श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा – “सहानुभूति…)

☆ लघुकथा – ‘सहानुभूति’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

अमीरों की बस्ती में बीस बाइस साल की सुंदर सी लड़की रोटी चोरी करते जब पकड़ी गई तो पुलिस ने झोपड़ी में बीमार सत्तर साल के मजदूर को पकड़ा। इसी मजदूर ने उसे पाला पोसा था, उसने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी की रात तालाब के किनारे नौ-दस महीने की रोती हुई लड़की मिली थी, रोती हुई लड़की के पास एक महिला अचेत पड़ी थी शायद मर चुकी थी। तब से जब ये थोड़ी बड़ी हुई तो अमीरों के घर बर्तन साफ करके गुजारा करती रही।

बस्ती में न उसे कोई बहन कहता न कोई उसे बेटी कहता। इस बस्ती में उसने सिर्फ एक रिश्ता ही ज्यादा देखा कि प्रत्येक नजर उसके युवा तन पर फिसलती और वासना के अजनबी रिश्ते को जोड़ने का प्रयास करती। होली दीवाली, रक्षाबंधन सारे त्यौहार उसके लिए बेमानी। किसी पवित्र रिश्ते की सुगन्ध के लिए वह तरसती ही रही।

एक दिन जब बड़े साहब की पत्नी मायके गई थी और उस दिन मौसम भी बेईमान था, साहब ने उसे गर्म  पकौड़ी बनाने कहा, खौलते तेल में पकौड़ी जब तैर रहीं थीं तो साहब ने पीछे से उसके ब्लाउज में हाथ डाल दिए, कड़ाही पलट गयी थी, खौलते तेल से बेचारी का चेहरे, गले और स्तनों में फफोले पड़ गये थे, सुंदर चेहरा बदसूरती में तब्दील हो गया था।

कुछ दिन बाद जब वह ठीक होकर काम पर जाने लगी तो उसे आश्चर्य हुआ सभी घरों के साहब अब उसे बहन, बेटी जैसे संबोधनों से सहानुभूति देने लगे थे।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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