हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 57 – चाँदनी से मुझे नहाना है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – चाँदनी से मुझे नहाना है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 57 – चाँदनी से मुझे नहाना है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आज उनका नया बहाना है 

साथ में, फिर किसी के जाना है

*

गीत, उनको ही ये सुनाना है 

इसमें, उनका ही तो फसाना है

*

वो तो मेंहदी लगाये बैठे हैं 

और क्या क्या अभी लगाना है

*

रंग सोने-सा है, बदन चाँदी 

हुस्न का कीमती खजाना है

*

आज फिर हो गये खफा मुझसे 

रोग उनका तो ये पुराना है

*

तीरगी है, बुलाइये उनको 

चाँदनी से मुझे नहाना है

 

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 131 – चिंताओं की गठरी बाँधे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 131 – सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे… ☆

(मुक्त दिवस पर मेरी ओर से एक नई सजल)

समांत : ओए

पदांत : —

मात्राभार : 16+10=26

चिंताओं की गठरी बाँधे, जीवन भर ढोए।

स्वार्थी रिश्ते-नातों ने ही, पथ-काँटे  बोए।।

 *

संसाधन के जोड़-तोड़ में, हाड़ सभी टूटे ।

एक लंगोटी रही हमारी, बाकी सब खोए।।

 *

मोटी-मोटी पढ़ी किताबें, काम नहीं आईं।

जाने-अनजाने में हमतो, आँख मींच सोए।।

 *

होती चिंता,चिता की तरह, समझाया मन को ।

उससे मुक्ति है, ना मिल सकी, हार मान रोए।।

 *

प्रारब्धों के मकड़ जाल में, उलझ गए हम सब।

पाप पुण्य के फेरे में पड़, पुण्य सभी धोए।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30/5/24

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – देह या दृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  देह या दृष्टि ? ?

तुमने देखी उसकी

निर्वसन,अनावृत्त देह?

पुलिया पर खड़ा जनसमूह

नदी में मिले नारी शरीर पर

कुजबुजा रहा था,

मैं पशोपेश में पड़ गया

निर्वसन देह होती है या दृष्टि?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ – Evanscent Life… – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Ministser of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem Evanscent Life..We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

Evanscent Life ?

Life is ephemeral,

kept telling the coin…

He reversed the trend of time,

as he flipped it, resolutely

 Proclaimed the coin, now:

‘Fleeting evanescence

only inhabits the life…!’

Between the word and its meaning,

there’s a radiant  binding vision,

defining the journey from

miniscule to enormous…!

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिंदी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें…” (व्यंग्य संग्रह)– श्री शांतिलाल जैन ☆ पुस्तक चर्चा – श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी की कृति कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें… की समीक्षा)

☆ “कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें… ” (व्यंग्य संग्रह)– श्री शांतिलाल जैन ☆ पुस्तक चर्चा – श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆ 

पुस्तक चर्चा 

पुस्तक ‏: कि आप शुतरमुर्ग बने रहें (व्यंग्य संग्रह)

व्यंग्यकार : श्री शांतिलाल जैन 

प्रकाशक‏ : बोधि प्रकाशन, जयपुर 

पृष्ठ संख्या‏ : ‎ 160 पृष्ठ 

मूल्य : 200 रु 

“….की आप शुतुरमुर्ग बने रहें” पुस्तक पर चर्चा के पूर्व बात करते हैं इस कृति के कृतिकार श्री शांतिलाल जैन की । शांतिलाल जैन ने अपने जीवन का अमूल्य समय भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत रहते हुए व्यतीत किया और कर्त्तव्य निष्ठा से सहायक महाप्रबंधक के पद तक पहुंचे ।  सामान्यतः बैंक कर्मचारी गुणा – भाग, जोड़ – घटाने में माहिर अत्यंत्य सूक्ष्म दृष्टि के हो जाते हैं  । स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति के पेशे का प्रभाव उसके जीवन, रुचियों, चिंतन और रचनात्मकता पर भी पड़ता है । कलेक्ट्रेट के बाबुओं, अधिकारियों, न्यायाधीशों, पुलिस कर्मियों, सेल्स टैक्स – रेलवे कर्मियों, शिक्षकों, पत्रकारों, बैंक कर्मचारियों का चिंतन और रचना शैली समान नहीं हो सकती । चूंकि शांति लाल जी बैंक में सेवारत रहते हुए व्यंग्यकार बने अतः उनकी दृष्टि में पैनापन, अवलोकन करके उत्तर के रूप में वास्तविकता प्राप्त करने की क्षमता अन्य पेशारत व्यंग्यकारों से अधिक है। संभवतः यही कारण है कि इनके व्यंग्य बिना किसी लंबी भूमिका के शीघ्र ही मुद्दे पर आकर बिना लाग लपेट के गणितीय शैली में परिणाम तक पहुंच जाते हैं । आपके व्यंग्य छोटे किंतु सटीक हैं ।

