A short talk on happiness delivered by Jagat Singh Bisht during Laughter Yoga session on Sunday, in view of the upcoming International Day of Happiness on March 20. Gist of the talk: Activity, exercise, yoga, pranayama, meditation, engagement, flow, positive relationships and a meaningful life lead to enduring happiness.
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।
लॉक डाउन के इस सप्ताह में कोरोना के आंकड़ों के बीच कुछ दिन विशेष थे जो आये और चले गए। हम आदरणीय श्री राकेश कुमार पालीवाल जी की फेसबुक वाल से ऐसे ही तीन दिनों की स्मृतियाँ सजीव करने का प्रयास कर रहे हैं – विश्व पृथ्वी दिवस , विश्व पुस्तक दिवस और रमज़ान मुबारक )
☆ अर्थ डे (धरती दिवस) पर : दो पंक्ति मेरी भी ☆
सबसे पहले यह वैज्ञानिक सच कि हमारे सौर मंडल में कोई और ग्रह या किसी ग्रह का कोई ऐसा उपग्रह नहीं है जहां विविध जीवन रूपों के लिए इतनी अच्छा वातावरण है। अभी तक तो सौर मंडल के बाहर भी और कहीं जीवन के निशान नहीं मिले हैं इसलिए धरती ही इकलौती ऐसी जगह है जहां प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत खजाना होने।
हमने इस प्राकृतिक सौंदर्य को पिछले सौ साल में बहुत नष्ट भ्रष्ट किया है। इस सदी के महानतम वैज्ञानिक स्टीफेन हाकिंस धरती को अलविदा कहने से पहले हमें चेता कर गए हैं कि प्रकृति का विनाश करने की यही रफ्तार रही तो यह धरती मनुष्य का बोझ अगले पचास साल भी नहीं झेल पाएगी और मनुष्य के अस्तित्व पर ही खतरा खड़ा हो जाएगा।
सौ साल पहले गांधी ने हमें चेताया था कि यह धरती सारे मनुष्यों और जानवरों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम है लेकिन एक व्यक्ति के लालच के लिए कम है। आज कितने लोगों के कितने लालच धरती की सतह से जंगल मिटा रहे हैं और गर्भ को खोद कर तेल खनिज और गैस आदि निकाल रहे हैं। इसका खामियाजा बढ़ता प्रदूषण, गिरता स्वास्थ और महामारी का खतरा हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा है।
कम शब्दों में अपनी बात समाप्त करते हुए धरती की तरफ से आप सबको अपना यह अशआर अर्ज करता हूं –
अपनी कामना और स्वार्थ की चादर निचोड़ दो
कुछ दिन को मेरे हाल पर मुझको भी छोड़ दो
– राकेश क़मर (आर के पालीवाल)
☆ विश्व पुस्तक दिवस पर : गांधी पर गांधी के पौत्र की पुस्तक ☆
इधर हाल ही में राजमोहन गांधी की गांधी पर लिखी शोध पुस्तक A Good Boatman पढ़ी है। पुस्तक का शीर्षक भारत की आजादी के आंदोलन की नाव को गांधी द्वारा ठीक से खेने की तरफ इंगित करता है।
सामान्यत: जब कोई परिजन या नजदीकी रिश्तेदार अपने किसी आत्मीय के बारे में लिखता है तो तो वह जरूरत से ज्यादा तारीफ करने लगता है और अच्छी अच्छी बातों का अतिश्योक्तिपूर्ण तरीके से वर्णन करता है और उसके कमजोर पक्ष को या तो पूरी तरह दरकिनार कर देता है या उसे कुतर्क से उचित ठहराने के कोशिश करता है।
कभी कभी इसका उल्टा भी होता है। लेखक अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता दिखाने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा आलोचनात्मक दृष्टिकोण अख्तियार कर लेता है। गांधी में खुद यह गुण या अवगुण था कि वे अपनी अच्छाइयों से ज्यादा अपनी कमियों को बड़ा करके देखते थे।
इस कृति के लेखक के रूप में राजमोहन गांधी की तारीफ बनती है कि उन्होंने पूरी कोशिश की है कि पाठकों को गांधी को जस का तस दिखाने की कोशिश करें। इसीलिए शायद उन्होंने किताब का नाम Excellent Boatman आदि नहीं रखा।
इस किताब को लिखने के लिए लेखक ने जबरदस्त शोध किया है इसलिए इसमें कुछ ऐसी चीजें भी आ सकी हैं जो गांधी वांग्मय में नहीं हैं। ज्यादातर तथ्यों के साथ उनके रेफरेंस देने से किताब की विश्वसनीयता बढ़ी है।
गांधी के जीवन और विचार को समग्रता से समझने के लिए इस किताब को जरूर पढ़ा जाना चाहिए।
विश्व पुस्तक दिवस पर सभी लेखकों और पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं।
☆ रमजान मुबारक ☆
इस बार रमजान में दोहरी परेशानी है। एक तो गर्मी का मौसम है दूसरे कोरोना की वैश्विक महामारी ने भय का माहौल बनाया हुआ है और खाने की चीज़ों की किल्लत हो रही है। ऐसे माहौल में त्योहार को सामूहिक रूप में भी नहीं मना सकते।
चाहे रमजान हो या नव दुर्गों का साप्ताहिक उपवास, वह तन और मन दोनों की शुद्धि और जन कल्याण की सदभावना के लिए होता है। उम्मीद है इस रमजान में भी ऊपर वाले के करम से सब खैरियत रहेगी और रमजान के खत्म होने के पहले महामारी भी खत्म हो जाएगी और हम सब मिलकर अच्छे से ईद मना सकेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – साहित्यकार ☆
-साहित्यकार हूँ, अपने समय का दस्तावेज़ लिखता हूँ।
-जो दस्तावेज़ लिखे, इतिहासकार होता है, साहित्यकार नहीं।
..और सुनो, बीते समय को जानने के लिए उस काल का प्रमाणित इतिहास पढ़ा जाता है, साहित्य नहीं।
हाँ, उन स्थितियों ने अंतर्चेतना को कैसे झिंझोड़ा, अंतर्द्वंद कैसे अपने समय से द्वंद करने उठ खड़ा हुआ, व्यष्टि का साहस कैसे समष्टि का प्रताप बना, कैसे भीतर के प्रकाश ने समय में व्याप्त तिमिर को उजालों से भरकर विचार को प्रभासित किया, यह जानने के लिए तत्कालीन साहित्य पढ़ा जाता है।
जिसका लिखा समय के प्रवाह में दस्तावेज़ बनकर उभरा, वही साहित्यकार कहलाया।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
((श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आजकल वे हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना स्वीकार किया है जो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है हिंदी फ़िल्मों के स्वर्ण युग का मसखरा : ज़ानी वॉकर पर आलेख ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 1 ☆
☆ हिंदी फ़िल्मों के स्वर्ण युग का मसखरा : ज़ानी वॉकर ☆
बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी, जिन्हें फ़िल्मी नाम जॉनी वाकर से जाना जाता था, एक हिंदी फ़िल्म अभिनेता थे। जॉनी वाकर का जन्म 11 नवम्बर 1926 को ब्रिटिश भारत के खरगोन जिले (बड़वानी) अब मध्य प्रदेश के मेहतागोव गाँव में एक मिल मजदूर के घर हुआ था। जिन्होंने लगभग 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया था।
बडवानी जिले से जानी वाकर का परिवार इन्दौर आया यहां उनके वालिद कपडा मिल मे नौकरी करने लगे, यहीं उनके साथ वह हादसा हुआ और वे घर बैठ गये, अब परिवार को पालने की जिम्मेदारी जानीवाकर पर आ गई, इन्दौर मे भी बस कन्डक्टरी करी, ठेले पर सामान बेचा, छावनी इन्दौर मे क्रिकेटर मुशताक अली उनके पडोसी व मित्र हुआ करते थे।
दुर्घटना ने उनके पिता को पंगु करके निरर्थक बना दिया और वे रोज़ीरोटी की तलाश में सपरिवार बंबई चले आए। काजी ने परिवार के लिए एकमात्र कमाऊ सदस्य के रूप में विभिन्न नौकरियां कीं, अंततः वे बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) में बस कंडक्टर बन गए। परिवार के एकमात्र कमाऊ जानी दिन भर कई मील की बसयात्रा के बाद कैंडी, फल, सब्जियां, स्टेशनरी और अन्य सामान फेरी लगाकर बेचते थे।
जॉनी वॉकर बसों में काम करते हुए यात्रियों का मनोरंजन किया करते थे। उन दिनों वामपंथी नाटक संगठन इपटा से जुड़े कलाकार एक कमरे के कम्यून में रहते और बसों से यात्रा करते थे। अभिनेता बलराज साहनी ने उन्हें बस यात्रा के दौरान एक दिन भिन्न-भिन्न भावभंगिमाओं से चुटकुले बाज़ी और चुहल करते देख गुरुदत्त का पता देकर उनसे मिलने की सलाह दी। बलराज साहनी और गुरुदत्त उस समय मिलकर बाजी (1951) की पटकथा लिख रहे थे। गुरुदत्त बतौर निर्देशक देवनांद, गीताबाली, कलप्ना कार्तिक और के एन सिंग को लेकर बाज़ी के लिए कलाकारों को ले रहे थे उसमें एक शराबी की भी भूमिका थी। गुरुदत्त ने काजी को शराब पीकर शराबी का अभिनय करने को कहा। काजी ने बिना शराब पिए बड़े बढ़िया अन्दाज़ में शराबी का अभिनय कर दिखाया, उन्हें बाज़ी में एक भूमिका मिली।
उस दौर में साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ा होने से मुस्लिम कलाकारों को हिंदू नाम देने का चलन चल पड़ा था जैसे देविका रानी ने यूसुफ़ खान को दिलीप कुमार नाम दिया था वैसे ही मुस्लिम कलाकारों को मीना कुमारी, मधुबाला, नरगिस इत्यादि नाम मिले थे। गुरुदत्त जब उसी दिन शाम को के एन सिंग के साथ जॉनीवाकर ब्रांड की स्कॉच व्हिस्की का ज़ाम चढ़ा रहे थे, उन्होंने दो पेग चढ़ाने के बाद पहले सुरूर में ही के एन सिंग के मशवरे पर क़ाज़ी को जॉनीवाकर नाम दे दिया था। इस प्रकार फ़िल्मी पर्दे पर जॉनीवाकर नामक मसखरे का आगमन हुआ।
उसके बाद ज़ानी वाकर गुरुदत्त की सभी फ़िल्मों में दिखाई दिए। वे मुख्य रूप से हास्य भूमिकाओं के अभिनेता थे लेकिन पटकथा में उनकी भूमिका कथानक को आगे बढ़ाने वाली होती थी न कि ज़बरजस्ती ठूँसने वाले बेहूदा हँसोडियों जैसी। राजेंद्र कुमार के साथ मेरे महबूब, देवानंद के साथ सीआईडी, गुरुदत्त के साथ प्यासा, दिलीप कुमार के साथ मधुमती और राजकपूर के साथ चोरी-चोरी जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टार बना दिया। वे 1950 और 1960 के दशक में नायक के साथ फ़िल्म सुपर हिट होने की गारंटी हुआ करते थे। 1964 में गुरुदत्त की मृत्यु से उनका केरियर प्रभावित हुआ। फिर उन्होंने बिमल रॉय और विजय आनंद जैसे निर्देशकों के साथ काम किया लेकिन 1980 के दशक में उनका करियर फीका पड़ने लगा। वे कहते थे कि “उन दिनों हम साफ-सुथरी कॉमेडी करते थे। हम जानते थे कि जो व्यक्ति सिनेमा में आया है, वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आया है … कहानी सबसे महत्वपूर्ण हुआ करती थी। कहानी चुनने के बाद ही अबरार अल्वी और गुरुदत्त उपयुक्त अदाकार ढूंढते थे, अब यह सब उल्टा हो गया है … वे एक बड़े नायक के लिए एक कहानी लिखाते हैं जिसमें फिट होने के लिए हास्य अभिनेता एक चरित्र बनना बंद कर दिया है, वह दृश्यों के बीच फिट होने के लिए कुछ बन गया है। कॉमेडी अश्लीलता की बंधक बन गई थी। मैंने 300 फिल्मों में अभिनय किया और सेंसर बोर्ड ने कभी भी एक लाइन भी नहीं काटी।”
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “ सुन ऐ जिंदगी! ”।)
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक महत्वपूर्ण एवं शिक्षाप्रद आलेख “दस महाविद्याएँ ”। )
पहली महाविद्या देवी ‘काली‘ है जिसका अर्थ ‘समय’ या ‘काल’ या ‘परिवर्तन की शक्ति’ है वह निष्क्रिय गतिशीलता, विकास की संभावित ऊर्जा, ब्रह्मांड में महत्वपूर्ण या प्राणिक शक्ति अर्थात समय की गति ही काली है । ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व सर्वत्र अंधकार ही अंधकार से उत्पन्न शक्ति! अंधकार से जन्मा होने के कारण देवी काले वर्ण वाली तथा तामसी गुण सम्पन्न हैं । देवी, प्राण-शक्ति स्वरूप में शिव रूपी शव के ऊपर आरूढ़ हैं, जिसके कारण जीवित देह शक्ति सम्पन्न या प्राण युक्त हैं । देवी अपने भक्तों के विकार शून्य हृदय (जिसमें समस्त विकारों का दाह होता हैं) में निवास करती हैं, जिसका दार्शनिक अभिप्राय श्मशान से भी हैं । देवी श्मशान भूमि (जहाँ शव दाह होता हैं) वासी हैं । मुखतः देवी अपने दो स्वरूपों में विख्यात हैं, ‘दक्षिणा काली’ जो चार भुजाओं से युक्त हैं तथा ‘महा-काली’ के रूप में देवी की 20 भुजायें हैं । स्कन्द (कार्तिक) पुराण, के अनुसार ‘देवी आद्या शक्ति काली’ की उत्पत्ति आश्विन मास की कृष्णा चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि के घोर में अंधकार से हुई थी । परिणामस्वरूप अगले दिन कार्तिक अमावस्या को उनकी पूजा-आराधना तीनों लोकों में की जाती है, यह पर्व दीपावली या दीवाली नाम से विख्यात हैं तथा समस्त हिन्दू समाजों द्वारा मनाई जाती हैं । शक्ति तथा शैव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन देवी काली की पूजा करते हैं तथा वैष्णव समुदाय महा लक्ष्मी जी की, वास्तव में महा काली तथा महा लक्ष्मी दोनों एक ही हैं । भगवान विष्णु के अन्तः कारण की शक्ति या संहारक शक्ति ‘मायामय या आदि शक्ति’ ही हैं, महालक्ष्मी रूप में देवी उनकी पत्नी हैं तथा धन-सुख-वैभव की अधिष्ठात्री देवी हैं । दस महा-विद्याओं में देवी काली, उग्र तथा सौम्य रूप में विद्यमान हैं, देवी काली अपने अनेक अन्य नामों से प्रसिद्ध हैं, जो भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाली हैं ।
देवी काली मुख्यतः आठ नामों से जानी जाती हैं और ‘अष्ट काली’, समूह का निर्माण करती हैं ।
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की पड़ोस में रहने वाली हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी की सदस्य के 102 वे जन्मदिवस पर शुभकामनाएं देती एक कविता “शतकोत्तर वाढदिवसाच्या शुभेच्छा”। अंकों में 102 वर्ष हमारी पीढ़ी की कल्पना के परे है। उनके ही शब्दों में “आमच्या शेजारी रहाणाऱ्या ‘आठल्यांच्या मम्मी ‘ यांच्या शतकोत्तर म्हणजे १०२ व्या वाढदिवसाची भेंट स्वरूप कविता।” उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है। ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )
Speaker: Jagat Singh Bisht; Forum: ASK Talks (attitude, skills and knowledge for the young minds); Conducted by: State Bank Foundation Institute (Chetana), Indore; Date: 07 February 2013.
This is an excerpt from the inaugural ASK Talk. It is based on the PERMA model (Positive Emotion, Engagement, Relationships, Meaning, Accomplishment) propounded by the renowned Positive Psychologist Dr Martin Seligman, author of ‘Learned Optimism’, ‘Authentic Happiness’ and ‘Flourish.
Mr Bisht is a Behavioural Science trainer with the State Bank of India (a global Fortune 500 corporate), Laughter Yoga teacher, Life Skills coach, Author and Blogger. The views expressed in this talk are personal.
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
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भावार्थ : श्री भगवान बोले- मेरा जो चतुर्भज रूप तुमने देखा है, वह सुदुर्दर्श है अर्थात् इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं॥52॥
Very hard indeed it is to see this form of Mine which thou hast seen. Even the gods are ever longing to behold it.