English Literature – Poetry ☆ – “Smaller simpler things we ignore…”– ☆ Ms. Aparna Paranjape ☆

Ms. Aparna Paranjape

? Poetry ?

☆ – “Smaller simpler things we ignore ☆ Ms. Aparna Paranjape 

(A poem from Ms. Aparna Paranjape’s book Divine meet.)

Thinking that biggest we have to explore

We want bigger more and more

 

Don’t like to enjoy on the sea shore

Diving deep inside is the wish to explore

 

Want to surf want to dive deep

To get the ultimate will to keep

 

Ignoring bud want to see flower full

Wish to enjoy flower as tool

 

Sand pebbles sparkle on the shore

Can give pleasure but  we feel bore!

 

Exploring heights we get wounds and hurts

But total focus on the height is joy full burst..

 

When reach height, watch behind

Come to know we were blind

 

As pebbles can be joy  forever

Moment to capture is lesson ever

 

What’s in hand is wasted for the thirst of the best

Sweet, simple, easy can be full if rest..

 

This is the real art to be caught for the bliss

For the moment to moment each thing to kiss

 

Joy is thing total interior

What we felt was inferior

Within us lies superior

 

Follow our heart

Is our best part

 

Nothing is inferior

As all is superior

All is superior

© Ms. Aparna Paranjape

Katraj, Pune 

मो. 9503045495

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 423 ⇒ पार्टी/शन… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पार्टी/शन।)

?अभी अभी # 423 ⇒ पार्टी/शन? श्री प्रदीप शर्मा  ?

पार्टीशन को आप बंटवारा भी कह सकते हैं। मैं देश के बंटवारे की बात नहीं कर रहा, क्योंकि मेरा जन्म आजादी के बाद ही हुआ, इसलिए देश की आजादी में मेरा कोई योगदान नहीं। साथ ही आजादी के साथ ही हुए बंटवारे के लिए भी मैं जिम्मेदार नहीं। जो कथित रूप से जिम्मेदार थे, उन्हें भी सब जानते हैं।

पार्टीशन, डिविजन को भी कहते हैं। जब तक दो भाई प्रेम से रहते हैं, बंटवारे की बात नहीं होती, जहां परिवार बढ़ा, हर व्यक्ति अपने हिस्से और अधिकार की बात करने लगता है। अगर समझदारी और राजी खुशी से पार्टिशन हो जाए, तो सबको बराबरी से अपना हिस्सा मिल जाता है, लेकिन विवाद की स्थिति में मनमुटाव भी होता है, और कोर्ट कचहरी का मुंह भी देखना पड़ता है।।

संपत्ति का बंटवारा तो आप आसानी से कर सकते हैं, लेकिन देश का बंटवारा कैसे हो, लोगों के दिलों का बंटवारा कैसे हो। दूरदर्शन पर सन् १९८७ में एक धारावाहिक का प्रसारण हुआ था, बुनियाद, जिसमें एक ऐसे ही परिवार की दास्तान, मनोहर श्याम जोशी की कलम से, पर्दे पर प्रस्तुत की गई है।

बुनियाद का मुख्य पात्र हवेलीराम (आलोक नाथ) अपने पारिवारिक कर्तव्यों और स्वतंत्र भारत में रहने की इच्छा के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करता है। आखिरकार, उसे देश के विभाजन के बाद बनी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच भी जीना पड़ता है।।

भले ही पार्टिशन गलत हुआ हो, बाद की बिगड़ती परिस्थितियों और पड़ोसी देश द्वारा आतंकवादी गतिविधियों के चलते, आज हमें इस कड़वे सच को स्वीकार करना पड़ेगा, कि अब हम हमारा रिश्ता भाई भाई का नहीं, एक दुश्मन देश का है। हिंदी चीनी भाई भाई का स्वाद हम पहले ही चख चुके हैं।

देश की छोड़िए, आज घर घर में हो रहे पार्टिशन की बात कीजिए। पहले दिलों के बीच दरार पड़ती है, उसके बाद ही घर के बीच दीवार खड़ी होती है। कैसे आदर्श संयुक्त परिवार थे, जहां सभी बड़े छोटे, काका बाबा, बेटे बहू और नाती पोते, एक ही छत के नीचे रहते थे। लेकिन पिछले ५० वर्षों में सब कुछ बदल गया है।।

आज अगर दो भाई ही साथ साथ नहीं रह सकते, तो हम कैसे उम्मीद करें कि हिंदू मुसलमान साथ साथ रह सकते हैं। सरकार किसी की भी हो, सियासत की फितरत एक जैसी रहती है।

अंग्रेज भले ही चले गए हों, लेकिन डिवाइड एंड रूल का महामंत्र पीछे छोड़ गए हैं। ये दुश्मनी हम नहीं छोड़ेंगे, मर मिटेंगे, लेकिन दुश्मन को मिटाकर ही दम लेंगे। भाईचारे की बात छोड़िए, हमारा दुश्मन चाहे भूखा मरे अथवा चारा खाए। हमने दुश्मन को भाई मानने से इंकार कर दिया है।।

पहले दिलों में दरार पड़ती है, दीवार तो बाद में खड़ी होती है। क्या टूटे हुए दिलों को जोड़ने वाली कोई अल्ट्राट्रैक सीमेंट नहीं। पांच रुपए के फेवीक्विक से बच्चों के खिलौने और घरों की क्रॉकरी जोड़ने के भ्रामक विज्ञापन तो बहुत देखे हैं, ज़ख्मी दिलों पर लगाने वाला मरहम हम अभी तक ईजाद नहीं करवा पाए।

क्या दिल की बीमारी का दिल के दर्द से कोई संबंध है। है कोई विज्ञान के पास ऐसी स्कैनिंग मशीन, जो दिल के जख्मों को पहचान ले। क्या घात प्रतिघात और बदले की भावना, तनाव और मानसिक आघात को जन्म नहीं देती। जिन चेहरों पर बनावटी मुस्कुराहट नजर आ रही है, कौन जानता है?

उनके दिलों का दर्द। काश हम स्वार्थ, खुदगर्जी और जोड़ तोड़ का कुछ तोड़ निकाल पाते। दो दिलों के बीच की दीवार को गिरा पाते।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 14 – नवगीत – माँ शारदा वंदन… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत –माँ शारदा वंदन

? रचना संसार # 13 – नवगीत – माँ शारदा वंदन…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

हे शारदे करुणामयी माँ,भक्त को पहचान दो।

श्वेतांबरा ममतामयी माँ,श्रीप्रदा हो ध्यान दो।।

गूँजे मधुर वाणी जगत में,वल्लकी बजती रहे।

कामायनी माँ चंद्रिका सुर,रागिनी सजती रहे।।

वागीश्वरी है याचना भी,भक्त का उद्धार हो।

विद्या मिले आनंद आए,प्रेम की रसधार हो।।

आभार शुभदा है शरण लो,बुद्धि का वरदान दो।

 *

उल्लास दो नव आस दो प्रिय,ज्ञान की गंगा बहे।

चिंतन मनन हो भारती का,लेखनी चलती रहे।।

मैं छंद दोहे गीत लिख दूँ,नव सृजन भंडार हो।

आकाश अनुपम गद्य का हो,प्रार्थना स्वीकार हो।।

भवतारिणी तम दूर हो सब,नित नवल सम्मान दो।

 *

तुम प्रेरणा संवाहिका हो,चेतना संसार की।

वासंतिका हो ज्ञान की माँ,पद्य के शृंगार की।।

साहित्य में नवचेतना हो,कामना कल्याण भी।

संजीवनी हिंदी सुजाता,श्रेष्ठ हो मम प्राण भी।।

आलोक प्रतिभा हो धरा की,लक्ष्य का संधान दो।

 *

भामा कहें महिमामयी माँ,प्राणदा भावार्थ हो।

त्रिगुणा निराली साधना हो,भावना परमार्थ हो।।

हर क्षेत्र में साधक सफल हो ,चँहुदिशा जय घोष हो।

विपदा टरे उत्कर्ष हो माँ,ज्ञान संचित कोष हो।।

उत्थान हो इस देश का भी,शांति का परिधान दो।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #241 ☆ भावना के दोहे – – मेघ ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – मेघ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 241 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मेघ ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

घिरे मेघ अब कह रहे,  सुनो गीत मल्हार।

बरसेंगे हम झूम के, नाचेगा संसार।।

**

मेघ गरजते दे रहे, प्यारा सा संदेश।

देखो साजन आ रहे, वापस अपने देश।।

**

रिमझिम रिमझिम आ रही, है वर्षा की  फुहार।

 आ जाओ अब सजन तुम, आया है त्योहार।।

**

मौसम है बरसात का, गिरी कृषक पर गाज।

खेत लबालब हैं भरे , मेघ बरसते आज ।।

**

जगह – जगह पर बाढ़ है,  उजड़ रहे घरबार।

खोज रहे हैं हम सभी , नहीं बचा  परिवार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #223 ☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 223 ☆

☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बंद जब उनकी ज़ुबां  होती है

बात  नजरों से  बयां  होती  है

*

मोम  क्या है  वो क्या  समझेंगे

संग-दिल जिनकी अदा होती है

*

तिश्नगी प्यार की बढ़ी इस कदर

लरजते  होठों  से अयां  होती है

*

सुकूं  रूह को  मिले  जो प्यार  में

तनवीर    ऐसी   कहाँ   होती   है

*

याद   उनकी  लाती  है  बे- सुधी

देख  उनको  उम्मीदें जवां होती हैं

*

हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी

पर तकदीर सभी की जुदा होती है

*

“संतोष” प्यार में खोए हैं इस तरह

न आग लगती है, न धुआँ  होती है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – 🙏 निवेदन 🙏 ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🙏निवेदन 🙏

ई-अभिव्यक्ती समुहातील सर्व साहित्यिक  आणि रसिक वाचकांना कळविण्यात येते की, काही तांत्रिक  कारणास्तव, आपल दैनिक अंक २०|०७|२०२४ ते २२|०७|२०२४ असे तीन दिवस  प्रकाशित होऊ शकणार नाही. मंगळवार दि.२३ जुलैपासून अभिव्यक्ती पुन्हा प्रकाशित होईल.

कृपया सर्वांनी नोंद घ्यावी ही विनंती.

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

✒️✒️🥱✒️✒️🥱✒️✒️

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 230 ☆ कवी कालिदास दिन… ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 230 – विजय साहित्य ?

कवी कालिदास दिन… ☆

जोडोनीया दोन्ही कर,

समर्पित शब्द फुले .

स्वीकारावी शब्दार्चना ,

लाभू देत विश्व खुले.

*

कुलगुरु कालिदास ,

काव्य शास्त्र अनुभूती .

शब्द संपदा संस्कृत,

अभिजात कलाकृती.

*

महाकवी कालिदास ,

काव्य कला अविष्कार .

निसर्गाचे सहा  ऋतू ,

ऋतू संहार साकार.

*

अलौकिक प्रेमकथा ,

मालविका अग्निमित्र.

खंडकाव्य मेघदूत ,

सालंकृत शब्द चित्र.

*

शिव आणि पार्वतीची,

कथा   कुमार संभव.

अभिज्ञान शाकुंतल ,

प्रेमनाट्य शब्दोच्चय.

*

राजा पुरूरवा आणि ,

नृत्यांगना  उर्वशीचे.

अभिजात कथानक ,

निजरूप प्रतिभेचे.

*

मेघा बनवोनी दूत ,

यक्षराज आराधना .

कालिदासे वर्णियेली,

प्रेमसाक्षी संकल्पना.

*

कवी कालिदास दिन,

आषाढाची प्रतिपदा .

काव्य शृंगार तिलक ,

प्रासादिक ही संपदा.

*

अग्रगण्य  अभिव्यक्ती ,

कालिदास साहित्याची.

शब्दोशब्दी सामावली,

शब्द शक्ती सृजनाची.

*

चित्रकार, शिल्पकार ,

यांचे वंदनीय स्थान .

साहित्यिक शिरोमणी ,

कालिदास दैवी  ज्ञान.

*

अशी प्रेरणा चेतना ,

व्यासंगात रूजलेली .

कालिदासी साहित्यात,

काव्यसृष्टी फुललेली.

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निसर्गाचे रुप… ☆ सुश्री त्रिशला शहा ☆

सुश्री त्रिशला शहा

? कवितेचा उत्सव ?

निसर्गाचे रुप… ☆ सुश्री त्रिशला शहा ☆

असा कसा हा व्दाड निसर्ग

क्षणात पालटी रुप आपले

होती समोर नागमोडी वाट

कशी हरवली आता धुक्यात

*

मेघ उतरले धरणीवरती

दाटे काळोख सभोवती

सुटे सोसाट्याचा वारा

वाट कुठेच दिसेना

*

डोंगराच्या पायथ्याशी

दिसे एक टपरी चहाची

घेऊ चहासवे वाफाळत्या

भाजीव कणसे आणि भजी

*

भुरभुर पावसाची चाले

ढग हलके थोडे झाले

धुके बाजूस सरले

थोडे थोडे उजाडले

*

हरवलेली वाट धुक्यात

आता दिसाया लागली

दोन्ही बाजूच्या झाडातून

नागमोडी चाललेली

© सुश्री त्रिशला शहा

मिरज

 ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ आठवणीने विसरा… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल 

? विविधा ?

आठवणीने विसरा…  ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

परवाच माझी मैत्रिण सांगत होती कि तिच्या कोणालातरी अल्झायमर झालाय. आता त्यांना कोणी आठवत नाही.त्यामुळे त्या कोणाला अोळखत नाहित.•••• वगैरे वगैरे•••• आणि मग विसरणे हे एवढ्या भयंकर थराला जाऊ शकते असे कळल्यावर अंगावर सर्रऽऽऽकन काटा आला.

मग विचार आला का हा असा आजार निर्माण झाला असेल? मग त्यावर उपाय म्हणून स्मरणशक्ती वाढवण्याचे उपाय सांगितले जातात. बदाम खा•••• अक्रोड खा•••• वगैरे उपचार सांगितले जातात;आणि शेवटपर्यंत प्रयत्न केले जातात.पण शक्यतो अशा व्यक्तींना परत फारसे काहिच आठवत नाही.

आता डॉक्टर तज्ञ यावर अनेक उपाय सांगतात पण मला उगीचच एक विचार डोक्यात आला•••• मनुष्य केव्हा एखादी गोष्ट विसरतो? तर एखाद्या गोष्टीला खूप दिवस झाले असतील; त्या गोष्टींशी पुन्हा पुन्हा संपर्क येत नसेल तर मनुष्य ती गोष्ट विसरून जातो. जसे लहानपणी घोकून घोकून पाठ केलेली स्तोत्रे गाणी आपल्याला आता आठवत नाहित पण कोणी म्हणायला सुरुवात केली तर अधून मधून ते आपल्याला आठवू लागते. याच्या उलट जर आपण कधी कोणाशी भांडले असू एखाद्याने आपला अपमान केला असेल किंवा एखादी चांगली घटना घडली असेल तरी ती गोष्ट आपल्याला काही केले तरी विसरता येत नाही. कोणाचा प्रेमभंग झाला असेल तर ते प्रेम त्याला विसरणे शक्य नसते; आणि मग असे वाटले ज्या गोष्टी अापण अगदी मनावर घेतो ज्या गोष्टींमुळे आपल्या हृदयाला काळजाला थरार जाणवला असेल अशा गोष्टी आपण कधीच विसरत नाही.

मग ज्यांना विसरण्याचा आजार झालाय त्यांचे काय? तर ते लोक फार भावूक असावेत.प्रत्येक गोष्ट ते मनावर घेत असावेत. म्हणूनच सगळ्याच गोष्टी ते लक्षात ठेवण्याचा प्रयत्न करतात. मग हे लक्षात ठेवण्याचे पोते ताणून ताणून भरले की मग काही गोष्टी अगदी तळाशी जाऊन बसतात.काही गोष्टी  इतर गोष्टिंच्या मधे जाऊन बसतात.मग त्या गोष्टी कितीही महत्वाच्या असल्या तरी वेळेवर त्या आठवत नाहित. मग ही एक प्रकारची सवय लागून जाते; आणि त्याचे रुपांतर अशा भयंकर रोगात होत असावे.

त्यामुळे मला यातून मार्ग काढताना जाणवले जर आपण अगदी महत्वाचे आहे तेच लक्षात ठेवले आणि जे अनावश्यक आहे,ज्याने आपल्याला त्रास होईल अशा गोष्टी जाणिवपूर्वक विसरल्या तर? म्हणजे कोणी आपल्याशी भांडले असेल कोणी आपल्याला त्रास दिला असेल तर असे प्रसंग आपण विसरायला शिकले पाहिजे. म्हणजेच जाणिवपूर्वक किंवा आठवणीने विसरणे हा रोग नसून ती एक कला आहे. आणि हिच कला प्रत्येकाने अंगिकारायला पाहिजे असे वाटते.