पुस्तक की भूमिका में शांति लाल जी कहते हैं कि भयानक मंजरों को मत देखिए, जननेताओं की विफलताओं को मत देखिए । सांप्रदायिकता की आंधी आने वाली है, आर्थिक और सामाजिक असमानता की आंधी आने वाली है, पाखंड, अंधविश्वास और जहालियत की आंधी आने वाली है, आवारा पूंजीवाद की आंधी आने वाली है, फाल्स डेमोक्रेसी की आंधी आने वाली है लेकिन सत्ता की पूरी मशीनरी से कहलवाया जा रहा है कि सकारात्मक बने रहिए । “सकारात्मक रहने की ओट में आपसे रेत में सिर घुसाकर रखने की अपीलें की जा रही हैं । वे कहते हैं “…. कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें ।”

पुस्तक के प्रारम्भ में श्री कैलाश मंडलेकर का कथन है कि इस दौर के व्यंग्य लेखन पर प्रायः नान सीरियस और चलताऊ किस्म की टिप्पणी फैशन के तौर पर की जाती है । आज का व्यंग्य लेखन फार्मूला बद्ध और सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने का जरिया बनता जा रहा है और उसमें उस तरह की गंभीरता नहीं है जैसी कि परसाई या शरद जोशी के लेखन में हुआ करती थी । यहां पहले ही कहा जा चुका है कि प्रत्येक की दृष्टि और चिंतन उसके पारिवारक वातारण, परिस्थितियों, साथियों, शिक्षा, व्यवसाय और उसके जिये समय के अनुसार ही विकसित होते हैं, अतः किसी भी कवि – लेखक, कथाकार, व्यंग्यकार की किसी अन्य से तुलना नहीं की जाना चाहिए । जिसे हम पढ़ रहे हैं, जो हमारे सामने है तर्क पूर्वक उसकी बात करना ही उचित है । व्यंग्य वर्तमान के यथार्थ का लेखन है और शांतिलाल जी ने वर्तमान की वास्तविकता को सहजता, सरलता, सजगता व निर्भयता के साथ प्रस्तुत किया है ।

बोधि प्रकाशन द्वारा 2023 में प्रकाशित श्री शांतिलाल जैन की पुस्तक “…. कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें” में 160 पृष्ठों में विविध विषयों पर 57 व्यंग्य रचनाएं हैं । पुस्तक का मूल्य 200 रुपए है । इस पुस्तक में अनेक रचनाएं कोरोना से पीड़ित समाज की विपदाओं पर केंद्रित हैं । इनमें वैयक्तिक और सामाजिक अंतर्विरोधों के साथ व्यवस्था की लापरवाहियों पर पैने कटाक्ष किए गए हैं । निःसंदेह कोरोनाकाल की  भयानकता को भुलाया नहीं जा सकता। अनेक अव्यवस्थाओं, विसंगतियों के बाद भी ऐसा नहीं है कि इससे निपटने या बचने के लिए कुछ नहीं किया गया । शासन – प्रशासन, समर्थ और आम आदमी सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, किंतु यदि मात्र दोष खोजने  व उनपर कटाक्ष करने को ही व्यंग्य कहा जाता है तो शांतिलाल जी ने बखूबी व्यंग्यकार का धर्म निभाया है । मैं समझता हूं कि यदि अच्छी बातों पर अच्छी टिप्पणी करते हुए, विसंगतियों पर करारे प्रहार किए जाएं तो भी लेखक अपने व्यंग्य की धार को बनाए रख सकता है ।

“नलियाबाखल से मंडी हाउस तक” शीर्षक व्यंग्य में खबर प्रस्तुतिकरण के तरीकों और पत्रकारिता पर करारा व्यंग्य है । “बौने कृतज्ञ हैं, बौने व्यस्त हैं” व्यंग्य में वोट के लिए दिए जा रहे प्रलोभन का वास्तविक चित्र है । “एवर गिवन इन स्वेज आफ इंदौर” में वे सड़क पर पसरे अतिक्रमण और अवरुद्ध यातायात की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं । “हम साथ साथ (लाए गए) हैं” में सामूहिक फोटो खिंचवाने के लिए लोगों के नखरों का हास्य – व्यंग्य भरा सहज चित्रण है । आगे के लेखों में बरसात में शहर में जल प्लावन । दवाखाने में डॉक्टर को दिखाने में लगी भीड़, सास – बहू संबंध, राजनीत में झूठ का महत्व, न्याय व्यवस्था, अदाओं की चोरी, ईमानदार होने की उलझन आदि में विसंगतियों पर सटीक प्रहार है । जैन साहब ने सहजता से सीधे शब्दों में दो टूक बात कही है ।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 286 ☆ आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 286 ☆

? आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं ?

स्वतंत्रता संग्राम में प्राणों को न्यौछावर करने वाले देश के महान सपूतों को डाक विभाग उन पर टिकिट जारी कर सम्मान देता है। भारतीय डाक विभाग ने ३१ जुलाई १९९२ को शहीद ऊधम सिंह की फोटो की एक रुपए की डाक टिकट जारी की थी। इस की दस लाख टिकिटें जारी कि गईं थी। इस टिकिट का डिजाइन श्री शंख सामंत द्वारा किया गया है। जिससे देश की युवा एवं भावी पीढ़ी को शहीदों के बलिदानों के प्रति जागरूक किया जा सके। टिकिट जारी करते हुये प्रथम दिवस आवरण भी जारी होता है जिस पर उधमसिंह के संदर्भ में प्रामाणिक जानकारियां संजोई गई हैं। किन्तु उसका दोबारा कोई रिप्रिंट नही किया गया इसलिये ऐसा लगता है कि डाक विभाग केवल एक बार ही शहीदों को याद कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। इस समय देश के किसी भी डाकघर में शहीद ऊधम सिंह से सम्बन्धित डाक टिकट प्रचलन में नहीं है। फिलाटेली में रुचि रखने वाले संग्रह कर्ताओ के पास अवश्य वह टिकट संग्रहित हैं। डाक टिकट पुनः जारी नहीं करने का कारण जानने के बारे में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी विशेष विषय पर विभाग केवल एक बार डाक टिकट इश्यू करता है, जबकि वाइल्ड लाइफ, एन्वॉयरमेंट, ट्रांसपोर्ट, नेचर, चिल्ड्रन डे, फिलाटैलि डे, सीजनल ग्रीटिंग्स इत्यादि विषयों पर रेगुलर डाक टिकट फिर फिर जारी होते रहते हैं।

पाकिस्तान में भी शहीद उधम सिंह पर डाक टिकट जारी करने की मांग की गई है।

शहीद भगत सिंह, शहीद उधम सिंह, लाला लाजपत राय जैसे स्वातंत्रय वीर संयुक्त भारत में आजादी से पहले आज के पाकिस्तान से थे। कुछ वर्ष पहले लाहौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के लॉन में उधम सिंह का ८०वां शहीदी दिवस मनाया गया था। शहीद उधम सिंह क्रांतिकारी के साथ एडवोकेट भी थे। उन्होंने विदेश में रह कर ही वकालत की थी। पाकिस्तान ने शहीद भगत सिंह के बाद उधम सिंह को भी अपना शहीद मान लिया है। पाकिस्तान में उधमसिंह के शहीदी दिवस की बरसी पर कैंडल मार्च निकाला गया था और उनकी शहादत को नमन किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने उधम सिंह की देश की आजादी के लिए दी गई कुर्बानी को याद किया गया। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के चेयरमैन एडवोकेट इम्तियाज कुरैशी और अब्दुल रशीद ने पाकिस्तान सरकार से अपील की कि शहीद उधम सिंह के नाम पर डाक टिकट जारी किया जाए और पाकिस्तान में किसी एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा जाए।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मेरी डायरी के पन्ने से # 13 – संस्मरण # 7 – गटरू ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  – संस्मरण)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 13 – संस्मरण # 7 – गटरू ?

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम सपरिवार वैष्णो माता का दर्शन करने के लिए पुणे से जम्मू के लिए रवाना हुए।

दीवाली का मौसम था बच्चों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और तीन सप्ताह की छुट् टियाँ थीं। इस बार यह तय हुआ था कि माता वैष्णो का दर्शन कर हम दीवाली वहीं पर मनाएँगे और उसके बाद लौटते समय दिल्ली में उतर कर आगरा, हरिद्वार, ऋषिकेश आदि जगह बच्चों को दिखाएँगे। बच्चों के मन में भी बहुत उत्साह था कि हम पंद्रह दिन के लिए बाहर जा रहे थे।

दीपावली से पहले घर की उन्होंने बड़े उत्साह से साफ़- सफ़ाई की। अपनी -अपनी अलमारियों की, पुस्तकों के मेज़ों की सबकी सफ़ाई हुई और दीवाली से तीन दिन पहले हम लोग जम्मू के लिए रवाना हुए।

इससे पहले पुणे से जाने के लिए दिल्ली में गाड़ी बदलने की आवश्यकता होती थी। पर अब कुछ वर्षों से तो दो रात की यात्रा करके जम्मू तवी झेलम एक्सप्रेस द्वारा सीधे जम्मू पहुँचने की सुविधा थी। बच्चे साथ में थे इसलिए आवश्यकता से अधिक भोजन सामग्री साथ लेकर चले थे। दो रातें तो अच्छी तरह से हँस- खेलकर बीत गई पर तीसरे दिन सुबह हमें जम्मू पहुँचना था उस दिन ट्रेन 8 घंटे विलंब से चलने लगी। बच्चे अब ऊब चुके थे और थक भी चुके थे। हमें जम्मू प्लेटफार्म पर पहुँचते-पहुँचते शाम के 6:30 बज गए जबकि यह ट्रेन सुबह के 10:30 बजे जम्मू पहुँचती है। जम्मू शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर कटरा नामक एक छोटा – सा शहर है इसी शहर तक पहुँचने पर यात्री माता वैष्णोजी का दर्शन करने के लिए ऊपर पहाड़ पर जा सकते हैं।

हम सब गाड़ी से प्लेटफॉर्म पर उतरे तो प्लेटफॉर्म पर तिल धरने को जगह न थी। मानो बड़ी संख्या में यात्री दर्शन करने के लिए आए हुए थे। हमारी ट्रेन से तो अधिकतर लोग दिल्ली, जालंधर और पठानकोट में ही उतर गए क्योंकि दीवाली के शुभ अवसर पर उत्तर भारत के अधिकांश लोग अपने घर- परिवार के साथ ही इस उत्सव को मनाना पसंद करते हैं। इसलिए गाड़ी खाली ही थी। दो चार यात्री हमारे ही जैसे थे जो माता का दर्शन करने के लिए प्लेटफार्म पर उतरे। कुछ लोकल थे, त्योहार मनाने घर जा रहे थे।

