हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ दीप पर्व विशेष – चौराहे का दीया ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता

☆ कथा – कहानी ☆ दीप पर्व विशेष – चौराहे का दीया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆ 

दंगों से भरा अखबार मेरे हाथ में है पर नज़रें खबरों से कहीं दूर अतीत में खोई हुई हैं।

इधर मुंह से लार टपकती उधर दादी मां के आदेश जान खाए रहते। दीवाली के दिन सुबह से घर में लाए गये मिठाई के डिब्बे और फलों के टोकरे मानों हमें चिढ़ा रहे होते। शाम तक उनकी महक हमें तड़पा डालती। पर दादी मां हमारा उत्साह सोख डालतीं,  यह कहते हुए कि पूजा से पहले कुछ नहीं मिलेगा। चाहे रोओ, चाहे हंसो।

हम जीभ पर ताले लगाए पूजा का इंतजार करते पर पूजा खत्म होते ही दादी मां एक थाली में मिट्टी के कई  दीयों में सरसों का तेल डालकर जब हमें समझाने लगती – यह दीया मंदिर में जलाना है, यह दीया गुरुद्वारे में और एक दीया चौराहे पर,,,,,

और हम ऊब जाते। ठीक है, ठीक है कहकर जाने की जल्दबाजी मचाने लगते। हमें लौट कर आने वाले फल, मिठाइयां लुभा-ललचा रहे होते। तिस पर दादी मां की व्याख्याएं खत्म होने का नाम न लेतीं। वे किसी जिद्दी,प्रश्न सनकी अध्यापिका की तरह हमसे प्रश्न पर प्रश्न करतीं कहने लगतीं – सिर्फ दीये जलाने से क्या होगा ? समझ में भी आया कुछ ?

हम नालायक बच्चों की तरह हार मान लेते। और आग्रह करते – दादी मां। आप ही बताइए।

– ये दीये इसलिए जलाए जाते हैं ताकि मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे से एक सी रोशनी, एक सा ज्ञान हासिल कर सको। सभी धर्मों में विश्वास रखो।

– और चौराहे का दीया किसलिए, दादी मां ?

हम खीज कर पूछ लेते। उस दीये को जलाना हमें बेकार का सिरदर्द लगता। जरा सी हवा के झोंके से ही तो बुझ जाएगा। कोई ठोकर मार कर तोड़ डालेगा।

दादी मां जरा विचलित न होतीं। मुस्कुराती हुई समझाती

– मेरे प्यारे बच्चो। चौराहे का दीया सबसे ज्यादा जरूरी है। इससे भटकने वाले मुसाफिरों को मंजिल मिल सकती है। मंदिर गुरुद्वारे  को जोड़ने वाली एक ही ज्योति की पहचान भी।

तब हमे बच्चे थे और उन अर्थों को ग्रहण करने में असमर्थ। मगर आज हमें उसी चौराहे के दीये की खोजकर रहे हैं, जो हमें इस घोर अंधकार में भी रास्ता दिखा दे।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ असहमत…! – भाग-4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव

श्री अरुण श्रीवास्तव 

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उनका ऐसा ही एक पात्र है ‘असहमत’ जिसके इर्द गिर्द उनकी कथाओं का ताना बना है।  अब आप प्रत्येक बुधवार साप्ताहिक स्तम्भ – असहमत  आत्मसात कर सकेंगे। )     

☆ असहमत…! भाग – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

असहमत के पिताजी के दोस्त थे  शासन के उच्च पद पर विराजमान. जब तक कुछ बन नहीं पाये तब तक दोस्त रहे, बाद में बेवफा क्लासफेलो ही रहे. असहमत उन्हें प्यार से अंकल जी कहता था पर बहुत अरसे से उन्होंने असहमत से ” सुरक्षित दूरी ” बना ली थी. कारण ये माना जाता था कि शायद उच्च पदों के प्रशिक्षण में शिक्षा का पहला पाठ यही रहा हो या फिर  असहमत के उद्दंड स्वभाव के कारण लोग दूरी बनाने लगे हों पर ऐसा नहीं था .असली कारण असहमत का उनके आदेश को मना करने  का था और आदेश भी कैसा “आज हमारा प्यून नहीं आया तो हमारे डॉगी को शाम को बाहर घुमा लाओ ताकि वो “फ्रेश ” हो जाय.मना करने का कारण यह बिल्कुल नहीं था कि प्यून की जगह असहमत का उपयोग किया जा रहा है बल्कि असहमत के मन में कुत्तों के प्रति बैठा डर था. डर उसे सिर्फ कुत्तों से लगता था बाकियों को तो वो अलसेट देने के मौके ढूंढता रहता था.

अपेक्षा अक्सर घातक ही होती है अगर वह गलत वक्त पर गलत व्यक्तियों से की जाय और न तो न्याय संगत हो न ही तर्कसंगत. जहाँ तक साहब जी की मैडमकी बात है तो पुत्र का चयन भी राष्ट्रीय स्तर की प्रशासनिक परीक्षा में होने से उनके आत्मविश्वास, रौब और रुआब में कोई कमी नहीं आई थी. नारी जहां अपनी सोच और अपने रूखे व्यवहार का स्त्रोत बदलने में देर नहीं लगातीं वहीं पुरुष का आत्मविश्वास और ये सभी दुर्गुण उसके पदासीन होने तक ही रह पाते हैं पर हां आंच ठंडी होने में समय लगता है जो व्यक्ति के अनुसार ही अलग अलग होता है. तो साहब को सरकारी बंगले से सरकारी वाहन , सरकारी ड्राईवर, माली और प्यून के बिना खुद के घर में रहने के शॉक से गुजरना पड़ा. वो सारे रीढ़विहीन जी हुजूरे अब कट मारने लगे और मोबाइल भी इस तरह खामोश हो गया जैसे उनकी पदविहीनता को मौन श्रद्धांजलि दिये जा रहा हो. ये समय उन…

डॉक्टर, साहब जी की बीमारी समझ गये और अवसाद याने depression का पहले सामान्य इलाज ही किया. पर नतीजा शून्य था क्योंकि अवसाद की जड़ें गहरी थीं. थकहारकर एक्सपेरीमेंट के नाम पर सलाह दी कि “सर आप अपने घर के एक शानदार कमरे को ऑफिस बना लीजिए और वो सब रखिये जो आपके आलीशान चैंबर में रहा होगा. AC, heavy curtains, revolving chair, teakwood large table, two or three phones, intercoms, etc. etc. जब ये सब करना पड़ा तो किया गया और फिर सब कुछ उसी तरह सज गया सिर्फ कॉलबेल या इंटरकॉम को अटैंड करने वाले को छोड़कर. अंततः ऐसे मौके पर भूले हुए क्लासफेलो याद आये. सादर आमंत्रित किया गया. मालुम था कि असहमत को इस काम के लिये दोस्ती के नाम पर यूज़ किया जा सकता है. असहमत के पिता जी भी इंकार नहीं कर पाये, क्योंकि इस कहावत पर उनका विश्वास था कि कुछ भी हो, निवृत्त हाथी भी सवा लाख…

असहमत के ज्वाईन करते ही साहब का डमी ऑफिस शुरु हो गया. असहमत का रोल मल्टी टास्किंग था, पीर बावर्ची भिश्ती, खर सब कुछ वही था, सिर्फ आका का रोल साहब खुद निभा रहे थे.इस प्रयोग ने काफी प्रभावित किया, साहब को लगी अवसाद याने डिप्रेशन की बीमारी को और धीरे धीरे असहमत साहब का प्रिय विश्वासपात्र बनता गया.असहमत भी मिल रही importance और चाय, लंच, नाश्ते के कारण काफी अच्छा महसूस कर रहा था पर जो एक जगह रम जाये वो जोगी और असहमत नहीं और अभी तो बहुत कुछ घटना बाकी था जिसमें असहमत का हिसाब बराबर करना भी शामिल था. साहब भी बिना मलाई के अफसरी करते करते बोर भी हो गये थे और अतृप्त भी. चूंकि अपने मन की हर बात वो अब असहमत से शेयर करने लगे थे तो उन्होंने उससे दिल की बात कह ही डाली कि “वो अफसर ही क्या जो सिर्फ तनख्वाह पर पूरा ऑफिस चलाये ” और इसी बात पर ही असहमत के फ़ितरती दिमाग को रास्ता सूझ गया हिसाब बराबर करने का. तो अगले दिन इस डमी ऑफिस में कहानी के तीसरे पात्र का आगमन हुआ जो बिल्कुल हर कीमत पर अपना काम करवाने वाले ठेकेदारनुमा व्यक्तित्व का स्वामी था. साहब भी भूल गये कि ऑफिस डमी है और लेन देन का सौदा असहमत की मौजूदगी में होने लगा. आगंतुक ने अपने डमी रुके हुये बिल को पास करवाने की पेशगी रकम पांच सौ के नोटो की शक्ल में पेश की और साहब ने अपनी खिली हुई बांछो के साथ फौरन वो रकम लपक ली, थोड़ा गिना, थोड़ा अंदाज लगाया और जेब में रखकर हुक्म दिया “जाओ असहमत जरा इनकी फाईल निकाल कर ले आओ. फाईल अगर होती तो आती पर फाईल की जगह आई “एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम”. साहब हतप्रभ पर टीम चुस्त, पूरी प्रक्रिया हुई, हाथ धुलवाते ही पानी रंगीन और साहब का चेहरा रंगहीन. ये शॉक साहब को वास्तविकता के धरातल पर पटक गया और उन्होंने आयुक्त को समझाया कि सर ये सब नकली है और हमारे ऑफिस ऑफिस खेल का हिस्सा है. पर आयुक्त मानने को तैयार नहीं, कहा “पर नोट तो असली हैं, शिकायत भी असली है और शिकायतकर्ता भी असली है. आपका पुराना कस्टमर है और शायद पुराना हिसाब बराबर करने आया है. फिर उन्होंने रिश्वतखोर अफसर को अरेस्ट करने का आदेश दिया.

अरेस्ट होने की सिर्फ बात सुनकर ही साहब की सारी हेकड़ी निकल गई और अपने साथ साथ ले गई साहबी, अकड़, लालच, संवेदनहीनता, उपेक्षा करने की आदत, सब कुछ होने के बाद भी असंतुष्टि और साथ ही डिप्रेशन की बीमारी भी. सारा रौब पलायन होने के बाद व्यक्तित्व में आ गई निचले दर्जे की विनम्रता जिसे गिड़गिड़ाना भी कह सकते हैं. ये वह अवस्था होती है जब अपने अलावा उपस्थित हर व्यक्ति महत्वपूर्ण लगने लगता है. अंततः साहब को जो इलाज चाहिए था वो इस शॉक थेरैपी से मिल गया और असहमत के फितूरी दिमाग से रचे गये इस नाटक ने न केवल नाटक का पटाक्षेप किया बल्कि अपने हिसाब बराबर करने का मौका भी पाया. साहब की बीमारी के निदान और उनके हृदय परिवर्तन की खुशी में असहमत ने फिर अपने नकली बॉस को असली ऑर्डर दिया ” अंकल जी, जाइये इस पूरी टीम को और इसके नायक याने मेरे लिये, घर की बनी कड़क चाय और लजी़ज नाश्ते का इंतजाम कीजिये. कहानी यहीं खत्म हुई साहब भी अवसादहीन और प्रफुल्लित हुये और असहमत ने भी चाय नाश्ते के बाद घर की राह पकड़ी.

 

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्षय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – अक्षय…✍️ ?

मैं पहचानता हूँ

तुम्हारी पदचाप,

जानता हूँ

तुम्हारा अहंकार,

झपटने, गड़पने

का तुम्हारा स्वभाव भी,

बस याद दिला दूँ,

जितनी बार गड़पा तुमने,

नया जीवन लेकर लौटा हूँ मैं,

तुम्हें चिरंजीव होना मुबारक

पर मेरा अक्षय होना

नहीं ठुकरा सकते तुम..!

 

©  संजय भारद्वाज

12.11 बजे, 22.10.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा दीप पर्व पर रचित शुभकामना स्वरुप विशेष रचना ।।हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी।।)

☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

 

।। 1।।

हर कदम पर मिले कीर्ति

हर पग पर सम्मान मिले।

हर पल क्षण आपका हो

बरसों तक पहचान मिले।।

सदैव अमिट रहे हर दिल

में याद आपके नाम की।

यही कामना इस दीवाली

आपको यूँ यशोगान मिले।।

 

।। 2 ।।

आइये सबका खुशियों से

दामन सजाते दीवाली को।

किसी भूखे को भी खाना

खिलाते हैं इस दीवाली को।।

हँसी उन जीवन में भी लायें

जो वंचित हर सुखसाधन से।

दुआ की दौलत से झोली

भराते हैं इस दीवाली को।।

 

।। 3 ।।

इस दीवाली कोई प्रेम का

दिया नया सा जल जाये।

प्यार की धारा बहे कि

नफरत किनारे लग जाये।।

अमन चैन सुख शांति की

बन जाये यह दुनिया।

रोशन महोब्बत का दीया

हर दिल में जग जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

03 11 2021

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीवाली ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक  कविता दीवाली ! )

 

☆ कविता  ☆ दीवाली ! ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆ 

 

एक दीये ही हैं

जो

रात में जलते हैं,

वरना

जलने वाले तो

दिन – रात जलते हैं ।

*

आप पहली किस्म के हैं

आपको

सलाम करता हूँ,

 दीवाली की अपनी शाम

आपके नाम करता हूँ ।

*

मेरा क्या  ?

मुझे जब भी

रोशनी को जरूरत होती

आपको याद कर

रोशन हो जाता हूँ,

अकेले में

दीवाली मनाता हूँ ।

नोट:- मेरे वेक्सीन के दोनों डोज हो गए। अब तो मैं, भीड़ में भी आपको याद कर, सरे आम दीवाली मना सकता हूँ।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (66-70) ॥ ☆

कथन को उसके न मानता मन, कुछ इन्दुमति का लिये लगन था –

ज्यों सूर्यदर्शन की लालसा ले, कमल विकसता न शशि किरण पा ॥ 66॥

 

निशीथ गामिनी सी दीप्ति जैसी निकट से जिस नृप के बढ़ गई वह

उसी की मुख श्री भवन सी पथ के, खिली पै फीकी पड़ी क्षणिक रह ॥ 67॥

 

‘‘ मुझे चुनेगी क्या ”, पास आई को लख विकलता थी अज हृदय में

परन्तु शंका मिटाई तत्क्षण फड़क के दांयी भुजा सदय ने ॥ 68॥

 

पा सर्व गुण – रूप से युक्त अज को, बढ़ी न आगे रूकी कुमारी

कभी क्या कुसुमित रसाल तरूतज बढ़ी है आगे भी षट्पदाली ? ॥ 69॥

 

निबद्ध अज में सुप्रीति उसकी, समझ सुनंदा लगी सुनाने

और चंद्र सी इन्दुमती को अज का विसद सविस्तार लगी बताने ॥ 70॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३ नोव्हेंबर – संपादकीय – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? ३ नोव्हेंबर  –  संपादकीय  ?

माधव आचवल-

माधव आचवल हे सुप्रसिद्ध लेखक, समीक्षक चित्रकार, वास्तु शिल्पकार. त्यांचे ललित लेखन प्रामुख्याने ‘सत्यकथेतून प्रकाशित झाले. ‘किमया –ललित, पत्र- ललित, रसास्वाद – ललित . जास्वंद – समीक्षा, डार्करूम आणि इतर एकांकिका, चिता आणि इतर एकांकिका ,अमेरिकन चित्रकला – (अनुवादीत) इ. त्यांची पुस्तके प्रसिद्ध आहेत. 3 नोहेंबर 1926 हा त्यांचा जन्मदिन.

