हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 48 – मंदिर ऑफलाइन, भक्ति ऑनलाइन ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार, बाल साहित्य लेखक, और कवि हैं। उन्होंने तेलंगाना सरकार के लिए प्राथमिक स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 55 पुस्तकों को लिखने, संपादन करने, और समन्वय करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके ऑनलाइन संपादन में आचार्य रामचंद्र शुक्ला के कामों के ऑनलाइन संस्करणों का संपादन शामिल है। व्यंग्यकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ने शिक्षक की मौत पर साहित्य आजतक चैनल पर आठ लाख से अधिक पढ़े, देखे और सुने गई प्रसिद्ध व्यंग्यकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। तेलंगाना हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार द्वारा श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान, 2021 (तेलंगाना, भारत, के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के करकमलों से), व्यंग्य यात्रा रवींद्रनाथ त्यागी सोपान सम्मान (आदरणीय सूर्यबाला जी, प्रेम जनमेजय जी, प्रताप सहगल जी, कमल किशोर गोयनका जी के करकमलों से), साहित्य सृजन सम्मान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों से और अन्य कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठात्मक सम्मान प्राप्त हुए हैं। आप प्रत्येक गुरुवार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – चुभते तीर में उनकी अप्रतिम व्यंग्य रचनाओं को आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय व्यंग्य रचना मंदिर ऑफलाइन, भक्ति ऑनलाइन)  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 48 – मंदिर ऑफलाइन, भक्ति ऑनलाइन ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ 

(तेलंगाना साहित्य अकादमी से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

आज का युग “डिजिटल भक्तों” का है। हर व्यक्ति के हाथ में स्मार्टफोन है और हर स्मार्टफोन में “भक्ति ऐप”। इन ऐप्स में भगवान की आरती, मंत्र और पूजा विधि उपलब्ध है। भक्त अब मंदिर जाने की बजाय वर्चुअल दर्शन करते हैं। भगवान भी डिजिटल हो गए हैं। यह युग तकनीक का है, जहां भक्ति भी इंटरनेट पर निर्भर हो गई है। भक्तों को अब घंटों लाइन में लगने की जरूरत नहीं, बस एक क्लिक और भगवान आपके सामने स्क्रीन पर प्रकट हो जाते हैं। यह सुविधा देखकर भगवान भी सोच में पड़ गए हैं कि आखिर उनकी भक्ति का स्वरूप इतना बदल कैसे गया।

एक दिन भगवान विष्णु ने नारद से कहा, “नारद, देखो तो, ये भक्त मेरे नाम पर क्या कर रहे हैं?” नारद ने हंसते हुए जवाब दिया, “प्रभु, ये तो डिजिटल भक्ति है। भक्त अब आपकी मूर्ति के सामने नहीं आते, बल्कि स्क्रीन पर आपका लाइव स्ट्रीमिंग देखते हैं।” यह सुनकर भगवान विष्णु को जिज्ञासा हुई और उन्होंने धरती पर जाकर स्थिति देखने का निश्चय किया। जब वे एक भक्त के घर पहुंचे तो देखा कि वह पूजा कर रहा था लेकिन उसकी नजर मोबाइल स्क्रीन पर थी। भगवान ने पूछा, “वत्स, मेरी मूर्ति कहां है?” भक्त ने उत्तर दिया, “प्रभु, मूर्ति की क्या जरूरत? आपके वर्चुअल दर्शन कर रहा हूं। यहां आपका 4के वीडियो है!”

भगवान विष्णु ने नारद से कहा, “नारद, यह तो अच्छा है। अब मुझे धरती पर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। भक्तों को सिर्फ इंटरनेट चाहिए और मैं उनके पास हूं।” नारद ने मुस्कुराते हुए कहा, “प्रभु, यह तो तकनीक का चमत्कार है। अब आपकी भक्ति भी डिजिटल हो गई है। लेकिन सोचिए अगर इंटरनेट बंद हो जाए तो क्या होगा?” भगवान ने सोचा कि तकनीक ने भक्ति को सुविधाजनक बना दिया है लेकिन साथ ही इसे निर्भरता में बदल दिया है।

तभी एक दूसरा भक्त आया और बोला, “प्रभु, आपके दर्शन के लिए मेरा इंटरनेट पैक खत्म हो गया है। कृपा करके थोड़ा डेटा दे दीजिए!” यह सुनकर भगवान विष्णु चौंक गए। उन्होंने नारद से कहा, “नारद, अब मुझे ‘डिजिटल डेटा’ का अवतार लेना पड़ेगा!” नारद ने हंसते हुए कहा, “प्रभु, अब भक्तों की भक्ति आपके प्रति नहीं बल्कि डेटा पैक के प्रति अधिक हो गई है।”

© डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

संपर्क : चरवाणीः +91 73 8657 8657, ई-मेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 240 ☆ शुभस्थ शीघ्रम… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना शुभस्थ शीघ्रम। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 239 ☆ शुभस्थ शीघ्रम

मौन मुखरित हो रहें हैं

शब्द के बोले बिना ।

भाव जैसे शून्य लगते

नैन के खोले  बिना ।।

*

धड़कने भी बात करतीं

आस अरु उम्मीद की ।

राह पर चलना सरल क्या

खाय हिचकोले बिना ।।

प्रतिष्ठा का वस्त्र जीवन में कभी नहीं फटता, किन्तु वस्त्रों की बदौलत अर्जित प्रतिष्ठा, जल्दी ही तार- तार हो जाती है.

सुप्रभात में आया ये मैसेज बहुत ही सुंदर संदेश दे रहा है। लोग कहते हैं चार दिन की जिंदगी है मौज- मस्ती करो क्या जरूरत है परेशान होने की। कुछ हद तक बात सही लगती है। मन क्या करे सुंदर सजीले वस्त्र खरीदे, पुस्तके खरीदे, सत्संग में जाए, फ़िल्म देखे या मोबाइल पर चैटिंग करे?

प्रश्न तो सारे ही कठिन लग रहे हैं, एक अकेली जान अपनी तारीफ़ सुनने के लिए क्या करे क्या न करे? सभी प्रश्नों के उत्तर गूगल बाबा के पास रहते हैं सो मैंने भी उन्हीं की शरण में जाना उचित समझा, प्रतिष्ठा कैसे बढ़ाएँ सर्च करते ही एक से एक उपाय सामने आने लगे, यू ट्यूब पर तो बौछार है ऐसे वीडियो की। हमारे मन में अहंकार कहीं न कहीं छुपा बैठा होता है जो जैसे ही अवसर पाता है निकल भागता है, सो वो भी हाज़िर हो गया, उसने तुरंत दिमाग़ को संदेश दिया कि क्या सारी उमर गूगल बाबा की चाकरी में निकाल दोगे, चलो अभी यू ट्यूब पर एकाउंट बनाओ और जल्दी से मोटिवेशनल वीडियो पोस्ट करो और हाँ सभी के व्हाट्सएप एप नम्बरों पर ये लिंक ब्राडकास्ट करना न भूलना।

अब जाकर दिल को सुकून आया कि सुबह जो मैसेज पढ़ा उसे कितनी जल्दी अमल में लाया, वाह ऐसे ही लोग सम्मान पाते हैं जो तुरंत कार्य सिद्धि में जुट जाते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – महाकाव्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – महाकाव्य ? ?

तुम्हारा चुप,

मेरा चुप,

कितना

लम्बा खिंच गया,

तुम्हारा एक शब्द,

मेरा एक शब्द,

मिलकर

महाकाव्य रच गया!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Divine Realm… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present Capt. Pravin Raghuvanshi ji’s amazing poem “~ Divine Realm… ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.) 

? ~ Divine Realm… ??

In the ego’s garden, sorrow and pain  and thrive,

In the realm of self, optimism and peace survive

 *

Let go of ego, then sorrow & sufferings fade away

Vanishes like mist, as the Sunlight comes to  stay

 *

Become a heart  that’s  free from vain and pride,

Surrender  yourself, as  God’s  will be your guide

 *

Breathe in His spirit, to let the Divine will unfold,

A pious life, where His blessings  never grow old

 *

Lord will protect you, with His gentle loving care,

Infuse peace and serenity that’s beyond compare

 *

In  the stillness of your heart, a melody will flow,

lasting harmony will prevail, in resplendent glow

~Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune
16 April 2025

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 346 ☆ लघु कथा – “पत्तों की जादूगरनी…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 346 ☆

?  लघु कथा – पत्तों की जादूगरनी…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

 किले से शहर जाने वाली सड़क, दिन भर पर्यटकों की आमादरफ्त होती रहती थी।

अपनी आजीविका के लिए मालिन हरिया सड़क किनारे कभी फूलों से तो कभी पेड़ पौधों की टहनियों से अनोखी कलाकृति बनाया करती थी। पर्यटक बरबस रुकते, जो तेज रफ्तार आगे निकल जाते वे भी लौटने पर मजबूर हो जाते। लोग उसके आर्ट की प्रशंसा करते, सेल्फी लेते, फोटो खींचते। इनाम में हरिया को इतना तो मिल ही जाता कि उसकी गुजर बसर हो जाती, यह हरिया मालिन की कला का जादू ही था।

हर दिन एक नई योजना हरिया के हुनर में होती थी। कभी छींद के पत्तों से वह पंखा बना लेती तो कभी नारियल के खोल की गुड़िया बनाकर बेचा करती थी। कभी टेसू के फूलों से सजावट करती, तो कभी गेंदें के फूलों की बड़ी सी रंगोली डालती।

एक संस्था ने हरिया के ईको आर्ट की प्रदर्शनी भी शहर में लगवाई थी, जिसकी खूब चर्चा अखबारों में हुई थी।

हरिया को भी लोगों के प्रोत्साहन से नया उत्साह मिलता, वह कुछ और नया नया करती।

आज हरिया ने हरी पत्तियों से कला का ऐसा जादू किया था कि तोतों की ढेर सारी आकृतियां बिल्कुल सजीव बन पड़ी थीं। “पत्तों की जादूगरनी” सड़क किनारे अपनी कला का जादू बिखेर रही थी, मन ही मन संतुष्ट और प्रसन्न थी।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 657 ⇒ राजकुमार ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “राजकुमार।)

?अभी अभी # 657 ⇒ राजकुमार ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जो अंतर आज एक मुंबई के भाई और हमारे भाई में है, वही अंतर हमारे कॉलेज के एक दादा और घर के दादा अथवा दादाजी में तब होता था। जिस तब का अब जिक्र होने जा रहा है, वह आज से ५५ वर्ष पुराना है।

कॉलेज के दिन थे। रैगिंग की शुरुआत ही समझिए। हम आर्ट्स के लोग, मेडिकल कॉलेज, और इंजीनियरिग कॉलेज की रैगिंग के किस्से सुन सुनकर ही काम चला लेते थे।

कॉलेज में कुछ लोग पढ़ने आते थे, कुछ दादागिरी करने। कथित पढ़ाकू लड़के आगे की बेंच पर बैठते थे और वरिष्ठ छात्र लॉर्ड ऑफ़ द लास्ट बेंच कहलाते थे।

हमारे आज के पात्र राजकुमार भी एक ऐसे ही दादा थे।।

बद अच्छा, बदनाम बुरा !

लेकिन जिसकी जैसी इमेज एक बार बन जाती है, उसमें से बाहर निकलना उसके लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है। राजकुमार को हम आगे से सुविधा के किए राज कहेंगे। मेरा उससे कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं था। उसके पिताजी एक ठेकेदार थे।

हम साइकिल पर चलने वाले, वह जीप में बैठकर कॉलेज आने वाला। उसका हमारा क्या मेल।

जिस प्रकार रजिया गुंडों में फंसती है, यह राज हमारे बीच फंस गया था। जी हां, उसने गलती से एक विषय अंग्रेजी साहित्य ले लिया था, जिसके कारण वह एक ही क्लास में कई सालों से अटका हुआ था। मुझे इस बात की जानकारी नहीं भी होती, अगर कॉलेज में यह घटना नहीं होती।।

इंग्लिश लिटरेचर नाम से ही लोग प्रभावित हो जाते थे, क्योंकि लोहिया के अंग्रेजी विरोधी आंदोलन के बाद अंग्रेजी का ऐसा ही बहिष्कार शुरू हो गया था, जैसा आजकल चीनी उत्पादों का हुआ है। आज का स्वदेशी नारा, और कल का अंग्रेजी विरोधी नारा, यानी विदेशी संस्कृति से किनारा। लेकिन फिर भी तब, हर जगह अंग्रेजी का बोलबाला था।

मैंने हमारी लिटरेचर की क्लास में एक पिकनिक का सुझाव क्या दे दिया, पिकनिक की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही आन पड़ी। हर छात्र, प्रोफेसर से पांच पांच रुपए, हां जी सिर्फ पांच पांच रुपए जमा किए गए। हमारे वरिष्ठ प्रोफेसर चंदेल साहब के प्रभाव से सांघी बेवरेजेस का एक ट्रक आ गया, जिसमें गद्दे तकिए लगाकर शान से हमारी ट्रिप इंदौर के पास ही एक स्थान पर सानंद संपन्न हुई। लिटरेचर की सभी लड़कियां, पूरा टीचिंग स्टाफ एवं सभी छात्र शामिल लेकिन कुछ लोगों के सुझाव पर सिर्फ राज उर्फ राजकुमार को इस पिकनिक में शामिल नहीं किया गया।।

गाज तो मुझ पर ही गिरनी थी ! हम एक दिन अकेले में घेर लिए गए। आशा के विपरीत राज साहब बड़े अदब से पेश आए लेकिन उनका लहजा निहायत शिकायत भरा था। वे आहत थे, कि उनकी छवि इतनी खराब है कि उनका पिकनिक से बहिष्कार किया गया। मेरे पास कोई जवाब नहीं था, कोई सफाई नहीं थी। मैं सिर्फ शर्मिंदा था।

धीरे धीरे राज साहब का राज खुलने लगा। वे मेरे करीब आने लगे। एक दिन बोले, चार साल से इस अंग्रेजी के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा हूं आप एक दिन मुझे पूरा मैकबेथ हिंदी में समझा दो। तब इन विषयों की गाइड अथवा कुंजी उपलब्ध नहीं होती थी। मुझे लगा, मुझे प्रायश्चित के लिए अवसर मिल रहा है। कॉफी हाउस की कुछ बैठकों में उन्हें शेक्सपीयर से अवगत करा दिया गया तथा कुछ समय रात में वे मेरे पास पढ़ने भी आए। उसके बाद उनकी गाड़ी ऐसी सरपट दौड़ी कि उन्होंने एम. ए. ही नहीं, एल एल. बी. भी कर लिया और एक सफल अधिवक्ता भी बन गए।।

अपनी बहन की खातिर उन्होंने आखरी समय तक विवाह नहीं किया। कॉलेज के भी वे असफल प्रेमी रहे जिसके कारण अवसादग्रस्त ही रहे। कभी कभी नजर आ जाते हैं। ज़िन्दगी से थके हारे से, टूटे हुए से। दिन बुरे होते हैं, हालात बुरे होते हैं, आदमी तो बुरा नहीं होता।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – आलेख ☆ आलेख ☆ महिलाओं की सुरक्षा  – ज़िम्मेदार कौन? ☆ श्री आलोक मिश्रा ☆

श्री आलोक मिश्रा

अल्प परिचय 

श्री आलोक मिश्रा जी मूलतः रायबरेली, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और अब सिंगापुर के स्थाई निवासी हैं। आलोक जी सिंगापुर की एक शिपिंग कंपनी में टेक्निकल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं | आलोक जी के दो साझा काव्य संग्रह, एक साझा ग़ज़ल संग्रह और एक साझा हिंदी हाइकु कोश प्रकाशित हो चुके हैं |

☆ आलेख ☆ महिलाओं की सुरक्षा  – ज़िम्मेदार कौन? ☆ श्री आलोक मिश्रा जी ☆

मैं जो बात कहने जा रहा हूँ, मैं समझता हूँ कि इससे सभी लोग सहमत नहीं होंगे, एकमत नहीं होंगे | उसकी आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि पूरे देश में अरब से भी अधिक की आबादी में सभी लोगों का किसी एक बात पर एकमत होना असंभव नहीं तो मुश्किल और असाध्य काम अवश्य लगता है | तो चलो उस पर ध्यान देने के बजाय मैं अपने विचार आप के सामने रखता हूँ |

