श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘विचारणीय…’।)

☆ लघुकथा – विचारणीय… ☆

मच्छरों की आपातकालीन बैठक बुलाई गई थी, उसमें विभिन्न प्रकार के मच्छर थे, एनाफ्लीस मच्छर, क्यूलेक्स मच्छर, एडीज मच्छर,जीका वायरस का मच्छर, डेंगू बुखार का मच्छर और भी कई प्रकार के मच्छर थे,जो आदमियों से परेशान हो गए थे, सभी भिन भिन कर रहे थे,आपस में बातें कर रहे थे,शोरगुल था, तभी एक बुजुर्ग मच्छर खड़ा हुआ, उसने कहा, कृपया शांत हो जाएं,आज की बैठक,आपके लिए,अपनों के लिए ही बुलाई गई है, पहले हमसे बचने के लिए, आदमी, हमसे बचाव के लिए मच्छरदानी लगा लेता था, फिर कुछ दिन बाद दवाइयां लगाने लगे कई कंपनियों की, फिर ऑल आउट,वगैरह जला देते थे, जिससे हम भाग जाते थे, परंतु अब उन्होनें नया काम किया है, मॉस्किटो नेट का जो रैकेट होता है,उसको बिजली से चार्ज करते हैं और जिससे जल कर हमारी मृत्यु हो जाती है,बहुत दुखदाई है, इससे बचाव के क्या साधन अपना सकते हैं, हमें विचार करना है, सभी मच्छर विचार कर रहे थे, पर कोई सुझाव नहीं सूझ रहा था.

तब एक बुजुर्ग मच्छर खड़ा हुआ, उसने कहा, सच है, आदमी हमें देख लेता है,और हम पर वार करता है, हमें जला देता है,मार देता है, परंतु आपको एक बात बताऊं, आदमी में अहम बहुत होता है,इस अहम के कारण खुद को नहीं देखता, आसपास देखता है, दूसरों को देखता है,खुद को नहीं देखता, आवश्यकता है कि मच्छर उससे कपड़ों से चिपके, आदमी अपने पास नहीं देखेगा,मच्छर सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि आदमी अपने अहम के कारण खुद को नहीं देखता है, सभी लोगों ने तालियां बजा कर सुझाव का स्वागत किया.

और इनके सामने मनुष्य की एक कमजोरी आ गई ,अहम के कारण व्यक्ति अपने आप को नहीं देखता, अपने आसपास नहीं देखता,हमेशा दूसरों को देखता है,दूसरों के पास क्या है, यही देखता है,खुद के पास क्या है,नहीं देखता.

सोचिए जरूर…

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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