श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – आपदा।)
☆ लघुकथा # 75 – आपदा ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
“मैडम जी मैडम जी … मेरी बेटी गौरी को बचा लो।” बदहवास सी मीरा के पैरों पर गिर कर रो पड़ी।
“मीरा ने अभी दो दिन पहले तो इसका विवाह हुआ था अब क्या हुआ? गई। शादी के लिए छुट्टी लेकर गयी थी और हमें भी तो विवाह में बुलाया था।“
“नहीं नहीं… मैडम जी, दूल्हा के तो पहले से एक बेटा बेटी-है, अभी मालूम चला है।”
“ऐ.. क्या बक रही है, क्या तूने पहले बिना पता किए ही शादी कर ली थी? तुझे मालूम नहीं था?” मीरा ने पूछा।
“अरे मैडम जी मेरे आदमी ने शादी तय कर दी। बोला लड़का अच्छा है कमाता है। दहेज भी नहीं लेगा। मैं क्या करती मैडम जी जब बेटी घर गई, तब पता चला वह तुरंत वहां से भाग कर आ गई। अब मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है कि मैं क्या करूँ?”
“साहब तो अभी कोर्ट गए हैं तो वहीं चली जा नहीं तो शाम को उनसे बात करना?”
“क्या हम सब वहां नहीं चल सकते? अभी बात नहीं हो सकती? कहीं मेरा आदमी यहां आ गया तो हल्ला करेगा और बेटी को उसके घर ससुराल छोड़ आएगा।”
“चल अच्छा, मैं तैयार होकर आ रही हूं तब तक तू सड़क पर ऑटो को रोक।”
दोनों ऑटो रिक्शा में बैठकर रवि के ऑफिस जाते हैं।
वहां पर असिस्टेंट से उसने पूछा “साहब, चेंबर में फ्री है क्या?”
“जी भाभी आप जाइए।”
“अरे क्या हुआ तुम अचानक यहां पर?”
“एक समस्या है, तुमसे सलाह लेने के लिए आई हूं जो अपनी यहां काम करती थी जिसकी लड़की की शादी में हम गए थे ना।”
“हां तुमने उसे ₹5000 भी दी थी, याद है मुझे अच्छे से आगे बोलो जल्दी।“
“जहां पर उसकी बेटी की शादी हुई है उसके आदमी के पहले से दो बच्चे हैं बड़े-बड़े कॉलेज में पढ़ते हैं इसलिए उसकी बेटी घर छोड़कर आ गई है अब कुछ सलाह दो।“
“मीरा तुम कहां इनके चक्कर में पड़ी हो उसका पति शराबी है उसे सब मालूम होगा कर्ज उधार लिया होगा और जाने क्या किया होगा। बिना दोनों पक्षों की बात सुनने में कैसे कोई निर्णय ले सकता हूं। उसे पैसे की जरूरत हो तो दे दो तुम इस सब से दूर रहो।“
“कैसी बात कर रहे हो क्या इंसानियत के नाते कोई हमारा फर्ज नहीं है?”
“नहीं हमारा कोई फर्ज नहीं है जितना कह रहा हूं उतनी बात तुम मानो। इस तरह के केस में रोज देखता हूं शराब पी लेते हैं या कर्ज ले लेते हैं या अपने आइशों ऐशो आराम से खाते रखना लड़कियों को यह लोग भेज भी देते हैं। अच्छा तुम उसे बुलाओ। और तुम अपने घर जाओ। कमला अपनी बेटी के लिए स्वयं लड़ेगी।“
फिर राजेश ने कमला को बुला कर कहा –
“अपने आदमी को साथ लेकर आना और तुम्हारी बेटी को यह लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। उसका ही निर्णय मान्य होगा कि उसे क्या करना है? जीवन में हर किसी को लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। जीवन में आपदाएँ आती रहती है उनका सामना करना पड़ता है।“
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