श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लव मैरिज ♥♥ प्रेम-वि…वाह “।)
अभी अभी # 671 ⇒ लव मैरिज ♥♥ प्रेम-वि…वाह
श्री प्रदीप शर्मा
हमने शादियां तो कई देखी हैं, आज तक प्रेम विवाह नहीं देखा ! जहां भी हमें शादी ब्याह का मंडप नजर आता, घर हो, धर्मशाला हो या किराए पर लिया गया कोई स्कूल, कॉलेज, छोटी बड़ी होटल अथवा मैरिज गार्डन, हमें वहां सुसज्जित, रोशनी से झिलमिलाते प्रवेश द्वार पर शुभ विवाह ही लिखा नज़र आता। आजकल तो सुविधा के लिए, वर वधू, दोनों पक्षों का नाम, स्वागत द्वार पर ही आसानी से पढ़ा जा सकता है। लो, अपन सही जगह आ गए।
सन् 1959 में देवानंद और माला सिन्हा की एक फिल्म आई थी, लव मैरिज, जिसमें एक प्यारा सा गीत था, धीरे धीरे चल, चांद गगन में। ईश्वर झूठ ना बुलवाए, पहली बार तब ही यह शब्द लव मैरिज, कानों में पड़ा था। यह आसमान वाला चांद, न जाने क्यों, दो प्यार करने वालों का हमेशा गवाह तो होता है, लेकिन गवाही देने कभी नहीं आता। आए भी तो कैसे, अच्छे भले दो दो आंखों वाले प्रेमी को एक रात में दो दो चांद नजर आते हैं, एक घूंघट में और एक बदली में। अब हमारे दिलीप साहब को ही ले लो। फरमाते हैं, एक चांद आसमान में है, एक मेरे पास है। तकदीर देखिए, आज वही चांद इस धरती पर मौजूद है, और यूसुफ साहब, आसमान में तशरीफ ले गए। ।
ये कहां आ गए हम ! बस इसी तरह शायद लोग प्यार में खो जाते होंगे, और एक दूसरे के हो जाते होंगे। फलसफा प्यार का हम क्या जानें, हमने कभी प्यार ना किया, हमने इंतजार ना किया। बस जहां, मां – बाबूजी ने रिश्ता तय किया, एक अच्छे बच्चे की तरह, सर झुकाकर, स्वीकार किया मैने। हां, शादी के बाद, मैने भी प्यार किया !प्यार से कब इंकार किया।
जाहिर है, जिससे शादी की, उससे ही प्यार किया।
आज की भाषा में उसे अरेंज्ड मैरिज कहते हैं।
जब कॉलेज में प्रवेश किया, तब तक प्यार के अलावा, पढ़ाई के सभी सबक सीख लिए थे। कुछ लोग कॉलेज में पढ़ने आते थे, और कुछ प्यार का सबक सीखने। जाने अनजाने, असली नकली, कहीं चोरी छुपे तो कहीं खुले आम, जोड़ियां भी बन जाती थी। कुछ शैतान छात्र, ब्लैक बोर्ड पर संभावित जोड़े का नाम भी लिख देते थे। कुछ जोड़ों को कॉलेज कैंटीन में साथ साथ जाते भी देखा जाता था। कॉलेज को प्रेम की पाठशाला यूं ही नहीं कहा जाता। ।
आज समय बदल गया है।
आज की पीढ़ी को, एक दूसरे को समझने बूझने और करीब आने के कई अवसर मिलते हैं। पसंद, नापसंद आजकल माता पिता के साथ साथ बच्चों की भी होती है। जहां वास्तविक प्रेम है, आपसी समझ है, परिवारों में तालमेल है, संस्कारों में आपसी समझ और उदारता है, वही प्रेम विवाह है।
जिस विवाह में कोई विवाद ना हो, मियां बीवी के साथ साथ काजी भी राजी हो, माता पिता और बड़ों बूढ़ों का आशीर्वाद हो, हंसी खुशी हो, धूमधाम हो, वहां फिर कैसे प्रेम का अभाव हो, बस अंतर अभी भी इतना ही है, हम प्रेम को शुभ तो मानते हैं, लेकिन उसे शुभ विवाह का ही नाम देते हैं। प्रेम ! जान लो, तुम तब ही शुभ हो, जब अग्नि के सात फेरों के बंधन से शुद्ध और संस्कारित हो। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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