हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 26 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 26 ??

पुस्तक मेला- वाचन संस्कृति के प्रचार में  राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की बड़ी भूमिका है। पाठकों तक स्तरीय पुस्तकें पहुँचाने के लिए न्यास, देश के विभिन्न शहरों में पुस्तक मेला का आयोजन करता है। इन मेलों के माध्यम से लेखक, प्रकाशक और पाठक के बीच एक सेतु बनाता है।

हरेला मेला- उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में हरेला मेला वर्ष में  तीन बार क्रमश: चैत्र, श्रावण एवं अश्विन में लगता है। इनमें श्रावण माह में ‘भीमताल’ नामक स्थान पर लगने वाले  मेले का विशेष महत्व है। इस मेला में सहभागियों द्वारा  पौधारोपण भी किया जाता है। पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन में सक्रिय जनसहभागिता का ऐसा उदाहरण शायद ही विश्व के किसी मेले में देखने को मिलता हो।

कृषि मेला- भारत कृषि प्रधान देश है। विशेषकर ग्रामीण अंचलों में कृषि मेला का विशेष महत्व है। इन मेलों का आयोजन प्राय: सरकार द्वारा किया जाता है। किसान को स्थानीय मिट्टी की वैज्ञानिक जानकारी देना, इस तरह की मिट्टी में किस तरह की फसल अधिक हो सकती है, फसल के लिए कौनसे बाजार उपलब्ध हैं, इन सब की जानकारी सामान्यतः इनमें दी जाती है।  किसानों को उनके खेत के लिए मृदाकार्ड या सॉइलकार्ड देना इन मेलों का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है।

पोषण मेला- सरकारी मेला आयोजन के अंतर्गत गाँवों, कस्बों या छोटे शहरों में  समुचित पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागृति के लिए लघु मेलों का आयोजन किया जाता है। राष्ट्रीय पोषण मिशन के अंतर्गत गर्भवती, धात्री, शिशु व किशोरियों में पोषण के महत्व के प्रति जागृति के लिए पोषण मेला लगाया जाता है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 127 ☆ “घायल चिड़िया” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है बैंकर्स के जीवन पर आधारित एक अतिसुन्दर कविता  “घायल चिड़िया”।)  

☆ कविता # 127 ☆ “घायल चिड़िया” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

यूक्रेन-रूस की जंग में,

रूसी बम से घायल,

खून से लथपथ, 

बेबस सी चिड़िया , 

सुबह से मुंडेर पर, 

टप टप खून बहाती, 

बैठी सोच रही है, 

घर के मालिक काश! 

तू भी ऐके 47 रखता, 

तो इतनी देर तक, 

ये तेरी टूटी मुंडेर पर, 

 मुझे बैठना न पड़ता, 

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 71 ☆ # बेबस पिता हूँ # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बेबस पिता हूँ #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 71 ☆

☆ # बेबस पिता हूँ # ☆ 

यह कैसा समय आ गया?

जो रिश्तों को खा गया

संबंध गौण हो गये

हम मौन हो गये

वो कहते रहे

हम सुनते रहे

जीना अभिशाप हो गया

बोलना तो पाप हो गया

किससे करें फरियाद

क्यों मैं होठों को सीता हूँ 

मैं खामोश हूँ

क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।

 

बच्चे कहते हैं

आपने अलग क्या किया

जो सब करते हैं

वो ही तो आप ने किया

मैंने कहा-

पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया

वो बोले- वो आपका फ़र्ज़ था

मैंने कहा-

अच्छी परवरिश दी

वो बोले-

बाप बने हो तो

आप पे हमारा यह कर्ज़ था

मैंने कहा-

तुम्हारी शादी ब्याह किया

वो बोले-

आप को खेलने को

नाती पोते चाहिए थे

मैंने कहा-

छोटा सा उपवन सजाया

वो बोले-

ताकि बुढ़ापे को सुरक्षित कर सको

आपने सब कुछ अपने लिए किया

बस हर बार हमारा इस्तेमाल किया

मै कैसे कहूँ कि

मैं कैसे जीता हूँ

क्योंकि मैं एक बेबस पिता हूँ।

 

अब तो ताने, उलाहने

हर रोज सुनता हूँ

बची हुई जिंदगी के

हार मे उसे बुनता हूँ

अब जीवन के

इस पड़ाव पर कहाँ जाऊँगा 

परिवार को छोड़

खुशियाँ कहाँ से लाऊँगा  

बस जीना है,

इसलिए जीता हूँ 

हाँ ! भाई

मैं एक बेबस पिता हूँ  /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (61 – 65) ॥ ☆

सर्गः-13

सरयू जिसके तट गड़े यूपस्तंभ अनेक।

अयोध्या में इक्ष्वाकु नृप हुये एक से एक।।61अ।।

 

अनके पुण्य-प्रताप से होकर अधिक पवित्र।

धारण करती जल मधुर अमृत सदृश विचित्र।।61ब।।

 

सिकता मय तट मुझे तो दिखता गोदी रूप।

जल माता के दूध सा कोसल हित अनुरूप।।62।।

 

बरसों बाद प्रवास से लौटे मुझको आज।

माँ कौशल्या सा तरल स्नेहित देती हाथ।।63।।

 

उड़ती दिखती शाम सी तामवर्ण की धूल।

इससे लगता मिलन को आये भरत अनुकूल।।64।।

 

पितु-आज्ञा-पालक भरत देंगे वह व्यवहार।

जैसा लक्ष्मण ने मैं जब लौटा राक्षस मार।।65अ।।

 

तुम्हें सुरक्षित था मुझे लौटाया साभार।

राज लक्ष्मी भी सौंपेंगे भरत भी उसी प्रकार।।65ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ७ मार्च – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆  ७ मार्च -संपादकीय -सौ. गौरी गाडेकर -ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

प्रभाकर ताम्हणे

प्रा. प्रभाकर ताम्हणे हे प्रसिद्ध लेखक होते.’पुनर्मीलन’, ‘रात्र कधी संपू नये’, ‘जीवनचक्र’ आदी कादंबऱ्या त्यांनी लिहिल्या असल्या, तरी ते गाजले विनोदी कथाकार  म्हणून. ‘सुपरस्टार ‘ हे त्यांचे एक पुस्तक.

त्यांनी अनेक हिंदी, मराठी चित्रपटांची कथा, पटकथा, संवाद लिहिले.त्यापैकी काही चित्रपट :

मराठी :आम्ही दोघं राजा -राणी’,’छक्के-पंजे’, ‘दीड शहाणे’,’एक धागा सुखाचा ‘ इत्यादी.

हिंदी : ‘बीवी ओ बीवी’, ‘लव्ह मॅरेज’ इत्यादी.

7 मार्च 2000 रोजी त्यांचे निधन झाले.

त्यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना नम्र अभिवादन. ??

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : शिक्षण मंडळ, कऱ्हाड, शताब्दी दैनंदिनी

इंटरनेट: मराठीसृष्टी, सिनेस्तान

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हायकू… ☆ श्री शरद दिवेकर

श्री शरद दिवेकर

संक्षिप्त परिचय..

नाव – शरद दिवेकर

वय – ६० वर्षे

महाराष्ट्र शासनाच्या विक्रीकर विभागातून सेवानिवृत्तीनंतर महाराष्ट्र शासनाच्याच महाराष्ट्र राज्य कौशल्य विकास सोसायटीत कार्यरत आहे.

संगीत श्रवण, साहित्य वाचन व साहित्य लेखनाची आवड आहे. कथा, कविता, ललित, हायकू, स्फुट असे साहित्य प्रकार हाताळलेले असून भाषांतर करायची देखील आवड आहे.

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हायकू… ☆ श्री शरद दिवेकर ☆

मध्यंतरी साहित्यातील ‘हायकू’ हा प्रकार समजला. त्याची रचना पुढीलप्रमाणे असते. तीन ओळीत आशय मांडणी;

अक्षरांची संख्या – पाच, सात आणि पाच व यमक जुळायला हवं.

 

[ ०१ ]

सुख तुडुंब

ते चौकोनी कुटुंब

खुशनशीब

 

[ ०२ ]

तू अन्नपूर्णा

ती चव काय वर्णा

तू परिपूर्णा

 

[ ०३ ]

हुंदका आला

जीव गलबलला

पाठवणीला

 

[ ०४ ]

साहित्य, कला

जो तो लिहिता झाला

वाचता झाला

 

[ ०५ ]

आता सरावा

हा वैशाख वणवा

वरूण यावा

 

[ ०६ ]

सोनसळी ती

तिची कोमल कांती

मोहवते ती

 

©  श्री शरद दिवेकर

कल्याण

मो 70457 30570, ईमेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 72 ☆ जगू पुन्हा बालपण… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 72 ? 

☆ जगू पुन्हा बालपण… ☆

जगू पुन्हा बालपण, होऊ लहान लहान

मौज मस्ती करतांना, करू अ,आ,इ मनन.!!

जगू पुन्हा बालपण, आई सोबती असेल

माया तिची अनमोल, सर कशात नसेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, मना उधाण येईल

रात्री तारे मोजतांना, भान-सुद्धा हरपेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, शाळा भरेल एकदा

छडी गुरुजी मारता, रड येईल खूपदा..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, कैरी आंब्याची पाडूया

बोरे आंबट आंबट, चिंचा लीलया तोडूया..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, नौका कागदाची बरी

सोडू पाण्यात सहज, अंगी येई तरतरी..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, नसे कुणाचे बंधन

कधी अनवाणी पाय, देव करेल रक्षण..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, माय पदर धरेल

ऊन लागणार नाही, छत्र प्रेमाचे असेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण, कवी राज उक्त झाला

नाही होणार हे सर्व, भाव फक्त जागवीला..!!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग 7 – कृतज्ञता ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

[भारतीय संस्कृतीतमध्ये आपल्या जीवनात असणार्‍या गुरूंना अर्थात मार्गदर्शन करणार्‍या व्यक्तिंना अत्यंत महत्वाचे स्थान आहे, हे महत्व आपण शतकानुशतके वेगवेगळ्या पौराणिक, वेदकालीन, ऐतिहासिक काळातील अनेक उदाहरणावरून पाहिले आहे. आध्यात्मिक गुरूंची परंपरा आपल्याकडे आजही टिकून आहे. म्हणून आपली संस्कृतीही टिकून आहे.

एकोणीसाव्या शतकात भारताला नवा मार्ग दाखविणारे आणि भारताला आंतरराष्ट्रीय विचारप्रवाहात आणणारे, भारताबरोबरच सार्‍या विश्वाचे सुद्धा गुरू झालेले स्वामी विवेकानंद.

आपल्या वयाच्या जेमतेम चाळीस वर्षांच्या आयुष्यात, विवेकानंद यांनी  गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस यांचे शिष्यत्व पत्करून जगाला वैश्विक आणि व्यावहारिक अध्यात्माची शिकवण दिली आणि धर्म जागरणाचे काम केले, त्यांच्या जीवनातील महत्वाच्या घटना आणि प्रसंगातून स्वामी विवेकानंदांची ओळख या चरित्र मालिकेतून करून देण्याचा हा प्रयत्न आहे.] 

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग 7 – कृतज्ञता ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

“कोणावरही उपाशी राहायची वेळ येऊ नये”, अशी राजकीय वाक्यं सध्या करोनाच्या पार्श्वभूमीवर सतत ऐकायला मिळत आहेत. एरव्ही रस्त्यारस्त्यात कुणी अडवून काही मागायला लागलं तर चीड येते आणि भीक मागण्यापेक्षा काहीतरी काम करावं असं आपण सुचवित असतो. त्याउलट, मंदिराबाहेर दान देणारे  श्रद्धावान भाविक खूप असतात, तर हे दान स्वीकारणार्‍या व्यक्तीही मंदिराबाहेर खूप दिसतात. पण आजची उपाशी राहण्याची परिस्थिति वेगळी आहे. लॉक डाउन काळात आपआपल्या गावी परत जाणारे मजूर, कामगार व काही लोक यांच्यावर अशी वेळ आली आहे. हे बघून आपल्याला दु:ख होते. असच कलकत्त्यात एक माणूस उपासमारीने मेला अशी बातमी पेपर मध्ये छापून आली, ती वाचून स्वामी विवेकानंद, “देशाचा सर्वनाश ओढवणार, देश रसातळाला जाणार” असे दु:खाने म्हणू लागले. या दुखाचे कारण त्यांचे मित्र हरिपाद मित्र यांनी विचारलं. त्यावर स्वामी म्हणले, “ इतर देशात कितीतरी अनाथ आश्रम, गरीबांना कामं पुरवणार्‍या संस्था, धर्मादाय, सार्वजनिक फंड असूनही शेकडो लोक दरवर्षी उपासमारीने मेल्याचं आपण वर्तमानपत्रात वाचतो. पण भुकेलेल्याला मूठभर अन्न देण्याची  प्रथा आपल्या देशात असल्यामुळे कधी कोणी मेल्याचे ऐकिवात नव्हते. आज प्रथमच वाचले की, दुष्काळाचे दिवस नसतानाही उपासमारीने एक मनुष्य अन्नान्न दशा होऊन कलकत्त्यासारख्या शहरात मृत्यूमुखी पडला”.

आपण नेहमीच अनुभवतो की आज काही पैसे दान दिले तर फुकट मिळतात म्हणून त्या पैश्यातून व्यसनाधीन होऊन खितपत पडणारे लोक आहेत. तशी सवय लागते त्यांना. पण स्वामी विवेकानंद म्हणतात, दारात भिकारी आला तर, आपल्या ऐपतीनुसार त्याला काहींना काही देणेच योग्य आहे. त्याचा सदुपयोग होईल की नाही याची नसती चिंता कशाला करायची? कारण तुम्ही त्याला दान दिले नाही तर तो  पैशांसाठी तुमच्याकडे चोरी करेल, त्यापेक्षा दोन पैसे भीक मिळाली तर स्वस्थ तरी बसेल घरात. त्यामुळे निदान चोर्‍या होणार नाहीत.

त्यांच्या मते, आपले कर्तव्य म्हणजे लोकांना सहाय्य करणे. त्यांच्याशी कृतज्ञतेचे वर्तन ठेवणे. कारण तो गरीब असल्यामुळेच मागतोय. लक्षात ठेवा दानाने धन्य होत असतो तो देणारा, घेणारा नव्हे. जगावर आपल्या दयाशक्तीचा प्रयोग करण्यास वाव मिळाल्यामुळेच तुम्ही स्वताला समर्थ बनवू शकता या बद्दल तुमच्या मनात कृतज्ञता असली पाहिजे.  

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ सेवेची गोष्ट ☆ संग्राहिका: सुश्री प्रतिमा जोशी ☆

? जीवनरंग ❤️

☆ सेवेची गोष्ट ☆ संग्राहिका: सुश्री प्रतिमा जोशी ☆

आमचे वडीलोपार्जित घर भोपाळ मध्ये होते आणि मी कामासाठी चेन्नई  येथे राहत होतो. अचानक एक दिवस घरून वडीलांचा फोन आला ताबडतोब निघून ये, महत्त्वाचे काम आहे. मी घाईघाईने रेल्वे स्टेशनवर पोहोचलो व रिझर्वेशनचा प्रयत्न केला, पण उन्हाळ्याच्या सुट्टीमुळे एकही जागा शिल्लक नव्हती.

समोरच्या प्लॅटफॉर्मवर ग्रँड ट्रंक एक्सप्रेस गाडी उभी होती, पण त्यातही बसायला जागा नव्हती. कोणत्याही परिस्थितीत घरी जायचे होते, त्यामुळे मी कोणताही मागचा पुढचा विचार न करता, समोरच्या साधारण श्रेणीच्या डब्यात घुसलो. मला असे वाटले की एवढ्या गर्दीत रेल्वेचा  टि.सी. काही बोलणार नाही.

डब्यात कुठे जागा मिळते का, हे बघण्यासाठी मी इकडे तिकडे बघितले. तर एक सज्जन गृहस्थ बर्थवर झोपले होते. मी त्यांना, “मला बसायला जागा द्या” म्हणून विनंती केली. ते सज्जन उठले, माझ्याकडे पाहुन हसले व म्हणाले, “काही हरकत नाही आपण येथे बसू शकता.”

मी त्यांना धन्यवाद दिले व तिथेच कोपऱ्यात बसलो. थोड्याच वेळात गाडीने स्टेशन सोडले व गाडी वेगाने धावू लागली. डब्यामध्ये प्रत्येकाला व्यवस्थित जागा मिळाली होती. प्रत्येकाने आपापले जेवणाचे डबे आणले होते, ते उघडून सर्वांनी जेवायला सुरुवात केली. डब्यामध्ये सर्वत्र जेवणाचा वास दरवळला होता. डब्यातील माझ्या सहप्रवाशाशी संवाद साधण्याची चांगली वेळ आहे असा विचार करून मी माझा परिचय करून दिला,  “माझ नाव आलोक आणि मी इस्रो ( ISRO ) मध्ये शास्‍त्रज्ञ आहे. आज अचानक मला गावी जावे लागत आहे, म्हणून या साधारण श्रेणीच्या डब्यात मी चढलो. अन्यथा मी ए.सी.डब्ब्याशिवाय प्रवास करत नाही.”

ते सज्जन गृहस्थ माझ्याकडे पाहून हसले व म्हणाले, “अरे वा ! म्हणजे माझ्या बरोबर आज एक शास्त्रज्ञ प्रवास करीत आहेत. ते म्हणाले, “माझ नाव जगमोहन राव आहे. मी वारंगळ येथे चाललो आहे. तिथे जवळच्या एका गावामधे मी राहतो. मी बऱ्याच वेळा शनिवारी घरी जातो.”

एवढे बोलून त्यांनी आपली बॅग उघडली व त्यातून आपला जेवणाचा डबा काढला व म्हणाले, “हे माझ्या घरचे जेवण आहे, तुम्ही घेणार का?”

माझ्या संकोची स्वभावामुळे, मी नकार दिला व माझ्या बॅग मधील सँडविच काढून, खाऊ लागलो.

खाताना मी मनाशीच विचार करीत होतो की, ‘जगमोहन राव ‘ हे नाव मी कुठेतरी ऐकल्या सारखे वाटतेय, पण आठवत नाही.

काही वेळातच सर्व लोकांची जेवणे झाली व सगळे झोपण्याची तयारी करू लागले. माझ्या समोरच्या बर्थवर एक कुटुंब होते. आई वडील व दोन मोठी मुले होती. ते पण झोपण्याच्या तयारीला लागले आणि मी एका बाजूला बसून मोबाईल मधील गेम खेळू लागलो.

रेल्वे वेगात धावू लागली होती. अचानक माझे लक्ष समोरच्या बर्थवर झोपलेल्या 55 – 57 वर्षाच्या त्या सज्जन गृहस्थाकडे गेले, तर ते तळमळत होते व त्यांच्या तोंडातून फेस बाहेर येत होता. त्यांचा परिवार घाबरून जागा झाला व त्यांना पाणी पाजू लागला. पण ते गृहस्थ बोलण्याच्या मनस्थितीत नव्हते. मदतीसाठी मी जोराने ओरडलो, “अरे कोणीतरी डॉक्टरांना बोलवा. इमर्जन्सी केस आहे.”

पण रात्रीच्या वेळी स्लीपर श्रेणीच्या डब्यात डॉक्टर कुठला मिळणार? त्यांचा सारा परिवार त्यांची असहाय्य अवस्था पाहून रडायला लागला. तेवढ्यात माझ्या सोबतचे जगमोहन राव जागे झाले व त्यांनी मला विचारले, “काय झाले?”

मी त्यांना सर्व वृत्तान्त सांगितला. त्यांनी ताबडतोब आपली बॅग उघडली. त्यातून स्टेथोस्कोप काढला व त्या गृहस्थाला तपासू लागले.

काही मिनिटातच त्यांच्या चेहऱ्यावर चिंतेचे जाळे पसरले, परंतु ते काही बोलले नाहीत. मात्र त्यांनी आपल्या बॅगेतून इंजेक्शन काढले आणि त्या गृहस्थाला छातीत इंजेक्शन दिले. त्यानंतर त्यांच्या छातीवर दाब देऊन, तोंडाला रुमाल लावून त्यांनी तोंडावाटे त्याला श्वास देण्यास सुरुवात केली. काही वेळातच, त्या श्वासोच्छ्वासामुळे त्या गृहस्थांचे तडफडणे कमी झाले.

नंतर जगमोहन रावांनी आपल्या बॅगमधील काही गोळ्या त्या गृहस्थांच्या मुलाला दिल्या व सांगितले, “तुम्ही घाबरू नका. तुमच्या वडिलांना गंभीर हार्ट अटॅक आला होता पण मी इंजेक्शन दिल्यामुळे त्यांचा धोका आता टळला आहे. त्यांना आता या गोळ्या द्या.”

त्या मुलाने आश्चर्याने विचारलं, “पण आपण कोण आहात?”

ते म्हणाले, “मी एक डॉक्टर आहे. मी एका कागदावर त्यांच्या तब्येतीची माहिती व औषध लिहून देतो.  कृपया तुम्ही पुढच्या स्टेशन वर उतरा व त्यांना चांगल्या हॉस्पिटलमध्ये दाखल करा.”

त्यांनी आपल्या बॅगमधून एक लेटर पॅड बाहेर काढले व लेटर पॅड वरील माहिती वाचल्यावर मला आठवले.

त्यावर छापले होते – डाॅ.जगमोहन राव, हृदय रोग तज्ञ, अपोलो हॉस्पिटल, चेन्नई.

आता मला आठवले की, काही दिवसांपूर्वी मी माझ्या वडिलांना अपोलो हॉस्पिटल मध्ये उपचाराकरिता घेऊन गेलो होतो, तेव्हा डॉक्टर जगमोहन रावांबद्दल ऐकले होते. त्या हॉस्पिटल मधील, ते सर्वात हुशार व वरिष्ठ हृदयरोग तज्ञ होते. त्यांची अपॉइंटमेंट घेण्याकरिता कित्येक महिने लागत असत. मी आश्चर्यचकित नजरेने त्यांच्याकडे पहात होतो. एवढा मोठा डॉक्टर रेल्वेच्या साधारण डब्यातून प्रवास करीत होता. आणि मी एक छोटा शास्त्रज्ञ – मी ए.सी. शिवाय प्रवास करत नाही अशा बढाया मारत होतो. आणि हे एवढे असामान्य, अलौकिक व्यक्तिमत्त्व असूनही सामान्य माणसासारखे वागत होते!

एवढ्यात पुढचे स्टेशन आले व ते आजारी गृहस्थ आणि त्यांचा परिवार टि.सी.च्या मदतीने खाली उतरले.

रेल्वे पुन्हा सुरू झाली. मी उत्सुकतेने त्यांना विचारले, “डॉक्टर! आपण तर आरामात ए.सीच्या डब्यातून प्रवास करू शकला असता, मग या सामान्य डब्यातून प्रवास का करता ?”

ते हसून म्हणाले, “मी जेव्हा लहान होतो, गावाकडे राहत होतो. तेव्हा माझ्या लक्षात आले की रेल्वेमध्ये विशेषतः सेकंड क्लासच्या डब्यामध्ये डॉक्टर उपलब्ध नसतात. त्यामुळे मी जेव्हा गावी जातो किंवा प्रवासाला जातो तेव्हा सामान्य डब्यातून प्रवास करतो. कारण कुणाला कधी डॉक्टरची गरज लागेल सांगता येत नाही. आणि मी डॉक्टर झालो ते लोकांची सेवा करण्याकरताच. आम्ही कोणाच्या उपयोगी पडलो नाही तर मग आमच्या शिक्षणाचा काय फायदा?”

नंतरचा प्रवास मी त्यांच्याशी गप्पा मारतच केला. पहाटेचे चार वाजले होते. वारंगल स्टेशन जवळ आले होते. ते उतरून गेले व बाकीचा प्रवास मी त्यांच्या सीटकडून येणाऱ्या सुगंधामध्ये न्हाऊन निघत पूर्ण केला. येथे एक महान माणूस बसलेला होता, जो हसत खेळत लोकांची दुःख वाटून घेत होता, प्रसिद्धीची हाव न बाळगता निरपेक्षपणे जनसेवा करीत होता.

आत्ता माझ्या लक्षात आले की डब्यात इतकी गर्दी असूनही हा सुगंध कसा काय जाणवत होता. तो सुगंध दरवळत होता त्या महान, असामान्य व्यक्तिमत्त्वाचा आणि एका पवित्र मनाच्या आत्म्याचा, ज्याने माझे विचार आणि जीवन दोन्ही सुगंधित करून टाकले होते.

म्हणूनच तर, “जसे आम्ही बदलू, तसे जग ही आपोआपच बदलेल.”

__♥️__

संग्राहिका :सुश्री प्रतिमा जोशी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ आत्मसंवाद…भाग 5 ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? जीवन यात्रा ?

☆ आत्मसंवाद…भाग 5 ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

(मागील भागात आपण पाहिलं  – उज्ज्वला–मी अनुवादात घुसले. आणि चक्रव्यूहासारखी त्यातच अडकले. मग माझं स्वतंत्र कथालेखन थांबल्यासारखच झालं. आता इथून पुढे) 

मी – तुला कादंबरी लिहावीशी नाही वाटली?

उज्ज्वला – नाही. तेवढा स्टॅमिना मला नाही, असं वाटलं. तसंच मी नाटकाही लिहिलं नाही.

मी – पण संवाद माध्यम तू हाताळलं आहेस.

उज्ज्वला – हो. आकाशवाणीवरील कार्यक्रमात मी संवाद लिहिले आहेत. सांगली आकाशवाणीवर ‘प्रतिबिंब’ ही कौटुंबिक श्रुतिका सुरू झाली. पूर्वी मुंबईहून ‘प्रपंच’ मालिका सादर व्हायची. त्या स्वरूपाची. हे सादर १० वर्षे चालू होते. यात मी एकूण १०० तरी श्रुतिकांचं लेखन केलय. श्रोत्यांची पत्रे आणि त्यांनी प्रत्यक्ष भेटल्यावर दिलेल्या प्रतिक्रिया यातून लोकांना ते लेखन आवडल्याचं लक्षात आलं. अनेक जणी मला विचारायच्या, ‘आमच्या घरातले संवाद तुला कसे कळतात? ‘

मी – आणि तुझी नभोनाट्ये?

उज्ज्वला – माझी ५ नभोनाट्ये आकाशवाणीवरून प्रसारित झाली. त्यापैकी पहिले नभोनाट्य ‘इथे साहित्याचे साचे मिळतील’, हे मी स्वत: नेऊन दिले होते. इतर सर्व नाटके मी सबंधित विभागांच्या प्रमुखांनी सांगितली म्हणून मी लिहिली.

मी – म्हणजे?

उज्ज्वला – त्यावेळी शशी पटवर्धन नाट्यविभागाचे प्रमुख होते. एकदा त्यांनी मला बोलावलं . म्हणाले,’जागतिक आरोग्यदिन’ आहे. या निमित्ताने ‘फास्ट फूड’ या विषयावर नाटक लिहा.’ मी विचार करू लागले. ‘फास्ट फूड’वरून जुनी पिढी- नवी पिढी यातील वाद हा ठरीव विषय मनाला काही भिडेना. विचार करता करता मला ‘फास्ट फूड’च्या अनेक परी सुचल्या, जसे इंटलेक्चुअल ‘फास्ट फूड’ ( १० दिवसात १०वी मराठी, इतिहास, भूगोल, विज्ञान वगैरे…),  संस्कृतिक ‘फास्ट फूड’ (झट मंगनी, पट ब्याह, फट विभाजन ). तरी क्लायामॅक्स पॉइंट मिळेना. मग सुचलं, ‘जेनेटिक फास्ट फूड ‘. ९ महीने बाळंतपणासाठी लागतात. त्यामुळे स्त्रियांची कार्यशक्ती फुकट जाते. तेव्हा  त्या ९ आठवड्यात आणि पुढल्या काही वर्षात ,९ दिवसात बाळंतीण झाल्या तर… महिला कल्याण विभागाच्या अध्यक्षा संशोधनाला उत्तेजन देतायत. त्यांचा प्रयोग पूर्णत्वाला येऊ पहातोय . सर्व डाटा पी.सी. वर सुरक्षित आहे आणि त्याच वेळी विष्णु त्यात व्हायरस सोडून तो सगळा प्रयोगाचा तपशील डी लिट. करून टाकतो. फॅंटसीवर आधारलेलं हे नभोनाट्य छान जमून गेलं. आकाशवाणीच्या सर्व केंद्रावरून ते प्रसारित झालं. ही नाटिका मला लिहायला सांगितली नसती, तर लेखनाचा विषय म्हणून मला हे सुचलं नसतं. त्यामुळे माझ्या लेखनात योगायोगाचासुद्धा भाग आहे.

मी – पुढे यावर तू कथासुद्धा लिहिलीस. 

उज्ज्वला – हो. त्यानंतर थोड्याच दिवसात सावंतवाडीचा साहित्य संमेलनात, किस्त्रीमचे संपादक ह. मो. मराठे भेटले. ‘नवीन काय लिहिलय’ वगैरे बोलणं झालं. नुकतच ‘फास्ट फूड’ लिहिलेलं असल्यामुळे मी त्याबद्दल बोलले. ते म्हणाले, ‘ताबडतोब याचं कथा रूपांतरण कर आणि ‘स्त्री’कडे पाठव.’ नंतर ती कथा स्त्री’च्या महिला विनोद विशेषांकात आली. पुढे मी जेव्हा विनोदी कथांचं पुस्तक काढलं, तेव्हा त्याचं नाव ‘फास्ट फूड’च दिलं.

मी – तुझ्या आणि नभोनाट्यांचं काय?

उज्ज्वला – तिसरं नभोनाट्य मी एड्स्वर लिहिलं. ‘सुनीलची डायरी’ म्हणून. तेही त्यांच्याच सांगण्यावरून. हेही आकाशवाणीच्या सर्व केंद्रावरून प्रसारित झालं होतं. यासाठी मला आर्यापाइकी अभ्यास कारावा लागला होता. त्यानंतर ‘पठ्ठे बापूराव’ यांच्यावर ‘नाही तर रंग पुन्हा सुना सुना..’ हे नभोनाट्य झालं. शेवटचं नभोनाट्य ‘सावित्री’ ( सावित्रीबाई फुले) मी संजय पाटील यांच्या सांगण्यावरून लिहिलं.त्यानंतर आकाशवाणीकडून मला पुन्हा काही बोलावणं आलं नाही आणि माझं नभोनाट्य लेखन थांबलं.

मी – तू अनुवादाकडे कशी वळलीस?

क्रमश: ….

©  श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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