हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 148 ☆ कविता – रंगोली ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता रंगोली

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 148 ☆

? कविता – रंगोली ?

त्यौहार पर सत्कार का

इजहार रंगोली

उत्सवी माहौल में,

अभिसार रंगोली

 

खुशियाँ हुलास और,

हाथो का हुनर हैं

मन का हैं प्रतिबिम्ब,

श्रंगार रंगोली

 

धरती पे उतारी है,

आसमां से रोशनी

है आसुरी वृत्ति का,

प्रतिकार रंगोली

 

बहुओ ने बेटियों ने,

हिल मिल है सजाई

रौनक है मुस्कान है,

मंगल है रंगोली

 

पूजा परंपरा प्रार्थना

जयकार लक्ष्मी की

शुभ लाभ की है कामना,

त्यौहार रंगोली

 

संस्कृति का है दर्पण,

सद्भाव की प्रतीक

कण कण उजास है,

संस्कार रंगोली

 

बिन्दु बिन्दु मिल बने,

रेखाओ से चित्र

पुष्पों से कभी रंगों से

अभिव्यक्त रंगोली

 

धरती की ओली में

रंग भरे हैं

चित्रो की भाषा का

संगीत रंगोली

 

अक्षर और शब्दों से,

हमने भी बनाई

गीतो से सजाई,

कविता की  रंगोली

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 101 ☆ गीत – तुझको चलना होगा☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है आपका एक गीत  “तुझको चलना होगा”.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 101 ☆

☆ गीत – तुझको चलना होगा ☆ 

धीरे – धीरे बढ़ो मुसाफिर

जीवन है अनमोल।

दुख चाहे जितने भी आएं

मुख में मिश्री घोल।।

 

चलना नियति सदा जीवन की

तुझको चलना होगा।

जागो ! उठो दूर है मंजिल

स्थिति सम ढलना होगा।

 

असत और सत बल्लरियों में

देख कहाँ है झोल।।

 

लक्ष्य बनाकर बढ़ना आगे

और स्वयं विश्वास करो।

मृत्यु रही जीवन का गहना

मत रोना कुछ हास करो।

 

पंछीगण को देख निकट से

मन में भरें किलोल।।

 

जो सोया है, उसने खोया

आँख खोल मत डर प्यारे।

अपनी मदद स्वयं जो करते

उस पर ही ईश्वर वारे।

 

परिभाषा जीवन की अद्भुत

सदा तराजू तोल।।

 

संशय , भ्रम में नहीं भटकना

यह जीवन नरक बनाते।

द्वेष – ईर्ष्या वैर भाव भी

सदा अँधेरा यह लाते।

 

सच्चाई की जीत लिखी है

आगे होगा गोल।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information – ☆ बापू की पाती का विमोचन एवं सम्मान समारोह संपन्न ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

सूचनाएँ/Information

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

बापू की पाती का विमोचन एवं सम्मान समारोह संपन्न

सवाई माधोपुर। त्रिनेत्र गणेश की नगरी में फ़र्न रिसोर्ट होटल में बापू की पाती सहित सात पुस्तकों का विमोचन समारोह समृद्ध मंचस्थ मुख्य अतिथि- डाक अधीक्षक प्रियंका गुप्ता, वरिष्ठ साहित्यकार बजरंग सोनी, वरिष्ठ पत्रकार अशोक सक्सेना, बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश, गुजराती अनुवादक प्रभा पारीक, गजलकार मुजीब अता आजाद ,पुस्तक के संपादक चंद्र मोहन उपाध्याय, उपखण्ड अधिकारी कपिल शर्मा, अतिरिक्त जिला कलेक्टर डॉ सूरज सिंह नेगी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ।

इस गरिमामय कार्यक्रम का आरंभ भारतीय परंपरा अनुसार आराध्य देवी के श्री चरणों में दीप प्रज्वलित कर हुआ। तत्पश्चात छाया शर्मा द्वारा अनोखे अंदाज व लय-ताल के साथ सरस्वती वंदना का गायन किया गया। मंचासीन अतिथियों को शाल, माल्यार्पण व त्रिनेत्र गणेश जी की आकर्षक तस्वीर द्वारा स्वागत सत्कार सम्मानीय मेजबान सूरज सिंह नेगी, शिवराज कुर्मी, डॉक्टर मीणा सिरोला द्वारा भारतीय परंपरा का निर्वहन कर गरिमा पूर्ण ढंग से किया गया।

गांधीजी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं इसी को रेखांकित करते हुए नेगी जी ने अपने स्वागत भाषण में पाती मुहिम और बापू की पाती अपने सारगर्भित उद्बोधन दे कर कार्यक्रम की प्रभावशीलता में श्री वृद्धि की। वही आशा शर्मा अंशु ने अपने पुत्र की श्री वृद्धि को याद करते हुए स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर अपने हौसले को कायम रखने का भरपूर प्रयास किया है। आज समय चले गए अपने पुत्र की यादों ने उनकी आंखों के साथ-साथ श्रोताओं आंखों को भी नम कर दिया।

अब तक कार्यक्रम अपनी ऊंचाई छू रहा था। इसी को गति प्रदान करते हुए वीडियो क्लिप के  माध्यम से पाती मुहिम के अब तक के सफर को  प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया गया। तत्पश्चात पुस्तक  बापू की चिट्ठी का विमोचन   अतिथियों द्वारा  किया गया। जिसकी सारगर्भित समीक्षा जयसिंह आशावत द्वारा प्रस्तुत करके 73 पत्रों का सार संक्षेप सभी के सम्मुख पूरी सार्थकता को कायम रखते हुए प्रस्तुत किया। तत्पश्चात प्रभा पारीक द्वारा अनूदित पुस्तक-रिश्तों की आँच, के गुजराती संस्करण का अनावरण किया गया। प्रभा पारीक पुस्तक- शॉप या वरदान की कहानियां इसी दौरान विमोचन हुआ।

अशोक सक्सेना ने पाती की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि हम पाती का महत्व जानते थे पर उसे जन-जन तक पहुंचाने का काम नेगी जी ने किया है। वहीं ‘राम कथा एवं तुलसी साहित्य’ के रचनाकार देवदत्त शर्मा, अनहद नाद – भावना शर्मा की पुस्तक के विमोचन के पश्चात मुजीब अता आजाद ने गांधी जी की प्रासंगिकता व गजल से सभी का मन मोह लिया।

जिंदगीनामा की लेखिका प्रियंका गुप्ता ने पुस्तक के विमोचन के पश्चात अपनी लेखन यात्रा और डाकघर की पाती प्रतियोगिता की बेहतरीन, उम्दा जानकारी अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत की। बजरंग सोनी ने अपने चुटीले अंदाज, रोचक शायराना शैली से पाती मुहिम की महत्ता पर प्रकाश डाला।  वहीं ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ने गांधीजी के प्राकृतिक सिद्धांत को रेखांकित करते हुए पाती मुहिम को रेखांकित किया है।

तत्पश्चात इंदु , प्रदीप गुप्ता की पुस्तक- गलती से मिस्टेक, के विमोचन के उपरांत प्रभा पारीक ने अपनी अनुवाद की गई पुस्तक के रोचक, खट्टे-मीठे अनुभव से सभी के मन मोह लिया। कार्यक्रम के अंत में बापू की पाती (मेरी जुबानी) पुस्तक के पत्र लेखक सहभागियों को मंचस्थ अतिथियों द्वारा प्रमाण-पत्र, बापू की पाती पुस्तक की लेखकीय प्रति व त्रिनेत्र गणेश जी की आकर्षक तस्वीर भेंट करके 73 रचनाकार साथियों को सम्मानित किया गया। इस समारोह का सबसे गौरवशाली क्षण था।

इस पाती मुहिम मेंअपना उल्लेखनीय योगदान देने के लिए संदीप जैन, शिवराज कुर्मी, राजेंद्र प्रसाद जैन, नीना छिब्बर, नीलम सपना शर्मा, रेखा शर्मा को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी चंद्रमोहन उपाध्याय ने अपने संपादकीय व नवीन सहयोगी अनुभव के साथ किया। अंत में सभी ने सहभोज के साथ इस गरिमामई कार्यक्रम से प्रस्थान कर इसका समापन किया।

 

साभार –  श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

13-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (31 – 35) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

भद्र नाम के गुप्तचर से पूंछी कुशलात।

कहो लोक अवधारणा क्या जन-प्रिय संवाद?।।31।।

 

रहा गुप्तचर मौन पर तनिक सोच के बाद।

बोला स्वामी ठीक है, पर है एक परिवाद।।32अ।।

 

राक्षस गृह आवास भी बाद भी सिय-स्वीकार।

को कहते कुछ नहीं यह मर्यादा अनुसार।।32ब।।

 

तप्त लोह जाता दरक सह धन की ज्यों मार।

त्यों टूटा मन राम का सुन यह वज्र-प्रहार।।33।।

 

क्या है उचित? करूँ मैं क्या? भुला दूँ मैं अपवाद।

या जन-मन का ध्यान रख करूँ मैं पत्नी त्याग?।।34अ।।

 

इस द्विविधा में फँस लगे चिंता करने राम।

झूले की सी गति हुई मन को न था विश्राम।।34ब।।

 

मन के मन्थन बाद भी मिला न कोई उपाय।

पत्नी के परित्याग की ही तब समूझी राह।।35अ।।

 

यशोधनी यश बचाने करते तन का त्याग।

फिर इंद्रिय सुख हेतु क्या? क्यों इंद्रिय-अनुराग।।35ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १४ मार्च – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆  १४ मार्च -संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

विष्णूशास्त्री कृष्णशास्त्री चिपळूणकर:

शिक्षण, लेखन, राजकारण, समाजकारण, पत्रकारिता अशा विविध प्रांतात उल्लेखनीय कार्य करणा-या विष्णूशास्त्री चिपळूणकर यांची आज पुण्यतिथी!

पुणे येथे पूना काॅलेज व डेक्कन काॅलेज येथे आपले शिक्षण पूर्ण केल्यावर त्यांनी शिक्षक म्हणून नोकरी करण्यास सुरुवात केली.काही वर्षे त्यांनी रत्नागिरीत ही घालवली. त्यांनी इतिहास, अर्थशास्त्र, तर्कशास्त्र, नीतीशास्त्र, इंग्रजी, संस्कृत व मराठीतील उत्तमोत्तम ग्रंथांचा सखोल अभ्यास केला. त्यांचे वडिलही लेखक होते.वडिलांच्या ‘शालापत्रक’ या मासिकात त्यांनी लेखन करण्यास सुरुवात केली होती. मासिकातील लेखन हे तत्कालीन ब्रिटिश सरकारला न रूचल्यामुळे या मासिकावर बंदी घालण्यात आली. पण विष्णूशास्त्र्यांनी त्यापूर्वीच म्हणजे 1874 मध्ये ‘निबंधमाला’ चालू केले होते. त्यातून टिकात्मक व साहित्य विषयक लेखन होत असे. त्यांनी निबंधमाला आयुष्याच्या अखेरपर्यंत चालवली. याशिवाय इतिहास व काव्याभिरूची वाढावी या हेतूने ‘काव्येतिहास संग्रह’ हे मासिक सुरू केले.पुण्यात आर्यभूषण छापखाना व चित्रशाळा स्थापन करण्यात त्यांचा पुढाकार होता. मराठी साहित्य उपलब्ध व्हावे यासाठी ‘किताबखाना’ हे पुस्तकांचे दुकान सुरू केले. केसरी व मराठा या  वृत्तपत्रांची धुरा त्यांनीच  सांभाळली. तसेच पुणे येथे राष्ट्रीय शिक्षण देण्याच्या उद्देशाने  लो. टिळकांनी स्थापन केलेल्या न्यू इंग्लिश स्कूल च्या स्थापनेत त्यांचा मोलाचा वाटा होता.

त्यांची काही ग्रंथसंपदा:

अरबी भाषेतील सुरस व चमत्कारिक गोष्टी –6 भाग

आमच्या देशाची स्थिती

इतिहास

संस्कृत कवीपंचक

केसरीतील लेख

कादंबरी..अनुवादित

कालिदासावरील निबंध

पद्य रत्नावली

विष्णूपदी…तीन खंड

संस्कृत कविता…..इ.इ.इ.

कामाची ही व्याप्ती अवघ्या बत्तिस वर्षांच्या आयुष्यातील आहे. 1882 मध्ये वयाच्या 32 व्या वर्षी त्यांचे  दुःखद निधन झाले.त्यांच्या कार्यास अभिवादन! 🙏

☆☆☆☆☆

काशिनाथ नारायण साने

विष्णूशास्त्री चिपळूणकर यांनी सुरू केलेल्या काव्येतिहास या मासिकाचे का.ना.साने हे संपादक होते. ते स्वतः इतिहाससंशोधक होते. भारतीय इतिहास संशोधक मंडळ, पुणे या संस्थेचे ते अध्यक्ष होते.

त्यांची ग्रंथ निर्मिती अशी:

विविध बखर लेखन

होळकरांची कैफियत

छ.संभाजी महाराज व थोरले राजाराम महाराज यांचे चरित्र.

ऐतिहासिक पत्रे यादी श्रीमंत भाऊसाहेब यांची कैफियत इत्यादी.

का.ना.साने यांच्या स्मृतीस अभिवादन. 🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ज्ञानाक्षरे… ☆ श्रीशैल चौगुले

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ज्ञानाक्षरे… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

 अशी अलंकारे

भुषवीते शब्दे

धर्म नि प्रारब्धे

युगांतरी.

संत श्लोकांचीया

पुण्य ज्ञानीवंता

पवित्र अनंता

ग्रंथभक्ता.

सांडे वाहूनीया

अमृत वर्षाव

अनुभवे ठाव

जन्म मृत्यू.

कोणते कारणे

शरीर धोरणे

बांधावी तोरणे

इंद्रियाशी.

दिव्य प्रबोधन

मानवा साधन

संसारी सदन

ज्ञानाक्षरे.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #104 – एक कविता तिची माझी..! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 104  – एक कविता तिची माझी..! 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती .

कधी भिजलेल्या पानांची ..

कधी कोसळत्या सरींची ..

कधी निथळत्या थेंबाची ..

तर कधी.. हळूवार पावसाची…!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती.

कधी गुलाबांच्या फुलांची ..

कधी पाकळ्यांवरच्या दवांची ..

कधी गार गार वा-याची ..

तर कधी.. गुणगुणां-या गाण्यांची…!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती .

कधी वाहणा-या पाण्याची..

कधी सुंदर सुंदर शिंपल्याची ..

कधी अनोळखी वाटेवरची ..

तर कधी ..फुलपाखरांच्या पंखावरची…!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती.

कधी उगवत्या सुर्याची ..

कधी धावणा-या ढगांची..

कधी कोवळ्या ऊन्हाची ..

तर कधी पुर्ण.. अपूर्ण सायंकाळची…!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती .

कधी काळ्या कुट्ट काळोखाची..

कधी चंद्र आणि चांदण्यांची ..

कधी जपलेल्या आठवणींची ..

तर कधी.. ओलावलेल्या पापण्यांची…!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती .

कधी पहील्या वहील्या भेटीची ..

कधी गोड गुलाबी प्रेमाची ..

कधी त्याच्या तिच्या विरहाची ..

तर कधी.. शांत निवांत क्षणांची ..!

 

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती .

कधी तिच्या मनातली ..

कधी माझ्या मनातली..

एक कविता तिची माझी ..

रोज भेटते फेसबुक वरती..!

 

© सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ स्विकार क्षणांचा..! ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

श्री अरविंद लिमये

?विविधा ?

☆ स्विकार क्षणांचा..! ☆ श्री अरविंद लिमये ☆

आपल्या आयुष्यातला प्रत्येक क्षण आपलं आयुष्य घडवत तरी असतो नाहीतर बिघडवत तरी ! वाचताना थोडं अतिशयोक्तीचं वाटेल पण हेच सत्य आहे.

रोजच्या धावपळीत आपण प्रत्येक क्षणी असणारी आपली मनोवस्था, आपली विचार करण्याची पद्धत आणि आपले स्वयंकेंद्री विचार यानुसारच येणाऱ्या प्रत्येक क्षणाला सामोरे जात असतो व त्यामुळे प्रत्येक क्षण समतोल मनाने येईल तसा स्वीकारायचं भान सहसा आपल्याला रहात नाही. त्यामुळे त्या त्या वेळी आपल्या उमटणार्‍या प्रतिक्रिया नेहमीच अस्वस्थता, नाराजी, रुखरुख निर्माण करण्यास कारणीभूत ठरत असतात. कुणाच्याही आयुष्यात कधीही घडू शकेल अशा एका अगदी साध्या प्रसंगाचं एक प्रातिनिधिक उदाहरण घेऊ.

एका सकाळी थोडं लवकरच मी स्कूटरवरून रेल्वे-स्टेशनवर पाहुण्यांना रिसीव्ह करायला निघालोय.रस्त्यावरची नेहमीची वर्दळ अद्याप सुरु व्हायचीय. माझी स्कुटर बर्‍यापैकी वेगात आहे. गाडीची वेळ चुकू नये, आपण वेळेत पोचायला हवं हा एकच विचार मनात.आणि अगदी अचानक एका वळणावरून आत जाताना  समोरून सायकलवरून येणारा  आठ-नऊ वर्षाचा एक मुलगा माझ्या स्कूटरला धडकतो. पडतो. मी स्कूटर कशीबशी कंट्रोल करीत थांबतो.

त्या क्षणी येणाऱ्या माझ्या प्रतिक्रिया अर्थातच तो क्षण मी कसा स्वीकारलाय यावरच अवलंबून असणाराय हे ओघानं आलंच.

मी चिडून त्या मुलाकडे पहातो. तो दफ्तरातून बाहेर पडलेली आपली नोटबुक्स् गडबडीने गोळा करतो. दप्तरात ठेवतो.चोरट्या नजरेने माझ्याकडे पहातो.आपल्याला स्टेशनवर पोचायला उशीर होणार या विचाराने मला त्याचा प्रचंड राग येतो.माझं कपाळ आठ्यांनी भरुन जातं. आपण वेळेत पोचलो नाही तर पाहुण्यांना काय वाटेल हा विचार मन अस्वस्थ करीत असतो. तोवर कपड्यांवरची धूळ झटकून, आडवी झालेली सायकल कशीबशी उभी करुन तो मुलगा सायकल ढकलत चालत निघून जातो. त्या अस्वस्थ मनस्थितीत मी स्कूटर सुरू करतो. तरीही मनातला त्या मुलाबद्दलचा संताप काट्यासारखा सलतच असतो.  स्टेशनबाहेर घाईघाईने स्कूटर पार्क करून मी धावत आत जातो. ट्रेन आलेली नसते. घाईघाईने मी इंडिकेटरकडे धाव घेतो. पहातो तर ट्रेन थोडी लेट असल्याने ती यायला अद्याप दहा मिनिटे अवकाश असतो. मी थोडा निश्चिंत होतो.मनातला राग मग हळूहळू नाहीसा होतो.

मन थोडं स्थिर होताच जाणवतं की त्या प्रसंगात अचानक कांहीही घडू शकलं असतं हे खरं,पण जे घडलं त्यात तरी चूक त्या निष्पाप मुलाची होती की माझीच ? त्याच्या सायकलचा वेग तसा फार नव्हताच.पण स्कुटर वेगात असूनही लवकर स्टेशन गाठायच्या नादात मी वळणावर हाॅर्न न वाजवता स्कुटर तशीच रेटलेली असते.

अचानक समोर येऊन ठेपलेला तो क्षण आला तसा मी स्विकारलाच नव्हता.त्यामुळेच त्याक्षणी मी नेमकं काय करायला हवं ते मला सुचलंच नव्हतं. म्हणूनच स्टेशनवर वेळेत पोचण्याची निकड हा माझ्या जीवनमरणाचा प्रश्नच बनला होता जसा कांही.त्यामुळेच ‘त्या मुलाच्या जागी आपला मुलगा असता तर?’ हा प्रश्न मनात उभारलाच नव्हता.आपण त्याला ‘तुला लागलं कां रे?’ एवढंतरी विचारायला हवं होतं खरंतर.पण तेही त्यावेळी सुचलंच नव्हतं.

तो क्षण आठवला न् त्या लहान मुलाची चोरट्या नजरेने माझ्याकडे पहाणारी नजर मला त्रास देत राहिली.

अनपेक्षितपणे समोर येऊन ठेपलेला ‘तो क्षण’ आहे तसा न स्विकारल्याने माझ्या मनात निर्माण झालेल्या अस्वस्थतेला, माझ्या चुकलेल्या प्राधान्यक्रमांना, माझ्या चुकीच्या प्रतिक्रियांना मीच जबाबदार होतो.

तो क्षण समोर आला तसा स्विकारला असता तर परिस्थितीतलं गांभीर्य मला तत्काळ जाणवलं असतं.मी पटकन् स्कुटर स्टॅंडला लावून त्या मुलाकडे धाव घेतली असती. त्याला उठवून त्याला कांही दुखापत झालीय का हे पाहिलं असतं.त्याची सायकल उचलून उभी केली असती.त्या क्षणी कुणीही जे करणं अपेक्षित असतं तेच मी केलं असतं.

हा एक साधा प्रसंग.पण यापेक्षा कितीतरी विविध प्रसंग प्रत्येकाच्याच आयुष्यात सतत येतच असतात. यश, अपयश, संधी,संकटं कांहीही सोबत घेऊन येत असणारे क्षण असतात ते.ते येतील तसे स्विकारले तरच स्थिर मनाने त्या क्षणी आपण योग्य असे निर्णय घेऊ शकतो. अपयशाने खचून न जाता त्यामागची कारणं शोधून आपण त्यांचं निराकरण करु शकतो. यशाने बेभान न झाल्याने आपले पाय जमीनीवरच ठेवून आपल्याला त्या यशाचा आनंद घेणे शक्य होत असतं.संकट असेल तर त्यावेळी नेमकं काय करायला हवं याचा शांतपणे विचार करता येतो.संधी असेल तर ती हातून निसटण्यापूर्वी त्या संधीचं सोनं कसं करता येईल याचा विचार आपण करु शकतो.

आपल्या आयुष्यातल्या निसटून गेलेल्या अशा असंख्य क्षणांचं आज स्थिरचित्ताने विश्लेषण केलं तर क्षण कसा स्विकारावा याचं प्रतिनिधीत्व करणारे क्षण अपवादात्मकच आढळतील हे खरं,पण ते यापुढील आयुष्यासाठीतरी नक्कीच दिशादर्शक ठरतील !

©️ अरविंद लिमये

सांगली (९८२३७३८२८८)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ प्राधान्य…. (भावानुवाद) – भगवान वैद्य `प्रखर’ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

?जीवनरंग ?

☆ प्राधान्य…. (भावानुवाद) – भगवान वैद्य `प्रखर’ ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

मम्मी – बच्चू, बसची वेळ झाली, लवकर तयार हो बरं!

बच्चू – मम्मी, माझा स्वेटर सापडत नाहीये. तू कुठे ठेवलायस?

मम्मी – मी नाही ठेवला. तुला सांगितलं होतं नं, आपले कपडे नीट जाग्यावर ठेव. एक तर दीड खोलीची जागा. त्यावर आणि घरात जगभरचं सामान.

मम्मी बडबडत कपड्यांच्या ढीगातून बच्चूचा स्वेटर शोधू लागली.

बच्चू – मम्मी आपलं घर मोठं का नाही?

मम्मी – आपण मोठ्या घराचं भाडं देऊ शकत नाही म्हणून.

या दरम्यान मम्मीनं बच्चूचा स्वेटर शोधून काढला होता. तो बच्चूला देत ती म्हणाली,

’हे घे. घाल लवकर आणि बूट घालून पटकन तयार हो.’ तोवर मी दूध आणते.

बच्चूने आईचा पदर धरत म्हंटलं,

’मम्मी निखिल म्हणत होता, ‘तुझ्या आजोबांचं घर खूप मोठं आहे. तिकडे राहायला का नाही जात?

मम्मी – आपण तिथे जाऊ शकत नाही.

बच्चू- का मम्मी?

मम्मी – आजोबा आपल्यावर नाराज आहेत.

बच्चू – मग काय आपण त्या मोठ्या घरात कधीच जाऊ शकणार नाही.

मम्मी- जाऊ शकू.

बच्चू – कधी.?

मम्मी – आजोबा गेल्यानंतर.

मम्मी चिडून म्हणाली.

बच्चू – आजोबा कधी मरतील?

मम्मी – ईश्वराची इच्छा असेल तेव्हा…

बच्चू – मम्मी,  ईश्वर आपली प्रार्थना ऐकतो? … खूप वेळ विचार करून बच्चूने मम्मीला प्रश्न विचारला. 

मम्मी – होय. आता आपली बडबड बंद कर आणि झटकन दूध पिऊन टाक. मी बोर्न्विटा घालून ठेवलय.

पण बच्चू काही दूध प्यायला गेला नाही. मम्मीच्या लक्षात येताच ती त्याला शोधू लागली.

‘अरे, कुठे गेलास तू? बसची वेळ झालीय आणि हा मुलगा कुठे गायब झाला कुणास ठाऊक?’

त्याला शोधत शोधत त्याची मम्मी समोरच्या खोलीत ठेवलेल्या आरशाच्या कपाटाकडे गेली. तिने पाहिलं तर, बच्चू देवाच्या तसबीरीसमोर हात जोडून उभा होता. त्याने डोळे बंद केले होते आणि हात जोडून तो उभा होतं. मम्मी चकित झाली आणि म्हणाली, ‘अरे, तू काय करतोयस?’

बच्चू म्हणाला, ‘मम्मी, मी देवाला सांगितलं, ‘आम्हाला आजोबांचं घर नको. आमचा घर खूप मोठं आहे.’

 

मूळ हिंदी  कथा – ‘तरजीह’  मूळ लेखक – भगवान वैद्य `प्रखर’

अनुवाद –  श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ प्रतिभावंत☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रिया आपटे ☆

? वाचताना वेचलेले ?

☆ प्रतिभावंत☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रिया आपटे ☆

सोपं नसतं प्रतिभावंत स्त्रीवर

प्रेम करणं…

कारण तिला पसंत नसते जी हुजुरी ;

झुकत नसते ती कधी .. जोवर असत नाही नात्यांमध्ये प्रेमाची भावना ;

तुमच्या प्रत्येक हां ला हां आणि ना ला ना म्हणणे तिला मान्य नसतं..

कारण ती शिकलेलीच नसते नकली धाग्यात नाती गुंफणे ;

तिला ठाऊक नसते सोंगाढोंगाच्या

पाकात बुडवून आपले म्हणणे मान्य

करवून घेणे;

तिला तर ठाऊक असते बेधडक

खरे बोलत जाणे;

फालतू चर्चेत पडणे तिच्या स्वभावात बसत नाही;

मात्र तिला ठाऊक असते तर्कशुध्दपणे आपला विचार कसा मांडायचा ते;

ती वेळोवेळी दागदागिने

कपडेलत्ते यांची कोणाकडे मागणी नाही करत ;

ती तर सावरत असते स्वतःला.. आपल्या आत्मविश्वासाने,

सजवत असते आपले व्यक्तिमत्व ती

निरागस स्मितहास्याने ;

तुमच्या चूकांविषयी ती तुम्हांला

अवश्य बोलणार..

पण अडचणीच्या काळात तुम्हाला सांभाळून पण घेणार;

तिला तिची गृहकर्तव्ये नक्की माहित आहेत..

तसेच आपल्या स्वप्नांना पूर्ण करणेदेखील….

 

तिला जमत नाही कुठल्याही निरर्थक गोष्टींना मानणे;

पौरुषापुढे ती नतमस्तक नाही होत,

झुकते जरुर पण ते तुमच्या निःस्वार्थ प्रेमापुढे..

आणि या प्रेमासाठी आपलं सर्वस्व

उधळून देऊ शकते……

धैर्य असेल निभावण्याचे तर आणि तेव्हाच अशा स्त्रीवर प्रेम करावे..

कारण कोसळत असते आतून ती दगाफटका नि कपटाने,

पुरुषी अहंकाराने,

जी पुन्हा जोडली जाऊ शकत नाही

कुठल्याही प्रेमाखातर….!

पोलंड च्या प्रसिध्द कवयित्री डोमिनैर यांची ही कविता आहे…

संग्राहिका : सुश्री प्रिया आपटे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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