हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (76-79)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (76 – 79) ॥ ☆

सर्गः-13

अनुज सहित श्रीराम फिर जब पुष्पक-आसीन।

लगे कि बुध गुरू साथ है चंद्र मेघ-आसीन।।76।।

 

की सीता पद वन्दना, कर जिनका उद्धार।

राम लाये वाराहवत् जल से धरा उबार।।77अ।।

 

अथवा जैसे चंद्रमा को वर्षो के बाद।

करता मेघों से शरद है बिलकुल आजाद।।77ब।।

 

सीता माँ के चरण छू भरत जटा निष्पाद।

हुये परस्पर और भी पावन अपने आप।।78।।

 

जन समूह संचरित था जिन आगे थे राम।

पहुँचे उपवन अयोध्या पट-प्रासाद ललाम।।79।।

 

तेरहवां सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#123 ☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – “दोहे ” ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ “दोहे ”)

☆  तन्मय साहित्य  #123 ☆

☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – “दोहे ” ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मात-पिता की लाड़ली, बच्चों का है प्यार।

संबल है पति की सखी, सुखी करे संसार।।

 

लक्ष्मी बन  घर में भरे, मंदिर जैसे  रंग।

होता है श्री हीन नर, बिन नारी के संग।।

 

इम्तिहान हर डगर पर, मातृशक्ति के नाम।

विनत भाव सेवा करे,  हो करके निष्काम।।

 

घर में गृहणी बन रहे,  बाहर है  तलवार।

जब जैसी बहती हवा, वैसी उसकी धार।।

 

नारी को समझें नहीं, कोई भी कमजोर।

नारी  के ही  हाथ में, पूरे  जग  की डोर।।

 

जीवन के  हर  क्षेत्र  में, है  विशिष्ट  अवदान।

मातृशक्ति नित गढ़ रही, नित नूतन प्रतिमान।।

 

करुणा  ममता  प्रेम का, मधुरिम सा  संचार।

निर्मल जल कल-कल बहे, बहता ऐसा प्यार।।

 

पर्वोत्सव व्रत-धर्म का,  पारम्परिक प्रवाह।

नारी के बल पर टिकी, ये सत्पथ की राह।।

 

सहनशक्ति धरती सदृश, ममतामय आकाश।

चंदा   सी   शीतलमना,   सूर्योदयी   प्रकाश।।

 

दीपक ने आश्रय दिया, खुश है बाती – तेल।

मेल-जोल  सद्भाव का,  उज्वलतम यह मेल।।

 

संस्कृति की संवाहिका, संस्कारों की खान।

प्रवहमान  गंगा  सदृश, फूलों  सी  मुस्कान।।

 

लछमी  जैसी  चंचला, शारद  सी  गंभीर।

दुर्गा सी तेजस्विनी, शीतल जल की झीर।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 16 ☆ गीत – चुनाव की छांव में ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक गीत  “चुनाव की छांव में”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 16 ✒️

?  गीत – चुनाव की छांव में —  डॉ. सलमा जमाल ?

झूठ फरेब का खेल रचें ,

चुनाव की छांव में ।

लुटेरे आए हैं ,आए हैं ,

मेरे गांव में ।।

 

जहां-जहां चुनाव है ,

वहां नहीं है करोना ,

घड़ियाली आंसू है ,

झूठ का ओढ़ना बिछौना ,

एक – एक रैली में हज़ार की,

भीड़ लगी है दांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

धरती पुत्रों के प्राण निछावर,

हुए अम्बर तले ,

टस से मस सरकार हुई ना ,

कितनों के घर जले ,

अभिव्यक्ति पर ताले वरना ,

जेल की छांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

संपत्ति बेचें जो देश की ,

कोई ना रोकने वाला ,

मंदिर – मस्जिद – गुरुद्वारा ,

लगा है चर्च पे ताला ,

राजनीति भवसागर जनता ,

काग़ज़ की छांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

ऊपरवाला कैसे करें ,

कलयुग में रखवाली ,

स्वयं की बगिया को उजाड़े ,

जब बाग़ का माली ,

कर्मों का फ़ल मिलेगा ,

“सलमा” फंसेंगे बलाओं में ।

लुटेरे ———————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (71 – 75) ॥ ☆

सर्गः-13

राम पुनः मिले सचिव से जो थे वृद्ध महान।

बढ़ी श्मश्रु से जोदिखे बट के वृक्ष समान।।71।।

 

ये सुग्रीव विपद सखा, ये विभीषण रणधीर।

ऐसा कहते राम के भरत हो उठे अधीर।।72अ।।

 

लक्ष्मण से पहले मिले उनसे सादर धाय।

विनत वंदना की पुनः उनको-गले लगाय।।72ब।।

 

फिर लक्ष्मण से यों मिले छाती से लपटाय।

इंद्रजीत की शक्ति कृत दाग न फिर दुख जाय।।73।।

 

पाकर आज्ञा राम की धर कर मनुज शरीर।

वानर-पति चढ़े गजों पै जो मद-वर्षी धीर।।74।।

 

हुये विभीषण भी अचर उन रथ पै आसीन।

रामाज्ञा पा जिनसे थे मायारथ भी हीन।।75।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 24 – सजल – जल बिन करते आचमन… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “जल बिन करते आचमन… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 24 – दोहाश्रित सजल – जल बिन करते आचमन… 

समांत- ऊल

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 24

 

मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।

अंतर्मन में चुभ रहे, बेमौसम के शूल।।

 

उल्टी पुरवा बह रही, हरियाली वीरान।

प्यासी धरती है गगन, बिन जल है निर्मूल।।

 

मानसून को देखकर, मानव है बेचैन।

हरे-भरे सब वृक्ष भी, सूख गए जड़-मूल।।

 

कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।

खेतों में सूखा पड़ा, है उड़ती बस धूल।।

 

अखबारों में है छपा, उत्तर दक्षिण बाढ़।

मध्य प्रांत सूखा पड़ा, मौसम है प्रतिकूल।।

 

जल बिन करते आचमन, अंदर श्रद्धा भक्ति,

भादों में जन्माष्टमी, रहे कृष्ण हैं झूल।।

    

सभी बाग उजड़े पड़े, देख सभी हैरान ।

पूजन अर्चन के लिए, नहीं मिलें अब फूल।।

 

वर्षा ऋतु का आगमन, जल की नहीं फुहार ।

पूजन शिव परिवार का, हो वर्षा अनुकूल।।

 

इन्द्र देव से प्रार्थना, भेजो काले मेघ।

कृपा दृष्टि चहुँ ओर हो, यही मंत्र है मूल।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

10 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (66 – 70) ॥ ☆

सर्गः-13

गुरू वशिष्ठ को अग्रकर मंत्रिसेन ले साथ।

वल्कल धारे चल भरत अर्ध्य लिये हैं हाथ।।66।।

 

पिता की दी हुई राज्य श्री का भी न कर उपभोग।

वर्षों रहते साथ में भरत ने साधा जोग।।67।।

 

ऐसा कहते राम की मनवांछा अनुसार।

नभ से उतरा यान सब विस्मित रहे निहार।।68।।

 

मार्ग विभीषण प्रदर्शित सुग्रीव का कर थाम।

स्फटिक सीढ़ी में चरण रख नीचे उतरे राम।।69।।

 

गुरू वश्रिष्ठ की वन्दना कर स्वागत स्वीकार।

सजल नयन भ्राता भरत को किया अंगीकार।।70।।

               

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 78 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 78 –  दोहे ✍

पाषाणों पर फूल हैं, फूलों में रस गंध।

हमें प्रेरणा दे रहे, रच लो  नेह निबंध।।

 

गिरते पड़ते चढ गए, विजित हुई चट्टान।

वानर नर को दे रहे, अपना संचित ज्ञान।।

 

पाषाणों की गोष्ठी चर्चा में प्रस्ताव ।

क्या मानव अब हो गया, धधका हुआ अलाव।।

 

शीला संतुलन सिखाती, हमको जीवन योग।

अपनाकर तो देखिए ‘सम्यक’ योग प्रयोग।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 80 – “तिस पर बेबस हलवाहा…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “तिस पर बेबस हलवाहा…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 80 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “तिस पर बेबस हलवाहा…”|| ☆

टूट गया बल्ली का मूढ़ा

सिर पर लटक रहा।

तिस पर छप्पर कोने में

नलके सा टपक रहा ।।

 

गीला हुआ नाज पीपे में

है फफूंद उपजी ।

वह भी तो सड़ गई

कटोरे की बासी सब्जी ।

 

तिस पर बेबस हलवाहा

घर आता ही होगा-

जो भूखा बैलों पर गुस्से में

लठ पटक रहा ।।

 

इधर दुधारू गाय

दूध देने से मुकर गई ।

जिसकी भरपाई करने

को लेना पड़े नई।।

 

तो, पैसों के लिये राम-

कलिया जब बैंक गई –

अहसानो का बोझ

बैंक-अधिकारी पटक रहा।

 

है गरीब की बड़ी परिच्छा

कर्जे में जीना ।

सेल्फास खा मरा

अकिंचन अपना रमदीना।

 

हर किसान अब दुखी

दिखाई देता है सबको-

जो कर्जे के निराकरण

को गोली गटक रहा।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-02-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 127 ☆ “घायल चिड़िया” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है बैंकर्स के जीवन पर आधारित एक अतिसुन्दर कविता  “घायल चिड़िया”।)  

☆ कविता # 127 ☆ “घायल चिड़िया” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

यूक्रेन-रूस की जंग में,

रूसी बम से घायल,

खून से लथपथ, 

बेबस सी चिड़िया , 

सुबह से मुंडेर पर, 

टप टप खून बहाती, 

बैठी सोच रही है, 

घर के मालिक काश! 

तू भी ऐके 47 रखता, 

तो इतनी देर तक, 

ये तेरी टूटी मुंडेर पर, 

 मुझे बैठना न पड़ता, 

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 71 ☆ # बेबस पिता हूँ # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बेबस पिता हूँ #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 71 ☆

☆ # बेबस पिता हूँ # ☆ 

यह कैसा समय आ गया?

जो रिश्तों को खा गया

संबंध गौण हो गये

हम मौन हो गये

वो कहते रहे

हम सुनते रहे

जीना अभिशाप हो गया

बोलना तो पाप हो गया

किससे करें फरियाद

क्यों मैं होठों को सीता हूँ 

मैं खामोश हूँ

क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।

 

बच्चे कहते हैं

आपने अलग क्या किया

जो सब करते हैं

वो ही तो आप ने किया

मैंने कहा-

पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया

वो बोले- वो आपका फ़र्ज़ था

मैंने कहा-

अच्छी परवरिश दी

वो बोले-

बाप बने हो तो

आप पे हमारा यह कर्ज़ था

मैंने कहा-

तुम्हारी शादी ब्याह किया

वो बोले-

आप को खेलने को

नाती पोते चाहिए थे

मैंने कहा-

छोटा सा उपवन सजाया

वो बोले-

ताकि बुढ़ापे को सुरक्षित कर सको

आपने सब कुछ अपने लिए किया

बस हर बार हमारा इस्तेमाल किया

मै कैसे कहूँ कि

मैं कैसे जीता हूँ

क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।

 

अब तो ताने, उलाहने

हर रोज सुनता हूँ

बची हुई जिंदगी के

हार मे उसे बुनता हूँ

अब जीवन के

इस पड़ाव पर कहाँ जाऊँगा 

परिवार को छोड़

खुशियाँ कहाँ से लाऊँगा  

बस जीना है,

इसलिए जीता हूँ 

हाँ ! भाई

मैं एक बेबस पिता हूँ  /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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