॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (76 – 80) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -16

 

महाराज सब यत्न कर भी हमारे वलय आपका तो नहीं हाथ आया।             

लगता है कि लोभवश कुमुदनागेश ने नदी जल से उसे है चुराया।।76।।

 

तब बली कुश ने पहुंच सरयू तट पै, कुमुद नाग को मारने शर उठाया।

प्रत्यंचा चढ़ाई, गरुड़ देव के अस्त्र का करने संधान मस्तक झुकाया।।77।।

 

संघान करते ही जलहृद विकल हो, लगा तरंगों से वो तट को डुबाने।

औं गर्त में गिरे वन गज सरीखा लगा मचलने शोर भारी मचाने।।78।।

 

सागर के मन्थन पै ज्यों कल्प तरु साथ लक्ष्मी को ले के उपस्थित हुआ था।

वैसे ही उस क्षुब्ध जलहृद से नागेश, ले कुमुद कन्या वहाँ आ खड़ा था।।79।।

 

लख नाग को सहित भूषण उपस्थित, नटराज कुश ने उतारी प्रत्यंचा।

सज्जन कभी भी विनत शरण आये हुओं के भला कब हुए प्राण हंता।।80।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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