श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  “जिनके लिए कोई फायर फायर नहीं, कोई वॉल वॉल नहीं”। इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ शेष कुशल # 26 ☆

☆ व्यंग्य – “जिनके लिए कोई फायर फायर नहीं, कोई वॉल वॉल नहीं” – शांतिलाल जैन ☆ 

प्रिय पाठक,

मेरी कोशिश है कि आगे जो आप पढ़ने जा रहे हैं उसे व्यंग्य कहानी की तरह पढ़ें तो ये आपको सच्ची कहानी लगे और सत्यकथानुमा पढ़ें तो व्यंग्यसा लगे. तो कहानी में नायिका गुनगुना रही है – “जोगी (यूपी वाले नहीं), हम तो लुट गये तेरे प्यार में, जाने तुझको खबर कब होगी.” तभी एक आकाशवाणी होती है –

घबराओ मत चित्रे,  हमें खबर है. हम तुम्हें लुटने नहीं देंगे बल्कि करोड़ों लूट लेने का मंत्र सिखाएँगे.

नमन शिरोंमनीजी, परंतु आप वहाँ हिमालय में हैं और मैं मुंबई में. आप निराकार, अदृश्य, अलौकिक, सिद्ध पुरुष और मैं चराचर मिथ्याजगत में एक अबला नारी. आपसे कैसे बात करूँ ? हर बार तो आकाशवाणी से बात हो नहीं सकती ना!

बजरिये ई-मेल के. हम सागर तल की गहराईयों से लेकर हिमालय की ऊंची चोटियों तक कहीं से भी ई-मेल कर सकते हैं बालिके.

और नेटवर्क, कम्प्यूटर, पॉवर?

हमारी शक्तियों से कुछ भी बाहर नहीं है सुदर्शने.

धन्य हैं आप प्रभु, आपका मेल आई-डी प्लीज़ ?

सिम्पल, तीन वेदों के नाम से मिलकर बना है हमारा आई-डी, तुम [email protected] पर मेल कर सकती हो सुंदरी.

मगर एनएसई के सर्वर में तो फायरवॉल लगी है.

योगियों के लिए कोई फायर फायर नहीं है, कोई वॉल वॉल नहीं है मनोहारिणी.

शिरोंमनीजी, मेल तो अँग्रेजी में…और आप….,आई मीन कैसे !!! मैं समझ नहीं पा रही.

योगी भाषा बोली से बहुत ऊपर होते हैं सारिके. वे किसी भी भाषा में लिख-बोल-पढ़ सकते हैं. इन दिनों हम अँग्रेजी में लिखते हैं, तमिल में भक्तिगीत सुनते हैं.

वहाँ, हिमालय में शिरोंमनीजी ??

क्यूँ नहीं, हम अपनी सिद्धियों से गानों की रेडियो तरंगें कैच कर लेते हैं. आनंद की अनुभूति के लिए मैं तुम्हें मकरा-कुंडला गीत भेज रहा हूँ. बहरहाल, आज तुम बहुत नयनाभिराम लग रही हो, वेरी चार्मिंग. लंबे, घने, काले केश हैं तुम्हारे, इनका विन्यास रोजाना अलग अलग डिजाईन से किया करो रूपमति.

आप मुझे देख पा रहे हैं !!!

हम त्रिकालदर्शी हैं सुकन्या, हम हर समय, हर जगह, हर कुछ देख सकते हैं. हम देख पा रहे हैं लक्ष्मी आने के लिए तुम्हारे माऊस पर सवार होकर तैयार खड़ी है, जस्ट क्लिक इट. एनएसई के सर्वर लॉगिन में कुछेक सेकेंड्स आगे-पीछे एक्सेस देने से विपुल धन-प्राप्ति का योग बन रहा है कंचने.

संशय से मन बहुत घबरा रहा है शिरोंमनी. बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को पता चल गया तो.

घबराओ मत तनुजे, धन प्राप्ति केक की तरह होनी चाहिए. काटना-बांटना साथ साथ चले. मुँह में केक भरा हो तो खोलना-बोलना मुश्किल होता है. लायन्स शेयर तुम्हारा होगा रमणे. केक हम सेशेल्स के खूबसूरत समंदर किनारे तैरते हुवे एंजॉय करेंगे. आनंद में डूबना ध्यान की परम अवस्था है कमनिया.

और नियामक संस्थान भी तो हैं ?

उनको केक का इतना बड़ा टुकड़ा खिलाना कि चार-छह साल तो मुँह बंद ही रहे. इस बीच अहम सबूत भस्म कर देने का काम हम पर छोड़ देना.

महाराज एक बात और ?

अब और प्रश्न करके समय खराब मत करो सुंदरी. उठो, जागो, धन ग्रहण करो, को-लोकेशन सर्वर्स में प्रिफ्रेंशियल एक्सेस देने का समय आ गया है. मेरा आशीर्वाद और रुहानी ताकत तुम्हारे साथ है. और हाँ,. हर्षद मेहता, केतन पारेख जैसी सुर्खियां न बनें इसीलिए केक का एक हिस्सा खबरचियों के लिए रिझर्व रखना, ये नब्बे-दो हज़ार का दशक नहीं है. तुम्हारे लिए थोड़ा सा कठिन समय दो हज़ार बाईस में आएगा परंतु जल्द गुजर जाएगा. अपरिमित धन-सुख के मुक़ाबिल इतना कष्ट सहनीय है, चित्रे.

सफलता तुम्हारी राह देख रही है सारिके – स्कैम स्टार भवः

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तो प्रिय पाठक, जोगी की कहानी पर सेबी ने एतबार कर लिया है, और आपने ?

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

बहुत ही सुन्दर व्यंग सर, बधाई