हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 175 ☆ सॉनेट – सैनिक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – सैनिक।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 175 ☆

☆ सॉनेट – सैनिक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सीमा मुझ प्रहरी को टेरे।

*

फल की चिंता करूँ न किंचित।

करूँ रक्त से धरती सिंचित।।

*

शौर्य-पराक्रम साथी मेरे।।

अरिदल जब-जब मुझको घेरे।

*

माटी में मैं उन्हें मिलाता।

दूध छठी का याद कराता।।

महाकाल के लगते फेरे।।

*

सैखों तारापुर हमीद हूँ।

होली क्रिसमस पर्व ईद हूँ।

वतन रहे, होता शहीद हूँ।।

*

जान हथेली पर ले चलता।

अरि-मर्दन के लिए मचलता।

काली-खप्पर खूब से भरता।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (26 फरवरी से 3 मार्च 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (26 फरवरी से 3 मार्च 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

सभी मित्रों को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार। आज मैं आप सभी से 26 फरवरी से 3 मार्च 2024 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के फाल्गुन कृष्ण पक्ष की द्वितीया से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करूंगा।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा सिंह राशि में रहेगा। 26 तारीख को 7:15 से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। 28 फरवरी को 6:40 सायं काल से तुला राशि में गोचर करेगा। 1 मार्च को 4:21 रात अंत से वृश्चिक राशि में पहुंच जाएगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य, बुध और शनि कुंभ राशि में रहेंगे। मंगल और शुक्र मकर राशि में गोचर करेंगे। गुरु मेष राशि में रहेगा तथा राहु मीन राशि में भ्रमण करेगा।

इस सप्ताह 26, 27, 29 फरवरी तथा 1 2 और 3 मार्च को विवाह मुहूर्त है। मुंडन, उपनयन और गृह प्रवेश का कोई मुहूर्त नहीं है। 26 फरवरी को गृहारंभ का, 29 फरवरी को अन्नप्राशन का तथा 26 और 29 फरवरी को नामकरण का मुहूर्त है। 3 मार्च को व्यापार मुहूर्त है।

पूरे सप्ताह में सर्वार्थ सिद्धि योग नहीं है।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवनसाथी के पेट में समस्या हो सकती है। अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। अगर आप व्यापार करना चाह रहे हैं तो इस सप्ताह आपके लिए अच्छा अवसर है। इस सप्ताह आपके पास धन आने की मात्रा में कमी होगी। संतान को लाभ होगा। दुर्घटना हो सकती है। 29 फरवरी और 1 मार्च आपके लिए आनंददायक है। दो और तीन मार्च को आप दुर्घटनाओं से बच सकते हैं। 26, 27 और 28 फरवरी को आपको सतर्क रहकर कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके खर्चे में वृद्धि होगी। गलत ढंग से धन आ सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति थोड़ी कमजोर हो सकती है। भाग्य आपका प्रबल रूप से साथ देगा। भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। संतान का आपको थोड़ा बहुत सहयोग प्राप्त हो सकता है। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी को थोड़ी सी मानसिक समस्या हो सकती है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिलने की उम्मीद कम रहेगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह कोई भी कार्य पूरी सावधानी के साथ करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की मात्रा में वृद्धि होगी। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपका प्रभाव अपने कार्यालय में बढ़ेगा। आपको अपने अधिकारियों से व्यर्थ में नहीं उलझना चाहिए। भाग्य से मिलने वाले लाभ में कमी होगी। दुर्घटनाओं से आपको सावधान रहना चाहिए। पिताजी के स्वास्थ्य में खराबी हो सकती है। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। संतान से आपको कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं होगी। छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ सकती है। इस सप्ताह 26, 27 और 28 फरवरी आपके लिए उत्तम है। दो और तीन मार्च को आपको अपने शत्रुओं से राहत मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर पीपल की सात बार परिक्रमा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। व्यापार उत्तम चलेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको ब्लड प्रेशर या डायबिटीज की बीमारी हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य थोड़ी समस्या है। भाग्य आपका साथ नहीं देगा। वर्तमान समय में आप पर शनि की अढ़ैया चल रही है। अढ़ैया की परेशानियों में कमी आएगी। इसके अलावा दुर्घटना हो सकती है। शासन के साथ संपर्क ठीक हो सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 29 फरवरी और 1 मार्च अनुकूल है। दो और तीन मार्च को आपके पुत्र को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। भाग्य आपका साथ देगा। व्यापार ठीक-ठाक चलेगा। शत्रु शांत हो जाएंगे। जीवनसाथी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। आपको नसों के संबंध में कोई बीमारी हो सकती है। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतें। इस सप्ताह आपके लिए 26, 27 और 28 को धन आने का योग है। दो और तीन मार्च को आपके सुख में कमी आ सकती है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मोती की माला धारण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु जीवनसाथी के स्वास्थ्य में समस्या आ सकती है। गुप्त शत्रु नुकसान कर सकते हैं। उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपके संतान की उन्नति हो सकती है। आपको अपनी संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपके खर्चों में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 26, 27 और 28 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। दो और तीन मार्च को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अत्यंत उत्तम है। आपके पास धन के आने की मात्रा में वृद्धि होगी। भाई बहनों के साथ ठीक-ठाक संबंध रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं होगा। शत्रु शांत रहेंगे। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। कार्यालय में आपकी स्थिति थोड़ी कमजोर हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 फरवरी और 1 मार्च शुभ और लाभदायक हैं। दो और तीन मार्च को आपके पास धन आ सकता है। 26, 27 और 28 फरवरी को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी का स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। परंतु माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। आपके संतान को इस सप्ताह कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके सुख में थोड़ी कमी आएगी। भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेंगे। इस समय आप शनि की अढ़ैया के प्रभाव में हैं। जिसके कारण आपको कई परेशानियां हो रही होंगी। उनमें कमी आएगी। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 26, 27 और 28 थोड़ा लाभदायक होगा। सप्ताह के बाकी सभी दिन आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने की मात्रा में वृद्धि होगी। आपके संतान को सुख प्राप्त होगा। संतान का आपको उत्तम सहयोग मिलेगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध होंगे। भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा। आपके पराक्रम में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 26, 27 और 28 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। दो और तीन तारीख को आपको कचहरी के कार्यों में लाभ प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

आपका स्वास्थ्य इस सप्ताह ठीक-ठाक रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। धन आने का योग है। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। दूर देश में की यात्रा हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध में दुराव आएगा। आप की आंख में कष्ट भी हो सकता है। आप पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। उसके प्रभाव में काफी कमी आएगी। जिसके कारण आपकी परेशानियां कम होगी। इस सप्ताह आपके लिए 29 फरवरी और 1 मार्च उत्तम है। दो और तीन मार्च को आपके पास धन आने का योग है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आप कचहरी के कार्यों में सफल हो सकते हैं। धन आने में बाधा है। भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेंगे। भाग्य साथ दे सकता है। इस समय आप पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। उसके बुरे प्रभाव में कमी आएगी। आपको कई मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। उनका ध्यान रखें। जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको पूरे सप्ताह सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिस्क नहीं लेना चाहिए। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक-ठाक ही रहेगी। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। आपके पेट में समस्या हो सकती है। इस समय आप पर शनि की साढ़ेसाती भी चल रही है। इस सप्ताह शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 26, 27 और 28 जनवरी उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शिव पंचाक्षर मंत्र का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इस पोस्ट के बारे में बतायें।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक: 

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ताळेबंद… ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

श्री सुहास सोहोनी

? कवितेचा उत्सव ?

