हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#7 – [1] सफ़ेद दाग [2] मेडीकली अनफिट ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में  शादी-ब्याह विषय पर हम  प्रतिदिन  आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं  “सफेद दाग“एवं “मेडीकली अनफिट”।  हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा।)

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#7 – [1] सफेद दाग  [2] मेडीकली अनफिट 

[1]

सफेद दाग

शादी—शादी—शादी— नहीं करना है मुझे शादी। बिना नौकरी चाकरी के कहीं शादी होती है?

लड़का बुरी तरह माँ बाप से लड़ झगड़ रहा  था।

माँ बोलीं-  मूर्ख मत बन, अकेली लड़की है और भगवान का दिया सब कुछ उनके पास है। फोर व्हीलर तो वे लगुन में ही दे रहे हैं।

‘जरूर कुछ नुक्स होगा माँ,  मुझे नहीं करनी ऐसी शादी जिसमें पूरी जिंदगी ससुराल वालों पर लदे रहो।’

पिता ने आगे बात संभाली- बेवकूफी मत कर बेटा, थोड़े से सफेद दाग हैं तो मिट जाएंगे दवा दारू से, एक से बढ़कर एक  डाक्टर हैं आजकल। रोग का क्या किसी को भी हो सकता है। बस तू मना मत कर, मुझे कल ही ज़बाब देना है।

माँ बाप का जबरिया हाँ कराने का प्रयास पीढ़ियों से जारी है।

[2]

मेडीकली अनफिट

बेटी ब्याह के बाद पहली बार मायके आई तो भाभियों ने श्री नवेली को घेर लिया। चुहलबाज़ी तो होनी ही थी।

‘क्या मिला सुहागरात में’ – बडी भाभी ने बड़ी बड़ी आँखें मटकाकर पूछा।’

‘और सुहागरात कैसी रही’ – छोटी ज्यादा रसीली थी।

बेचारी ननद क्या बोलती? उसे मिला तो सब कुछ था, सिवाय एक पति के, बगल के कमरे में रात भर सोया पड़ा रहा। पति में वह गर्मी तलाशती रही – पर हो तब न।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – रंगमंच ☆ दो अंकी नाटक – एक भिखारिन की मौत -5 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। 

हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ रहे थे। हम संजय दृष्टि  श्रृंखला को कुछ समय के लिए विराम दे रहे हैं ।

प्रस्तुत है  रंगमंच स्तम्भ के अंतर्गत महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त धारावाहिक स्वरुप में श्री संजय भारद्वाज जी का सुप्रसिद्ध नाटक “एक भिखारिन की मौत”। )

? रंगमंच ☆ दो अंकी नाटक – एक भिखारिन की मौत – 5 ☆  संजय भारद्वाज ?

रमेश- भोसले संभालो खुद को, संभालो। (भोसले को लाकर उसकी कुर्सी पर बैठाता है। भोसले को यों ही छोड़कर अनुराधा को लेकर रमेश तेजी से निकल जाता है।)

प्रवेश पाँच

(अनुराधा और रमेश दिखाई देते हैं। नवप्रभात का कार्यालय दिखाया जा सकता है अथवा खुले रंगमंच का भी उपयोग हो सकता है।)

अनुराधा -अजीब हालत है, अजीब हालत है। अजीब हालत है दुनिया की। सारे के सारे पुरुष एक खास रोग से जकड़े हुए। सब यौनकुंठा के मारे हुए। सेक्स मैनिएक्स! एक खूंखार, हिंसक जानवर छिपा है सबके भीतर।

रमेश- जानवर छिपा है, एग्रीड। लेकिन अनुराधा पशु हम में से हर एक के भीतर है। इसके लिए केवल पुरुषों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जितना हिंसक पशु पुरुष के भीतर है,  उतना ही स्त्री के भीतर भी है।

अनुराधा- मैं नहीं मानती।

रमेश- सच्चाई को नहीं मानने से नहीं चल सकता। वैसे अनुराधा, पशु किसे कहती हो तुम?

