हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #175 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 175 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

मिल गई मंजिल मुझको, नहीं मिटा है प्यार ।

इश्क अधूरा है नहीं, सुन लो मेरे  यार।।

जीवन  की दहलीज पर,सुन लो मेरे मित्र ।

करना पूरा इश्क है, बना लिया है चित्र।।

कर लो मुझसे प्यार तुम, मन मेरा बेचैन ।

नहीं अधूरा इश्क़ है, मिल जाएगा  चैन।।

जब भी तुझको देखती, बहती हैं जलधार।

सजन अधूरा इश्क़ है, कर लो मुझसे प्यार।।

तपन बहुत है नयन में, ठंडक दे दो राम ।

इश्क अधूरा ना रहे, आ जाओ तुम धाम।।

सच्ची मेरी दोस्ती, नहीं करो तकरार।

इश्क अधूरा ना रहे, बुन लो धागे चार।।

इश्क अधूरा ही सही ,सुन लो मेरे मीत।

मन में तुम बसती गई, जीवन का संगीत।।

किया है वादा तुमसे, मुकरना नहीं आप।

इश्क अधूरा ना रहे, आ जाओ चुपचाप।।

अधूरा इश्क़ सह रहे, सुनो तुम दास्तान।

कुछ तो तरस तुम करना, बच जाए  इंसान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #162 ☆ एक पूर्णिका – “चलो वक्त के साथ चलो…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर बाल गीत – चलो वक्त के साथ चलो”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 162 ☆

☆ एक पूर्णिका – “चलो वक्त के साथ चलो…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 

—————-

चलो  वक्त के साथ चलो

ले  हाथों   में  हाथ  चलो

दामन झूठ का  छोड़ कर

सदा  सत्य के  साथ चलो

गर  बढ़ना  तुमको   आगे

कर्मठता  के   साथ  चलो

गर   पाना   मोती  तुमको

पकड़ तली का हाथ चलो

कभी  रहें  न भाग्य भरोसे

लेकर  तुम  पुरुषार्थ  चलो

गुनाहों  से  बच  कर रहना

थाम  धर्म  का  हाथ  चलो

मिले  न  कुछ  आसानी से

तुम  संतोष  के  साथ चलो

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 62 ☆ हनुमान प्राकट्य दिवस विशेष – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)…… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्र पर्व पर आपकी एक कविता – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 62 ✒️

?  हनुमान प्राकट्य दिवस विशेष – बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली)✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – salmakhanjbp@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आज ??

अपने शब्दकोश से

निष्कासित कर दिया

मैंने एक शब्द…’कल’..,

फिर वह बीता कल हो

या आता कल..,

अब केवल अपना

आज जीता हूँ,

यही कारण है;

बीते और आते कल का

आनंदरस भी पीता हूँ…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:44 बजे, 01/04/2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 154 ☆ बाल कविता – आर्यन और अनवी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 154 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और अनवी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आर्यन जी नाना हैं कहते

       अनवी कहती हैं जी नानू।

दोनों ही नाना के प्यारे

      प्राण छिड़कते उन पर नानू।।

 

दोनों करते खेल निराले

         भागें – दौड़ें इधर – उधर को।

निश्छल, सरल, सहज है जीवन

        खुशियों से भर देते घर को।।

        

अनवी जी टीचर बन जातीं

   आर्यन जी हैं पढ़नेवाले।

ट्वन्टी तक गिनती वे बोलें

     ए,बी,सी,डी अ ,आ आले।।

 

कभी बनाते घर गत्ते के

        कभी बने वे स्वयं डॉक्टर।

कभी सफर करते हैं बस में

        कभी करें एरोप्लेन पर।।

 

बचपन के भी सपन सलोने

        बचपन तो लगता चिड़ियाघर।

अनवी भोली, आर्यन नटखट

      वे कभी झगड़ते खूब मगर।।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #176 – तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… )

☆  तन्मय साहित्य  #176 ☆

☆ तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

यश-अपयश के बीच में, बहती जीवन धार।

निश्छल मन करता रहे,  जीव मात्र से प्यार।।

अति वर्जित हर क्षेत्र में, अति का नशा विचित्र।

अति से  दुर्गति ही  सदा,  छिटके सभी सुमित्र।।

कब बैठे सुख चैन से, नहीं  किसी को याद।

कल के सुख की चाह में, आज हुआ बर्बाद।।

फुर्सत मिलती है कहाँ, सबके मुख यह बोल।

बीते  समय  प्रमाद में,  कहाँ समय का मोल।।

फैल रही चारों तरफ, यश की मुदित बयार।

पेड़ सहेगा क्यों भला, म्लान पुष्प का भार।।

ज्यों-ज्यों खिलता पुष्प है, महके रस स्वच्छंद।

रसिक भ्रमर  मोहित  हुए,  पीने को  मकरंद।।

कागज के सँग कलम का, है अलिखित अनुबंध।

प्रीत  पगी   स्याही  मिले,  महके   शब्द   सुगंध।।

                    

आदर्शों की  बात अब,  करना है  बेकार।

छल-छद्मों से घिर गए, हैं आचार-विचार।।

सजा मिले सच बोलते, झूठों की जय कार।

हवा  भाँपकर  जो चले, उसका  बेड़ा  पार।।

जाति धर्म औ’ पंथ के, भेदभाव  को  त्याग।

समता भावों में छिपा, जीवन-सुख अनुराग।।

चिह्न  समय की  रेत पर, बनते मिटते मौन।

पल-पल परिवर्तन करे, वह अबूझ है कौन।।

कौन भरे रस नारियल, सरस संतरे, आम।

एक बीज हो सौ गुना, है ये किसका काम।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 02 ☆ समय है भारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समय है भारी…।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 02 ☆ समय है भारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

बहुत भीतर तक

समंदर हुआ दूषित

मछलियों पर समय है भारी।

 

किनारों पर बैठकर

रोती लहर है

ज्वार भाटे से डरा

सारा शहर है

 

हवाओं के नम

हुए चेहरे प्रकंपित

झलकती हर ओर लाचारी।

 

मनुजता की लाश पर

गिद्ध मँडराते

तटों पर की साजिशें

जलयान थर्राते

 

यात्रा के पाँव

ठहरे से अचंभित

मंजिलों के ठाँव सरकारी।

 

गुंबदों वाले महल

हैं नाम जिनके

नदी मुड़ती है वहीं

हर घाट जिनके

 

धार है मँझधार

जल सारा प्रदूषित

नाव ढोती व्यथाएँ सारी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ महावीर जयंती विशेष – “हे ! महावीर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ महावीर जयंती विशेष – “हे ! महावीर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

( महावीर जयंती 4 अप्रैल)

महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

राजपाठ तुमने सब त्यागा,करने जग कल्याण।

हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। 

जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता,तुम करुणा की जीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। 

नवल चेतना,उजियारे से, किया पाप-अवसान।। 

तुमने चोखा साधक बनकर,दिया हमें नवनीत। 

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया।

मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। 

त्यागी तुम-सा और न देखा,खोजा बहुत अतीत। 

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, 

महावीर तुम,इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। 

कर्म सिखाया,सदाचार भी,तुम हो भावातीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – khare.sharadnarayan@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जल संरक्षण… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ जल संरक्षण… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

जल की कीमत सब करें, जल ही जीवन आज ।

बूँद-बूँद संचित जहाँ, हुए पूर्ण सब काज ।।1!!

जल जीवनदायक सदा, औषधि है गुणखान ।

जल से ही तो कल सजे, पुलकित हृदय सुजान ।।2!!

एक बूँद अनमोल है, करिए इसका भान ।

जीवन शुभ मंगल बना, करते रोग निदान ।।3 !!

जीव तृप्ति साँसें अमर, बन संचित अभिज्ञान ।

जल से पृथ्वी पर रहे, हर जीवन सुखमान ।।4!!

बसुंधरा शृंगार कर, करती जग कल्याण ।

तृप्त सुधा मन का अमृत, जीव जंतु दे त्राण ।।5!!

चक्र पूर्ण कर जिंदगी, करता नीर निर्वाह ।

श्रम कण बन बरसे श्रमिक, पूरी हो हर चाह ।।6!!

जल विहीन जग जब रहे, त्राहि-त्राहि हो प्राण ।

बिन जल के होते विकल, क्रंदन छिदते वाण ।।7!!

जल संरक्षण सब करें, जल बिन हो मृतप्राय ।

इसको दूषित मत करो, खोजें नित्य उपाय ।।8!!

जल जीवन आधार है, यौवन दे संसार ।

मनुज अमृत बनकर प्रदा, कुंदन सुरभित धार ।।9!!

स्वच्छ नीर अनिवार्यता, जीव जगत वरदान ।

पाकर इसको संतुष्ट हो, करे रोग अवसान ।।10!!

☆ 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

(दोहा कलश (जिसमें विविध प्रकार के दोहा व विधान है) के लिए मो 8435157848 पर संपर्क कर सकते हैं ) 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना “दिखती कलियुग मार…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆

दिखती कलियुग मार, जींमते दोने में।

पड़े वृद्ध माँ-बाप, तिरस्कृत कोने में।।

 

सपन-सुनहरे देख, खपा दी उमर सभी,

निकल न पाया सार, व्यर्थ अब रोने में।

 

त्रेतायुग की याद, दिलों में है बसती ,

श्रवण हुए गुमराह, लगे अब सोने में।

 

आँखें खोलो जगो, समय की बलिहारी,

कृपा करो भगवान, पाप को धोने में ।  

 

संस्कृति है बदनाम, करें पुण्य-कमाई,

मत जग करो प्रलाप, स्वजन के होने में।

 

श्रम से होती सुखद,  निरोगी मन-काया,

सुखद मिलेगी फसल, बीज के बोने में।

 

सेवा-मेवा-श्रेष्ठ, समझना हम सबको,

पड़ती चाबुक मार, समय को खोने में।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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