श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “झुलसाते दिन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 50 ☆ झुलसाते दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

 धूल उड़ाते आँधी पाले 

 फिर आ पहुँचे झुलसाते दिन ।

 

 ख़त्म परीक्षा बैग टँगे

 खूँटी पर सब 

 निकल पड़े टोली के सँग

 लो बच्चे अब 

 

 हँसी ठिठोली मस्ती वाले 

 इतराते कुछ इठलाते दिन ।

 

 सुबह बिछी आँगन में 

 तपती दोपहरी 

 शाम ज़रा सी नरम 

 रात है उमस भरी 

 

 गरमी के हैं खेल निराले 

 आलस भरते तरसाते दिन ।

 

 चलो किसी पर्वत पर 

 खुशियाँ बिखराएँ 

 पढ़ें प्रकृति का पाठ 

 फूल से मुस्काएँ

 

 किलकारी से रचें उजाले 

 गंध सुवासित महकाते दिन ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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