श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चातक… ☆

 

…माना कि अच्छा लिखते हो पर कुछ जमाने को भी समझो। दुनियादारी सीखो। हमेशा कोई अमृत नहीं पी सकता। कुछ मिर्च- मसालेवाला लिखो। नदी, नाला, पोखर, गड्ढा जो मिले , उसमें उतर जाओ, अपनी प्यास बुझाओ। सूखा कंठ लिये कबतक जी सकोगे?

…चातक कुल का हूँ। पीऊँगा तो स्वाति नक्षत्र का पानी अन्यथा मेरी तृष्णा, मेरी नियति बनी रहेगी।

 

©  संजय भारद्वाज 

श्रीगणेशचतुर्थी, 22.8.20 प्रात: 5:41 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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अलका अग्रवाल

उत्तम लिखने का प्रण ।

वीनु जमुआर

दृढ़प्रतीज्ञ रचनाकार की छवि दर्शाती अभिव्यक्ति…बहुत ख़ूब!

Rita Singh

वाह! दृढ़ प्रतिज्ञ रचनाकार!!