हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 35 – वज़ूद ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा   “वज़ूद  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  #35☆

☆ लघुकथा – वजूद ☆

सविता ने पति के जीते जी कभी घर से बाहर  कदम नहीं रखा था पर अब क्या कर सकती थी ? घर में खाने को दाना नहीं था और भूखे मरने की नौबत आ गई थी .

तभी बाहर से किसी ने आवाज दी, “सविता भाभी ! आप बुरा न माने तो एक बात कहू ?” डरते-डरते मनरेगा के सचिव ने पूछा – “कहो भैया !” शंका-कुशंका से घिरी सविता बोली तो सचिव ने कहा, “भाभी! मनरेगा के तहत वृक्षारोपण हो रहा है यदि आप चाहे तो इस के अंतर्गत पौधे लगा कर कुछ मजदूरी कर सकती है.”

अंधे को क्या चाहिए, दो आँख. सविता की मंशा पूर्ण हो रही थी. वह झट से बोली “क्यों नहीं भैया, मजदूरी करने में किस बात की शर्म है” यह कहते हुए सविता काम पर चल दी.

वह आज मनरेगा की वजह से अपना वजूद बचा पाई थी. अन्यथा वह अपने पड़ोसी के जाल में फंस जाती जो उस की अस्मिता के बदले मजदूरी देने को तैयार था.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 5 ☆ बात का बतंगड़ ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है बातों बातों में ही एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “बात का बतंगड़। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 5 ☆

☆ बात का बतंगड़

निष्ठावान होते हुए भी चमनलाल जी अक्सर उदास रहते कि उनकी पूछ – परख कम होती है । जो भी काम करते उन्हें घाटा होता है  तो वहीं उनके परम मित्र शिकायती लाल जी भी यही रोना रोते कि उनको परिश्रम का फल नहीं  मिल रहा है ।  चौपाल पर बैठे धरमू लाल जी और लोगों के आने की राह देख रहे थे तभी उनका पोता सोनू आया , उसने पूछा –  “बाबा चैली  कहाँ रखी है ?”

उन्होंने कहा – “क्या करोगे ?”

“बाबा दादी को सुलगानी है  कह रहीं थीं,  पूस निकल जाए तो बुढ़ऊ और एक बरस जी जाय।”

ठेठ  बघेली में उन्होंने कहा- “कहि देय लुआठी  जलाय लेंय, कल लाय के देव चैली ।”

धरमू लाल जी मन में बुदबुदाते हुए बोले – “कउनउ चेली त मिलबय नहीं करय या बुढ़िया और आगी लगावत ही।”

तभी किशोर चन्द्र जी आ गए, उन्होंने मिली – जुली बोली में कहा-  “अपना सुनन बकरी और शेर के किस्सा –   अभी तक तो शेर और बकरी एक घाट में पानी पी लें उतना ही सुना था अब शेर को बकरी खा गयी चारो ओर हल्ला हो रहा है ।”

“अब का करी किशोरी कलयुग है कौन किसको खा ले पता ही नहीं चलता । जिसकी लाठी उसकी भैस । पहले तो बड़ी मछली छोटी को खाती थी अब तो बड़े- छोटे का लिहाज बचा ही नहीं  । पहले मर्यादा  पुरुषोत्तम राम के गुणगान होते थे अब तो राम शब्द राजनीति का अखाड़ा बन गया है ।  कहते हैं राम का नाम लेकर नल नील ने त्रेता युग में  सागर  बाँध दिया  और हम कि उन्हें टेंट में बैठाये हुये मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा में हैं।”

“अरे छोड़ो धरमू इन सब  से आम आदमी को क्या लेना देना उसे तो दो जून की रोटी मिले बस इतना ही बहुत था कुछ बरस पहले तक । पर अब तो स्मार्ट फोन  भी चाहिए  आखिर इक्कसवीं  सदी के गरीब का  भी तो कोई रुतबा होना चाहिए।”

किशोरी लाल जी मुस्कुराते हुए बोले “जियो ने तो जिया दिया, अब दाल रोटी का और जुगाड़ हो जाय तो आराम से बैठो और रोटी तोड़ो ।  पाँच बरस में एक बार अच्छी  सरकार बना दो और चैन की बंशी बजाओ।”

“अरे  बंशी नहीं दिखायी दिया सुना है  बालीबुड  में सपने पूरे करने गया है।” तभी और लोग भी चर्चा में सम्मलित होने के लिए एकत्र हो गए ।

आज तो चौपाल अपने पूरे रंग में थी  पास में अलाव जला लिया गया । गाँव के सबसे बुजुर्ग कक्का जी  अपनी अनुभवों की गठरी से एक रोचक किस्सा सुनाने लगे कि कैसे मैट्रिक में उन्होंने अपने गाँव का और प्रदेश का नाम रोशन किया, ये किस्सा जब तब न जाने कितनी बार सुना चुके थे पर लोग भी हर बार ऐसे सुनते जैसे पहली बार हो ।

किस्सा वही लालटेन  में पढ़ने से शुरू होता और  खेत – खलियान में काम करते हुए  गुड़ की डली और मटर की फली पर पूरा होता ।  बात इतनी लंबी खिचती कि जब तक काकी  की याद में आँसू न बह जाए तब तक कक्का जी बोलते रहते फिर धीरे से अपने गमछे से आँसू पोछते हुए लाठी टेकते हुए चल देते राम ही राखे कहते हुए ।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ From Tashkent to Rishikesh for the Love of Laughter Yoga – Video #19 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  From Tashkent to Rishikesh for the Love of Laughter Yoga  ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #19

A small group of laughter lovers flew down from Tashkent to Rishikesh, known as the world capital of yoga, to learn the basics of Laughter Yoga. All of them had a background of yoga but had come to India with an eagerness to master the happiest workout in the world – Laughter Yoga.

Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht, Founders: LifeSkills, conducted a 2-day certified laughter yoga leader training programme for them covering theoretical and practical aspects of Laughter Yoga including the inner spirit of laughter, laughter meditation and guided relaxation.

The programme was well appreciated by all the participants.

These new laughter exercises were created by the participants during the course of their training programme.

Our special thanks to Ivan Skofenko for arranging the beautiful programme and putting things in place.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।।20।।

 

अर्जुन! हूँ मैं आत्मा सब देहों में व्याप्त

मैं ही सबका आदि हूँ मघ्य भी और समाप्ति।।20।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥20॥

 

I am the Self, O Gudakesha, seated in the hearts of all beings! I am the beginning, the middle and also the end of all beings.।।20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 34 – समय कब अच्छा रहा है?…….. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी द्वारा रचित  माँ नर्मदा वंदना  “समय कब अच्छा रहा है?……..। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 34 ☆

☆ समय कब अच्छा रहा है?…….. ☆  

 

हवा के रुख के इर्द-गिर्द

अब हर कोई

“कुछ अलग” कहलाने के लोभ में

लिखे, बोले जा रहे हैं-

‘आज हम ऐसे समय में ..

हम वैसे समय में ..

और न जाने

कैसे समय में जी रहे हैं,

पर वे ये बताने को

कतई तैयार नहीं

वे, पहले,

जैसे समय में जी रहे थे।

 

कार से उतरकर

कॉरपेट पर चरण रखने वाले

छालों की बात कर रहे हैं

हैं तो इधर के ही

पर प्रदर्शन में उधर से

चल रहे हैं।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 36 – वैभव जोशी….. एक वैभवशाली गझलकार ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनका  एक  स्मृति चित्र “वैभव जोशी….. एक वैभवशाली गझलकार.  अक्सर हमारे जीवन में कुछ लोग मिलते हैं और अपने सहज सौम्य व्यक्तित्व की एक अमिट छाप छोड़ देते हैं। साहित्यिक विभूतियों का जीवन भी कुछ भिन्न नहीं है।  ऐसे ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के  धनी हैं  श्री वैभव जोशी जी। मैं आभारी हूँ , सुश्री प्रभा जी  का जो उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकारा और सुप्रसिद्ध मराठी कवि / ग़ज़लकार / गीतकार श्री वैभव जोशी जी  के सन्दर्भ में अपने आत्मीय विचार उतने ही सहज भाव से हमें हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने का अवसर दिया।   

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 36 ☆

☆ वैभव जोशी….. एक वैभवशाली गझलकार ☆ 

कवी / गझलकार / गीतकार  म्हणून  आज वैभव जोशी सर्वदूर परिचित आहेत.

माझ्या मते वैभव सध्या  सर्वाधिक लोकप्रिय कवी आहे! मी वैभव जोशींना सर्व प्रथम वाईच्या “गजल सागर” च्या  संमेलनात सर्वप्रथम ऐकलं, त्यांची गझल आणि सादरीकरण अप्रतिम होतं!

त्या वर्षी मी “काव्य शिल्प” या कवींच्या संस्थेची अध्यक्ष होते, एका कार्यक्रमात मी वैभव जोशी ना पाहुणा म्हणून बोलंवलं! कारण  गजलसागरच्या नियतकालिकांमध्ये वैभवच्या गझला वाचल्या होत्या, तीच आमची ओळख एकमेकांशी!

त्यानंतर नागपूर च्या अ.भा.साहित्य संमेलना निमित्ताने  नागपूर येथे भेट झाली मी निमंत्रित कविसंमेलनात होते तर वैभव गझलसंमेलनात!

वैभव च्या वाढदिवसानिमित्त उद्यानप्रसाद कार्यालयात आयोजित केलेल्या चंद्रशेखर सानेकरांबरोबरच्या   कार्यक्रमाला मी गेले होते नंतर भरत नाट्यमंदिरात झालेल्या सौमित्र बरोबर च्या कार्यक्रमानंतर  वैभव चे अनेक कार्यक्रम पाहिले, टीव्ही, सिनेमात वैभव ची गीतं ऐकली, फेसबुक वर अनेक कविता, गझला ऐकल्या!

दोन वर्षांपूर्वी माझा सत्तावन्न वर्षाचा मामेभाऊ गेला, ती भावना व्यक्त करणारी पोस्ट मी फेसबुक वर टाकली तेव्हा वैभवची कमेन्ट होती, “ताई…क्लेश होणारच,  कधीही एकाकीपण वाटलं तर मला हाक मारा . मी आहे”.

वैभव मला नेहमीच धाकट्या भावासारखाच वाटतो, मी गेली अनेक वर्षे काव्यक्षेत्रातील वैभवची दैदिप्यमान कारकीर्द पहाते आहे. कवी म्हणून आणि माणूस म्हणूनही वैभव आवडतोच, हसतमुख, प्रेमळ, वडिलधा-यांचा आदर ठेवणारा! एक कवयित्री मध्यंतरी खुप भारावून सांगत होती, “अगं  वैभव जोशी नी मला अगदी वाकून नमस्कार केला”!

मी म्हटलं “तो सगळ्या म्हाता-या कवयित्रींना तसा नमस्कार करतो, मलाही!”

एकूण वैभव च्या डोक्यात हवा गेलेली नाही, त्याच्या अनेक गझला, कविता, गीतं आवडतात…..पूर्वी मला तो क्रिकेटपटू कृष्णम्माचारी श्रीकांत सारखा वाटायचा…आता कधीतरी त्याच्यात यशवंत दत्त चा भास होतो, असो. तरीही वैभव वैभव आहे एकमेव! अनेकांचा लाडका कवी! स्वतःचं वेगळेपण जपणारा! वैभव ची “वगैरे” गझल खुप गाजलेली!

शेवटी माझा आवडता वैभव जोशी चा शेर—

बोलला सायलेंटली पण जाब मागत राहिला,

रात्रभर माझ्या उशाशी फोन वाजत राहिला

अनेक शुभेच्छांसह,

-प्रभा सोनवणे

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – काल का पहिया ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – काल का पहिया 

 

लहरों को जन्म देता है प्रवाह

सृजन का आनंद मनाता है,

उछाल के विस्तार पर झूमता है

काल का पहिया घूमता है,

विकसित लहरें बाँट लेती हैं

अपने-अपने हिस्से का प्रवाह,

शिथिल तन और

खंडित मन लिए प्रवाह

अपनी ही लहरों को

विभक्त नहीं कर पाता है,

सुनो मनुज!

मर्त्यलोक में माता-पिता

और संतानों का

कुछ ऐसा ही नाता है!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( 8.35 बजे, 18 मई 2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 15 – महात्मा गांधी और उनके पुत्र ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “महात्मा गांधी और उनके पुत्र”.)

☆ गांधी चर्चा # 15 – महात्मा गांधी और उनके पुत्र ☆

महात्मा गांधी कए तीसरे पुत्र रामदास गांधी की पुत्री सुमित्रा गांधी कुलकर्णी की  लिखी एक पुस्तक है ” महात्मा गांधी  मेरे पितामह” (व्यक्तित्व और परिवार)। इस पुस्तक के अध्याय “हरिलाल गांधी : एक दुखी आत्मा ” में वे बड़े विस्तार से लिखती हैं:

” बापूजी के चार बेटे थे।सितंबर, 1888 में बैरिस्टर बनने के लिए जब बापूजी विलायत गए तब हरिलाल गांधी की उम्र तीन माह की थी । हरिलाल गांधी  के बारे में समाज में अनेक धारणाए हैं। वे सिगरेट पीते थे, शराबी थे और व्यभिचारी थे ।उन्होने अपने पिता से विमुख जीवन बिताकर बगावत कर दी थी। बापूजी की मान्यता थी कि उनके और मोटीबा (कस्तूरबा) के आरंभिक जीवन की विषय वासना और मूढ़ता के कारण हरीलाल काका ऐसे बन गए थे।

अफ्रीका जाने के बाद भी पिता वकालत और नाटाल काँग्रेस के काम में सतत व्यस्त रहते। अपने सिद्धान्त के कारण बापूजी ने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में नही भेजा था लेकिन स्वयं भी अपने अनुशासन रख कर बच्चों को कभी नियमित रूप से पढ़ा नही पाये।

बापूजी की आत्मकथा में हरिलाल के जन्म के सिवाय और  कहीं कोई उल्लेख नहीं आता है। मुझे शंका है कि बापूजी को उस नादान बच्चे से प्रेम कुछ हट गया था।

हरिलाल  की तमन्ना थी कि वह भी अपने पिता के समान आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर अपनी योग्यता बढ़ाए और समाज के लिए उसका सदुपयोग करे। लेकिन पिता ने तो विद्याभ्यास की आवश्यकता को ही ठुकरा दिया था। यहाँ तक की बापूजी ने अपने  मित्र डाक्टर प्राण जीवन मेहता   के प्रस्ताव की वे हरि लाल गांधी को अपने खर्चे पर विदेश भेजने के लिए तैयार हैं ठुकरा दिया था।

काकी की मृत्यु  के बाद काका यायावर बन गए शराब के नशे में कुछ भी करते थे। लेकिन बुद्धी कुशाग्र थी। एकांगी जीवन से वे घबरा गए थे। उन्होने बापूजी से पुनरलग्न करवाने की विनय करी । बापूजी ने असमर्थता प्रकट करी और कहा, किसी विधवा से विवाह कर लो ।काका वह भी करते लेकिन आंदोलनों की झंझावात में किसे समय था कि कोई विधवा की खोज करे ?

शरारती मुसलमानों के चक्कर में पड़कर 14, मई , 1936 को काका मुसलमान बन गए । अब वे अब्दुल्ला गांधी बन गए। बापूजी के लिखने पर मेरे पिता काका को खोजते हुये बम्बई में जनाब झकारिया के घर पहुँचे। एक उत्साही मुस्लिम जीव ने बापूजी को लिख भी दिया कि , “बेटे के समान इस्लाम अपनाकर पुण्य कमा लो।” भरपूर पैसे, मदिरा और वारांगना तीनों के बाहुल्य के बावजूद इस्लामिक अनुभव ने हमारे काका का मोहभंग कर दिया। मोटीबा ने बम्बई जाकर काका को समझाया।10, नवंबर, 1936 को छह महीने की अल्प अवधि के बाद काका ने आर्य समाज की मदद से पुनः हिंदु धर्म को अंगीकार कर लिया। ”

सुमित्रा गांधी कुलकर्णी  ने इसी अध्याय में माँ बेटे के पर मिलन का मार्मिक चित्रण किया है। वे बड़े विस्तार से लिखती हैं कि एक बार जब मोटीबा और बापूजी की ट्रेन कटनी रेल्वे स्टेशन  पर खड़ी थी कि हरिलाल वहाँ आए और बा को प्रणाम  किया और फिर जेब से एक मौसमी निकाल कर बोले बा में यह तुम्हारे लिए लाया हूँ ।  जब बापूजी  ने कहा मेरे लिए कुछ नही लाया तो उन्होने जबाब दिया नही यह तो बा के लिए लाया हूँ । आपसे सिर्फ इतना कहना है कि बा के प्रताप से ही आप इतने बड़े बने हैं।

सुमित्रा गांधी कुलकर्णी  ने जिस बेबाक तरीके से अपने पितामह की आलोचना करी है ऐसा साहस  कोई गांधीवादी  ही कर सकता है। अपने आदर्शों, सिद्धांतों व सार्वजनिक जीवन की व्यस्तता के चलते गांधीजी अपने बच्चों की और कोई विशेष ध्यान नही दे पाये। लेकिन इस बात से अथवा साधनो की अनुपलब्धता को लेकर उनके किसी भी वंशज ने ना तो कोई रोष जताया और ना ही राष्ट्र से इस त्याग की एवज कोई क्षतिपूर्ति की अपेक्षा की। कल की मेरी पोस्ट पर सुरेश पटवाजी ने गांधी जी को महात्मा क्यों कहा गया, बताया  था। आज मेरे इस  वर्णन से आप सहमत होंगे की गांधीजी ने देश को अपने और पुत्रों से भी अधिक महत्व दिया और इसीलिए वे राष्ट्र पिता कहलाने के सही हकदार हैं।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 12 ☆ कविता – अधर सिले पर संवाद बना है ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता  “अधर सिले पर संवाद बना है।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 12 ☆

☆ अधर सिले पर संवाद बना है ☆

अधर सिले पर संवाद बना है

बिन बोले  ही शब्दों को जना है

 

चाँद निहारता रहा ओस रात

कुछ कहता पर कोहरा घना है

 

दाँत रहे तब हालात नहीं थे

अब तो खाने में  मना चना है

 

ईमानदारी को क्या समझेंगे

लोभ – लालच में ही मन सना है

 

मिलना ही है तुझे तेरी मंजिल

बस रखना  मन  नेक भावना है

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga at Nestle – Video #18 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ Laughter Yoga at Nestle☆ 

Video Link >>>>

Nestle India arranged Laughter Yoga sessions for the staff working at their factory in Samalkha, Haryana with a view to enhance employee wellness and build a more cheerful work environment.

They were fascinated by the world’s happiest workout and marveled at the concept of laughter for no reason without using jokes, comedy or humour.

Indore based laughter professor Jagat Singh Bisht conducted three laughter sessions of two hours each covering their entire office staff (approximately one hundred) and the heads of departments including the factory manager. The staff felt the positive effects on their bodies and mind immediately after the first session. The profound impact of Calcutta laughter, hearty laughter and lion laughter was obvious to them. They felt fully relaxed and were full of joy after the session. They could also appreciate the benefits of laughter yoga towards improving efficiency, reducing workplace stress, team building, developing leadership skills and opening up communication skills.

Looking to the huge positive impact of the laughter sessions, it is proposed to conduct more intensive and extensive laughter yoga and meditation sessions for their workmen (approximately four hundred) in the near future to bring physical, mental and social well being and create a more positive work environment with the magic mantra of ‘very good very good yay’ all the way!

It may be recalled that earlier Nestle had invited laughter professors Radhika Bisht and Jagat Singh Bisht to conduct a laughter yoga session during their safety, health and environmental sustainability (SHE) workshop for zone Asia-Oceania-Africa (AOA) at Marriott Resort & Spa, Goa. The response to the session was overwhelming and the chants of ‘very good very good yay’ echoed all through the workshop. The audience included the executive vice president from Nestle headquarters at Vevey, Switzerland and market corporate safety managers from 20 countries including Australia, China, Egypt, India, Indonesia, Japan, Malaysia, Philippines, Singapore and Turkey, along with factory safety heads from Bangladesh, India and Sri Lanka.

Nestle is a well known and respected name worldwide for ‘Good Food, Good Life’. The new programme undertaken by Nestle India with the ultimate objective to spread good health, joy and happiness among its employees is a noble initiative indeed.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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