मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 49 – संवेदना ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण  दशपदी कविता  ” संवेदना”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 49 ☆

☆ संवेदना ☆

 

तापलेल्या या भूईचे भेगाळले गात्र गावे।

शमविण्याला या तृषेला  मेघनांनी आज यावे।

 

शुष्क कंठी साद घाली आर्त झाल्या चातकाला।

बरसू दे  अंतरी या, जीवनाची स्वप्न माला।

 

श्याम रंगी रंगलेले भाळलेले मेघ आले।

मृत्तिकेच्या सुगंधाने  आसमंत व्यापलेले।

 

चिंब ओल्या या धरेचा मोहरला देह सारा।

भारलेल्या या क्षणांनी मुग्ध झाला देह सारा।

 

नयनमनोहर सोहळा हा नित नव्याने रांगणारा।

साद घाली संवेदना, शब्द ओला नांदणारा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 6 ☆ हे विश्वची माझे घर….☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है पितृ दिवस के अवसर पर उनकी भावप्रवण कविता “बाप.. ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 6 ☆ 

☆ हे विश्वची माझे घर…. ☆

हे विश्वची माझे घर

सुबुद्धी ऐसी यावी

मनाची बांधिलकी जपावी.. १

 

हे विश्वची माझे घर

औदार्य दाखवावे

शुद्ध कर्म आचरावे.. २

 

हे विश्वची माझे घर

जातपात नष्ट व्हावी

नदी सागरा जैसी मिळावी.. ३

 

हे विश्वची माझे घर

थोरांचा विचार आचरावा

मनाचा व्यास वाढवावा.. ४

 

हे विश्वची माझे घर

गुण्यगोविंदाने रहावे

प्रेम द्यावे, प्रेम घ्यावे.. ५

 

हे विश्वची माझे घर

नारे देणे खूप झाले

आपले परके का झाले.. ६

 

हे विश्वची माझे घर

वसा घ्या संतांचा

त्यांच्या शुद्ध विचारांचा.. ७

 

हे विश्वची माझे घर

सोहळा साजरा करावा

दिस एक, मोकळा श्वास घ्यावा.. ८

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 17 ☆ यामिनी ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  श्रृंगारिक कविता “यामिनी“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 17 ☆

☆ यामिनी

 

यामिनी गं कामिनी,तू गं माझी साजणी

ये जरा,जवळी अशी ये जरा

ये गं मिठीत राहू, स्वप्नगीत गाऊ

ये जरा,जवळी अशी ये जरा!!

 

रात्र जशी झाली ,तसा चंद्रही निघाला

तारीके तू दूर नको,जवळी ये म्हणाला

इश्यऽऽ म्हणुनी,लाजुनिया चूर चूर झाली

ये जरा जवळी अशी………!!

 

मध्यरात्र झाली,काम जागृत ही झाला

रती मदन तृप्तीचा, क्षण जवळी आला

एक होऊ एक राहू, एक वेळ एकदा

ये जरा जवळी अशी………!!

 

पहाटेस थंडगार,झुळुक जशी आली

तृप्तीच्या सागरात, डुंबुनिया गेली

देहातुनी गोड अशी शिरशिरी निघाली

ये जरा जवळी अशी …….!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 39 – बारा मोटांची विहीर ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की  भावप्रवण रचना  “बारा मोटांची विहीर”।  उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 39 ☆

☆ बारा मोटांची विहीर ☆ 
 (चाल :- रुणुझुणुत्या पाखरा या सिनेगीताच्या चालीवर..) 

 

लिंब गावच्या वेशीत !

बारा मोटांची विहीर !

साडे तीनशे वर्षांची !

शिल्प कलेत माहीर !!१!!

 

मुख्य विहीर देखणी !

अष्टकोनी आकाराची !

खोल शंभर फुटांची !

चोरवाट भुयाराची. !!२!!

 

मुख्य विहीरी नंतर !

एक पूल बांधलेला !

जाण्यासाठी तिच्याकडे !

अदभूत वास्तुकला !!३!

 

राज महाल चौखांबी !

दरवाजा भक्कमसा !

भुयारात राजवाडा !

नमुनाच अजबसा !!४!!

 

अठराशें कालखंड !

शाहूपत्नी विरुबाई !

खास निर्मिती करुनी !

फुलविली आमराई !!५!!

 

विरुबाई साताऱ्याच्या  !

बायको शाहूराजांची !

आवडती बागायती !

बाग करावी आंब्यांची !!६!!

 

विरुबाईंच्या मनात !

आहे जमीन सुपीक !

झाडे लावावी आंब्यांची !

लिंब गाव ते नजिक !!७!!

 

स्वत:झाडे लावुनिया !

झाडे लावा जगवाना !

असा संदेश दिधला !

विरुबाईंनी सर्वांना !!८!!

 

भुयारात राजवाडा !

पुढे दोन चोर वाटा !

नंतर उपविहीर !

गोड्या पाण्याचा हो साठा !!९!!

 

उन्हाळ्यात हो गारवा!

हिवाळ्यात उबदार !

आजीवन पाणीझरा !

अजबच कारभार !!१०!!

 

येथे खाजगी बैठका !

होत होत्या पेशव्यांच्या !

शाहूराजां बरोबर!

साक्षी निवांत क्षणांच्या !!११!!

 

©️®️उर्मिला इंगळे

सातारा

दिनांक: २७-६-२०.

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 51 – थेंब पावसाचा ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “थेंब पावसाचा”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #51 ☆ 

☆ थेंब पावसाचा ☆ 

 

थेंब पावसाचा       हातात झेलला

नाही होवू  दिला     माती मोल. . . . !

 

थेंब पावसाचा     विसावला कसा

ओलावला पसा    आपोआप. . . . . !

 

थेंब पावसाचा    ओली आठवण

सुखद पेरण       जाता जाता. . . . !

 

थेंब पावसाचा     नाजूकसा मोती

गंधाळली नाती    अंतरात . . . !

 

थेंब पावसाचा     पाहुणा  क्षणाचा

सत्कार तयाचा    डोळ्यातून. . . . !

 

थेंब पावसाचा       देऊनीया ओल

रेंगाळला बोल       कवितेत. . . . . !

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

दिनांक  27/3/2019

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 55 – पितृ दिवस विशेष – गझल ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  परम आदरणीय पिताश्री को समर्पित एक भावप्रवण  “गझल”।  यह एक शाश्वत सत्य है कि बचपन से लेकर जीवनपर्यन्त माँ पिता को कैसे भूला जा सकता है। हमारी एक एक सांस उनकी ऋणी है। पितृ दिवस के अवसर वास्तव में यह गझल हमें उनकी एक एक बात स्मरण कराती है।  सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित  इस भावप्रवण रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 55 ☆

☆ पितृ दिवस विशेष – गझल ☆ 

 मला केवढी उदास करते गोष्ट वडिलांची

धुक्या सारखी मनी पसरते गोष्ट वडिलांची

 

जुनी खेळणी, डबा टिफिनचा बंब घंगाळे

किती कौतुके करीत बसते  गोष्ट वडिलांची

 

नवी बाहुली , कधी दुपारी डाव पत्त्यांचा

लपंडाव ते कसे विसरते गोष्ट वडिलांची

 

नसे आठवत जत्रा,सिनेमा,सर्कस ,बगीचा

पुन्हा केवढी उरात सलते गोष्ट वडिलांची

 

कधी एकटी स्मरणसिमेवर पाहते त्यांना

मुक्या पापणीतुन झरझरते   गोष्ट वडिलांची

 

कुणी दाखवा अता जुना तो काळ  सोनेरी

मनीमानसी सदैव वसते गोष्ट वडिलांची

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 9 – मागोवा ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘मागोवा

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 9 ☆ 

☆ मागोवा  

आज घेताना मागोवा

जुनी वाट झाकोळावी

दूर धुक्यातून कोणी

जुनी कथा रेखाटावी.

 

आज व्हावा डोळाबंद

रंगरूप पळसाचे

जागवावे भाव मनी

भोळ्या खुळ्या शेवंतीचे

 

अर्धखुल्या पापणीत

स्वप्न सारे साठवावे.

कण क्षण सोशिलेले

दिठीदिठीत मिटावे.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 54 ☆ देहाची शाल ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “देहाची शाल।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 54 ☆

☆ देहाची शाल☆

 

ती सुगंध उधळित यावी मी मलाच उधळुन द्यावे

ती लाजत मुरडत जाता डोळ्यांत साठवुन घ्यावे

 

तो वसंत येतो जेव्हा ती फूल होउनी जाते

श्वासात उतरते तेव्हा माझाच श्वास ती होते

 

चंद्राचे रूप धवल हे त्या मुखकमळावर येते

ती प्रकाशकिरणे त्यातिल मज जाता जाता देते

 

पाहतो किनारा आहे किती व्याकुळतेने वाट

ती फेसाळत मग येते होऊन प्रीतीची लाट

 

तिमिराचा डाव उधळण्या काजवे घेउनी आलो

ती प्रसन्न व्हावी म्हणुनी मी वात दिव्याची झालो

 

प्रीतीच्या झाडावरती राघुने बांधले घरटे

मैना जे घेउन येते नसतेच गवत ते खुरटे

 

देहाची शाल करावी नि तिला लपेटुनी घ्यावे

मी भ्रमर होउनी अमृत त्या गुलाबातले प्यावे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

 

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

 

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ —– कोडे —– ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है सोशल मीडिया में आई कविताओं की बाढ़ पर आधारित आपकी एकआनंददायक कविता —– कोडे —– .

आपके ही शब्दों में – “गंमत म्हणून कविता. स्वतः सह सर्व कवींची क्षमा मागून.”

 

☆ —– कोडे —– ☆

 

कविता, कविता चोहिकडे

जिकडेतिकडे,  चहूकडे   ।।

 

वाट्स अँपवर  ‘ह्या  ‘ची कविता

फेसबुकवर  ‘ त्या  ‘ ची कविता

सगळे  झाले  कवी  फाकडे

जिकडे  तिकडे   ——-

 

“छान, सुंदर  “कमेंट”  ह्याची

“क्या बात  है।” ही दुसऱ्याची

सगळ्यांना  सगळेच आवडे

जिकडेतिकडे   ———

 

“माझ्या  कवितेचे  हे शीर्षक”

ओळी  वाचती  होऊन  भावुक

गंभीरपणे  कोणी न ऐकत

कशास  जो तो  तरी धडपडे

कवितेलाही  पडले  कोडे

जिकडेतिकडे     ——–

 

कविवर म्हणुनी  नांव  व्हावे

‘मी’ कोणितरी   खास असावे

आपण सुध्दा एक त्यातले

काव्याचा  पुर म्हणूनच  वाढे

कविता कविता  चोहिकडे   ।।

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ पितृ दिवस विशेष – बाप..☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है पितृ दिवस के अवसर पर उनकी भावप्रवण कविता “बाप.. ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ 

☆ पितृ दिवस विशेष – बाप.. ☆

 

काटा पायात रुततो

तरी तो तसाच राहतो

कुटुंब पोसण्या बाप

अजन्म लढत असतो…०१

 

काट्याचे कुरूप जाहले

बापाचा पाय सडला

रुतणाऱ्या काट्याने

पिच्छा नाही सोडला…०२

 

एक वेळ अशी येते

पायच तोडल्या जातो

उभ्या आयुष्याचा तेव्हा

स्तंभ सहज ढासळतो…०३

 

तरी हा पोशिंदा बाप

लढत पडत राहतो

त्याच्या रक्तात कधी

दुजा भावच नसतो…०४

 

पूर्ण आयुष्य बापाने

डोई भार वाहिला

कुटुंबास पोसण्या

दिस-वार ना पहिला…०५

 

ना रडला कधी बाप

ना कधी व्यथा मांडल्या

मोकळे आयुष्य जगतांना

कळा भुकेच्या सोसल्या…०६

 

असा बाप तुमचा आमचा

अहोरात्र झुंजला गांजला

का कुणास ठाऊक मात्र

बाप शापित गंधर्व का ठरला…०६

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

Please share your Post !

Shares
image_print