😳 ताळेबंद 😀 ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

आयुष्याच्या ताळेबंदात

ॲसेटस् किती

नि लायबिलिटीज् किती

निरखुन पाह्यलं तेव्हा कळलं

कशी झाल्येय दारुण स्थिती …

 

ताळेबंद जुळतच नव्हता

दोन्ही बाजूत फरक होता

मालमत्तेच्या मूल्यापेक्षा

जबाबदाऱ्या जास्त होत्या …

 

पुण्यकर्मे पापकृत्ये

पुन:पुन्हा ताडून पाहिली

एकमेका छेद जाउनी

बाकी त्यांची शून्य राहिली …

 

डोके पिकले विचार करता

तोच बोलले कोणी काही

कसा जुळावा ताळेबंद

“अखेर शिल्लक” धरलीच नाही …

 

😨ओह्, अखेर शिल्लक !!!😳

 

झोळीत शिल्लक काय माझ्या

ज्याचे ओझे जड होते

आप्त स्वकीय मित्रांच्या ते

निस्सिम प्रेमाचे होते …

 

प्रेमाच्या निरपेक्ष भावना

फेड तयांची कशी करावी

बहुमोलाची ठेव जणू ही

जबाबदारी कां मानावी …

 

आनंदाच्या ऋणातून या

कधी न वाटे व्हावे मुक्त

“अखेर शिल्लक” वर्धित व्हावी

स्वकीय मित्रांच्या स्नेहात …

 

माथ्यावरती सदैव पेलिन

प्रेमाचे हे वैभव संचित

लाख लाख मोलाची ठेविन

“अखेर शिल्लक” या झोळीत …

© सुहास सोहोनी

दि. २२-२-२०२४

रत्नागिरी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ क्षणभर स्वतःसाठी ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

 

क्षणभर स्वतःसाठी ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट

सध्याचं प्रत्येकाचं जीवनमान हे खूप धकाधकीचे, घाईगडबडीचे झाले आहे.पर्यायाने ते कसल्यातरी तणावाचे पण झाले आहे.आपल्या नित्य दैनंदिन कामकाजात आपण खूप लोकांशी संवाद साधतो.त्या संवादातून, जवळीकेतून कधी मदतीच्या भावनेने आपली कामे इतरांकडून करुन घेतो वा आपण इतरांची कामे करुन देतो.हे सगळं आपण करतो खरं पण अजूनही आपल्याला पूर्णत्वाचा,संतोषाचा,  समाधानाचा कळसोध्याय हा पूर्णच झाल्या नसल्याचे उमगते.आणि मग कारणं शोधतांना एक महत्वाचे कारण सापडते तो म्हणजे आपल्या आतील मनाचा आवाज ऐकण्याचा अभाव.आपले अंतर्मन नेहमी आपल्याला ज्या हव्याहव्याशा वाटणा-या गोष्टी सांगतं त्या खुणावणा-या गोष्टींकडं आपण कधी गरज म्हणून तर कधी संकोच म्हणून, कधी आडमुठेपणा तर कधी संस्कारांचा पगडा म्हणून चक्क कानाडोळा करतो. ह्याचे परिणाम लगेच दिसतं नसले तरी मनावर खोल दूरगामी उमटतं असतात.त्यामुळे सगळं हातातच असून वाळू निसटल्यागतं सारखा गमावल्याचा भास होतो आणि हा भासच आपल्याला आनंदी राहण्यापासून वंचित ठेवत़ो.हा विचार करतांना ह्या मला सुचलेल्या काही ओळी खालीलप्रमाणे……… 

कधी कधी मज रहावे वाटते एकटे,

स्वतःच स्वतःशी बोलावे वाटते नीटसे,

डोकवावे वाटते कधी स्वतःच्याच अंतरी,

कधीतरी न दाबता खंत करावी मोकळी ।।।

*

श्वास घ्यावा मोकळा,दडपण हे संपवावे,

ऊत्तरायणातील दिवस हे मनासारखे जगावे,

सताड उघडोनी कवाडे,स्वातंत्र्याचे वारे प्यावे,

सल मनीचा तो काढून,मुक्तमनाने बागडावे।।।

*

सगळ्यांचा विचार करतांना फार न त्यात गुंतावे,

जखम मनीची ओळखून त्यावर हलकेच फुंकावे,

आपल्यांना साभाळतांना कधी स्वतःलाही जपावे,

नुसतेच झोकून देतांना,”मी”चे महत्व पण जाणावे।।

*

काय हवे हो नेमके मनी एकदातरी पुसावे,

इतरांसाठी जगतांना थोडे आपल्यासाठी पण जगावे,

सगळ्यांना देता देता आपुले न निसटू द्यावे,

झोकून देतांनाही क्षणभर स्वतःसाठी थबकावे

झोकून देतांनाही क्षणभर स्वतःसाठी थबकावे।।

*

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ एस ए ग्रुप… – भाग-३ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर ☆

श्री प्रदीप केळुस्कर

?जीवनरंग ?

☆ एस ए ग्रुप … – भाग-३ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर

(संगीता आपल्या मावसभावाच्या संपर्कात होती, ऍम्ब्युलन्स हॉस्पिटलमध्ये पोचायच्या आधी प्रणिताचा बेड तयार होता.) – इथून पुढे — 

ॲम्बुलन्स हॉस्पिटलजवळ आली. लगेच मनीषने सर्व कागदपत्र हॉस्पिटलच्या ऑफिसमध्ये नेऊन दिले. दोन मिनिटात प्रणिता स्पेशल रूममध्ये ऍडमिट झाली. मग भराभर सर्व टेस्ट घेतल्या गेल्या. ऑक्सीजन सिलेंडर जोडला गेला, अंगात भराभर इंजेक्शन दिली गेली. सलाईन मधून औषधं दिली गेली.

रात्री दहाच्या सुमारास मनिषच्या मोबाईलवर प्रणिताच्या भावाचा फोन आला, मनीषने त्याला ज्युपिटर हॉस्पिटल जवळ बोलावले. तिचा भाऊ हॉस्पिटलकडे आला, त्याची व मनीषची ओळख झाली. मनीषने त्याला आपल्या एस ए ग्रुप मधील मंडळीची ओळख दिली.

भाऊ – कशी आहे तिची तब्येत? आणि कोठे अपघात झाला आणि कसा?

वंदना – तिचा अपघात झाला नाही, पण ती काल सकाळी फोन उचलेना तेव्हा मी तिच्या घरी गेले.  तेव्हा ती बेशुद्ध पडली होती. मी लगेच आमच्या ग्रुपवर ही बातमी कळवली आणि तिला काल दुपारी वाशीमधील सरकारी हॉस्पिटलमध्ये आणि मग सायंकाळी या हॉस्पिटलमध्ये ऍडमिट केले.

तिचा फेसबुक वर पाहिलेला फोटो आणि पोलिसांनी फोडलेले दार या सर्व गोष्टी तिच्या भावापासून लपविल्या.

भाऊ – मग डॉक्टरांचे काय म्हणणं आहे?

मनिष – सध्या आम्हाला कोणाला तिला भेटायला देत नाही आहेत, त्यामुळे डॉक्टरांचे म्हणणे एवढ्यात कळणार नाही. ती शुद्धीवर आली की सर्व काही कळेल. तिची आई येते आहे का?

भाऊ –हो, आरती माझ्या आई बाबांना घेऊन येते आहे. एवढ्यात पुण्यापर्यत आली आहे.

संगीता – तिचे बाबा पण येत आहेत का, बरं झालं .

तोपर्यंत प्रणिताच्या बाबांचा फोन भावाच्या मोबाईलवर आला. तिच्या भावाने आपण हॉस्पिटलजवळ पोहोचल्याचे सांगितले. तिची सर्व मित्रमंडळी म्हणजेच त्यांचा एस ए ग्रुप तिच्यासाठी धडपडत आहे, त्यामुळे तुम्ही सावकाश आनंदाने या असा निरोप दिला.

आत डॉक्टर्स प्रांणिताच्या ऑक्सिजन लेवलवर लक्ष ठेवून होते, ब्लडप्रेशर वर येण्यासाठी धडपडत होते.

बाहेर एस ए ग्रुपचे शंभराहून जास्त मेंबर्स चांगल्या बातमीची वाट पहात होते. तसेच प्रणिताची आई वडील येणार, त्याची वाट पहात होते.

पहाटे चार वाजता हॉस्पिटलकडून सांगण्यात आले की प्रणिताची ऑक्सिजन लेव्हल 90 पर्यंत आली आहे, ब्लडप्रेशर नॉर्मल होत आहे. एस ए ग्रुपच्या मेंबर्सनी आनंदाने जल्लोष केला. प्रणिताच्या भावाच्या डोळ्यात अश्रू आले. कोण कुठलीही अनोळखी मुले, नाटक सिनेमाच्या वेडापोटी इकडे जमा झाली आहेत, अजून पाय स्थिर नाहीत, आज काम आहे तर उद्या नाही अशी परिस्थिती, पण प्रेमाने एकमेकाला धरून राहिले आहेत 

पहाटे चार वाजता आरती प्रणिताच्या आई-बाबांना घेऊन हॉस्पिटल जवळ आली. प्रणिताचा भाऊ बाहेर होताच. काळजीत पडलेल्या तिच्या आई-बाबांना त्याने धीर दिला, तसेच तिची तब्येत संकटातून बाहेर पडल्याचे त्याने त्यांना सांगितले. ही सर्व मुलं प्रणिताची मित्रमंडळी, तिच्यासारखी नाटक सिनेमा मालिकाच्या वेडापायी घरदार सोडून या पट्ट्यात राहत आहेत. कधी जेवण मिळते कधी नाही. कधी काम असते कधी नसते. पण सर्वजण एका ग्रुपवर  मैत्री सांभाळतात. आज सकाळपासून हीच मंडळी प्रणिताच्या आजूबाजूला आहेत. या मंडळींना कळले की ती रूममध्ये बेशुद्ध पडली आहे. त्यावेळीपासून ही मुलं ती बरी होण्यासाठी धडपडत आहेत… प्रणिताच्या आईने सर्वाकडे प्रेमाने पाहिले, बाबा पण सदगदित झाले.  त्यांनी मनिषच्या खांद्यावर थोपटले.

एव्हडयात हॉस्पिटल मधून बातमी आली, प्रणिता शुद्धीवर आली आहे. एस ए ग्रुप ने आनंदोत्सव सुरू केला. सकाळी सहा वाजता प्रणिताच्या आईला तिला भेटायची परवानगी मिळाली. आईला बघतल्यावर प्रणिता पुन्हा रडू लागली. मग तिचे बाबा, भाऊ आत गेले. प्रणिताच्या लक्षात येत नव्हते, आपण कुठे आहोत? आजूबाजूला सलाईन, ऑक्सीजन मॉनिटर  दिसतो आहे, म्हणजे आपण हॉस्पिटलमध्ये असणार. मग आपल्याला इकडे कुणी आणले?

सकाळी नऊ वाजता डॉक्टरांची टीम तपासण्यासाठी आली. त्यांनी तिला तपासले आणि आता ती संकटातून बाहेर आल्याचे तिच्या आई-बाबांना सांगितले. बाबांनी डॉक्टरांना विचारले .. 

“पण ती बेशुद्ध का झाली?

डॉक्टर – तिला ड्रग्सचे व्यसन आहे, ड्रग्सचा जास्त डोस तिच्या शरीरात गेला होता, आता ड्रग्सपासून तिला लांब ठेवायला हवे. ती वेळेत या हॉस्पिटलमध्ये पोचली म्हणून.. अन्यथा तिचा कालच अंत झाला असता.

प्रणिताचे आई-बाबा सुन्न झाले. काय आपल्या या मुलीची परिस्थिती? प्रणिताच्या बाबांच्या मनात आले, आपण सुद्धा तिच्या या परिस्थितीला जबाबदार आहोत. तिची आवड निवड आपण लक्षात घेतली नाही. तिच्याशी संबंध तोडले. तिच्या आईला पण तिला भेटायला बंदी केली. जर तिच्या आवडीला आपण सुद्धा प्रोत्साहन दिले असते, तर ती एकटी पडली नसती. प्रणिताची आई गप्प बसून होती, तिचा भाऊ पण गप्प बसून होता, ड्रगचे व्यसन लागलेल्या आपल्या या बहिणीला त्यातून कसे बाहेर काढायचे याचा तो विचार करत होता. प्रणिताची आई मनात म्हणत होती, आपल्या घरी किंवा माहेरी कुणाला सुपारीचे सुद्धा व्यसन नाही, उलट तिचे बाबा कोण व्यसनी दिसला तर त्याचे व्यसन कसे सुटेल, यासाठी धडपड करतात, आणि आमची मुलगी….

दुपारी प्रणिता पूर्णपणे शुद्धीवर आली, पण आता तिच्या ड्रग्स घेण्याची वेळ झाली होती, त्यामुळे ती रेस्टलेस होऊ लागली, आळोखे पाळोखे देऊ लागली, तिची बुबूळ वर खाली होऊ लागले. पुन्हा डॉक्टर धावत आले, त्यानी तिला झोपेचे इंजेक्शन दिले तशी ती झोपी गेली.

दुपारी प्रणिताचे बाबा आणि भाऊ बाहेर आले, बाहेर एसए ग्रुपचे मेंबर्स उभे होते. एवढ्या कडकडीत दुपारी सुद्धा 50 पेक्षा जास्त मंडळी बाहेर उभी असल्याचे पाहून बाबांना गहिवरून आले.

बाबांनी मनीषला जवळ घेऊन सांगितले,

” डॉक्टर म्हणतात तिला ड्रग्सचे व्यसन लागले आहे. मघा ती जागी झाली, पुन्हा तिचे शरीर ड्रग्स मागू लागले, ती रेस्टलेस झाली, डॉक्टरांनी झोपेचे इंजेक्शन देऊन झोपून ठेवले आहे, पण पुढे काय? या ड्रग्सच्या विळख्यातून ती बाहेर कशी पडणार?

एस ए ग्रुप मधील पूर्वा बोलू लागली

” अंकल, याकरता तिला व्यसनमुक्ती केंद्रात ठेवायला हवे. माझा मामेभाऊ असाच ड्रगच्या विळख्यात अडकला होता, पण पुण्यातील डॉक्टर अवचटांच्या व्यसनमुक्ती केंद्रात त्याच्यावर योग्य उपचार झाले आणि तो त्याच्या व्यसनातून बाहेर पडला. तुम्ही जर हो म्हणालात तर मी माझ्या भावाकडे चौकशी करून थोड्या वेळात तुम्हाला सांगते.” 

प्रणिताच्या बाबानी होकार देताच तिने त्वरित आपल्या भावाला फोन लावला. त्याच्याकडून व्यसनमुक्ती केंद्राचा फोन नंबर घेतला. आणि तेथूनच व्यसनमुक्ती केंद्राला फोन लावून प्रणिताची केस सांगितली. व्यसनमुक्ती केंद्राने प्रणिताला आपल्या केंद्रात आणण्याची परवानगी दिली. चार दिवसांनी प्रणिता ठणठणीत बरी झाली आणि आई बाबा, भाऊ यांनी तिला व्यसनमुक्ती केंद्रात नेण्याची तयारी केली. प्रणिताचे आई बाबा एस ए ग्रुप मेंबर्सना भेटले. “ तुमच्यासारखी धडपडी प्रेमळ मुलं आहेत म्हणून जगात माणुसकी शिल्लक आहे हे म्हणायचे, “ असे म्हणताना ते भावुक झाले. “ या एसए ग्रुप मुळेच माझी मुलगी मला मिळाली, असेच एकत्र रहा, एकमेकांसाठी धावा, एकमेकांना मदत करा. तुमचे उपकार न फेडण्यासारखे “.  प्रणिताची आई सर्वाना सांगलीत येण्याचे आमंत्रण देत राहिली.

शेवटी प्रणिता आपल्या ग्रुप मेम्बर्सना भेटली, विशेष करून वंदना आणि मनीष, त्यांनी धावपळ करून घर फोडून आपल्याला हॉस्पिटल मध्ये नेले नसते तर….

प्रणिता व्यसन मुक्ती केंद्रात जाताना पुन्हा सर्व एस ए ग्रुप हजर होता. सर्वांनी तिला निरोप दिला.

त्या व्यसनमुक्ती केंद्रात ती दीड वर्ष राहिली पेशंट म्हणून, व्यसनातून पूर्ण बाहेर पडली आणि त्याच व्यसनमुक्ती केंद्रात मार्गदर्शक म्हणून काम करू लागली.

पण तिच्या मनात एस ए ग्रुप बद्दल कृतज्ञता कायम राहिली.

– समाप्त – 

 © श्री प्रदीप केळुसकर

मोबा. ९४२२३८१२९९ / ९३०७५२११५२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “हे सोहळे की देखावे…….” – लेखिका : सुश्री ज्योती चौधरी ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित ☆

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☆ “हे सोहळे की देखावे….…” – लेखिका : सुश्री ज्योती चौधरी ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित

नाना आमचे स्नेही.. परवा त्यांचा सहस्त्रचंद्रदर्शन सोहळा मोठ्या थाटामाटानं संपन्न झाला खरंतर हा सोहळा त्यांच्या मनाविरुद्धच, कारण त्यांना त्यांचा जन्मसोहळा नव्हे तर 81 वी जीवनयात्रा त्यांच्या ठराविक स्नेह्यांसमवेत  घरी साजरी करायची होती पण मुलांसाठी सुनांसाठी अन नातवंडांसाठी ही एक पर्वणी होती स्वतः चे हितसंबंध जपण्याची ! 

आता बघा नाना रिटायर्ड -80 पूर्ण तर  नानी 75 वर्षाच्या!  तिन्ही मुलं फ्लॅट संस्कृतीत रमणारे, गावातच राहतात अन बैठ्या घरात नाना नानी एकटेच राहतात ! जमत नाही हल्ली स्वयंपाक करणं म्हणून एका मावशींकडचा डबा  सकाळीच येतो. खरं तरं गरमागरम जेवण ही नानांची तरुणपणची आवडच ! 

“ बरेच दिवस झालेत गरमागरम जेवण जेवून “..  चार दिवसापूर्वीच ते नानींना म्हणालेत ! पोळी चावत नाही, भाजी तिखट असते म्हणून नानी मिक्सरमधून  पोळी काढून वरणासोबत देतात. घरकामास अनेक  वर्षांपासून मदतीला असते मालू ! 

आठ दिवसांपूर्वी मुलं सुना सर्वजण नानींकडे जमले, नानींना कोण आनंद झाला. लगेच त्यांनी श्रीखंडाच्या वड्या सर्वांच्या हातावर ठेवल्या. धाकट्या सुनेनं येण्याचं  प्रयोजन सांगितलं .. ‘ आम्हा सगळ्यांना नानांचा सहस्त्रचंद्रदर्शन सोहळा करायचाय,’  क्षणभर शांतता.!.