*अनंत फंदी  (१७४४- १८१९ )

 पेशवाईच्या उत्तर काळात गाजलेल्या शाहीरांमधे अनंत फंदी सर्वात जेष्ठ शहीर. त्यांचे आडनाव घोलप. अनंत फंदीबद्दल शाहीर होनाजी बाळाने लिहून ठेवले आहे,

फंदी अनंत कवनाचा सागर . समोर गाता कुणी टीकेना. पण या कावणाच्या सागरातील आज थोडीच कवणे उपलब्ध आहेत. आज त्यांचे ७ पोवाडे, ८ लावण्या व काही फटाके उपलब्ध आहेत. पदे, लावण्या , कटाव, फटाके इ. विविध प्रकारच्या रचना त्यांनी केल्या. त्यांच्या रचना रसाळ आणि प्रासादिक आहेत. उत्तर आयुष्यात त्यांनी अहिल्याबाई होळकर यांच्या सांगण्यावरून कीर्तन करायला सुरवात केली, असे म्हणतात. त्यांचा आपल्या पर्यन्त पोचलेला लोकप्रिय फटका म्हणजे

 ‘बिकट वाट वहिवाट नसावी, धोपट मार्गा सोडू नको

संसारामधे ऐस आपुला उगाच भटकत फिरू नको.’

हा उपदेशपर फटका. व्यवहारत कसे वागावे, हे अनंत फंदी  यातून सांगतात. सालसपणाने वाग, खोटे बोलू नको,अंगी नम्रता असावी, कुणाचे वर्म काढू नको,दुसर्‍याचा ठेवा बुडवू नको, गर्व करू नको. पाइजेचा विदा उचलू नको, हरिभजनाला विसरू नको इ. व्यवहारात कसे वागावे याचा उपदेश त्यांनी यातून केला आहे.

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : – १) कऱ्हाड शिक्षण मंडळ “ साहित्य-साधना दैनंदिनी. २) माहितीस्रोत — इंटरनेट 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ दीपावली शुभेच्छा ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? कवितेचा उत्सव ?

☆ दीपावली शुभेच्छा ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

? नव वर्ष सुखाचे जावो ?

                      

या दीपामधल्या वाती

अंधारा भेदून जाती

स्नेहाने जोडून नाती

प्रकाश गीते गाती.

 

तम सगळा विरून जावा

कण कण  तो उजाळावा

दुःखाचा अंश नसावा

सौख्याचा बाग फुलावा.

 

दशदिशांत दिपक उजळो

कलहाचे वादळ निवळो

मन प्रसन्नतेने बहरो

नववर्ष सुखाचे जावो.

 

©  श्री सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सण ☆ प्रा. अशोक दास

प्रा. अशोक दास

? कवितेचा उत्सव ?

सण ☆ प्रा. अशोक दास ☆ 

सारीच घरे ऊजळलेली

प्रकाशाने लखलखलेली

तरीही एका झोपडीत अंधार

तो आपण करूया दूर/1/

 

सारेच चेहरे आनंदलेले

प्रसन्नतेने  ओतप्रोत भरलेले

तरीही एखादे मुख दुर्मुखलेले

त्यावर पाहू हास्य फुललेले/2/

 

सा-यांच्याच मुखी गोड घास

सुगंधाने भारलेला श्वास निःश्वास

तरीही कुठेतरी घुसमट आहे

तिथेही गंध,गोडी वाटू हमखास/3/

 

दुःख,दैन्य असतेच कुठे कुठे

आनंदाने न्हाऊन निघताना तिथे

थोडी मदत देऊया त्या हाती

प्रसन्नतेने साजरा सण सर्वांसाठी/4/

 

© प्रा. अशोक दास

इचलकरंजी / मो 9028574666

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ स्वागताचा दीप ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ स्वागताचा दीप ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

सालभर राबूनिया

करू आशा रुजवण

पाच सणांचे मिलन

दिवाळीचा मोठा सण ||

 

अविचार जळमटे

झाडू मना स्वच्छ करू

घरा समवेत मन

साफ सुशोभित करू ||

 

नाती कशी दुरावली

याचा उहापोह करू

सारे आपुलेच सगे

स्नेहबंध घट्ट करू ||

 

विसरुनी चुका करू

एकमेकांचे स्वागत

दिवाळीच्या पर्वामध्ये

पुन्हा प्रेम पल्लवित ||

 

रांगोळी फराळ भेटी

दिवाळीचे आकर्षण

आठवणीने जपत

देऊ आनंदाचे क्षण ||

 

© सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares