हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆ श्री अ कीर्तिवर्धन

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री अ कीर्तिवर्धन

( आज प्रस्तुत है  श्री अ कीर्तिवर्धन जी की एक समसामयिक कविता कुछ मसीहा लड़ रहे हैं,  कोरोना से रात दिन ।)

 

☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆

 

हर तरफ

सन्नाटा पसरा हुआ

भय का माहौल है

चिन्तित

हर आदमी

मौत की आहट से

व्याकुल

तन्हा जीवन हो रहा|

क्या करें

कैसे करें

किससे कहें

मन की पीडा

बाँटे जिससे

ऐसा कोई

दिखता नहीं|

कठिन दौर

मानवता पर आया

दानवता ने

परचम फहराया|

दानवता के दौर मे भी

निज परिवारों को भुलाकर

कुछ मसीहा

लड रहे हैं

कोरोना

मिटाने की खातिर

रात दिन

काम कर रहे है|

 

©  श्री अ कीर्तिवर्धन

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English Literature – Poetry ☆ Life ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “जीवन ”  published previously as ☆ संजय  दृष्टि – “जीवन ”     We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Life ☆

Dreams live

for centuries

Keeping few moments

for self,

A rare balance of

Micro and macro,

Constant union of

Mortal and God,

Life, in the face of

apprehensions, is the

Congregation of possibilities!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 29 ☆ चैत्र चाहूल ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  चैत्र पक्ष एवं श्री रामनवमी  पर्व पर विशेष रचना  “चैत्र चाहूल ”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 29 ☆

☆ चैत्र चाहूल ☆ 

(काव्यप्रकार:-हायकू)

चैत्र चाहूल
आलं नवं वरीस
सोन्यापरीस. !!१!!
गुढी पाडवा
करु पुरणपोळी
शत्रूला गोळी. !!२!!
सण वर्षांचा
गुढीला साडी नवी
पुण्याई हवी. !३!!
पूजन करु
नूतन पंचांगाचे
श्रीगणेशाचे. !!४!!
चैत्र मासात
चैत्रांगणाची शोभा
श्रीराम उभा. !!५!!
चैत्र महिना
रामाचे नवरात्र
सारे एकत्र. !!६!!
चैत्र चाहूल
पाने लुसलुसती
साजिरी किती. !!७!!
चैत्र मासात
फुले चाफा पिवळा
सुंदर माळा. !!८!!
चैत्र हा खासा
मोगरा बहरला
धुंद जाहला. !!८!!
फुलली लाल
काटेसावर छान
येई उधाण. !!९!!
चैत्रात फुले
ऋतु वसंत रानी
रमले वनी. !!१०!!
सुगंधा सह
बकुळ बहरला
वारा आला. !!११!!
कसा बहरे
छान नीलमोहर
खूप सुंदर. !!१२!!
गॅझेनियाला
आला मस्त बहर
केला कहर. !!१३!!
मालवणात
सुरंगीही फुलते
आनंद देते.  !!१४!!
चैत्र मासात
फुलला बहावा
अरे वाहवा !!१५!!
चैत्र मासात
राम जन्मला बाई
आनंद होई !!१६!!
©®उर्मिला इंगळे
दिनांक:-३-४-२०
 !!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 31 ☆ रूठा वक्त ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “रूठा वक्त ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 31 ☆

☆ रूठा वक्त ☆

 

जाने अनजाने में

कितना कुछ छूट गया,

ये वक्त तू बता

मुझसे क्यों रूठ गया।

 

हवाओं को बाँधने की

कोशिश नहीं की,

ये साँस तू बता

बंधन क्यों टूट गया ।

 

ज़मीं को खरीदकर

रखा नहीं है,

मिट्टी का तन मिट्टी में

ढह गया ।

ये वक्त तू बता

मुझसे क्यों रूठ गया।

 

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 37 – मस्तिष्क, शरीर और विज्ञान ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण आलेख  मस्तिष्क, शरीर और विज्ञान। )

Amazon Link – Purn Vinashak

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 37 ☆

☆ मस्तिष्क, शरीर और विज्ञान

 

