर्शन भी करवाए। पाठकों, लगभग छह दिनों तक वहाँ रहकर कुछ देखा और कुछ रह गया (मुख्यतः नंदीग्राम)। लेकिन संतुष्टि इस बात की थी कि, हम अयोध्या में थे ! सर्वप्रथम तो श्रीराम जन्मभूमि देखने का आकर्षण बना हुआ था, लेकिन जब मैं वहाँ पर गई तो, भक्तों के लिए एक अस्थायी छोटा राम मंदिर देखने को मिला। उसी मंदिर के सकल भक्तिभाव से दर्शन करते समय मुझे राम जन्मभूमि का विस्तीर्ण क्षेत्र दिखाई दिया। लोहे की मजबूत जालियों के पीछे से तेज गति से चलता हुआ मंदिर का निर्माण कार्य देखा जा सकता था। उसके निकट ही एक फैक्ट्री में हो रहे निर्माण कार्य को देखने की अनुमति दी गई थी| सैकड़ों कारीगर अनवरत हस्तशिल्प बनाने में लगे थे| दोस्तों, आज के सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में, अयोध्या में क्या चीजें कहां से आईं, राम की मूर्ति किसने बनाई और तत्सम सभी चीजें हमारे लिए बड़े और छोटे पर्दे पर उपलब्ध होतीं रहीं हैं। परन्तु अगर हम ‘स्थानमहात्म्य’ पर विचार करें, तो जिन भूमिकणों को राम के चरणों ने छुआ है, वहीं धूलिकण हमारे लिए श्रद्धासुमन हैं!

हमें हनुमानगढ़ी, दशरथ महल, कौशल्या महल आदि मंदिरों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ‘हनुमान गढ़ी’ नामक पहाड़ी पर १० वीं शताब्दी में बना हुआ एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। सुघड रूप से निर्मित सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरान्त, हनुमान मंदिर दिखाई देता है।

जानकी महल, अर्थात हमारा आवास सरयू नदी से लगभग 3 किमी दूर था। हममें से कई यात्री रोज बड़े सवेरे पैदल जाकर सरयू नदी में स्नान करने जाते थे| वहाँ ‘राम की पौडी’ नामक घाट है| पुरुषों और महिलाओं के लिए कपडे बदलने की (अलग-अलग) सुविधा उपलब्ध है। इन घाटों पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं की सदैव भीड़ लगी रहती है। जब हम जुलाई २०२२ के पहले सप्ताह में गए, तब भी गर्मी का मौसम जारी था। शायद ही कभी कभार दो बार बारिश हुई हो| ऐसे तपिश भरे वातावरण में भोर के समय सरयू के तट पर चलते हुए, हलके से स्पर्श करने वाली प्रसन्न वायु की लहरें बहुत सुखद एवं शीतल प्रतीत हो रही थीं। सरयू तट का संपूर्ण क्षेत्र श्री रामचन्द्र के निवास से पुण्यशील होने के कारण भक्तिमय हो उठा था| सरयू  के तट पर लक्ष्मण मंदिर (लक्ष्मण घाट यहीं स्थित है,राम के द्वारा त्यागे जाने पर दुःख के सागर में डूबे लक्ष्मण ने अपना नश्वर शरीर यहीं सरयू नदी में प्रवाहित किया था) तथा वहाँ से निकट ही रामचन्द्र घाट है। यहां राम ने अपने शरीर को सरयू के जल में विसर्जित किया था । उनके बाद उनके बंधु-बांधव और प्रजाजनों ने भी जल समाधि ले ली| मित्रों, शरयू नदी में नौकायन (बोटिंग) की सुविधा उपलब्ध है, इस दौरान ही हमने ये दो घाट देखे!

सरयू नदी के पवित्र जल में नौकायन करते समय किनारे के मंदिर अत्यंत रमणीय लगते हैं। नौका में बैठने के बाद ‘धीर समीरे सरयू तीरे’ का अनुभव अमृतसम था। मन श्री राम प्रभु के चिंतन में लीन था| उस तरंगिणी की हर लहर मानों राम नाम की धुन के साथ नौका से टकरा रही थी। उस प्रभात बेला में सुबह सरयू के पवित्र स्पर्श से धन्य हो गई। प्रिय पाठकों, नदी के तट पर हूबहू नासिक के काळाराम मंदिर की तरह राम, सीता और रामबंधुओं का, एक अखंड काली शिला में निर्मित एक बहुत सुंदर बारीकी से तराशा हुआ काळाराम मंदिर देखने को मिला! वहाँ नासिक से आकर यहाँ सरयू के किनारे (श्रीरामप्रभु द्वारा स्वप्न में दिए गए आदेश के अनुसार) यहाँ राम मंदिर का निर्माण करने वाले मराठी पुजारियों के वंशज, दीवारों पर मराठी भाषा में लिखी जानकारी, आदि देखकर मेरा मन गर्व से अभिभूत हो उठा।   

इन प्राचीन मंदिरों के जमघट में बिलकुल अलग प्रकार का एक मंदिर बहुत ही भाया| यह अयोध्या में निर्मित आकर्षक वाल्मिकी मंदिर है, जिसे मन की गहराई में मैंने बड़ी ही सावधानी से  समाहित कर रखा है| यहां न केवल आद्य कवि वाल्मिकी और उनके शिष्य कुश लव की सुंदर, मनमोहक शुभ्र धवल मूर्तियाँ हैं, बल्कि विशाल मंदिर की सफेद संगमरमर की दीवारों पर उकेरी गई सकल वाल्मिकी रामायण और उस उस वर्णित प्रसंग के अनुरूप भित्तिचित्रों का मनमोहक शिल्प कौशल देखते ही बनता है|  मित्रों, यह मंदिर देखकर अति प्रसन्नता का अनुभव हुआ| अयोध्या में गुरु-शिष्यों का यह अलौकिक स्मारक भव्य और अविस्मरणीय है, भले ही यह प्राचीन मंदिर न हो! मंदिर परिसर में देखने लायक अन्य छोटे मंदिर भी हैं। 

