श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – रेत।)
☆ लघुकथा # 69 – रेत… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
शांति दास जी सोच रहे थे कि आसपास इतना सन्नाटा है। आजकल कोई सुबह की सैर को भी नहीं जाता।
सुबह हो गई अब चाय तो बना कर पी लेता हूं।
आवाज आई कचरे वाली गाड़ी आई सब लोग कचरा डालो ।
उन्होने सोचा चलो कचरा डालकर ही चाय पीता हूं ।
कचरा उठाकर बाहर डालने के लिए गए, तभी कचरे वाले गाड़ी वाले ने कहा – बाबा मुंह पर कपड़ा बांधकर कचरा डाला करो बाहर आजकल मौसम ठीक नहीं है गर्मी बहुत हो रही है। सुना है लोगों को एक नई तरीके की बीमारी भी हो रही है।
शांति दास जी ने कहा-बेटा जान का खतरा तो वैसे भी है क्या करूं हमेशा आइसोलेशन में अकेला ही रहता हूं बेटा बहू ऊपर की मंजिल में रहते हैं नीचे मुझे अकेला छोड़ दिया।
पत्नी के गुजर जाने के बाद यह जिंदगी बोझ हो गई है।
बुढ़ापे के जीवन का बोझ मुझसे सहन भी नहीं होता। चाहता हूं कि मर जाऊं पर कोई बीमारी भी नहीं लगती।
ऐसा लगता है कि मरुस्थल के चारों ओर से में घिरा हूं और सब तरफ मुझे रेत ही रेत दिखाई दे रही है।
कचरे की गाड़ी वाला ने कहा- बाबा आपकी बात जो है तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है । ठीक है आपका जीवन आप जानो मैं आगे का कचरा लेता हूं। चाहे रेत कहो और चाहे कुछ और कहो आपकी आप जानो …..।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