हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बीज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – बीज ? ?

वह धँसता चला जा रहा था। जितना हाथ-पाँव मारता, उतना दलदल गहराता। समस्या से बाहर आने का जितना प्रयास करता, उतना भीतर डूबता जाता। किसी तरह से बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, बुद्धि कुंद हो चली थी।

अब नियति को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

एकाएक उसे स्मरण आया कि जिसके विरुद्ध क्राँति होनी होती है, क्राँति का बीज उसीके खेत में गड़ा होता है।

अंतिम उपाय के रूप में उसने समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना आरम्भ किया। आद्योपांत निरीक्षण के बाद अंतत: समस्या के पेट में मिला उसे समाधान का बीज।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – जन्मदिन… ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ☆

सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी पिछले 40 वर्षों से अधिक समय से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018)

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा जन्मदिन।

? लघुकथा – जन्मदिन ? सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ?

पहली कक्षा में पढने वाला अक्षत शहर के नामीगिरामी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता है. हर कक्षा में एयर कंडीशनर ,भव्यइमारत ,बहुत बड़ा खुला खेल का मैदान,सुंदर बगीचा इस स्कूल को सबसे अधिक प्रतिष्ठित बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं. एक साल की फ़ीस लाखों में है .

कल स्कूल से लौटकर अक्षत बहुत उत्साहित था –‘ मम्मी , कल जॉनी का बर्थडे है बहुत मजा आएगा. हम सबको गिफ्ट मिलेगी .’ मम्मी जानती है इन स्कूलों में तामझाम होते ही रहते हैं .बर्थडे पर क्लास के सब बच्चों को केक चौकलेट्स देने का प्रचलन है .

अगले दिन अक्षत स्कूल से लौटा,बड़े उत्साह से अपनी गिफ्ट पेन्सिल रबर.स्केल रखने का पाऊच दिखाया और बताया सबने चॉकलेट केक खाया . मम्मी ने उत्सुकता से पूछ ही लिया –‘यह जॉनी तुम्हारी क्लास में है या…..’

‘ओ मम्मा—-जॉनी किसी क्लास में नहीं पढ़ता. वह तो हमारे स्कूल का डौगी है . प्रिंसिपल के ऑफिस के बाहर बैठा रहता है…..’मम्मी का मुंह विस्मय से खुला ही रह गया —‘क्या –‘ तब तक अक्षत अपनी गिफ्ट दोस्तों को दिखाने बाहर निकल गया .

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 85 ☆ हाथ मौला तेरे कितने हैं बता दे मुझको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “हाथ मौला तेरे कितने हैं बता दे मुझको“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 85 ☆

✍ हाथ मौला तेरे कितने हैं बता दे मुझको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ये सियासत में अजब मैंने तमाशा देखा

भेड़िया खाल में बकरे की है बैठा देखा

 *

हाथ मौला तेरे कितने हैं बता दे मुझको

मैंने खाली न किसी हाथ का क़ासा देखा

 *

रात कोई हो भले कितनी हो गहरी लेकिन

ढल ही जाती है यहाँ रोज सबेरा देखा

 *

आज़ज़ी के जो पहन के रखे हरदम जेवर

हर बशर उसके लिए मैंने दीवाना देखा

 *

बात मुँह देखी कोई करके भला बन जाये

सत्यवादी को तिरस्कार ही मिलता देखा

 *

दो कदम चल तू भले चलना हमेशा खुद ही

और कि दम पे जो चलता है वो गिरता देखा

 *

चाह मंज़िल की सनक जिसकी अरुण बन जाये

क़ामयाबी के वो आकाश को  छूता देखा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 540 ⇒ क्रोध और अपमान ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “क्रोध और अपमान।)

?अभी अभी # 540 ⇒ क्रोध और अपमान ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

क्रोध और अपमान एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी ने आपका सम्मान किया हो, और आपको क्रोध आया हो। क्रोध को पीकर किसी का सम्मान भी नहीं किया जा सकता। इंसान और पशु पक्षियों की तरह, शब्द भी अपनी जोड़ी बना लेते हैं। खुदा जब हुस्न देता है, तो नज़ाकत आ ही जाती है। बांसुरी कृष्ण के मुंह लग जाती है और गांडीव अर्जुन के कंधे पर ही शोभायमान होता है। हुस्नलाल के साथ भगतराम ही क्यों ! शंकर प्यारेलाल की जोड़ी नहीं बनी, लक्ष्मीकांत जयकिशन के लिए नहीं बने। जहां कल्याणजी हैं, वहां आनंदजी ही होंगे, नंदाजी अथवा भेरा जी नहीं। धर्मेंद्र हेमा की जोड़ी भी रब ने क्या बनाई है। शब्दों की ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे।

करेला और नीम चढ़ा ! भाई तुम आम के पेड़ पर भी चढ़ सकते थे। अगर आपका सार्वजनिक सम्मान हो रहा हो तो आपके मन में लड्डू ही फूटेंगे, आप अपमान के घूंट थोड़े ही पिएंगे। हंसी के साथ खुशी है, वार के साथ त्योहार, आदर के साथ अगर सत्कार है तो नौकरी के साथ धंधा। आसमान में अगर खुदा है तो ज़मीन पर बंदा है। धंदा जो कभी तेज रहा करता था, आजकल मंदा है। सूरज है तो किरन है, चंदा है तो चांदनी है।।

शब्दों में आपस में दोस्ती भी है और दुश्मनी भी। जब दुश्मनी की बात आएगी तो सांप – नेवले, भारत – पाकिस्तान और भारत – चीन का जिक्र होगा। कांग्रेस मोदीजी को फूटी आंखों नहीं सुहाएगी और कंगना कभी शिव सेना को माफ नहीं कर पाएगी। देव – असुर कभी एक थाली में बैठकर खाना नहीं खाएंगे, मोदीजी अब कभी चाय पीने लाहौर नहीं जाएंगे। न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।

जिस तरह बर्फ कभी जमती और कभी पिघलती है, शब्द भी कभी कभी जमते और पिघलते रहते है। ये ही शब्द कभी शोले बन जाते हैं तो कभी शब्दों को सांप सूंघ जाता है। शब्दों की मार से ही कभी किसी को सदमा होता है तो किसी को दमा। शब्द कानों में शहद भी घोल सकते हैं और ज़हर भी। कभी शब्द आंसू बनकर बह निकलते हैं तो कभी आग उगलने लगते हैं।।

शब्द ही भ्रम भी है और ब्रह्म भी। शब्दों का भ्रम जाल ही माया जाल है। शब्द ही जीव है, शब्द ही ब्रह्म। कभी नाम है तो कभी बदनाम। सस्ता शब्द अगर मूंगफली है तो महंगा शब्द बादाम। राम तेरे कितने नाम।

क्या कोई ऐसी रामबाण दवा है इस संसार में कि दुर्वासा को कभी क्रोध न आवे, चित्त की ऐसी स्थिति बन जावे कि मान अपमान दोनों उसमें जगह न पावे। शब्द मार करने के पहले ही पिघल जावे, तो शायद हमें क्रोध ही न आवे। शकर आसानी से पानी में घुल जाती है, सभी रंग मिलकर एक हो जाते। हमारा चित्त बड़ा विचित्र। यहां शब्द ही नहीं पिघल पाते। काश क्रोध और अपमान भी आसानी से द्रवित हो जावे। कितना अच्छा हो यह चित्त, बाल मन हो जावे, सब कुछ अच्छा बुरा, बहुत जल्द भूल जावे। लाख डांटे – डपटे, मारे मां, बच्चा मां से ही बार बार जाकर लिपट जावे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पत्थर की महिमा ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ पत्थर की महिमा ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम।

मानवता  को धारकर,  पुलकित कर हर रोम।।

 *

पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव।

उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।।

 *

पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर।

करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।।

 *

पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून।

दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।।

 *

पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़।

पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।।

 *

पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार।

बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।।

 *

सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज।

करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।।

 *

पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान।

पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 50 – खुशी के पल… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – खुशी के पल…।)

☆ लघुकथा # 50 – खुशी के पल… श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

आज इतना जल्दी-जल्दी सब काम कर रही हो? खाना भी बनाकर रख दिया, नाश्ता भी कर दिया, कहीं जाने की तैयारी है क्या? लग रहा है आज तुम्हारी किटी पार्टी है!

हां अरुण आज हमारी पार्टी है और मैं ही पार्टी दे रही हूं। नाश्ता भी पैक करा कर ले जाऊंगी।  तुम यह समझ लो हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। तुम्हें अकेले ही जाना होगा?

