मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ तुरटी… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ तुरटी… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – डॉ. ज्योती गोडबोले  

माझ्या एका मैत्रिणीचा मला फोन आला. ती सांगत होती,”आत्ताच तासभर योगासनं करून आले आणि तुला फोन केला.”

फोनवर ती बरेच काही बोलत होती.बोलता बोलता ती म्हणाली, “पंधरा- वीस वर्षांपूर्वी एक मैत्रीण मला वाकडं बोलली ते अजून मनातून जात नाही.”

मला हसूच आलं.

आपले शरीर निरोगी रहावे म्हणून शरीराची काळजी घेणारा माणूस पंधरा-वीस वर्षांची जळमटे मनात शाबूत ठेवतो.

हा गलथानपणा बरेचजण वेळोवेळी करत असतात.

खरंतर…आपल्या लक्षात ठेवण्यासारख्या कितीतरी गोष्टी असतात, पण आपण आपल्या मेंदूत वाईट गोष्टींचा भरणा भरपूर करत असतो.

कधी कधी माणसं मनात नसतानाही सहज काही बोलून जातात. आपल्या मनाला ते लागतं. आपण वेळीच ते झटकून टाकत नाही. अंगावर झुरळ आलं, की आपण ते लगेच झटकून टाकतो. आपल्याला झुरळाची किळस वाटते.

तसंच…

आपल्याबाबत कुणी किळस वाटणारे शब्द वापरले, तर तेही झुरळासारखे झटकून टाकता आले पाहिजेत. आपला मेंदू म्हणजे काही गोडाऊन नाही की, वाटेल त्या गोष्टी आपण साठवून ठेवाव्यात…

जगातली सगळ्यात सुंदर गोष्ट आपला मेंदू आहे. आपलं लहानपण,आपलं तरुणपण, त्यात घडलेल्या चांगल्या गोष्टी मेंदू जपतो. वेळोवेळी आपल्याला तो स्मरण करून देतो. आपण त्या स्मरणरंजनात रमून जातो. कधी आपल्या डोळ्यात पाणी येतं तर कधी ओठांवर हसू.

जगताना आपल्याला एवढा चांगला आधार देणारा मेंदू आपण नको त्या गोष्टींमध्ये गुंतवून ठेवतो.

आपण आपल्या मेंदूवर सतत अन्याय करतो…

मेंदूला वाचा नसते. तो मुका असतो. त्याला काही कळत नाही. पण हृदयाला मन असते, त्याला तरी ते कळले पाहिजे.

काही माणसं स्पर्धेसाठी आपल्याशी शत्रुत्व घेतात ती गोष्ट वेगळी. 

अशावेळी सकारात्मक दृष्टिकोन ठेवून लढले पाहिजे…

पण ९०-९५ टक्के गोष्टी अशा असतात, की त्या आपल्या आयुष्यात फारशा गंभीर नसतात. त्या वेळीच सोडता आल्या पाहिजेत.

मेंदू सृजनशील आहे, त्यातच त्याला गुंतवून ठेवले पाहिजे.

ज्या गोष्टी सृजनशील गोष्टींशी निगडीत नाहीत, त्यांना वर्तुळाबाहेर ठेवले पाहिजे.

आपलं मन आनंदी असणं, आपलं घर, आपले कुटुंबीय, आपले जवळचे मित्र आनंदी असणं, हेच तर आयुष्य आहे.

या पलीकडे काय असू शकते?

लहानपणी माझी आई सांगायची, पाणी गढूळ झाले, की त्यात तुरटी फिरवावी. गाळ खाली बसतो. स्वच्छ पाणी मिळते.

मन गढूळ करणारे अनेक प्रसंग आयुष्यात येतात. अशावेळी त्या मनाच्या गढूळ पाण्यात तुरटी फिरवता आली पाहिजे…

लेखिका : अज्ञात 

संग्रहिका : डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ बातमी… ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक  

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? बातमीश्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

दृष्ट लागली माहेरघराला 

पडला विळखा पबवाल्यांचा 

दिवसा ढवळ्या निघू लागला 

धूर असली अमली पदार्थांचा

वाया चालली तरुण पिढी   

करू लागली विखारी नशा   

वारे वाढले गुंडगिरीचे अन्

भरकटली तरुणाई दाही दिशा

घेतली वाटे जणू समाधी 

गल्ली बोळातील देवांनी 

ऱ्हास विद्येच्या माहेर घराचा 

न पहावे म्हणती डोळ्यांनी

वाताहत ही पुण्यनगरीची 

बघवत नाही ठाणेकराला 

सद्बुद्धी द्यावी ‘त्या तरुणाईला’

विनवितो इथून दगडूशेठला

         विनवितो इथून दगडूशेठला …… 

© प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #237 – बाल कविता – कंप्यूटर मोबाइल के खेल… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एबाल कविता – “कंप्यूटर मोबाइल के खेल…)

☆ तन्मय साहित्य  #237 ☆

☆ बाल कविता – कंप्यूटर मोबाइल के खेल ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कंप्यूटर मोबाइल ने ये

क्या-क्या खेल निकाले।

हम  बच्चों के बने  खिलौने,

जो चाहें सो पा लें।।

*

बिल्ली एक नहाती है

शावर स्वयं चलाती है

बदन पोंछ कर फिर अपना,

होले से मुस्काती है

आँख मूँद फिर ध्यान लगा

चूहों पर डोरे डाले।

कंप्यूटर मोबाइल ने……

*

एक  कार  रफ्तार से

चली जा रही प्यार से

पीछे दूजी कार लगी

दोनों को  डर हार से,

भाग दौड़ में टकरा जाए

किसको कौन सँभाले।

कंप्यूटर मोबाइल ने…….

*

मछली की निगरानी में

भैंस  तैरती पानी में

कछुए ने ली टाँग पकड़

मेंढक  है  हैरानी  में

मगरमच्छ बीमार हुआ

पड़ गए दवा के लाले।

कंप्यूटर मोबाइल ने…….

*

संसारी या जोगी है

मोबाइल के रोगी हैं

मम्मी पापा के सँग अपनी

ये पैसेंजर बोगी है,

बिना रिजर्वेशन के इनकी

सिंपल टिकट कटा लें।

कंप्यूटर मोबाइल ने ये

क्या-क्या खेल निकाले।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 61 ☆ बरसात… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बरसात…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 61 ☆ बरसात… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

टपकती है बूँद

होंठों पर छुअन सी

यादों में लिपटी हुई बरसात।

 

बाँह पकड़े

कल तलक जो

चल रही थी नाव

लहर चंचल

कूदती है

भुलाकर सब घाव

 

आँख बैठा मूँद

माझी तन जलन की

मन के आँगन में घिरी बरसात।

 

ढीठ नाला

छू रहा है

पाँव देहरी के

पाँव भारी

हो गये हैं

घर की महरी के

 

हो रहा है मेल

धरती गगन खनकी

चूड़ियों में बज रही बरसात।

 

फुदकती है

बूँद चिड़िया

खेत पकड़े हाथ

आँजती है

झील काजल

बादलों के साथ

 

नदिया का आँचल

हुआ मैला है जो

बाढ़ लाकर धो रही बरसात।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आदर्श ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आदर्श ? ?

संघर्ष निरंतर जारी है। हर वर्ग का हुजूम मिलकर उस एक शब्द को शब्दकोश से बहिष्कृत करने में जुटा है। मुट्ठी भर हाथ हैं जो प्रतिकूल स्थितियों में भी अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर हुजूम से लोहा ले रहे हैं। इन मुट्ठी भर लोगों की अडिगता से ही शब्दकोश में ‘आदर्श’ अब भी साँसे भर रहा है।

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 12:10 बजे, 4 जून 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 65 ☆ परिंदों की चहक शीतल पवन  पूरब दिशा स्वर्णिम… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “परिंदों की चहक शीतल पवन  पूरब दिशा स्वर्णिम“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 65 ☆

✍ परिंदों की चहक शीतल पवन  पूरब दिशा स्वर्णिम… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मदद को मुफ़लिसों की हाथों को उठते नहीं देखा

किसी भी शख़्स को इंसान अब बनते नहीं देखा

हवेली को लगी है आह जाने किन गरीबों की

खड़ी वीरान है इंसां कोई  रहते नहीं देखा

 *

हमारे रहनुमा की हैसियत आवाम  में क्या है

कभी किरदार मैंने इतना भी गिरते नहीं देखा

 *

किसी की आह लेकर ज़र जमीं कब्ज़े में मत लेना

गलत दौलत से मैंने घर कोई हँसते नहीं देखा

 *

परिंदों की चहक शीतल पवन  पूरब दिशा स्वर्णिम

वो क्या जानें जिन्होंने सूर्य को उगते नहीं देखा

 *

तो फिर किस बात पर हंगामा आरायी जहां भर में

इबादतगाह जब तुमने कोई ढहते नहीं देखा

 *

जहां में जो भी आया है हों चाहे ईश पैग़ंबर

समय की मार से उनको यहाँ बचते नहीं देखा

 *

बनेगा वो कभी क्या अश्वरोही एक नम्बर का

जिसे गिरकर दुबारा अस्प पे चढ़ते नहीं देखा

 *

पड़ेगें कीड़े पड़ जाते है जैसे गंदे पानी में

विचारों को अगर पानी सा जो बहते नहीं देखा

 *

बड़े बरगद की  छाया से अरुण कर लो किनारा तुम

कि इसके नीचे रहने वाले को बढ़ते नहीं देखा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ रिश्ता ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता रिश्ता।)  

☆ कविता ☆ रिश्ता ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

रिश्ता होता है कच्चा धागा,

टूट्ते ही चटखाए,

मत टूटने देना धागे को,

यह धागा है प्रेम संबंध का,

ध्यानकेंद्रित कर मानव,

संजोए रखना है इसे,

एक रिश्ता है प्रभु के साथ भी,

मत भूलना कभी भी…

कर्मो का लेखा कर भेजता है,

मत डर चैतन्य प्रभु से,

डरना है सही अर्थों में…

अपने बुरे कर्मों से,

हर बात का है लेखा-जोखा,

अंतर्यामी है प्रभु,

ज्ञात है हर अंतःस्थ की बात,

एक अटूट रिश्ता बना उससे,

एक पूजा का रिश्ता,

नहीं उम्मीद उसे पूजा की भी

बस मात्र दिल से पुकार,

रिश्ता दो तरह का है होता,

दिल और खून का…

स्वयं में परिपूर्ण होकर,

निभाना है हर रिश्ता,

रिश्ता होता है अनंत,

बना एक गहरा रिश्ता,

मत उलझ रिश्तों के ताने-बाने में,

काँटों का होना है स्वाभाविक,

फूल की कोमलता का,

पता कैसे चलता?

हम कठपुतली है

खेल रहा मात्र ईश्वर,

प्रभु को पुकार,

नहीं छोड़ेगा साथ कभी

साथ देगा वह निरंतर

बुरे या अच्छे कर्मों को

निभाता है वह मात्र वह

कीचड़ में कमल की…

तरह रहना है मानव !

एक दृढ़ रिश्ता बनाना,

परवरदीगार से…

रखवाली करता हर इन्सान की,

धानी का रंग भर देता,

जिंदगी में भरोसा कर,

प्रेम ईश्वर से कर,

कभी स्वयं न दूर करेगा,

हर मुश्किल में थामेगा हाथ,

आगे बढ़ मत सोच,

इतना किसी भी…

रिश्ते के बारे में,

मत पूछ क्या कहलाता है,

यह रिश्ता….

बस निभाता चला जा राही,

न तेरा न मेरा हम सबका,

रिश्ता है अनमोल।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 414 ⇒ पौधारोपण (Plantation)… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पौधारोपण (Plantation)।)

?अभी अभी # 414 ⇒ पौधारोपण (Plantation)? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आइए, पॉपुलेशन की चिंता छोड़ प्लान्टेशन करें। बच्चों की ही तरह पेड़ पौधे भी हमें उतने ही प्रिय हैं।

एक बीज ही वृक्ष बनता है, जंगल कोई नहीं बनाता, जंगलों में पौधारोपण और वृक्षारोपण जैसे आयोजन नहीं होते, क्योंकि वहां इंसान का दखल नहीं होता। जंगल का अपना कानून होता है, वहां हर चीज रिसाइकल होती है। बंदर और हर पशु पक्षी का भोजन जंगल में उपलब्ध है, शाकाहार और मांसाहार। जीवः जीवस्य भोजनं।

मनुष्य सभ्य होता चला गया। मानव सभ्यता ने जंगल में मंगल किया, गांव, कस्बे और बड़े बड़े शहर बसाए। एक जंगली इंसान को पढ़ना लिखना सिखाया, और चांद तक उड़ने के काबिल बनाया। साहिर बहुत जल्दी कर जाते हैं बोलने में ;

कुदरत ने हमें बख्शी थी

एक ही धरती।

हमने कहीं भारत कहीं

ईरान बनाया।।

इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए इंसान ने क्या नहीं किया, जंगल काटे, पहाड़ काटे, नदियों पर बांध बनाए, बिजली पैदा की। जंगल की लकड़ी से घर के दरवाजे, खिड़की, पलंग और सोफे बनवाए, अन्न, कपास के खेत और फल, फूल, सब्जियों के बाग बगीचे लगाए। सड़क, पूल, गाड़ी, घोड़े और हवाई जहाज बनाए। महल, अटारी कहां आज के हैं। सदियों से हम प्रकृति का दोहन करते चले आ रहे हैं, लेकिन प्रकृति ने सभी उफ नहीं की, क्योंकि वह धरती मां है, धरा है, वसुन्धरा है। उसके गर्भ में हीरे, मोती, सोना, चांदी, खनिज और कौन सी औषधि नहीं।

अचानक हमारे कामकाज ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ना चालू कर दिया।

अत्यधिक प्रदूषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा, और बिगड़े पर्यावरण का असर इंसान पर भी पड़ने लगा। जहरीली हवा और जहरीला भोजन इंसान को बीमार और कमजोर करने लगा। इंसान परेशान हो, फिर प्रकृति की गोद में जाने लगा। ।

हमें ही हमारी प्रकृति और पर्यावरण को सुधारना होगा। ओजोन लेयर की चिंता अब वैज्ञानिकों की नहीं, आम आदमी की चिंता बन चुकी है। कहीं बेमौसम आंधी तूफान और बारिश और कहीं भयंकर सूखा, सब कुछ हमारा ही तो करा कराया है।

पौधारोपण और वृक्षारोपण तो एक व्यक्तिगत और सामूहिक शुभ संकल्प है, सद्प्रयास है, अपने अपने स्तर पर इसे जारी रखना चाहिए, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के प्रति हमारी उपेक्षा और लापरवाही नाकाबिले बर्दाश्त है। सरकार की अपनी मजबूरियां है, पौधारोपण जैसा ही जन जागरण ही इसका एकमात्र विकल्प है। एक तरफ टूटते परिवार,

पारिवारिक मतभेद, सिंगल चाइल्ड और असुरक्षा और दूसरी ओर औलाद और भरे पूरे परिवार के सुख की चाह, गरीबी, अशिक्षा, धार्मिक मान्यता और नैतिक पतन, और इनके बीच त्रिशंकु, बेचारा आम इंसान। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा-कहानी # 109 – जीवन यात्रा : 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  “जीवन यात्रा“ की अगली कड़ी

☆ कथा-कहानी # 109 –  जीवन यात्रा : 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

पंद्रहवीं शताब्दी के पहले स्थिरता पृथ्वी का स्थायी गुण थी और यह माना जाता है कि रात और दिन, सूर्य का पृथ्वी के चक्कर लगाने से होते हैं. पर विज्ञान, निरंतरता और ऑब्जेक्टिविटी की प्रक्रिया पर आधारित है. बाद में जब पंद्रहवीं शताब्दी में वैज्ञानिक निकोेलस कोपरनिकस ने यह प्रतिपादित किया कि खगोलीय वास्तविकता इसके विपरीत है तो अरस्तु के पूर्व प्रचलित सिद्धांत का विरोध करने पर उन्हें और गैलीलियो गैलिली को दंडित किया गया. पर अविष्कारों का विरोध कूपमंडूकता और अविष्कारकों को दंड देने की तानाशाही, प्राकृतिक विकास को अवरुद्ध नहीं कर सकती. ऐतिहासिक तथ्य यही हैं कि वेग हमेशा स्थिरता को परास्त करता है. तूफानों के हौसलों के आगे स्थिरता के प्रतीक चट्टानें, इमारतें और वृक्ष खंडित हो जाते हैं.वास्तव में विस्थापन आपदा नहीं बल्कि प्राकृतिक घटना है. विस्थापन की ही अगली पायदान movement  है जो गति का अलौकिक साथ पाकर वेग के रूप में शक्तिशाली बन जाती है. ये वेग का ही कमाल है कि 24 घंटे से भी कम समय में हम दुनिया के एक छोर से दूसरे जा सकते हैं, यही वेग speed अपनी चरम स्थिति में राकेट को पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को पारकर अंतरिक्ष की यात्रा पर भेज देता है.

शिशु वत्स की जीवनयात्रा भी विस्थापन और विचलन से प्रारंभ होकर,समयानुसार गति प्राप्त करने की ओर बढ़ती है. करवट लेना, पलटना, बैठना, सरकना, घुटनों के बल चलना, पहले सहारा पकड़कर खड़े होना, फिर सहारे से धीरे धीरे आगे बढ़ना, और फिर आत्मनिर्भरता की शक्ति पाकर खड़े होना, चलना ,दौड़ना और फिर चलने या दौड़ने की इस प्रक्रिया में एक दिन बॉय बॉय करके सुदूर नगर/राज्य/देश में विस्थापित हो जाना. पेरेंट्स की सालों से पोषित ममता इस प्राकृतिक अवस्था को मानने से शुरु में तैयार नहीं होती, असहज हो जाती है पर “समय” ही ईश्वर का वो उपहार है जो हर अव्यवस्था को धीरे धीरे नये रूप में सहज कर देता है और ये अव्यवस्था ही नई परिस्थिति में व्यवस्था बन जाती है. लोग सहजता से इसे स्वीकार कर लेते हैं. इसीलिए कहा जाता है कि समय ही सबसे अधिक बलशाली है, जो कभी भी, कहीं भी और कुछ भी बदलने में सक्षम है. वो मां जो शुरुआत में एक पल भी संतान से दूर नहीं हो पाती, समय के साथ पुत्र को देखे बिना दिन, महीने, साल गुजार लेती है. मानवीय भावनायें, संवेदनायें सापेक्ष होती हैं और इसी के अनुसार ही मानवजीवन की दिनचर्या को प्रभावित करती हैं.

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 30 – अंधी दौड़  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – अंधी दौड़।)

☆ लघुकथा – अंधी दौड़ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अरे ! भाग्यवान तुमने कार में  गूगल मैप सेट कर दिया है मैं लेफ्ट राइट मुड़ कर परेशान हो गया फेसबुक  में सर्च करने पर सारी जगह ही फोटो में अच्छी लगती है पर असल ….. नहीं होती।

पूरे रविवार की छुट्टी खराब कर दी इस सन्नाटे में गाड़ी खराब हो जाए और कुछ भी हो सकता है,  सोचो श्रीमती जी।

यहां पर कोई  तुम्हें मानव दिखाई दे रहा है?

रीमा ने धीमी आवाज में कहा- ये पिकनिक स्पॉट है। मैंने सर्च किया था बहुत सुंदर जगह है इसे लोगों ने बहुत पसंद किया था बहुत लाइक और कमेंट किया….।

तुम्हें क्या ?

आराम से गाड़ी में बैठकर गाने सुन रही हो ड्राइवर तो मैं बन गया हूं लो तुम्हारी जगह आ गई?

वहां कुछ लोग दिखे तो रहे हैं तुम्हें तो हर चीज में बुराई निकालने की आदत है।

कोई बात नहीं मोबाइल में यही बाहर से फोटो खींचे और सीधे घर चलो?

ठीक है जल्दी से मैं बाहर से ही फोटो खींचकर चलती हूं  एक नई जगह तो मिली ।

हां मैं समझ रहा हूं रीमा।

तभी सामने से आता हुए एक परिवार (पति पत्नी और बच्चे )  उसे राहगीर ने कहा& साहब बाहर फोटो क्यों खींच रहे हैं? अंदर चले जाइए ये जगह बाहर से ऐसी दिख रही है पर अंदर ठीक-ठाक है आप इतनी दूर पैसा खर्च करके आए हैं तो घूम लीजिए।

हां भाई ठीक कह रहे हो लग रहा है तुम भी इन्हीं के बिरादरी के लग रहे हो लगता है  मायके के  हो।

रीमा ने कहा-   यहां पर एक झरना भी है और मंदिर  भी दिख रहे हैं  बहुत अच्छा  वीडियो बनाकर रील बन सकती हूं ।   अब जल्दी यहां से घर चलो मैं तो तुम्हारे झमेले से थक गया?

तुमने मुझे काठ का उल्लू बना के रखा है।

तुम तो मोबाइल के नशे में हो कुछ इलाज का तरीका ढूंढना होगा।

हर अच्छी चीज सोना नहीं होती रीमा।

बच्चों को भी देवी जी किताबी ज्ञान सिखाओ ।

नहीं तो एक दिन बड़ी मुसीबत मैं फंस सकते हैं। मोबाइल और फेसबुक से सबको पता चल जाएगा कि हम घर पर नहीं है थोड़ा दिमाग लगाओ, सभी को एक अंधे कुएं में धकेल दोगी।

बचाओ हे प्रभु ।

जरूरी नहीं की जो सब  काम करें वह तुम भी करो।

रीमा ने झुंझलाते हुए कहा – तुम्हें तो टंप्रवचन देने की आदत हो गई है।

ऐसा नहीं है कि मैं  घूमने फिरने के खिलाफ हूं ऐसा होता तो मैं तुम्हें क्यों स्मार्टफोन खरीद के देखा और उसे चलाना  सीखता।

लगता है मैंने  अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मार ली भोगना तो पड़ेगा? तुम भी सब की तरह अंधी दौड़ में दौड़ा रही हो ।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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