हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण # 109 ☆ बहुरूपिए से मुलाकात ….  ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अत्यंत रोचक संस्मरण  ‘बहुरूपिए से मुलाकात ….’  साथ ही आप  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की  उसी बहुरुपिए से मुलाकात के अविस्मरणीय वे क्षण इस लिंक पर क्लिक कर  >> बहुरुपिए से मुलाकात   

☆ संस्मरण # 109 ☆ बहुरूपिए से मुलाकात ….  ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

विगत दिवस गांव जाना हुआ। आदिवासी इलाके में है हमारा पिछड़ा गांव। बाहर बैठे थे कि अचानक पुलिस वर्दी में आये एक व्यक्ति ने विसिल बजाकर डण्डा पटक दिया । हम डर से गए, पुलिस वाले ने छड़ी हमारे ऊपर घुमाई और जोर से विसिल बजा दी….. 

….. साब दस रुपए निकालो! सबको अंदर कर दूंगा, मंहगाई का जमाना है, बच्चादानी बंद कर दूंगा। सच्ची पुलिस और झूठी पुलिस से मतलब नहीं,हम बहुरूपिया पुलिस के बड़े अधिकारी हैं, 52 इंच का सीना लेकर घूमते हैं, चोरों से बोलते नहीं, शरीफों को छोड़ते नहीं। थाने चलोगे कि राजीनामा करोगे…. राजीनामा भी हो जाएगा, अभी अपनी सरकार है, और हमारी सरकार की खासियत है कि अपनी सरकार में खूब बहुरुपिए भरे पड़े हैं, मुखिया सबसे बड़ा बहुरूपिया माना जाता है। साब झूठ बोलते नहीं सच को समझते नहीं, राजीनामा हो जाएगा। आश्चर्य हुआ इतने मंहगाई के जमाने में पुलिस वर्दी सिर्फ दस रुपए की डिमांड कर रही है।

हमने भी चुपचाप जेब से दस रुपए निकाल कर बढ़ा दिए। 

अचानक उसकी विनम्रता पानी की तरह बह गई। हंसते हुए उसने बताया – साब बहुरुपिया प्रकाश नाथ हूं…. दमोह जिले का रहने वाला हूँ। मूलत: हम लोग नागनाथ जाति के हैं सपेरे कहलाते हैं सांप पकड़ कर उसकी पूजा करते और करवाते हैं पर सरकार ऐसा नहीं करने देती अब। हम लोग गरीबी रेखा के नीचे वाले जरूर हैं पर उसूलों वाले हैं। जीविका निर्वाह के लिए तरह-तरह के भेष धारण करना हमारा धर्म है। कभी नकली पुलिस वाला, कभी बंजारन, कभी रीछ, कभी भालू और न जाने कितने प्रकार के भेष बदलकर समाज के भेद जानने के लिए प्रयासरत रहते हैं और समाज में फैले अंधविश्वास, विसंगतियों को पकड़ कर उन्हें दूर कराने का प्रयास करते हैं। हम लोग पुलिस मित्र बनकर छुपे राज जानकर पुलिस के मार्फत समाज की बेहतरी के लिए काम करते हैं।बहुरुपिया समाज का अधिकृत पंजीकृत संगठन है जिसका हेड आफिस भोपाल में है वहां से हमें परिचय पत्र भी मिलता है। संघ की पत्रिका भी निकलती है। सियासत करने वाले बहुरुपिए नेता लोग बदमाश होते हैं पर हम लोग ईमानदार लोग हैं ,निस्वार्थ भाव से त्याग करते हुए बहुरुपिया बनकर लोगों को हंसाते और मनोरंजन करते हैं साथ ही समाज में फैली विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को जागरूक बनाते हैं। 

उसने बताया कि बड़े शहरों में यही काम बड़े व्यंग्यकार करते हैं जो समाज में फैली विसंगतियों पर कटाक्ष करने के लिए लेख लिखकर छपवाते हैं और पढ़वाते हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #53 ☆ # कब उजाला होगा ? # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# कब उजाला होगा ? #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 53 ☆

☆ # कब उजाला होगा ? # ☆ 

अमावस की रात बीत गई

घर घर में अब उजाला होगा

लाखों दीप जलें है मगर

इस झोपड़ी में कब उजाला होगा ?

 

व्यंजनों की धूम है

मिठाइयां बट रही है

मौज-मस्ती में

दिन-रात कट रही है

कहीं चूल्हा ना जला

फाका जहां किस्मत है

इन भूखें लोगों के

मुंह में कब निवाला होगा ?

 

रंग बिरंगे परिधानों से

महफिलें सज रही है

कीमती आभूषणों से

नारियां सज-धज रहीं है

दिन-रात मेहनत के बाद भी

वस्त्र जिन्हें नसीब नहीं

इन वंचितों के अंग पर

कब दुशाला होगा ?

 

जिंदगी के जुऐं में

बड़े बड़े दांव लग रहे हैं

किसी की हुई हार तो

किसी के भाग जग रहें हैं

कोई ऐश्वर्य के मदिरा में डूबा है

तो कोई जन्म से प्यासा है

इन प्यासों के होंठों पर

आखिर कब प्याला होगा ?

 

आज बाजार में बिकने को

मै भी खड़ा हूं

अपनी उसूलों की कीमत तय कर

उसपे अड़ा हूं

क्या कोई पारखी खरीदेगा मुझको ?

मेरी इस काबिलियत का

कब हवाला होगा ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 7 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (6-10) ॥ ☆

खिड़की तरफ लपकते खुली वेणी को, झरते सुमन भी लिये घर में बाला

जब तक नजर भर न देखा उन्हें, अपने बालों को उसने न तब तक सम्हाला। 6।

 

श्रंगार करने महावर लगाती कोई खींच झट पैर, उठ उझकि जाती

गीले महावर से पंजे बनाती गई छज्जे तक भूमि पर रंग लगाती ॥ 7॥

 

कोई आँज दाँये नयन में ही अज्जन बिना बाँये में पहले काजल लगाये

कज्जल श्शलाका लिये हाथ में हीं, गई छज्जे तक रूप अटपट बनाये ॥ 8॥

 

कोई झाँकती जालियों से लिये हाथ साड़ी जो ढीली हुई खुली आधी

कंकण प्रभा में यदपि दिखती नाभि, मगर लालसी वश न नीवी थी बाँधी ॥ 9॥

 

गुंथते कोई करधनी माल मणियों की, सहज हड़बड़ा करके उठने के कारण

उलझा अॅगूठे में ले सूत्र केवल, बिखरनें से मणियों का की न निवारण ॥ 10॥

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई   अभिनंदन ?

? अ  भि  नं  द  न ?

आपल्या समुहातील ज्येेष्ठ लेखिका अनुवादकार श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई याचे एक नवीन पुस्तक नुकतेच प्रकाशित झाले आहे.पुणे येथील अरिहंत प्रकाशनाने त्यांचे ढोल-ढकेल हे हिंदी कथांचा मराठीत अनुवाद केलेल्या कथांचा संग्रह प्रकाशित केला आहे. त्याबद्दल समुहातर्फे त्यांचे हार्दिक अभिनंदन ! ?

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

? ई – अभिव्यक्तीतर्फे त्यांचे अभिनंदन व पुढील वाटचालीसाठी शुभेच्छा.  ?

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ८ नोव्हेंबर – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? ८ नोव्हेंबर –  संपादकीय  ?

आज ८ नोव्हेंबर – आज संपूर्ण महाराष्ट्राच्या कोणत्या लाडक्या व्यक्तिमत्वाचा जन्मदिन असतो , हे सांगण्याची गरज खरंच आहे का ? तरी सांगते. आज श्री पु. ल. देशपांडे यांचा जन्मदिन.

(८/११/१९१९ – १२/०६/२००० ) –  ‘ पु. ल. ‘ ही आता दोन वेगळी अक्षरे राहिली नसून “ पुल “ असा एक नवा शब्दच तयार झालेला आहे, असे म्हटल्यास अतिशयोक्ती ठरणार नाही. आणि अतिशय आपुलकीने अगदी जवळच्या माणसासाठी वापरावा तसा हा शब्द मराठी रसिक सहजपणे वापरतात, हेच मराठी मनावर वेगवेगळ्या प्रकारे अक्षरशः गारुड करणाऱ्या या साहित्यिकाचे खास वैशिष्ट्य आहे. त्यांचे व्यक्तिमत्व खरोखरच एखाद्या गारुड्याच्या पोतडीसारखे होते, आणि वेळोवेळी त्यातून त्या व्यक्तित्वाचा लक्ख चमकणारा एकेक पैलू रसिकांसमोर येत राहिला, आणि रसिक भारावल्यासारखे त्याकडे बघत राहिले. 

काही काळ एक शिक्षक, आणि पुढे आजीव– एक रसिकमान्य उत्कृष्ट लेखक-नट- नकलाकार – गायक – उत्तम पेटीवादक- नाटककार-कवी-संगीत दिग्दर्शक-हजरजबाबी उत्कृष्ट वक्ता- संपन्न कलाकृती सादर करणारा निर्माता — आणि या सगळ्या कलागुणांना सातत्याने टवटवीत अशा खुमासदार- बहारदार विनोदाची सुंदर झालर लावणारा एक खंदा विनोदवीर. —-  आणि विशेष म्हणजे यापैकी कुठलीही कला इतकी समृद्ध असायची, की ती समृद्धी अगदी सामान्य रसिकांपर्यंतही आपसूकच जाऊन पोहोचायची. याचे कारण एकच होते, आणि ते म्हणजे त्यातला सहज-साधेपणा. त्यांचे प्रचंड साहित्य– मग तो एखादा लेख असेल, नाटक असेल, व्यक्तिचित्र असेल, पुस्तक असेल किंवा चित्रपट असेल — त्यात त्यांनी चितारलेल्या व्यक्तिरेखा म्हणजे सगळ्यांनाच अगदी आपल्या रोजच्या परिचयातल्या, आपल्या अवतीभवती वावरण्याऱ्या माणसांची आठवण करून देणाऱ्या – आणि काहींना आरशात त्यांचे स्वतःचेच  प्रतिबिंब वाटावे अशा. आणि पुलंची हीच तर खासियत होती. “ गुळाचा गणपती “ या सबकुछ पु. ल. म्हणून गाजलेल्या चित्रपटात त्यांच्या प्रतिभेच्या विविध पैलूंचे अफलातून दर्शन घडले होते. मराठी भाषेवर विलक्षण प्रभुत्व हा त्यांचा आणखी एक विशेष पैलू. त्यांचे हे भाषाप्रभुत्व त्यांच्या प्रत्येक सादरीकरणात आवर्जून लक्ष वेधून घेत असे. आणि तसाच लक्ष वेधून घेणारा होता तो त्यांचा हजरजबाबीपणा. एकपात्री नाटक, अनेकपात्री नाटक, चित्रपट, नभोवाणी, दूरचित्रवाणी, अशा अनेक क्षेत्रांमध्ये त्यांनी कायम लक्षात राहील असेच लखलखते काम केले. दूरदर्शनच्या पहिल्या-वहिल्या प्रसारणासाठी पंडित नेहेरुंची मुलाखत घेणारे पु.ल., हे भारतीय दूरदर्शनचे पहिले मुलाखतकार ठरलेले आहेत. 

त्यांच्याबद्दल विशेषत्वाने सांगायला हवी अशी गोष्ट म्हणजे, साहित्यक्षेत्राशी संबंधित संशोधकांना आधारभूत होतील असे असंख्य संदर्भ, कलांचा इतिहास, कितीतरी ध्वनिफिती, लेख, मुलाखती, असे बरेच साहित्य त्यांनी जमा करून ठेवलेले आहे. अथक प्रयत्न करून, मराठी नाटकाचा अगदी आरंभापासूनचा इतिहास त्यांनी नोंदवून ठेवलेला आहे. लेखसंग्रह, अनुवादित कादंबऱ्या, व्यक्तिचित्रे, काही चरित्रे, उत्तम प्रवासवर्णने, एकांकिका-संग्रह, नाटके, लोकनाट्ये, विनोदी कथा, चित्रपटकथा-पटकथा, आकाशवाणीसाठी श्रुतिका, अशा साहित्यक्षेत्रातल्या त्यांच्या चौफेर कामगिरीबद्दल लिहावे तेवढे कमीच आहे. त्यांची प्रत्येक साहित्यकृती इतकी लोकप्रिय झालेली आहे की त्यांची नावे सांगण्याची गरजच नाही. त्यांची भाषणेही नेहेमी “ गाजलेली “ हे विशेषण लावूनच यायची. विशेष म्हणजे “ पुल “ या व्यक्तिविशेषावरही अनेकांनी स्वतंत्रपणे पुस्तके लिहिलेली आहेत—उदा. विस्मरणापलीकडील पु.ल., पु.ल.: एक साठवण, पु.ल. नावाचे गरुड, ‘ जीवन त्यांना कळले हो ‘ हे  पु.ल. यांच्याबद्दल विविध साहित्यिकांनी लिहिलेल्या लेखांचे संकलन असणारे पुस्तक, पुरुषोत्तमाय नमः, आणि अशी आणखी काही . ‘ भाई ‘या टोपणनावाव्यतिरिक्त  “ धोंडो भिकाजी कडमडे जोशी “, “ पुरुषराज अळूरपांडे “ अशीही त्यांची काही मजेदार टोपणनावे होती. पद्मश्री, पद्मभूषण, महाराष्ट्रभूषण, असे गौरवपर अनेक अनेक पुरस्कार त्यांना मिळाले होते. 

“ इदं न मम् “ या वृत्तीने त्यांनी मुक्तहस्ते लक्षणीय दाने दिलेली आहेत. विनोदाच्या अंगरख्याआड एका  निश्चित तत्त्वज्ञानाने भरलेले आणि भारलेले मन जपत, लॊकांना काही काळ स्वतःच्या व्यथा-वेदना विसरून निखळ आनंदाचा अनुभव भरभरून देणाऱ्या पुलंना आजच्या त्यांच्या जन्मदिनी अतिशय मनःपूर्वक आदरांजली.  

☆☆☆☆☆

कथा- कादंबरी- वगनाट्य अशा वेगवेगळ्या साहित्यप्रांतात स्वतःचा वेगळा ठसा उमटवून गेलेले सिद्धहस्त साहित्यिक श्री. शंकर पाटील यांचाही आज जन्मदिन. ( ८/११/१९२६ –१८/१०/१९९४ ) 

रयत शिक्षण संस्थेत शिक्षक म्हणून काही काळ काम केल्यानंतर श्री. पाटील यांची आकाशवाणी- पुणे केंद्रात नियुक्ती झाली. नंतर एशिया फाऊंडेशनची शिष्यवृत्ती मिळवून त्यांनी ग्रामीण जीवनाचा विशेष अभ्यास केला, आणि त्यावर आधारित ‘ टारफुला ‘ ही कादंबरी लिहिली, आणि तिथून त्यांचा लेखनप्रवास जोमाने सुरु झाला. त्यांनी अनेक उत्तम कथा लिहिल्या. “ वळीव “ या पहिल्या कथासंग्रहानंतर त्यांचे कितीतरी कथासंग्रह प्रसिद्ध झाले, आणि वळीव, भेटीगाठी, आभाळ, धिंड, ऊन, या संग्रहांना त्या त्या वर्षातील उत्तम कथासंग्रह म्हणून महाराष्ट्र शासनाची पारितोषिके मिळाली. त्यांच्या कथांचे तेव्हा इतर भाषांमध्ये अनुवादही झाले होते, ही खूपच महत्वाची गोष्ट. 

गल्ली ते दिल्ली, लवंगी मिरची कोल्हापूरची, कथा अकलेच्या कांद्याची, ही त्यांची लोकप्रिय वगनाट्ये. चित्रपट क्षेत्रात पटकथा आणि संवादलेखक म्हणूनही त्यांची कारकीर्द खूपच गाजली. युगे युगे मी वाट पहिली, गणगौळण, चोरीचा मामला, इत्यादी चित्रपटांच्या उत्कृष्ट पटकथा-संवाद्लेखनासाठी त्यांना शासकीय पुरस्कार दिले गेले होते. पिंजरा, एक गाव बारा भानगडी, केला इशारा जाता जाता, अशा अनेक गाजलेल्या चित्रपटांच्या पटकथा आणि संवाद श्री. पाटील यांचे होते. त्यांनी रेखाटलेली माणसे ग्रामीण असोत की नागरी, त्यांच्या व्यक्तिमत्वाचे आणि मनाचेही विविध पदर त्यांच्या कथांमधून त्यांनी अलगदपणे आणि सहज उलगडून दाखवलेले प्रकर्षाने जाणवते, आणि ‘ त्यांची भाषा म्हणजे कथेमधून व्यक्त होणाऱ्या अनुभवांची भाषा असते ‘ असेच म्हणावेसे वाटते. त्यांचा प्रयोगशील स्वभाव कथालेखनातही दिसून यायचा, आणि त्यामुळेच त्यांच्या प्रत्येक कथेत सतत एक चैतन्य जाणवायचे.   

साहित्यक्षेत्रातील मुशाफिरीच्या जोडीनेच, इ.८ वी ते १० वीसाठी ‘ साहित्यसरिता ‘ या वाचनमालेचे संपादन, म.रा. पाठ्यपुस्तक निर्मिती आणि अभ्यासक्रम संशोधन मंडळात मराठी भाषेसाठी विशेष अधिकारी म्हणून, आणि नंतर अन्य सहा भाषांमधील पाठ्यपुस्तकांसाठी ‘ विद्यासचिव ‘ म्हणून केलेले  श्री. पाटील यांचे कामही आवर्जून सांगायला हवेच.

मराठी साहित्यात ग्रामीण बाजाच्या साहित्याची अनमोल भर घालणारे श्री. शंकर पाटील यांना विनम्र आदरांजली ?

☆☆☆☆☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : – १) कऱ्हाड शिक्षण मंडळ “ साहित्य-साधना दैनंदिनी. २) माहितीस्रोत — इंटरनेट 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ बहिणीची माया…… ☆ श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

☆ कवितेचा उत्सव ☆ बहिणीची माया……. ☆ श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे ☆

आली दिवाळी भाऊराया

वाटते पडावे तुझ्या पाया

विदेशात तू ,विलासात तू

तरी चिंता करते वेडी माया

 

पाठविली तू भेटवस्तू  जी

पडून आहे कोपऱ्यात ती

नाही मजला ओढ तयाची

आस मनी तुज बघण्याची

 

बसवून पाटावरी तुजला

ओवाळावे वाटे रे मजला

नारळ  फळांनी भरून ओंजळ

भाळी तुझ्या लावावे चंदन

 

आप्त स्वजन मिळून सारे

करावी वाटे मज दंगल

पण मोठे होऊन बसले सारे

मोद खरा विसरलो ना रे

 

आठविते  रे ती दिवाळी

बालपणीची आनंदाची

नव्हता पैसा नी फटाके

मौज तरीही रे खूप वाटे

 

झाले सगळे सधन आता

निवडल्या स्वार्थाच्या वाटा

 सुखाचा तू रे संसार थाटला

पण जिव्हाळा बहिणीचा

 

नाही रे आटला…..,नाही रे आटला ……

 

© श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

चंद्रपूर,  मो. 9822363911

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 55 ☆ सोहळा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री

महंत कवी राज शास्त्री

?  साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 55 ? 

☆ सोहळा… ☆

सोहळा…
चांगल्या कर्माचा

सोहळा…
सगुण गुणांचा,सद् परंपरेचा.

सोहळा…
थोर मोठ्यांच्या विचारांचा,
जाणकारांचा विशिष्ठ विधिलेखाचा.

सोहळा…
अंतर्भूत त्या कलेचा,
योग्य सुयोग्य परिघाचा,
मर्म बंधनांचा.

सोहळा…
जीवन जन्माचा
अमृत वेळेचा,
संघर्षाचा त्यागाचा
बलिदानाचा सुप्त संगमांचा
परोपकरांचा.

सोहळा…

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ दिवाळीची सांगता… ☆ सौ राधिका भांडारकर

सौ राधिका भांडारकर

?  विविधा ?

☆ दिवाळीची सांगता… ☆ सौ राधिका भांडारकर  

चार दिवसांची दिवाळी.धामधूमीत आली आणि गेलीही.

खप्पून ,पूर्वतयारी करून केलेले फराळाचे भरले डबे तळाशी गेले.रांगोळीतले रंग भुरकटले .तेलवातीत भिजलेल्या पणत्या गोळा करून ठेवल्या. काही दिवसांनी आकाश कंदीलही उतरवले जातील.ईलेक्ट्रीकच्या माळा गुंडाळून पुढच्या दिवाळीपर्यंत नीटनेटक्या कपाटात ठेवल्या गेल्या.

अंगणातला फटाक्यांचा ,धूम्मस वास असलेला कचराही गोळा करुन झाला..

गॅलरीतल्या एका टाईलवर सारवलेला गेरु मात्र होता.

कसा रिकामा ,रंगहीन दिसत होता.सकाळी झाडपूस करणारी बाई मला विचारत होती,”अव ताई पुसु का आता हे तांबड..?लई वंगाळ दिसतय्…”

मी म्हटलं,”पुस बाई..झाली आता दिवाळी….”

करोना,सुरक्षित अंतर,भयभीत मने या सगळ्या पार्श्वभूमीवरही प्रत्येकाने आपापली दिवाळी साजरी केलीच.अंधारावर मात करणारा प्रकाशाचाच सण …

धाग्यांच्या गुंतागुंतीत एखादा कलाबुतीचा तार कसा चमकून जातो ना …तशीच या दिवाळीनं चमक आणली…

चार दिवसांचे चार सोहळे..गायीला घास भरवला,धनाची पूजा केली,लक्ष्मीलाही पूजलं,रूपकात्मक नरकासुराचाही वध केला,ईडा पीडा टळो,बळीचं राज येवो,असा गजर केला,सहजीवनाची आनंद औक्षणे केली, आनलाईन भाऊबीजही साजरी केली..तेल ऊटणे सुगंधी साबणांनी स्नानं ऊरकली… रांगोळ्यांनी दार सजले.

फुलांच्या तोरणांनी चौकट नटली..कोपरा न् कोपरा प्रकाशानं ऊजळवला…झुमवर सगळं गणगोत गोळा झालं..व्हर्चुअल फराळ .व्हर्चुअल फटाके…शुभेच्छा ,आशिर्वाद. सगळं सगळं आॅनलाईन…

कसं असतं ना ,मनुष्यप्रवृत्ती मूळातच आनंद साजरा करणारी असते.भले आनंदाची माध्यमे बदलोत पण हेतु नाही बदलत…दिवाळी हा तर आनंदाचा, प्रकाशाचा,
स्नेहबंधनाचा ,स्नेहवर्धनाचा सण!!

शिवाय या सणांत निसर्ग,देवदेवता ,पशुपक्षी झाडंपानं सार्‍यांचं संवर्धन असतं…आपल्या संस्कृतीत केरसुणीलाही लक्ष्मी मानून तिचीही पूजा केली जाते.

यामागचा संदर्भ खूप अर्थपूर्ण आहे…चराचरात लहान थोर असं काही नसतं…मनातली विषमता दूर करुन सार्‍यांना सामावून घ्यायचं असतं… एका वातीनं दुसरी वात पेटते म्हणूनच तेलाचा दिवा पूजनीय…

मनातल्याच आसुरांचा संहार करायचा…नको लोभ,नको स्वार्थ..नको हिंसा नको असत्य…नको द्वेष नको मत्सर..असुया…वृद्धी प्रेमाची ,स्नेहाची..परोपकाराची व्हावी..
दिवाळी म्हणून साजरी करायची…

दिवाळी आली,संपली पण जाताना याच जाणीवा देऊन पुन्हा येण्यासाठीच परतली…

कवीवर्य ना.धो.महानोर परवा म्हणाले,

“मोडलेल्या माणसांचे..

दु:ख ओले झेलताना..

त्या अनाथांच्या ऊशाला..

दीप लावू झोपतांना..।।

दिवाळीची सांगता करताना याच ओळी सोबत रहाव्यात…

शूभ दीपावली!!

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ भाजी मंडई – क्रमश: भाग २ (भावानुवाद) – डॉ हंसा दीप ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

?जीवनरंग ?

☆ भाजी मंडई – क्रमश: भाग (भावानुवाद) – डॉ हंसा दीप ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

(मागील भागात आपण पाहिले, – दोन रमा होत्या. दोघी शर्मा होत्या. दोघींना एकच सन्मान दिला जाणार होता. त्यामुळे कुणीही मंचावर यावं, काही फरक पडणार नव्हता. आता इथून पुढे – )

समारंभ सुरू झाला. स्वागताचे भाषण झाल्यानंतर मुख्य अतिथि आणि अध्यक्षांचा परिचय,  स्वागत झाले. अशांत जी नावे अनाऊन्स करत होते. त्यांचे  चेले-चपेटे फोटो काढत होते. या दिवसात कुठल्याही प्रकारच्या कार्यक्रमात पन्नास लोक येतात आणि कमीत कमी पंचेचाळीस कॅमेरे ऑन असतात. सगळे फोटो शूट करत असतात. बघत कोणीच नाही. सगळे दाखवतच असतात. म्हणजे त्यांनी कॅमेर्‍यात जे कैद केलं, ते दाखवत सुटतात. इथे तर या क्षणांचं नातं आयुष्यभराशी जोडलं जाणार होतं. विदेशी भूमीवर सन्मान मिळण्याची संधी काही वारंवार येत नाही. प्रत्येक कॅमेरावाल्याला विनंती करण्यात येत होती की फोटो घेऊन जरूर पाठवा. अनेक फोटोंमधून सगळ्यात चांगला फोटो निवडून आपल्या संग्रहासाठी घेतला जाणार होता.

सन्मान विकले जातात. सन्मान खरीदले जातात. सन्मान परतही केले जातात. सन्मान परत करणार्‍यांचं नाव सगळ्यात जास्त होतं. मिळण्याचा प्रचार तर वेगळाच होतो. आपल्या योग्यतेचा गर्व होतो आणि अशी ठसकही की आम्हाला तुमच्या सन्मानाचं काही पडलेलं नाहीये. मिळाला तर होताच. परत केला. सन्मानाचं रक्षण करण्यासाठी घेतला होता. आता आत्मसन्मानाचं रक्षण करण्यासाठी परत केला. महानतेचा भाव, रक्षण करण्याचा भाव दोन्ही बाजूत होता. मोहिनीने उचललेलं हे पाऊल परिणामकारक होतं. जो कार्यक्रमात येईल, तो सन्मानित होईल. साहित्य गौरव, साहित्य शिल्पी,  साहित्य सृजक, साहित्य रत्न…. सगळ्यात खास  सर्वोच्च सन्मान- भारत रत्नप्रमाणे “प्रवासी भारत रत्न” हा होता.  

सन्मान करण्यासाठी देणार्‍या या पदव्यांसाठी, आयोजकांना खूप परीश्रम करावे लागले होते. जो साहित्याकार कार्यक्रम स्पॉन्सर करेल, त्याचं नाव लिस्टमध्ये पहिलं होतं. पण चांगल्या साहित्यिकांचा, त्यांना सन्मानित होण्यासाठी कुठलाही कार्यक्रम स्पॉन्सर करण्याची गरज वाटत नाही, असा पोकळ, कुचकामी विचार अडथळे आणत होता. बॅक स्टेजवर काम करणारे, मंचाच्या सक्रियतेवर टिपणी करत होते, ‘हा सगळा मूर्खपणा आहे. सन्मानासाठी साहित्याची काय गरज आहे?’

‘मित्रा, तू ईमानदारीची कदर करायला कधी शिकणार?’

’कसली ईमानदारी, ‘र ला र’ आणि ‘त ला त’ जोडला की त्याला तुम्ही कविता म्हणणार. एखादी घटना लिहिली की त्याला तुम्ही कथा म्हणणार. अशा दहा घटना एकत्र केल्या  की कादंबरी होईल. मी अशी रोज एक कादंबरी लिहीन.’

 “लेखन मनातल्या मनात नको. कागदावर दिसायला हवं. हे सारे हिंदीचे भक्तगण, हिंदीची सेवा करताहेत. सन्मानासाठी तर हिंदी सेवा. एरवी घरातही मुलांबरोबर बोलणं इंग्रजीतूनच होतं!”

“ठीक आहे. आपल्याला काय? आपला आपल्या कामाशी संबंध. सध्या आपण आपल्या सन्मानाच्या छापखान्याकडे लक्ष देऊ या.“ 

एकाएकी मोठी समस्या निर्माण झाली. जे आले नव्हते, त्यांचीही नावे छापली गेली. बहुतेक चुकीची यादी हातात पडली होती. मंचावरून नाव पुकारलं जात होतं पण तिथे कोणीच नव्हतं. जे होते, ते आपलं नाव येण्याची वाट बघत होते. त्यांचा धीर सुटत चालला होता. समोर बसलेल्यांमध्ये गडबड सुरू झाली.

‘केवढी अव्यवस्था आहे इथे!’

‘बघुयात तरी पडद्याच्या मागे काय गोंधळ चाललाय ते!’ भारतातून आलेल्या उन्मुक्तजींना रहावले नाही. ते घाईघाईने पडद्याच्या मागे काय चाललय, ते बघण्यासाठी गेले.

क्रमश:…….

मूळ कथा – भिंडी बाजार    मूळ लेखिका – डॉ  हंसा दीप

अनुवाद –  श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ गाणं नेमकं कसं सुचतं?….गुरू ठाकूर ☆ सुश्री अरुणा मुल्हेरकर

सुश्री अरुणा मुल्हेरकर

☆ मनमंजुषेतून ☆ गाणं नेमकं कसं सुचतं?….गुरू ठाकूर ☆ सुश्री अरुणा मुल्हेरकर☆ 

2019 ची कोजागरी पौर्णिमा मला आजही आठवते.तारीख होती 13 October 2019 कोजागिरी निमित्त मी आणि राहुल रानडे “मैफिल शब्द सुरांची ” हा कार्यक्रम दादरच्या स्वातंत्र्यवीर सावरकर सभागृहात  करत होतो. गाणं सुचण्याची प्रक्रिया आणि त्याला चाल लावण्याची प्रक्रिया यावर चर्चा झाल्यानंतर राहुल रसिकप्रेक्षकांना  म्हणाला , ” आपण आता गाणं नेमकं कसं सुचतं याचं प्रात्यक्षिकच पाहू, म्हणजे तुम्ही एक विषय आणि शब्द गुरूला द्यायचे आणि तो इथल्या इथे तुम्हाला गाणं लिहून दाखवेल” . रसिक अर्थातच उत्साही. त्यांनी विषय निवडला रोमॅण्टिक साँग..  दिलेल्या शब्दात  मुक्त छंदात कविता लिहिणे सोपे पण गाणे ते देखीलछंद आणि वृत्त सांभाळून  कारण पुढे राहुल त्याला चाल ही लावतो त्या मुळे  धुवपद म्हणजे मुखडा आणि शिवाय एक कडवे असं गाणं बसवणं म्हणजे सत्वपरीक्षा . तरीदेखील रोमॅंटिक सॉंग आहे म्हटल्यावर होईल असा एक विचार डोक्यात आला  तेवढ्यात प्रेक्षकातून कोणीतरी म्हणालं की आज कोजागिरी आहे त्यामुळे आम्ही तुम्हाला जे शब्द देऊ त्यात कोजागिरीच्या रात्रीचे रोमांटिक सॉंग लिहा. इथे माझ्या पोटात गोळा आला. कारण या सगळ्या करता वेळ जास्तीत जास्त दहा मिनिटांची असते.

यावर मी काही बोलण्या आधीच राहुल म्हणाला , “हो हरकत नाही सांगा शब्द.” आणि मग रसिकांकडून शब्द येऊ लागले. आणि माझ्या लक्षात आले की रसिक हे खरेच मराठी रसिक आहेत. त्यांनी दिलेले शब्द आशय विषयाला धरुन आणि गेय होते. ते असे होते..

मिठी ,चांदणे, स्पर्श, हुरहूर, कोजागिरी,सूर,

 डोळे, मधुरात्र, सागराची गाज, ओढ,रात्र,

मी शब्द कागदावर उतरवता उतरवता डोक्यात त्यांची जुळवाजुळव करत होतो.. इतक्यात कोणीतरी म्हणाला फितूर.. आणि मला नाहीच सापडणार असं वाटता वाटता सेलोटेपचं टोक सापडावं तसं गाणं सापडलं..  अतिशय अवघड वाटणारा पेपर त्यादिवशी पाच मिनिटातच सोडवून झाला..हेच ते गाणं——  

                              फितुर डोळे गुंतता ,

                                                मधुरात्र झाली बावरी 

                              ये मिठीतच होऊ दे 

                                                साजरी कोजागिरी —-

                              कोवळी हुरहूर आहे 

                                                 स्पर्शवेडा सूर आहे 

                              या रुपेरीशा घडीला 

                                                 प्रीतीचे काहूर आहे —-

                              वाजू दे प्राणात 

                                                  आता मिलनाची पावरी 

                              ये मिठीतच होऊ दे 

                                                   साजरी कोजागिरी —–

— गुरू ठाकूर

संग्राहक :- सुश्री अरुणा मुल्हेरकर 

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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