और कितने ही मंदिर और अयोध्या के परम पवित्र तीर्थ स्थल की कितनी यादें सँजोकर रखूं! सप्तपुरी में एक पुरी, अयोध्या में बिताए वे मंत्रमुग्ध करने वाले दिन! उनके एक एक क्षण ने जीवन को समृद्ध किया। वहाँ के ऑटो चलाने वाले मुझे बहुत निराले और भले लगे| चाहे यात्री कोई भी हो और वह कहीं भी जा रहा हो, एकाध अपवाद को छोड़कर, उनका शुल्क मात्र प्रति व्यक्ति १० रुपये बताया जाता| उसमें अधिकतम इजाफा होता तो बस १५ रुपये तक! 

जानकी महल परिसर में स्थित शामियाने में राम संकीर्तन का आयोजन किया गया था। सुबह चारुदत्त आफळेजी के कीर्तन में रामकथा की मुख्य कथा सुनकर और उनके मुख से भक्ति गीत और अभंगों का श्रवण कर असीम आनंद का अनुभव हुआ। शास्त्रीय संगीत से सजे सँवरे उनके स्वरों में वे गीत किसी उत्कृष्ट संगीत महोत्सव में उपस्थित रहने की अनुभूति देते थे| कीर्तन में भक्तिरस के साथ ही हास्यरंग का अद्भुत मिलाप करते हुए चारुदत्तजी ने अपने कीर्तन में अनेक सुंदर कथाएँ साझा कीं और उनका गहन अर्थ भी समझाया। साथ ही उपस्थित संपूर्ण भक्त मंडली द्वारा भक्ति भाव से गाए गए ‘नादातुनि या नाद निर्मितो, श्रीराम जय राम जय जय राम’ इस मधुरतम राम संकीर्तन और ताल मृदुंग के साथ गाए जाने वाली सामूहिक आरती भक्ति की पराकाष्ठा का अहसास देती थीं।

संध्या की बेला में श्रीधरजी का गीत रामायण प्रस्तुत होता था! कुछ दिन श्रीधरजी ने रामचन्द्र के भक्ति गीत भी प्रस्तुत किये। साथ ही अपनी संगीत यात्रा के कुछ दिलचस्प किस्से भी साझा किए। अयोध्या के सुरम्य परिवेश में, अयोध्या का चित्रवत वर्णन करने वाला गीत ‘सरयू तीरावरी अयोध्या’ (‘सरयू तट पर बसी अयोध्या),और राम जन्म का अमर  गीत ‘राम जन्मला ग सखी’ (ठाठ देख सखी राम जन्म का) को सुनकर मेरी यात्रा अक्षरशः सम्पूर्ण रूप से सफल हो गई| (आयोजकों ने रचनात्मक अनूठेपन का दर्शन करते हुए इस गीत के साथ प्रशिक्षित कथक नर्तकों द्वारा एक उपयुक्त नृत्य भी प्रस्तुत किया।) श्रीधरजी के साथ कोरस में गाने से तन मन में एक अलग ही ऊर्जा प्रविष्ट हो जाती थी| मन को लुभाने वाली सबसे सुंदर बात थी, दोनों का सुरीला सामंजस्य, जिससे हम भक्तगण रामकथा के कीर्तनरंग और गीतरंग दोनों का पूर्ण आनंद ले सके। कुल मिलाकर इस कार्यक्रम में मुझे जो अनुभूति हुई वह दुर्लभ ही थी। उसके लिए आफळे गुरुजी और श्रीधरजी को सादर प्रणाम और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद! इस उत्कृष्ट स्वर-तीर्थ-यात्रा के आयोजक, नैमिषारण्य के कालीपीठ के संस्थापक एवं कालीपीठाधीश गोपालजी शास्त्री को मेरा व्यक्तिगत धन्यवाद देती हूँ एवं उनका अभिनंदन करती हूँ! दुर्भाग्यवश कार्यक्रम के दौरान उनकी माताजी का निधन हो गया। परन्तु मातृत्व पीड़ा को स्वयं तक सीमित रख गोपालजी ने इस भव्य कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

हे रघुकुलभूषण श्रीराघवेन्द्र! इन शब्दांकुरों के अंत में, अब आपकी प्रार्थना करनी रह गई है! हे कृपासिंधु रामप्रभु, मैं एक बार फिर अयोध्या में आपकी सेवा में शामिल होना चाहती हूँ| सम्पूर्ण रूप से तैयार राम मंदिर और वहाँ प्रस्थापित आपकी सांवली सलोनी मूर्ति को नजर में समा लेना चाहती हूँ! संपूर्ण मंदिर को क्रमशः आंखों की ज्योति में और हृदय के गर्भगृह में उतारना है। तब तक तुलसीदासजी के अमृत से भी मधुर भक्तिमय शब्दों का बारम्बार स्मरण करती हूँ| 

“श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।“

अयोध्यापति श्री राम के चरणों के दर्शन की अदम्य इच्छा समेत यह शब्दकुसुमांजलि उन्हींके चरणकमलों पर अर्पण करती हूँ|  जय श्रीराम!

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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