हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रकृति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रकृति ☆

प्रकृति ने चितेरे थे चित्र चहुँ ओर

मनुष्य ने कुछ चित्र मिटाये

अपने बसेरे बसाये,

 

प्रकृति बनाती रही चित्र निरंतर,

मनुष्य ने गेरू-चूने से

वही चित्र दीवारों पर लगाये,

 

प्रकृति ने येन केन प्रकारेण

जारी रखा चित्र बनाना

मनुष्य ने पशुचर्म, नख, दंत सजाये

 

निर्वासन भोगती रही

सिमटती रही, मिटती रही,

विसंगतियों में यथासंभव

चित्र बनाती रही प्रकृति,

 

प्रकृति को उकेरनेवाला

प्रकृति के खात्मे पर तुला

मनुष्य की कृति में

अब नहीं बची प्रकृति,

 

मनुष्य अब खींचने लगा है

मनुष्य के चित्र..,

मैं आशंकित हूँ,

बेहद आशंकित हूँ..!

 

घर पर रहें। स्वस्थ और सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 10:21 बजे, 21.8.2019)

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मन के पीछे कोई ☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

( ई – अभिव्यक्ति में डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी का हार्दिक स्वागत है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त साहित्यिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान दिया है। अब तक आपकी नौ काव्य  कृतियां  प्रकाशित हो चुकी हैं एवं तीन  प्रकाशनाधीन हैं। चिकित्सा एवं साहित्य के क्षेत्र में कई विशिष्ट पदों पर सुशोभित तथा  शताधिक पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी  से हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए उनके साहित्य की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर भावप्रवण गीत  मन के पीछे कोई । )

☆ मन के पीछे कोई ☆

 

एक बार पूछो अधरों से,प्यास भला कब सोयी।

मन है किसी और के पीछे, मन के पीछे कोई।।

 

अभिव्यक्ति को कभी सहारा, दिया नहीं शब्दों ने।

असफलता को ही  तो सब कुछ ,माना प्रारबधों ने।।

हँसते रहे कोर नयनो के,साँस -साँस पर रोयी।।

 

पीड़ाओं ने छंद लिखे हैं,कागज पर इस मन के।

आहट हुई द्वार पर,बदले,मौसम फिर  आँगन के।।

धूप नहीं आयी खुशियों की,कहीं राह में खोयी।।

 

संबंधों में पहले जैसा,अब विश्वास नहीं है।

उपवन अभिलाषाओं के हैं,पर मधुमास नही है।।

जीवन की हर एक विवशता,सुधियों ने ही ढोई।।

 

एक बार पूछो अधरों से,प्यास भला कब सोयी।

मन है किसी और के पीछे, मन के पीछे कोई।।

 

© डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

“श्री रघु गंगा” सदन,  जिया माँ पुरम फेस 2,  मेडिकल कालेज रोड सागर (म. प्र.)470002

मोबाईल:  9425635686,  8319605362

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना हाईकु ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  द्वारा मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में  हाईकु विधा में रचित कविता कोरोना हाईकु। )

☆ कोरोना हाईकु ☆

क्या मजदूर

क्या किसान जवान

सभी महान!!

 

पाल रहे हैं

सरकारी आदेश

हर इंसान!!

 

सहमी राहें

जनता को सिखाएँ

धैर्य शिक्षाएँ!!

 

कडी़ टूटेगी

ना आएंगे मरीज

खत्म कोरोना!!

 

कोरोना बैरी

लाख हों हेराफेरी

हारेगा पारी!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 41 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि  के अवसर पर एक समसामयिक  “भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 41 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  

 

विश्वास

हमको अब होने लगा,

तुझ पर ही विश्वास

किया समर्पित आपको,

मन में है ये आस।।

 

अभियान

कोरोना के कहर से,

कैसे बचे जहान।

इसे रोकने चल रहे

कितने  ही अभियान।।

 

मयंक

आज गगन पर छा गया,

रातों रात मयंक।

भरती मुझको चांदनी,

देखो अपने अंक।।

 

चांदनी

छाती जाती चांदनी,

है पूनम की रात।

होती है फिर से धरा,

एक और मुलाकात ।।

 

अभिनय

तेरा अभिनय देखकर,

मन में उठा गुबार।।

आंखों से अब पढ़ लिया,

झूठा तेरा प्यार।।

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं! ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  आशावादी कविता  “हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं”. )

☆ कविता –  हार ग‌ए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं ☆

 

दुनिया भर  मे कोरोना के‌‌, देखो  नखरे न्यारे हैं

सहमी -सहमी लगे जिन्दगी, सहमे चाँद सितारे हैं

 

आना -जाना बंद हुआ है, सैर -सपाटे छूट गए

नदिया रोती, सागर रूठा, टूटे सभी किनारे हैं

 

हाथ मिलाना छोड़ गए सब, नमस्कार की‌ जै-जै है

रिश्तों में दूरी-मजबूरी, मित्र सभी बेचारे हैं

 

साँस -साँस भारी जीवन पर मगर रोग से लड़ना है

हार ग‌ए यदि हिम्मत , समझो, सारी बाजी हारे हैं

 

आशाओं का दीप जला कर  हमें प्रतीक्षा करनी है

होगी सुबह, सदा कब रहने वाले ये अँधियारे हैं

 

कभी किसी के यहाँ नहीं,दिन सदा एक से रहते हैं

अधरों पर मुस्कान मधुर, आँखों में आँसू खारे हैं

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 32 ☆ राम-नाम अभिराम ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की  श्री रामनवमी पर विशेष रचना   “राम-नाम अभिराम ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 32 ☆

☆ श्री रामनवमी विशेष – राम-नाम अभिराम ☆

चैत्र शुक्ल नवमी सुदी,लिये राम अवतार

राजा दशरथ के हुये,स्वप्न सभी साकार

 

रामचरित मानस लिखी,शुभ मुहूर्त शुरुआत

बाबा तुलसी दे गये, यह सुंदर सौगात

 

राम नाम के मंत्र का, करिये निशदिन जाप

उनके सुमिरन से मिटें, जग के सारे ताप

 

अविनाशी व्यापक परम्, सत्य चेतनानन्द

मणि दीपक प्रभु आप ही, राम परम आनन्द

 

राम भरोसे जग चले,व ही जीवनाधार

शरणागत का राम ही, करते बेड़ापार

 

हरते सारी व्याधियाँ, वैद्य जगत  के राम

रामबाण औषधि परम्, राम-नाम अभिराम

 

राम नाम से जागता, अंदर का विश्वास

आत्मशक्ति बढ़ती सदा, नव जीवन की आस

 

पाप ताप विपदा हरे, सदा राम का नाम

जीवन सुखमय है वही, मन में जिसके राम

 

राम-शरण “संतोष”प्रभु, राम-नाम धन धाम

चरण वंदना आपकी, करते हम श्रीराम

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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मराठी साहित्य – कविता ☆ नामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  श्री रामनवमी पर्व पर विशेष  कविता “रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम।)

☆ श्री रामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम 

 

सूर्यवंशी रामराया , विष्णू रूप अवतार

एकपत्नी न्यायप्रिय,करी सत्य अंगीकार.. . . !

 

राम लक्षुमण जोडी, शत्रुघ्नाचा बंधुभाव

भरताचे स्नेहपाश, घेती अंतरीचा ठाव.. . !

 

माता कौसल्येचा राम, राम सुमित्रा नंदन

राम पुत्र कैकेयीचा, जणू वात्सल्य मंथन.. . !

 

रघुकुल शिरोमणी, कोटी श्लोक याची गाथा

ऐकताच रामरक्षा, लीन होई माझा माथा.. . . !

 

मरा मरा म्हणताना, राम मनी साकारला

वाल्मिकीच्या रामायणी,मूर्तीमंत आकारला.. . !

 

आकाशीचा चंद्र मागे,खेळायला बालपणी

जिंकुनीया स्वयंवर,सीतानाथ रघुमणी . . . . !

 

जानकीचा झाला नाथ ,राम दुःख निवारक

रावणास निर्दालूनी ,राम आदर्श प्रेरक. . . . !

 

विधात्याचा अभिलेख, राम भोगी वनवास

ऋषीमुनी उपदेश, रमणीय सहवास. . . . !

 

रामराज्य पहाण्याला, चौदा वर्षे गेला काळ

पापनाशी झाली धरा,यश कीर्ती घाली माळ.. . !

 

एकश्लोकी रामायण , राम कथा बोधामृत

रामलीला वर्णायला, प्रतिभेचे शब्दांमृत . . . !

 

जन्म आणि मृत्यू मधे ,राम चैतन्याचा सेतू

क्लेशमुक्त व्हावी प्रजा, राम मनी हाची हेतू. .. !

 

राम  असा राम तसा, राम कैवल्याचे धाम

कविराजे  वर्णियेला, कर्मफल रामनाम. . . !

 

श्री राम जय राम जय जय राम

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #37 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 37 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

बाहर-बाहर खोजते, दुखिया रहा जहान ।

अंतर में ढूँढ ली, सुख की खान-खदान ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (30) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।

तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ।। 30 ।।

 

ज्वलित मुखों में भर इन्हें चाट रहे जो आप

उग्र  ताप संतप्त जग में छाया परिताप ।। 30 ।।

 

भावार्थ :  आप उन सम्पूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा ग्रास करते हुए सब ओर से बार-बार चाट रहे हैं। हे विष्णो! आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत को तेज द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है।। 30 ।।

 

Thou lickest up, devouring all the worlds on every side with Thy flaming mouths. Thy fierce rays, filling the whole world with radiance, are burning, O Vishnu!।। 30 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 24 ☆ लघुकथा – अपने घर का सुख ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “अपने घर  का सुख”।  यह लघुकथा हमें  एक सकारात्मक सन्देश देती है। जीवन  में सब को सब कुछ नहीं मिलता। जिन्हें अपने घर का सुख मिलता है उन्हें अपने नीरस जीवन का दुःख है तो कहीं  समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो  किसी भी तरह अपने घर  पहुँचने के लिए बेताब है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस बेहद खूबसूरत सकारात्मक रचना रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 24 ☆

☆ लघुकथा – अपने घर  का सुख

मम्मां  क्या है ये ? थोडी देर तो बाहर जाने दो ना, प्लीज.

नहीं बेटा!  मैं तुझे घर के बाहर जाने नहीं दे सकती, तुझे मालूम है ना देश के हालात, कोरोना के कारण कितना बडा संकट छाया है पूरे विश्व पर. सबको अपने घर पर ही रहना है, घर पर रहकर ही इसे बढने से थोडा रोका जा सकता है.

सब जानता हूँ पर तुझे भी पता है ना माँ कि मैं घर में नहीं रुक सकता.  करूँ क्या सारा दिन घर में बैठकर ?

हॉस्टल में क्या करता था सारा दिन ?

उसके चेहरे पर मुस्कुराहट दिखी —  अरे हॉस्टल में तो फुल धमाल, मस्ती, घूमना-फिरना, पार्टी – और पढाई? क्लासेस??

वह सकपका गया हाँ – आँ  अरे! वो तो होती ही है पर हॉस्टल में कोई बोर हो सकता है भला? उफ! ऐसा तो कभी नहीं जैसे मैं इस समय घर में पक रहा हूँ. आज दस दिन हो गए, अभी तो पंद्रह दिन और काटने हैं. लग रहा है  जैसे कैद होकर रह गया हूँ घर में – उसने मायूस चेहरा बनाते हुए कहा.

सरिता समझ रही थी कि आज के ये बच्चे जिन्हें बाहर घूमना – फिरना, ज़ोमैटो, स्विगी से खाना मंगा – मंगाकर खाना खाने की आदत पड गयी है इन्हें घर मैं बैठकर दाल-चावल, रोटी खाना अब कहाँ भायेगा ?  एक – दो दिन की छुट्टियों में घर का खाना और और मम्मी- पापा से दुलार करना बहुत अच्छा लगता है लेकिन अब तो  —– सरिता ने लंबी साँस भरी.

सरिता लगातार कोशिश कर रही थी कि घर में सकारात्मक माहौल बना रहे, इसके लिए वह बेटे और पति को कभी कुछ अच्छी और नई–नई चीजें बनाकर खिलाती.  कभी छत तो कभी लॉन में तीनों बैठकर चाय–कॉफी पीते थे, लेकिन जिन्हें घर में टिकने की आदत ही ना हो उनके लिए दिन काटने मुश्किल हो रहे थे. पति ने एक – दो बार कहा भी – यार, कैसे रह लेती हो तुम सारा दिन घर में ? तुम भी बोर हो जाती होगी, है ना ?  उसने शून्य निगाहों से पति की ओर देखा, बोली कुछ नहीं, सोचा छोडो इस समय, उसने अपने विचारों को झटक दिया.

बेटे का मन बहलाने के लिए उसने टी.वी. चला दिया. सभी न्यूज चैनल यही दिखा रहे थे कि प्रधानमंत्री की  इक्कीस दिन के लॉकडाउन की घोषणा के कारण देश भर में दूसरे राज्यों से आए मजदूर अपने – अपने घर जाने के लिए परेशान होने लगे.घर जाने के सारे साधन  ट्रेन,  बस आदि बंद  हो गए थे लेकिन गरीब मजदूर किसी भी तरह अपने घर पहुँचना चाहते थे. सामान की गठरी सिर पर रखे और एक हाथ से बच्चे को थामे वे चले जा रहे थे. घबराकर वे भूखे – प्यासे  अपना परिवार लेकर पैदल ही निकल पडे. वे जानते थे कि अपने घर पहुँचकर किसी तरह भी रह लेंगे लेकिन दूसरे राज्य में बिना नौकरी, खाली हाथ, बीबी-बच्चों को क्या खिलाएंगे ? सरकार प्रयास कर रही है लेकिन वे जल्दी से जल्दी अपनों के बीच  पहुँचना चाहते थे.

बेटा बडी गंभीरता से मजदूरों के पलायन की खबरें सुन रहा था.  कैसे छोटे- छोटे बच्चे अपने माता पिता  का हाथ पकडे और कुछ गोदी में, रात दिन चलकर अपने घर की आस में चले जा रहे थे. गरीब मजदूरों की अपने घर जाने की व्याकुलता ने उसे बेचैन कर दिया था.  सरिता ने देखा बेटे की आँखों में आँसू भरे थे, वह माँ के पास आया और उसके गले में दोनों हाथ डालकर बडे प्यार से बोला – मम्मां मैं कितना लकी हूँ ना कि ऐसे समय में कितने आराम से आप सबके साथ अपने घर में बैठा हूँ, अगर मैं भी घर नहीं आ पाता तो? सरिता ने बडे प्यार से बेटे के सिर पर हाथ फेरा, वह यही तो समझाना चाहती थी.

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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