आज जो कुछ हमारे आस-पास  घटित हो रहा है उस को ध्यान  में रखते हुए चुप रहना भी ठीक नहीं है | अगर कुछ सकारात्मक बात कहने के लिए है तो मैं समझता हूँ कि वह कही जानी  चाहिए, उसे लोगों के संज्ञान में लाना  चाहिए | यह अलग बात है कि अगर लोगों  को लगता है कि इस बात में कोई दम नहीं है, उसको बेझिझक नकार दें, अस्वीकार कर दें | इसमें कोई दुविधा वाली बात नहीं है | तो ये बात चल रही थी कि आजकल समाचार पत्रों, न्यूज़ चैनेल्स और सोशल मीडिया से पता चलता है  कि महिलाओं के साथ दुष्कर्म या दुराचार की निंदनीय हरकतें बढ़ गयी हैं | इन घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए जिससे देश में महिलाएँ अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें | लेकिन महवपूर्ण प्रश्न है कि  यह संभव हो तो कैसे?

पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश ने आर्थिक रूप से नई उपलब्धियाँ हासिल की हैं और साल दर साल नए आयाम प्राप्त किए हैं | रोज़गार के कई नए अवसर खुल रहे हैं हमारे युवाओं के  लिए | आज युवा वर्ग निजी व्यवसाय में भी आगे आ रहे हैं | देश की आर्थिक उन्नति में महिलाओं का भी बहुमूल्य योगदान रहा है | अब महिलाएँ घर की चारदीवारी के भीतर और बाहर दोनों जगह अपनी ज़िम्मेदारियाँ भली–भाँति निभा रही हैं | सेना में, फैक्ट्री में, दफ्तरों में या अन्य व्यवसाय में आज महिलाएँ उत्तम काम कर रहीं हैं | संभव है कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से उन्हें घर लौटने में देर हो जाती है | इससे महिलाओं के लिए अपनी सुरक्षा की चुनौती खड़ी हो गयी है |

अक्सर महिलाएँ दलील देती हैं कि पुरुषों को अपने मन पर काबू रखना चाहिए, महिलाओं के प्रति  उन्हें अपनी नीयत साफ़ और विचार स्वच्छ रखने चाहिए | बात तो ठीक है, लेकिन यह भी सच है कि किसी और को बदलने की बजाय स्वयं को बदलना आसान है | ऐसी भी दलीलें सुनाई पड़ती हैं कि “अगर पुरुष कभी भी कहीं भी आ-जा सकता है, तो महिलाओं पर रोक लगाने का क्या औचित्य है?” मैं समझता हूँ ऐसी दलीलों का कोई अंत नहीं है और ना ही इनके कुछ सकारात्मक निष्कर्ष निकलने वाले हैं | यह तो सोचिए कि आख़िर नुक्सान किसका है?

मैं समझता हूँ कि अपने बचाव में महिलाओं को आगे आना  होगा | उन्हें बहुत ज़िम्मेदारी भरे  क़दम उठाने होंगे अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए | आप शायद कहना चाह रहे होंगे “क्या उनके परिधान में अंग प्रदर्शन अधिक हो रहा है या उनकी भावभंगिमा ऐसी है जिसके कारण पुरुष अनुमान लगा  लेते हैं कि अमुक महिला  शारीरिक सम्बन्ध के लिए इच्छुक है |” जी नहीं, मैं ना तो  ऐसा कोई प्रस्ताव रख रहा हूँ और मैं इस बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ |

हाँ, कुछ बातें हैं जिस पर महिलाएँ अगर ध्यान दें  तो स्वयं को अधिक सुरक्षित रख सकती हैं | अभी हाल ही में एक समाचार सुनने में आया कि पुणे में बस अड्डे पर  खड़ी एक महिला बस का इंतज़ार कर रही थी | तभी एक लड़के ने उस के पास आकर  उसको बहन कह कर संबोधित किया और पूछा ‘बहन, कहाँ  जा रही हो?’ लड़की ने उसे  अपने गंतव्य की जानकारी दी | उस पर लड़के ने कहा कि ‘वहाँ की बस तो दूसरी जगह से जाती है | चलिए मैं आपको वहाँ ले चलता हूँ |’ वह लड़की बिना सोचे समझे एक अज्ञान व्यक्ति के साथ चल दी | उस लड़के पर  सिर्फ़ इसलिए विश्वास कर लिया कि उसने लड़की को बहन कह कर संबोधित किया था | आज हर घर में लड़कियों को सिखाया जाता है कि अपने आप को संभाल कर रखो | बचपन  में जब हम  रेलगाड़ी से यात्रा करते थे तो माँ हमेशा कहती थीं कि रात को सोते समय  अपना बैग पैरों के बीच में फंसा लेना | इस तरह के छोटे-छोटे आवश्यक निर्देश अपनी और अपने सामान की सुरक्षा की दृष्टि से माँ हमें बताती थीं और हम उनका अक्षरशः पालन भी करते थे |

दूसरे बस स्टैंड के पास  पहुँच कर लड़के ने एक बस की तरफ़ इशारा कर के कहा कि यह बस तुम्हारे गाँव जायेगी |  लड़की ने कहा ‘इस बस में तो  अंधेरा है |’ इस पर लड़का बोला “दीदी, यात्री बस में  बैठे हुए हैं | अभी थोड़ा समय है बस चलने में इसलिए ड्राईवर अभी नहीं आया | आप बैठो इस बस में | जैसे ही ड्राईवर आएगा, वह बिजली का स्विच आन कर देगा और बस में रोशनी आ जाएगी |’ सोचने वाली बात है कि अगर बस में कुछ लोग बैठे होते  तो क्या वह  सब साँस रोक कर चुप बैठे रहते | उसमें कुछ लोग  तो निश्चित  बातें करते | आज के युग  में तो सबके पास मोबाईल फ़ोन हैं | अंधेरा होगा तो लोग फ़ोन की लाईट से ही बस में उजाला कर लेंगे | खाली बैठने पर लोग सोशल मीडिया  में कुछ पढ़ या लिख रहे होते हैं | बहरहाल, पता नहीं वह लड़की कैसे उस लडके की बातों में आ गयी और उस अँधेरी बस में सवार हो गयी | लड़की के पीछे -पीछे वह लड़का भी बस में चढ़ गया और उस लड़की के साथ अपना मुंह काला किया |

महिलाओं को अपनी समझ बूझ का परिचय देते हुए किसी पर बिना सोचे समझे विश्वास नहीं करना चाहिए | रेलगाड़ी या बस में सफ़र करते समय यात्री अमूमन खान-पान साझा करते हैं जो समाज में  आपसी भाईचारे की बेहद ख़ूबसूरत मिसाल है | लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कुछ धोखाधड़ी के मामले संज्ञान में आए हैं कि अमुक यात्री ने खाने की चीज़ में कुछ नशीले पदार्थ मिलाकर सहयात्रियों को खिला दिया और उनका सामान लेकर चंपत हो गए |  महिलाओं को किसी अनजान व्यक्ति से कुछ खाद्य पदार्थ नहीं लेना चाहिए | ‘भूख नहीं है’ कहकर साफ़ मना कर देने में कुछ बुराई नहीं है |

अब एक और बात ध्यान देने योग्य है  | आज कल हर छोटे-बड़े शहरों में ड्रिंक्स बार हैं जहाँ पर शराब मिलती है और नाच-गाने की व्यवस्था होती है | आज के युवा लड़के-लड़कियाँ पूरे दिन ख़ूब  मेहनत से काम  करने के  बाद सुकून के लिए  अक्सर इन ड्रिंक्स बार में दोस्तों के साथ कुछ समय बिताते हैं | अगर कोई पुरुष महिला को ड्रिंक्स ऑफर कर रहा है तो महिला को चाहिए कि ड्रिंक्स लेने से साफ़ मना कर दे | महिला को अगर  ड्रिंक्स लेनी है तो ख़ुद बार काउंटर पर जाकर अपनी ड्रिंक्स ले और उसका भुक्तान भी स्वयं करे | महिला अगर शराब नहीं पीती है, तो उसे  दोस्तों के बहकावे में आकर या अपनी शान दिखाने के लिए  शराब नहीं पीनी चाहिए | पुरुष दोस्त या सहकर्मी के साथ कहीं जा रही हैं तो कोशिश करें कि अकेले ना जाएँ और सुनसान जगह पर कदापि ना जाएँ | होटलों में महिलाओं के  अश्लील वीडियो बनाने की ख़बरें आए दिन अख़बारों में छपती रहती हैं | आप कहेंगे ‘महिलाओं की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी पुलिस प्रशासन पर है |” जी बिलकुल, मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ | जो भी कारन हों, सच्चाई यही है कि महलाओं के प्रति आत्याचार और दुराचार की घटनाएँ थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं |

आजकल कई महिलाएँ नौकरी करती हैं | अगर महिला का  ऑफ़िस उसके  घर से  दूर है और रास्ता सुनसान जगह से गुज़रता है, तब कोशिश करनी चाहिए कि वह  ऑफ़िस से निर्धारित समय पर निकल जाए या फिर घर  से किसी को बुला ले रास्ते में साथ रहने के लिए |  अगर टैक्सी ले रही हैं, तो टैक्सी का नंबर अपने घर वालों, ऑफ़िस और मित्रों को ज़रूर व्हाट्सएप्प से भेज दें  जिससे कि वह टैक्सी का मार्ग ट्रैक कर सकते हैं | कुछ ऐसी भी नौकरियाँ हैं जहाँ शिफ्ट में काम होता है जैसे आई.टी. सेक्टर के कॉल सेंटर इत्यादि | अगर ऐसे काम आवश्यकतावश करने पड़ें, तो पहली कोशिश यही होनी चाहिए की रात की शिफ्ट में काम ना करें | अगर किन्हीं अपरिहार्य कारणों से ऐसा करना संभव ना हो, तो कंपनी के प्रबंधक के सामने अपनी चुनैतियों को रखें जिससे रात में कार्यस्थल के पास ही  ठहरने की सुरक्षित व्यवस्थ कंपनी के प्रबंधक करें | यह भी ध्यान रखें कि रात की ड्यूटी पर आप अकेली महिला कर्मचारी ना हों |

मैं समझता हूँ ऊपर बताई गयी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रख कर महिलाएँ अपने आप को सुरक्षित रख  सकती हैं |

© श्री आलोक मिश्रा

सिंगापुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शब्दों का मेला ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ शब्दों का मेला ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

शब्द-शब्द है चेतना, शब्द -शब्द झंकार।

मिले सृष्टि को जागरण, शब्द रचें आकार।।

 *

शब्द विश्व का रूप है, शब्द बने उजियार।

शब्द  उच्च उर्जा लिए, मेटे हर अँधियार।।

 *

शब्द ब्रम्ह हैं, ईश हैं, शब्द सकल ब्रम्हांड।

शब्द रचें अध्याय नित, मानस के सब कांड।।

 *

शब्द तत्व हैं, सार हैं, शब्द सृजन अभिराम।

शब्द सतत गतिशील हैं, सचमुच हैं अविराम।।

 *

शब्द नाद, सुर, ताल हैं, शब्द प्रीति, अनुराग।

शब्द गान, पूजन-भजन, शब्द दाह हैं, आग।।

 *

शब्द नेह हैं, प्यार हैं, शब्द गहन अभिसार।

शब्द युगों तक गूँजते, बनकर के आसार।।

 *

शब्द भाव, अभिव्यक्ति हैं, शब्द नवल आयाम।

सरिता के आवेग हैं, शब्द देवता-धाम।।

 *

शब्द मनुजता, वंदना, शब्द गीत, नवगीत।

शब्द वाक्य के संग में, बन जाते  मनमीत।।

 *

 शब्द खगों के स्वर बनें, हर अधरों के राग

शब्दों में संवाद है, ठुमरी, कजरी, फाग।।

 *

शब्द धरा आकाश हैं, बहते हुए समीर। 

शब्द दर्द दें, टीस हैं, जो हरते हैं पीर।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #208 – बाल कथा – लेजर का रहस्य – ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय और ज्ञानवर्धक कहानी-  “लेजर का रहस्य)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 208 ☆

☆ बाल कथा – लेजर का रहस्य ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

एक दिन छोटा सा लड़का अरुण अपनी किताबों में खोया हुआ था। अचानक उसकी नजर लेजर बीम पर पड़ी। उसने पढ़ा कि यह प्रकाश की गति, यानी 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड, से चलती है!

अरुण के मन में एक सवाल कौंधा—क्या यह किसी खतरे को रोकने के लिए इस्तेमाल हो सकती है?

उत्सुकता में वह अपने पिता, डॉ. विजय, के पास गया, जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। “पापा, क्या लेजर से कोई हथियार बनाया जा सकता है?” अरुण ने पूछा।

डॉ. विजय ने मुस्कुराकर कहा, “शायद, बेटा। यह सोचने वाली बात है।”

फिर वे चले गए, और अरुण का मन और भी जिज्ञासु हो गया।

दिन बीतते गए, और अरुण ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा। लेकिन एक सुबह, डॉ. विजय अचानक अरुण के पास आए। उनके चेहरे पर गर्व और उत्साह था।

“शाबाश, बेटा! तुम्हारी वजह से आज मैंने एक बेहतरीन काम किया है!” उन्होंने कहा।

अरुण की आंखें चमक उठीं। “पापा, वह काम क्या है?” उसने उत्सुकता से पूछा।

डॉ. विजय ने मुस्कान के साथ एक कमरे की ओर इशारा किया। “आओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं।”

वे एक प्रयोगशाला में गए, जहां एक चमकदार मशीन रखी थी। डॉ. विजय ने कहा, “यह एक लेजर बीम हथियार है! यह प्रकाश की गति से चलती है और किसी भी उड़ने वाले यान या खतरे को चंद सेकंड में नष्ट कर सकती है।”

अरुण का मुंह खुला का खुला रह गया। “लेकिन पापा, यह कैसे हुआ?” उसने पूछा।

डॉ. विजय ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, “एक दिन तुमने मुझसे पूछा था कि क्या लेजर से हथियार बनाया जा सकता है। उस सवाल ने मुझे प्रेरित किया। मैंने दिन-रात मेहनत की, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम और लेजर तकनीक पर काम किया, और यह चमत्कार बन गया। तो शाबाशी के असली हकदार तुम हो, बेटा!”

अरुण हैरान रह गया। क्या उसका एक साधारण सवाल इतना बड़ा आविष्कार बन सकता है?

उस दिन से अरुण की जिज्ञासा और बढ़ गई। वह सोचता रहा कि उसका अगला सवाल क्या होगा, जो शायद दुनिया बदल दे। डॉ. विजय ने हथियार को देश की रक्षा के लिए तैयार किया, लेकिन अरुण के मन में एक रहस्य बना रहा—क्या और भी चमत्कार उसकी जिज्ञासा से पैदा होंगे?

——

© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

14-04-2025 

संपर्क – 14/198, नई आबादी, गार्डन के सामने, सामुदायिक भवन के पीछे, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675 /8827985775

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 247 ☆ बाल गीत – सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 247 ☆ 

☆ बाल गीत – सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चिड़ियाँ आईं पास अनेक।

सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख।।

 *

कोई लिखती नया पहाड़ा।

नहीं सताए उनको जाड़ा।

सुख – दुख में वे रहतीं एक।

सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख।।

 *

प्रकृति उनकी जीवन साथी।

भोर जगें वे करें सुप्रभाती।

सादा जीवन करता नेक।

सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख।।

 *

पंखों का नित कम्बल ओढ़ें।

नहीं कभी वे रुपया जोड़ें।

करतीं हैं सबका अभिषेक।

सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख।।

 *

झूठ न बोलें कभी बिचारी।

सदा रखें अपनी हुशियारी।

कभी न खाएँ , चाउमीन केक।

सुंदर – सुंदर लिखतीं लेख।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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