मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ नेमेचि येतो असा पावसाळा… ☆ श्री आशिष बिवलकर ☆

श्री आशिष  बिवलकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? – नेमेचि येतो असा पावसाळा – ? ☆श्री आशिष  बिवलकर ☆

पडला पाऊस  | तुंबली मुंबई |

पोल खोल होई | यंत्रणेची ||१||

*

 नाल्यांची सफाई | करोडो मलिदा |

 कोणावर फिदा | प्रशासन ||२||

*

 रस्त्यावर खड्डे | खड्ड्यातून रस्ता |

 जीव झाला सस्ता | सामान्यांचा ||३||

*

पडताच सरी | प्रशासन जागे |

कंत्राटाचे धागे  | लपवाया ||४||

*

कारवाईची ना | कोणालाच भीती |

पावसाळे किती | पडोनिया ||५||

*

रस्त्यावर नदी | सार जलमय |

त्रासाची सवय | जनतेला ||६||

*

नेहमीची येतो | ऋतू पावसाळा ||

सोसाव्यात कळा | बिब्बा म्हणे ||७||

© श्री आशिष  बिवलकर

बदलापूर

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 200 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 200 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

यह गंधर्व विद्या की ज्ञाता  है

देव दुर्लभ रूप है

अवश्य ही यह

अनेक तेजस्वी संतानों को

जना देने में

समर्थ है।

काम मोहित

हर्यश्व ने

दीन स्वरों में

कहा

‘ऋषिवर

मैं दे सकूँगा

केवल

दो सौ श्यामकर्ण अश्व ।

और

यह सौन्दर्य प्रतिमा

बनेगी

मेरे एक पुत्र की

”जननी।’

और फिर

माधवी बनी

हर्यश्व की

अंकशायिनी,

जन्म दिया

पुत्र

वसुमना को ।

फिर

पीछे छूटा

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 200 – “मुरझा गया गुलाब रोप…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत मुरझा गया गुलाब रोप...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 200 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “मुरझा गया गुलाब रोप...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

टिका दी गई कोने में

वह छड़ी और चश्मा

जिसे टेक कर चला किये

थी इस घर की अम्मा

 

सोचा करती भ्रमणहीन

वह फटी हुई  छतरी

जो अम्मा के बिना पौर में

ऐसे ही पसरी

 

आले में रोया करता है

कलईदार लोटा

जो बिसूरता लगता है

वह बिर्रा का रोटा

 

कहीं कैरिया* पड़ी

साथ में चूने की डिब्बी

तैरतैर जाती आँखों मै

जैसे पनडुब्बी

 

वहीं तख्त पर रखा

पवित्तर रामायण गुटका

जिसके नीचे सन्दुकिया में

अलीगढी लटका

 

संचित रही सम्पदा कुल

अम्मा की थी जिसमें

जिसे देख गृहवधु सोचती

कब हों सब रस्में

 

रिश्तेदारो की आमद

पर रोती घूँघट में

अम्मा जैसी सास

नहीं देखी जीवन घट में

 

मुरझा गया गुलाब रोप

अम्मा जिसको गुजरी

मन की फुलबगियाँ सब

लगती जैसे हों उजरीं

 

श्यामा अपनी थान

खड़ी है भूली पगुराना

घर की ज्यों खपरैल

चुकाती घर का हरजाना

 

गौरैया चुपचाप घोंसले

में बैठी स्थिर

वह मुडेर का कौआ भी

है भूला अपना स्वर

 

नहीं बजा करती अब

साँकल घर की चौखट पर

सारी दरजें खिन्नमना हैं

दिखतीं फाटक पर

 

अब पड़ौस भूलने लगा है

लाठी की ठक ठक

और मोहल्ले की सुहागिने

देख रहीं एकटक

 

लेकिन अम्मा दूर गगन में

बन करके चिड़िया

उड़कर गई वहाँ जो भी घर

उनको था बढ़िया

 * कैरिया = तम्बाकू रखने की कपड़े की थैली

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-07-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 31 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 31 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

कितने दिन से

धधक रही थीं

चुप्पियाँ,

सारी की सारी

उँड़ेल दी एक साथ

खौलते पानी की तरह?

विनम्रता से कहता हूँ

मेरी चुप्पियाँ

बद्री विशाल में

माँ अलकनंदा की

हिमलहरों में

गर्म पानी का सोता है,

इसे अनुभव करना है

तो बद्रीधाम की यात्रा

तो करनी ही पड़ेगी।

 

© संजय भारद्वाज  

11:58 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 42 ☆ व्यंग्य – “उस वाले टेम्पो की प्रतीक्षा में…” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  उस वाले टेम्पो की प्रतीक्षा में.…”।) 

☆ शेष कुशल # 42 ☆

☆ व्यंग्य – “उस वाले टेम्पो की प्रतीक्षा में…” – शांतिलाल जैन 

दोस्तों, एक सपना साझा कर रहा हूँ. इस बार के लोकसभा चुनाव के दरमियां इसे पहली बार देखा, तब से ये मेरा पीछा छोड़ ही नहीं रहा. ज्यादातर दिन में आता रहता है, कभी कभार रात में भी. अक्सर अख़बार पढ़ते, समाचार सुनते, पत्रिका पलटते हुए तो निश्चित ही मैं इस सपने में खो जाता हूँ. मैं जानता हूँ ये कभी सच नहीं होने का मगर इंसान की फितरत – एक बार कोई सपना पाल ले तो उससे पीछा छुड़ाना आसां नहीं होता. इन दिनों मैं इसी बीमारी से गुजर रहा हूँ. सपना कुछ यूं है कि श्रेष्ठीवर्य धनराज की कोठी से काले धन के बोरे भरकर निकला हुआ टेम्पो रास्ता भूल गया है. उसे किसी जननायक के घर पहुँचना था. गफलत में ड्रायवर मुझ गरीब की कुटिया में बोरे उतारकर चला गया है. बस इतना सा ख्वाब है.

टेम्पो वाली बात गल्प नहीं है भाईसाहब. किसी ऐरे-खैरे ने नहीं कहा है, उनने कहा है. हमें भरोसा है उनकी बात पर. इंटेलिजेंस तो उनकी ज़ेब में धरा रहता है. उनको सब पता है. ऑम्नी-पॉवरफुल. जिस दिन चाहेंगे सारे टेम्पो जब्त और  टेम्पो मालिक कारागार में. इसके पहले कि टेम्पो चलाने पर बैन लग जाए या कि इंडिया में ड्राईवरलेस टेम्पो चलने लगे, सपना साकार हो जाए प्रभु. स्टीयरिंग घूमे तो एक बार शांतिबाबू के घर की तरफ भी घूमे. आस ड्राईवर पर टिकी है, इंसान है गफलत तो कर ही सकता है. अपन इंतज़ार में कि वो गफलत करे और टेम्पो अपन के दरवज्जे पे….कसम से उसी दिन पौ-बारह.

कैसा दीखता होगा कालेधन का टेम्पो ? स्पेशिअल सीरिज के नंबर होते होंगे गाड़ी के, देख के ही समझ जाती होगी पुलिस ? रोको मत, जाने दो. क्या माल भरा है, कहाँ से चला है, कहाँ जा रहा है. दाई से पेट छुप नहीं सकता. काले चश्मेवाले दरोगाजी को सब पता. टेम्पो की नंबर प्लेट भी काली. काली प्लेट पे काले नंबर खास नज़रवाले ही पढ़ पाते होंगे. काले का अलग ही संसार. काले कारनामों पर गहरी पकड़ है दरोगा जी की. काले टेम्पो जब राईट विंग से निकलते हैं तो उनमें लता-पत्र-बेल नहीं होती. लेफ्ट वालों के बस का नहीं रहा, न टेम्पो भिजवाना या न टेम्पो मंगवा पाना. दरोगाजी काले धन के टेम्पो का चालान तो क्या ही बना पाते होंगे. किसी अर्दली ने गलती से बना दिया तो कालेपानी की सजा पक्की समझो.

वाईफ कहती है मुझे सिजोफ्रेनिया हो गया है. पता नहीं, मगर दिमाग में क्राईम अवश्य पनपने लगा है. कालेधन का टेम्पो लूटने के आरोप में शांतिबाबू गिरफ्तार जैसा समाचार मिले तो आश्चर्य मत कीजिएगा. वैसे गिरफ्तारी होगी नहीं. धन लूट का हो तो उसके लूट की एफआईआर नहीं होती, हो पाती तो धन काला ही क्यों होता, लूट का धन ज़ेब में हो तो मामला रफा-दफा करवा पाने की अकल तो आ ही जाती है.

विचार हैं कि थमने का नाम ही ले रहे. कभी शहर में तिपहिया टेम्पो चला करते थे, भटसूअर. जब नहीं बने थे तब भी काला धन तो हुआ ही करे था. काले घोड़ों वाला रथ श्रेष्ठीवर्य की अट्टालिका से निकला और राजमहल में समा गया. कोई कोई अमात्य के घर भी. सारथियों की गफलत में कितने सम्राटों के इतिहास बदल गए भाईसाहब. मैं अकिंचनजन वर्तमान बदल जाने की आस पाले बैठा हूँ.

काले धन के टेम्पो आसमान में भी चलते हैं क्या ? एयरटैक्सी टाईप. माल भरा और नॉन-स्टॉप पनामा, लिखेंस्टाईन या स्विटज़रलैंड में. मैं तो इन दिनों जब भी जिस भी दिशा से टेम्पो की आवाज़ आए, उसी समय उसी दिशा में साथ साथ दौड़ पड़ता हूँ. कभी कभी तो नंगे पाँव ही, कपड़ों का भी ख्याल नहीं रहता. कभी तो विमान का इंजिन फेल होगा. वाईफ कहती है मैं सिजोफ्रेनिक हो गया हूँ. इस बीच आकाश में चीलगाड़ी उड़ने की आवाज़ आई. हो न हो ये कालेधन से लदी चार्टर्ड फ्लाईट है. मैं कुछ दूर उपर देखते देखते उसीकी दिशा में सड़क पर दौड़ा, जब लगा कि आज नहीं गिरेगा ये तो हांफता हुआ घर लौट आया.

लेकिन भाई साहब, मैं सिजोफ्रेनिक नहीं हूँ. कितने सपने मेरे इस एक  सपने पर आकर टिक गए हैं. सबसे बड़े बेटे की शादी करना बाकी है, जिद पाले है कि पापा रिहाना को बुलवाना, नाचने के लिए. अब टेम्पो आए तो रिहाना आए, वरना सुनते रहो – ‘पापा आपने हमारे लिए किया ही क्या है?’ छोटू थोड़ा समझदार है, पढ़ता भी ठीक-ठाक है. बाप से असंतुष्ट वह भी रहता है मगर डॉयलॉग मारकर मन नहीं दुखाता. नीट परीक्षा दी है उसने. रेंकिंग में वो उस जगह पर है जहाँ उसका एडमिशन किसी प्राईवेट कॉलेज में ही हो सकता है, डेढ़ से दो करोड़ रूपये लगेंगे. टेम्पो आए तो डॉक्यूमेंट वेरीफाई कराएं. बेटी एम्एस करने यूएस जाना चाहती है और बैंक लोन मिलेगा नहीं. और वाईफ़!! घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने.  नौ हज़ार का हार खरीदने की अपन की हैसियत नहीं मगर नौलखा हार का सपना हरदम उसकी आँखों में तैरता रहता है. परिवार के कुछ साझा सपने हैं हायब्रीड एसयूवी बुक करनी है, लक्ज़ुरियस विला खरीदनी है, यूरोप में हॉलिडेयिंग के लिए जाना है. बच्चे समझते हैं मैं अपनी जवाबदारी से बचने के लिए पागलपन का नाटक कर रहा हूँ. नहीं भाईसाहब, काले धन से भरे टेम्पो का इंतज़ार मैं उन्हीं सब के लिए तो कर रहा हूँ. सिजोफ्रेनिक नहीं हूँ, गुन्ताड़े में हूँ. छींके बिल्ली के भाग से टूटते ही हैं. एकाध टेम्पो कभी तो अपन के भी अलसट्टे में फँसे. कथित पागलपन पर वाईफ कभी गुस्सा करने लगती है तो कभी रोने लगती है. बच्चे मुँह फुलाए फुलाए घूमते हैं. सामने गैलरी में जुनेजा भाभी थोड़ी थोड़ी देर में मेरी ओर व्यंग्यात्मक मुस्कान से देख कर अपने हसबंड को पूरा वाकया बता रही है. कोई बात नहीं जुनेजा, जिस दिन सपड़ गया ना एकाध टेम्पो उस दिन तुझे तो देख लूँगा.

अभी तो फिर से अखबार में, नेट पर भाग्य बतानेवाले कॉलम  टटोलने लगा हूँ. धामवालों का ताबीज़ गले में और नीलम तर्ज़नी में धारण कर लिया है. एक रुद्राक्ष भी मंगवाया है, इस सप्ताह में आ जाएगा. मुतमईन हूँ, किस्मत अवश्य जागेगी, जब करण अर्जुन वापस आ सकते हैं तो काले धन से भरा टेम्पो भी आएगा. आएगा तो खाली तो अपन की कुटिया में ही होएगा.

लो आ ही गया, भट-भट की आवाज़ चौराहे की तरफ से आ रही है, मैंने उस तरफ दौड़ लगा दी है…….

-x-x-x-

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

स्व. राजेन्द्र “रतन”

☆ कहाँ गए वे लोग # २२ ☆

☆ “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

क्षमा मांगने और क्षमा करने पर विश्वास करने वाले, साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी अग्रज भाई राजेंद्र “रतन” अब हमारे बीच नहीं हैं। अपने 82 वर्ष के जीवन काल में वे हमेशा मन से पूरी तरह युवा रहे। वे अंतिम समय तक तमाम तरह की लिप्साओं से दूर आत्म संतोष के साथ साहित्य साधना में रत रहे। वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक डॉ.हरिशंकर दुबे जी उनके लिए कहते हैं-

गौ धन, गज धन, बाजि धन

और रतन धन खान।

जब आवै संतोष धन,

सब धन धूरि समान।।

संतोष धन सबसे बड़ा धन है जिसकी सुवास श्री राजेंद्र जैन के जीवन में सदा रची-बसी रही।

श्री राजेंद्र जैन “रतन” जी वाद विवाद से दूर अत्यंत मिलनसार व्यक्ति थे। वे “अनेकांत” संस्था के अध्यक्ष के रूप में साहित्य संवर्धन एवं प्रतिभाओं के प्रोत्साहन में लगे रहे। रा दु वि वि से पत्रकारिता में पत्रोपाधि प्राप्त करने वाले भाई राजेंद्र रतन जी कार्यों से अवकाश मिलते ही काव्य सृजन में डूब जाते थे। उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहीं। वे आकाशवाणी जबलपुर द्वारा प्रसारित “काव्य रस” एवं “काव्य कुंज” में सहभागिता देते रहे। रतन जी ने “अनेकांत” में अध्यक्ष के साथ-साथ अनुश्री सोसायटी के अध्यक्ष, शहर जिला कांग्रेस कमेटी जबलपुर के उपाध्यक्ष, जागरण संस्था के संगठन सचिव, शारदा संगीत महाविद्यालय के प्रतिनिधि सदस्य एवं कोषाध्यक्ष तथा संभ्रान्त समाज जबलपुर के संगठन सचिव के रूप में भी उत्कृष्ट सेवाएं दी हैं।

