ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 47 ☆ रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 47 ☆ रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

 प्रिय मित्रों,

ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में  बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ  सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ  कि मैं अपने इस सम्बन्ध को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।

मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते।

मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।

ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा की जाएँ ।

वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र- प्रपौत्री  से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम प्रतिदिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे तो संबंधों की असीमित लम्बी फेहरिश्त है।  कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।

पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी  तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में  मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध,  थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध,  समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता।

तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी  अब तक की सर्वोत्कृष्ट हिंदी/मराठी /अंग्रेजी में  भाषा में अधिकतम दो रचनाएँ  (कविता /लघुकथा /आलेख / संस्मरण  / लघुनाटिका / कलात्मक चित्र / आपके द्वारा खिंचा गया फोटोग्राफ ) अधिकतम 750-1000 शब्दों में निम्न ईमेल आई डी पर

[email protected]

  ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। रचनाएँ / कलाकृतियां  मौलिक एवं आपकी स्वरचित /स्वयं की होनी चाहिए।

यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। हम आपकी  मनोभावनाओं को  प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने के  लिए एक एक मंच प्रदान कर रहे हैं।

हाँ रचना प्रेषित करते समय ई-अभिव्यक्ति के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें। 

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

हमारे आमंत्रण पर रिश्तों से सम्बंधित संवेदनशील रचनाएँ हमारे पास आई हैं जो हम शीघ्र ही आपसे साझा करना प्रारम्भ कर रहे हैं। साथ ही उनके संकलन का कार्य भी चल रहा है जिसे अतिसुन्दर स्वरुप में प्रस्तुत करने का प्रयास है। आपकी अब तक की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं की प्रतीक्षा में।

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☆ मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना ☆ 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

हम सदैव मानवीय आधारों पर सकारात्मक साहित्य देने हेतु कटिबद्ध हैं।

ई – अभिव्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार की किसी भी पुष्ट अथवा अपुष्ट वैज्ञानिक जानकारी एवं अफवाहों पर कदापि कोई विमर्श नहीं करता।  इस वैश्विक एवं राष्ट्रीय आपदा में आप सबसे निवेदन है कि सरकार द्वारा तय नियमों का कठोरता से पालन करें। इसी में हम सबकी भलाई है, मानवता की भलाई है।

 ?  ?  ?

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

7 मार्च 2020

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 41 – वर्तमान संकट के समय के 7 दोहे ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  के वर्तमान संकट के समय के 7 दोहे । आज समाज को ऐसे ही सकारात्मक साहित्य की आवश्यकता है। । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 41 ☆

☆ वर्तमान संकट के समय के 7 दोहे  ☆  

 

कोरोना के कोप से, भयाक्रांत  संसार।

कैद  घरों  में हैं सभी, बन्द पड़े बाजार।।

 

कौन जाति का वायरस, किस जाति पर वार।

सोचें  समझें  अब  सभी, रहे  परस्पर  प्यार।।

 

देवदूत  बन  जो  जुटे, सेवा में  अविराम।

नर्स-डॉक्टरों के प्रति, सह्रदय नम्र प्रणाम।।

 

जगह जगह जो कर रहे, जन हितकारी काम।

रहें  निरोगी  वे  सभी, दिल  से  उन्हें  सलाम।।

 

जहाँ जहाँ जो हैं सभी, है सबका दायित्व।

पूर्ण  समर्पण भाव से, करते रहें  कृतित्व।।

 

फुरसत में चिंतन करें, करें नहीं अफसोस।

उतरें  अपने में  स्वयं, खोजें  गुण औ’दोष।।

 

जग मंगल की कामना, रहे प्रार्थना भाव।

दूर  हटेगा  शीघ्र ये, जीवन  का  ठहराव।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 43 – समारोप ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक अविस्मरणीय संस्मरण  “समारोप । वास्तव में जीवन के कुछ अविस्मरणीय क्षण होते हैं जिन्हें हम आजीवन विस्मृत नहीं कर सकते । वे क्षण कुछ भी हो सकते हैं  किन्तु,  हाईस्कूल से कॉलेज में पदार्पण के पूर्व हाईस्कूल का फेयरवेल जिसमें लड़कियां साड़ियां और लडके फॉर्मल्स में  सम्मिलित होते हैं, बेहद रोमांचक क्षण होते हैं। उस समय की मित्रता और  भविष्य के स्वप्न संजोते ह्रदय का स्मरण कर या मित्रों में साझा कर एक रोमांच का अनुभव होता है और लगता है  कि  काश वे दिन एक बार पुनः लौट आते जो कि असंभव हैं।  सुश्री प्रभा जी ने उन क्षणों को अपने इस संस्मरण से सजीव कर दिया है। इस भावप्रवण अप्रतिम  सजीव संस्मरण  साझा करने के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 43☆

☆ समारोप ☆ 

आयुष्यात समारोपाचे अनेक प्रसंग आले, लक्षात राहिल असा एकच समारोप, शाळेत असताना मैत्रीणीबरोबर चा अकरावीला घेतलेला शाळेचा समारोप!

मी अकरावीला असताना, शिरूरच्या विद्याधाम प्रशालेत शिकत होते, शाळेत भेटली जिवाभावाची मैत्रीण राणी गायकवाड! शाळेच्या send off ला आम्ही साड्या नेसलो होतो,आणि दोघी एकमेकींना खुप छान दिसतेस म्हणत होतो! राणीची मैत्री ही मला आयुष्यात मिळालेली अनमोल देणगी! त्या दिवशी ती माझ्याकडे राहिली होती आणि रात्रभर जागून गप्पा मारल्या होत्या! खरोखर शिरूर मधले दिवस हे मंतरलेलॆ दिवस होते! अकरावी चा अभ्यासही आम्ही एकमेकींच्या घरी रात्री जागून केला, ब-याचदा मी झोपून जायचे आणि ती अभ्यास करत असायची, एकदा रात्री खुप भूक लागली, मी तिच्या घरी गेले होते, तिनं स्वयंपाक घरात पाहिलं फक्त भात शिल्लक होता आणि कांदे, बटाटे, टॉमेटो दिसले आम्ही टॉमेटोची चटनी केली…आयुष्यात ला तो काही पदार्थ बनविण्याचा तो दोघींचाही पहिलाच प्रसंग पण चटणी खुपच टेस्टी झाली होती आम्ही भाताबरोबर खाल्ली!

अकरावीच्या परीक्षेच्या वेळी युनिफॉर्म घालण्याची अट नव्हती पण आम्ही म्हटलं आपण युनिफॉर्मचं घालू कारण नंतर कधीच परत घालता येणार नाही. सगळ्या मैत्रीणी रंगीबेरंगी कपडे घालून यायच्या पण आम्ही आकाशी निळा स्कर्ट आणि पांढरा ब्लाऊज घालून जात होतो! शेवटच्या पेपराच्या दिवशी खुप भरून आलं….कारण तो शाळेच्या समारोपाचा दिवस होता…त्या दिवशी रात्री आम्ही तंबूत माला सिन्हा चा हमसाया सिनेमा पाहिला होता…वो हसीन दर्द दे दो जिसे मै गले लगा लू…..म्हणणारी माला सिन्हा अजूनही आठवते……

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जीवन  ☆

जुग-जुग जीते सपने

थोड़े-से पल अपने,

सूक्ष्म-स्थूल का

दुर्लभ संतुलन है,

नश्वर और ईश्वर का

चिरंतन मिलन है,

जीवन,आशंकाओं के पहरे में

संभावनाओं का सम्मेलन है!

 

घर पर रहें, सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:11 बजे, 30.3.2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry ☆ Inexhaustible ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “अक्षय ”  published previously as ☆ संजय  दृष्टि – अक्षय   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Inexhaustible ☆

Incessant flow colliding

with the stones,

engraves the

manuscripts of centuries

on bosom of the mountains…

Changing times and

memoirs of the seasons,

etched lastingly

on the chest of rocks…

Complimentarily,

fossils encompass the

entire encyclopedia

of the evolution…

And, you say

words are not found

to write…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ शेखी ☆ डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक समसामयिक विषय पर आधारित सार्थक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा   “ शेखी ”.  )

☆ लघुकथा – शेखी 

रिंकू ने मोटरसाइकिल निकाली और बाहर जाने लगा , तभी उसकी माँ ने उसे टोका – “पूरे शहर में लॉक डाउन है और तुम कहां जा रहे हो? घर पर नहीं रह सकते क्या? घूमना जरूरी है क्या?”

उसने शेखी बघारते हुए मां से कहा – “मां, तुम नाहक ही परेशान हो रही हो, हमें कुछ नहीं होगा। हम सब दोस्त रोज ही तो घूम रहे हैं,  पुलिस को चकमा देकर।”

“पर बेटा—” मां कुछ और कहती उसके पहले ही रिंकू ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और तेजी से चला गया। कुछ देर बाद वह कराहता हुआ वापस आया, घबराकर मां ने पूछा तो उसने बताया कि पुलिस वालों ने पीठ पर डंडा मार दिया है।“

“मैंने तो तुम्हें पहले ही मना किया था लेकिन तुम किसी की बात मानते ही कहाँ हो।”

तीन दिन बाद — रिंकू को सर्दी खांसी के साथ ही तेज बुखार भी हो गया। मां ने दो -तीन दिन घरेलू इलाज किया लेकिन तबियत बिगड़ने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराया। जांच में रिंकू को कोरोना पॉजिटिव पाया गया । अब वह जिँदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।

अपनी शेखी बघारने की आदत की वजह से अपने साथ ही अपने परिवार एवं अन्य लोगों को भी मुसीबत में डाल दिया।

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 

37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 22 – महात्मा गांधी: आज़ादी और  भारत का विभाजन ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “महात्मा गांधी : आज़ादी और  भारत का विभाजन। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 22 – महात्मा गांधी : आज़ादी और  भारत का विभाजन

अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को कुचलने में कोई कसर न छोड़ी और बड़ी दमनात्मक कार्यवाहियाँ आंदोलनकारियों के विरुद्ध की। गांधीजी ने अंग्रेजों की दमनात्मक कार्यवाहियों के खिलाफ 10 फरवरी 1943 को जेल में ही  21 दिन का  उपवास शुरू कर दिया। सारे विश्व में ब्रिटिश दमनकारी नीतियों की आलोचना होने लगी। अंततः 8 मई 1944 को गांधीजी रिहा हुये और सुप्त पड़ चुके आंदोलन में नई जान आ गई। गांधीजी की माँग पर अंग्रेजों ने कांग्रेस के सभी नेताओं को रिहा कर दिया और बातचीत तथा समझौते की कोशिशों के नए दौर चालू हुये। 25 जून 1945  में अंग्रेज सरकार ने भारत के सभी राजनैतिक दलों को शिमला वार्ता के लिए बुलाया। गांधीजी भी इसमे वाइसराय के विशेष आग्रह पर व्यक्तिगत हैसियत से शामिल हुये।  इसके बाद वार्ताओं के अनेक दौर हुये। वैवल योजना(1945) के तहत प्रस्ताव लाये गए, सत्ता के हस्तांतरण का फार्मूला लेकर केबिनेट मिशन (1946) आया। लेकिन ये सब प्रयास जिन्ना की जिद्द पर बलि चढ़ गए। जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की माँग पर अड़े थे तो गांधीजी और उनके अनेक सहयोगी देश का विभाजन नहीं चाहते थे। जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत से असहमत गांधीजी ने काफी पहले से ही उनसे चर्चा कर समस्या का निदान खोजने के प्रयास किए। गांधीजी ने अनेक अवसरों पर जिन्ना व सरकार को स्पष्ट किया कि कांग्रेस केवल हिंदुओं की पार्टी नही है वह अपने सदस्यों का प्रतिनिधित्व करती है जिसमे मुसलमान भी शामिल है।

लार्ड माउंटबैटन 21 फरवरी 1947 को भारत के वाइसराय बने। उन्होने देश की आज़ादी का खाका तैयार करने के उद्देश्य से 1 अप्रैल 1947 से चार प्रमुख भारतीय नेताओं से अलग अलग मिलना प्रारंभ किया। ये नेता थे गांधीजी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना। लार्ड माउंटबैटन जानते थे कि गांधीजी बटवारे के सख्त विरोधी हैं तो जिन्ना बटवारे से कम कुछ नही चाहते।  अत: उन्होने अपनी योजना कुछ इस प्रकार बनाई की गांधीजी को बातचीत के माध्यम से बटवारे के लिए तैयार किया जा सके। गांधीजी ने लार्ड माउंटबैटन से होने वाली बैठक के एक दिन पहले ही कहा था कि भारत का बटवारा मेरी लाश पर ही होगा अपने जीते जी मैं कभी भारत के बटवारे के लिए तैयार नहीं हो सकता। लार्ड माउंटबैटन ने जब उनसे विभाजन को टालने के लिए और विकल्प पूंछे तो उनका जबाब था कि एक बच्चे के दो टुकड़े करने के बजाय उसे मुसलमानों को दे दो। वह इसके लिए भी तैयार थे कि जिन्ना जो हिस्सा माँगते थे उसके बदले उन्हे पूरा हिन्दुस्तान ही दे दिया जाय, जिन्ना और उनकी मुस्लिम लीग को सरकार बनाने को कहा जाय। गांधीजी को विश्वास था कि कांग्रेस भी देश का बटवारा नहीं चाहती है और वह उसे रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी। जब लार्ड माउंटबैटन ने गांधीजी से जानना चाहा कि इस बात पर जिन्ना का रवैया क्या होगा तो गांधीजी ने हँसते हुये कहा ‘अगर आप उनसे कहेंगे कि यह सुझाव मेरा है तो उनका जबाब होगा: धूर्त गांधी’।

लेकिन गांधीजी के तमाम प्रयासों से कोई बात नही बनी।  जिन्ना अपने दो राष्ट्र के सिद्धांत से पीछे हटने को तैयार न थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी दो धड़ों में बटती जा रही थी, एक धडा विभाजन को अपरिहार्य मानने लगा था । ऐसी परिस्थितियों के बीच 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबैटन ने ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर भारत विभाजन की घोषणा कर दी। इस विभाजन प्रस्ताव पर  चर्चा के लिए 14 व 15 जून को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की एक विशेष बैठक दिल्ली में बुलाई गई। इस बैठक में प्रस्तावित बटवारे के खिलाफ कई आवाजें उठीं। सिंध के लोग भी बटवारे के विरोध में थे। पुरुषोत्तम दास टंडन, जय प्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अब्दुल गफ्फार खान  और गांधीजी आदि ने विभाजन के खिलाफ भाषण दिये। राम मनोहर लोहिया ने तो इस बैठक में विभाजन का सारा ठीकरा पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल व मौलाना आज़ाद पर फोड़ दिया।

यह मानते हुये कि विभाजन तो अब होगा ही कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने आगे की तैयारियाँ शुरू कर दी। सत्ता हस्तांतरण की तारीख पहले जून 1947 तय की गई जिसे बदलकर अक्तूबर 1947 किया गया और अंतत: 15 अगस्त 1947 का दिन भारत की आज़ादी के लिए निर्धारित किया गया। इसके एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान ने भारत से अलग होकर एक नए राष्ट्र का रूप धारण किया। भारत की आज़ादी का दिन 15 अगस्त 1947  लार्ड माउंटबैटन ने शायद जापान के आत्म समर्पण की दूसरी वर्षगांठ से अपने व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण तय किया क्योंकि दो वर्ष पहले ही  इसी  दिन जब वे दो 10 डाउनिंग स्ट्रीट में ब्रिटिश प्रधानमंत्री के साथ बैठे थे तब जापान के आत्म समर्पण की खबर आई थी।

देश की आज़ादी अपने साथ हिंदु मुस्लिम दंगों की एक नई खेप भी साथ लाई। 1947 के प्रारंभ में ही नोआखली में भीषण सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। दंगों की यह आग बंगाल के गांवों और बिहार तक फैल गयी। कहीं हिन्दू  मारे जाते तो बदले में वे मुसलमानों को मारते। दंगो की विभीषिका के बीच गांधीजी ने श्रीरामपुर में डेरा डाल दिया और नोआखली  के गावों में प्रायश्चित यात्रा शुरू करने का निर्णय लिया।  और अगले सात सप्ताहों में वे 116 मील पैदल चलकर 47 गांवों में गए, रात वहीं रुके, जो कुछ ग्रामीणों ने खाने को दिया प्रेम से खाया और सांप्रदायिक सौहाद्र की स्थापना कर हज़ारों हिंदुओं और मुसलमानों को अकाल मृत्यु से बचाया। जब गांधीजी मुस्लिम बहुल गावों में जाते तो कई बार लोग विरोध में नारे लगाते दीवारों पर चेतावनी स्वरूप नारे लिख देते – ‘खबरदार आगे मत बढ़ना! ‘पाकिस्तान की बात माँग लो!’ या ‘अपनी खैर चाहते हो तो लौट जाओ!’ । पर गांधीजी पर इन धमकी भरी बातों का कोई असर न होता और आखिर में उनकी अहिंसा की जीत हुयी नोआखली में शांति स्थापित हुयी।

14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की संविधान सभा में अपना प्रसिद्ध भाषण “Tryst with Destiny” दे रहे थे तब इस आज़ादी के आंदोलन का मसीहा उसका कर्ता धर्ता कलकत्ता में शांति स्थापित करने के लिए मुस्लिम बहुल मोहल्ले हैदर मैंशन में ठहरा हुआ था। विभाजन की पीड़ा से ग्रस्त गांधीजी,  दंगो के खतरों की आशंका से लोगो को मुक्ति दिलाने में लगे हुये थे। उनके प्रयासों से कलकत्ता और बंगाल के अन्य हिस्सों में शांति बनी रही, दंगे फसाद रुके रहे। लार्ड माउंटबैटन ने उन्हे दिल्ली से पत्र लिखा था: ‘पंजाब में हमारे पास 55,000 सिपाही हैं, फिर भी वहाँ दंगे हो रहे हैं। बंगाल में हमारे सेना दल में सिर्फ एक सिपाही है और वहाँ कोई दंगा नहीं हुआ।‘

(इस आलेख हेतु संदर्भ डोमनिक लापियर व लैरी कालिन्स की पुस्तक फ्रीडम एट मिड नाइट तथा जसवंत सिंह की पुस्तक जिन्ना भारत-विभाजन के आईने में से ली गई है। कुछ जानकारियाँ राकेश कुमार पालीवाल द्वारा रचित गांधी जीवन और विचार से भी ली गई हैं।)

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 19 ☆ लघुकथा – देवी विसर्जन ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और शिक्षाप्रद लघुकथा देवी विसर्जन।  यह वास्तव में विचारणीय है कि कुछ लोगों के विचार नवरात्रि के नौ दिनों तक सात्विक रहते हैं और अचानक दसवें दिन ही क्यों परिवर्तित हो जाते हैं ?  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 19 ☆

☆ लघुकथा  – देवी विसर्जन ☆

नदी दूषित न हो शासन ने इसकी पूरी कोशिश और सतर्कता बरती. एक कुंड बनाया. जिसमें बड़ी और छोटी सभी प्रतिमाएं विसर्जित की जा सकतीं थीं और प्रतिमाएं विसर्जित भी हुई. पर कुछ और प्रतिमाओं को विसर्जित होना था. माता की मूर्ति विसर्जन के लिये बड़ी धूमधाम से ले जायी गई और नदी में विसर्जित करने आगे बढ़े, मना करने पर समिति के सदस्यगण  मूर्ति कुंड में  विसर्जित नहीं करने के पक्ष में थे. यही बात आगे विवाद बनी.

शासन की चाक-चौबंद व्यवस्था अति उत्तम रही आपस में तू-तू में में शुरू हुई और फिर शासन और समिति के सदस्यों मैं बहुत जमकर लाठी और पत्थरों का उपयोग हुआ.

बस फिर क्या मूर्ति के पास पुजारी बस बैठा रहा, बाकि सबको जाना पड़ा और फिर देवी का विसर्जन शासन के नुमाइंदों को करना पड़ा.

यह भी बड़े भाग्य की बात कि देवी भी अनुशासन में रहकर ही खुश हुई होगी. अति किसी भी तरह की बुरी होती है. कुछ भले मानस, तो कुछ विघ्नसंतोषियों ने यह विवाद खड़ा कर दिया.

मन कर्म वचन से सभी ने श्रद्धा भक्ति की और मन पवित्र कर इन्द़ियों को वश में करने के गुण सीखे और शान्ति भी रही. किन्तु,  हमारे विचार नौ दिनो तक  शुध्द शाकाहारी रहते हुये दसवें दिन से ही आततायी क्यों हो गये?

शासन ने अपनी महत्ता बताई और विसर्जन करते समय गर्व से बोले- “देश की रक्षा कौन करेगा? …हम करेंगे… हम करेंगे!”

क्या यह मानवीय व्यवहार सही था ….?

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #35 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 35 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

सांस देखते-देखते, सत्य दीखता जाए ।

सत्य देखते-देखते, परम सत्य दिख जाये ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (28) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।

तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ।।28 ।।

 

जैसे नदियां वेग से करतीं उदधि प्रवेश

वैसे ही योद्धा ये सब , तव मुख अग्नि प्रवेश ।।28 ।।

 

भावार्थ :  जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं॥28॥

 

Verily, just as many torrents of rivers flow towards the ocean, even so these heroes of the

world of men enter thy flaming mouths

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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