हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 67 ☆ आमने-सामने -2 ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है ।

आज से प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ  के अंतर्गत आमने -सामने शीर्षक से  आप सवाल सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारों के और जवाब श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के  पढ़ सकेंगे। इस कड़ी में प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ ललित लालित्य जी के प्रश्नों के उत्तर । ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 67

☆ आमने-सामने  – 2 ☆

डॉ ललित लालित्य (दिल्ली)

1-  पांडेय जी आप चुपचाप काम करने वाले व्यंग्यकार हैं जबकि आपके जूनियर कहाँ से कहाँ पहुँच गए ।

2- क्या आप मानते है कि व्यंग्यकार को ईमानदार होना चाहिए,चुगलखोर या ईर्ष्यालु नहीं ?

3- क्या जीते जी व्यंग्यकार मंदिर बनवा कर पूजे जाएं यह कहाँ की भलमान्सियत है ?

जय प्रकाश पाण्डेय –

1- सर जी, लेखन में कोई जूनियर, सीनियर या वरिष्ठ, कनिष्ठ या गरिष्ठ नहीं होता, ऐसा हमारा मानना है। ईमानदारी और दिल से जितना कुछ संभव हो, वही संतुष्टि देता है। यदि कोई कहां से कहां पहुंच भी गया तो खुशी की बात है, उसकी प्रतिभा उसका अध्ययन उसे और ऊपर ले जाएगा।

2- ईमानदार और दीन-दुखी जन जन के साथ खड़ा लेखक ही असली व्यंंग्यकार कहलाने का हकदार है, जैसे आप हर दिन आम आदमी की दैनिक जीवन में आने वाली विसंगतियों और पाखंड पर रोज लिखकर आम आदमी के साथ खड़े दिखते हो। समाज की बेहतरी के लिए व्यंंग्यकार की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए, ईमानदार प्रयास ही इतिहास में दर्ज होते हैं, फोटो और बोल्ड लेटर के नाम पानी के बुलबुले हैं। भाई,व्यंंग्यकार ही तो है जो जुगलखोरी और ईर्षालुओं के विरोध में लिखकर उनके चरित्र में बदलाव की कोशिश करता है।

3- ऐसे लोगों को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जो आत्म प्रचार और आत्ममुग्धता के नशे में जीते जी मंदिर बनवाने की कल्पना करते हैं। ऐसे लेखक के अंदर खोट होती है, वे अंदर से अपने प्रति भी ईमानदार नहीं होते, जो लोग ऐसे लोगों के मंदिर बनवाने में सहयोग देते हैं वे भी साहित्य के पापी कहलाने के हकदार हो सकते हैं।

क्रमशः ……..  3

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अव्यक्त ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अव्यक्त ☆

अंतहीन विवाद,

भीषण कलह,

एक-दूसरे के लिए आज से

मर चुका होने की घोषणा,

फिर भी जाने क्या था कि

खिड़की के कोने पर खड़ा वह

भाई को तब तक देखता रहा

जब तक सुरक्षित रूप से

पार नहीं कर ली उसने सड़क,

और ओझल नहीं हो गया आँखों से..,

 

आपसी सहमति से हुए

उनके संबंध विच्छेद पर

अब तो अदालती मोहर भी लग चुकी,

फिर भी जाने क्या है कि

हर रोज वह बनाती है अपने साथ

उसके भी नाम की रोटियाँ

और सुबह आँसुओं के नमक से

लगा-लगा कर खाती है

रोजाना उसे कोसते हुए…,

 

संपत्ति बीच में क्या आई

शत्रु हो गई अपनी ही जाई,

एक खुद का,दो बेटों का

और एक बेटी का हिस्सा करके भी

गुज़रने से पहले

माँ अपना हिस्सा भी कर गई

अबोला किए नाराज़ बेटी के नाम…,

 

“लव यू मॉम…”

“मेड फॉर इच अदर” “फारॅएवर…”

“ग्रेटेस्ट ब्रो!’

सेलेब्रेशन, विशिष्ट संबोधन

और फिर पढ़ता हूँ सुर्खियाँ-

भाई का भाई द्वारा खून,

पति निकला पत्नी का हत्यारा,

बूढ़ी माँ को बेटी ने दिया घर निकाला…,

 

सोचता हूँ

जो अभिव्यक्त नहीं होता था

संभवत: अधिक परिपक्व

अधिक सशक्त होता था!

 

©  संजय भारद्वाज 

( 2 जुलाई 2016, प्रात: 6:30 बजे, पुणे से मुंबई की यात्रा में)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #14 ☆ ऐ मेरे दोस्त ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “ऐ मेरे दोस्त”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 14 ☆ 

☆ ऐ मेरे दोस्त ☆ 

ऐ मेरे दोस्त

चल कहीं और चले

जहाँ झूठ, पाखंड से

लोग ना जाते हो छले

जहाँ मनमोहक सुगंध हो

समीर बह रहा मंद मंद हो

भ्रमरों की प्रणय लीला हो

मौसम बड़ा रंगीला हो

हर कली, हर फूल में

जहाँ प्यार पले

ऐ मेरे दोस्त —

जहाँ चाँद तारों की

शीतल छाँव हो

दुधिया चाँदनी में

नहाया गांव हो

ताजमहल सा अनूठा पन हो

दो आत्माओं का

पुनर्मिलन हो

शीतल चांदनी में

प्रेम की दिवानगी में

जहाँ दो जिस्म ढले

ऐ मेरे दोस्त–

जहाँ भूख और प्यास बसती हो

जिंदगी मौत से भी सस्ती हो

दर्द, पीड़ा, बेकारी से त्रस्त हो

फिर भी अपनी

गरीबी में मस्त हो

दिलों में ना हो छल कपट

बस जहाँ  हृदय में

सत्य की ज्योत जले

ऐ मेरे दोस्त–

दोस्त,

तू मुझे भगवान ना बना

इन्सान ही रहने दें

जमाने के दिये घाव

हसके सहने दे

लोग कहते है दीवाना

तो कहने दे

दया, करूणा, प्रेम का झरना

यूँ ही बहने दे

क्या खोया, क्या पाया

मत सोच

जहाँ अब जिंदगी की

है शाम ढले

ऐ मेरे दोस्त–

 

© श्याम खापर्डे 

18/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – और रावण रह गया ☆ श्री राघवेंद्र दुबे

श्री राघवेंद्र दुबे

(ई- अभिव्यक्ति पर श्री राघवेंद्र दुबे जी का हार्दिक स्वागत है।  विजयादशमी पर्व पर आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा  “और रावण रह गया .)

☆ लघुकथा – और रावण रह गया ☆ 

एक बड़े नगर के बड़े भारी दशहरा मैदान में काफी भीड़ थी. लोगों के रेले के रेले चले आ रहे थे. आज रावण दहन होने वाला था. रावण भी काफी विशाल बनाया गया था.

ठीक रावण जलाने के वक्त पुतले में से एक आवाज आयी  ” मुझे वही आदमी जलाये जिस में राम का कम से कम एक गुण अवश्य हो। भीड़ में खलबली मच गई। तरह-तरह की आवाजें उभरने लगी। लेकिन थोड़ी देर बाद वातावरण पूर्ण शांत हो गया। कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।

रावण ने आश्चर्य से नजरें झुका कर नीचे देखा तो मैदान में कोई नहीं था।

©  श्री राघवेंद्र दुबे

इंदौर

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सूचना/Information ☆ कथा संग्रह – ‘किती सावारावा तोल’ पुरस्कृत ☆ सुश्री नीलम माणगावे 

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

Kiti Sawarava Tol...

सुश्री नीलम माणगावे

कथा संग्रह – ‘किती सावारावा तोल’  पुरस्कृत

 

निवेदन-

ई- अभिव्यक्तीवर सातत्याने कविता लिहिणार्‍या नीलम माणगावे यांच्या ‘किती सावारावा तोल’ या कथासंग्रहाला, ‘कुंडल कृष्णाई पुरस्कार जाहीर झाला आहे. ई-अभिव्यक्ती तर्फे त्यांचे हार्दिक अभिनंदन.

? ई–अभिव्यक्ती परिवारातर्फे त्यांचे हार्दिक अभिनंदन आणि पुढच्या वाटचालीसाठी शुभेच्छा. ?

 

सम्पादक मंडळ (मराठी) 

श्रीमती उज्ज्वला केळकर 

Email- [email protected] WhatsApp – 9403310170

श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

Email –  [email protected]WhatsApp – 9421225491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 21 ☆ संवाद…. ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 21 ☆ 

☆ संवाद…. ☆

संवाद मन जिंकणारा असावा

संवाद मन तोडणारा नसावा…

 

संवादातून रम्य सोहळा घडावा

संवादातून प्रलय कधी न यावा…

 

संवाद साधता साधेपणा असावा

संवाद कधीच संधीसाधू नसावा …

 

संवाद मनाची अंतरे जपणारा

संवाद मनाची दुवे जाणणारा…

 

सु-संवाद होता शस्त्र गळून पडते

कु-संवाद होई, तर शस्त्र पाजळते…

 

संवाद सत्कार्यासाठी अवतरतो

या व्यतिरिक्त कट रचल्या जातो…

 

सुसंस्कृत असावे, दुष्कृत्य सोडावे

संवाद साधता, प्रेम द्यावे प्रेम घ्यावे…

 

© कवी म. मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गिऱ्हाईक ☆ सौ.नीलम माणगावे

सुश्री नीलम माणगावे

☆ कवितेचा उत्सव ☆ गिऱ्हाईक ☆ सुश्री नीलम माणगावे ☆

बस मधून जाता-येता

दिसतात मला त्या

रंगवलेल्या लालचुटुक ओठानी

गिऱ्हाईक हेरणाऱ्या!

काजळ भरल्या काळ्या डोहात

माणूसपण जपणार्‍या!

पोटच्या गोळ्याला

बापाचं नाव शोधणाऱ्या!

माझ्या सारख्याच दिसणाऱ्या….

हात, पाय, नाक, डोळे, कान

आणि मनसुद्धा असणाऱ्या,

माझ्याच जातीच्या

नखरेल पुतळ्या!

बाहेरून नटलेल्या

आतून फाटलेल्या

त्या….

त्या गिऱ्हाईक जपत असतात

टिचभर पोटासाठी

आणि आम्ही…. आम्ही ही एकुलतं का होईना

घरंदाज गिऱ्हाईकच तर जपत नसतो ना?

चिऊ-काऊच्या

घरट्यासाठी?

 

©  सुश्री नीलम माणगावे

जयसिंगपूर, जिल्हा कोल्हापूर

मो  9421200421

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ नंदनवन ☆ श्री तुकाराम दादा पाटील

श्री तुकाराम दादा पाटील

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ नंदनवन ☆ श्री तुकाराम दादा पाटील ☆ 

संसाराचे गीत जरासे सुरात गावे

गाता गाता कोरायाची मनात नावे

 

जबाबदारी घेण्यासाठी जपून बांधा

उनाडलेल्या जनावराच्या गळ्यात दावे

 

निसर्गातले धन मोलाचे जिवंत फिरते

शोधा याचे झाडामधले वनात रावे

 

जग मोलाचे बघण्यासाठी तनामनाने

कल्पकतेच्या गरुडा सोबत नभात जावे

 

भले पणाच्या वाटेवरती चालत असता

अडवा याला कोण बनवतो भ्रमात कावे

 

श्रद्धा ज्याची त्याला कळते हे नंदनवन

कृष्ण सख्याचे घुमत राहती दिशात पावे

 

भ्रष्टाचारी सभोवताली जमल्यावर ही

घामगाळुनी जे मिळते ते घरात खावे

 

©  श्री तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ कथा – पाऊस-1 ☆ श्री आनंदहरी

☆ जीवनरंग ☆ कथा – पाऊस-1 ☆ श्री आनंदहरी ☆ 

गावाच्या खालतीकडे बिरोबाचे माळ.. बिरोबाच्या देवळाभोवतीचे शिवार त्याच्याच नावाने ओळखले जायचं.. माळ म्हणजे तसे माळरान नव्हतं.. बऱ्यापैकी सुपीक जमीन होती पण गाव लवणात वसलेलं होते. गावालगतच्या जमिनी काळ्याभोर , जास्तच सुपीक त्यामानाने बिरोबाच्या शिवाराची सुपीकता कमी इतकंच. ज्याला गावाजवळ जास्त जमीन होती तो गावापासून लांब असणारं बिरोबाच्या देवळाजवळचे रान कसायचाच नाही. त्यामुळे बिरोबाच्या शिवारात असे पडीक रान जास्त होतं म्हणून त्याला माळ म्हणायची सवय गावाला लागली होती. बिरोबाजवळचे तिचं रानही आधी पडीकच होतं म्हणे.. पण ती लग्न होऊन यायच्या आधीच तिच्या सासऱ्याने, घरात त्यांच्या भावाभावात वाटण्या झाल्यावर गावंदरीच्या रानात भागायचं नाही म्हणून बिरोबाच्या माळाचा आपल्या वाटणीचा एकराचा डाग कसायला सुरवात केली होती . आपला एकुलता एक पोरगा चांगला पैलवान व्हावा ही सासऱ्याची इच्छा होती पण सासऱ्यांच्या अचानक जाण्याने पोराची तालीम सुटली, आणि घराची , रानाची सगळी जबाबदारी त्याच्या खांद्यावर येऊन पडली होती..सासरे गेल्यानंतर तीन वर्षांनी ती लग्न होऊन घरात आली होती.

तिला सासू तशी मायाळूच भेटली होती. कधी कधी रानात भांगलायला सोबत जाताना , कधी असेच दुपारच्या वेळी सोप्यात काहीतरी काम करत असताना सासू काही बाही जुनं सांगत राहायची.. जुन्या आठवणी काढत राहायची.त्यामुळे तिला तिच्या आज्जेसासुपासूनच्या अनेक गोष्टी माहीत झाल्या होत्या. तिची सासु जितकी बोलकी तितकाच तिचा नवरा अबोल होता.. पण सासुमुळे तिला नवऱ्याचं अबोलपण फारसं डाचत नव्हतं. तरीही एकदा तिने सासुजवळ नवऱ्याच्या अबोलपणाचा विषय काढला तेंव्हा सासू हसली होती . सासू का हसली ? यात हसण्यासारखं काय होतं हे काही तिला कळले नव्हते.. ती त्यामुळे खट्टू झाली होती..  तिचे खट्टू होणे तिच्या चेहऱ्यावरून पावसाच्या थेंबांसारखं निथळत होते.. सासूला ते जाणवलं तसे सासूने तिला लेकीसारखं जवळ घेतलं आणि म्हणाली,

“आगं, तुझ्यासंगं आत्तापातूर त्यो बोलला आसल त्येवडं त्येचा बा समद्या आयुष्यात माझ्यासंगं बोललेला न्हाय.. त्ये बी जाऊंदेल .. आगं, मी  माज्या मामांजीस्नी माझ्या सासूसंगं बोलताना येक डाव बी बघितलं न्हवतं.. मी नवरी हून आले तवा मला वाटायचं ह्येचं कायतरी बिनासल्यालं दिसतंय.. एकडाव मी सासूला ईचारल तर ती म्हणाली, ‘ ही ब्येनंच तसलं हाय.. कुनीबी बायकांसंगती बोलत न्हाय… ती घरात असली की निसतं मळभ दाटल्यावानी वाटतं बग ..”

सासूच्या शेवटच्या वाक्याने तिलाही हसू आले होते.

बिरोबाच्या शिवाराकडे जाता जाता तिला हे आठवले तसे तिच्याही चेहऱ्यावर क्षणभर हसू फुललं होतं.. पुढच्याच क्षणी सासूची आठवण झाली आणि तिच्या डोळ्यांत पाणी तरळलं..दोन वर्षांपूर्वी गावंदरीच्या रानातनं भांगलून माघारी येताना.. सासूनं तिला गवताचे वजं उचलून दिलं अन् म्हणाली,

“तू हो म्होरं . मी येती द्वारकामावशी संगं.. वाईच दमा दमानं .. ”

शेजारची द्वारकामावशी  आधीच म्हातारी  त्यात तिचे गुडघे दुखत होते.. तरी ती भांगलायला येत होती.. सासू जाता येता तिच्या गतीने तिला संगती घेऊनच जात येत असे. भांगलताना ही द्वारकामावशीला सांभाळून घेत होती. मावशीची मागं पडलेली पात पुढनं भांगलत येऊन पूरी करत होती..  तिला हे नित्याचच होतं. ती गवताचं वजं घेऊन वळत असतानाच द्वारकामावशींनी मिश्रीची डबी काढली तसे तिच्या मनात आलं , ‘ आता काय दोघीबी लवकर याच्या न्हाईत घरला.. मिश्री लावून झाल्याबिगर उठायच्याच न्हायती..,’  काहीसे स्वतःशीच हसून ती झपाझप घराकडे निघाली. ती निम्म्या वाटेत असतानाच पावसाला सुरवात झाली.. पण निवाऱ्याला कुठेही न  थांबता ती तशीच पावसात भिजत घरी आली होती….

पावसाची चळक थांबूनसुद्धा बराच वेळ झाला होता पण सासू घरी आली नाही.. तसे तिला काळजी वाटू लागली होती.. वेळ जात होता तशी तिच्या मनातली सासूची काळजी वाढतच चालली होती .

क्रमशः

© श्री आनंदहरी

इस्लामपूर, जि. सांगली

भ्रमणध्वनी:-  8275178099

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ जीवन गाणे -1 ☆ सौ. अंजली गोखले

☆ मनमंजुषेतून ☆  जीवन गाणे -1☆ सौ. अंजली गोखले ☆

B.B C. वर नुकताच एक चांगला कार्यक्रम पहायला मिळाला. परदेशातील लोकांनी बनवलेला. विचार, प्रयोग, निरीक्षण, परिक्षण ‘ अनुमान निकाल या सगळ्या टप्यांवर आधारीत प्रयोगशील कार्यक्रम होता. प्रश्न निवडला होता तो जगातील सर्व स्त्री – पुरुषांसाठी चा

सर्वसामान्य पणे संपूर्ण जगामध्ये ६० वर्षे वयावरील सर्वाना सिनियर सिटिझन – अर्थात वृद्ध म्हणून संबोधले जाते. त्यांनी साठ वर्षे किंवा त्याहूनही कमी वयाचे स्त्री पुरुष निवडले होते. त्यांचे खरे वय नोंद केले गेले. त्यानंतर त्यांची उंची वजन ‘ काम करण्याची क्षमता, काय – किती खातात ‘ हे सगळे नोंद केले आणि एका मशिन व्दारे त्यांची स्थूलता ‘ त्यांच्या – मध्ये असलेले कोलेस्टिरॉल ‘ ते करत असलेले काम, व्यायाम या व्दारा त्यांच्या शरीराचे वय काढले. रिझर्टस् अचंबित करणारे होते.

एक ४९ वयाचा निवृत्त पोलीस अधिकारी होता. तो भरपूर जाड होता. नऊ महिन्याच्या गरोदर बाईचे पोट कसे वाढलेले दिसते ‘ तसे त्याचे सर्वसाधारण पोट होते. त्याच्या सगळ्या नोंदी केल्या गेल्या. मशिनव्दारे त्याचे वय काढले गेले. ४९ वयाच्या माणसाच्या शरीराचे वय किती यावे? तब्बल ९० वर्षे! तोही चमकलाच. त्याचा चेहरा इतका पडला की काही विचार नका. पण प्रयोग करणाऱ्या मंडळीनी त्याला दिलासा दिला. त्याला त्याचा व्यायाम खाणे पिणे, फिरणे, काम करण्याची पद्धत सगळे आखून दिले. तो खुर्चिमध्ये तासन्तास बसून कॉम्प्युटरवर काय करत होता. काय करणे तर त्याला सोडून चालणार नव्हते. त्यांनी त्याला उभे राहून कॉम्प्युटर उंच ठेऊन का म करण्याचा सल्ला दिला. त्याने तो मानला त्याचे खाणे किती काय खायचे ते ठरवून दिले. आणिसहा आठवड्यांनी पुनः परत बोलावले. त्यानेही मनापासून ते सगळे पाळले आणि ६ आठवड्यानंतर त्याच्या वजनामध्ये पोटाच्या घेरामध्ये ‘ त्याच्या कार्यक्षमते मध्ये लक्षणीय फरक दिसून आला. त्याच्या चेहऱ्यावर हसू फुलले. त्याच्या शरीराचे वजन ९० वरून ७२ पर्यंत कमी आले होते. आता त्याला त्यांचे सांगणे जास्तच पटले आणि वय आणखी कमी करण्याचा निर्धार त्याने केला.

एका प्रौद बाईवरही असाच प्रयोग केलेला दाखवला. ती फार जाड नव्हती, का मं करत होती कार्यरत होती. तरी तिच्या नैसर्गिक वयापेक्षा मशिनव्दारे शारीरिक वय जास्त आले. निरीक्षणामध्ये चेहऱ्यावर जास्त सुरकुत्या आल्या होत्या. तिलाही त्यांनी योग्य तो व्यायाम. योग्य खाणे ठरवून दिले. ६ आठवड्यानंतर तिच्याही चेहऱ्यावरच्या सुरकुत्या कमी झालेल्या आढळून आल्या. काम करण्यामध्ये तिचा उत्साह वाढला होता. शारीरिक वय कमी झाल्याची नोंद झाल्यावर तिचा आनंद गगनात मावेना. ती खूप खुष होऊन गेली.

© सौ. अंजली गोखले

मो ८४८२९३९०११

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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