ठंडी का मौसम था और साथ ही पहाड़ी इलाका, इसलिए हम सभी काफ़ी गर्म कपड़े लेकर ही चले थे जिस कारण चार सदस्यों के चार सूटकेस, हरेक का एक हैंडबैग और भोजन का बड़ा बैग अलग से।

कुछ देर तक हम सब प्लेटफॉर्म पर खड़े रहे पर एक भी कुली नज़र न आया। इधर – उधर नज़र दौड़ाते रहे। अचानक एक बीस – बाईस साल का नवयुवक हमारे सामने आकर खड़ा हो गया। वेशभूषा से वह कोई कुली तो नज़र ना आ रहा था क्योंकि उसकी कमीज़ भी उसके शारीरिक ढाँचे से बड़ी थी मानो किसी बड़े मोटे और ऊँचे कदवाले व्यक्ति से माँगकर पहन रखी थी। वह पास आकर बोला, ” माताजी सामान चक ल्या?” अर्थात माता जी क्या मैं सामान उठा लूँ।

उसकी ओर देखने पर ऐसा लगा कि उसने शायद कभी पहले कुली का काम किया ही न था। उसके शरीर पर लाल कुली की कमीज तो थी पर कुलियों के हाथ पर जो बिल्ला होता है, पीतल का बना हुआ, जिस पर उनकी पंजीकरण संख्या लिखी हुई होती है, वह उसके पास नहीं था। पर उस वक्त हमारे पास और कोई उपाय भी नहीं था। सामान तो अधिक थे ही, बच्चे ट्रेन में बैठे – बैठे अब थक चुके थे। रात गहरा रही थी। ठंड के मौसम में अंधेरा भी जल्दी ही छाने लगता है। ठंडी भी बढ़ रही थी। आगे यात्रा अभी बाकी थी।

मैंने उसे सामान उठाने के लिए कहा। सबसे बड़ी – सी जो अटैची थी उसने उसे उठाकर जब अपने सिर पर रखा तो उसका सारा शरीर कुछ पल के लिए डगमगा उठा। यह देखकर ही मेरा संदेह दूर हो गया कि उस नौजवान को कुलीगिरी करने की आदत नहीं थी। पर उस वक्त हमारे पास और कोई दूसरा चारा भी ना था। अब बाकी छोटे-मोटे सामान मैंने उठा लिए कुछ पति महोदय ने उठा लिया और उससे भी छोटे जो सामान थे वे बच्चों के हाथ में थमा दिए। बच्चों से कहा कि वे कुली के साथ ही चलें। एग्ज़िट गेट से वह निकल गया और उसके पीछे- पीछे बच्चे दौड़ते रहे। सामान लेकर चलते हुए हम बीच-बीच में इससे -उससे टकराते रहे। बच्चों ने उससे अपनी नज़र न चूकने दी। और सामान हाथ में लेकर मैं और मेरे पति भी भीड़ में से संभलते हुए बाहर निकले।

बाहर भी यात्रियों की बहुत बड़ी भीड़ थी थोड़ी देर के लिए तो मेरा दिल धड़क उठा यह सोचकर कि यदि प्लेटफार्म पर इतनी बड़ी भीड़ है, स्टेशन के बाहर भी इतनी लंबी – चौड़ी भीड़ है तो माता के मंदिर में न जाने कितनी भीड़ होगी ? और न जाने कितने घंटे दर्शन के लिए खड़ा रहना पड़ेगा! स्टेशन के बाहर सीढ़ियाँ उतरकर बाईं ओर मुड़ते ही टैक्सी स्टैंड है। हम सब सामान लेकर वहाँ पहुँचे। लंबी डगें भरते हुए पति महोदय टैक्सी की खोज में निकले।

सारा सामान नीचे रखा गया और बच्चे उस पर बैठ गए। ठंडी हवा चल रही थी तो बच्चे और भी सिकुड़ गए। मैंने जिज्ञासावश उससे बातचीत शुरू कर दी।

– क्यों बेटा ऊपर बहुत भीड़ है क्या ?

– ना जी न सारे बापस जान लगे जी! क्या है के जी दवाली दा मौसम है लोकी, अपणे कार विच रैणा पसंद करदे हन।

– तो फिर अभी इतनी भीड़ क्यों है यहाँ?

– जी जे लोकी आए सन वो सारे बापस जान रै सन।

-अच्छा तो इस भीड़ में जानेवाले ज्यादा हैं, आनेवाले कम।

-जी हाँ। जी हाँ।

-बच्चे, तुम्हारा नाम क्या है?

-जी गटरू

अच्छा तुमने इससे पहले कुली का काम कभी किया है गटरू?

-जी वैसे नई करदा पर हूण करण लग्या।

-क्यों ?

– जी इक माह बाद साडी पैण दा ब्याह है- –

– अच्छा! कहाँ के रहनेवाले हो गटरू

– जी पठाणकोट दा

बातचीत के सिलसिले से पता चला कि गटरू के पिता को खेत में काम करते हुए साँप ने काटा था। समय पर अस्पताल ना पहुँचाए जाने के कारण उनकी मौत हो गई थी। इस घटना को अब दो वर्ष बीत चुके थे। थोड़ी खेती होती है, उसी से उनका गुज़ारा होता है। अब बहन की शादी में बड़ा खर्च है तो जम्मू रेलवे स्टेशन पर कुछ महीना भर काम करके वह चार पैसे जोड़ लेगा। दशहरे से दीवाली तक माता का दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लोग आते हैं। उस भीड़ को संभालने के लिए वहाँ की जो उपस्थित कुलियों की संख्या है वह कम पड़ती है।

गटरू के गाँव का कोई आदमी जम्मू स्टेशन पर कुली था। उसीके सहारे वह भी यहाँ आकर अपनी तकदीर आज़मा रहा था। पंद्रह -बीस दिनों तक काम करके जो कमा लेगा वही रकम उसकी बहन की शादी में काम आएगा। उसके घर में उसकी बहन के अलावा दो छोटी बहनें और भी थीं। वे अभी स्कूल में पढ़ रही थीं।

गटरू बड़ा उत्साही, चपल, मेहनती लड़का था। उसकी आँखों में भोलेपन की तरलता थी गोरा रंग जो मेहनत – मजदूरी के कारण और कुपोषण के कारण थोड़ा काला – सा पड़ गया था। वह कमजोर भी दिखता था। आँखों के नीचे गड् ढे – से पड़ गए थे। पर फिर भी आँखें बहुत कुछ बोलती थीं।

इतने में कटरा जाने के लिए टैक्सी मिल गई हम लोगों ने तुरंत टैक्सी में छोटा- मोटा सामान रखना प्रारंभ किया। गटरू ने बड़े उत्साह के साथ कुछ सामान टैक्सी के ऊपर के कैरियर में रखकर रस्सी बाँधने में ड्राइवर की सहायता की। उसका हँसमुख वदन और सदैव सहायता करने की तत्परता ने मुझे उसकी मासूमियत की ओर आकर्षित किया। मैं मन ही मन उसके परिश्रम करने की क्षमता की प्रशंसा करती रही।

गटरू के हाथ में मैंने ₹60 रखे उस जमाने में ₹60 बहुत होते थे। हम चल पड़े उसने हमसे नमस्ते कहा। सभी सामान उठाकर वह स्टेशन से नीचे ले आया था और हमारे साथ तब तक खड़ा था जब तक हम रवाना न हुए। उसकी यह जिम्मेदारी वहन करने के भाव को देख मन प्रसन्न हो रहा था।

हम कटरा पहुँचे। देर रात को ही नहा धोकर मंदिर जाने के लिए रात के 10 बजे रवाना हुए बच्चे थके तो थे पर मंदिर जाने का उत्साह उनके मन में जोश भरने में सफल हुआ। माता का मंदिर रात भर खुला रहता है लोग रात भर चलते हुए, उतरते हुए दिखाई देते हैं। अब तो मंदिर जाने के लिए कई व्यवस्थाएँ भी हो गई थीं। घोड़े, पालकी यहाँ तक कि हेलीकॉप्टर और बैटरी वाली गाड़ियाँ भी थीं।

हम लोगों ने अपनी यात्रा शुरू की। मंदिर जाने के लिए जहाँ से यात्रा शुरू करते हैं वहाँ से पहाड़ की चोटी तक जहाँ मुख्य गर्भ गृह स्थित है 14 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

जिस स्थान से यात्रा प्रारंभ होती है उसे बाणगंगा कहते हैं। अधकुंवारी, हाथी मत्था होते हुए इस 14 किलोमीटर की यात्रा हमने 6 घंटे में पूरी की। अधकुँवारी में बहुत बड़ी भीड़ होती है क्योंकि एक छोटी सी गुफा के भीतर से सबको बाहर गुजरकर निकलना पड़ता है जिस कारण वहाँ थोड़ा ज्यादा समय लगता है।

माता के मंदिर के ऊपर भी एक और मंदिर है। यह उस राक्षस का मंदिर है जो माता का पीछा करते हुए इस स्थान तक आया था। उसका नाम है भैरवनाथ। भैरवनाथ का मंदिर माता के मंदिर से और ऊपर चढ़कर है। उसका दर्शन करने के लिए भी कई लोग जाते हैं। उस रास्ते की यात्रा बहुत कठिन यात्रा है।

दीपावली की रात हम ऊपर मंदिर में ही रहे दीपावली का त्यौहार था इसलिए मंदिर में भीड़ नहीं थी। हमें बड़ी आसानी से माता का दर्शन मिला। गुफा के भीतर तीन पिंडों के रूप में माता सरस्वती, माता काली और माता वैष्णो के दर्शन हुए। यहाँ किसी देवी की मूर्ति नहीं है। केवल तीन पिंडियाँ हैं। हम सब बड़े खुश थे क्योंकि हमें ज्यादा भीड़ का सामना नहीं करना पड़ा था।

हम लोग दूसरे दिन सुबह जब नीचे उतरने लगे तो हमें रास्ते में गटरू मिला। उसे देखकर हमें आश्चर्य हुआ। दो क्षण रुक कर हमने उससे पूछ ही लिया कि वह माता के मंदिर के रास्ते पर क्या कर रहा था तो उसने बताया कि ट्रेनें खाली आ रही थी इसलिए वह मंदिर में एक-दो दिन लोगों का सामान उठाकर ऊपर ले जाने का काम करने जा रहा था। ऐसे लोगों को वहाँ पिट्ठू कहते हैं। पिट्ठू के रूप में गटरू किसी परिवार के यात्रियों के साथ चल रहा था। उसने उनके सामान उठाए हुए थे और साथ में एक छोटे बच्चे को पीठ पर बाँधे रखा था।

कटरा में ही बस स्टॉप के पास एक साधारण होटल में हमने अपनी बुकिंग कर रखी थी और सामान भी वहीं छोड़ रखा था। नीचे उतरते ही साथ हम सब उसी होटल में लौट गए। गरम गरम पानी से नहाने पर थकावट भी दूर होती है। थोड़ा कुछ खा – पीकर बच्चे और हम सभी सो गए।

दीवाली के तीसरे दिन हम लोग जम्मू के लिए रवाना हुए। हमारी गाड़ी रात को 9:45 बजे थी। हम सब स्टेशन के पास अभी टैक्सी से उतरे ही थे कि गटरू नज़र आया। संयोग की बात थी कि वह भी पहाड़ से नीचे उतर आया था और कुली का काम कर रहा था।

हमें देखते ही वह पास आकर खड़ा हो गया। पास आकर गाड़ी का नाम उसने हमसे पूछा और बोला अभी 2 घंटे हैं गाड़ी को जाने में। वह हमारा सामान टैक्सी से उतारकर प्लेटफार्म नंबर एक पर ले आया। जहाँ हमारा रिजर्व डिब्बे के आने की संभावना थी उसने ठीक उसी के सामने हमारा सारा सामान लाकर रख दिया। मैंने पैसे देने चाहे उसने कहा “पैले आपको सीट पर मैं बिठांगा ओस ते वाद पैहे ले ल्यांगा। “

गटरू का चेहरा, लोगों पर उसका विश्वास और उसके चेहरे पर फैला भोलापन न जाने क्यों हम सब को बहुत अच्छा लगा था।

प्लेटफार्म नंबर एक के और प्लेटफार्म नंबर 2 के बीच तीन और ट्रैकें थीं। बीच में जो तीन ट्रैकें थी वह जम्मू स्टेशन पर न रुकने वाली गाड़ियों के लिए थीं। कई बार माल गाड़ियाँ बिना रुके इन्हीं ट्रैकों पर से द्रुत गति से निकलती हैं। प्लेटफार्म नंबर एक की ट्रैक अभी खाली थी। इसी ट्रैक पर हमारी रेल गाड़ी आने वाली थी।

प्लेटफार्म नंबर दो पर एक ट्रेन के आने की सूचना दी गई और इन दोनों ट्रकों के बीच के ट्रक पर कुछ दूरी पर एक खाली मालगाड़ी खड़ी थी। जब दोबारा प्लेटफॉर्म क्रमांक 2 पर अजमेर जाने वाली गाड़ी की सूचना मिली। गटरू हमारा सामान रखते ही तुरंत प्लेटफार्म से नीचे उतरने को तत्पर हुआ। मैंने पर्स में से निकालकर पैसे उसकी तरफ बढ़ाए तो उसने कहा अभी टाइम है वह ले लेगा।

एक से दूसरे प्लेटफार्म तक जाने के लिए अधिकतर बड़े शहरों के स्टेशनों पर ओवरब्रिज बने हुए होते हैं। पर गटरू को बहुत जल्दी थी और वह जल्द से जल्द दूसरे प्लेटफार्म पर पहुँचना चाहता था। चूँकि वहाँ पर सूचना दे दी गई थी कि वहाँ से अजमेर जाने वाली गाड़ी आ रही थी तो वह अति शीघ्रता में था। वैसे भी कुली काफी सतर्क होते हैं और नियमित रूप से इसी तरह एक से दूसरे ट्रैक पर बिना सामान के आते – जाते रहते हैं ताकि दोनों प्लेटफार्म पर आसानी से वे कुली का काम कर सकें और अधिक धनराशि कमा सकें।

रेलगाड़ियों के आने-जाने के समय सभी कुली काफी सतर्क होते हैं। एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर बड़ी चपलता से चढ़ भी जाते हैं।

गटरू एक नंबर प्लैटफॉर्म से उतरकर एक खाली ट्रैक पार कर दूसरे ट्रैक पर खड़ा हो गया। उसकी एक टाँग ट्रैक के अभी भीतर थी और दूसरी बाहर। इतने में प्लेटफार्म नंबर दो पर अजमेर जाने वाली गाड़ी आने लगी। वह रुक गया। जो गाड़ी आई थी वह अभी गति से ही चल रही थी।

