हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला स्वतंत्रता आंदोलन  की प्रणेता – सिमोन द बुआ ☆ श्री सुरेश पटवा

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  विगत  29 जनवरी  2020 को  नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक  “स्त्री -पुरुष “ प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी दो पुस्तकों गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में  पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  नवीन पुस्तक “स्त्री-पुरुष “रिश्तों की दैहिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं की विश्लेषणात्मक व्याख्या आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करती है।  प्रस्तुत है  उनकी इस पुस्तक  से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष आलेख महिला स्वतंत्रता आंदोलन  की प्रणेता – सिमोन द बुआ )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – महिला स्वतंत्रता आंदोलन  की प्रणेता – सिमोन द बुआ  

दुनिया में महिला स्वतंत्रता आंदोलन की प्रणेता एक महिला दार्शनिक सिमोन को माना जाता है। सिमोन द बुआ (फ़्रांसीसी: Simone de Beauvoir) (जन्म: 9 जनवरी 1908 – मृत्यु : 14 अप्रैल 1986) एक फ़्रांसीसी लेखिका और दार्शनिक थीं। स्त्री उपेक्षिता (फ़्रांसीसी:Le Deuxième Sexe, जून 1949) अंग्रेज़ी में “Second Sex” जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाली सिमोन का जन्म पैरिस में हुआ था। लड़कियों के लिए बने कैथलिक विद्यालय में उनकी आरंभिक शिक्षा हुई। उनका कहना था की स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। समाज ने उसे गढ़ने का सामान चर्च, मंदिर और मस्जिद के रीति रिवाज के रूप मे तैयार कर रखा है।

श्री सुरेश पटवा जी की पुस्तकों के ऑनलाइन लिंक्स 

Notion Press Link  >>  1. स्त्री – पुरुष  2. गुलामी की कहानी 

Amazon  Link  >>    1. स्त्री – पुरुष   2. गुलामी की कहानी   3. पंचमढ़ी की कहानी 

सिमोन का मानना था कि स्त्रियोचित गुण दरअसल समाज व परिवार द्वारा लड़की में भरे जाते हैं, जबकि वह भी वैसे ही जन्म लेती है जैसे कि पुरुष और उसमें भी वे सभी क्षमताएं, इच्छाएं, गुण होते हैं जो कि किसी लड़के में हो सकते हैं। सिमोन का बचपन सुखपूर्वक बीता, लेकिन बाद के वर्षो में उन्होंने अभावग्रस्त जीवन भी जिया। 15 वर्ष की आयु में सिमोन ने निर्णय ले लिया था कि वह एक लेखिका बनेंगी। उनके क्रांतिकारी लेखन ने यूरोप अमेरिका में स्त्री स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा बदल कर रख दी। दुनिया की संसद और सरकारों में महिला की आज़ादी के नए विचार उनकी किताब से छन कर आने और सत्ता के गलियारों में छाने लगे।

दर्शनशास्त्र, राजनीति और सामाजिक मुद्दे उनके पसंदीदा विषय थे। दर्शन की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने पैरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां उनकी भेंट बुद्धिजीवी ज्यां पॉल सा‌र्त्र से हुई। बाद में यह बौद्धिक संबंध आजीवन चला। डा. प्रभा खेतान द्वारा उनकी किताब “द सेकंड सेक्स” का हिंदी अनुवाद “स्त्री उपेक्षिता” भी बहुत लोकप्रिय हुआ। 1970 में फ्रांस के स्त्री मुक्ति आंदोलन में सिमोन ने भागीदारी की। स्त्री-अधिकारों सहित तमाम सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सिमोन की भागीदारी समय-समय पर होती रही। 1973 का समय उनके लिए परेशानियों भरा था। सा‌र्त्र दृष्टिहीन हो गए थे। 1980 में सा‌र्त्र का देहांत हो गया। 1985-86 में सिमोन का स्वास्थ्य भी बहुत गिर गया था। निमोनिया या फिर पल्मोनरी एडोमा में खराबी के चलते उनका देहांत हो गया। सा‌र्त्र की कब्र के बगल में ही उन्हें भी दफनाया गया। दोनों विवाह के बिना साथ रहे वे दुनिया के पहले सहनिवासी (living together) जोड़े थे जिनके उदाहरण हमारे महानगरों मे हम अब देख रहे हैं।

सार्त्र ऐसे महान दार्शनिक थे कि जिन्हें उनके महान दार्शनिक सिद्धांत अस्तित्ववाद के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया था जिसे लेने से उन्होंने यह कहकर मना कर दिया था कि वे अपने व्यक्तित्व का संस्थाकरण नहीं करना चाहेंगे। तब नोबल समिति ने कहा था कि लोग यह पुरस्कार लेकर सम्मानित होते हैं परंतु वे यदि पुरस्कार ले लेते तो नोबल पुरस्कार पुरस्कृत होता।

द सेकेंड सेक्स (The Second Sex) सिमोन द बुआ  द्वारा फ्रेंच में लिखी गई पुस्तक है जिसने स्त्री संबंधी धारणाओं और विमर्शों को गहरे तौर पर प्रभावित किया है। स्त्री समानता विचारधारा वाली सिमोन की यह पुस्तक नारी अस्तित्ववाद को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करती है। यह स्थापित करती है कि जो स्त्री जन्म लेती है उसका मौलिक रूप विकसित न होने देकर, उम्र बढ़ने के साथ भोग के लिए बनाई जाती है। उसके दिमाग़ को नैसर्गिक रूप से गढ़ते रहने के बजाय वह कई अवधारणा में बाँध दी जाती है। लड़की एक अनचाहे भ्रूण की तरह गर्भ में पलती है। उनकी यह व्याख्या हीगेल के सोच को ध्यान में रखकर स्वयं (self) से अलग “दूसरा” (the Other) की संकल्पना प्रदान करती है। जो बच्ची पैदा हुई वह “पहला” है उसके बाद उसे संस्कारों के नाम पर ज़ंजीरों में बांधा जाना “दूसरा” है।

उनकी इस संकल्पना के अनुसार, नारी को उसके जीवन में उसकी पसंद-नापसंद के अनुसार रहना और काम करने का हक़ होना चाहिए और वो पुरुष से समाज में आगे बढ़ सकती है। ऐसा करके वो स्थिरता से आगे बढ़कर श्रेष्ठता की ओर अपना जीवन आगे बढ़ा सकतीं हैं। ऐसा करने से नारी को उनके जीवन में कर्त्तव्य के चक्रव्यूह से निकल कर स्वतंत्र जीवन की ओर कदम बढ़ाने का हौसला मिलता हैं। यह  एक ऐसी पुस्तक है, जो यूरोप के उन सामाजिक, राजनैतिक, व धार्मिक नियमो को चुनौती देती हैं, जिन्होंने नारी अस्तित्व एवं नारी प्रगति में हमेशा से बाधा डाली है और नारी जाति को पुरुषो से नीचे स्थान दिया हैं। अपनी इस पुस्तक में सिमोन ने  पुरुषों के ढकोसलों से नारी जाति को पृथक कर उनके जीवन में नैसर्गिक सोच विकसित न करने की नीति के विषय में अपने विचार प्रदान किये हैं। इसका हिन्दी अनुवाद स्त्री उपेक्षिता नाम से राजपाल एंड संस से प्रकाशित हुआ है।

श्री सुरेश पटवा की पुस्तक “स्त्री-पुरुष” से साभार 

© श्री सुरेश पटवा, भोपाल

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #39 ☆ दृश्य और अदृश्य ☆ श्री संजय भारद्वाज

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 39 –  दृश्य और अदृश्य  ☆

आज हम वैश्विक महिला दिवस पर ‘संजय उवाच’ के एक अंश का पुनर्पाठ प्रस्तुत कर रहे हैं ।

दृश्य और अदृश्य की बात अध्यात्म और मनोविज्ञान, दोनों करते हैं। यों देखा जाये तो मनोविज्ञान, अध्यात्म को समझने की भावभूमि तैयार करता है जबकि अध्यात्म, उदात्त मनोविज्ञान का विस्तार है। अदृश्य को देखने के लिए दर्शन, अध्यात्म और मनोविज्ञान को छोड़कर सीधे-सीधे आँखों से दिखते विज्ञान पर आते हैं।

जब कभी घर पर होते हैं या कहीं से थक कर घर पहुँचते हैं तो घर की स्त्री प्रायः सब्जी छील रही होती है। पति से बातें करते हुए कपड़ों की कॉलर या कफ पर जमे मैल को हटाने के लिए उस पर क्लिनर लगा रही होती है। टीवी देखते हुए वह खाना बनाती है। पति काम पर जा रहा हो या शहर से बाहर, उसके लिए टिफिन, पानी की बोतल, दवा, कपड़े सजा रही होती है। उसकी फुरसत का अर्थ हरी सब्जियाँ ठीक करना या कपड़े तह करना होता है।

पुरुष की थकावट का दृश्य, स्त्री के निरंतर श्रम को अदृश्य कर देता है। अदृश्य को देखने के लिए मनोभाव की पृष्ठभूमि तैयार करनी चाहिए। मनोभाव की भूमि के लिए अध्यात्म का आह्वान करना होगा। परम आत्मा के अंश आत्मा की प्रचिति जब अपनी देह के साथ हर देह में होगी तो ‘माताभूमि पुत्रोऽहम् पृथ्विया’  की अनुभूति होगी।

जगत में जो अदृश्य है, उसे देखने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो भूत और भविष्य के रहस्य भी खुलने लगेंगे। मृत्यु और उसके दूत भी बालसखा-से प्रिय लगेंगे। आँख से  विभाजन की रेखा मिट जायेगी और समानता तथा ‘लव बियाँड बॉर्डर्स’ का आनंद हिलोरे लेने लगेगा।

जिनके जीवन में यह आनंद है, वे ही सच्चे भाग्यवान हैं। जो इससे वंचित हैं, वे आज जब घर पहुँचें तो इस अदृश्य को देखने से आरंभ करें। यकीन मानिये, जीवन का दैदीप्यमान नया पर्व आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ☆ श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी  दो  विशेष नवसृजित कवितायें “(1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति

● रिश्तों की सर्जक 


एक माँ की चाहत थीं

बेटा मुझे प्राप्त हो

बड़ा बन श्रवण-सा

हमेशा अपने पास हो।

 

एक बहन ने ईश से

बड़ी अरज एक की

भाई बन कृष्ण-सा

लाज राखे राखी की।

चाची ने मिठाई बाँटी

भतीजा नहीं वह मेरा

बहन का बेटा ही सही

आँखों का है चमकता तारा।

दादी की खुशियाँ न्यारी

पोते से आँगन खिल गया

झोली भर-भर आशीष देती

घर का दीप बन जाग गया।

नानी आईं झूला लेकर

नाती मेरा झूलेगा

दीठ उतारे वारंवार

जब भी गोद आएगा।

बुआ का ईठलाना

भानजा भाई-सा दुलारा

सोच-सोच नाम रखा

जैसा हो नव ध्रुवतारा।

मामी ने तो कहर ढाया

देख मुझे जमाई बनाया

जब भी गाँव से खो गया

मामी के आँगन में पा‌या।

खुद के होने की खुशियों में

मैं तुझे कैसे भूल गया

दुनिया की चकाचौंध में

यह अपराध मुझसे हो गया।

 

वंदन स्त्री शक्ति

सोचता हूँ….अगर

यह रिश्तों की सृजक न होते

सुंदर रिश्तों की

यह अटूट डोर के सहारे न होते।

 

सौरी में पैरों रख

बड़े प्यार-से नहलाना

कईं रातें कहानियाँ सुनाना

राखी का इंतजार करवाना

अपनों को छोड़ औरों के

आँगन की तुलसी बनना

और जब

साँस छूटे तो

अर्थी के पीछे

एक दीप के लिए

कई दीप जलाना

फिर यह संसार में

कभी न होता

अगर तू न होती,

और किसी बेटे की

कोई छाया न होती।

हर रिश्ता शुरू है आपसे

और अंत भी है आपसे,

वंदन तुम्हें स्त्री शक्ति

ईश से पहले

‌सम्मान हो तुम्हारा

ईश की भी साँस के पहले।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

 

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सुनो धनिया /Listen Dhaniya – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा सुश्री निर्देश निधि जी की  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी विशेष कविता “सुनो धनिया ”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “ Listen Dhaniya” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

☆ International Women’s Day Special ☆

☆ (English  Version  of  Poem by Mrs. Nirdesh Nidhi  –  “ Listen Dhaniya” – by Captain Pravin  Raghuwanshi

Listen, Dhaniya!

I saw you yesterday,

Across the green-yellow

mustard field

Basking in orange

hued setting sun…

 

Bright pink saree tied

tightly at the waist

How did you know that a

pack of lush green grass

would match with it so nicely!

 

On the narrow pathway

across the large green canvas

Where you move with full swag,

with rhyme and rhythm…

Though laden with cruel

bulky-weighty burden…

 

On beauty pageant ramps,

Every young damsel,

swaying on catwalk,

Would only be stupefied…

See you rhyme with the

melodies of  your bangles…

 

Winds blow like avians with

the push  of your

incessant heaving breath,

Tinkling of anklets

Fills a melody in your

inebriating celestial gait…

Hidden in your swaying

half-opened hair is

the fragrance of Jasmine

 

Your careless sluggish yawns,

in the effulgent sunlight,

Your chaste juvenile youthfulness

Reaffirms the faith of God’s existence on earth!

 

So what, your rough untiring

hands are not so tender…

So what, your ankles are not

so pinkish and soft…

 

You fight alone in this world

with beastly human wolves,

Pass through fearlessly,

forests filled with vulturous animals

 

You pierce through

every trouble smilingly

like a knife through the butter

 

Who can ever dare say,

you’re not the

Abode of the strong modern woman…!

 

Tell me, Dhaniya.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 – बाईपण ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “बाईपण।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – बाईपण ☆

सर्व महिलांना जगतिक महिला दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! 

 

छान बाईपण माझे

नाही वाटत गं ओझे

सखा निर्मळ मनाचा

त्याला म्हणते मी राजे

 

दिली आईने शिदोरी

आले दुसऱ्या मी घरी

माता तिथेही भेटली

नाव असे सासू जरी

 

बीज पेरणारा धनी

जमीन मी त्याची ऋणी

दीप एक लावलेला

आम्ही दोघांनी मिळोनी

 

आज कन्या रत्न झाले

मन भरुनीया आले

झाले मीही उतराई

भाग्य मला हे लाभले

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ ती स्त्री ☆ सौ. सुजाता काळे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष मराठी कविता  “ती स्त्री”।)

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – ती स्त्री ☆

ती राधा
ती माता
ती द्रौपदी
ती सीता।
ती ममता
ती भार्या
ती वसुधा
ती तनया।
ती रणरागिणी
ती रणचंडिका
ती भगिनी
ती बालिका।
ती अर्थ कामिनी
ती अर्ध नारीश्वर
ती वसंत पंचमी
ती मोक्ष गामिनी।
ती सृष्टी
ती सृजन
ती स्त्री
ती स्वपण

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ थांबव हा बाजार. . . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता थांबव हा बाजार. . . . ! )

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – थांबव हा बाजार. . . . ! ☆

माता महती थोर तरीही

दर्जा दुय्यम का नारीला ?

समानतेचा पोकळ डंका

झळा आगीच्या स्री जातीला. . . . !

 

नाना क्षेत्री दिसते नारी

कुटुंब जपते जपते नाती

तरी अजूनी फुटे बांगडी

पणती साठी जळती वाती. . . . . !

 

साहित्य,कला,नी उद्यम जगती

नारीशक्ती सलाम तुजला

तरी  अजूनी आहे बुरखा

नारी जातीला म्हणती अबला. . . . !

 

आई, बाई, ताई, माई हाका केवळ

अजून वेशीवरती दिसते वेडी शालन

जातीपातीच्या अजून बेड्या पायी तुझीया

स्त्री मुक्तीचा स्वार्थी जागर की रामायण.

 

न्यायदेवता रूप नारीचे दृष्टिहीन का

भारतमाता प्रतिक शक्तीचे आभासी का

घरची लक्ष्मी अजून लंकेची पार्वती बनते

अजून पुरूषा बाई केवळ शोभा वाटे का?

 

रोज रकाने भरून वाहती होई अत्याचार

मुक्तीचा या  स्वैर चालतो घरीदारी बाजार

जाग माणसा माणूस होऊन नारी शक्ती नरा

स्त्री मुक्तीचा गाजावाजा थांबव हा बाजार.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 38 – वाचन संस्कृती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु उनके पालकों के लिए भी आपकी एक अतिसुन्दर कविता   “वाचन संस्कृती”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 38 ☆ 

 ☆ वाचन संस्कृती 

 

वाचन संस्कृती । बाणा नित्य नेमे । आचरावी प्रेमे । जीवनात ।1।

 

संपन्न जीवना । ज्ञान एक धन । सुसंस्कृत मन । वाचनाने ।2।

 

शब्दांचे भांडार । समृद्धी अपार । चढतसे धार । बुद्धीलागी ।3।

 

मधुमक्षी परी । वेचा ज्ञान बिंदू । जीवनाचा सिंधू । होई पार ।4।

 

अज्ञान अंधारी । लावा ज्ञान ज्योती । वाचन संस्कृती । तरणोपाय ।5।

 

ज्ञानाची संपत्ती । लूटू वारेमाप । चातुर्य अमाप । गवसेल ।6।

 

वाचा आणि वाचा । ध्यानी ठेवा मंत्र । व्यासंगाचे तंत्र । फलदायी ।7।

 

जपा जिवापाड । वाचन संस्कृती । नुरेल विकृती । जीवनात ।8।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37 ☆ कविता – वो बचपन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक अतिसुन्दर कविता  “वो बचपन”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 37

☆ कविता  – वो बचपन ☆ 

 

खबरदार खबरदार प्यारे  बचपन

ये जहर उगलते मीडिया ये बचपन

ऊंगलियों में कैद हो गया है बचपन

हताशा निराशा में लिपटा है बचपन

गिल्ली न डण्डा न कन्चे का बचपन

फेसबुक की आंधी में डूबा है बचपन

वाटसअप ने उल्लू बनाया रे बचपन

चीन के मंजे से घायल है ये  बचपन

खांसी और सरदी का हो गया जीवन

कबड्डी खोखो को भूल गया बचपन

सुनो तो  कहीं से  बुला दो ‘वो’ बचपन

मिले तो आनलाइन भेज दो ‘वो’ बचपन

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – मन ☆ श्री प्रयास जोशी

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड, भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी विशेष कविता – “मन “.) 

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – मन ☆

*

महिला दिवस पर

जब एक पुरुष ने

एक महिला को

शुभकामना

देना चाही

तो महिला ने

एकटक शून्य में

देखते हुये कहा-

अभी अपनी

शुभकामना

अपने पास रखो

इस के लिये अभी

मन नही है मेरा

जब मन होगा

तब मैं,खुद ही

शुभकामना

ले लूंगी

और अगर तुम

नहीं भी दोगे

तब भी मैं/खुद

अपनी शुभकामना

छीन लूंगी

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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