बहुत कम लोग जानते हैं कि व्यवसाय और राजनीति से जुड़े भाई राजेंद्र “रतन” बहुत अच्छे कथक नर्तक भी थे। वे अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवक शिविर यूगोस्लाविया में सन 1962 में भारतीय नृत्य कला प्रदर्शन के लिए प्रेसीडेंट मार्शल टीटो द्वारा “उदारनिक” रजत पदक से सम्मानित किए गए थे। “सजग प्रहरी” के रूप में उन्हें म.प्र. शासन द्वारा रजत पदक प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्ति साहित्य सृजन पर उन्हें सजग सारथी, पाथेय श्री सेवा सम्मान, संस्कारधानी गौरव, साहित्य सुधाकर, सरस्वती साहित्य श्री, ऋतंभरा साहित्य श्री, ह्रदय ‘रतन’ सम्मानों सहित गुंजन कला सदन, गूँज व अनेक संस्थाओं द्वारा विविध सम्मानों से अलंकृत किया गया। उनकी काव्य कृतियाँ “समय की पुकार” एवं “मन रतन है” प्रकाशित-प्रशंसित हो चुकी हैं। एक दर्जन से अधिक विभिन्न काव्य संग्रहों में उनकी रचनाओं का समावेश है। ख्यातिलब्ध विद्वान डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी कहते हैं- “रतन जी की प्रत्येक रचना आत्म-संस्कार और मानव के उदात्तीकरण से ओतप्रोत है। ” रा दु वि वि के पूर्व कुलपति डॉ. कपिलदेव मिश्र के अनुसार ‘रतन’ जी का काव्य यथार्थ बोध कराने में सक्षम है। वरिष्ठ साहित्यकार स्व. डॉ. राजकुमार “सुमित्र” का कथन था कि भाई रतन जी की कृतियों को शास्त्रीय कसौटी पर नहीं अपितु भाव की कसौटी पर कसना चाहिए।

रतन जी ने लिखा है-

सब धर्मों का देश हमारा,

मानवता है जिसकी आन।

गंगा की पावन धारा से,

देश की माटी बनी महान।।

सच्चे देश भक्त, सहज-सरल गाँधीवादी, साहित्यकार भाई राजेंद्र “रतन” जी अपनी बहुमुखी प्रतिभा और मिलनसारिता के कारण साहित्य जगत में सदा याद किए जायेंगे।

©  श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

संकलन –  जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Weekly Column ☆ Witful Warmth#13 – Chronicles of Fly-over ☆ Dr. Suresh Kumar Mishra ‘Uratript’ ☆

Dr. Suresh Kumar Mishra ‘Uratript’

Dr. Suresh Kumar Mishra, known for his wit and wisdom, is a prolific writer, renowned satirist, children’s literature author, and poet. He has undertaken the monumental task of writing, editing, and coordinating a total of 55 books for the Telangana government at the primary school, college, and university levels. His editorial endeavors also include online editions of works by Acharya Ramchandra Shukla.

As a celebrated satirist, Dr. Suresh Kumar Mishra has carved a niche for himself, with over eight million viewers, readers, and listeners tuning in to his literary musings on the demise of a teacher on the Sahitya AajTak channel. His contributions have earned him prestigious accolades such as the Telangana Hindi Academy’s Shreshtha Navyuva Rachnakaar Samman in 2021, presented by the honorable Chief Minister of Telangana, Mr. Chandrashekhar Rao. He has also been honored with the Vyangya Yatra Ravindranath Tyagi Stairway Award and the Sahitya Srijan Samman, alongside recognition from Prime Minister Narendra Modi and various other esteemed institutions.

Dr. Suresh Kumar Mishra’s journey is not merely one of literary accomplishments but also a testament to his unwavering dedication, creativity, and profound impact on society. His story inspires us to strive for excellence, to use our talents for the betterment of others, and to leave an indelible mark on the world. Today we present his Satire Chronicles of Fly-over. 

☆ Witful Warmth # 13 ☆

☆ Satire ☆ Chronicles of Fly-over ☆ Dr. Suresh Kumar Mishra ‘Uratript’

Whenever I venture out onto the streets, there’s always a new flyover in sight. It feels like a game called ‘development’ is being played by some stranger. The government is busy basking in its own glory, contractors and engineers are looting in the name of commissions, and the common people are bearing the brunt of their actions. Toll booth operators seem to be lying in wait, ready to pounce on any vehicle that passes by.

Politics and Flyovers

Once upon a time, in Vikas Nagar, a flyover was being constructed. The local MLA, Mahesh Babu, claimed that this flyover would permanently solve the traffic problem in the area. But halfway through construction, elections came and a new government took over. The new minister, Suresh Ji, declared the old flyover useless, had it demolished, and ordered a new one to be built. This game has been going on for seventy years. I think, governments are like flyovers too. One government builds its power structure by toppling an MP, and another party takes it down through the courts. This game never ends.

The World Beneath the Flyover

The world beneath the flyover is strange. It’s like a whole different city exists there – illegal video coaches, shady characters, tea stalls, dhabas, beggars, stray dogs, tempos and rickshaws, and the cheap night workers. The scene is the same under every metro station too. The administration, the government, everyone turns a blind eye. Local leaders are busy chasing vote banks. The police are preoccupied with extortion. Who cares if there’s no roof over your head, the flyover’s roof is there for you.

The State of Rural Roads

In the village of Dhulpur, I asked a villager, “How are the roads in your village?” He replied, “Just like my health, the health of my village roads is full of potholes.” Flyovers were being built around his village, but no one cared about the village roads. This scene is everywhere – villages and hamlets remain below, while roads pass above them.

The Struggle of the Laborers

Near Dhulpur, a laborer named Sita was working under the scorching sun, lifting heavy loads while her child lay under a tree. The site supervisor, Ramu, thought, “If I present this young laborer to the boss, the fake bills will get approved instantly.” But she’s not as easy to convince anymore. The road roller was making a noise like a helicopter. In the intense heat, Sita was thinking if she got paid today, she could light the stove from the Ujjwala scheme; otherwise, she’d have to make do with dung cakes and wood.

One day, Ramu noticed that Sita’s child had fallen ill. She approached Ramu, hoping for her payment. Seeing her situation, Ramu gave her a portion of his commission. Sita’s child got a bit better, but the flyover work stalled. Ramu had no choice but to think of new schemes to reclaim his commission.

The Government’s Hide-and-Seek

The locals steal cement, gravel, and sand at night for their own use. The guard tries to scare them off but is silenced with a small bribe. Billions in contracts, millions in commissions, and yet the same philosophical question: “What did you bring, and what will you take with you?” The poor labourer drinks water and goes to the supervisor for her payment, but the bill isn’t passed. She lights a fire under the half-constructed flyover to cook a meal.

After this flyover is finished, there’s another job to find elsewhere. There won’t be work in MGNREGA. Let’s develop with flyovers!

This is the story of development – where roads become smooth, and human lives become rough. Roads are built for the king’s ride, and common people are left to die. As long as flyovers keep getting built, this game will continue – and the face of development will keep dancing before us.

© Dr. Suresh Kumar Mishra ‘Uratript’

Contact : Mo. +91 73 8657 8657, Email : [email protected]

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 430 ⇒ नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि।)

?अभी अभी # 430 ⇒ नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बच्चे धर्म और संस्कृति नहीं समझते, वे तो जो सीखते हैं, वही उनका संस्कार हो जाता है। बच्चा जब बोलना सीखता है, तो तोते की तरह हम भी उससे राम राम, और जय श्री कृष्ण बुलवाते हैं। हमारी ही देखादेखी जब वह हाथ भी जोड़ता है और झुककर सबके पांव छूता है, तो हम बहुत खुश होते हैं। लोग भी कहते हैं, बड़ा संस्कारी बच्चा है। जो हमने उसे सिखाया, वही तो उसने सीखा।

बचपन में हमने भी वही सीखा जो हमारा माहौल था। मोहल्ले में एक ही उम्र के बच्चे ही बच्चे, अधिकतर मराठी भाषी। हम आपस में लड़ते खेलते उनकी भाषा भी समझते गए। मोहल्ले के पीछे ही एक मैदान था, जिसे हम ग्राउंड कहते थे, आज जहां अर्चना का कार्यालय है, वहीं कभी शाखा भी लगती थी। खेलते खेलते हम भी शाखा में पहुंच जाते थे, नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि कहते हुए।।

स्कूल में भी मैदान में सबसे पहले सर्व धर्म प्रार्थना होती थी, और उसके बाद पीटी। पीटी को फिजिकल ट्रेनिंग कहते हैं, यह हमें बहुत बाद में पता चला। सर्व धर्म प्रार्थना हमें आज भी याद है, ॐ तत्सत् श्री नारायण तू, पुरुषोत्तम गुरु तू।

घर के सामने ही वैदिकाश्रम था, जहां कथा, कीर्तन, सत्संग, गणेशोत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रम और विवाह भी संपन्न होते थे। मंदिर की आरती की घंटी हमें आकर्षित करती थी, और हम भागकर, आंख मूंदे, हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे। प्रसाद आते ही, आंखें खुल जाती थी, और प्रसाद के लिए हाथ पसर जाता था।।

तब हम कहां धर्म, संस्कृति और राजनीति समझते थे।

आज हम शाखा का मतलब भी समझते हैं और आरएसएस का भी। 

आपने याद दिलाया तो हमें याद आया, कि आज से पहले सरकारी कर्मचारी आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग नहीं ले सकते थे।

यह तो यही बात हुई कि मछली को पानी में घुसने की इजाजत नहीं दी जाए। अगर सैंया ही कोतवाल हो, तो फिर डर काहे का।।

हिंदू राष्ट्र, धर्म संस्कृति और सनातन धर्म की बात करना कोई अपराध नहीं, हाथी तो कब का निकल गया था, लेकिन पूंछ लगता है, सन् १९६६ से दबी पड़ी थी। अब सनातन का हाथी अपनी चाल चलेगा, कोई पांव तो रखकर देखे अब पूंछ अथवा मूंछ पर।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 187 ☆ # “वर्षावास के प्रारंभ पर” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “वर्षावास के प्रारंभ पर”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 187 ☆

☆ # “वर्षावास के प्रारंभ पर” # ☆

रंग बिरंगी तितलियां

उड़ रही आकाश में

इंद्रधनुष लग रहा जैसे

निकला हो पास में

 

छुप छुप कर आती है किरणें

हम सब का अंत:करण हरणे

उन्मुक्त हवा के झोंकें

लिपटे है वृक्षों के सहवास में

 

भीग रही वसुंधरा

सब कुछ हो गया हरा भरा

छोटे छोटे जीव जंतु

लोट रहे हरी-हरी घास में

 

मेघ छाये घनघोर हैं 

तुफानों का जोर है

जंगल में नाच रहा मोर

वर्षा के आभास में

 

मानसून का मौसम है

बूंदों की छम छम है

भीग रही है तरूणाई

सावन के इस मास में

 

बिजुरी का कड़कना

मेघों का गरजना देख

वंचित आंखें हर्षित है

कुछ चमत्कार की आस में

 

त्यागकर संसार, भूख और प्यास

धम्म को अर्पित कर हर सांस

वो दीप जलाकर ध्यान में लीन

कोई भिक्खु बैठा है “वर्षावास” में

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – आगमन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘आगमन…‘।)

☆ कविता – आगमन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

सजा दो गांव की गलियां, वो मेरा लाल आया है,

लिपट कर वो तिरंगे से, तिरंगा साथ लाया है,

*

बता दो सबकी आंखों को, कोई नम आंख न होए,

रखी है लाज बेटे ने, मां का सर उठाया है,

*

चिता कोअग्नि देने को, हजारों बेटे आए हैं,

गया था जब, अकेला था, हजारों साथ लाया है,

*

सजाई है चिता उसकी, बिखेरे पुष्प देवों ने,

किया स्वागत, है अभिनंदन, यही सौगात लाया है,

*

सदा कहता था, है कर्जा, मुझ पर मातृ भूमि का,

नहीं रखा, कोई कर्जा, चुका कर ही वो आया है,

*

सुनाता था, कई किस्से, वो जब भी गांव आता था,

सभी किस्से अधूरे हैं, अधूरापन वो लाया है,

*

सहारा था मुझे तेरा, सहारा ना रहा अब तू,

सितारों से भरे नभ ने, सितारा नव सजाया है,

*

तेरा बलिदान सरहद पर, ना भूलेंगी कई सदियां,

हमेशा याद सब करना, यही सपना सजाया है.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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