मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ आई वडिलांचे आई वडील होता आले पाहिजे ! ☆ प्रस्तुति – सुश्री उषा आपटे ☆

? वाचताना वेचलेले ?

☆ आई वडिलांचे आई वडील होता आले पाहिजे ! ☆ प्रस्तुति – सुश्री उषा आपटे ☆

एक दिवस येतो आणि दोघांपैकी एकाला घेऊन जातो 

जो जातो तो सुटतो, परीक्षा असते मागे राहणाऱ्याची

कोण अगोदर जाणार ? कोण नंतर जाणार हे तर भगवंतालाच माहीत

जो मागे रहातो त्याला आठवणी येणं, अश्रू येणं हे अगदी स्वाभाविक असतं !

आता प्रश्न असा असतो की ही आसवं हे रडणं थांबवायचं कुणी ?

मागे राहिलेल्या आईला किंवा वडिलांना कुणी जवळ घ्यायचं ?

पाठीवरून हात कुणी फिरवायचा ?

निश्चितपणे ही जबाबदारी असते मुलांची, मुलींची, सुनांची….

 

थोडक्यात काय तर

दोघांपैकी एकजण गेल्यानंतर

मुलामुलींनाच आपल्या आई वडिलांचे आईवडिल होता आलं पाहिजे!

 

लक्षात ठेवा लहानपणी आई वडिलांनी नेहमी अश्रू पुसलेले असतात

आजारपणात अनेक रात्री जागून काढलेल्या असतात

स्वतः उपाशी राहून, काहीबाही खाऊन आपल्याला आवडीचे घास भरवलेले असतात

परवडत नसलेली खेळणी आणि आवडीचे कपडे घेतलेले असतात.

 

म्हणून आता ही आपली जबाबदारी असते, त्यांच्या सारखच निस्वार्थ प्रेम करण्याची

असं झालं तरच ते आणखी जास्त आयुष्य समाधानाने जगू शकतील नाहीतर ” तो माणूस म्हणजे वडील ” किंवा ” ती स्त्री म्हणजे आई ” तुटून जाऊ शकते , कोलमडून पडू शकते !

आणि ही जवाबदारी फक्त मुलं , मुली आणि सुना यांचीच असते असे नाही तर ती जबाबदारी प्रत्येक नातेवाईकाची , परिचिताची , मित्र मैत्रिणींची …….सर्वांची असते !

फक्त छत , जेवणखाणं आणि सुविधा देऊन ही जबाबदारी संपत नाही तर अशा व्यक्तींना आपल्याला वेळ आणि प्रेम द्यावेच लागेल तरंच ही माणसं जगू शकतील !

आयुष्याचा जोडीदार गमावणं म्हणजे नेमकं काय ? हे दुःख शब्दांच्या आणि अश्रूंच्या खूप खूप पलीकडचं असतं ……म्हणून अशा व्यक्तींना समजून घ्या !

केवळ माया , प्रेम आणि आपुलकीचे दोन गोड शब्द एवढीच त्यांची अपेक्षा असते ती जरूर पूर्ण करा त्यांच्या जागी आपण आहोत अशी कल्पना करा आणि त्यांना वेळ द्या !

उद्या हा प्रसंग प्रत्येकावर येणार आहे याची जाणीव ठेवून नेहमी सर्वांशी प्रेमाने,मायेने आणि आपुलकीने वागा !

 

🙏विचारधारा आवडली तर नक्कीच पुढे पाठवा🙏

प्रस्तुती – सुश्री उषा आपटे

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ पुरणपोळी… ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले

? इंद्रधनुष्य ?

☆ पुरणपोळी… ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले  ☆ 

शाळेत असताना बाईंनी शिकवलेली वॄत्ते आठवा…..

एखाद्याचा “पुरणपोळी” या विषयावर किती अभ्यास असावा, त्याला “पुरण” किती आवडत असावं, त्याचा उत्तम नमुना ….

 

इंद्रवज्रा:

चाहूल येता मनि श्रावणाची

होळी तथा आणखि वा सणाची

पोळीस लाटा पुरणा भरोनी

वाढा समस्ता अति आग्रहानी ||

 

भुजंगप्रयात:

सवे घेउनी डाळ गूळा समाने

शिजो घालिती दोनही त्या क्रमाने

धरी जातिकोशा वरी घासुनीते

सुगंधा करावे झणी आसमंते ||  (जातिकोश – जायफळ)

 

वसंततिलका

घोटा असे पुरण ते अति आदराने

घ्यावे पिळूनि अवघे मऊ कापडाने

पिळता फुटे गठुळ ते मऊसूत होते

पोळीमधे पसरते सगळीकडे ते ||

 

मालिनी

अतिव मधुर ऐसे पुरण घ्यावे कराते

हळू हळू वळू गोळे पारिला सारणाते

कणिक मळूनी घ्यावी सैलशी गोजिरी ती

कडक नच करावी राहुद्या तैलवंती

 

मंदाक्रांता:

घ्यावी पारी करतळ स्थळी अल्प लावोन पीठी

ठेवा गोळी अतिव कुतुके सारणाची मधे ती

बांधा चंबू दुमडुनि करे सारणा कैद ठेवा

पाटा ठायी पसरूनि पिठा लाटण्या सिद्ध ठेवा ||

 

पृथ्वी

करे धरुन चेंडुला अधिक दाब द्यावा बळे

पटा धरुन लाटण्या सुकर होतसे आगळे

समान फिरवा रुळा पसरि चर्पटी सुस्थळे

असे न करता पहा पुरण बाहरी ओघळे ||

 

शार्दूल विक्रिडित:

हाताने उचला झणि प्रतल ते गुंडाळुनी लाटण्या

उत्कालू हलके तसे उलटता खर्पूस ही भाजण्या

वाफा येत जशा उमाळत सवे सूवासही दर्वळे

नाका गंध मिळे सवेच उदरी क्षूधा त्वरे उत्फळे……!!

 

सर्व  मित्रं ,मैत्रिणींना होळीच्या खूप खूप शुभेच्छा! 🔥 होळी रे होळी पुरणाची पोळी😊

 

©️ डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 81 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 81 –  दोहे ✍

प्यार- प्यार की याद में, आकुल होता प्यार।

प्यार -प्यार की आंख से, ढुलक पढ़ा लो प्यार।।

 

शब्द नहीं मुख से कहे, सिसक रही है सांस ।

प्रेमिल अनुभूति यों, मिसरी की फांस।।

 

रेशम -रेशम तो कहा, हुई रेशमी शाम।

रेशम- रेशम सुन कहा, रेशम किसका नाम।।

 

किसे बताएं कौन अब, किसका क्या संबंध।

 हृदय बसे हो इस तरह, सुमन ज्यों सुमनों गंध।।

 

मन मोती यों चुन लिया, जैसे चुने मराल।

ह्रदय सम्हाला इस तरह, ज्यों पूजा का थाल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत #84 – “लम्बा बहुत सफर …” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “लम्बा बहुत सफर …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 84 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “लम्बा बहुत सफर”|| ☆

तल्ले फटे हुये जूतों के

लम्बा बहुत सफर।।

आखिर कहाँ- कहाँ

तक पसरा मेरा नया शहर।।

 

माथे से रिसने आ बैठी

धार पसीने की।

अटकी जैसे खरचे को

 तनख्वाह महीने की।

 

मोहरी  पर कीचड़ का

कब्ज़ा घुटनो चीकट  है।

देह काँपती  चलने में

ज्यों उखड़ी चौखट है।

 

औ’ किबाड़  सी छाती

काँपा करती है हरदम।

साँकल खुली अगर तो

बहने आतुर खडी नहर।।

 

मिला नहीं आटा 

अब तक केवल दो रोटी  का।

भूखा पेट दुख रहा

कल से  बेटी छोटी का।

 

समाचार में सुना सही था

मुफ्त अन्न बटना ।

राशन कार्ड बिना,

लावारिश को यह दुर्घटना।

 

नहीं अनाज दिला पाये

सारे प्रयास झूठे ।

सरकारों की तरह गई

यह जनजन उठी लहर ।।

 

मुझ पर नहीं सबूत कि

मैं अब तक भी हूँ जिन्दा ।

पटवारी प्रमाण को चाहे

होकर शर्मिन्दा ।

 

बिना प्रमाण नहीं जिन्दा

कर सकता पटवारी।

आखिर सरकारी बन्दा

होता है सरकारी ।

 

मैं चुपचाप उठा कर झोली

चला गया आगे ।

नहीं झेल पाया हूँ मैं

अब यह निर्दयी कहर।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 37 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा   श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये। 

? संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 37 ??

रामेश्वरम धाम-

तमिलनाडु के रामनाथपुरम जनपद में रामेश्वर धाम स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक  है। भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध के लिए लंका जाते समय  शिवलिंग की स्थापना की थी। रामेश्वरम धाम  बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से घिरा हुआ एक टापू है।

यह वही स्थान है जहाँ रामसेतु बना था। धनुष्कोडि से जाफना तक 48 किलोमीटर लम्बा यह सेतु था। नासा के सैटेलाइटों द्वारा खींची गई तस्वीरों में यह समुद्र के भीतर एक पतली रेखा के रूप में दिखाई देता है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी रामसेतु का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि  5 दिन में रामसेतु  तैयार हो गया था। वाल्मीकि रामायण में रामसेतु का वर्णन मिलता है जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और चौड़ाई दस योजन।

दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्।ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्।।

वाल्मीकि रामायण (6/22/76)

नल और नील नामक दो वानर सेनानी रामसेतु के मुख्य शिल्पी और वास्तुविद थे। किंवदंती है कि उन्होंने इसके निर्माण के लिये प्रयुक्त पत्थरों पर ‘श्रीराम’ लिखवाया था। जिस समुद्र को लांघना साक्षात श्रीराम के लिए कठिन था, वह रामनाम के पत्थरों से बने सेतु से साध्य हो गया। इसीलिए लोकोक्ति प्रचलित हुई कि ‘राम से बड़ा राम का नाम।’ व्यक्ति नहीं गुणों की महत्ता का प्रतिपादन वही संस्कृति कर सकती है जो पार्थिव नहीं सूक्ष्म देखती हो।  

आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित श्रृंगेरीपीठ रामेश्वरम में है।

क्रमश: ….

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 26 ☆ जिनके लिए कोई फायर फायर नहीं, कोई वॉल वॉल नहीं ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  “जिनके लिए कोई फायर फायर नहीं, कोई वॉल वॉल नहीं”। इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ शेष कुशल # 26 ☆

☆ व्यंग्य – “जिनके लिए कोई फायर फायर नहीं, कोई वॉल वॉल नहीं” – शांतिलाल जैन ☆ 

प्रिय पाठक,

मेरी कोशिश है कि आगे जो आप पढ़ने जा रहे हैं उसे व्यंग्य कहानी की तरह पढ़ें तो ये आपको सच्ची कहानी लगे और सत्यकथानुमा पढ़ें तो व्यंग्यसा लगे. तो कहानी में नायिका गुनगुना रही है – “जोगी (यूपी वाले नहीं), हम तो लुट गये तेरे प्यार में, जाने तुझको खबर कब होगी.” तभी एक आकाशवाणी होती है –

घबराओ मत चित्रे,  हमें खबर है. हम तुम्हें लुटने नहीं देंगे बल्कि करोड़ों लूट लेने का मंत्र सिखाएँगे.

नमन शिरोंमनीजी, परंतु आप वहाँ हिमालय में हैं और मैं मुंबई में. आप निराकार, अदृश्य, अलौकिक, सिद्ध पुरुष और मैं चराचर मिथ्याजगत में एक अबला नारी. आपसे कैसे बात करूँ ? हर बार तो आकाशवाणी से बात हो नहीं सकती ना!