सामान बेचने वालों की, यात्रियों की चहल-पहल थी। इधर प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़े लोग अचानक ज़ोर से चिल्लाने लगे – ए छोकरे हट ओए! सुनाई नहीं दे॔दा? ओए हट न! पर पटरियों पर खड़े गटरू को किसी की भी आवाज सुनाई नहीं दी। हमारा ध्यान जब लोगों की चीख-पुकार की ओर गई तो ध्यान देने पर देखा दो खाली पटरियों के बीच जो एक और पटरी थी जिस पर एक खाली मालगाड़ी काफी समय से खड़ी थी, वह बिना किसी सिग्नल के और आवाज़ के धीरे- धीरे पीछे की ओर शंटिंग करने लगी। गटरू को ही सब हटने को कह रहे थे। जब तक हम सबका ध्यान गया और हमने गटरू को नाम लेकर पुकारना शुरू किया तब तक खाली गाड़ी के पिछले हिस्से से एक धक्का लगने के कारण वह पटरी पर गिर पड़ा। यद् यपि रेलगाड़ी की गति बहुत धीमी थी पर थे तो लोहे के पहिए। उसकी एक टाँग हमारे देखते ही देखते कट गई। वह दूसरी टाँग समेत अपने शरीर को ऊपर से हटाने के प्रयास में अभी था ही कि रेलगाड़ी के दूसरे डिब्बे का पहिया उसके ऊपर से गुज़र गया। थोड़ी दूर जाकर गाड़ी रुक गई। सब तरफ एक भारी चुप्पी छा गई। सारे लोग भीड़ करके उसी जगह पर जमा हो गए जहाँ से वे झुककर पटरी पर पड़े गटरू को देख पा रहे थे। कुछ जवान लड़के जो दुकान चलाते थे वे सब गटरू के पास पहुँच गए। गटरू बेहोश बेजान सा खून में लथपथ पड़ा था।

रेलगाड़ी के ड्राइवर को जब तक समाचार मिला और उसने गाड़ी रोकी तब तक गटरू का धड़ दो टुकड़ों में बँट चुका था।

हमारे बच्चे रोने लगे। मेरे हाथ में उसे देने वाले जो नोट थे वे इस तरह हाथ की मुट्ठी में भींच गए कि मेरे ही नाखून मेरी हथेली में गड़ गए। प्लेटफार्म अचानक श्मशान जैसा शांत हो गया। स्थायी दुकानवाले, चायवाले, पूड़ी तरकारी बेचनेवाले सब स्तंभित थे।

कुछ समय के बाद फिर सब सामान्य हो गया। पुलिस वहाँ पहुँची, एंबुलेंस आई स्ट्रेचर पर गुटरू के शरीर के दो हिस्से, टूटी हुई बेजान टाँगे रखी गईं और अस्पताल ले जाया गया। वह तो बिचारा बेहोश पड़ा था।

सभी लोग इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। यात्री, अन्य दुकानवाले सभी, पर हमारा परिवार बिल्कुल चुप्पी साधे खड़ा था। बच्चे थोड़ी देर तक ज़ोर से गटरू, गटरू कहकर अपने पापा से और मुझसे चिपकाकर रोने लगे। संभवतः गटरू के साथ हमारा क्या संबंध था यह बात आस- पास खड़े लोग न समझे होंगे। पर बच्चों को इस दुर्घटना ने हिला दिया था।

हम दोनों की आँखें हमारे साथ लिपटे हुए बच्चों के साथ चुपचाप बरसती ही रही।

थोड़ी देर में हमारी भी गाड़ी आई और हमने अपना सामान जगह पर रखा। रात का समय था बच्चे सामान रख कर चुपचाप अपनी सीटों पर काँच की बंद खिड़की के उस पार देखते हुए आँसू बहाते रहे जिस ओर गटरू दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। गाड़ी चल पड़ी पर हम एक दूसरे से कुछ ना बोले जब भी बच्चों से मेरी आँखें चार होती तो लगता कि बच्चे मुझसे पूछ रहे थे मम्मा जिंदा रहेगा न गटरू? उसके घर वालों को क्या पता कि बहन की शादी के लिए पैसा कमाने के लिए आया हुआ अनुभवशून्य भाई जो अपनी नींद, भूख, प्यास सब भूलकर सिर्फ एक ही धुन में लगा था आज मौत से लड़ रहा था।

ट्रेन में उपस्थित सभी यात्री देर रात तक इसी विषय पर चर्चा करते रहे। दूसरे दिन सुबह हम दिल्ली पहुँचे। यहाँ से हमारी दूसरी यात्रा शुरू होने वाली थी। बच्चों का हृदय अभी भी पिछली रात की घटना से प्रभावित था। हम दिल्ली स्टेशन पर उतरे। वहीं पर नाश्ता करने बैठे तो बच्चों ने कुछ खाने से इंकार कर दिया। हम समझ रहे थे कि अपने जीवन में इस छोटी सी उम्र में ऐसी घटना देखकर उनका दिल भी दर्द से भर उठा होगा। अब आगे घूमने जाने का उनका पूरा उत्साह ही ठंडा पड़ गया था।

मैं अपने आप से सवाल कर रही थी इस दुनिया में गटरू जैसे कितने ही लोग होंगे जो कम उम्र में छोटा जीवन लेकर आते हैं और अपनी कुछ खासियत के कारण हमेशा दूसरों के दिल में बसे रहते हैं। गटरू इस कहानी के रूप में हमारे हृदय में बसा रहेगा। उसकी मधुर मुस्कान, उसका भोला चेहरा, उसकी बोलती आँखें सदैव हमारे हृदय में बसा रहेगा फिर जीवन तो अपनी जगह है उसका काम है चलते रहना किसी ने ठीक ही कहा है शो मस्ट गो ऑन!