.. हल्ली असले  सोहळे आणि तो दिखावू थाट नाही सहन होत म्हणून नानांनी विषय बंद केला ,नानी म्हणाल्या, ” छान घरी करू साजरा यांचा वाढदिवस, तुमच्या किलबिलाटानं घरं हसेल, आनंदून मोहरेल . यांना आवडेल असे गरमागरम दोन पदार्थ अन् मऊसा वरण- भात- तूप ठेवू, त्यांचे समवयस्क  स्नेही 

बोलवू !”  …..पण नवीन पिढीला नव्या पद्धतीने करायचं होतं सेलिब्रेशन.. परवा नाना-नानींना  सत्कार मूर्ती   बनवून बॅंक्वेट हॉलच्या सजवलेल्या सोफ्यावर बसवलं, नाना कडक सफारीत तर नानी  भारी भक्कम पैठणीत आणि दागिन्यांनी मढवलेल्या..चेहरा थकलेला न् शरीर दमलेलं ! येणारे पाहुणे कुणीच ओळखीचे नसल्यानं आलेली, भेदरलेली भावना ! 

मुलांचे बॉस.. सहकारी.. मित्र मंडळ.. नातवंडांचे कॉलेज कंपू.. सुनांचे किटी ग्रुप्स.. सोशल नेटवर्किंग, यात 250 माणसं झाली  मग झालं काय…नाना अन् नानींचे 8-10 जण ‘ उगीचच वाढतात ‘ म्हणून बोलवले गेलेच  नाहीत..! त्यामुळे सोहळा नक्की कुणाचा याचा नाही म्हटलं तरी नानींना राग आलेला ! बरं दणक्यात सोहळा करायचा तर पदार्थही वेगवेगळे हवेत ! कुणाला चायनीज आवडतं तर कुणाला पंजाबी ..साउथ इंडियन डिशसुद्धा आपली स्टाईल दाखवत होत्या..महाराष्ट्रीयन पदार्थ नेहमीच होतात म्हणून त्यांना सुट्टी दिलेली ! आईस्क्रीम अन्  विविध पदार्थांची  रेलचेल ..पण नाना नानींना गोडबंदी होती, मग खायचं काय..?दात नसलेल्या सत्कारमूर्तींसाठी खाण्याचा पार आनंदच होता ! बरं खाण्याच्या टेबलपर्यंत जायचं कसं? मॅनर्स पाळायला हवेत म्हणून आजी आजोबा गेल्या तीन तासापासून नुसतेच सूप पिवून गप होते ! 

एकदाचा सत्कार सोहळा दिमाखात  संपन्न झाला अन आता रात्रीचे 10:30  झालेत. ‘ जेवण  जात  नाही रे बाबाsss ‘ म्हणत दोघांनी जरासं पुन्हा सूपच घेतलं !  मुलांनी रात्री 11वाजता नानांना  घरीच रिलॅक्स वाटतं म्हणून बैठ्या घरी आणून सोडलं…!

 ….. …. 

सकाळी मालू आली.. जणू सगळं जाणणारी… 

नानांचा सहस्त्रचंद्रदर्शन सोहळा याचा नीट उच्चारही करता न येणा-या, न समजणा-या तिनं  मात्र आज त्यांच्या आवडीचा  गरमागरम वरण भात घरून करून  आणला अन् वरून तुपाची धार ओतत ती म्हणाली, 

” माह्या मायबापाले मी तं पायलं नाय जी, पर तुमी मायेनं मले वागोता यातच मले माहे बावाजी भेटले.. माह्याकडून काय द्यावा इचार केल्लो अन् आठोलं तुमाले गरम वरन भात लै आवडते..नानी नं दिवाडीले देल्लेल्या जास्तीच्या  पैशातनं तूप आनलं.. नाई मनू नका जी..! “ 

… काय बोलणार  होते दोघं …. डबडबलेल्या डोळ्यांनी नानींनी नानांना वरण भाताचा घास भरवला.. 

मालू आज दोघांसाठी ख-या अर्थी अन्नपूर्णा होती. ! 

लेखिका : ज्योती चौधरी

प्रस्तुती : स्मिता पंडित

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ मोडेन पण वाकणार नाही… ☆ सौ राधिका -माजगावकर- पंडित ☆

सौ राधिका -माजगावकर- पंडित

? इंद्रधनुष्य ?

मोडेन पण वाकणार नाही… ☆ सौ राधिका -माजगावकर- पंडित

आमचे काका ति स्वः दामोदर सखाराम माजगांवकर देहू रोड येथे मिलीट्रीत होते. आर्मितल्या,ब्रिटीश राजवटीत हुतात्मा झालेल्या  शूरवीरांच्या कथा सांगण्यांत त्यांचा हातखंडा होता- ऐकतांना प्रसंग डोळ्या समोर  उभा राहयचा.लहानपणी मनावर ठसलेली, कोरलेली,  अंगावर शहारे  आणणारी ही कथा आहे; श्री कर्णिकांची.  पुण्यातल्या श्री तांबडी जोगेश्वरीवरून बुधवार चौकाकडे जाणाऱा सरळ रस्ता,..थोडक्यात म्हणजे हल्लीचं श्रीदगडुशेट   गणपती   मंदिर, श्री गणेश वास्तव्य आहे नां ! तोचं तो रस्ता.  त्याच्या डावीकडे फरासखाना पोलीस चौकी आहे. तिथेच एक दिपस्तंभ अजूनही कित्येक वर्षाचा, जुना झाला तरी भक्कमपणे उभा आहे. आणि त्यावर नांव कोरलय” –भास्कर दा.कर्णिक.–   कर्णिकांनी आपल्या देशासाठी फार मोठ्ठ बलिदान केलंआहे . पण=पण आज पुणेकर त्यांना विसरले आहेत. हा स्तंभ म्हणजे कसलं प्रतिक आहे? कुणाच्या नावांची ही निशाणी?      श्री कर्णिकांच्या बरोबरच त्यांची निशाणी, काळाच्या पडद्याआड गेलीय. पण त्यांचा आदर्श -त्यांचं बलिदान, त्यांच नांव आपण मनांत जागवूया. श्री.भास्कर दा.कर्णिक ऑडिनन्स फॅक्टरीत नोकरीला होते. हुषार आणि अत्यंत धाडसी व्यक्तिमत्व . त्या काळचे १९४० -४२ सालचे उच्च पदवी विभूषित  असलेले हे धडाडीचे तरुण,देशासाठी काहीतरी करण्याची त्यांच्या मनांत विलक्षण उर्मी होती. ऑर्डिनन्स फॅक्टरीतच नोकरीला असल्याने तिथलीच  सामग्री जमवून धाडसाने यांनी हातबॉम्ब   तयार केले.    थोडे  थोडके नाहीं तर अर्धा ट्रॅक भरून बॉम्बची सज्जता  झाली. आणि हा बॉम्बहल्ला करण्यासाठी कर्णिकांना  देशप्रेमी साथीदारही मिळाले. त्यांची नांव सांगायलाही अभिमान वाटतो, श्री. गोरे श्री दिक्षित श्री काळे, श्री जोगेश्वरी मंदिरातील’ व्यवस्थापक गुरव श्री भाऊ बेद्रेही त्यांना सामील होते. इतकंच काय देवीच्या मंदिरातही हे बॉम्ब लपवले होते. अखेर धाडसी खलबतं होऊन निर्णय ठरला. आणि कॅपिटलवर बॉम्ब टाकण्यांत ते यशस्वी झाले.  पण — पण हाय रे देवा ! कसा   कोण जाणे! दुर्देवाने ब्रिटीशांना सुगावा लागला आणि साथीदारासह श्री कर्णिक पकडले गेले.      फरासखान्यात ह्या देशप्रेमींना आणण्यांत आलं, आजचा सध्याचा मजूर अड्डा आहे नां ?तीच ती जागा!.पुराव्याअभावी बाकीचे साथीदार सुटले. पण.. पण श्री कर्णिक, मुख्य आरोपी म्हणून, डाव फसलयामूळे अडकले. पण ते डगमगले नाहीत. परिस्थितीचं  भान त्यांना आलं .. लघुशंकेसाठी परवानगी मागून ते बाजुला गेले. क्षणार्धात… क्षणार्धात.. खिशातली विषारी पुडी त्यांनी गिळून घेतली. चार पावलं चालल्यावर फरासखान्याच्या पहिल्या पायरीवरच ते,.. ते कोसळले…. आणि तिथेच त्या क्षणीच त्यांनी देशासाठी देहत्याग -केला.  तर मंडळी असा  आहे त्या पायरीचा इतिहास…..  मोडेन पण वाकणार नाही, हे ब्रीदवाक्य स्मरुन तो देशप्रेमी,हुतात्मा झाला. त्यांची आठवण स्मृतिचिन्ह म्हणून उभा केलेला स्तंभ आता जुना झालाय.   मध्यंतरी बराच काळ गेला  आहे .भास्कर दा.  कर्णिक ही अक्षरेही आता पुसट झालीत.त्यामुळे आतां – -हया हुताम्याचाही दुर्देवाने  पुणेकरांना विसर पडलाय.    संपली श्री भास्कर दा. कर्णिक  यांची  कहाणी . ज्यांना ही कथा माहित आहे. ते दगडूशेठ गणपती मंदिरातून बाहेर पडतात. डावीकडे वळून स्तंभापुढे उभे रहातात. क्षणभर विसावतात. आणि नतमस्तक होतात.

तर मंडळी आपणही या थोर हुतात्म्याला मनोभावे श्रध्दांजली देऊयात. 

कसलीच, काहीच माहिती नसलेली अशी ही वास्तू सध्या उपेक्षित ठरलीय.  कारण पुलाखालून बरंच पाणी वाहून गेलं आहे.  स्तंभावरील अक्षरे पण  पुसट झाली आहेत. तरीपण आपण श्री कर्णिकांच्या शौर्याला स्मरून,ह्या हुतात्म्याची आठवण म्हणून, स्तंभापुढे नतमस्तक होऊयात का ?      

धन्यवाद ..       

© सौ राधिका -माजगावकर- पंडित

पुणे.  

मो. 8451027554

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ एकाच या जन्मी जणू फिरुनी नवी जन्मेन मी… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. दीप्ती गौतम ☆

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ एकाच या जन्मी जणू फिरुनी नवी जन्मेन मी… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. दीप्ती गौतम

आयुष्य म्हटलं की कष्ट आले, त्रास आला ,

मनस्ताप आला ,भोग आले आणि जीव जाई,पर्यंत काम आलं.मग ते घरचं असो नाहीतर दारचं.

बायकांना तर म्हातारपणा पर्यंत कष्ट करावे लागतात.

75 वर्षाच्या म्हातारीने पण भाजीतरी चिरुन द्यावी अशी घरातल्यांची अपेक्षा असते….

ही सत्य परिस्थिती आहे…..

आपण जोपर्यंत आहोत तोपर्यंत हे रहाणारच……

त्यामुळे ही जी चार भांडीकुंडी आपण आज नीटनेटकी करतो,ती मरेपर्यंत करावी लागणार.

ज्या किराण्याचा हिशोब आपण आज करतो तोच आपल्या सत्तरीतही करावा लागणार.

‘मी म्हातारी झाल्यावर ,माझी मुलं खूप शिकल्यावर त्यांच्याकडे खूप पैसे येतील. मग माझे कष्ट कमी होतील.’ ही खोटी स्वप्नं आहेत.

मुलं , मुली कितीही श्रीमंत झाले तरी,”आई बाकी सगळ्या कामाला बाई लाव पण जेवण तूच बनव,”असं म्हटलं की,झालं पुन्हा सगळं चक्र चालू.

 

आणि त्या चक्रव्युहात आपण सगळ्या अभिमन्यू .

 

पण..पण ..जर हे असंच राहणार असेल,जर परिस्थिती बदलू शकत नसेल, तर मग काय रडत बसायचं का?

तर नाही.

परिस्थिती बदलणार नसेल तर आपण बदलायला हवं.

 

मी हे स्वीकारलंय. खूप अंतरंगातून आणि आनंदाने.

 

माझा रोजचा दिवस म्हणजे नवी सुरुवात असते. खूप ऊर्जा आणि ऊर्मीने भरलेली.

 

सकाळी सात वाजता जरी कुणी मला भेटलं तरी मी तेवढ्याच ऊर्जेने बोलू शकते आणि रात्री दहा वाजताही.

आदल्या दिवशी कितीही कष्ट झालेले असू देत.दुसरा दिवस हा नवाच असतो.

काहीच नाही लागत हो,

हे सगळं करायला .

रोज नवा जन्म मिळाल्या सारखं उठा.

छान आपल्या छोट्याश्या टेरेसवर डोकावून थंड हवा घ्या.आपणच प्रेमाने लावलेल्या झाडावरून हात फिरवा.

आपल्या लेकीला झोपेतच जवळ घ्या.

इतकं भारी वाटतं ना!अहाहा!

सकाळी उठलं की ब्रश करायच्या आधीच रेडिओ लागतो माझा.

अभंग ऐकत ऐकत मस्त डोळे बंद करून ब्रश केला,ग्लास भरुन पाणी पिलं आणि मस्त आल्याचा चहा पित खिडकीबाहेरच्या निर्जन रस्त्याकडे बघितलं ना,

की भारी वाटतंं!

 

रोज मस्त तयार व्हा.

आलटून पालटून स्वतःव र वेगवेगळे प्रयोग करत राहा.

कधी हे कानातले,कधी ते गळ्यातले.

कधी ड्रेस,कधी साडी.

कधी केस मोकळे.कधी बांधलेले.

कधी ही टिकली तर कधी ती.                                 

रोज नवनवीन साड्या. एक दिवस आड केस मोकळे सोडलेले.स्वतःला बदला. जगाला घेऊन काय करायचं आहे!दुनियासे हमें क्या लेना? तुम्ही कसेही रहा, जग बोंबलणारच.

सगळं ट्राय करत रहा.नवं नवं. नवं नवं.

रोज नवं.

रोज आपण स्वतःला नवीन दिसलो पाहिजे.

 

स्वतःला बदललं की, आजूबाजूला आपोआपच सकारात्मक उर्जा पसरत जाईल .तुमच्याही नकळत.

आणि तुम्हीच तुम्हाला हव्याहव्याशा वाटू लागाल.

 

मी तर याच्याही पार पुढची पायरी गाठलेली आहे….

माझ्याबद्दल नकारात्मक कुणी बोलायला लागलं की माझे कान आपोआप बंद होतात.काय माहीत काय झालंय त्या कानांना!

 

आता मी कितीही गर्दीत असले तरी मी माझी एकटी असते.

मनातल्या मनात मस्त टुणटुण उड्या मारत असते.

 

जे जसं आहे,ते तसं स्वीकारते आणि पुढे चालत रहाते.

कुणी आलाच समोर की “आलास का बाबा?बरं झालं,” म्हणायचं.पुढे चालायचं.

अजगरासारखी सगळी परिस्थिती गिळंकृत करायची.

माहीत आहे मला.सोपं नाहीये.

पण मी तर स्विकारलं आहे.

आणि एकदम खूश आहे.

आणि म्हणूनच रोज म्हणते,

 

” एकाच या जन्मी जणू

फिरुनी नवी जन्मेन मी

हरवेन मी हरपेन मी

तरीही मला लाभेन मी”

लेखक :अज्ञात

 

संग्राहिका : सौ. दीप्ती गौतम

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ “चला बालीला…” – भाग – ५ ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

☆ “चला बालीला…” – भाग – ५ ☆ सौ राधिका भांडारकर 

चांडी सार पासून सानुर एक दीड तासावरच आहे.(by road)  बॅगा पॅक करून, भरपेट नाश्ता करून आम्ही निघालो. दोन निळ्या रंगाच्या स्वच्छ आणि आरामदायी टॅक्सीज आमच्यासाठी हजरच होत्या ऐटदार गणवेशातले हसतमुख ड्रायव्हर्स  आमच्यासाठी स्वागताला उभे  होते. दीड दोन तासातच आम्ही आमच्या कर्मा रॉयल सानुर रिसॉर्टला पोहोचलो.  पुन्हा एक सुंदर अद्ययावत सुविधांचा बंगला.  सभोवताली आल्हाददायी रोपवाटिका आणि जलतरण तलाव. इथे एक आवर्जून सांगावसं वाटतं की प्रत्येक शयनगृहात शयनमंचावर चाफ्याची फुले पसरलेली होती आणि हिरव्या पानांच्या कलात्मक रचनेत वेलकम असे लिहिले होते. मन छान गुलाबी होउन गेले हो!

वातावरणात काहीशी उष्णता आणि दमटपणा असला तरी थकवा मात्र जाणवत नव्हता. मन ताजे प्रफुल्लित होते. एका वेगळ्याच सुगंधी, मधुर आणि थंड पेयाने आमचे शीतल स्वागतही झाले. प्रत्येक टप्प्याटप्प्यावर आम्ही ८० च्या उंबरठ्यावरचे सहा जण नकळतच वय विसरत होतो हे मात्र खरे.

इथे आम्ही फक्त एकच दिवस थांबणार होतो.

संध्याकाळी जवळच असलेल्या सिंधू बीचवर जायचे आम्ही ठरवले. इथल्या अनेक दुकानांची नावे, समुद्रकिनार्‍यांची नावे, अगदी माणसांची विशेषनामेही  संस्कृत भाषेतील आहेत.  पुराणातल्या व्यक्तींची नावे आहेत.  जरी बालीनीज लिपीतल्या पाट्या वाचता येत नसल्या तरी इंग्लिश भाषांतरातील भगवान, कृष्णा, महादेव सिंधू अशी नावे कळत होती.नावात काय आहे आपण म्हणतो पण परदेशी गेल्यावर आपल्या भाषेतलं नाव आपुलकीचं नातं लगेच जोडतं.

संध्याकाळी बीचवर फिरायचे व तिथेच रेस्टॉरंट मध्ये स्थानिक खाद्यपदार्थांचा आस्वाद घ्यायचा आम्ही ठरवले. हा समुद्रकिनारा काहीसा चौपाटी सदृश होता. पर्यटकांची गर्दी होती. फारशी स्वच्छता ही नव्हती. फेरीवाले, किनाऱ्यावरची दुकाने ,हॉटेल्स यामुळे या परिसरात गजबज आणि काहीसा व्यापारी स्पर्श होता.  पण बाली बेट हे खास सहल प्रेमींसाठीच असल्यामुळे वातावरणात मात्र मौज मजा आनंद होता.  तिथे चालताना मला पालघरच्या केळवा बीचची आठवण झाली. रोजच्या कमाईवर उदरनिर्वाह करणारी गरीब विक्रेती माणसं, यात अधिक तर स्त्रियाच होत्या.  इथे भाजलेली कणसे आणि शहाळी पिण्याचा काहीसा ग्रामीण आनंद आम्ही लुटला. पदार्थ ओळखीचे जरी असले तरी चावीमध्ये बदल का जाणवतो? इथले मीठ तिखट, आपले मीठ तिखट हे वेगळे असते का? की जमीन, पाणी, अक्षांश रेखांश या भौगोलिक घटकांचा परिणाम असतो? देशाटन करताना या अनुभवांची खरोखरच मजा येते.

इथल्या फेरीवाल्यांकडे आम्ही अगदी निराळीच कधी न पाहिलेली न खाल्लेली अशी स्थानिक फळे ही  चाखली. मॅंगो स्टीन नावाचे वरून लाल टरफल असलेले टणक फळ फारच रसाळ आणि मधुर होतं .फोडल्यावर आत मध्ये लसणाच्या पाकळ्यासारखे छोटे गर होते. काहीसं किचकट असलं तरी हे स्थानिक फळ आम्हाला खूपच आवडलं. 

बालीमध्ये भरपूर फळे मिळतात.  अननस, पपनस, पपया, फणस, आंबे पेरू या व्यतिरिक्त इथली दुरियन (काटेरी फणसासारखं पण लहान ), लाल रंगाचं केसाळ मधुर चवीचं राम्बुबुटन,टणक  टरफल फोडून आत काहीसा करकरीत सफरचंदासारखा गर असलेले सालक.. असा बालीचा  रानमेवा खाऊन आम्ही तृप्त झालो. 

 पाणी प्यावं बारा गावचं, चाखावा रानमेवा देशोदेशीचा—— असंच म्हणेन मी.

सी फुड साठी प्रसिद्ध असलेलं हे बाली बेट.  शाकाहारी लोकांसाठी भरपूर पर्याय असले तरी मासे प्रेमी लोकांसाठी मात्र येथे खासच मेजवानी असते असे म्हटले तर ते चुकीचे नाही.

समुद्रकिनाऱ्यावर आम्ही असे खात पीत भरपूर भटकलो. सहा म्हातारे तरुण तुर्क!  

आता आम्हाला  स्थानिक मासे खाण्याचा आनंद लुटायचा होता. मेरीनो नावाचे एक बालीयन रेस्टॉरंट आम्हाला आवडले.  किनाऱ्यावरचे सहा जणांचे टेबल आम्ही सुरक्षित केले. कसलीच घाई नव्हती. आरामशीर मासळी भोजनाचा आनंद लुटायचा हेच आमचे ध्येय होते. सारेच स्वप्नवत होते. समुद्राची गाज ,डोक्यावर ढगाळलेलं आकाश आणि टेबलावर मस्त तळलेले खमंग चमचमीत ग्रेव्हीतले मोठे झिंगे( प्राॅन्स) , टुना मासा आणि इथला प्रसिद्ध बारा मुंडी मासा. सोबतीला सुगंधी गरम आणि नरम वाफाळलेला भात आणि हो.. सोनेरी जलपानही. रसनेला आणखी काय हवे हो? गोड गोजीर्‍या बालीयन लेकी आम्हाला अगदी प्रेमाने वाढत होत्या! बाळपणीच्या, तरुणपणीच्या आठवणीत रमत आम्ही सारे तृप्तीचा ढेकर देत फस्त केले.  वृद्धत्वातही शैशवाला जपण्याचा अनुभव अविस्मरणीय होता. नंतर पावसाच्या सरी बरसु लागल्या. भिजतच आम्ही मुख्य रस्त्यावर आलो आणि टॅक्सी करून रिसॉर्टवर परतलो. जेवणाचे बिल अडीच लाख आयडिआर, आणि टॅक्सीचे बिल तीस हजार आयडिआर. धडाधड नोटा मोजताना आम्हाला खूपच मजा वाटायची.

आता आमच्या सहलीचे तीनच दिवस उरलेले होते आणि या पुढच्या तीन दिवसाचा आमचा मुक्काम कर्मा कंदारा येथे होता. कंदारा मधली  कर्मा ग्रुपची ही प्रॉपर्टी केवळ रमणीय होती. निसर्ग, भूभागाची नैसर्गिक उंच सखलता, चढ-उतार जसेच्या तसे जपून इथे जवळजवळ ७० बंगले बांधलेले आहेत. आमचा ६७ नंबरचा बंगला फारच सुंदर होता.आरामदायी, सुरेख डेकाॅर, सुविधायुक्त, खाजगी जलतरण तलाव, खुल्या आकाशाखाली ध्यानाची केलेली व्यवस्था वगैरे सगळं मनाला प्रफुल्लित करणार होतं. रिसेप्शन काउंटर पासून आमचा बंगला काहीसा दूर होता. पण इकडून तिकडे जायला बग्या होत्या.  एकंदरीत इथली सेवेतली तत्परता अनुभवताना समाधान वाटत होते. बारीक डोळ्यांची गोबर्‍या गालांची, चपट्या नाकांची, ठेंगणी गुटगुटीत बाली माणसं आणि त्यांची कार्यक्षमता प्रशंसनीय होती. त्यांच्या बोलण्या वागण्यात एक प्रकारचा उबदारपणा होता.  वास्तविक फारसे उद्योगधंदे नसलेला हा प्रदेश. शेती, मच्छीमारी या व्यतिरिक्त पर्यटन हाच त्यांचा मुख्य व्यवसाय.  त्यांचे सारे जीवन हे देशोदेशाहून येणाऱ्या पर्यटकांवरच अवलंबून. त्यामुळे पर्यटकांना जास्तीत जास्त कसे खूश ठेवता येईल  यावरच त्यांचा भर असावा.

यानिमित्ताने दक्षिण पूर्व आशिया खंडातल्या इंडोनेशियाबद्दलही माहिती मिळत होती. इथल्या बाली  बेटावर आमचं सध्याचं वास्तव्य होतं. मात्र जकार्ता राजधानी असलेला  इंडोनेशिया म्हणजे जवळजवळ १७००० बेटांचा समूह हिंदी आणि पॅसिफिक महासागरात पसरलेला आहे. हिंदू आणि बुद्ध धर्माचे वर्चस्व असले तरी ८७ टक्के लोक मुस्लिम आहेत. जवळजवळ तीन शतके इथे डच्यांचे राज्य होते. १७ ऑगस्ट १९४५ साली नेदरलँड पासून ते स्वतंत्र झाले आणि प्रेसिडेन्शिअल युनिटरी स्टेट ऑफ द रिपब्लिक ऑफ इंडोनेशिया म्हणून ओळखले जाऊ लागले जगातली तिसरी मोठी लोकशाही येथे आहे २००४  पासून जोकोविडो हे इंडोनेशियाचे अध्यक्ष आहेत. अनेक नैसर्गिक आपत्ती, भौगोलिक विषमता, जात, धर्म भाषेतील अनेकता सांभाळत इंडोनेशियाची इकॉनॉमी ही जगात सतराव्या नंबर वर आहे. 

इथल्या वास्तव्यातलं आमचं आजचं प्रमुख आकर्षण होतं ते म्हणजे बाली फायर डान्स . अग्नी नृत्य.  याविषयी आपण पुढच्या भागात वाचूया.

 – क्रमशः भाग पाचवा  

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆– “अथांगता…” – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? – “अथांगता– ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सागराच्या अथांगतेला

न्याहाळत  बसतो

क्षितिजाशी दर्याचे मिलन

 मनी साठवतो

*

उसळत्या लाटांचे  नर्तन 

 उत्साहे पाहतो

पाहता सागर अवघा 

शरिरी भिनतो

*

शेकडो नद्यांचे मिलन 

सागराशी होता

सर्वांना तो आपल्यात

सामावूनी घेतो

*

नर्तन  करती लाटा की

नद्यांचे पाणी

नदिच्या पाण्याच्या जणू

तो लहरी करतो

*

अथांग जलनिधी पुढती

त्याची प्रचंड ताकत 

किती न्याहाळू  तरीही

तृप्ततेचा आभास न होतो ।।।। 

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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