बजरिये ई-मेल के. हम सागर तल की गहराईयों से लेकर हिमालय की ऊंची चोटियों तक कहीं से भी ई-मेल कर सकते हैं बालिके.

और नेटवर्क, कम्प्यूटर, पॉवर?

हमारी शक्तियों से कुछ भी बाहर नहीं है सुदर्शने.

धन्य हैं आप प्रभु, आपका मेल आई-डी प्लीज़ ?

सिम्पल, तीन वेदों के नाम से मिलकर बना है हमारा आई-डी, तुम [email protected] पर मेल कर सकती हो सुंदरी.

मगर एनएसई के सर्वर में तो फायरवॉल लगी है.

योगियों के लिए कोई फायर फायर नहीं है, कोई वॉल वॉल नहीं है मनोहारिणी.

शिरोंमनीजी, मेल तो अँग्रेजी में…और आप….,आई मीन कैसे !!! मैं समझ नहीं पा रही.

योगी भाषा बोली से बहुत ऊपर होते हैं सारिके. वे किसी भी भाषा में लिख-बोल-पढ़ सकते हैं. इन दिनों हम अँग्रेजी में लिखते हैं, तमिल में भक्तिगीत सुनते हैं.

वहाँ, हिमालय में शिरोंमनीजी ??

क्यूँ नहीं, हम अपनी सिद्धियों से गानों की रेडियो तरंगें कैच कर लेते हैं. आनंद की अनुभूति के लिए मैं तुम्हें मकरा-कुंडला गीत भेज रहा हूँ. बहरहाल, आज तुम बहुत नयनाभिराम लग रही हो, वेरी चार्मिंग. लंबे, घने, काले केश हैं तुम्हारे, इनका विन्यास रोजाना अलग अलग डिजाईन से किया करो रूपमति.

आप मुझे देख पा रहे हैं !!!

हम त्रिकालदर्शी हैं सुकन्या, हम हर समय, हर जगह, हर कुछ देख सकते हैं. हम देख पा रहे हैं लक्ष्मी आने के लिए तुम्हारे माऊस पर सवार होकर तैयार खड़ी है, जस्ट क्लिक इट. एनएसई के सर्वर लॉगिन में कुछेक सेकेंड्स आगे-पीछे एक्सेस देने से विपुल धन-प्राप्ति का योग बन रहा है कंचने.

संशय से मन बहुत घबरा रहा है शिरोंमनी. बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को पता चल गया तो.

घबराओ मत तनुजे, धन प्राप्ति केक की तरह होनी चाहिए. काटना-बांटना साथ साथ चले. मुँह में केक भरा हो तो खोलना-बोलना मुश्किल होता है. लायन्स शेयर तुम्हारा होगा रमणे. केक हम सेशेल्स के खूबसूरत समंदर किनारे तैरते हुवे एंजॉय करेंगे. आनंद में डूबना ध्यान की परम अवस्था है कमनिया.

और नियामक संस्थान भी तो हैं ?

उनको केक का इतना बड़ा टुकड़ा खिलाना कि चार-छह साल तो मुँह बंद ही रहे. इस बीच अहम सबूत भस्म कर देने का काम हम पर छोड़ देना.

महाराज एक बात और ?

अब और प्रश्न करके समय खराब मत करो सुंदरी. उठो, जागो, धन ग्रहण करो, को-लोकेशन सर्वर्स में प्रिफ्रेंशियल एक्सेस देने का समय आ गया है. मेरा आशीर्वाद और रुहानी ताकत तुम्हारे साथ है. और हाँ,. हर्षद मेहता, केतन पारेख जैसी सुर्खियां न बनें इसीलिए केक का एक हिस्सा खबरचियों के लिए रिझर्व रखना, ये नब्बे-दो हज़ार का दशक नहीं है. तुम्हारे लिए थोड़ा सा कठिन समय दो हज़ार बाईस में आएगा परंतु जल्द गुजर जाएगा. अपरिमित धन-सुख के मुक़ाबिल इतना कष्ट सहनीय है, चित्रे.

सफलता तुम्हारी राह देख रही है सारिके – स्कैम स्टार भवः

-x-x-x-

तो प्रिय पाठक, जोगी की कहानी पर सेबी ने एतबार कर लिया है, और आपने ?

-x-x-x-

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-वृत्तांत ☆ काशी चली किंगस्टन! – भाग – 12 ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी ☆

डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी

(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक  के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो  हिंदी  तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं।  आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती  भाषाओं में अनुवाद हो  चुकाहै। आप कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।

 ☆ यात्रा-वृत्तांत ☆ धारावाहिक उपन्यास – काशी चली किंगस्टन! – भाग – 12 ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी

(हमें  प्रसन्नता है कि हम आदरणीय डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी के अत्यंत रोचक यात्रा-वृत्तांत – “काशी चली किंगस्टन !” को धारावाहिक उपन्यास के रूप में अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास कर रहे हैं। कृपया आत्मसात कीजिये।)

चल घर राही आपुनो

कार हाईवे पर अपनी गति से चल रही है। स्मृति कानों में वशीर बद्र  के शेर को लगी गुनगुनानेःः ‘न जी भर के देखा, न कुछ बात की। बड़ी आरजू थी मुलाकात की।’ तो नायाग्रा, अलविदा।

कार में चलते चलते यह भी बता दें कि नायाग्रा की चुनौती भी अजीब है। उसे देखकर लोग केवल उसके दीवाने ही नहीं हो जाते, बल्कि कइयों ने उस पर छलाँग लगाने की कोशिश की या रस्सी पर चलकर उसे पार करने का प्रयास किया। वही शमा-परवाने की दास्तां। सबसे पहले मिचिगन की एक स्कूल टीचर एन्नी एडसन टेलर ने 63 साल की उम्र में एक बैरेल में खुद को बंद करके नायाग्रा के ऊपर से नीचे छलाँग लगायी थी। दिन था 24 अक्टूबर, 1901। यह तो यीशु की किरपा समझिए कि उन्हें कुछ खरौंच और हल्की चोट से अधिक कुछ न हुआ। वह मर्दानी बच गयी। उनके पहले 19 अक्टूबर को एक बेचारी बिल्ली इयागारा को इसी तरह बक्से में बंद करके ऊपर से नीचे झरने में फेंका गया। वह भी बच गयी या शहीद हो गयी – यह बात विवादास्पद है। सरफिरे इंसानों की करामात तो जरा देखिए।

बिना किसी सहायता के छलाँग लगा कर जिन्दा बच जाने वाला पहला इन्सान था वही मिचिगन का किर्क जोन्स कैन्टॉन। 20.10.2003 को हार्स शू फॉल से झरने की धारा में वह कूद गया था।

अब यह हाईवे वैसे तो छह लेन का है ही। मगर डिवाइडर की ओर सबसे बायें है एच् ओ वी यानी हाई अॅक्युपेन्सि लेन। अर्थात दो से अधिक यात्री लेकर जो कार जा रही है, केवल वही इस लेन से जायें। टोरंटो में पैन अमेरिकन गेम्स चलने के कारण टोरंटो के पास यह सूचना जारी हो गई। उद्देश्य है कि सब कार पुल करके चलायें। एक ही कार में कई सवारी, रहे सलामत दोस्ती हमारी !  

दोनों तरफ पेड़, लंबी लंबी घास – हरे रंग का समारोह। बीच से दौड़ती चमकती काली सड़क। उस पर लेन को बाँटने वाले सफेद दाग भी महावर की तरह चमक रहे हैं। कहीं कहीं सड़क पर इस छोर से उस छोर तक ब्रिज। वैसे तो टोरंटो डाउन टाउन बीस तीस कि.मी. दूर है यहाँ से। मगर कितनी सारी बहुमंजिली इमारतें। चालीस पचास तल्ले या उससे अधिक भी। सांय सांय भागती कारें। दिन में भी सबकी हेड लाइट जल रही हैं। काँहे भाई ? पूछने पर रुपाई फरमाते हैं, ‘गाड़ी स्टार्ट करते ही हेड लाइट जल उठती है।’

रास्ते में जंगलों के पास बाड़े की शक्ल में ऊँची साउंडप्रुफ दीवार खड़ी है। ताकि वाहनों की पों पों से वनवासियों की शांति में कोई व्याघात न पहुँचे। जंगल के चैन में कोई खलल न पड़े। वाह रे संवेदना!

कहीं कहीं पेड़ों के पीछे से झाँकते कॉटेज। यहाँ किसी मकान में छत नहीं होती। ऊपर सिर्फ ढलान होती है।

धरती पर भी नाव चलती है क्या? जी हाँ। किसी कार के ऊपर, तो किसी कार के पीछे ट्रॉली पर सवार है नौका। किंग्सटन में तो लोग कैनो या छोटी नाव कार के ऊपर चढ़ा कर खूब चलते हैं। वहाँ तो घर के सामने भी कार की तरह नाव रखी होती है।

इतने में भुर्र भुर्र …..बगल में श्रीमतीजी की नाक सुर साधना करने लगी है। रुपाई ने गाड़ी रोकने के लिए कहा,‘ जरा माँ से पूछ लो।’

मैं ने कहा,‘फिलहाल तो वो कुंभकर्ण की मौसी बनी बैठी हैं।’

‘नहीं। मैं कहाँ सो रही हूँ ?’तुरंत नारी शक्ति का प्रतिवाद।

‘बिलकुल नहीं।’मेरा उवाच,‘वो कहाँ सो रही हैं? उनकी नाक तो कीर्तन कर रही है, बस। हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे!’   

रास्ते में पोर्ट होप ऑनरूट में गाड़ी थमी। रास्ते में जामाता बार बार पूछ रहा था, ‘पापा को वॉश रूम तो नहीं जाना है ? तो कहीं रुक जाऊँ ?’

कहीं का मतलब रास्ते के किनारे नहीं, भाई। क्या मुझे जेल भिजवाना है? रुपाई किसी अॅानरूट पर रोकने की बात कर रहा है।

मैं रास्ते भर ना ना करता रहा। कोई जरूरत नहीं है। अगला ऑनरूट कितनी दूर है? वगैरह। मगर उसने जब सचमुच एक ऑनरूट रेस्तोराँ पर रोका तो लगा सीट बेल्ट तोड़ कर निकल भागूँ। चरमोत्कर्ष पर थी मेरी व्याकुलता। भार्या उबलती रही,‘बेचारा तो बार बार पूछ रहा था। तब बहुत शरीफ बन रहे थे। छिः। बाहर निकल कर कोई ऐसा करता है भला ?’

अरे ससुर सुता, तुम क्या जानो मर्दों को किस तरह ‘पौरूष-कर’ यानी प्रोस्टेट का टैक्स चुकाना पड़ता है ? हाँ, तो सीट बेल्ट लगाना यहाँ जरूरी है (शहरे बनारस में उसे कउन माई का लाल लगाता है?), मगर ऐसी आपात स्थिति उत्पन्न होने पर बड़ी मुसीबत होती है। लगता है सारे जंजीरों को तोड़ कर बाहर निकल पड़ूँ ……..

 पता नहीं क्यों पहले से उतनी ताकीद महसूस नहीं कर रहा था। मगर कार पार्क करते करते मुझे लगा मैं दरवाजा खोलकर छलाँग लगा लूँ। उतरते ही मैं दौड़ा वाशरूम की तरफ। भार्या लगी डाँटने,‘ तब से रुपाई पूछ रहा है कि बीच में कहीं रोक लूँ, तब नहीं कह सकते थे? यह क्या बात है ?’

रास्ते के और कुछ दृश्यों का अवलोकन करें –

हम लोग करीब तीन सौ कि.मी. से अधिक हाईवे पर चल चुके हैं। न जाते समय, न आते समय एक भी दुर्घटनाग्रस्त वाहन नजर आया। ऐसे तो यहाँ वैसे एक्सिडेंट्स होते नहीं हैं, पर ज्यों होता है, तुरंत लोग उसकी पूरी व्यवस्था कर लेते हैं। घायलों को कराहने के लिए भगवान भरोसे छोड़ नहीं दिया जाता। बाकी लोगों को डराने के लिए कार की अस्थि को वहीं छोड़ नहीं दी जाती। और बनारस से इलाहाबाद या रेनुसागर ही चले जाइये न, रास्ते में ऐसे ऐसे रोंगटे खड़े करनेवाले दृश्य होंगे कि लगता है कार वार छोड़ कर भाग कर वापस घर पहुँच जाऊँ।

चलते चलते जरा सर्वाधिक प्रधान मंत्रिओं को चुन कर भेजने वाले ऊँचे प्रदेश की बदहाल सड़कों के बारे में अमर उजाला(18.9.15.) की सूचना देखिए :-यातायात नियमों की अवहेलना से नहीं, बल्कि सड़कों की खराब बनावट और गड्ढे के कारण पिछले वर्ष देश में 11.398 से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं। इनमें सर्वाधिक हमारे प्रदेश की ‘मौत की राहों‘ पर – 4.455।

बगल से एक भारी भरकम गाड़ी में प्लेन का पंख लाद कर ले जा रहे हैं। उसके आगे पीछे दो एसकर्ट गाड़ी भी चल रही हैं,‘साहबजान, मेहरबान, होशियार सावधान! इस लेन में कत्तई न आयें। वरना -!’

हमरी न मानो सईयां, सिपहिया से पूछो ……….

किंग्सटन लौटते ही हम तीनों को ऊपर पहुँचा कर रुपाई बिन चाय पिये दौड़ा कार वापस करने, वरना एक और दिन की दक्षिणा लग जायेगी। लिफ्ट की दीवार पर मैं ने पहले भी ख्याल किया था कि लिखा है – भार वाहन की अधिकतम क्षमता 907 के.जी. या दस आदमियों के लिए। यानी यहाँ सरकारी हिसाब से लोगों के औसत वजन नब्बे के.जी. होता होगा। फिर भी राह चलते यहाँ कोई किसी की ओर तिरछी निगाह से देखता तक नहीं,‘कौने चक्की का आटा खाला?’ वजनदार महोदय एवं महोदया तो बहुत दृश्यमान होते हैं। चाहे राजमार्ग पर, चाहे मॉल में।

और एक सत्य कथा सुन लीजिए। (अमर उजाला. 5.9.15. से) एक वजनदार दम्पति की कहानी। दोनों की शादी के समय स्टीव का वजन 203 के.जी. रहा। और दुलहिन का 152। वे ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते थे। शादी के स्टेज से तो स्टीव गिर भी गया था। फिर भी दोनों की कोशिशे रंग लाईं। महीनों वर्जिश के बाद स्टीव का वजन 76 के.जी. कम हुआ, और मिशेल का 63 केजी.। हे वर, हे वधू, तुम दोनों को हमारी शुभ कामनायें ! तहे दिल से। तुम्हारा वजन बेशक कम हो, पर तुम्हारी मोहब्बत वजनदार हो ! मे गॉड हेल्प यू माई फ्रेंडस्!

© डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधरी 

संपर्क:  सी, 26/35-40. रामकटोरा, वाराणसी . 221001. मो. (0) 9455168359, (0) 9140214489 दूरभाष- (0542) 2204504.

ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संसमरण # 130 ☆ परसाई के रुप राम ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अविस्मरणीय संस्मरण “परसाई के रुप राम ”।)  

☆ संस्मरण  # 130 ☆ परसाई के रुप राम ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जबलपुर के बस स्टैंड के बाहर पवार होटल के बाजू में बड़ी पुरानी पान की दुकान है।

रैकवार समाज के प्रदेश अध्यक्ष “रूप राम” मुस्कुराहट के साथ पान लगाकर परसाई जी को पान खिलाते थे। परसाई जी का लकड़ी की बैंच में वहां दरबार लगता था। इस अड्डे में बड़े बड़े साहित्यकार पत्रकार इकठ्ठे होते थे साथ में पाटन वाले चिरुव महराज भी बैठते। वही चिरुव महराज जो जवाहरलाल नेहरू के विरुद्ध चुनाव लड़ते थे। बाजू में उनकी चाय की दुकान थी। मस्त मौला थे।

