श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अशोक व्यास जी की संपादित पुस्तक  “टिकाऊ चमचों की वापसीपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 141 ☆

☆ “टिकाऊ चमचों की वापसी...” – श्री अशोक व्यास ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा 

टिकाऊ चमचों की वापसी

श्री अशोक व्यास

भावना प्रकाशन, दिल्ली

संस्करण २०२१

अजिल्द, पृष्ठ १२८, मूल्य १९९ रु

चर्चा. . . विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

टिकाऊ चमचों की वापसी वैचारिक व्यंग्य संग्रह है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

किताब की शुरुवात लेखक के मन में उद्भूत विचारों से होती है. लेखक लिखता है. कम्पोजर कम्पोज करता है. अक्षर शब्द और शब्द वाक्य बन जाते हैं, भाव मुखर हो उठते हैं. प्रकाशक छापता है. समारोह पूर्वक किताबों के विमोचन होते हैं. समीक्षक चर्चा करते हैं. किताब विक्रेता से होते हुये पाठक तक पहुंचती है. पाठक जब पुस्तक पढ़कर लेखक की वैचारिक यात्रा में बराबरी से भागीदारी करता है, तब किंचित यह यात्रा गंतव्य तक पहुंचती लगती है. रचना के दीर्घगामी प्रभाव पड़ते हैं. लेखक सम्मानित होते हैं, पाठक रचनाकार के प्रशंसक, या आलोचक बन जाते हैं. अर्थात किताब की यात्रा सतत है, लम्बी होती है. अशोक व्यास व्यंग्य के मंजे हुये प्रस्तोता हैं. टिकाऊ चमचों की वापसी उनकी दूसरी किताब है. सुस्थापित लोकप्रिय, भावना प्रकाशन से यह कृति अच्छे गेटअप में प्रकाशित है.

सूर्यबाला जी ने प्रारंभिक पन्नो में अपनी भूमिका में पाया है कि लेखक अपने व्यंग्य कर्म में कहीं भी असावधान नहीं है. लालित्य ललित ने संग्रह के व्यंग्य पढ़कर आशा व्यक्त की है कि अपने आगामी संग्रहों में लेखक की चिंताये और व्यापक व अंतर्राष्ट्रीय हों. इस संग्रह में बत्तीस व्यंग्य हैं. पाठको के लिये विषयों पर सरसरी नजर डालना जरूरी है. अंग्रेजी घर पर है?, अजब गजब मध्य प्रदेश, अध्यक्ष जी नहीं रहे. अध्यक्ष जी अमर रहें, आइए सरकार, जाइए, आभासी दुनिया का वास्तविक बन्दा, कलयुग नाम अधारा आपका आधार कार्ड, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भारतीय तरीका, कोरोना कल्चर का प्रभाव, कोरोना की कृपा, गोद ग्रहण समारोह, जा आ आ जा आ आ दू! जा आ आ दू, टिकाऊ चमचों की वापसी, ताली बजाओ ताल मिलाओ, दामाद बनाम फूफाजी, बुरा नहीं मानेंगे. . . चुनाव है, भारत निर्माण यात्रा, मध्यक्षता करा लो. . . मध्यक्षता, रंगबाज राजनीति, लिव आउट अर्थात् छोड़ छुट्टा, विश्व युद्ध की संभावना से अभिभूत, सड़क बनाएँ, गड्ढे खोदें, सतर्क मध्यमार्गी, सत्तर प्लस का युवा गणतन्त्र, साहित्यमति का बाहुबली साहित्यकार, सेवा के लिए प्रवेश, ज्ञान के लिए प्रस्थान, सोशल मीडिया के ट्रैफिक सिग्नल, हलवा वाला बजट, हाँ. मैं हूँ सुरक्षित!, होली के रंग बापू के संग, ईश्वर के यहाँ जल वितरण समस्या, जैसे दूरदर्शन के दिन फिरे, और पोस्ट वाला ऑफिस डाकघर शीर्षकों से हजार, पंद्रह सौ शब्दों में अपनी बात कहते व्यंग्य लेखों को इस पुस्तक का कलेवर बनाया गया है. टाइटिल लेख टिकाऊ चमचों की वापसी से यह अंश उधृत करता हूं, जिससे आपको रचनाकार की शैली का किंचित आभास हो सके. ” प्लास्टिक के चमचों की जगह फिर धातुओ के चम्मचों का इस्तेमाल पसंद किया जा रहा है, यूज एण्ड थ्रो के जमाने में स्थायी और टिकाउ चमचों की वापसी स्वागत योग्य है. वह चमचा ही क्या जो मंह लगाने के बादस फेंक दिया जाये. . . जैसे स्टील के चमचों के दिन फिरे ऐसे सबकें फिरें. . . . अशोक व्यास अपने इर्द गिर्द से विषय उठाकर सहज सरल भाषा में व्यंग्य के संपुट के संग थोड़ा गुदगुदाते हुये कटाक्ष करते दिखते हैं.

परसाई जी ने लिखा था ” बलात्कार कई रूपों में होता है. बाद में हत्या कर दी जाती है. बलात्कार उसे मानते हैं जिसकी रिपोर्ट थाने में होती है. पर ऐसे बलात्कार असंख्य होते हैं जिनमें न छुरा दिखाया जाता है न गला घोंटा जाता है, न पोलिस में रपट होती है “

अशोक जी ने हम सबके रोजमर्रा जीवन में हमारे साथ होते विसंगतियों के ऐसे ही बलात्कारों को उजागर किया है, जिनमें हम विवश यातना झेलकर बिना कहीं रिपोर्ट किये गूंगे बने रहते हैं. उनकी इस बहुविषयक रिपोर्टो पर क्या कार्यवाही होगी ? कार्यवाही कौन करेगा ? सड़क पर लड़की की हत्या होती देखने वाला गूंगा समाज ? व्हाटस अप पर क्रांति फारवर्ड करने वाले हम आप ? या प्यार को कट पीसेज में फ्रिज में रखकर प्रेशर कुकर में प्रेमिका को उबालकर डिस्पोज आफ करने वाले तथाकथित प्रेमी ? हवा के झोंके में कांक्रीट के पुल उड़ा देने वाले भ्रष्टाचारी अथवा सत्ता के लिये विदेशों में देश के विरुद्ध षडयंत्र की बोली बोलने वाले राजनेता ? इन सब के विरुद्ध हर व्यंग्यकार अपने तरीके से, अपनी शैली में लेखकीय संघर्ष कर रहा है. अशोक व्यास की यह कृति भी उसी अनथक यात्रा का हिस्सा है. पठनीय और विचारणीय है.

मैं कह सकता हूं कि टिकाऊ चमचों की वापसी वैचारिक व्यंग्य संग्रह है. अशोक व्यास संवेदना से भरे, व्यंग्यकार हैं. संग्रह खरीद कर पढ़िये आपको आपके आस पास घटित, शब्द चित्रों के माध्यम से पुनः देखने मिलेगा. हिन्दी व्यंग्य को अशोक व्यास से उम्मीदें हैं जो उनकी आगामी किताबों की राह देख रहा है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments