श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “धोबी का कुत्ता”।)  

? अभी अभी ⇒ धोबी का कुत्ता? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

क्या आपने कभी किसी धोबी के कुत्ते को देखा है ? मैंने तो नहीं देखा। मैंने धोबी का घर भी देखा है, और घाट भी। लेकिन वह बहुत पुरानी बात है। तब शायद धोबी और कुत्ते का कुछ संबंध रहा हो।

धोबी को आज कुत्ते की ज़रूरत नहीं! वह खुद ही आजकल घाट नहीं जाता तो कुत्ते को क्या ले जाएगा। वैसे धोबी कुत्ता क्यों रखता था, यह प्रश्न कभी न तो धोबी से पूछा गया, न कुत्ते से।।

पहले की तरह आज धोबी-घाट नहीं होते! सुबह 5 बजे से ही कपड़ों के पटकने की आवाज़ें वातावरण में गूँजने लगती थीं। कपड़ों की दर्द भरी आवाज़ों के साथ ही धोबी के मुँह से भी एक सीटी जैसी आवाज़ निकलती थी, जो सामूहिक होने से संगीत जैसा स्वर पैदा करती थी। कपड़े चूँकि सूती होते थे, अतः उनकी तबीयत से धुलाई होती थी। बाद में उन्हें सुखाने का स्नेह सम्मेलन होता था। तब शायद कुत्ता उनकी रखवाली करता हो।

सूती कपड़ों की जगह टेरीकॉट और टेरिलीन ने ले ली! घर घर महिलाओं के लिए वाशिंग मशीन और सर्फ एक्सेल की बहार आ गई। कपड़े ड्रायर से ही सूखकर बाहर आने लगे। और तो और, घर की स्त्रियाँ घर पर ही कपडों की इस्त्री करने लगी। अब कुत्ते का धोबी खुद ही न घर का रहा न घाट का।।

मैं कपड़ों पर इस्त्री करवाने धोबी के घर जाता था, लेकिन उसके कुत्ते से मुझे डर लगता था। लकड़ी के कोयलों की बड़ी सारी इस्त्री होती थी, जो एक ही हाथ में कपड़ों की सलवटें दूर कर देती थी। कपड़ों की तह भी इतने सलीके से की जाती थी कि देखते ही बनता था। 25 और 50 पैसे प्रति कपड़े की इस्त्री आज कम से कम 5 रुपये में होती है। सब जगह बिजली की प्रेस जो आ गई है। ज़बरदस्त पॉवर खींचती है भाई।

बेचारे  देसी लावारिस कुत्ते, निर्माणाधीन मकानों के चौकीदारों के परिवार के साथ सपरिवार अपने दिन काट रहे हैं। रात भर चौकीदारी करते हैं, दिन भर सड़कों पर घूमते हैं। विदेशी नस्ल के कुत्तों ने न कभी धोबी देखा न धोबी घाट। कभी मालिक अथवा मालकिन के साथ मॉर्निंग वॉक पर देसी कुत्तों से दुआ सलाम हो जाती है। एक दूसरे पर गुर्रा लेते हैं, और अपने अपने काम पर लग जाते हैं।।

आज की राजनीति में मतदाता की स्थिति भी धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है। चुनाव सर पर आ रहे हैं, मानो लड़की की शादी करनी है, और अभी लड़का ही तय नहीं हुआ। ढंग के लड़के एक बार मिल जाएं, लेकिन मनमाफिक उम्मीदवार मिलना मुश्किल है।

उम्मीदवारों का बाज़ार सजा है।मन-लुभावन नारे हैं, वायदे हैं, संकल्प हैं। एक तरफ कुआं, एक तरफ खाई, मतदाता जाए तो किधर जाए! फिर भी वह चौकन्ना रहेगा। आखिर वही तो सच्चा चौकीदार है भाई।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments