श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# कब उजाला होगा ? #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 53 ☆

☆ # कब उजाला होगा ? # ☆ 

अमावस की रात बीत गई

घर घर में अब उजाला होगा

लाखों दीप जलें है मगर

इस झोपड़ी में कब उजाला होगा ?

 

व्यंजनों की धूम है

मिठाइयां बट रही है

मौज-मस्ती में

दिन-रात कट रही है

कहीं चूल्हा ना जला

फाका जहां किस्मत है

इन भूखें लोगों के

मुंह में कब निवाला होगा ?

 

रंग बिरंगे परिधानों से

महफिलें सज रही है

कीमती आभूषणों से

नारियां सज-धज रहीं है

दिन-रात मेहनत के बाद भी

वस्त्र जिन्हें नसीब नहीं

इन वंचितों के अंग पर

कब दुशाला होगा ?

 

जिंदगी के जुऐं में

बड़े बड़े दांव लग रहे हैं

किसी की हुई हार तो

किसी के भाग जग रहें हैं

कोई ऐश्वर्य के मदिरा में डूबा है

तो कोई जन्म से प्यासा है

इन प्यासों के होंठों पर

आखिर कब प्याला होगा ?

 

आज बाजार में बिकने को

मै भी खड़ा हूं

अपनी उसूलों की कीमत तय कर

उसपे अड़ा हूं

क्या कोई पारखी खरीदेगा मुझको ?

मेरी इस काबिलियत का

कब हवाला होगा ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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