म्हणजे बघा हं•••• जर आपण ज्या गोष्टी महत्वाच्या नाहित त्रासदायक आहेत अशा गोष्टी पुढच्या क्षणी विसरायचे ठरवले तर मनामड्ये चांगल्या गोष्टी लक्षात ठेवायला जागा शिल्लक राहिल. एक वाईट गोष्ट विसरली कि पुढच्या दहा चांगल्या गोष्टिंसाठी जागा होईल. मग चांगल्या गोष्टी आठवत राहिल्या तर मन प्रसन्न राहिल. अर्थातच त्यामुळे आरोग्य चांगले राहिल••••

आपण आपल्या घरातूनही जुने फाटके कपडे काढून फेकून देतो तेव्हा नवे चांगले कपडे ठेवण्यासाठी कपाटात जागा होते. घरातील जुन्या वस्तू जेव्हा बाहेर काढतो तेव्हा नव्या वस्तूंचा उपभोग आपल्याला घेता येतो•••• तसेच आपण आठवणीने काही गोष्टी विसरू या.म्हणजे चांगल्या गोष्टी आपोआपच लक्षात राहतील.मग म्हणूया खरच विसरणं ही एक कला आहे•••• ती आत्मसात करू या•••••

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – प्रतिमेच्या पलिकडले ☆ “बाजीगर…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? प्रतिमेच्या पलिकडले ?

☆ “बाजीगर…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर 

टूट गया.. दिलका सपना हाये टूट गया.. वो इंडिया वाले ने हमे लूट लिया.. नही नही कंबख्त सालोने छिन लिया… दस साल से उनके साथ हमने भाईचारा करते आ रहे थे… आय.पी.एल.के रूप में… हर एक खिलाडी का अंदाज को बडी ध्यान से पढ चुके थे… कमजोरी कहा है पता चुके थे… बल्लेबाजी, गेंदबाजी का हर एक पैलू के कोने को गौर से समझाकर हमने ये फायनल मुकाबले मे मास्टर प्लान बनाकर खेल कर रहे थे… सबकुछ तो वैसैही चल रहा था..तीस गेंद पर तीस रन्स… याने जीत हाथ में चुकी थी… बस्स उसपर  पहलेसे जो चोकर्स का निशाना मिटाकर    & the winner of T20 of 2024 is South Africa. लिखना शुरु कर रहे थे….बार बार कोशीश चालू थी वो बदनाम चोकर्स का निशाना मिटाने के लिए…एकेक करके हमारे जी तोड करने वाले बल्लेबाज बंदे  परास्त होते गये… आखिरी  चार गेंद में नऊ रन्स कि बाकी थी… पर मिले दो… और सात रन्स  से हमे शर्मनाक हारगये… वो इंडिया वाले ने हमे गुमराह कर दिया… ये इनकी चालाकी इसे पहले कभी आय. पी. एल में नही देखी थी… सालोने हमारा गेम हमी पर बुमरॅंग कर दिया… और और फिर हम चोकर्स के चोकर्स ही रह गये… हम से क्या भुल हो गई जिसकी हमे ये सज़ा मिली.. हम ढूंढते रह गये…आसू के घुट पिते पिते…एक अचरज बात ये है कि.. हारे थे हम.. टुटा था दिल हमारा… पर वो साले इंडिया वाले फुट फुट कर रो रहे थे… बाजीगर थे ना….. आज हमे पहलीबार पता चला कि जब कोई जीत के नजदीक आकर भी हारता है तो तभी दु:ख कितना गहरा होता है इसका अहसास हुआ…   Cricket is game of chance का अर्थ हम जिंदगी भर नही भुलेगें…  एक बडी खुशी बात और है कि अगली बार रोहीत शर्मा और विराट कोहली तो विश्वकप नही खेलेंगे… और हम इंतजार करेंगे कि बुमराह कभी रिटायर्ड हो रहा है… उसके बाद जो विश्वकप कि मॅच होगी तो जीत हमारी ही पक्की होगी…

वो कुल कॅप्टन ने हमारे मुह से जीत छिन ली… हम बहुत ही इस पर शरमिंदा है… जाते जाते हम सभी खिलाडीयोंने आज के दिन अपनी दाहिने हाथोपर हम चोकर्स है करके गुदवा लिया है… जब कभी विश्वकप जीत कि बारी आयेगी तभी ये निशाना हमेशा हमेशा के लिए मिटा देंगे… कहने वाले तो यही कहेंगे कि खेल में हार जीत तो होती है… पर जो हार के भी जीतते है उसे बाजीगर कहते है… और उसका नाम इंडिया है…

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470 ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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