डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 105 – गीत – यदि मैं करता कुछ शब्दों का✍

यदि मैं करता हूं शब्दों का उच्चारण।

सपनों का संबंध सत्य से हो जाता

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

अधर अधीन हुए थे लेकिन लक्ष्मण रेखा बन गया अहम

संदेहों के  लाक्षागृह      में साध लिया साधुओं ने संयम।

 

मैं समझा तुम खोज रहे हो संकोच शिफ्ट प्रश्नों का हल

किंतु दहकती रही कामना लुप्त रहा उत्तर का मृग जल।

 

तृष्णा का संबंध तृप्ति से हो जाता

यदि मैं करता संकेतों  का निर्धारण

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

आकांक्षा की आंख खोलकर आकर्षण ने आँजा काजल।

लेकिन विकल वयस्क दृष्टि को ज्ञात नहीं था यह सारा छल।

 

 साँस हुई  मीरा सी तन्मय ध्यान तुम्हारा आठ  प्रहर

मुग्धा थी,  बावरी हो  गई तन्मयता ने पिया  जहर।।

 

आँखों का अनुबंध रुप से हो जाता

तुम विशेष से हो जाते तब साधारण ।।

यदि मैं करता कुछ शब्दों का उच्चारण।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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