आज उस पान की दुकान में पान खाते हुए परसाई याद आये, रुप राम याद आये और चिरुव महराज याद आये। पान दुकान में रुप राम की तस्वीर लगी थी, परसाई जी रुप राम रैकवार को बहुत चाहते थे। उनकी कई रचनाओं में पान की दुकान, रुप राम और चिरुव महराज का जिक्र आया है।

अब सब बदल गया है। बस स्टैंड उठकर दूर दीनदयाल चौक के पास चला गया। परसाई नहीं रहे और नहीं रहे रुप राम और चिरुव महराज…। पान की दुकान चल रही है रुप राम का नाती बैठता है। बाजू में पुलिस चौकी चल रही है। पवार होटल भी चल रही है। चिरुव महराज की चाय की होटल बहुत पहले बंद हो गई थी एवं वो पुराने जमाने का बंद किवाड़ और सांकल भी वहीं है और रुप राम तस्वीर से पान खाने वालों को देखते रहते हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #74 ☆ # बचपन # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# बचपन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 74 ☆

☆ # बचपन # ☆ 

मै और मेरा पोता

जो चार बरस का है छोटा

जब बगीचे में घूमते हैं

रंग बिरंगी चिड़ियों को देख

मन ही मन झूमते हैं

जब वो मुझसे

बाल सुलभ प्रश्न

पूछता है

तब मैं कुछ प्रश्नों के उत्तर

दे पाता हूं।

कुछ का उत्तर

मुझे भी नहीं सूझता है,

तब मैं उसे चाकलेट खिलाता हूँ

और चुप हो जाता हूँ।

 

उसे देख मुझे अपने

बचपन के दिन

याद आते हैं

मानस पटल पर

वो दृश्य लहराते हैं

वो गांव का छोटा सा

मिट्टी का घर

नीम के पेड़ों की छाया

रहती दिनभर

वो घर के पेड़ों के स्वादिष्ट जाम

वो ललचाते रसभरे आम

वो जामुन काली काली

निंबूओं की झुकी हुई डाली

वो मीठे मीठे बेर

सुबह सुबह लगते थे ढेर

गुलाब और चमेली के

फुलों की सुगंध

खुशबू लिए बहता

पवन मंद मंद

हमें खेलकूद की

पूरी आजादी थी

छुपने के लिए

कभी मां की गोद

तो कभी दादी थी।

 

और अब-

मेरा पोता नींद से

उठ भी नहीं पाता है

पर रोज नर्सरी में

जाता है

उसके सेहत की

हालत खस्ता है

पीठ पर उसके

बड़ा सा बस्ता है

खेल कूद उससे

छूट गया है

जैसे बचपन

उससे रूठ गया है

शिक्षा के व्यावसायिकरण का

यह एक खेल है

मासूम बच्चों के लिए

तो यह एक जेल है

क्या हम बच्चों के चेहरों पर

नैसर्गिक मुस्कान ला पाएंगे ?

या यह मासूम फूल

यूँ ही मुरझाते जाएंगे ?/

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (1 – 5) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

सीता का परित्याग कर राम रहे महिपाल।

सागर वेषिृत धरा का ही बस रखा खयाल।।1।।

 

लवणासुर से युद्ध में देख बड़े उत्पात।

यमुनातट वासी मुनि आये राम के पास।।2।।

 

रक्षक राजा राम थे, अतः था बड़ा सुयोग।

मुनि रक्षक बिन शांति से करते मंत्र-प्रयोग।।3।।

 

यज्ञ विध्न के नाश हित किया राम ने ध्यान।

धर्म सुरक्षा हेतु ही आते हैं भगवान।।4।।

 

लवणासुर की मृत्यु का प्रभु को दिया उपाय।

शूल-हीन हो बाण जब उस को मारा जाय।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares