हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #168 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 168 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – भावना के दोहे… ☆

खड़ी सुंदरी द्वार पर, लिए हाथ में सूप।

बालों मे गजरा बंधा, सुंदर दिखता रूप।।

 

पीड़ा मन की आज तक, बांच सका है कौन।

मनवा है बैचेन तो, हूँ अब तक मैं मौन।।

 

आपस में बातें करें, है जीवन अनमोल ।

तेरी मेरी बात का, बस इतना है मोल।।

 

आंखे तेरी बोलती, उनमें बड़ा सवाल।

तू कहना क्या चाहता, पूछ रहे हो हाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #154 ☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “प्रेम। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 154 ☆

प्रेम ☆ श्री संतोष नेमा ☆

प्रेम  से  बचकर   कहाँ  जाइएगा

जहां   जाइएगा    वहीं   पाइएगा

सृष्टि के कण-कण में है पिरोहित

कैसे     इसे   अब   ठुकराइयेगा

प्रेम ही मीरा प्रेम  राधा है

जिन्होंने प्रेम को साधा है

प्रेम सूर प्रेम ही तुलसी है

रामायण भी प्रेम गाथा है

जब तक प्रेम की प्यास जिंदा है

तब तक  चहकता हर परिंदा है

प्रेम  से रिक्त है  जिसका  हृदय

संतोष   वही  आज  शर्मिंदा  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – फ्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – फ्रेम ??

हरेक का हर फ्रेम

नाक़ामयाब निकला,

हर बार मेरा किरदार

आउट ऑफ फ्रेम निकला..!

© संजय भारद्वाज 

9:50 रात्रि, 8 फरवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “ऐतबार  

? ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

हम उन्हें अपना बनाने

      में  ही  मसरूफ रहे,

और वो, हमें गैरों में

      शुमार  करने  लगे…

 

जो थकते नहीं थे कभी,

      नाम  लेते  हमारा

देखकर हमें वो  अब

      रास्ता बदलने लगे हैं

 

ये  जमाने  का  चलन  है

      या फितरत आदमी  की,

जो भरोसेमंद होते थे कभी,

      गिरगिट से बनते जा रहे हैं…

 

ऐतबार किस पर करूं मैं

      और क्यों करूं, तू ही बता,

वो रहमोदिली का बेरहम

      सा अंज़ाम देते जा रहे हैं…!

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 146 ☆ वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 146 ☆

वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

वेदवाणी माँ सभी का

आप ही जीवन सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दूर हो अज्ञान सब ही

आप संशय को मिटा दो।

जगत की करके भलाई

हर तमिस्रा को हटा दो।

 

तेज से परिपूर्ण कर दो

दुर्गणों से आप तारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

आप ही सद्बुद्धि देना

विश्व का कल्याण करना।

मन , हृदय में प्रेम भरकर

नव सुरों की तान भरना।

 

पाप, कष्टों से बचाकर

आप जीवन को सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दुःख सारे दूर कर दो।

कीर्तियों से आप भर दो।

मूर्खता, आलस्य, जड़ता

आदि सब अज्ञान हर दो।

 

आप हो ऐश्वर्यशाली

हर बुराई आप मारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – दास्तां ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

☆ गीत – दास्तां ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

रहे दास्तां यदि जीवित तो,पाती तब वह मान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,

जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी,

दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

धन-दौलत मत करो इकट्ठा,

कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा,

तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,पा लेनी पहचान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

शानोशौकत नहीं काम की,

चमक-दमक में क्या रक्खा

वहीं जानता सेवा का फल,

जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ,यही आज अरमान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #168 – तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “अपनी निजता खो रहा…”)

☆  तन्मय साहित्य  #168 ☆

☆ तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… 

चौपालें  चौपट  हुई,   ठंडे  पड़े  अलाव।

लुप्त हुई पगडंडियाँ, बढ़े सड़क के भाव।।

पहनावे  के  संग में,  लगे बदलने  लोग।

खेती-बाड़ी छोड़ कर, जोड़-तोड़ उद्योग।।

खेत खले बिकने लगे, नव फैशन की चाल।

घुसे  शहर के सेठिये,  शातिर चतुर दलाल।।

अब ना कोयल की कुहुक, ना कौवों की काँव।

नहीं  रही  अमराइयाँ, बड़ – पीपल  की  छाँव।।

रोजगार  की खोज  में, चले  शहर की ओर।

चकाचौंध से दिग्भ्रमित,भटके युवक किशोर।।

अपनी निजता खो रहा, ग्राम्य-प्रेम पहचान।

सूख  रहा  रस  प्रीत का, रिश्तों का  उद्यान।।

प्रेमपगा सम्मान सुख, अनुशासित परिवार।

छूट गया वह गाँव-घर,  जहाँ  प्रेम  रसधार।।

हँसी ठिठौली दिल्लगी,  किस्से गल्प तमाम।

राम – राम  भुले सभी,  अभिवादन के नाम।।

काँकरीट सीमेंट सँग, दिल भी हुए कठोर।

मीठे वचनों  की जगह,  तू-तू  मैं-मैं  शोर।।

पनघट अब सूने हुए, बड़-पीपल की छाँव।

मिटे  नीम  जंगल कटे,  बदल गए हैं गाँव।।

बूढ़ा   बरगद   ले  रहा,  अंतिम  साँसें   आज।

फिर होगा नव-अंकुरण, प्रमुदित मन के साज।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 54 ☆ ग़ज़ल – मेरा साया जुदा हो गया… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल “मेरा साया जुदा हो गया…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 54 ✒️

?  ग़ज़ल – उन्वान – मेरा साया जुदा हो गया…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

?

आज वह बेवफ़ा हो गया ।

मेरा साया जुदा हो गया ।।

?

प्यार की जिसने खाई  क़सम ।

वो आज मुझसे ख़फ़ा हो गया ।।

?

सामने रखा जब आईना ।

 ज़िन्दा रहना सज़ा हो गया ।।

?

आंधियों में भी जलते रहे ।

इन चिराग़ों को क्या हो गया।।

?

मैंने जुगनू को सूरज कहा ।

 वोह तभी से ख़फ़ा हो गया ।।

?

मौत से हो गया सामना ।

फ़र्ज़ सलमा अदा हो गया ।।

?

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “खामोशी” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “खामोशी” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

खामोशी की भी एक कहानी है

उसकी भी एक जुबानी है

कहती है सब बिना कहे

समझती है सब बिना सुने।

 

जिसे दर्द है निगाहों का

खामोशी बने मरहम दिल का

जिसे है नशा जिंदगी का

खामोशी जहर है उसका।

 

खामोशी मेरी बहुत जिंदा है

चलाती यादों का कारवां है

मुझसे सब कुछ बोल तो देती है

मगर मेरी कुछ सुनती नहीं है।

 

और उधर है तुम्हारी खामोशी

बन बैठी है एक आदत पुरानी

जैसे जलती है कोई बाग सुहानी

बनी है जैसे मेरे मौत की निशानी।

 

मगर ठीक है,

खामोशी तो खामोशी सही

है आखिर वह भी एक जुबानी

उसी बहाने कुछ तो सुनाती हो

शुक्र है,

चिता नहीं जिंदा जलाती हो।

 

© श्री आशिष मुळे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 68 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 68 – मनोज के दोहे  ☆

फसल खड़ी है खेत में, चिंता करे किसान।

पल-पल आँख निहारती, बैठा हुआ मचान ।।

सोना उगता खेत में, कृषक बने धनवान।

श्रम की सुखद शिला यही, मिले सदा सम्मान।।

कृषक बदलता जा रहा, ट्रैक्टर कृषि संयंत्र।

इन उपकरणों से रचा, जागृति का नवमंत्र।।

कुसुम खिलें जब बाग में, बहती नवल बयार।

मुग्ध हो रहे लोग सब, बाग हुए गुलजार ।।

बसंत ऋतु की पाहुनी, स्वागत करें मनोज।

बाग बगीचे खेत में, दिखता चहुँ दिश ओज।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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