हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राजभाषा मास विशेष – हिंदी पर अभिमान मुझे ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता ☆ राजभाषा मास विशेष – हिंदी पर अभिमान मुझे ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

हिन्द देश के हिंदी भाषा, हिंदी पर  अभिमान मुझे।

हर दिल की धड़कन है हिंदी, जगत में इसे सम्मान मिले।।

 

देश का गौरव, भविष्य की आशा, जनता की भाषा हिंदी।

जैसे सुहागन के मस्तक पर, गौरव की सजती बिंदी।।

 

हम सबने अपनी वाणी से, हिंदी का रूप तराशा है।

जान बने हिंदी भाषा, यही मेरी अभिलाषा है।।

 

कबीर दास ने अपनाकर, मीरा ने इसे मान दिया।

आज़ादी के हम दीवाने, हिंदी को सम्मान दिया।।

 

फिर भी क्यों हम कतराते, हिंदी में परिचय देने से।

क्यों छोटा हम खुद को समझते, हिंदी में बातें करने से।।

 

अरे! क्यों सोचो अंग्रेजी बोलेंगे, तभी बनेंगे महान हम।

क्यों भूल जाते है हर पल, कि गर्वीले हिन्दुस्तानी है हम।।

 

क्यों करते है सम्मान हिंदी का, केवल 14 सितंबर को ही हम।

क्यों करते रहते है हर पल, हिंदी का अपमान हम।।

 

क्यों करते है, 14 सितंबर को ही, हिंदी बचाओ अभियान की बातें हम।

क्यों देते अंग्रेजी में नोटिस, आज के दिन हिंदी में हम।।

 

अरे! क्यों भूल गए कि इस अंग्रेजी ने ही  बनाया वर्षों तक गुलाम हमें।

हिंदी भाषा वीर प्रसूता, जिसने दी जीवन रेखा और काल जीत की सौगात हमें।।

 

रिश्ते नाम के अर्थ बदल रहे, देशी घी को बटर बोल रहे।

मात-पिता, मोम डैड हो गए, बाकी सब रिश्ते आंटी अंकल हो गए।।

 

दोस्तो, अंत में.. मैं सिर्फ दो पंक्तियां और कहना चाहती हूं।

कलम रोककर शब्दों को अब आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ।।

 

हिंदी भाषा का संरक्षण और हिफाज़त चाहती हूँ।

हिंदी भाषा का संरक्षण और हिफाज़त चाहती हूँ।।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राजभाषा मास विशेष – हिन्दी ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

 

☆ कविता ☆ राजभाषा मास विशेष – हिन्दी ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

मेरी प्यारी मातृभाषा है हिंदी,

हम सबकी दुलारी है हिंदी…

 

रिश्तों की मर्यादा सिखाती है हिंदी…

बड़े छोटे का रिश्ता समझाती है हिंदी…

बड़ों को सम्मान छोटों को दुलार सिखाती है हिंदी

अपनेपन  का भाव दर्शाती है हिंदी…

 

संस्कृत से जन्मी बड़ी सरल है हिंदी…

अलग अलग संस्कृति का समावेश है हिंदी…

हर शब्द का विशेष अर्थ रखती है हिंदी…

व्याकरण की गरिमा दिखाती है हिंदी…

 

हिंदुस्तान की पहचान है हिंदी…

जनजन की आवाज़ है हिंदी…

ईश्वर की प्रार्थना है हिंदी…

माँ की मधुर वाणी है हिंदी…

 

गर्व है हमें कि हमको आती है हिंदी…

मेरे व्यक्तित्व की पहचान है हिंदी…

मेरी मातृभाषा है हिंदी…

मेरा अभिमान, स्वाभिमान है हिंदी…

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

14-09-2022

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#150 ☆ कविता – हार जीत का प्रश्न नहीं है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय कविता “हार जीत का प्रश्न नहीं है…”)

☆  तन्मय साहित्य # 150 ☆

☆ कविता – हार जीत का प्रश्न नहीं है ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कौन गलत है कौन सही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

आप सतत निगरानी में हैं

उसकी सत्य कहानी में हैं

आकर्षक इस रंगमंच पर

शक्ल नई अनजानी में हैं,

सोचा! कभी स्वयं की कब

परछाई खुद से अलग रही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

 

खुद होकर कोईं कब बोले

भेद न कोईं अपने खोले

समय, तराजू लिए खड़ा है

साँच-झूठ पल-पल का तोले,

सबकी करतूतों के अपने

अपने खाते और बही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

 

खुश है मन तो कभी विकल है

मछली की भांति चंचल है

मृग मरीचिकाओं से मोहित

चलती रहे सदा हलचल है,

जीवन के सच से अबोध

ये राग-द्वेष सुख-दुख सतही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है

कौन गलत है कौन सही है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 38 ☆ लोरी – सो जा – सो जा गजराज… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण लोरी  “सो जा – सो जा गजराज… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 37 ✒️

? लोरी   – सो जा – सो जा गजराज… — डॉ. सलमा जमाल ?

सोजा, सोजा, गजराज शंकर के ललना ।

तुझे पार्वती माता झुलाये पलना ।।

 

भुजायें छोटी-छोटी सूंढ़ है प्यारी ,

नेत्र हैं विशाल मूस की सवारी ,

प्रथम पूज्य की नहीं किसी से तुलना।

सो जा ——————————- ।।

 

इक हाथ हैगी, दूजे में फ़रसा सजा ,

तीजे में कंज ,चौथे में लड्डू धरा ,

सारे देवता मिलके डुलावें  बिजना ।

सो जा —————————— ।।

 

माथे अर्धचन्द्र ,मोती -मांणिक जड़े ,

लम्बोदर कहाते , दयावंत हैं बड़े ,

भूतगणांधि खींचें तुम्हारा झुलना ।

सो जा —————————– ।।

 

पाप हरो मेरे , भक्त हूं तुम्हारी ,

पूर्ण करो इकदन्त मनोरथ हमारी ,

अपने पराये चाहें मुझको छलना ।

सो जा —————————- ।।

 

विश्वकर्मा जी लाये चन्दन पलना ,

लताओं की डोरी जामुन फुन्दना ,

भगवती भी करतीं तुम्हारी वन्दना ।

सो जा —————————– ।।

 

अर्पण करे ‘सलमा ‘ सिंदूर फूल कपूर ,

प्रसाद में लायी गणपति को मोतीचूर ,

साक्षात् दर्शन से कब होगा मिलना ।

सो जा —————————— ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – salmakhanjbp@gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 50 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है   “मनोज के दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 50 – मनोज के दोहे …. 

1 अंतर्मन

अंतर्मन में नेह का, बिखरे प्रेम प्रकाश।

मानव जीवन सुखद हो, हर मानव की आश।।

2 ऊर्जा

शांति प्रेम सौहार्द को, सच्चे मन से खोज।

भारत की ऊर्जा यही, मन में रहता ओज।।

3 वातायन (खिड़की)

उर-वातायन खुली रख, ताने नया वितान।

जीवन सुखमय तब बने, होगा सुखद विहान।।

4 वितान (टेंट )

अंतर्मन की यह व्यथा, किससे करें बखान।

फुटपाथों पर सो रहे, सिर पर नहीं वितान।।

5 विहान(सुबह)

खड़ा है सीना तानकर, भारत देश महान।

सदी बीसवीं कह रही, होगा नवल विहान।।

6 विवान (सूरज की किरणें)

अंधकार को चीर कर,निकले सुबह विवान

जग को किया प्रकाशमय, फिर भी नहीं गुमान।। 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिलोकी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – त्रिलोकी ??

मैं क्या हूँ,

कौन हूँ,

किसलिए हूँ धरा पर?

जाने कितने

फेरे करा चुकी

तीन प्रश्नों की

यह त्रिलोकी..?

© संजय भारद्वाज

12.9.2022, प्रातः 4:35 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेम भाव प्रार्थना ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेम भाव प्रार्थना ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-राग छंद)

प्रेम भाव रख सभी चलो, सदा चलो ।

हिय सदा प्रमाण दें बढ़े चलो, गढ़े चलो ।।

कामना रखें हृदय सदैव प्रीत हो ।

दीप सा जला करें प्रकाश मीत हो ।।1!!

 

जिंदगी नवीन प्रार्थना प्रभाव हो ।

आज हो नहीं कुभाव प्रीत चाव हो ।।

राग द्वेष आज भूलना न घाव हो  ।

लग रहे तुणीर बंदगी सुझाव हो ।।2!!

 

रागनी सुभाल में विराज आज हो ।

सादगी सुभाव कामना सुकाज हो ।।

साधना प्रयास आज जो सुमाथ हो ।

जीतना सुजान हार रख न साथ हो ।।3!!

 

सत्य राह जीत बन सुभाल ज्ञान है ।

शूल जाल सब बिछा बना विधान है ।।

जाति भाव भेद तोड़ आज कामना ।

बोलना मिठास लें  सुझाव प्रार्थना ।।4!!

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 105 – गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 105 – गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का✍

यदि मैं करता हूं शब्दों का उच्चारण।

सपनों का संबंध सत्य से हो जाता

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

अधर अधीन हुए थे लेकिन लक्ष्मण रेखा बन गया अहम

संदेहों के  लाक्षागृह      में साध लिया साधुओं ने संयम।

 

मैं समझा तुम खोज रहे हो संकोच शिफ्ट प्रश्नों का हल

किंतु दहकती रही कामना लुप्त रहा उत्तर का मृग जल।

 

तृष्णा का संबंध तृप्ति से हो जाता

यदि मैं करता संकेतों  का निर्धारण

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

आकांक्षा की आंख खोलकर आकर्षण ने आँजा काजल।

लेकिन विकल वयस्क दृष्टि को ज्ञात नहीं था यह सारा छल।

 

 साँस हुई  मीरा सी तन्मय ध्यान तुम्हारा आठ  प्रहर

मुग्धा थी,  बावरी हो  गई तन्मयता ने पिया  जहर।।

 

आँखों का अनुबंध रुप से हो जाता

तुम विशेष से हो जाते तब साधारण ।।

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 107 – “कई कठिनाइयों ने…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कई कठिनाइयों ने…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 107  ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कई कठिनाइयों ने”|| ☆

कुछ परेशानियाँ लेकर

उधार आया हूँ

साथ में मोल, दिक्कतें

दो चार  लाया हूँ

 

मुश्किलों का मुझे

बाजार में मिला ठेका

कई कठिनाइयों ने

वादा किया आने का

 

कुछेक काँटों के गुजरा

हूँ मोड़ से बेशक

कई छालों का गुमशुदा

विचार लाया हूँ

 

यहा सहूलियत से

मिलती हैं समस्यायें

आपको चाहिये तो

कृपा कर यहाँ आयें

 

लिखा था झूठ फर्म

के नियोन बोर्डों पर

उन्हीं से माँग कर

घटिया प्रचार लाया हूँ

 

रहे परिवार यहाँ कई

हजार रोगों के

कोई कहता ये तजुर्वे

है कई लोगों के

 

वो कि जिनको उदास

रहने की ही आदत है

उन्हें मायूसियाँ ही

खुशगवार लाया हूँ

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-08-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्वास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विश्वास ??

रोज़ रात

सो जाता हूँ

इस विश्वास से कि

सुबह उठ जाऊँगा,

दर्शन कहता है-

साँसें बाकी हैं;

सो उठ पाता हूँ,

मैं सोचता हूँ

विश्वास बाकी है

सो उठ जाता हूँ..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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