अनुराधा- एक मनोदशा, एक विकृति, दूसरे के दुख से आनंद उठाने की प्रवृति।  वह आनंद शरीर का भी हो सकता है और मानसिक भी हो सकता है।

रमेश- करेक्ट। अनुराधा चित्रे, यही मैं भी समझाने की कोशिश कर रहा हूँ। बहू को तकलीफ देने वाली, चाहे वह शारीरिक तकलीफ हो या मानसिक,… तकलीफ देने वाली सास भी एक स्त्री ही होती है। बहू को अपने अधीन रखकर किए जाने वाले शासन से मिलने वाला सुख क्या औरत के भीतर का हिंसक पशु नहीं है?

अनुराधा- है पर इस पशु का….

रमेश- मुझे अपनी बात पूरी करने दो अनुराधा। ज्यादातर चकलों को, वेश्यालयों को चलाने वाली औरतें ही होती हैं। ये औरतें अपने से कमज़ोर औरतों को मजबूर कर उनसे धंधा करवाती हैं।

अनुराधा-पर यह तो पेट की ज़रूरत है। पेट भरने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा न।

रमेश- कम ऑन अनुराधा। अपने भीतर के पशु को हम मज़बूरियों का नाम नहीं दे सकते। यों देखा जाय तो जो लोग सुपारी लेकर खून करते हैं, वे सुपारी अपना पेट भरने के लिए ही तो लेते हैं।…पर सवाल यह है कि क्या केवल वे ही भूखे हैं? दूसरे क्यों नहीं करते खून? किसी की जान लेने में आनंद अनुभव करने वाला सुपारी लेने के बजाय सुपारी बेच कर भी जो अपना पेट भर सकता है,… पर नहीं, वह ऐसा नहीं करता। वज़ह भीतर का पशु।

अनुराधा- आई एक्सेप्ट इट। मैं इस सच को स्वीकार करती हूँ पर रमेश इस भिखारिन का किसी स्त्री से संबंध तो आता नहीं। वैसे भी कोई औरत इस भिखारिन को शारीरिक या मानसिक रूप से क्यों प्रताड़ित करेगी?

रमेश- मैं पक्का तो नहीं कह सकता पर लाखों की भीड़ वाले शहर में ऐसी औरतें होंगी ज़रूर जो अपने भीतर के पशु का इस भिखारिन से सीधा संबंध जोड़ पाएँ।

अनुराधा- कहीं संपादक महोदय शहर की कुछ औरतों को अपने इंटरव्यू सीरीज़ का अगला पात्र बनाने की तो नहीं सोच रहे हैं?

रमेश- बिल्कुल सही अनुराधा। एक औरत को यों खुले बदन देखकर केवल मर्द रिएक्ट करेगा, यह ज़रूरी तो नहीं। अपनी सीरीज़ को ज्यादा रोचक बनाने के लिए हम इसमें एक-दो जानी-मानी महिला हस्तियों का नाम भी डाल देते हैं।

अनुराधा- एज़ यू विश सर। मैं अपनी लिस्ट में कुछ महिलाओं के नाम भी डाल देती हूँ।

प्रवेश छह

(अभिनेत्री मधु वर्मा का घर। मधु ट्रैक सूट में है। वह व्यायाम कर रही है। टेप पर कोई अँग्रेजी धुन बज रही है।  मधु बीच-बीच में शीशे में खुद को निहारती है, फिर संगीत पर थिरकती है। फिर व्यायाम करने लगती है।)

मधु- (शीशे में खुद को देखते हुए) वाह मधु वर्मा, वाह! क्या बैनर मारा है! खुराना फिल्म्स इंटरनेशनल..।… खुराना फिल्म्स इंटरनेशनल की धमाकेदार पेशकश, ‘एक हसीना’,… एक हसीना है..इन एंड एज़ मधु वर्मा..।.. एक हसीना, मधु वर्मा। … वही मधु वर्मा, जिसके लिए क्रिटिक लिखते हैं कि उसके चेहरे पर भाव नहीं आते। डायलॉग्स ठीक से नहीं बोल पाती।..यू नो शी हैज लॉट ऑफ इंग्लिश टोनिंग…इडियट्स…बिना इंग्लिश टोनिंग हिंदी फिल्म चलती है क्या…?..मधु वर्मा, एक फ्लॉप हीरोइन!.  क्या-क्या नहीं किया! हर तरह से कोशिश की। हर किस्म का समझौता किया पर हर मूवी फ्लॉप..!. ज्यादा से ज्यादा बोल्ड रोल किए, ज्यादा से ज्यादा अंग प्रदर्शन किया। पर रिजल्ट… ऊपर से वह ‘मूवी वर्ल्ड’ वाली रचना पूछती है, ‘मधु जी, आपकी इमेज को बिकनी इमेज कहा जाता है। आपको नहीं लगता कि आपकी इस इमेज की वज़ह से आपकी हर फिल्म का प्रोड्यूसर कम से कम एक सीन में आपको बिकनी पहनाना चाहता है। ..यू हैव बिकम अ सेक्स सिम्बल। इस वज़ह से अच्छे रोल आपके हाथ में नहीं आते।’ …हूँ.., सेक्स सिम्बल, माय फुट..। मुझे बिकनी गर्ल कहा जाए या पेंटी गर्ल, तुमसे मतलब?.. गो टू हेल।.. मुझे अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का हक है। ( शीशे के आगे खड़ी होकर खुद को अलग-अलग मुद्राओं में देखती है। फोन की घंटी बजती है।)

मधु- हैलो हाँ खुराना जी, मैं ही बोल रही हूँ।…बस जरा फिगर मेनटेन कर रही थी। (हँसती है।)  जी, आप फिक्र ना करें।…..जी, मुझे अच्छी तरह से आपकी बात याद है।.. यह रेप सीन मुझे इंडस्ट्री में नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।… यस…या….या…या आई अंडरस्टैंड खुराना जी,  मैं जानती हूँ कि मुझे एक बिग हिट की ज़रूरत है।…जी, जैसे आपने बताया था उससे ज्यादा रियलिटी आएगी सीन में।.. आई विल फुल्ली को-ऑपरेट सर.., आई हैव टू को-ऑपरेट सर.., ठीक है, फोटो सेशन नेक्स्ट वीक रख लेते हैं।…ओके…ओके..थैंक्यू सर। (फोन रखती है।)….बास्टर्ड… एक फिल्म हिट हो जाए तो मेरे चारों तरफ अपने आप चक्कर लगाएगा। ( स्क्रिप्ट उठाकर रिहर्सल शुरू करती है।)

मधु- नहीं…देखो…देखो हमका छोड़ दो।… हम एक सरीफ खानदान की औरत हैं। हमने तो कभी आपके कुछ बिगाड़े नहीं।.. कौनो गलती हो गई हो तो माफ कर दें बाबू।.. हम गरीब ज़रूर हैं पर इज़्जतदार हैं।…नहीं… हाथ नहीं लगाना…. हाथ नहीं लगाना।… हमका छोड़ दो… हमका छोड़ दो… हमका छोड़ दो।…. छोड़ दो हमका। ( यहाँ वहाँ भागना, रोना)

(रमेश और अनुराधा का तालियाँ बजाते हुए प्रवेश) 

रमेश-  वाह मान गए मधु वर्मा। वेरी गुड शॉट विद क्लासिक टच ऑफ सेंटीमेंट्स एंड रियलिटी।

मधु-थैंक्यू।

क्रमशः …

नोट- ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक को महाराष्ट्र राज्य नाटक प्रमाणन बोर्ड द्वारा मंचन के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त है। ‘एक भिखारिन की मौत’ नाटक के पूरे/आंशिक मंचन, प्रकाशन/प्रसारण,  किसी भी रूप में सम्पूर्ण/आंशिक भाग के उपयोग हेतु लेखक की लिखित पूर्वानुमति अनिवार्य है।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – रंगमंच ☆ “एक भिखारिन की मौत” – एक दर्शक की दृष्टि से ☆ श्रीमती वीनु जमुआर

श्रीमती वीनु जमुआर

“एक भिखारिन की मौत” निश्चित ही एक सार्थक मनोवैज्ञानिक कल्पना है जिसकी चर्चा आदरणीया श्रीमती वीनु जमुआर जी ने इस समीक्षा में किया है। इस नाटक के सन्दर्भ में  ई-अभिव्यक्ति में पूर्व प्रकाशित संस्मरण का लिंक दे रहे हैं जो श्री संजय भारद्वाज जी के रंगमंचीय अनुभव से आपको परिचित कराएगा।

☆ संजय दृष्टि  – समय कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है!

श्री संजय भारद्वाज जी की पुस्तकें “एक भिखारिन की मौत” एवं अन्य पुस्तकें अमेज़न पर निम्न लिंक पर उपलब्ध हैं: 

1- एक भिखारिन की मौत, गंगा स्तुति और अन्य एकांकियाँ, रंग बिरंगा मेरा छाता, बूँद-बूँद मोती 

2- एक  भिखारिन  की  मौत, योंही, चहरे, मैं नहीं लिखता कविता 

 – संपादक ई अभिव्यक्ति 

? रंगमंच ☆ “एक भिखारिन की मौत” – एक दर्शक की दृष्टि से ☆ श्रीमती वीनु जमुआर ?

विश्व रंगमंच दिवस की संध्या!

आयोजन – बहुचर्चित नाटक  ‘एक भिखारिन की मौत ‘ के अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन !

जिसकी यादें मन के किसी कोने में अभी भी ठक-ठक करती हुई जीवित हैं। यह शाम ही क्यों, छः या सात वर्ष पूर्व  जब ‘एक भिखारिन की मौत’ का मंचन होने जा रहा था , उस दिन भी यह प्रश्न सम्मुख खड़ा था –

मृत्यु तो जीवन का सबसे बड़ा शाश्वत सत्य है फिर एक  मौत पर इतनी चर्चा ?   मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के मन का यही प्रश्न , मेरे नाटक प्रेमी हृदय की उत्सुकता बनी और मुझे खींच ले गयी थी नाट्य भवन की ओर ! और जो देखा था वह आज भी जहन में वैसे ही धरा है, संजोया हुआ !

मानव मनोविज्ञान जिसे हम अंग्रेजी में  Human Psychology कहते हैं न – उसका अद्भुत प्रयोग !!

प्रयोग मैं इसलिए कह रही हूँ कि  हर चीज़ के दो पहलू होते हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष। इस नाटक में पुरुष द्वारा सहज छुपायी जाने वाली परोक्ष वृत्ति को दृश्यमान प्रत्यक्ष में परिवर्तित करने के लिए किए गए जद्दोजहद को नाटककार नें सशक्त  संवादों के माध्यम से जिस प्रकार दर्शाया है उसे अपने आपमें एक प्रयोग ही कहा जा सकता है।  नाटक के दो प्रमुख पात्र, संपादक रमेश अय्यर एवं उपसंपादिका अनुराधा चित्रे के मध्य  ‘हिप्नोटिज्म’ के विषय में होते संवाद कहीं दूर…हमें अपने समय के प्रसिद्ध जादूगर पी सी सरकार, के लाल आदि के सम्मोहन की दुनिया में खींच ले जाते हैं। हिप्नोटिज्म द्वारा परोक्ष को दर्शकों के समक्ष  दिखाने  की यह प्रक्रिया निश्चित ही नाटक को एक नया आयाम देती है।

जग जाहिर है, मनुष्य अपनी कमज़ोरियाँ प्रगट नही करना चाहता और फिर पुरुष की बात हो, वह भी  समाज में  सभ्य कहे जाने वाले पुरुष सत्ता की बात हो तो यह और कठिन हो जाता है।

मैं यहाँ नाटककार को बधाई देना चाहूँगी कि स्वयं एक पुरुष होते हुए  प्रकृति के इस  प्राकृतिक नकारात्मक वृत्ति को नाटक के माध्यम से समाज के समक्ष दर्शाने  की कोशिश की है।

स्त्री के प्रति यह नाटककार के आदर, सम्मान एवं संवेदनशीलता को दर्शाता है।

वहीं दूसरी ओर इस दर्दभरी  घटना से व्यावसायिक लाभ प्राप्त करने हेतु अति महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा  किए जाने वाले घृणित  प्रयासों को भी रचनाकार ने बखूबी दर्शाया है।

समाज के विभिन्न वर्गों के पात्रों का चयन यथा- नज़रसाहब, एसीपी भोसले, प्रोफेसर पंत सर, रमणिकलाल एवं युवा पच्चीस वर्षीय  मधु वर्मा आदि के सशक्त संवाद को माध्यम बना  कर रचनाकार ने अपनी बात दर्शकों के सम्मुख बड़ी ही सशक्त तरीक़े से रखी है। और  यही सशक्त संवाद इस नाटक के प्राण हैं। नाटक के सभी पात्रों ने अपनी भूमिकाएँ बड़ी ही बेबाक़ी से निभायी हैं।

मूल नाटक के लेखक,निर्देशक  तथा संपादक के पात्र का अभिनय करने वाले कलाकार श्री संजय भारद्वाज स्वयं  एक बहुआयामी रचनाकार हैं। विविध विधाओं में सृजन के संग आप एक मँजे हुए रंगकर्मी हैं जिन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।

अंग्रेज़ी अनुवाद लखनऊ विश्वविद्यालय के  इंग्लिश एंड माॅडर्न युरोपियन लेंग्वेज़ेज विभाग की एसोसियेट प्रोफेसर डाॅ मीनाक्षी पाहवा, जो स्वयं एक अनुभवी रंगकर्मी हैं, द्वारा किया गया है। बचपन से रंगमंच से जुड़ी डाॅ मीनाक्षी  न सिर्फ़ कुशल रंगकर्मी हैं, वे एक सफल लेखिका, वक्ता एवं सटीक भावानुवादों के लिए भी जानी जाती हैं। A Fulbright  Scholar to New York University, she was a Mellon Fellow at Harvard University and  Charles Wallace India Trust Fellow at Cambridge.

‘एक भिखारिन की मौत ‘   का मंचन उनके  अनुवादित शब्दों के दर्पण में हम पुनः मंचित होते देख पायेंगे – यह मेरा विश्वास है।

 

© श्रीमती वीनु जमुआर

पुणे

संपर्क-  8390540808

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ किसलय की कलम से # 42 ☆ गाँवों के विकास से बदलेगी तस्वीर ☆ डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  एक अत्यंत विचारणीय आलेख  “गाँवों के विकास से बदलेगी तस्वीर ”.)

☆ किसलय की कलम से # 42 ☆

☆ गाँवों के विकास से बदलेगी तस्वीर ☆

 कुछ वर्षों पूर्व स्वाधीनता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री जी ने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से हर विकासखंड में एक आदर्श ग्राम विकसित करने का आह्वान किया था।

यदि इस योजना पर गंभीरतापूर्वक अमल हुआ होता तो निश्चित ही देश का कायाकल्प हो जाता। आज भी गाँवों से गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण बड़े पैमाने पर शहरों की ओर पलायन जारी है। कहीं न कहीं सरकारी तंत्र की उदासीनता ग्रामीण प्रगति के आड़े आती है। ग्राम विकास की पहले भी कई योजनाएँ चलाई गईं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में खामियों और भ्रष्टाचार के चलते अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके हैं। हमारे देश में विकास का आधार गाँव ही हैं। आज भी हमारी अधिसंख्य आबादी गाँवों में ही निवास करती है। जब तक गाँवों में शिक्षा, विकास एवं सम्मानजनक जीवनशैली के प्रति जागरूकता नहीं आती। जब तक तीव्रगामी शहरों की तरह ग्रामीण प्रगति भी प्रतिस्पर्धात्मक रूप नहीं लेती। जब तक हमारी सरकारें ग्रामीण विकास की योजनाओं के लिए समुचित बजट आवंटन और योजनाओं के क्रियान्वयन की पारदर्शी व्यवस्था लागू नहीं करतीं, तब तक  ‘सुविकसित गाँव’ का सपना यथार्थतः साकार होना मुश्किल ही लगता है। हमें देखना होगा कि सरकारें आशा के अनुरूप आदर्श ग्राम योजना हेतु बजट आवंटित करती रहेंगी अथवा ये भी हवा हवाई घोषणाएँ ही सिद्ध होंगी। सरकारें विकास के क्या पैमाने बनाती हैं और योजनाओं को कैसे अमल में लाती हैं। सिर्फ नेक सोच जताने या घोषणा करने से काम नहीं चलेगा। आप, हम, सभी को यह भी स्मरण रखना होगा कि सुपरिणामों के बाद ही सही मायनों में इंसान वाहवाही का हकदार होता है।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : vijaytiwari5@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 89 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 89 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

मटक मटक कर चल रही,

कर सोलह शृंगार।

साजन से वह कर रही,

जन्म जन्म का प्यार।।

 

अलंकार से हो रहा,

कविता का शृंगार।

शोभा ऐसे बढ़ रही,

रूप रंग साकार।।

 

गोरी कैसे लिख रही,

अपने भाव विचार।

व्याकुल मन में चल रहा,

करना है अभिसार।।

 

विनती तुमसे कर रही,

करती हूँ मनुहार।

नयन हमारे पढ़ रहे,

कितना तुमसे प्यार।।

 

द्वार द्वार पर सज रहे,

मनहर बंदनवार।

राम पधारे राज्य में,

मंगलमय त्योहार।।

 

संकट की इस दौर में,

कैसे पाएँ त्राण।

जाप करो हनुमंत का,

बच जायेंगे प्राण।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 79 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 79 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

भाग सराहें आपने, आ गई वेक्सीन

कोरोना से जूझती, अब मत हों गमगीन

 

दुनिया में इज्जत बढ़ी, नाम हुआ चहुँ ओर

मोदी जी का ये जतन, मचा रहा है शोर

 

दो गज दूरी साथ रख,मुँह पर रखें मास्क

सेनिटाइज हाथ करें,नव समझकर टास्क

 

दवाई के साथ रखें,खूब कड़ाई आप

घर में रह कर कीजिये, नित भगवत का जाप

 

वेक्सीन लगवाइए, बिन डर बिन संकोच

तभी सुरक्षा आपकी, रखिये ऊँची सोच

 

अफवाहों से बच चलें, दें न उन पर ध्यान

मुश्किलों से डरें नहीं, चलिए सीना तान

 

बीमारी ना देखती, जाति धरम आधार

इसीलिए सब भाइयो, बदलो अब आचार

 

कोरोना के काल में, वेक्सीन वरदान

कोरोना भी डर रहा, सुन कर उसकी तान

 

सब मिलकर लगवाइए, कहता यह “संतोष”

फिर पछितावा होयगा, मत देना फिर दोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३७॥ ☆

 

ताम उत्थाप्य स्वजलकणिकाशीतलेनानिलेन

प्रत्याश्वस्तां समम अभिनवैर जालकैर मालतीनाम

विद्युद्गर्भः स्तिमितनयनां त्वत्सनाथे गवाक्षे

वक्तुं धीरः स्तनितवचनैर मानिनीं प्रक्रमेथाः॥२.३७॥

जगा जल कणो युक्त शीतल पवन से

कली मालती मम सुकोमल बदन जो

विद्युत शिखी धीर कर नाद कहना

प्रिया से निरखती गवाक्षस्य तुमको

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ‘नि:संग’ – सुश्री संजीवनी बोकील ☆ प्रस्तुति – सौ. राधिका भांडारकर

सुश्री संजीवनी बोकील

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ ‘नि:संग’ – सुश्री संजीवनी बोकील ☆ प्रस्तुति – सौ. राधिका भांडारकर ☆ 

स्वत:चं सामान्यत्व

फार छळू लागलं

की म्हातारीच्या पिसाकडे बघावं

स्वच्छंदपणे कसं

उडत असतं हवेत

आपल्याला कुणी गरुड

म्हणत नाही

याची त्याला खंत नसते

बळकट पंख नसल्याचा

खेद नसतो

आकाशाचा अंत गाठण्याचा

हव्यास नसतो

अन् पृथ्वीचा ठिपका

होउन जाण्याइतकी

उंची गाठायचा मोह नसतो.

आपल्याच मस्तीत भिरभिरत

हवेशी जुळवून घेत

आपल्या हलक्या अस्तित्वाला

सहजपणे स्वीकारत

ते मजेत जगून घेतं

उंचावर गेल्यावर

जमिनीची भीती नसते

अन् जमिनीवर उतरल्यावर

नसतो आकाशाचा मोह!

म्हणून

स्वत:चंं सामान्यत्व

फार सलु लागलं

की बघावं

नि:संग भिरभिरणार्‍या

म्हातारीच्या पिसाकडे….

 

सुश्री संजीवनी बोकील

(या कवितेचे रसग्रहण काव्यानंद मध्ये दिले आहे.)

प्रस्तति: सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 82 – विजय साहित्य – अस्तित्व….! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 82 – विजय साहित्य ☆ अस्तित्व….! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

शब्दांनीच शब्दांची

ओलांडली आहे मर्यादा

फेसबुक प्रसारण आणि

ऑनलाईन सन्मानपत्र,

नावलौकिक कागदासाठी

धावतात शब्द…..

अर्थाचं, आशयाचं,

आणि साहित्यिक मुल्यांचं

बोटं सोडून…..;

आणि करतात दावा

कवितेच्या चौकटीत

विराजमान झाल्याचा..

खरंच कविते,

लेखक बदलला तरी चालेल

पण तू अशी

विकली जाऊ नकोस

किंवा येऊ नकोस घाईनं ;

कवितेच्या, काव्याच्या

मुळ संकल्पनेशी

फारकत घेऊन….!

तू सौदामिनी,

होतीस,आहेस आणि

राहशीलही….!

पण तुला खेळवणारे

खुशाल चेंडू हात

एकदा तरी,

होरपळून

निघायला हवेत..;

तुझ्या बावनकशी

अस्तित्त्वासाठी…!

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ जन्मरास ☆ श्रीशैल चौगुले

श्रीशैल चौगुले

☆ कवितेचा उत्सव ☆ जन्मरास ☆ श्रीशैल चौगुले ☆ 

कृष्ण रंगवून गेला मधुवन

अन् कायेवर ओघळले घन.

गौळणीही नाचू लागल्या गोकूळी

राधा बेभान हरले तन-मन.

सप्तरंग तालावर थेंब-थेंब

कृष्णाच्या गालावर प्रेमव्रण.

वृक्ष-लता पुलकीत तरुवर

स्वर्गासमच फुलले वृंदावन.

मायेत-रंगूनी धरती भिजली

यमुनेच्या जळी  संभार संपन्न.

आत्मभान विसरुन नाचे भक्ती

मुक्त भावना अर्पून हे जीवन.

अशी श्रेष्ठ लिला भगवंतांची

भक्तीमय बासरी शाम सदन.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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