हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 24 – प्रेमालाप ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘प्रेमालाप । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 24  – विशाखा की नज़र से

☆ प्रेमालाप  ☆

 

प्रेम तू मुझे दोपहर की तपिश देना

भोर का चला जब तू अपने चरम पर होगा

पलटकर नई यात्रा पर आतुर होगा

इनके मध्य का तू क्षण देना

प्रेम तू मुझे अपनी दोपहर देना

 

प्रेम तू खिलना पुष्प की तरह मेरे भीतर

बीज, पौध, कली के सफ़र से

जब तू प्रफुल्ल हो पुष्प बनेगा

तब खिलकर बिखरने के मध्य का क्षण देना

प्रेम तू  अपना सम्पूर्ण देना

 

प्रेम तू तरंगित होना सस्वर मुझमें

सप्तसुरों से कई राग छेड़ना

बस सा से सा के बीच आलाप  में

तू पंचम  का स्वर बने रहना

प्रेम तू पावस  – पूरित – पुकार  देना

 

प्रेम, अबकी जब पूस की रात में

हल्कू संग जबरा ठंड में कातर

घुटना छाती से चिपकाये डटे होंगे

तब मैं दोपहर की तपिश बन

पंचम स्वर से जाडा साधुगी

खड़ी फसल का गीत गाऊँगी

समर्पित हो जाऊँगी

प्रेम, तब भी तू होना मेरे संग

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #5 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #5 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

अपना भी होवे भला, भला जगत का होय ।

जिससे सबका हो भला, शुद्ध धरम है सोय ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email lifeskills.happiness@gmail.com if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सौंदर्य और प्रेम ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  सौंदर्य और प्रेम)

सौंदर्य और प्रेम  

सौंदर्यबोध

मन के प्रेम का चित्रण अबोध

आंखों के कैनवास पर

मन की तूलिका उकेरती

प्रीति की रीति, स्नेह की नीति

और वात्सल्य की पाती।।

सौंदर्य परिभाषा

उभरती प्रेम की भाषा

आंखों और मन की सँवरती पुतलियों में!!

मां की आंखों में

काला कलूटा बेटा

कान्हा श्यामसुंदर है

और बालक के मन में शूर्पणखा

सी मां

जग से न्यारी है सबसे प्यारी है – – –

सौंदर्य और प्रेम और कुछ नहीं

मन और आंखों का आशीष है–

दिल में बसा ईश है और प्रेम हर एक के हदय में बसा प्रेम मंदिर है।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार -2 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – विचार – 2

तुम सहमत मत होना

मेरे विचार से,

यदि हो भी जाओ

तो मत करना समर्पण,

बचा रखना

झीनी-सी अंतररेखा..,

अंतररेखा के

इस पार मैं

उस पार तुम,

चिंतन करना

मनन करना

मंथन करना,

मेरे-तुम्हारे

विचारों की बिलोई

उत्पन्न करेगी नया आविष्कार..,

आविष्कार उस आग का

जो चकमक के

आपसी घर्षण से

जन्मती है और सचमुच

गलानेे लगती है दाल,

सेंकने लगती है रोटियाँ;

उन अर्थों में नहीं

जिन्हें मुहावरों के आवरण में

बदनाम कर रखा है शब्दकोशों ने,

आग से सचमुच

भरता है भूख का कुआँ

बुझती है पेट की आग..,

इस आग को

सदैव जलाये और

जिलाए रखना मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज

(गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017, प्रातः 9 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य 0अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 27 ☆ वक्त ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की एक भावपूर्ण कविता  “ वक्त ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 27 ☆

☆ वक्त  ☆

चलने लगी पुरवाइयाँ हैं

खलने लगी तनहाइयाँ हैं

 

झूठ जब भी आया सामने

उड़ने लगी हवाईयां हैं

 

वक्त कुछ ऐसा भी आया

साथ न अब परछाइयाँ हैं

 

दर्द से हम गुजरे इस तरह

अब चुभती शहनाइयाँ हैं

 

अब संभल चलो ज़माने से

हरतरफ अब रुसवाईयाँ हैं

 

हम दिल को समझायें कैसे

“संतोष”बड़ी परेशानियाँ हैं

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #4 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #4 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

अपने अपने कर्म के, हम ही तो करतार । 

अपने सुख के दु:ख के, हम ही जिम्मेदार ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज  इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता  “पानी “ का अंग्रेजी अनुवाद  Thoughts…” शीर्षक से ।  हम कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी  हैं  जिन्होंने  इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )
☆ संजय दृष्टि  – विचार

मेरे पास एक विचार है

जो मैं दे सकता हूँ

पर खरीदार नहीं मिलता,

फिर सोचता हूँ

यों भी विचार के

अनुयायी होते हैं

खरीदार नहीं,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज

(गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017, प्रातः 9 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य 0अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 36 ☆ दो किनारे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “दो किनारे “।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 36 – साहित्य निकुंज ☆

☆ दो किनारे

है ये जिंदगी के दो किनारे

साथ है प्रकृति के नजारे

बढ़ते जा रहे हैं गंतव्य की ओर।

मिलन की है, आतुर प्रतीक्षा

मिलन नहीं, है उनकी परीक्षा

होता है दुःख

पर है साथ रहने का सुख।

चाहते है ठहराव

पर

मिलेगी नहीं ठांव

प्रकृति है इसकी गवाह

ये पर्वत श्रृंखलाएं

दे रही है प्यार का संदेश

हरे भरे वृक्ष

और ये फिजाएं

मान रहे आदेश

चल रहे है सभी

एक ही दिशा

है सिर्फ यही आशा

कभी तो मिलेंगे किनारे

होंगे एक दूजे के सहारे।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ मेरे ज़रूरी काम ☆ – डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

(डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी जी  लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ, बालकथा, बोधकथा, लेख, पत्र आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं.  आपकी रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. हम अपेक्षा करते हैं कि हमारे पाठकों को आपकी उत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर पढ़ने को मिलती रहेंगी. आज प्रस्तुत है मानव दर्शन (Human Philosophy) पर आधारित एक सार्थक कविता “मेरे ज़रूरी काम”.)

 

☆ मेरे ज़रूरी काम☆ 

 

जिस रास्ते जाना नहीं

हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं

उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है

वही कोई और करे – मूर्ख है – कह देता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर

कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

मेरे कदमों के निशां पे है जो चलता

उसे अपने हाथ पकड कर चलाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

और

 

मेरे कदमों के निशां पे जो ना चलता

उसकी मंज़िलों कभी खामोश, कभी चिल्लाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

मैं कौन हूँ?

मैं मैं ही हूँ।

लेकिन मैं-मैं न करो ऐसा दुनिया को बताता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) – 313 002

ईमेल:  chandresh.chhatlani@gmail.com

फ़ोन: 9928544749

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #3 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

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जब तक मन में राग है, जब तक मन में द्वेष ।

तब तक दुख ही दुःख है, मिटे न मन के क्लेश।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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