जैसा कि मैंने आपको बताया था कि हमें वर्तमान और आने वाले जीवन में अपने अच्छे या बुरे कर्मों के फलो का सामना करना पड़ता है, ये कर्म गुप्त रूप से लिंग शरीर में 17 गुणों के रूप में सांकेतिक शब्दों में उपस्थित रहते हैं या आप कह सकते हैं कि यह निर्देशिका (index) के रूप में रहते हैं । लेकिन जैसा ही आत्मा लिंग शरीर के साथ नए शरीर में प्रवेश करती है, जल्द ही यह निर्देशिका संकेत-वर्गीकरण (index coding) से विस्तृत रूप में खुल जाता है और उचित चक्र स्थानों पर प्रक्षेपित हो जाता है और चक्रों के कंपन की आवृत्तियों को प्रभावित करता है, और चक्रों के कंपन की आवृत्तियों का ये अंतर ही हमारे DNA में नाइट्रोजन और प्रोटीन संकेत-वर्गीकरण के रूप में मानचित्रित (map) हो जाता है । हाइड्रोजन बंधन DNA की दोहरी कुंडलिनी (double-helix) संरचना को एक साथ रखते हैं, जो जीवन के निर्माण खंडों के लिए मूल इकाई है । एक हाइड्रोजन परमाणु के साथ बातचीत का प्रत्यक्ष माप DNA और बहुलक जैसे त्रि-आयामी अणुओं की पहचान के लिए मार्ग प्रशस्त करता है । तो अब आप समझ सकते हैं कि कैसे हमारे सकल शरीर के DNA से सूक्ष्म शरीर के प्राणमय कोश के चक्रों के बीच सूचना का आदान प्रदान होता है । इसके अतरिक्त हमारा DNA पूरे ब्रह्मांड की जानकारी को संग्रहित कर सकता है ।

असल में मानव DNA एक जैविक रूप से जटिल अणु है । यह शरीर की सभी प्रमुख अंग प्रणालियों के बीच संचार का समन्वय करता है । एक पूरी तरह से नई दवा बनायीं गयी है जिसमें DNA के एकल जीन काटने और बदलने के बिना शब्दों और आवृत्तियों द्वारा प्रभावित और पुन: क्रमादेश किया जा सकता है । प्रोटीन के निर्माण के लिए हमारे DNA का 10% से कम उपयोग होता है । शेष 90% कबाड़ (Junk) DNA की तरह होता हैं । हमारा DNA न केवल हमारे शरीर के निर्माण के लिए ज़िम्मेदार है बल्कि सूचना संग्रहण (data storage) और संचार केंद्र के रूप में भी कार्य करता है । DNA मानव भाषा के निर्माण के लिए आवश्यक सभी जानकारी को भी संग्रहित करता है ।

जीवित गुणसूत्र (chromosome) एक त्रिविमीय (hologram) संगणक (computer) की तरह कार्य करते हैं । शरीर के साथ संवाद करने के लिए गुणसूत्र अंतर्जात (endogenous) DNA ऊर्जा का एक रूप उपयोग करते हैं ।

DNA क्षारीय जोड़े और भाषा की मूल संरचना का समान स्वरूप होता है, इसमें कोई DNA डिकोडिंग (छिपे को खोलना) आवश्यक नहीं होती है । अर्थ है कि हम शब्दों और ध्वनियों का उपयोग करके मानव शरीर में मौलिक परिवर्तन कर सकते हैं ।

मानव DNA निर्वात (vacuum) में विक्षुब्ध (disturbing) स्वरूप (pattern) का कारण बन सकता है, इस प्रकार चुंबकीय छिद्रों(wormholes) का उत्पादन होता है । ये ब्रह्मांड में पूरी तरह से अलग-अलग क्षेत्रों के बीच सुरंग से जुड़े होते हैं जिसके माध्यम से जानकारी अंतरिक्ष और समय के बाहर प्रसारित की जा सकती है । DNA सूचना के इन टुकड़ों(bits) को आकर्षित करता है और उन्हें हमारी चेतना पर भेजता है । दूर संवेदन संचार (telepathy channeling) की यह प्रक्रिया आराम की स्थिति में सबसे प्रभावी है । इस तरह के दूर संवेदन संचार को प्रेरणा या अंतर्ज्ञान के रूप में अनुभव किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि DNA हटा दिए जाने के बाद अंतरिक्ष और समय के बाहर से ऊर्जा सक्रिय छिद्रों(wormholes) के माध्यम से बहती रहती है । ये विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र हैं ।

सभी विभीषण के शिक्षण से प्रसन्न थे ।

शाम को वे सभी मुंबई के पर्यटन स्थलों का दौरा करने गए ।

जून में वे कैलाश मानसरोवर गए । उन्होंने कैलाश मानसरोवर के रास्ते में सभी उप-मार्गों की खोज की थी, लेकिन उन्हें भगवान हनुमान का कोई संकेत नहीं मिला । तो वे बिना उम्मीद के ही मुंबई वापस आ गए ।

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है! ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”

 

(आज  प्रस्तुत है श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश” जी की एक समसामयिक कविता आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है!)

 

☆ आवश्यक सेवाकर्मी  कर्मचारी – नमन है! अभिवादन है! सलाम है!  ☆

 

नमन है, अभिवादन है, सलाम है

डॉक्टर, पुलिस, अति आवश्यक सेवा कर्मचारी

कोरोना से बचाने – सर्वशक्तिमान आया है..।

तेरी आस्था और तेरे विश्वास से,

तुझे बचाने देख सर्वशक्तिमान आया है..।

 

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

पहचान उसे,

तेरी और तेरे अपनो की रक्षा के लिए,

अस्पतालों में उसने अपना घर बनाया है..।

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान  उसे,

सुन है पंक्षी तू आजादी के,

लक्ष्मण रेखा से बांधा है उसने,  तुझे घर में,

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान  उसे,

न तोड़ मर्यादा लक्ष्मण रेखा की,

डंडे से काबू में तुझे रखने द्वारपाल बनकर आया है..।

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

पहचान उसे,

न तू भूखा रहे,

खान-पान, धन-धान्य का उसने बाजार लगाया है..।

पहचान उसे,

कैसे जिया जाये वर्तमान में,

तुझे सिखाने बनकर प्रशासन आया है..।

 

पहचान उसे,

जिस धरा पर तू जीता था शान से,

न संभला न समझा अब भी,

सो जायेगा नीचे उसी धरा में शान्ति से,

न बाहर निकल तू घर से,

कोरोना ने बाहर मौत का बाजार लगाया है..।

 

तेरी आस्था और तेरे विश्वास से,

तुझे बचाने देख सर्वशक्तिमान आया है..।

 

© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल 

(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #38 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 38 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

दान धरम का मूल है, दान धरम का कोष ।

लेते तृष्णा ही बढ़े, देते सुख संतोष ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (31) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।

विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्‌ ।। 31 ।।

उग्र रूप  तुम कौन प्रभु ! तुम्हें नमन , समझाओ

प्रवृति न जानूं  आपकी , अब प्रसन्न हो जाओ ।। 31 ।।

 

भावार्थ :  मुझे बतलाइए कि आप उग्ररूप वाले कौन हैं? हे देवों में श्रेष्ठ! आपको नमस्कार हो। आप प्रसन्न होइए। आदि पुरुष आपको मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता।। 31 ।।

 

Tell me, who Thou art, so fierce in form. Salutations to Thee, O God Supreme! Have mercy; I desire to know Thee, the original Being. I know not indeed Thy doing.।। 31 ।।

 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – सस्वर कविता ☆ कोरोना को करें पराजित – आचार्य भगवत दुबे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य भगवत दुबे

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(आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य जगत के पितामह  गुरुवार परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की एक समसामयिक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता ” कोरोना को करें पराजित “हम आचार्य भगवत दुबे जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने मानवता के अदृश्य शत्रु ‘ कोरोना ‘ से बचाव एवं बचाव के लिए सेवारत चिकित्सकों एवं उनके सहयोगियों का आभार अपनी अमृतवाणी के माध्यम से  किया है।  इस कार्य के लिए हमें श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का सहयोग मिला है,  जिन्होंने उनकी कविता को  अपने  मोबाईल में  स्वरांकित कर हमें प्रेषित किया है।

ई-अभिव्यक्ति ने पूर्व में आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख अपने पाठकों के साथ साझा किया था  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 3 पी एच डी (4थी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा 2 एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी अस्सी पार होने के बाद भी सक्रियता के साथ निरन्तर साहित्य सेवा में लगे रहते हैं । अभी तक उनकी पचास से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी है। बचपन से ही उनका सानिध्य मिला है। कोरोना की विभीषिका के चलते मानव जाति पर आये भीषण संकट के संदर्भ में आचार्य भगवत दुबे जी से दूरभाष पर बातचीत हुई। लाॅक डाऊन और कर्फ्यू के साये में अपनी दिनचर्या  के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विपदा की घड़ी में सभी लोगों को अपने घर की देहरी के अंदर ही रहना चाहिए, घर से बाहर जाने से बचना चाहिए।अपना एवं अपने परिवार के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए संयमित रहकर अपनी प्रिय अभिरुचि पर काम करते हुए व्यस्त रहना चाहिए।
जब हमने उनसे कोरोना समय पर लिखी रचनाओं की चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस विकट समय पर साहित्यकारों को जन-जन को जागरुक करने वाली रचनाऐं लिखनी चाहिए और समाज के अंदर फैली हताशा और निराशा को दूर करने के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रचनाऐं पाठक के बीच आनी चाहिए। जब हमने आचार्य भगवत दुबे जी को फोन किया उस समय वे कोरोना समय पर कविता लिख ही रहे थे और कविता की अन्तिम चार पंक्तियाँ बचीं थीं जिसको पूरा कर हमारे अनुरोध पर उन्होंने सुनाया। चूंकि वर्तमान समय में इस कविता से जन जन के बीच जागरूकता आयेगी और हमारे स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ेगा इसलिए हमने इस कविता को टेप कर ई-अभिव्यक्ति पत्रिका में प्रकाशित करने प्रेषित किया है।
आप परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता उनके चित्र अथवा लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें:
स्वरांकन एवं प्रस्तुति – जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 41 ☆ नया दृष्टिकोण ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील  सार्थक एवं  नारीशक्ति पर अपनी बेबाक कविता  “नया दृष्टिकोण ”.  डॉ मुक्ता जी  नारी शक्ति विमर्श की प्रणेता हैं ।  नारी जगत  में पनपे नए दृष्टिकोण  पर रचित रचना के लिए डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 41 ☆

☆ नया दृष्टिकोण  

 

मैं हर रोज़

अपने मन से वादा करती हूं

अब औरत के बारे में नहीं लिखूंगी

उसके दु:ख-दर्द को

कागज़ पर नहीं उकेरूंगी

द्रौपदी,सीता,गांधारी,अहिल्या

और उर्मिला की पीड़ा का

बखान नहीं करूंगी

मैं एक अल्हड़,मदमस्त

स्वच्छंद नारी का

आकर्षक चित्र प्रस्तुत करूंगी

जो समझौते और समन्वय से

कोसों दूर लीक से हटकर

पगडंडी पर चल

अपने लिये नयी राह का

निर्माण करती

‘खाओ-पीओ,मौज-उड़ाओ’

को जीवन में अपनाती

‘तू नहीं और सही’को

मूल-मंत्र स्वीकार

रंगीन वातावरण में

हर क्षण को जीती

वीरानों को महकाती

गुलशन बनाती

पति व उसके परिवारजनों को

अंगुलियों पर नचाती

उन्मुक्त आकाश में

विचरण करती

नदी की भांति

निरंतर बढ़ती चली जाती

 

परन्तु, यह सब त्याज्य है

निंदनीय है

क्योंकि न तो यह रचा-बसा है

हमारे संस्कारों में

और न ही है यह

हमारी संस्कृति की धरोहर

 

खौल उठता है खून

महिलाओं को

शराब के नशे में धुत्त

सड़कों पर उत्पात मचाते

क्लबों में गलबहियां डाले

नृत्य करते

अपहरण व फ़िरौती की

घटनाओं में लिप्त देख

सिर लज्जा से झुक जाता

और वे दहेज के इल्ज़ाम में

निर्दोष पति व परिवारजनों को

जेल की सीखचों के पीछे पहुंचा

फूली नहीं समाती

अपनी तक़दीर पर इतराती

नशे के कारोबार को बढ़ाती

देश के दुश्मनों से हाथ मिलाती

अंधी-गलियों में फंस

स्वयं को भाग्यशाली स्वीकारती

खुशनसीब मानती

क्योंकि वे सबला हैं,स्वतंत्र हैं

और हैं नारी शक्ति की प्रतीक…

जो निरंकुश बन

स्वेच्छा से करतीं

अपना जीवन बसर

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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