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 381 ⇒ उदासी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उदासी।)

?अभी अभी # 381 ⇒ उदासी? श्री प्रदीप शर्मा  ?

उदासी !

गम की दासी

रात की रोटी

ठंडी-बासी

स्वस्थ शरीर में

मानो सूखी खाँसी

खुशियों के उपवन में

मुरझाए-पुष्प

छाई उदासी।

उत्साह के बजाय

उबासी

सुन सुन आए

हाँसी

हलक से हरूफ

बाहर आते नहीं

बिन जल्लाद-रस्सी

मानो लग रही फाँसी।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 86 – देश-परदेश – उधो का लेना ना माधो का देना ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 86 ☆ देश-परदेश – उधो का लेना ना माधो का देना ☆ श्री राकेश कुमार ☆

उपरोक्त चित्र में कुतुर हमारे देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व का प्रतीक हैं। चित्र में कुतुर गांव में हो रहे किसी कार्यक्रम की जानकारी बहुत दूर से ले रहा हैं।

ये ही हाल, हमारे जैसे फुरसतिये जो दिन भर सोशल मीडिया के व्हाट्स ऐप, यू ट्यूब, एक्स, फेस बुक पर तैयार शुदा मैसेज को तेज़ी से आदान प्रदान करते रहते हैं, जिनको राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है। आज सुबह से घर के टीवी पर चैनल बदल बदल कर परिणामों की बाट जोह रहे हैं।

अधिकतर सेवानिवृत है, कोई भी सरकार बने इन पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता हैं। लेकिन सोशल मीडिया के मंच से इतनी चिंता व्यक्त करते है, मानो इनका कोई सगा वाला चुनाव में प्रत्याशी हो। गडरिया की बैलगाड़ी  के नीचे छाया में चलने वाले कुतुर की गलतफहमी की कहानी याद आ गई।

ये लोग अपनी नौकरी के समय में भी काम की चिंता का जिक्र करने में अग्रणी रहा करते थे। कार्यालय में कहां/ क्या चल रहा है, इसकी पूरी जानकारी इन्हें कंठहस्त रहती थी, सिवाय इनकी सीट के कार्य को छोड़कर।

अधिकतर व्हाट्स एपिया साथी क्षेत्र के एमएलए छोड़ कॉरपोरेटर तक को कभी ना मिले होंगे। कभी किसी नेता की सभा या रोड़ शो में भी नहीं गए होंगे, लेकिन राजनीति के सैंकड़ो मैसेज प्रतिदिन कॉपी/ पेस्ट करने में इनका कोई सानी नहीं।

टीवी पर महीनों से हो रही स्तरहीन बहस को इतने गौर से  सुन कर अपनी तत्काल टिपण्णी करने में ये लोग अव्वल रहते हैं। कभी भी किसी दल को या सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक/ आर्थिक सहयोग भी नहीं किया होगा, ऐसे लोगों द्वारा, लेकिन जन सहयोग के ज्ञान की गंगा बहाने में सबसे आगे रहते हैं।

नई सरकार के गठन में एक सप्ताह तक लग सकता है, तब तक ये टीवी चैनल चोबीस घंटे चुनाव विश्लेषण कर घिसी पिटी दलीलें परोसते रह जायेंगे।

“जो जीता वो सिकंदर” जैसे गीत सुनाए जायेंगें। पुराना गीत ” आज किसी की हार हुई है, और किसी की जीत रे” भी इन समय खूब मांग में रहता हैं।

चुनाव में पराजित उम्मीदवारों के लिए उर्दू जुबां के जानकार कहने लगेंगे ” गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में….” चुनाव पर टीका टिप्पणियां करने वालों का मुंह बंद करवाने के लिए कहा जाएगा” every thing is fair in love, war and elections.

हम टीवी और समाचार पत्र प्रेमियों का कुछ नहीं हो सकता है। चुनाव परिणाम से अति उत्साहित या निरुत्तर मत हों। ऐसे ही जीवन चलता रहेगा।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #240 ☆ कुटील कावा आनंदकंद… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 240 ?

☆ कुटील कावा आनंदकंद☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

संसार संपदेशी नाही कधीच केला

होकार मी दिलेला निःस्वार्थ भावनेला

*

प्रेमात वादळाचे येणे कमाल नाही

पाहून सख्य अपुले तोही निघून गेला

*

तू सागरात आहे मी टाकलेय जाळे

जाळ्यात मासळीचा दमछाक जाहलेला

*

कटला पतंग होता नव्हते भविष्य त्याला

तू झेलल्यामुळे तो आहेच वाचलेला

*

हुंकार देउनी तो वारा पसार झाला

नाही कुणीच सोबत एकांत जागलेला

*

पसरून चादरीवर आकाश चांदण्यांचे

वाटेवरील डोळे हातात दुग्ध पेला

*

नाही कुटीळ कावा सत्यावरी भरवसा

देऊ कशास थारा नादान कल्पनेला

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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