हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 155 ☆ भारत का भाषा गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – भारत का भाषा गीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 155 ☆

☆ भारत का भाषा गीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

भाषा सहोदरा होती है, हर प्राणी की

अक्षर-शब्द बसी छवि, शारद कल्याणी की

नाद-ताल, रस-छंद, व्याकरण शुद्ध सरलतम

जो बोले वह लिखें-पढ़ें, विधि जगवाणी की

संस्कृत सुरवाणी अपना, गलहार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

असमी, उड़िया, कश्मीरी, डोगरी, कोंकणी,

कन्नड़, तमिल, तेलुगु, गुजराती, नेपाली,

मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, बोडो, उर्दू

पंजाबी, बांगला, मराठी सह संथाली

​’सलिल’ पचेली, सिंधी व्यवहार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

ब्राम्ही, प्राकृत, पाली, बृज, अपभ्रंश, बघेली,

अवधी, कैथी, गढ़वाली, गोंडी, बुन्देली,

राजस्थानी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, मालवी,

भोजपुरी, मारिया, कोरकू, मुड़िया, नहली,

परजा, गड़वा, कोलमी से सत्कार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

शेखावाटी, डिंगल, हाड़ौती, मेवाड़ी

कन्नौजी, मागधी, खोंड, सादरी, निमाड़ी,

सरायकी, डिंगल, खासी, अंगिका, बज्जिका,

जटकी, हरयाणवी, बैंसवाड़ी, मारवाड़ी,

मीज़ो, मुंडारी, गारो मनुहार करें हम

हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

देवनागरी लिपि, स्वर-व्यंजन, अलंकार पढ़

शब्द-शक्तियाँ, तत्सम-तद्भव, संधि, बिंब गढ़

गीत, कहानी, लेख, समीक्षा, नाटक रचकर

समय, समाज, मूल्य मानव के नए सकें मढ़

‘सलिल’ विश्व, मानव, प्रकृति-उद्धार करें हम

हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-८-२०१६, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #207 – 93 – “इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं…”)

? ग़ज़ल # 93 – “इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हमने राज़े मुहब्बत छुपा कर देख लिया,

दिलवर से दिल भी लगा कर देख लिया। 

इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं,

मुहब्बत में दिल भी ठगा कर देख लिया।

हम दुनियावी लेनदेन में हमेशा कच्चे रहे,

हमने ग़मों का हिसाब लगाकर देख लिया।

बस एक ही  मुदावा बचा बीमार के पास,

चुप को उसने  गले लगा कर देख लिया।

दिलजोई में  जो थे  हमारे हमराज़ कभी,

उन्हें भी हमने ग़ैर  बना कर देख लिया।

आँसू बचा कर क्या हुआ हासिल ‘आतिश’

सबने तुम्हें भी खूब रुला कर देख लिया। 

दिल की हमारी झोली रही ख़ाली की ख़ाली,

खुद को ग़म समुंदर में डुबा कर देख लिया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पल-पल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – पल-पल ? ?

छोटी-सी थी

कितनी बड़ी हो चली है,

बूँद-सी लगती थी

धारा बन बह चली है,

जीवन की गति पर

आश्चर्य जता रहा था,

दर्पण में दिखती

अपनी उम्र से बतिया रहा था,

आश्चर्य पर हँस पड़ी वह

कुछ यूँ कहने लगी वह,

धीमे चलने, पिछड़ जाने

का सोग जीवन भर रहा,

आगमन-गमन की घटती दूरी पर

कभी चिंतन ही न हुआ,

बीता कल, आता कल,

कल हुआ हरेक पल,

भूत,भविष्य की चर्चा में

हाथ से निकला हर पल,

यह पल यथार्थ है

यह पल भावार्थ है

इस पल को साँसों में उतार लो

इस पल को रक्त में निचोड़ लो

अन्यथा दर्पण हमेशा है,

बढ़ती उम्र हमेशा है,

कल होता पल हमेशा है,

और बातूनी तो

तुम हमेशा से हो ही..!

© संजय भारद्वाज 

प्रातः 7:19 बजे, 01.01.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माधव साधना- 11 दिवसीय यह साधना  बुधवार दि. 6 सितम्बर से शनिवार आज 16 सितम्बर तक चलेगी💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र होगा- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 83 ☆ मुक्तक ☆ हिन्दी दिवस विशेष – ॥ हमारी मातृ भाषा हिन्दी ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 83 ☆

☆ मुक्तक ☆ हिन्दी दिवस विशेष – ॥ हमारी मातृ भाषा हिन्दी ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हिन्दी   में  भरा      रस    माधुर्य, कवित्व   और         मल्हार    है।

हिन्दी में     भाव  और  संवेदना, अभिव्यक्ति      भी     अपार  है।।

हिन्दी में ज्ञान     और   विज्ञान, दर्शन का    अद्धभुत  समावेश।

हिन्दी भारत  का      विश्व  को, कोई अनमोल       उपहार   है।।

[2]

बस  एक  हिन्दी    दिवस   नहीं, हर दिन   हो हिन्दी    का   दिन।

विज्ञान  की   भाषा  भी   हिन्दी, ज्ञान तो  है  नहीं  हिन्दी     बिन।।

मातृ भाषा , राज  भाषा   हिन्दी, है उच्च सम्मान  की  अधिकारी।

तभी राष्ट्र  करेगा   सच्ची उन्नति, कार्यभाषा हिंदी हो हर पलछिन।।

[3]

मातृ   भाषा   का   दमन   नहीं, हमें  करना      होगा       नमन।

पुरातन मूल्य      संस्कारों   की, ओर   करना     होगा      गमन।।

बनेगी तभी   भारत     वाटिका, अनुपम    अतुल्य       अद्धभुत।

जब  देश  में  हर ओर   बिखरा, होगा      हिन्दी       का   चमन।।

[4]

हिन्दी   का   सम्मान     ही  तो, देश का    गौरव  गान     बनेगा।

मातृ  भाषा  के   उच्च   पद  से, ही  राष्ट्र    का       मान   बढेगा।।

हिन्दी  तभी      बन      पायेगी, भारत  मस्तक       की   बिन्दी।

जब राष्ट्र    भाषा   का  ये   रंग, हर   किसी   मन पर      चढ़ेगा।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 147☆ बाल गीतिका से – “अपना भारत” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “अपना भारत…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ बाल गीतिका से – “हमारा देश” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सागर में पथ दिखलाने को ज्यों ध्रुव तारा है ।

जो भटके राही का केवल एक सहारा है ॥

 इस दुनिया के बीच चमकता देश हमारा है।

 हम इसमें जन्मे इससे यह हमको प्यारा है ॥

हम सब भारतवासी हैं इसकी प्यारी सन्तान

सबमें स्नेह भावना है हम सब हैं एक समान

दुनिया भर में इसकी सबसे शोभा न्यारी है।

पर्वत, नदी, समुद्र, खेत सुन्दर हर क्यारी है ॥

यह ही है वह देश जहाँ जन्मे थे राघव राम ।

प्रेम, त्याग औ’ न्याय, धर्म हित थे जिनके सब काम ॥

 यह ही है वह देश जहाँ पर है वृन्दावन धाम ।

 जहाँ बजी थी मुरली औ’ थे रमे जहाँ घनश्याम ॥

यह ही है वह देश जहाँ जन्मे थे बुद्ध महान् ।

सारी दुनिया को प्रकाश दे सका कि जिनका ज्ञान ॥

 यहीं हुये गाँधी जिनने पाई हिंसा पर जीत ।

जो उनका दुश्मन था वह भी था उनको तो मीत ॥

अनुपम है यह देश प्रकृति ने जिसे दिया सब दान ।

महात्माओं ने ज्ञान और ईश्वर ने भी सन्मान ॥

हम इसके सुयोग्य बेटे बन रखे इसकी शान ।

हमें शक्ति वरदान आज इतना दीजे भगवान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्रावणी आभाळ… ☆ श्री राजकुमार कवठेकर ☆

श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ श्रावणी आभाळ… ☆ श्री राजकुमार कवठेकर ☆

किती दिसांनी भेटले

     तुझे श्रावणी आभाळ

पुसे वळ, निवे धग

     पुन्हा ओहोटली कळ

 

भेगाळल्या दिवसांचे

         ‌‌झाले घनदाट रान

पंचप्राणात निष्प्राण

          लागे खळाळू जीवन

 

किती दिसांनी भेटले

     तुझे आभाळ श्रावणी

आता उदंडले सुख

     जिणे झाले आबादानी

© श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

संपर्क : ओंकार अपार्टमेंट, डी बिल्डिंग, शनिवार पेठ, आशा  टाकिज जवळ, मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हिंदी दिवस पर एक गीत – हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ ☆ डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ☆

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन। वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा संस्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी द्वारा रचित हिंदी दिवस पर एक गीत “हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ“।) 

 ☆ हिंदी दिवस पर एक गीत – हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ ☆ डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ☆

अपनेपन की मिसरी घोले मीठे बोल सुहाएं।

हिदी बोलें, पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।

संस्कृत है वटवृक्ष राष्टृ की फैली सरल जटाएँ

असमी, उड़िया, गुजराती औ मलयालम भाषाएँ

तमिल, तेलगू, कन्नड़, बांग्ला सुंदर-सी शाखाएँ

सब में मधु घोला है सारी अमृत ही बरसाएँ

इनको छोड़ पराई माई कैसे गले लगाएँ.

अपनी भाषा पढ़ेँ, लिखेँ औ उसको ही सरसाएँ।।

जहाँ किसी ने अपनी माँ का आदर नहीं किया है

कहो कहाँ पर गरल अयश का उसने नहीं पिया है

गौरव मिलता उसी वीर को जिसने माँ का मान किया

माँ की खातिर खुद को जिसने हँस-हँस के कुर्बान किया

अपनी माँ  ठुकराकर कैसे गीत और के गाएँ?

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

अपनी आज़ादी की खातिर अपनी ही भाषाएँ

लड़ने वाले वीरों के हित करती रहीं दुआएँ

और बाँचती रहीं सदा ही उनकी अमर कथाएँ

अंग्रेज़ी ने कब आँकी हैं जन-मन की पीड़ाएँ

फिर क्यों इतनी ममता उससे, क्योंकर मोह दिखाएँ ?

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

अपनी सरिता का जल पीते, अपना अन्न उगाते

अपनी धरती का हर कोना फ़सलों से लहराते

अपनी भाषाएँ हैं अपनी परम पुनीत ऋचाएँ

अपनेपन की हो सकती हैं इनसे ही आशाएँ

अब तो और नहीं इंग्लिश की फैलें जटिल लताएँ।

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

©  डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत, गुजरात

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ??

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

 X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y + Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y)2 = X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

© संजय भारद्वाज 

संध्या 7.35 बजे, 13.9.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माधव साधना- 11 दिवसीय यह साधना  बुधवार दि. 6 सितम्बर से शनिवार 16 सितम्बर तक चलेगी💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र होगा- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #199 ☆ हिन्दी दिवस विशेष – हिन्दी – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं राजभाषा दिवस पर आधारित एक कविता हिन्दी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 199 – साहित्य निकुंज ☆

☆ राजभाषा दिवस  विशेष – हिन्दी  डॉ भावना शुक्ल ☆

अक्षर  -अक्षर  जोड़कर, बनते शब्द महान।

शब्द- शब्द से हुआ है, ग्रंथों का निर्माण।।

 

हिन्दी में हम जी रहे, हिन्दी में है शान।

हिन्दी सबसे मधुर है, हिन्दी है पहचान।।

 

दूर देश में हो रहा, हिन्दी का सम्मान।

हिन्दी में सब बोलते, हिन्दी बड़ी महान।।

 

हिन्दी हिंदुस्तान के, करे दिलों पर राज।

चमक रहा है भाल पर, है बिंदी का ताज।।

 

हिन्दी को अब मिल रहा, बड़ा बहुत ही मान।

हिंदी भाषा प्रेम की, मिलता है सम्मान।।

 

तुलसी सूर कबीर को, मिला बहुत ही नाम।

उनके ही साहित्य पर, हुआ बड़ा ही काम ।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #184 ☆ हिन्दी दिवस विशेष – संतोष के दोहे – “हिंदी” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – “हिंदी”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 184 ☆

☆ संतोष के दोहे  – “हिन्दी” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

हिंदी बोलो गर्व से, हिंदी हिन्दुस्तान

हम सबका बढ़ता सदा, हिंदी से ही मान

हिंदी हिय में राखिये, करके ऊँचा माथ

रखें कभी मत हीनता, हिंदी जब हो साथ

नमस्कार सब कर रहे, विश्व पटल पर आज

हिंदी सब को जोड़ती, करिये उस पर नाज़

पखवाड़े में सिमट कर, हिंदी करे पुकार

सीमित मुझे न कीजिये, करिये अब विस्तार

निज भाषा मत छोड़िये, यह अपनी पहचान

अंगेजी के रोब से, उबरो अब श्रीमान

अंग्रेजी के आपने, खूब पखारे पाँव

हिंदी से दूरी रखी, उसे छोड़ कर गाँव

हिंदी भाषा प्रेम की, हिंदी अपना धर्म

संस्कार पोषित करे, हिंदी से सब कर्म

बने राष्ट्रभाषा सपदि, सबकी यह दरकार

जल्दी से इस बात पर, निर्णय ले सरकार

मिले मान- सम्मान सब, हिंदी से संतोष

हिंदी का आदर करें, बिन खोजे ही दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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