ठीक है मैं किसी को छोड़ने को कहां कह रही हूं।

मैं अपनी सहेली मीरा के साथ चली जाऊंगी।

तभी मीरा घर के बाहर जोर से चिल्लाती है – चलो चलना नहीं है क्या?

बहन, हां मैं तो तैयार हूं चल रही हूं।

बहन, चलो पैदल चलते हैं। 50 समोसे के लिए पास की दुकान वाले को बोल दिया है। और बाकी नाश्ता पैक कर के कमला मौसी ले आएंगी।

तभी एक ऑटो वाला आता है वह कहता है – बहन जी कहां जाना है?

हां भैया चलना तो है पर दुकान वाला अभी समोसे तले तो चलते हैं। अरे बहन जी छोड़ो दुकान वाले को बाहर से ले लेना रास्ते में बहुत सारे मिलेंगे। और वह दुकान वाले को चिल्ला के बोलता है दे दो बहन जी ऑटो में ही बैठकर खा लेंगी।

तभी रूबी बोलती है कि नहीं नहीं भैया हमें थोड़ा ज्यादा लेना है तुम जाओ?

हां मैं समझ गया बहन जी आप लोगों को भंडारा करना है ठीक है 5 समोसा मुझे भी दे दो इस गरीब का भी कुछ भला कर देना।

अरे भैया मुझे स्टेशन जाना है छोड़ोगे क्या जल्दी?

 तभी एक आदमी भी ऑटो में आकर बैठ जाता है।

हां हां रुक जाओ। यह बहन जी लोगों को लेकर चलता हूं। रहने दो मैं दूसरे ऑटो से जाऊंगी तुम इन्हें लेकर जाओ।

क्या भैया कहां से पनौती आ गये?

मैं अच्छा खासा मैडम लोगों से पैसे भी लेता और खाने को भी मिल रहा था चलो अब?

पता नहीं कहां-कहां से लोग आ जाते हैं रूबी ने चिल्ला कर कहा देखो मीरा गलतफहमी कैसी कैसी लोगों को हो जाती है।

चलो सखी थोड़ी सी देर हम लोग खुश हो जाते हैं तो इसमें घर वाले को एतराज होता है। अब बाहर यह ऑटो वाले को देखो यह भी…।

दोनों सखियां जोर-जोर से हंसने लगते हैं। सच्ची दोस्त ही यह बात समझ सकती है।

छोड़ो सखी सबको खुशी के पल जहां से मिले उसे ले लेना चाहिए।

****

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 251 ☆ मन माझे… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 251 ?

☆ मन माझे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

(साभार – अभिमानश्री दिवाळी अंक-१९९४ – संपादिका – सुश्री प्रभा सोनवणे)

मन माझे आताशा—

थाऱ्यावर रहात नाही,

मन पंख पसरून बाई

वाऱ्यावर वहात जाई !

*

मन जाते इकडे तिकडे

ओलांडून सारी कवाडे!

*

मन सूर्यापाशी जाते

किरणांनी तेजाळते !

*

निशेच्या शशिकिरणाची

शीतलता अनुभवते!

*

हिरवळीवर हिरवळते मन

बकुळीवर दरवळते मन!

*

मन जाते दूर दूर

मज लावते हुरहूर !

*

मन राधेपाशी जाते

कृष्णाची गाणी गाते!

*

मन माझे गोकुळ होते

अन् प्रीतीस्तव व्याकुळते!

*

मन तुळशीपाशी येते

होऊन सांजवात

मन वृंदावनी जळते !

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ज्ञान दान… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ज्ञान दान… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

या शब्दांची आरती

प्रथम प्रभाती किरणा

या अक्षरांच्या वाती

अंतरी सुखाची धारणा.

 

चिंता पावे संतुष्टी

उगम भाव विवेकांती

नमन लेखणीस

चैतन्य ज्ञानेय प्रप्रांती.

 

रंगछटा जीवन

नयन नभाचे उजळ

कलकल भुवन

कल्पना पाखरे प्रांजळ

 

सकळ ऋतूनित्य

सत्यासवे जैसा शब्द सूर्य

प्रबळ नारायण

उतरावे शारद सौंदर्य

 

परम अनुभव

फुलून दिशा-दिशा पान

 नवप्रभा सूर्य

मनाशी स्वैर ज्ञान दान.

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “तू फक्त मोकळं व्हावस….” ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ ☆

सौ विजया कैलास हिरेमठ

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “तू फक्त मोकळं व्हावस…. ☆ सौ विजया कैलास हिरेमठ 

पेन हातात घेतला

वाटलं

झरझर सारं

उतरवून काढावं मनातलं….

पेन वहीवर टेकण्याआधीच

त्यांनी घाई केली

थेंब थेंब उतरत

वही… पार ओली केली..

मग पाहिलं मी त्या वहिकडे

म्हणलं शब्दांपेक्षाही

जास्त काही

बोलून हे अश्रू गेले

पण तुला कळली का ग यांची भाषा

तर वही म्हणाली….

शब्द किंवा अश्रू

तुझ्यासाठी असतील वेगवेगळे

मला तर वाटतं ते येतात तुझ्यातून माझ्याकडे फक्त तुला करण्या मोकळे…..

कधी तू शब्द निवडतेस

कधी अश्रू तुला निवडतात

ते येतात आणि तुला मोकळे करून जातात…

मी फक्त एक माध्यम आहे

तुझ्या बंद मनाची कवाडे उघडून

तुझं मन तू खुलं करण्याच

मग तुझं तूच ठरवत जा

कधी शब्दांनी आणि कधी अश्रूंनी माझ्यावर लिहायचं…

मला दोन्हीही प्रियच

तू फक्त मोकळं व्हावंसं वाटतं मला इतकचं…

 शब्दकळी विजया हिरेमठ मोकळं व्हावंस… 

💞शब्दकळी विजया 💞 

©  सौ विजया कैलास हिरेमठ

पत्ता – संवादिनी ,सांगली

मोबा. – 95117 62351

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ सहज सुचलं म्हणून… ☆ श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’ ☆

श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’

🔅 विविधा 🔅

☆ सहज सुचलं म्हणून ☆ श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’

मनुष्याच्या जडणघडणीत अनेक गोष्टी आपली महत्वाची भूमिका बजावत असतात. यातील अनेक गोष्टींचा प्रभाव मनुष्याच्या मनावर दीर्घकाळ राहू शकतो, त्याला प्रभावित करू शकतो, नव्हे करतोच करतो…

प्रत्येक मनुष्याचे आयुष्य, जीवन म्हणजे कंगोऱ्यांची वाटी म्हणता येईल. कंगोऱ्याची आत गेलेली बाजू जर दुःख मानली तर बाहेर आलेली बाजू सुख मानावी लागेल. प्रत्येकाच्या वाटीला असे कंगोरे कमीअधिक प्रमाणात असतात.

मनुष्याला प्रभावित करणारे अनेक पैलू आहेत. जवळच्या व्यक्तीचा मृत्यू हा त्यातील एक महत्वाचा मानला जातो.

एक मनुष्य होता. त्याला दोन मुले होती. दोघेही दहावीला होते. एक मुलगा नापास झाला तर दुसरा शाळेत पहिला आला. पत्रकारांनी त्या दोघांची मुलाखत घेतली तेव्हा दोघांनी एकच उत्तर दिले की माझे बाबा वारले म्हणून माझा शाळेत पहिला क्रमांक आला आणि माझे बाबा वारले म्हणून मी नापास झालो. घटना एकच आहे पण दोघांचा त्याकडे बघण्याचा दृष्टिकोन ज्याचात्याच्या जीवनात वेगवेगळा प्रभाव दर्शवित असतो….

एकाने असे ठरवले असेल की आता माझे बाबा नाहीत, मी चांगला अभ्यास करून चांगले गुण मिळवून दाखवले तर माझ्या बाबांना आनंद होऊ शकेल, त्याने तसा प्रयत्न केला आणि भगवंताने त्याला त्यात यश दिले…..

आणि दुसऱ्याने…… ?

दृष्टी पेक्षा दृष्टिकोन महत्वाचा. दृष्टी तर प्रत्येकाला असते पण जो मनुष्य विवेकाने आपला दृष्टिकोन बदलतो, तो यशस्वी होण्याची शक्यता जास्त असते….. !

जगात अनेक घटना घडत असतात, कधी त्यातील एक घटना आपल्या आयुष्यात घडते, ती आपली परीक्षा असते…. ! परीक्षेत उत्तीर्ण होण्याचा प्रयत्न करायचा की घाबरून परीक्षा न देण्याचा निर्णय घ्यायचा हे ज्याचे त्याने ठरवायचे ?

श्रीराम

© श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’

थळ, अलिबाग

मो. – ८३८००१९६७६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares