हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – श्वासोच्छवास ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – श्वासोच्छवास ?

कदम उठे,

यात्रा बनी,

साँसें खर्च हुईं,

अनुभव संचित हुआ,

कुछ दिया, कुछ पाया,

अर्द्धचक्र पूर्ण हुआ,

भूमिकाएँ बदली-

शेष साँसों को

पाथेय कर सको

तो संचय सार्थक है

अन्यथा

श्वासोच्छवास व्यर्थ है!

 

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 118 ☆ ए टी एम से पाँच रुपैया बारह आना का विथड्रावल ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा रचित एक विचारणीय व्यंग्य  ‘ए टी एम से पाँच रुपैया बारह आना का विथड्रावल । इस विचारणीय कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 118 ☆

? व्यंग्य – ए टी एम से पाँच रुपैया बारह आना का विथड्रावल ?

आपको पता है गर्मियो में घूमने लायक जगह कौन सी होती हैं ? जिनके पास अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड और एयरपोर्ट लाउंज में एंट्री के लिये वीसा पास हो, उन पासपोर्ट व दस वर्षो के यू एस वीजा या शेनजेंग वीजा धारको के लिये  स्विटजरलैंड वगैरह उत्तम होते हैं.  जिन सरकारी अफसरान को लंबी छुट्टी जाने पर मीटर बंद होने और लाइन अटैच किये जाने का भय हो उनके लिये कैजुएल लीव में मसूरी देहरादून या लेह लद्दाख से काम चल सकता है.  हवाई सफर से जुड़े पर्यटन स्थलो के चुनाव करने से लाभ यह मिलता है कि वीक एंड के साथ दो तीन दिन की छुट्टी से ही काम चलाया जा सकता है. 

पर जो भारत के आम नागरिक हैं, अंत्योदय की सरकारी योजना के लाभार्थी हैं,  उनके लिये गर्मियो में घूमने जाने का सबसे अच्छे स्थान होते हैं शहर के शापिंग माल जहाँ बिना खरीददारी किये यहाँ वहाँ मटरगश्ती की जा सकती है,  प्राईवेट बैंक के बड़े बड़े हाल जहाँ भले ही खुद का खाता न हो,  खाता हो तो  भले ही उसमें रुपये न हों आप लोन लेने से लेकर बीमा करवाने या और कुछ नही तो कोई फार्म लेने के बहाने वहां थोड़ा समय तो गर्मी का अहसास ठंडक के साथ कर ही सकते हैं. 

जब ये दोनो भ्रमण स्थल भी अपर्याप्त लगें तो छै बाई छै का बिल्कुल निजी पर्यटन केंद्र होता है आपके पास का किसी भी बैंक का  ए टी एम. यदि अकारण वहां बार बार जाने से गार्ड आपको घूरने लगे तो एक से दूसरे दूसरे से तीसरे एटीएम इसीलिये बने हुये हैं. हाथ में एक झूठा सच्चा जीरो बैलेंस वाले एकाउंट का कार्ड  भी भारत की आम जनता को गर्मियो में राहत का सबब बन सकता है. मुझे तो लगता है हमारे सुदूर दर्शी प्रधान सेवक जी ने इसी लिये जन जन के खाते गर्मियो से बहुत पहले ही खुलवा दिये थे.

आजू बाजू इतने सारे एटीएम लाइन से देखता हूं तो मैं प्रायः सोचता हूं कि जब किसी भी एटीएम पर किसी भी बैंक का कार्ड चल सकता है तो हर बैंक अपने अलग एटीएम क्यो लगाते हैं ? मेरी यह धारणा पक्की हो जाती है कि जरूर ये गरीबो को गर्मियो की छुट्टियां बिताने के लिये ही बनाये जाते हैं. वैसे एटीएम की उपस्थिति से बाजार,  हवाई अड्डे,  रेल्वे स्टेशन का लुक चकाचक हो जाता है,  कस्बा स्मार्ट सा लगने लगता है. यह बाई प्राडक्ट के रूप में देखा जा सकता है. एटीएम टाईप के मशीनी  बूथ से दूध,  कोल्डड्रिंक,  टिकिट,  जाने क्या क्या निकल रहा है इन दिनो जगह जगह. दरअसल एटीएम टाईप की मशीनें हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती हैं वे स्वालंब की झलक दिखलाती हैं. और कवि ने कहा है “स्वाबलंब की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष”  

यूं आन लाइन शापिंग के युवा समय में वैसे भी एटीएम शो पीस बनते जा रहे हैं. एटीएम आजकल कैश न होने का रोना रोने के महत्वपूर्ण काम भी आ रहे हैं. राजनीति करने ,  टीवी चैनलो पर हाट डिस्कशन के लिये,  कार्टून बनाने और व्यंग्य लिखने जैसे क्रियेटिव काम भी एटीएम के जरिये संपन्न हो पा रहे हैं.  

मैं तो रुपयो के इंफ्लेशन से बड़ा खुश हूं,  जो लोग पैट्रोल की कीमतें जता जता कर सरकार को कोसते हैं मेरा उनसे और तमाम अर्थशास्त्रियो से एक सवाल है,  यदि रुपया १९५८ के मजबूत स्तर पर आज तक बना होता तो बेचारा ए टी एम पाँच रुपैया बारह आने का विथड्रावल कैसे  देता ? वो तो भला हो पांच साला चुनावो का हर बार मंहगाई बढ़ती गई और आज शान से एटीएम २००० के गुलाबी नोट उगल सकता है,  क्या हुआ जो आजकल थोड़ी बहुत किल्लत है चुनावो में यदि एक वोट की कीमत एक दो हजार का नोट अनुमानित है तो यह हमारे लोकतंत्र की बुरी कीमत तो नही है,  गरीब वोटर की इस छोटी सी  मदद के लिये मुझे तो थोड़े दिनो बिना ड्रावल किये इस एटीएम से उस एटीएम भागना मंजूर है, एटीएम एटीएम की  ठंडक के अहसास के साथ. 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 71 ☆ उलझनों के बीच सुलझन ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “उलझनों के बीच सुलझन”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 71 – उलझनों के बीच सुलझन

स्कूल खुलते ही सभी आक्रोशित दिख रहे हैं; एक तरफ बच्चे जो इतने दिनों से अपने अनुसार जीवन जी रहे थे उन्हें गुस्सा आ रहा है तो दूसरी तरफ शिक्षक भी धैर्य खो चुके हैं। जल्दी से अपनी पकड़ मजबूत करने हेतु उल्टे – सीधे निर्णय लेकर बच्चों व अभिवावकों पर नियंत्रण रखने की कोशिश कर रहे हैं। अक्सर ऐसा होता है बिना समय की नब्ज को पहचाने हम अधीरता के वशीभूत निर्णय कर लेते हैं, जो अप्रिय लगते हैं।

दो बच्चों के बीच हाथापाई हुई और कटघरे में आसपास बैठे सारे लोग आ गए।आनन- फानन में प्राचार्या ने बच्चों के स्कूल आने पर प्रतिबंध लगा दिया अब तो सारे अविभावक भी जोश में आकर अपने अधिकारों की माँग पर अड़ गए। एक साथ कई बैठकें रखी गयीं। औपचारिक बातचीत होने के अलावा कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। सभी मानसिक उलझनों के बीच कुछ अच्छा ढूंढने की कोशिश में और उलझते जा रहे थे। अंत में ये तय हुआ कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, लोग अपनी- अपनी जगह सही हैं; बस इतने दिनों बाद मिल रहे हैं इसलिए एक दूसरे को समझने में थोड़ा वक्त लगेगा।

जाने- अनजाने लोगों द्वारा जब ऐसा होता है तो स्थिति भयावय हो जाती है। कार्यक्षेत्रों में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। भय बिनु होय न प्रीत को चरितार्थ करते हुए भय का सहारा लेकर समय- समय पर लोग अपने उल्लू सीधे करते हुए नज़र आते हैं। इससे टेढ़े- मेढ़े विचारों का जन्म होता और कलह का वातावरण निर्मित हो जाता है। ऐसी तमाम उलझनों से सुलझते हुए जीना कोई आसान कार्य नहीं होता है। बड़े- बड़े गुनी लोग भी आसानी से इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं।

आजकल छोटी सी बात को बड़ा तूल देते हुए हफ्ते भर मीडिया वाले जिसका राग अलापते हैं अंत में उसे ही सिरे से खारिज करते हुए कह देते हैं ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था ये तो महज सोची समझी चाल थी जो सत्ता दल अपने पक्ष में करने हेतु कर रहा है। वहीं सुस्त विपक्ष भी अचानक से होश में आता है और आनन- फानन में अपने प्रवक्ता द्वारा कहलवाने लगता है हम लोगों का इसमें कोई हाथ नहीं ये तो गोदी मीडिया है। अपने पक्ष में आरोपी ही प्रायोजित साक्षात्कार करवाते हैं और माइंड चेंजिंग गेम की तरह सब कुछ मूक दर्शकों के ऊपर छोड़कर मामले को रफा – दफा कर देते हैं।

कोई भी मुद्दा हो खत्म राजनीति पर ही होता है। जब कोई रास्ता नहीं दिखता तो समस्या का राजनीतिकरण करके मामले को सलटा दिया जाता है। आश्चर्य तो तब होता है कि देश की हर घटना कैसे इससे जुड़ी होती है। क्या जन सेवक ही सबकी सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अरे भई जनतंत्र है जनता को ही जिम्मेदारी लेना सीखना होगा तभी उलझनों के बीच सुलझन निकल सकेगी।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 80 ☆ गीत – जीते जी मर जाना क्या ? ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण गीत जीते जी मर जाना क्या ?”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 80 ☆

☆ जीते जी मर जाना क्या ? ☆ 

जीते जी चमको सूरज से

      जीते जी मर जाना क्या?

कितना पाया, कितना खोया

     इसका गणित भिड़ाना क्या?

 

पढ़ें किताबें, करें यात्रा

      सुन लें जीवन की ध्वनियाँ।

बच्चों से भी हँसें – हँसाएं

      दुलाराएं मुन्ना – मुनियाँ।।

 

कर दें कुछ तारीफ गैर की

       इसमें मोल चुकाना क्या ?

 

जीवित रखना स्वाभिमान को

      कुछ हितकारी भी बनना।

सत्य, प्रेम के आभूषण से

      दुख गैरों के तुम सुनना।।

 

मत गुलाम आदत के होना

        खुद को रोज रुलाना क्या ?

 

जो मिथ्या है और दिखावा

       उसको जल्दी छोड़ो जी।

जीवन की सच्चाई जानो

       सच से मुख मत मोड़ो जी।।

 

आवेगों और संवेगों की

       नमता से शर्माना क्या ?

 

बदलें खुद को शांत चित्त से

          जानें भी परिणामों को।

संशय, भ्रम में भटक न जाना

        करें सुनिश्चित कामों को।।

 

मानें उचित सलाह सभी की

      बातें और बढ़ाना क्या ?

 

पढ़ें पूर्वजों के शास्त्रों को

      जिनने जीवन दान किया।

नहीं भुलाया है संस्कृति को

      सबका ही सम्मान किया।।

 

चेहरों पर दे दें मुस्कानें

         अपना दर्द सुनाना क्या ?

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 90 – लघुकथा – फुर्सत ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  लघुकथा  “फुर्सत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 90 ☆

☆ लघुकथा — फुर्सत ☆ 

पत्नी बोले जा रही थी। कभी विद्यालय की बातें और कभी पड़ोसन की बातें। पति ‘हां- हां’ कह रहा था। तभी पत्नी ने कहा, ” बेसन की मिर्ची बना लूं?” पति ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी।

” मैं क्या कह रही हूं? सुन रहे हो?” पत्नी मोबाइल में देखते हुए कह रही थी।

पति उसी की ओर एकटक देखे जा रहे थे । 

तभी पत्नी ने कहा, ” तुम्हें मेरे लिए फुर्सत कहां है ? बस, मोबाइल में ही घुसे रहते हो।”

पति ने फिर गर्दन ‘हां’ में हिला दी । तभी पत्नी ने चिल्ला कर कहा, ” मेरी बात सुनने की फुर्सत है आपको ?”  कहते हुए पति की ओर देखा।

पति अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

11-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (41-45) ॥ ☆

 

उचित व्यवस्था सुचारू भोजन जगह जगह लोक उपहार पैसे

युवराज अज को निवास भग के लगे हों उद्यान – बिहार जैसे ॥ 41॥

 

तो धूल -धूसर ध्वजा थकी सेना देख आज ने पड़ाव डाले

उस नर्मदा तट जहाँ पै श्शीतल पवन मुदित तरू थे विल्व बाले ॥ 42॥

 

डूबकी लगाये कोई वन्य गज है उमड़ते भ्रमरदल को लख समझ आया

लिये धुला मस्तक कोई मस्त हाथी, तभी नर्मदा से निकलता दिखाया ॥ 43॥

 

छुले दातों से थी धुली लाल मिट्टी मगर नील मिट्टी का था शेष लेखा

ऋतुवान पर्वत पै की वप्र क्रीड़ा का संकेत देती थी कुछ लग्न रेखा ॥ 44॥

 

सिकोड़ – फैलाती सूँड़ से शब्द कर जल तरंगो को चीरता सा

तट ओर आता गयंद लगता था श्रंखला अपनी तोड़ता सा ॥ 45॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १४ ऑक्टोबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

?१४ ऑक्टोबर  – संपादकीय  – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ?

आज 14 ऑक्टोबर. सुप्रसिद्ध मराठी साहित्यिक श्री.सुभाष भेंडे आणि थोर विचारवंत श्री.आ.ह.साळुंखे यांचा आज जन्मदिवस.

श्री.सुभाष भेंडे यांचा जन्म 14/10/1936 ला गोव्यातील बोरी येथे झाला. त्यांचे शिक्षण सांगली व पुणे येथे झाले. कीर्ती महाविद्यालय, मुंबई येथे त्यांनी अर्थशास्त्राचे प्राध्यापक म्हणून दीर्घ काळ सेवा केली.अर्थशास्त्रातील डॉक्टरेट संपादन केली असली तरी अंगभूत साहित्यिक गुणांमुळे त्यांच्या कडून विविध विषयांवरील सुमारे पन्नास पुस्तकांची निर्मिती झाली.अदेशी, अंधारवाटा, उध्वस्त, ऐंशी कळवळ्याची जाती, गड्या आपला गाव बरा, हास्यतरंग, दिलखुलास ही त्यातील काही पुस्तके. 2003साली कराड येथे भरलेल्या अ.भा.मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.तसेच 21 व्या गोमंतक मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते. 13/12/2010 रोजी त्यांचे निधन झाले.

श्री.आण्णासाहेब हरी तथा आ.ह.साळुंखे यांचा जन्मही आजचाच. खाडेवाडी ता.तासगाव जि.सांगली येथे 1943 ला त्यांचा जन्म झाला. मराठी व संस्कृत या विषयात एम्.ए. व संस्कृत विषयात पी.एच्.डी. त्यांनी संपादन केली आहे. सातारा येथील लालबहाद्दूर शास्त्री महाविद्यालयात 32 वर्षे अध्यापनाचे कार्य केले. सुमारे साठ ग्रंथांचे लेखन त्यांच्या हातून झाले आहे. हे सर्व लेखन सांस्कृतिक परिवर्तनाचा पाया घालून विचारांना दिशा देणारे असे आहे. गौतम बुद्ध, फुले, शाहू, आंबेडकर यांच्या विचारांचा वारसा पुढे चालवणारे थोर विचारवंत अशी त्यांची ख्याती आहे. विचारवेध संमेलन, सत्यशोधक संमेलन, विद्रोही साहित्य संमेलन, शिवाजी विद्यापीठ इतिहास परिषद अशा अनेक ठिकाणी त्यांनी अध्यक्षपद भूषविले आहे.

समाजस्वास्थ्यासाठी संततिनियमन आणि लैंगिक शिक्षण यासंबंधी बुद्धीवादी विचार प्रवर्तन  व प्रत्यक्ष कार्य करणारे थोर विचारवंत कै.रघुनाथ धोंडो कर्वे यांचा आज स्मृतीदिन. (1953) गणित विषयातील प्रावीण्याशिवाय समाज प्रबोधनाचे फार मोठे कार्य त्यांनी केले आहे.त्यांच्या काही कलाकृती… संततिनियमन -विचार आणि आचार, गुप्तरोगापासून बचाव, आधुनिक कामशास्त्र, आधुनिक आहारशास्त्र यावरून त्यांच्या कार्याची कल्पना येईल.

साहित्यसम्राट न. चि. केळकर यांचा आज स्मृतीदिन (1947).केसरी आणि मराठा या वृत्तपत्रांचे 41 वर्षे संपादन, नाटक, निबंधलेखन, सुभाषिते, विनोद अशा सर्व प्रांतात त्यांनी विपुल लेखन केले आहे.अमात्य माधव, तोतयाचे बंड, चंद्रगुप्त, यासारखी नाटके,ग्यारीबाल्डीचे चरित्र, लोकमान्यांच्या चरित्राचे दोन खंड, भारतीय तत्वज्ञान,मराठे आणि इंग्रज, ज्ञानेश्वरी सर्वस्व, हास्य विनोद मिमांसा, अशा पुस्तकांची निर्मिती त्यांच्या नावावर आहे.

थोर इतिहास संशोधक सेतु माधवराव पगडी यांचा आज स्मृतीदिनानिमित्त. (1994) ते महाराष्ट्र राज्याचे सचीव म्हणून कार्यरत होते. त्याशिवाय इतिहास संशोधनासाठी त्यांनी मोलाचे कार्य केले. विशेषतः शिवकालीन इतिहास हा त्यांचा आवडता विषय होता. त्यांना पद्मभूषण या नागरी किताबाने  गौरवण्यात आले होते.

वरील माहिती विविध लेख,व इंटरनेट वरून उपलब्ध झाली आहे.

सुहास रघुनाथ पंडित

(संपादक मंडळासाठी)

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ महालक्ष्मी ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक

श्रीमती अनुराधा फाटक

? कवितेचा उत्सव ?

☆ महालक्ष्मी… ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक ☆ 

आठव्या दिवशी महालक्ष्मी

करितो आम्ही तुझे पूजन

दिलेस समृध्द जीवन

तुझे व्हावे सतत स्मरण

त्यासाठी हे पूजन !

 

© श्रीमती अनुराधा फाटक

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 82 – ती…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #82 ☆ 

☆ ती…! ☆ 

आजपर्यंत तिनं

बरंच काही साठवून ठेवलंय ..

ह्या… चार भिंतींच्या आत

जितकं ह्या चार भिंतींच्या आत

तितकंच मनातही…

कुणाला कळू नये म्हणून

ती घरातल्या वस्तूप्रमाणे

आवरून ठेवते…

मनातला राग..,चिडचिड,

अगदी तिच्या इच्छा सुध्दा..,

रोजच्या सारखाच

चेहऱ्यावर आनंद आणि समाधानाचा

खोटा मुखवटा लाउन

ती फिरत राहते

सा-या घरभर

कुणीतरी ह्या

आवरलेल्या घराचं

आणि आवरलेल्या मनाचं

कौतुक करावं

ह्या एकाच आशेवर…!

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ उदे ग अंबे उदे भाग २ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? विविधा ?

☆ उदे ग अंबे उदे  भाग २ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

 ( मागील भागात आपण पहिले –  तिथे जाऊन त्यांनी विष्णू हाच हविर्भागदेण्यासाठी योग्य आहे,  असे सांगितले. तेव्हापासून भक्तवत्सलांछनहे बिरुद विष्णूदेवाने अलंकाराप्रमाणे मिरवले आहे. आता इथून पुढे )

भृगुऋषी निघून गेले, पण लक्ष्मीला मात्र त्यांच्या वर्तनाचा राग आला. ती म्हणाली, ‘तुमच्या हृदयातील माझ्या निवासावर,  आलिंगन स्थानावरच त्यांनी लाथ मारली. हा माझा घोर अपमान आहे. तुम्ही त्यांना काहीही न बोलता, त्यांचे आगत-स्वागत केलेत. पण मला हे सहन होत नाही. मी आपल्या सान्निध्याचा व या वैकुंठाचा त्याग करून, परमदिव्य अशा महाक्षेत्री करविरास ( म्हणजेच  कोल्हपुरास) जाते. विष्णूने तिला खूप समजावण्याचा प्रयत्न केला. पण तिने ऐकले नाही. ( देव-देवताही माणसांसारख्याच रुसतात,  फुगतात तर! – देव,  दानवा नरे निर्मिले – केशवसुत ).

पुढचा कथा भाग असा,  लक्ष्मी गेल्यानंतर विष्णूला चैन पडेना. तिच्या लाभासाठी त्याने दहा वर्षे तपश्चर्या केली. मग नंतर आकाशवाणी झाली, की सुवर्णमुखरी नदीच्या उत्तर तिरावर तपोभूमी तीर्थ स्थापन कर. तिथे देवलोकातील दिव्य कमळे,  नाना परिमळाचे वृक्ष लाव. तिथे १२ वर्षे तप कर. त्याप्रमाणे विष्णूने सरोवर निर्माण केले. वृक्ष लावले व तपश्चर्या केली. तिथे पद्मतीर्थात लक्ष्मी प्रगटली. तीच पदमवती होय. तिने कल्हार (कृष्णकमळ) फुलांची माळ विष्णूच्या गळ्यात घातली. विष्णूने त्यानंतर पुष्करणी जवळिल शेषाचलावर वस्तव्य केले. हे पुढे वेंकटगिरी या नावाने प्रसिद्धीस आले. इथे वेंकटेशाच्या हृदयावर लक्ष्मीची मूर्ती आहे, पण त्याच्याशेजारी ना लक्ष्मी आहे, ना पद्मावती. पद्मावतीचे  मंदीर खाली सरोवराजवळ आहे. लक्ष्मीचा निवास कोल्हापुरी आहे. त्यामुळे कोल्हापूर हे वैष्णव क्षेत्रही झाले. जनमानसावरील हा ठसा स्पष्ट आणि गडद होण्याच्या दृष्टीने,  पुढे नवरात्रात तिरुपती देवस्थानहून महालक्ष्मीसाठी किती तरी लाखांचे शालूही येऊ लागले. ही प्रथा कधीपासून सुरू झाली, हेही अभ्यासकांनी अभ्यासायला हरकत नाही.

सर्वसामान्य श्रद्धाळू भाविकांच्या दृष्टीने मात्र देवी जगदंबा,  मग ती पार्वती असो,  की लक्ष्मी,  जगाची माता आहे. शक्तिमान आहे. भक्तांच्या  मनोकामना  पूर्ण करणारी आहे. दुष्टांचे निर्दाळण करणारी आहे. एवढेच त्यांना पुरेसे असते.

देवीने अनेक असुरांचा नाश केला. शुंभ-निशुंभ, धूम्रवर्ण, रक्तबीज आणखी किती तरी… देवी महात्म्यात त्याचे वर्णन आहे. प्राचीन काळी कोलासुर नावाचा दैत्य स्त्रियांना फार त्रास द्यायचा. तेव्हा सर्व स्त्रियांनी ब्रह्मा, विष्णू, महेश यांची प्रर्थना केली. मग त्यांनी कोलासुराचा नाश करण्याचे कार्य महालक्ष्मीवर सोपवले. महालक्ष्मीने कोलासुराला मारून लोकांना संकटमुक्त केले. या घटनेवरून त्या नगरीला कोल्हापूर हे नाव प्राप्त झाले. कोलासुर म्हणजे रानडुक्कर. ते शेतीची नासधूस करते. देवीने त्याला मारून शेतीचे रक्षण केले. म्हणून महालक्ष्मी ही समृद्धीची देवताही मानली जाते.

दुर्गा, महिषासुरमर्दिनी हेही त्या महालक्ष्मीचेच रूप. त्याबद्दल अशी कथा सांगितली जाते, की देव-दानवांचा संग्राम झाला. त्यात असुरांचा जय झाला. असुरांचा राजा महिषासुर इंद्र झाला. त्याने देवांचे अधिकार हिरावून घेतले. देव दीन झाले. ते ब्रह्मदेवाकडे गेले व त्याच्यासह शंकर आणि विष्णू यांच्याकडे गेले.  ते ऐकून शंकर क्रोधित झाले. त्यांच्यामुखापासून तेज निघाले, तसेच सर्व देवांच्या मुखातून तेज निघाले.  ते तेज एकत्र झाले. ते तेज एकत्र मिळून एक नारी झाली. पुढे देवी महात्म्यात म्हंटले आहे, ‘तीच भवानी जगदंबा । त्रैलोक्याची जननी अंबा । जी हरिहराते स्वयंभा। उत्पन्न करिती जाहली । म्हणजे, जिने देवांना उ्पन्न केले,  त्यांच्या तेजापासून तिनेभक्तकार्यासाठीपुन्हा अवतार घेतला, असे वर्णन आहे. शंकराच्या तेजापासून तिचे मुख झाले. यमाच्या तेजापासून केस,  विष्णूच्या तेजापासू नबाहू,  अशाप्रकारे विविध देवांच्या तेजापाससून तिचे विविध अवयव बनले. नंतर  सतत नऊ दिवस व नऊ रात्री तिने महिषासुर व असुर सैन्याशी युद्ध केले आणि महिषासुराचा व सर्व असुर सैन्याचा वध केला आणि देवांना आणि पृथ्वीला असुरांच्या तावडीतून मुक्त केले. या कालावधीत देवही तपश्चर्येला बसले होते. आपल्या तपाचे पुण्य त्यांनी देवीला अर्पण केले. अखेर नऊ दिवस आणि नऊ रात्रींच्या तुंबळ युद्धानंतर महिषासुराचा वध झाला. दसरा हा देवीच्या विजयोत्सवाचा दिवस.

क्रमशः......

© श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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