डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘गणेशचौथ’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 123 ☆

☆ लघुकथा – गणेशचौथ ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

‘आज गणेश चौथ है आप भी व्रत होंगी?’  सासूजी खुद तो व्रत रखती ही थीं आस-पड़ोसवालों से भी पूछती रहतीं –‘ नहीं’ या ‘हाँ’ के उत्तर में  सामने से एक प्रश्न दग जाता – ‘और आपकी बहू?’ ‘उसके लड़का नहीं है ना? हमारे यहाँ लड़के की माँ ही गणेशचौथ का व्रत रखती है। ‘

ना चाहते हुए भी मेरे कानों में आवाज पड़ ही जाती थी। तभी मैंने सुना  आस्था दादी से उलझ रही है – ‘दादी। लड़के के लिए व्रत रखती हैं आप!  लड़की के लिए कौन-सा व्रत होता है?’

‘ऐं — लड़कियों के लिए कोई व्रत रखता है क्या?’- दादी बोलीं

‘पर क्यों नहीं रखता’ – रुआँसी होती आस्था ने पूछा।

‘अरे, हमें का पता। जाकर अपनी मम्मी से पूछो, बहुत पढ़ी-लिखी हैं वही बताएंगी।’

आस्था रोनी सूरत बनाकर मेरे सामने खड़ी थी। आस्था के गाल पर स्नेह भरी हल्की चपत मैं लगाकर बोली – ‘ये पूजा- पाठ  संतान के लिए होती है।’

‘संतान मतलब?’

‘हमारे बच्चे  और क्या।‘

आस्था के चेहरे पर भाव आँख – मिचौली खेल रहे थे। सासूजी पूजा करने बैठीं, तिल के लड्डूओं का भोग  बना था। उन्होंने अपने बेटे रजत को टीका करने के लिए आरती का थाल उठाया ही था कि रजत ने अपनी बेटियों को आगे कर दिया – ‘पहले इन्हें माँ’। तिल की सौंधी महक घर भर में पसर गयी थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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